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बुधवार, 16 अप्रैल 2025

कॉन्वेंट" हम जिस शब्द को गर्व से उच्चारित करते हैं, उसकी वास्तविकता क्या है।

"कॉन्वेंट स्कूल" — गर्व का विषय या गुलामी की विरासत?
आज समाज में अक्सर ये सुनने को मिलता है —
“मेरा बच्चा कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ता है।”
या फिर — “मैं कॉन्वेंट एजुकेटेड हूँ।”

सुनकर लगता है मानो यह कोई प्रतिष्ठा का प्रमाणपत्र हो, पर क्या हमने कभी रुकर सोचा है कि "कॉन्वेंट" शब्द की जड़ें क्या हैं?
आइए जानने की कोशिश करें कि हम जिस शब्द को गर्व से उच्चारित करते हैं, उसकी वास्तविकता क्या है।


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"कॉन्वेंट" शब्द की उत्पत्ति और इतिहास

"Convent" शब्द की जड़ें लैटिन भाषा के “Conventus” में हैं, जिसका अर्थ है — “एक धार्मिक समुदाय का निवास”।
मुख्यतः यह शब्द ईसाई धर्म में ननों (Nuns) और पादरियों (Fathers) के लिए बने धार्मिक केंद्रों के लिए इस्तेमाल होता था, जहाँ वे प्रार्थना और सेवा के जीवन में रहते थे।

अब सवाल यह उठता है कि ये धार्मिक केंद्र शिक्षा से कैसे जुड़ गए?


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ब्रिटेन की सामाजिक विडंबना और "Convent" का जन्म

ब्रिटेन में एक दौर ऐसा था जब “Live-in Relationship” जैसी व्यवस्थाएं समाज में बढ़ने लगीं। ऐसे रिश्तों से जन्म लेने वाले बच्चों को समाज ने स्वीकार नहीं किया और वे अनाथ हो गए।
ऐसे हज़ारों अनचाहे बच्चों को रखने के लिए चर्चों ने कॉन्वेंट बनाए — जहाँ उन्हें एक नया परिवेश दिया गया।

इन कॉन्वेंटों में उन्हें यह सिखाया गया कि उनके माता-पिता कौन हैं:

वहाँ Father होता था – जो आध्यात्मिक रूप से पिता का स्थान लेता था।

Sister होती थी – जो उनकी माँ या बड़ी बहन का रोल निभाती थी।

Mother Superior होती थी – जो पूरे कॉन्वेंट की संरक्षिका होती थी।


ध्यान दीजिए:
यह मूलतः अनाथालय थे — जिन्हें धार्मिक रंग देकर Convent कहा गया।


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भारत में "कॉन्वेंट स्कूल" कैसे आए?

जब भारत अंग्रेजों का गुलाम बना हुआ था, तब 1842 में कोलकाता (कलकत्ता) में पहला कॉन्वेंट स्कूल शुरू किया गया।
इसके बाद मुंबई और मद्रास में भी ऐसी ही यूनिवर्सिटियाँ शुरू हुईं, जिन्हें “Free Schools” कहा गया — नाम तो मुफ्त शिक्षा का था, पर मकसद था भारतीयों को उनकी जड़ों से काटना।


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लॉर्ड मैकाले का “ब्रेनवॉशिंग प्लान”

लॉर्ड मैकाले ने अपने पिता को एक प्रसिद्ध चिट्ठी में लिखा था:

> “मैं भारत में ऐसी शिक्षा प्रणाली लागू करूंगा,
जिससे हम ऐसे भारतीय तैयार करेंगे जो रंग-रूप से भारतीय होंगे,
पर सोच और आत्मा से अंग्रेज बन जाएंगे।”
“उन्हें अपनी संस्कृति, भाषा, इतिहास कुछ भी याद नहीं रहेगा।”



क्या हम आज वही स्थिति नहीं देख रहे हैं?

हमें अपनी भाषा बोलने में शर्म आती है।

हम अपने त्यौहारों, परंपराओं को पिछड़ा मानते हैं।

अंग्रेजी में बात करने वालों को ही "स्मार्ट" कहा जाता है।



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आज की विडंबना

आज भारत में हजारों कॉन्वेंट स्कूल खुल गए हैं – और मज़े की बात ये है कि उनके नाम हैं:

श्री हनुमान कॉन्वेंट स्कूल

माँ दुर्गा कॉन्वेंट स्कूल

गुरु गोविंद कॉन्वेंट स्कूल


अब सोचिए — बजरंगबली और "Convent" का क्या संबंध?
माँ भगवती और Sister Mother Superior का क्या रिश्ता?

यह स्थिति बताती है कि हमने न केवल गुलामी स्वीकार की, बल्कि अब उसे अपनी संस्कृति से जोड़ने का हास्यास्पद प्रयास भी करने लगे हैं।


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अंग्रेजी: अंतर्राष्ट्रीय भाषा या भ्रम?

कई लोग तर्क देते हैं —
“अंग्रेजी तो इंटरनेशनल लैंग्वेज है।”

पर सच्चाई यह है कि:
दुनिया के 204 देशों में से केवल 11 देशों में ही अंग्रेजी मुख्य भाषा के रूप में बोली जाती है।

यह तो हमारी मानसिक गुलामी है कि हम उसे ही अपनी पहचान मान बैठे हैं।

क्या आपको पता है कि:

ईसा मसीह की भाषा Aramaic थी।

बाइबिल की मूल भाषा भी Aramaic और Hebrew थी — अंग्रेजी नहीं।

अंग्रेजों की खुद की पवित्र पुस्तक भी अंग्रेजी में नहीं लिखी गई थी।



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निष्कर्ष: गर्व किस पर करें?

शिक्षा का उद्देश्य है ज्ञान, विवेक और संस्कार देना — चाहे वह किसी भी माध्यम से मिले।
लेकिन अगर शिक्षा हमें अपने धर्म, संस्कृति, भाषा और मूल्यों से दूर कर दे, तो वह शिक्षा नहीं, एक सुनियोजित गुलामी है।

अब समय है आंखें खोलने का।
अब जब भी कोई "कॉन्वेंट स्कूल" की बात करे,
तो उससे पूछिए – क्या आप इसकी सच्चाई जानते हैं?


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साभार: ✍️
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