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गुरुवार, 29 नवंबर 2018

नोटबंदी की 101 उपलब्धियां

1*_नोटबंदी की 101 उपलब्धियां_*
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01- नोटबंदी के बाद 16.6 खरब नोट सिस्टम में वापस आ गए। 16 हजार करोड़ रुपये को छोड़कर सभी कैश बैंक में जमा हो जाने से बिना हिसाब वाले पैसों का पता चला।

02- अधिकतर कैश के बैंकिंग सिस्टम आने से इस पैसे को कानूनी दर्जा मिला और नोटबंदी अवैध धन रखने वालों के खिलाफ एक्शन लेने का एक जरिया बना है।

03- कासा यानी चालू खाता, बचत खाता जमाओं में कम से कम 2.50-3.00 प्रतिशत की वृद्धि हुई।

04- मुद्रा बाजार की ब्याज दरों में गिरावट हुई और म्युचुअल फंडों के साथ बीमा क्षेत्र में धन का प्रवाह बढ़ा।

05- आयकर विभाग ने संदिग्ध लेन-देन को लेकर 517 नोटिस जारी किए थे, जिसके बाद 1833 करोड़ रुपये की 541 संपत्तियां जब्त की गई।

06- नोटबंदी के बाद 17.73 लाख संदिग्‍ध मामलों की पहचान की गई, जिनमें 3.68 लाख करोड़ रुपये की हेरा-फेरी हुई है।

07- आयकर विभाग द्वारा 9 नवंबर 2016 से लेकर मार्च 2017 के बीच चलाए गए करीब 900 सर्च अभियान में 900 करोड़ रुपये की संपत्ति सीज की गई।

08- नोटबंदी के बाद पता लगा कि 1 लाख 48,165 लोगों ने ही लगभग 4 लाख 92,207 करोड़ रुपये जमा किए। यानी भारत की 0.00011% जनसंख्या ने ही देश में उपलब्ध कुल कैश का लगभग 33 प्रतिशत जमा किया।

09- नोटबंदी के बाद 961 करोड़ रुपये की ऐसी प्रॉपर्टी का पता चला है जिसका कभी खुलासा ही नहीं किया गया था।

10- नोटबंदी के बाद तीन लाख से अधिक शेल यानी मुखौटा कंपनियों का पता लगाया जा सका है, जिनपर कार्रवाई की जा रही है।

11- सरकार ने 2.24 लाख कंपनियों को बंद कर दिया। ये कंपनिया सरकार की अनुमति के बिना अपने ऐसेट्स को बेच या ट्रांसफर नहीं कर सकती हैं।

12- नोटबंदी के बाद प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (पीएमजीकेवाई) के तहत 21,000 लोगों ने 4,900 करोड़ रुपये मूल्य के कालेधन की घोषणा की।

13- नोटबंदी के दौरान 35 हजार संदिग्ध फर्जी कंपनियों ने 17 हजार करोड़ डिपॉजिट किए, जो सरकार की नजर में आ गए।

14- बैंकों ने 35 हजार कंपनियों और 58 हजार बैंक खातों की जानकारी वित्त मंत्रालय को दी, जिसके बाद इन पर एक्शन लिया गया।

15- नोटबंदी के बाद एक कंपनी के 2,134 बैंक खातों के बारे में पता चला। इन कंपनियों के खातों में 10,200 करोड़ रुपये जमा किए गए थे, जो पकड़े गए।

16- नोटबंदी के बाद तीन से चार खरब डॉलर के ट्रांजैक्शन्स संदिग्ध लग रहे हैं, इसके लिए 1.8 लाख नोटिस भेजे गए हैं और इन पर कार्रवाई होने ही वाली है।

17- नोटबंदी के बाद फर्जी कंपनियों के डायरेक्टर्स का भी पता लगा। इसके तहत पिछले तीन वित्तीय वर्षों से वित्तीय विवरण न भरने वाले 3.09 लाख कंपनी बोर्ड डायरेक्टर्स को अयोग्य घोषित कर दिया गया।

18- नोटबंदी के बाद पता लगा कि 3000 डायरेक्टर्स 20 से ज्यादा कंपनियों के बोर्ड डायरेक्टर थे, जो कानूनी सीमा से ज्यादा है।

19- नोटबंदी के बाद कैश डीलिंग से लोग बच रहे हैं और लेन-देन में पारदर्शिता आई है।

20- नोटबंदी के बाद तीन लाख करोड़ से अधिक रकम बैंकों में जमा कराई गई।

21- नोटबंदी के बाद 23.22 लाख बैंक खातों में लगभग 3.68 लाख करोड़ रुपये के संदिग्ध कैश जमा हुए, जिसका पता सरकार को लग गया।

