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बुधवार, 12 जनवरी 2022
अंत समय में जटायु को प्रभु "श्रीराम" की गोद की शय्या मिला.!**लेकिन भीष्म पितामह को मरते समय बाण की शय्या मिली.!*
सूर्य नमस्कार के 12 आसन, मंत्र
सूर्य नमस्कार के विषय में शास्त्रों में एक श्लोक लिखा गया है : –
आदित्यस्य नमस्कारान् ये कुर्वन्ति दिने दिने।
आयुः प्रज्ञा बलं वीर्यं तेजस्तेषां च जायते ॥
सूर्यनमस्कार में जिस स्थिति में श्वास लेकर छोडना है
तो श्वास छोडने के समय ऊँ ध्वनि का उच्चारण कर सकते हैं। इससे शरीर में और
अधिक शिथिलता का अनुभव होगा।
श्वसन के समय भी पूर्ण शरीर शिथिल होने पर एक या तीन बार ऊँ ध्वनि का उच्चारण कर सकते हैं।
सह नौ भुनक्तु।
सह वीर्यं करवाव है।
तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषाव है।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः।।
mantra video
हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम् |तत्त्वं पूषन्नपावृणु सत्यधर्माय दृष्टये ||
हिरण्मयेन पात्रेण = स्वर्णमय पात्र से, सत्यस्य =सत्य का, मुखम् = मुख, अपिहितम् = ढका हुआ है,तत् = उसे, त्वं = आप, पूषन = हे पूषन ( सूर्य ),अपावृणु = अनावृत करें (हटा दें), सत्यधर्माय =सत्य के साधक को, दृष्टये = देखने के लिए |सत्य का मुख स्वर्णमय (ज्योतिर्मय) पात्र सेढका हुआ है; हे पूषन् ! आप मुझ सत्य केसाधक के लिए दर्शन करने हेतु उसे दूर कर दे ||
सूर्य नमस्कार मंत्र
Surya Namaskar Mantra In Hindi
आपकों बता दे कि सूर्य नमस्कार के हर चरण के पहले एक मंत्र का उच्चारण किया जाता है.
Surya Namaskar Mantra
- ॐ मित्राय नमः
- ॐ रवये नमः
- ॐ सूर्याय नमः
- ॐ भानवे नमः
- ॐ खगाय नमः
- ॐ पूष्णे नमः
- ॐ हिरन्यगर्भाय नमः
- ॐ मरीचये नमः
- ॐ आदित्याय नमः
- ॐ सावित्रे नमः
- ॐ अकार्य नमः
- ॐ भास्करराय नमः
Surya Namaskar का अंतिम मंत्र यह है,
https://www.youtube.com/watch?v=sefu7bJgMqA
ॐ श्री सबित्रू सुर्यनारायणाय नमःनमस्कारासन ( प्रणामासन) स्थिति में समस्त जीवन के स्त्रोत को नमन किया जाता है।
इसके साथ ही सूर्य नमस्कार प्रतिदिन करने से त्वचा से जुड़े हुए रोग दूर होते है |कब्ज और उदर रोगों में भी सूर्य नमस्कार करने से चमत्कारिक रूप से लाभ मिलता है | पाचन तंत्र के सभी विकार दूर होने लगते है और पाचन तंत्र मजबूत होता है |
सूर्य समस्त ब्रह्माण्ड का मित्र है, क्योंकि इससे पृथ्वी समत सभी ग्रहों के अस्तित्त्व के लिए आवश्यक असीम प्रकाश, ताप तथा ऊर्जा प्राप्त होती है।
पौराणिक ग्रन्थों में मित्र कर्मों के प्रेरक, धरा-आकाश के पोषक तथा निष्पक्ष व्यक्ति के रूप में चित्रित किया है।
प्रातःकालीन सूर्य भी दिवस के कार्यकलापों को प्रारम्भ करने का आह्वान करता है तथा सभी जीव-जन्तुओं को अपना प्रकाश प्रदान करता है
ॐ मित्राय नमः ( मित्र को प्रणाम )
ॐ मित्राय नमः मित्राय का मतलब मित्रता। सूर्य देव हम सब के सच्चे मित्र है और सहायक है। सच्चे मित्र का सम्बोधन मित्र कहके किया गया है | उनसे इस मंत्र का प्रयोग हम सूर्य देव से मित्रता का भाव प्रकट कर रहे हैं।
उसी तरह हम इस बात का विश्वाश भी जगता है हमें सबके साथ मित्रता की भावना रखनी चाहिए।
ॐ रवये नमः ( प्रकाशवान को प्रणाम )
“रवये“ का तात्पर्य है जो स्वयं प्रकाशवान है तथा सम्पूर्ण जीवधारियों को दिव्य आशीष प्रदान करता है।
