_पचास और साठ के दशक में जब भारत इतना सेकुलर नहीं था जितना अब हो गया है, स्कूलों में होने वाली प्रार्थनाएँ हिन्दुत्व प्रधान होती थीं । जैसे :-_
*_1. वह शक्ति हमें दो दयानिधे कर्तव्य मार्ग पर डट जाएँ । पर सेवा पर उपकार में हम निज जीवन सफल बना जाएँ ।।_*
*_2. हे प्रभू आन्ददाता, ज्ञान हमको दीजिए । शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिए ।।लीजिए हमको शरण में हम सदाचारी बने । ब्रह्मचारी धर्मरक्षक वीर व्रतधारी बने ।।_*
_लेकिन जैसे जैसे समय बीतता गया, हिन्दुत्व सेकुलरिज्म में बिलीन होता गया ।_
_अब तो सुना है कि सर्वोच्च न्यायालय की खंडपीठ यह तय करेगी कि स्कूलों में होने वाली प्रार्थनाएं सांप्रदायिक हैं या नहीं।_
_"सर्वोच्च", "न्यायालय" और "खंडपीठ" शब्द भी संस्कृत के ही हैं। वैसे सर्वोच्च न्यायालय के ध्येय वाक्य "यतो धर्मः ततो जयः" में भी "धर्म" शब्द है, इसलिए हो सकता है कि कल इसे भी सांप्रदायिक मान लिया जाए। यह पंक्ति महाभारत के एक श्लोक से ली गई है, इसलिए भी इसे सांप्रदायिक ठहराया जा सकता है।_
_भारतीय संविधान का ध्येय वाक्य "सत्यमेव जयते" उपनिषद से लिया गया है। भारत की नौसेना का ध्येय वाक्य "शं नो वरुणः" भी संस्कृत का है। वायुसेना का "नभः स्पृशं दीप्तं" भी संस्कृत है और भगवद्गीता से लिया गया है। तटरक्षक बल का "वयम रक्षामः" है।_
_बीएसएनएल का "अहर्निश सेवामहे", एलआईसी का "योगक्षेमं वहाम्यहं", गोवा सरकार का "सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत्", महाराष्ट्र पुलिस का "सद्रक्षणाय खलनिग्रहणाय", आकाशवाणी का "बहुजनहिताय बहुजनसुखाय", भारतीय मौसम विभाग का "आदित्यात् जायते वृष्टिः", दूरदर्शन का "सत्यं शिवम सुंदरम्" भी संस्कृत से ही लिया गया है।_
_इतना ही नहीं, भारत की खुफिया एजेंसी आईबी का ध्येय वाक्य "जागृतं अहर्निशम्", रॉ का "धर्मो रक्षति रक्षितः", उप्र पुलिस का "परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्", डीआरडीओ का "बलस्य मूलं विज्ञानम्", एनसीईआरटी का "विद्यया अमृतमश्नुते" भी संस्कृत के ही हैं और वेद, पुराण, उपनिषद आदि किसी न किसी प्राचीन भारतीय ग्रंथ से ही लिए गए हैं।_
_क्या ये सब सांप्रदायिक वाक्य हैं? क्या ये किसी धर्म या जाति के खिलाफ लिखे गए हैं? फिर क्या कारण है कि केवल स्कूलों में होने वाली एक प्रार्थना का विरोध किया जा रहा है और उस पर सुनवाई भी हो रही है? या साज़िश ये है कि स्कूलों के बहाने शुरुआत की जाए और फिर एक-एक करके भारत की हर संस्था को निशाना बनाते-बनाते अंततः सुप्रीम कोर्ट और संविधान पर भी आपत्ति उठाई जाए? क्या कल इन्हें भी इसी आधार पर सांप्रदायिक कहा जाएगा?_
_केवल भारत ही नहीं, इंडोनेशिया की सेना, पुलिस, नौसेना, वायुसेना आदि के ध्येय वाक्य भी संस्कृत में हैं। नेपाल की भी कुछ राष्ट्रीय संस्थाओं के वाक्य संस्कृत में हैं।_
_हमारी राष्ट्रीय भाषा हिन्दी/संस्कृत है । संस्कृत ही अधिकांश भाषाओं का मूल है। इस लिहाज से वह हम सबकी मातृभाषा भी है। यह दुर्भाग्य की बात है कि हमने भाषाओं को भी धर्म और जातियों के आधार पर बांट लिया है और अब एक-दूसरे से लड़ भी रहे हैं। महापुरुषों, क्षेत्रों और यहां तक कि रंगों को तो हम पहले ही धर्म और जाति के आधार पर बांट चुके हैं। अब इसके आगे हम किस किस बात का बंटवारा करके लड़ने वाले हैं, और क्यों ? जरा सोचिये । कहीं भारत को मुस्लिम राष्ट्र बनाना तो इसका उद्देश्य नहीं ?_