22- 17.73 लाख संदिग्ध पैन कार्ड धारकों का पता चला।

23- बैंकों और वित्तीय संस्थानों ने 4.7 लाख से अधिक संदिग्ध लेन-देन की जानकारी इकट्ठा की।

24- जांच, जब्ती और छापों में 29,213 करोड़ रुपये की अघोषित आय का पता चला।

25- नोटबंदी के बाद 813 करोड़ रुपये से अधिक की बेनामी संपत्ति जब्त कर ली गई है।

26– नोटबंदी के बाद 400 से अधिक बेनामी लेन-देन की पहचान हुई और 29 हजार 200 करोड़ से अधिक अघोषित आय का पता चला।

27- नोटबंदी के बाद से सोने की स्मगलिंग में बड़ी गिरावट आई, क्योंकि मार्केट में कम पूंजी थी और निगरानी सख्त हुई।

28- नोटबंदी के बाद भारत एक लेस कैश सोसाइटी की दिशा में डिजिटल ट्रांजेक्शन्स 300 प्रतिशत तक बढ़े।

29- कैशलेस लेन-देन लोगों के जीवन को आसान बनाने के साथ-साथ हर लेन-देन से काले धन को हटाते हुए क्लीन इकोनॉमी बनाने में भी मददगार साबित हुआ है।

30- चलन में रहने वाली नकदी में भारी गिरावट हुई और कैश 17.77 लाख करोड़ रुपये से कम होकर 4 अगस्त 2017 को 14.75 लाख करोड़ पर आ गया। यानी अब महज 83 प्रतिशत ही प्रभावी नकदी है।

31- लेस कैश व्यवस्था से वस्तु एवं सेवाएं तो सस्ती हुई ही, साथ ही साथ आवास, शिक्षा, चिकित्सा उपचार आदि की लागत भी कम हुई है।

32– नोटबंदी के बाद डिजिटल लेन-देन काफी तेजी से बढ़ा है। अगस्त 2016 में 87 करोड़ डिजिटल लेन-देन हुए थे, जबकि 2017 में यह संख्या 138 करोड़ हो गई यानी 58 प्रतिशत की वृद्धि।

33- वर्ष 2017-18 में डिजिटल लेनदेन में 80 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है। यह रकम कुल मिलाकर 1800 करोड़ रुपये तक पहुंचने का अनुमान है।

34- अक्टूबर 2016 में 15.11 लाख की तुलना में अगस्त 2017 में कार्ड उपयोग वाली पीओएस मशीनों की संख्या बढ़कर 28.82 लाख हो गई।

35- नोटबंदी से पहले भारत में पहले कुल 15.11 लाख पीओएस मशीनें थीं, लेकिन पिछले 1 वर्ष में 13 लाख से अधिक पीओएस मशीनें जोड़ी गई हैं।

36- पीओएस मशीनों पर डेबिट कार्ड ट्रांजेक्शन्स की संख्या अगस्त 2016 के 13.05 करोड़ से बढ़कर अगस्त 2017 में 26.55 करोड़ हो गई।

37– पीओएस मशीनों पर डेबिट कार्ड के द्वारा अगस्त 2016 में 18,370 करोड़ रुपये के ट्रांजैक्शन्स हुए थे, जबकि अगस्त 2017 में यह 35,413 करोड़ रुपये हो गए।

38- अगस्त 2016 में 26,849 करोड़ रुपये के आईएमपीएस ट्रांजैक्शन्स हुए थे, जो अगस्त 2017 में बढ़कर 65,149 करोड़ रुपये हो गए।

39- मोबाइल वॉलेट के द्वारा ट्रांजेक्शन्स अगस्त 2016 में 7.07 करोड़ से 3 गुना बढ़कर अगस्त 2017 में 22.54 करोड़ हो गए।

40- मोबाइल वॉलेट के द्वारा अगस्त 2016 में 3,074 करोड़ रुपये के ट्रांजेक्शन्स हुए थे, जबकि अगस्त 2017 में 7,262 करोड़ रुपये के ट्रांजेक्शन्स हुए।

41- मोबाइल वॉलेट से लेन-देन की संख्या में हर साल 94 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है, जो 2022 तक 126 प्रतिशत सलाना दर से बढ़ते हुए 32,000 अरब रुपये पर पहुंच जाएगा।

42- नोटबंदी के बाद यूनीफाइड पेमेंट इंटरफेस (UPI) और सरकार की तरफ से लाए गए BHIM मोबाइल ऐप का इस्तेमाल भी तेजी से बढ़ा है। UPI-BHIM से नवंबर 2016 में 0.1 लाख, अक्टूबर 2017 तक 23.36 लाख रुपये रोजाना लेन-देन होता है।