तृतीय स्थिति हस्तउत्तानासन में इन्हीें दिव्य आशीषों को ग्रहण करने के उद्देश्य से शरीर को प्रकाश के स्त्रोत की ओर ताना जाता है
ॐ सूर्याय नमः ( क्रियाओं के प्रेरक को प्रणाम )
यहाँ सूर्य को ईश्वर के रूप में अत्यन्त सक्रिय माना गया है। प्राचीन वैदिक ग्रंथों में सात घोड़ों के जुते रथ पर सवार होकर सूर्य के आकाश गमन की कल्पना की गई है। ये सात घोड़े परम चेतना से निकलने वाल सप्त किरणों के प्रतीक है।
जिनका प्रकटीकरण चेतना के सात स्तरों में होता है – भू (भौतिक), – भुवः (मध्यवर्ती, सूक्ष्म ( नक्षत्रीय), स्वः ( सूक्ष्म, आकाशीय), मः ( देव आवास), जनः (उन दिव्य आत्माओं का आवास जो अहं से मुक्त है), तपः (आत्मज्ञान, प्राप्त सिद्धों का आवास) और सप्तम् (परम सत्य)।
सूर्य स्वयं सर्वोच्च चेतना का प्रतीक है तथा चेतना के सभी सात स्वरों को नियंत्रित करता है। देवताओं में सूर्य का स्थान महत्वपूर्ण है।
वेदों में वर्णित सूर्य देवता का आवास आकाश में है उसका प्रतिनिधित्त्व करने वाली अग्नि का आवास भूमि पर है।
ॐ भानवे नमः ( प्रदीप्त होने वाले को प्रणाम )
सूर्य भौतिक स्तर पर गुरू का प्रतीक है। इसका सूक्ष्म तात्पर्य है कि गुरू हमारी भ्रांतियों के अंधकार को दूर करता है – उसी प्रकार जैसे प्रातः वेला में रात्रि का अंधकार दूर हो जाता है।अश्व संचालनासन की स्थिति में हम उस प्रकाश की ओर मुँह करके अपने अज्ञान रूपी अंधकार की समाप्ति हेतु प्रार्थना करते हैं।
ॐ खगाय नमः ( आकाशगामी को प्रणाम )
समय का ज्ञान प्राप्त करने हेतु प्राचीन काल से सूर्य यंत्रों (डायलों ) के प्रयोग से लेकर वर्तमान कालीन जटिल यंत्रों के प्रयोग तक के लंबे काल में समय का ज्ञान प्राप्त करने के लिए आकाश में सूर्य की गति को ही आधार माना गया है।हम इस शक्ति के प्रति सम्मान प्रकट करते हैं जो समय का ज्ञान प्रदान करती है तथा उससे जीवन को उन्नत बनाने की प्रार्थना करते हैं।
ॐ पूष्णे नमः ( पोषक को प्रणाम )
सूर्य सभी शक्तियों का स्त्रोत है। एक पिता की भाँति वह हमें शक्ति, प्रकाश तथा जीवन देकर हमारा पोषण करता है।साष्टांग नमस्कार की स्थिति में हमे शरीर के सभी आठ केन्द्रों को भूमि से स्पर्श करते हुए उस पालनहार को अष्टांग प्रणाम करते हैं।
तत्त्वतः हम उसे अपने सम्पूर्ण अस्तित्व को समर्पित करते है तथा आशा करते हैं कि वह हमें शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करें।
ॐ हिरण्यगर्भाय नमः ( स्वर्णिम् विश्वात्मा को प्रणाम )
हिरण्यगर्भ, स्वर्ण के अण्डे के समान सूर्य की तरह देदीप्यमान, ऐसी संरचना है जिससे सृष्टिकर्ता ब्रह्म की उत्पत्ति हुई है।हिरण्यगर्भ प्रत्येक कार्य का परम कारण है। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड, प्रकटीकरण के पूर्व अन्तर्निहित अवस्था में हिरण्यगर्भ के अन्दर निहित रहता है। इसी प्रकार समस्त जीवन सूर्य (जो महत् विश्व सिद्धांत का प्रतिनिधित्व करता है ) में अन्तर्निहित है।
भुजंगासन में हम सूर्य के प्रति सम्मान प्रकट करते है तथा यह प्रार्थना करते है कि हममें रचनात्मकता का उदय हो।
ॐ मरीचये नमः ( सूर्य रश्मियों को प्रणाम )
मरीच ब्रह्मपुत्रों में से एक है। परन्तु इसका अर्थ मृग मरीचिका भी होता है। हम जीवन भर सत्य की खोज में उसी प्रकार भटकते रहते हैं |जिस प्रकार एक प्यासा व्यक्ति मरूस्थल में ( सूर्य रश्मियों से निर्मित ) मरीचिकाओं के जाल में फँसकर जल के लिए मूर्ख की भाँति इधर-उधर दौड़ता रहता है।