43- ई-टोल पेमेंट में बड़ा उछाल। जनवरी 2016 में यह आंकड़ा 88 करोड़ से बढ़कर अगस्त 2017 में यह आंकड़ा 275 करोड़ रुपये हो गया।

44- नोटबंदी के बाद क्रेडिट कार्ड के इस्तेमाल में भी 40 प्रतिशत से अधिक की बढ़त हुई है।

45- ऑनलाइन इनकम टैक्स रिटर्न भरने में 2016-17 के लिए इनकम टैक्स रिटर्न की ई-फाइलिंग में करीब 23 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

46- ई-कॉमर्स के लिए Rupay का इस्तेमाल बढ़ा है। इसके साथ ही ई-कॉमर्स पर किए जाने वाला खर्च भी दोगुना से अधिक बढ़ा है।

47- नोटबंदी के चलते आतंकवादियों और नक्सलवादियों की कमर टूट गई।

48- पत्थरबाजों को पैसे देने के लिए अलगाववादियों के पास धन की कमी हो गई।

49- पत्थरबाजी की घटनाएं पिछले वर्ष की तुलना में घटकर मात्र एक-चौथाई रह गईं।

50- पत्थरबाजी की घटनाएं (नवंबर 2015 – अक्टूबर 2016) 2683 से घटकर (नवंबर 2016- जुलाई 2017) महज 639 ही रह गईं।

51- पत्थरबाजी में पहले 500 से 600 लोग होते थे, अब 20-25 की संख्या भी नहीं होती है।

52- नोटबंदी के बाद नक्सली घटनाओं में 20% से ज्यादा की कमी आई।

53- अक्टूबर 2015 से नवंबर 2016 में 1071 नक्सली घटनाएं हुईं। वहीं 2016 के अक्टूबर से अब तक मात्र 831 रह गई।

54- नोटबंदी के बाद पता लगा कि पांच सौ के हर 10 लाख नोट में औसत 7 और 1000 के हर 10 लाख नोटों में औसत 19 नोट नकली थे।

55- 2016-17 में कुल 762 हजार जाली नोट पकड़े गए।

56- जाली नोट पकड़े जाने में पिछले वित्त वर्ष की तुलना में 20% की वृद्धि हुई।

57- नोटबंदी के बाद टैक्स बेस बढ़ने से टैक्सेशन न्यायसंगत हो रहा है।

58- सरकार गरीबी उन्मूलन और घरों, सड़क, रेलवे, आदि जैसे इन्फ्रास्ट्रक्चर के निर्माण के लिए और अधिक संसाधनों का इस्तेमाल कर पा रही है।

59- टैक्सपेयर्स की संख्या में 26.6 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। 2015-16 में 66.53 लाख थी, जो 2016-17 में बढ़कर 84.21 लाख हो गई।

60- ई-रिटर्न की संख्या में बड़ी वृद्धि हुई है। 2016-17 में 2.35 करोड़ से बढ़कर 2017-18 में 3.01 करोड़ हो गई।

61- नोटबंदी के बाद 4 लाख 73 हजार से अधिक संदिग्ध लेन-देन का पता चला।

62- नोटबंदी के बाद 56 लाख से अधिक नए करदाता जुड़े।

63- पर्सनल इनकम टैक्स के एडवांस्‍ड टैक्स कलेक्शन में पिछले साल के मुकाबले 41.79 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।

64- निजी आयकर का अग्रिम संग्रह पिछले वर्ष की तुलना में 41.79 % बढ़ा।

65- नोटबंदी के बाद पूर्वोत्तर के राज्यों में आयकर संग्रह में रिकॉर्ड वृद्धि हुई है। वित्त वर्ष 2016-17 में नागालैंड में आयकर संग्रह में करीब 300 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

66- 04 अगस्त तक लोगों के पास 14,75,400 करोड़ रुपये की करेंसी सर्कुलेशन में थे। जो वार्षिक आधार पर 1,89,200 करोड़ रुपये की कमी दिखाती है।

67- 6 लाख करोड़ रुपये के हाई वैल्यू नोट्स प्रभावी रूप से कम हुए, जो इस समय सर्कुलेशन में आए नोटों का 50 प्रतिशत है।

68- नोटबंदी के कारण ‘कैश बब्बल’ यानी नकदी के ढेर से भारत बच गया।

69– नोटबंदी के निर्णय ने भारत को अमेरिका की 2008 जैसी महामंदी से बचाया।

70- चलनिधि यानी Liquidity की कमी से उत्पन्न हुई समस्या से मुक्ति मिली।

71- जीडीपी औसत नकदी में पिछले वर्ष नवंबर से पहले 11.3 प्रतिशत की तुलना में 9.7 प्रतिशत हो गया है।

72- तीन से चार खरब डॉलर के ट्रांजैक्शन्स संदिग्ध लग रहे हैं, इसके लिए 1.8 लाख नोटिस भेजे गए हैं।

73- नोटबंदी के बाद अधिक से अधिक क्षेत्रों को संगठित किया जाना संभव हुआ।

74- संगठित किए जाने की वजह से गरीबों के लिए नौकरी के ज्यादा अवसर पैदा हुए। फॉर्मल जॉब्स की संख्या बढ़ी।

75- नौकरियों के संगठित होने से देश ने स्वच्छ अर्थव्यवस्था की तरफ कदम बढ़ाया।

76- नोटबंदी के बाद मजदूरों के सारे अधिकार मिलने लगे हैं, सामाजिक सुरक्षा से जुड़ी सुविधाएं भी मिलनी शुरू हो गई है।

77- एक करोड़ से अधिक कर्मचारियों का अब EPFO एवं ESIC में नामांकन हो चुका है।

78- सामाजिक सुरक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं दिलाने के लिए 1.3 करोड़ कर्मचारियों को ESIC में पंजीकरण किया गया है।

79- श्रमिकों को अधिकार और सामाजिक सुरक्षा के साथ-साथ स्वास्थ्य सुविधाएं भी मिलनी शुरू हो गई हैं।

80- नोटबंदी से बिचौलियों का अंत हुआ और श्रमिकों को सीधा भुगतान होने लगा।

81- भुगतान सुनिश्चित करने के लिए वेतन भुगतान कानून (पेमेंट ऑफ वेजेज एक्ट) में ऐतिहासिक संशोधन किया गया।

82- वेतन सीधे बैंक खाते में डालने के लिए श्रमिकों के 50 लाख नए बैंक खाते खोले गए।

83- टैक्स कंप्लायंस में भारी वृद्धि हुई जिससे देश की जनकल्याणकारी योजनाओं पर खर्च करने की क्षमता में बढ़ोतरी हुई।

84- सरकार का राजस्व बढ़ा और जन कल्याण एवं इन्फ्रास्ट्रक्चर पर अधिक से अधिक खर्च किया जा रहा है।

85- सागरमाला और भारतमाला जैसी परियोजनाओं को नोटबंदी के बाद अधिक धन मुहैया कराया जा सका है।

86- नोटबंदी के बाद सीमावर्ती क्षेत्रों में सामरिक क्षमताओं के विकास में तेजी आ पायी है।

87- नोटबंदी के वक्त सेंसेक्स करीब 25 हजार के आस-पास था। अब मुंबई स्टॉक एक्सचेंज का शेयर सूचकांक करीब 33 हजार के इर्द-गिर्द है।

88- नोटबंदी के वक्त निफ्टी करीब आठ हजार अंकों के करीब थी, जो अब 10,500 के इर्द गिर्द है।

89- नोटबंदी के बाद निवेशकों का भरोसा बढ़ा है और बिकवाली घटी है। यानी भारतीय अर्थव्यवस्था में एक स्थायित्व का भाव है।

90- नोटबंदी से EMI दरों में कमी से लेकर किफायती आवास तक, वित्तीय साधनों में बचत बढ़ने से लेकर शहरी निकायों के राजस्व में वृद्धि हुई।

91– ऋण दरों में लगभग 100 बेसिस पॉइंट्स की गिरावट आई है।

92- ऋण चुकाने पर लगने वाला ब्याज घटा है और EMI कम हुई है।

93- नोटबंदी के बाद रियल एस्टेट की कीमतें घटी। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत ब्याज पर छूट मिली और रेट-कटस् के परिणामस्वरूप EMI भी घटी।

94– नोटबंदी के बाद देश भर के शहरी स्थानीय निकायों का राजस्व लगभग 3 गुना बढ़ा है।

95- उत्तर प्रदेश में शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) के राजस्व में 4 गुना वृद्धि हुई है।

96- मध्य प्रदेश और गुजरात के शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) के राजस्व में लगभग 5 गुना वृद्धि हुई है।

97- लोगों की कुल वित्तीय बचत यानी ग्रॉस फाइनेंसियल सेविंग्स जो 5 वर्षों से GNDI के लगभग 10% पर अटकी हुई थी, नोटबंदी के बाद 11.8% तक पहुंच गई है।

98- 2016-17 में GNDI के डिपॉजिट्स, शेयर एंड डिबेंचर्स, बीमा फंड एवं पेंशन और प्रोविडेंट फंड की कुल वित्तीय बचत 9% से बढ़कर 13.3% हो गई।

99– विकसित अर्थव्यवस्थाओं के हिसाब से ये पॉजिटिव ट्रेंड है, जिनमें फाइनेंसियल एसेट्स में निवेश का हिस्सा ज्यादा है।