पर्वतासन की स्थिति में हम सच्चे ज्ञान तथा विवके को प्राप्त करने के लिए नतमस्तक होकर प्रार्थना करते हैं जिससे हम सत् अथवा असत् के अन्तर को समझ सकें।
ॐ आदित्याय नमः ( अदिति-सुत को प्रणाम)
विश्व जननी ( महाशक्ति ) के अनन्त नामों में एक नाम अदिति भी है। वहीं समस्त देवों की जननी, अनन्त तथा सीमारहित है।
वह आदि रचनात्मक शक्ति है जिससे सभी शक्तियाँ निःसृत हुई हैं। अश्व संचलानासन में हम उस अनन्त विश्व-जननी को प्रणाम करते हैं।
ॐ सवित्रे नमः ( सूर्य की उद्दीपन शक्ति को प्रणाम )
सवित्र उद्दीपक अथवा जागृत करने वाला देव है। इसका संबंध सूर्य देव से स्थापित किया जाता है। सवित्री उगते सूर्य का प्रतिनिधि है जो मनुष्य को जागृत करता है और क्रियाशील बनाता है।“सूर्य“ पूर्ण रूप से उदित सूरज का प्रतिनिधित्त्व करता है। जिसके प्रकाश में सारे कार्यकलाप होते है। सूर्य नमस्कार की हस्तपादासन स्थिति में सूर्य की जीवनदायनी शक्ति की प्राप्ति हेतु सवित्र को प्रणाम किया जाता है।
ॐ अर्काय नमः ( प्रशंसनीय को प्रणाम )
अर्क का तात्पर्य है – उर्जा । सूर्य विश्व की शक्तियों का प्रमुख स्त्रोत है। हस्तउत्तानासन में हम जीवन तथा उर्जा के इस स्त्रोत के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करते है।ॐ भास्कराय नमः ( आत्मज्ञान-प्रेरक को प्रणाम )
सूर्य नमस्कार की अंतिम स्थिति प्रणामासन (नमस्कारासन) में अनुभवातीत तथा आघ्यात्मिक सत्यों के महान प्रकाशक के रूप में सूर्य को अपनी श्रद्वा समर्पित की जाती है।
सूर्य हमारे चरम लक्ष्य-जीवनमुक्ति के मार्ग को प्रकाशित करता है। प्रणामासन में हम यह प्रार्थना करते हैं कि वह हमें यह मार्ग दिखायें। इस प्रकार सूर्य नमस्कार पद्धति में बारह मंत्रों का अर्थ सहित भावों का समावेश किया जा रहा है।
Surya Namaskar का अंतिम मंत्र यह है,
ॐ श्री सबित्रू सुर्यनारायणाय नमः
सूर्यनमस्कार की सभी 12 स्थतियों से पूर्व इन मंत्रो का उच्चारण करना चाहिए, Surya Namaskar का अंतिम मंत्र यह है, जो सभी योग करने के पश्चात उच्चारित किया जाता है.
आदित्यस्य नमस्कारान ये क्रवन्ति दिने दिने
आयु: प्रज्ञाबलवीर्यम् तेजस्तेषा च जायते
अर्थ- सूर्य भगवान् को जो नित्य नमस्कार करते है, उनकी आयु, प्रज्ञा, बल, वीर्य और तेज बढ़ता है.
अंत में नमस्कारासन से विश्राम की स्थति में आने हेतु क्रमशः
सूर्य नमस्कार के लाभ/फायदे- Surya Namaskar Benefits In Hindi
- नियमित अभ्यास से विटामिन डी मिलता है जिससे हड्डियाँ मजबूत होती है.
- आँखों की रोशनी एवं मन की एकाग्रता बढ़ती है.
- शरीर में खून का प्रवाह तेज होता है जिससे ब्लड प्रेशर की बिमारी से आराम मिलता है.
- सूर्य नमस्कार का प्रभाव दिमाग पर पड़ता है व दिमाग ठंडा रहता है.
- उदर के पास की वसा को घटाकर शरीर का वजन कम करता है.
- बालों की समस्याओं में मददगार है जैसे बाल सफ़ेद होना, झड़ने व रुसी से बचाता है.
- त्वचा रोग होने की सम्भावना समाप्त हो जाती है. कमर लचीली व रीढ़ की हड्डी मजबूत होती है.
- ह्रद्य व फेफड़े की कार्य क्षमता बढ़ती है और पाचन क्रिया में सुधार होता है.
- यह शरीर के सभी अंग, मासपेशियों व नसों को क्रियाशील करता है.
- शरीर के सभी संस्थान रक्त संचरण, श्वास, पाचन, उत्सर्जन, नाडी तथा ग्रन्थियों को क्रियाशील बनाता है एवं सशक्त करता है.
- पाचन सम्बन्धी अपच, कब्ज, गैस तथा भूख न लगने जैसी समस्याओं के समाधान में बहुत उपयोगी भूमिका निभाता है.
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