100- नोटबंदी के बाद लोगों के निवेश रेगुलेटेड मार्केट में आ रहे हैं, जहां स्थिरता भी है और अच्छे रिटर्न की गारंटी भी है।

101– ऐसे एसेट्स जिनका प्रबंधन म्यूचुअल फंड द्वारा किया जाता है, वे सितंबर 2017 के अंत तक 20.4 ट्रिलियन पर पहुँच गया.
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रविवार, 25 नवंबर 2018

रामलला हम आएँगे, मन्दिर वहीं बनाएँगे

देशज भाषा में एक कविता —

रामलला हम आएँगे, मन्दिर वहीं बनाएँगे
जे सरवा सिरि राम न बोली, पकड़-पकड़ लतियाएँगे
रामलला हम आएँगे

पढ़े बदे इस्कूल ना रहै, घर चौका औ चूल्ह ना रहै
रोटी औ रोजगार ना रहै, कउनो कारोबार ना रहे
अपने खूब मलाई काटें, लम्बा-लम्बा भाषण छाँटैं
गाय-भईंस के नाम पे हरदम, जनता को लड्वाएँगे
रामलला हम आएँगे

अस्पताल, गोदाम अनाज के, एक्को नाही काम-काज के
सरकारी स्कूल औ कॉलेज, उफरि परै सब नालेज-वालेज
दाल, तेल औ नून के कीमत, कोचिंग, टयूसन फीस के आफत
पइसा वालेन के का दिक्कत प्राइबेट में जाएँगे
रामलला हम आएँगे

खाली हौवा ? झण्डा लेला, हाथ में मोट के डण्डा लेला
रोजगार के बात मत करा, सरऊ देसदरोही हउआ ?
आटा ना हौ, डाटा हौ नै, रोटी डाउनलोड कई लेहा
टच मोबाइल, टीबी, किरकेट, घर-घर में पहुचाएँगे
रामलला हम आएँगे

गाँव गली में मन्दिर होइहैं, चार ठे मोट पुजारी होइहैं
दुई ठे दिन भर रूपया गिनिहैं, औ दुई ठे रेचकारी बिनिहैं
ओही भब्य मन्दिर के बहरे पच्चिस-तीस भिखारी होइहैं
तोहर कमाई खाइके बाबा तोहईं के गरियाएँगे
रामलला हम आएँगे

पैदा चाहे कुछ ना करिहैं, नटई तक ले ठूँस के खइहें
जवन बची ऊ घर ले जईहैं, बेटवा अमरीका में पढ़इहैं
थोड़का दान औ पुन्न देखाई, बाकी पार्टी फण्ड में जाई
वो ही से हथियार खरीद के दंगा-मार कराएँगे.
रामलला हम आएँगे

गंगा माई, देंय दोहाई, कइसे होई साफ़-सफाई
चार ठे नाला और गिरी तब नेता दीहैं बजट बढ़ाई
पण्डन के गजबै लीला हौ, हमरे नाम पे करैं कमाई
लाखों टन लकड़ी रोज फूँकिहैं, मुर्दा वहीँ जलाएँगे
रामलला हम आएँगे

कोका-कोला, पेप्सी माज़ा, जवन मिलै बस गटक जा राजा
पोखरी कूँआ, ताल-तलैया, सुखति हवे तो सुखे दा भइया
काहें हाहाकार ? बिकत बा, पानी खाली बीस रुपैया
हवा त अबहीं बकिये बाटे, उसको भी बेचवाएँगे
रामलला हम आएँगे

जनरल डिब्बा में ठुँस-ठुँस के, आड़े तिरछे कइसौ घुस के
दिल्ली-बम्मई भाग के जइहैं, पूरी जिनगी बेचि के अइहें
ई बिकास के कइसन सीढ़ी, भै बरबाद पचीसन पीढ़ी
तोहरे खून पसीना से ऊ आपन महल बनाएँगे
रामलला हम आएँगे

रोटी-बेटी, नात-हीत में जतिये एक कसौटी होलै
दुनिया में इनसान, इहाँ पे चमरौटी बभनौटी होलै
पाँड़े बोलैं ठाकुरसाहब ! तोहँऊ हिन्दू हमहू हिन्दू
देखिहा अब थोडके दिन में हम बिस्वगुरु बन जाएँगे
रामलला हम आएँगे

छोटजतिया सब पढ़ि लिख जइहैं, धरम करम के आँख देखइहें
बड़जातियन के खेत फैक्टरी फिर कब्भौं ना झाँकें जइहैं
अपने काम क छाँट के रक्खा, बाकी सबके बाँट के रक्खा
एनके बस मजदूर बनावा, नहीं त सब बढ़ जाएँगे.
रामलला हम आएँगे

एही देस में लाख-करोड़ों आधे पेट ले खाना खालैं
एही मुलुक में रोज हजारन टीबी कैंसर से मरि जालैं
मछरी माँस पे फाँसी होई, दुनियाँ भर में हाँसी होई
बीड़ी, सिगरेट, गुटखा दारू बन्द नहीं करवाएँगे
रामलला हम आएँगे।

वरिष्ठ कांग्रेसी सदस्य, सांसद, पूर्व मंत्री कमलनाथ को "सच" पता है.

वरिष्ठ कांग्रेसी सदस्य, सांसद, पूर्व  मंत्री कमलनाथ को "सच" पता है.

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मैं कमलनाथ जी का हृदय से आभारी हू. उनके हाल ही में लीक हुए कुछ वीडियो से उन्होंने मेरी अवधारणा को सही सिद्ध कर दिया  है

कि 1989 से लेकर अब तक कांग्रेस एक समुदाय विशेष के सामूहिक वोटों के खातिर चुनाव जीतती आई है.

चूंकि यह समुदाय अन्य लोगो की तुलना में अधिक से अधिक संख्या में आकर वोट करता है, अतः कुल पड़े वोटों में इनका प्रभाव समस्त मतदाताओं के अनुपात में विषम रूप में अधिक हो जाता है.

नहीं तो ऐसा हो ही नहीं सकता था कि बहुसंख्यक जनता में 2008 के मुंबई आतंकवादी हमले के बाद भारी नाराजगी के बाद भी 2009 के चुनाव में कांग्रेस चुनाव जीत जाती.

इन विशेष वोटो को अपनी "जेब" में रखने के बाद कांग्रेस को हर चुनाव क्षेत्र में किसी अन्य दबंग जाति के वोटो को प्रलोभन, शिकायत, डर, पहचान के मुद्दे पे अपनी और खींचना था; और सत्ता उनके "हाथ" में.

स्वतंत्रता के बाद वर्ष 1989 तक हर लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 39-40% से अधिक वोट प्राप्त किया.

सिर्फ 1977 में कांग्रेस का वोट शेयर 35% से कम रह गया था.

फिर 1996 से लेकर 2009 के चुनाव तक कांग्रेस का वोट शेयर 25 से 29% के बीच में रहा.

2008 में मुंबई आतंकवादी हमले के बाद भी 2009 के चुनाव में इस पार्टी को 28.55% वोट मिला.

चूंकि सत्ता का चुनावी गणित बैठा लिया था, अतः स्वतंत्रता के बाद से ही एक ही परिवार के लोगो ने सत्ता पे कब्ज़ा कर लिया. परिवार के बाहर जो लोग प्रधानमंत्री बने - चाहे वे किसी भी पार्टी के हो, उदहारण के लिए गुलजारीलाल नंदा, शास्त्री जी, मोरार जी देसाई, चरण सिंह, वी पी सिंह, चंद्रशेखर, नरसिम्हा राओ, देवे गौड़ा, गुजराल, मनमोहन को ले लीजिये,

वे सब के सब किसी दुर्घटना या मृत्यु (गुलजारीलाल नंदा, शास्त्री) जोड़-तोड़ (वी पी सिंह, चंद्रशेखर), परिवार के सदस्य का सत्ता के लिए रेडी ना होना (शास्त्री, नरसिम्हा राओ, मनमोहन),

प्रधानमंत्री पद के लिए गठबंधन में एकमत नहीं होने (मोरार जी, चरण सिंह, देवे गौड़ा, गुजराल) के कारण सरकार प्रमुख बन पाए.

वाजपेयी जी प्रधानमंत्री अवश्य बने, लेकिन अन्य पार्टियों के समर्थन से.

नहीं तो ऐसा हो ही नहीं सकता था कि बहुसंख्यक जनता में 2008 के मुंबई आतंकवादी हमले के बाद भारी नाराजगी के बाद भी 2009 के चुनाव में कांग्रेस चुनाव जीत जाती.

इस चुनाव में लगभग 71 करोड़ मतदाता थे, जिनमे से लगभग 10 करोड़ अल्पसंख्यक थे.

लगभग 60% या 42.6 करोड़ लोगो ने वोट डाला, जिसमे से कांग्रेस को लगभग 12 करोड़ वोट मिले.

अगर इन 10 करोड़ में से 90  प्रतिशत भी मतदान कर दे, यानी कि 9 करोड़ वोट, तो यह अनुमान लगाया जा सकता है कि अधिकतम वोट किस पार्टी को गए होंगे.

बचे 4-5 करोड़ वोट शाही परिवार और खानदानी कैंडिडेट किसी अन्य समूह से खींच ले जाएंगे.

2014 के चुनाव में 55 करोड़ लोगो ने मतदान किया जिसमे कांग्रेस को लगभग 19 प्रतिशत वोट मिले, यानी कि 10.45 करोड़ मतदाताओं ने कांग्रेस को वोट दिया जो मोटे तौर पे एक समुदाय द्वारा डाले गए वोटो से मिलता जुलता नंबर है.

उस समय के टीवी और समाचारपत्रों में छपे चुनाव विश्लेषण की सत्यनिष्ठा पे मुझे संदेह होता है कि फलाने समुदाय ने इतने प्रतिशत वोट ढीकानी पार्टी को दिया.

यह सारे के सारे पत्रकार और बुद्धिजीवी चुनाव पश्चात वोटरों की बुद्धिमता की प्रशंसा करके बहुसंख्यक मतदाताओं के हाथ में झुनझुना पकड़ा देते थे. अब यह स्पष्ट होने लगा है कि इनके सोर्स और आंकड़े संदिग्ध और पक्षपाती है और यह मनगढ़ंत कहानी लिखते है.

वरिष्ठ कांग्रेसी सदस्य, सांसद, पूर्व  मंत्री कमलनाथ को "सच" पता है.

भारत के इतिहास में पहली बार हुआ है कि शाही परिवार के बाहर के किसी व्यक्ति का नाम चुनाव पूर्व प्रधानमंत्री पद के लिए घोषित कर दिया गया हो और वह व्यक्ति - अति पिछड़े वर्ग के निर्धन परिवार का सदस्य - अपने बल बूते पे चुनाव जीत के प्रधानमंत्री बना हो.

तभी कांग्रेस तथा अन्य परिवादवादी दल उस व्यक्ति - नरेंद्र मोदी - को हराने के लिए जी जान से गठबंधन बना रहे है. क्योकि अगर प्रधानमंत्री मोदी पुनः चुनाव जीत गए तो यह अन्य दलों के व्यक्तिगत कैंडिडेट की हार नहीं होगी.

बल्कि, उन परिवारों की निजी संपत्ति - उनकी अपनी प्राइवेट लिमिटेड पार्टी - दिवालिया हो जायेगी.

तभी कमलनाथ समुदाय विशेष से 90% प्रतिशत मतदान चाहते है.

अशोक गहलोत राजस्थान के मुख्यमंत्री थे तब उनके राज में फायदे भी बहुत थे

जब अशोक गहलोत साहब राजस्थान के मुख्यमंत्री थे तब उनके राज में फायदे भी बहुत थे, उन्होंने प्रदेश की जनता की भलाई के लिए अनेक काम किये जिसे प्रदेश के लोग समझ नहीं पाए थे।

📌 सड़कों की हालत ज़रूर बेहद खराब थी लेकिन उसके कारण वाहन धीमी रफ़्तार से चलते थे, जिसके कारण एक्सीडेंट कम होते थे।

📌 गाड़ियों के टयूब टायर जल्दी फूट जाते थे, ख़राब हो जाते थे, पंक्चर हो जाते थे जिसके कारण टायर ट्यूब इंडस्ट्री खूब फल फूल रही थी, कांग्रेस के प्रिय विशेष वर्ग को भी पंक्चर बनाने, टायर टयूब बेचने, बदलने का भरपूर रोज़गार मिला हुआ था।

📌 चाहे जब बिजली चली जाती थी जिसके कारण बिजली के बिल भी कम आते थे। सुबह 8 से 12 तो समय तय ही था जिसके कारण घर के सभी लोग सुबह जल्दी उठकर नहा लेते थे, पूजापाठ करते थे, काम पर जल्दी निकल जाते थे। ऑफिस, दुकान, फैक्ट्री पर जाने में भी समय लगता था क्योंकि सड़कें ख़राब थी, सो दूरदर्शी मुख्यमंत्री ने 8 से 12 बिजली गायब करने की व्यवस्था रखी थी।

📌 शाम को भी अक्सर बिजली चली जाती थी जिसके कारण लोग दिन में ही खरीदारी कर लिया करते थे और अंधेरा होने से पहले ही घर लौट आते थे जिसके कारण शाम की दिया बत्ती भी समय से हो जाया करती थी।

📌 बिजली नहीं होने से परिवार के लोग एकसाथ बैठकर भोजन किया करते थे आपस में बातचीत किया करते थे क्योंकि बिजली बंद होने से टीवी भी बंद रहते थे, मोबाईल चार्ज नहीं हो पाते थे।

📌 पति पत्नी अक्सर खाना खाकर चाँदनी रात में घर की छत पर या बालकनी में बैठकर गपशप किया करते थे जिसके कारण उनमें आपसी प्रेम और समझ बहुत बढ़ गया था।

📌 जहाँ एक तरफ टॉर्च, मोमबत्ती, चिमनी, कंदील बनाने वाले छोटे उद्योगों को फायदा पहुँचता था तो वहीं दूसरी ओर जनरेटर, यूपीएस बनाने वाली कम्पनियों को भी ज़बरदस्त मुनाफा होता था।

📌 घर के लोग देर तक जागते थे, तो चोरियाँ भी कम होती थीं। चोरों के लिए ही शाम को बिजली ग़ायब की जाती थी जिसके कारण वो भी जल्दी अपना काम निपटाकर अपने घर वालों के साथ भोजन करते, गपशप मारते, दारू पीते थे।

📌 कैंडल लाइट डिनर जितने गहलोत साहेब के राज में हुए उतने तो आजतक किसी बड़े से बड़े होटल में भी नहीं हुए हैं।

📌 सड़कें धूल से सराबोर रहतीं थीं, जिसके कारण कपड़े गंदे हो जाते थे सो एक शर्ट पेंट अगले दिन या दुबारा नहीं पहना जा सकता था, उनको धोना पड़ता था, इसके कारण साबुन, सिर्फ खूब बिकता था, कपड़े जल्दी ख़राब होते थे तो लोग जल्दी जल्दी नए कपड़े खरीदकर लाते थे। इसके कारण इस व्यापार से जुड़े लोगों को बहुत फायदा होता था।

📌 सड़कों पर अपार धूल, गंदगी हुआ करती थी जिसके कारण लोग बीमार बहुत पड़ते थे, इसी कारण डॉक्टरों, अस्पतालों, मेडिकल स्टोर्स, दवा कम्पनियों की खूब चांदी रहती थी। हर छोटा बड़ा अस्पताल, नर्सिंग होम मरीज़ों से गुलज़ार रहता था।

📌 दूसरे देशों, प्रदेशों से लोग केवल ये देखने राजस्थान आते थे कि ऐसे हालातों में राजस्थान के लोग कैसे जीवन यापन करते हैं। कई लोग तो केवल गड्ढों में सड़क ढूँढने, इन गड्डमड्ड सड़कों पर लोगों को कुशलता से वाहन चलाते देखने और धूल फाँकने ही आया करते थे और ये सब देखकर दाँतों तले उंगलियां दबा लिया करते थे।

📌 किसान तो कर्ज़माफी की बात ही नहीं करते थे क्योंकि एक तो बिजली ही बहुत कम आती थी, जितनी आती थी उसमें कितनी ज़्यादा से ज़्यादा सिंचाई कर सकें बेचारे उसी में ही दिमाग़ खपाया करते थे।

📌 घर, दुकान, दफ्तरों, कारखानों में बिजली आते से ही हर किसी के चेहरे पर मुस्कान दौड़ जाती थी लोग खुशी के मारे पूरे जोश के साथ काम निपटाने में लग जाते थे। बिजली आने पर वो खुशी, वो चमक देखते ही बनती थी।

📌 गाँवों में तो बिजली आना मतलब हेलीकॉप्टर आने जैसा होता था लोग तुरंत आटा चक्कियों की ओर दौड़ लगाते थे। आटा चक्की वाले की दुकान पर लोग पहले से ही नम्बर लगाकर लगते थे। आटा चक्की वाले भाव भी खूब खाते थे। लोग उनकी मिन्नतें करते थे, उनको महसूस होता था कि वो बहुत बड़े बिज़नेसमैन हैं।

📌 बहुत से लोग प्रदेश छोड़कर दूसरे देशों, प्रदेशों में जाकर बस गए जिससे राजस्थान पर जनसंख्या का दबाव भी कम हुआ था।

ऐसे अनेकानेक फायदे माननीय अशोक गहलोतजी के राज में होते थे लेकिन उनकी दूरदर्शिता को प्रदेश की जनता ने समझा नहीं, ऊपर से पिछले 5 वर्षों में वसुंधरा राजे ने पूरे प्रदेश में सड़कों का जाल बिछा दिया, चौबीसों घंटे बिजली दे दी, प्रदेश के हर शहर, कस्बे, गाँव को स्वच्छ भारत मिशन के तहत साफ सुथरा करके चमका दिया है। जिसके कारण हम राजस्थानवासी उस मुस्कान, खुशी, चमक को भुला बैठे हैं..

इसलिए इस बार इस विकास करने वाली भाजपा सरकार  को हटाकर बंटाधार करके लोगों के चेहरों पर चमक लाने वाली, हिंदुओं को उनकी दो कौड़ी की औक़ात में रखकर सिर्फ मुसलमानों को सिर पर बिठाने वाली कांग्रेस सरकार लानी है।

माफ़ करें महाराज, महान था अशोक राज !!

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