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शनिवार, 15 फ़रवरी 2014

अपने लिए तो सभी करते हैं दूसरों के लिए कर के देखो

"साँवरिया"
वेसे तो आप सभी साँवरिया सेठ के बारे मैं जानते होंगे | साँवरिया सेठ प्रभु श्री कृष्ण का ही एक रूप है जिन्होंने भक्तो के लिए कई सारे रूप धरकर समय समय पर भक्तों की इच्छा पूरी की है | कभी सुदामा को तीन लोक दान करके, कभी नानी बाई का मायरा भरके, कभी कर्मा बाई का खीचडा खाकर, कभी राम बनके कभी श्याम बनके, प्रभु किसी न किसी रूप में भक्तों की इच्छा पूरी करते हैं | और आप, मैं और सभी मनुष्य तो केवल एक निमित्त मात्र है | भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है कि "मैं सभी के लिए समान हूँ " मनुष्य को अपने कर्मो का फल तो स्वयं ही भोगना पड़ता है | आप सभी लोग देखते हैं कि कोई मनुष्य बहुत ही उच्च परिवार जेसे टाटा बिरला आदि में जन्म लेता है और कोई मनुष्य बहुत ही निम्न परिवार जेसे आदिवासी आदि के बीच भी जन्म लेता है कोई मनुष्य जन्म से ही बहुत सुन्दर होता है कि कोई भी उस पर मोहित हो जाये और कोई मनुष्य इतना बदसूरत पैदा होता है कि लोग उसको देखकर दर जाए, किसी के पास तो इतना धन होता है कि वो धन का बिस्तर बनवाकर भी उसपर सो सकता है और कोई दाने दाने का भी मोहताज़ है, कोई शारीरिक रूप से इतना बलिष्ठ होता है कि कोई उसका मुकाबला नहीं कर सकता और इसके विपरीत कोई इतना अपंग पैदा होता है जिसको देखकर हर किसी को दया आ जाये | कई बच्चे जन्म लेते ही मार दिए जाते है या जला दिए जाते है या किसी ना किसी अनीति का शिकार हो जाते है जबकि उन्होंने तो कुछ भी नहीं किया
तो फिर नियति का एसा भेदभाव क्यों ? क्या भगवान् को उन पर दया नहीं आती ?
आप सोच रहे होंगे कि इसका मतलब भगवान ने भेदभाव किया, नहीं !!!
आपने देखा होगा एक ही न्यायाधीश किसी को फांसी कि सजा देता है और किसी को सिर्फ अर्थ दंड देकर छोड़ देता है तो क्या न्यायाधीश भेदभाव करता है ? नहीं ना ! हम जानते हैं कि हर व्यक्ति को उसके अपराध के अनुसार दंड मिलता है
बिलकुल उसी प्रकार मनुष्य का जन्म, सुन्दरता, कुल आदी उसके कर्मों के अनुसार ही निर्धारित होते है इसलिए मनुष्य को अपने कर्मों का आंकलन स्वयं ही कर लेना चाहिए और कलियुग में तो पग पग पर पाप स्वतः ही हो जाते है किन्तु पुण्य करने के लिए प्रयत्न करने पड़ते हैं
इसीलिए 
"अपने  लिए  तो  सभी  करते  हैं  दूसरों  के  लिए  कर  के  देखो "
मैं एक  बहुत  ही  साधारण  इंसान  हूँ | जीवन में  कई  सारे  अनुभव  से  गुजरते  हुए  में  आज  अपने  आप  को  आप  लोगों  के  सामने  स्थापित  कर  पाया  हूँ . बचपन  से  लेकर  आज  तक  आप सभी लोगो ने अपने जीवन में कई  लोगो  को  भूखे  सोते  देखा होगा, कई  लोग  ऐसे भी होते हैं  जिनके  पास  पहनने  को  कपडे  नहीं  है, किसी  को  पढना  है  पर  किताबें  नहीं  है, कई  बालक  नहीं  चाहते  हुए  भी  किस्मत  के  कारण भीख  मांगने  को  मजबूर  हो जाते है | इन  सभी  परिस्थितियों  को  हम सभी अपने जीवन में भी कही ना कही देखते  ही हैं लेकिन बहुत कम लोग ही उन पर अपना ध्यान केन्द्रित करते है या उन लोगो के बारे में सोच पाते है किन्तु भगवान् की  दया  से  आज  मुझे  उन  सभी  की  मदद  करने  की  प्रेरणा जागृत  हुई  और  इसलिए  आज  मेने  एक  संकल्प  लिया  है  उन अनाथ भाई बहिनों की  मदद  करने  का, जिनका  इस  दुनिया  में  भगवान् के अलावा कोई  नहीं  है और मेने निश्चय किया है कि उन  भाइयों  की  मुझसे  जिस  भी  प्रकार  कि  मदद  होगी  मैं  करूँगा | मैं  इसमें  अपना  तन -मन -धन  मुझसे  जितना  होगा  बिना  किसी  स्वार्थ  के  दूंगा . आज  दिनांक 31-07-2009 से  सावन  के  महीने में भगवान का  नाम  लेकर  इस अभियान हेतु इस वेबसाइट की शुरुआत  कर  रहा  हूँ | और इस वेबसाइट को बनाने  का  मेरा और कोई  मकसद  नहीं  है  बस  मैं  सिर्फ  उन  निस्वार्थ  लोगो  से  संपर्क  रखना  चाहता  हूँ  जो  इस  तरह  की  सोच  रखते  है  और दुसरो को मदद करना चाहते है मुझे  उनसे  और  कुछ  नहीं  चाहिए  बस  मेरे  इस  संकल्प  को  पूरा  करने  के  लिए  मुझे  अपनी  शुभकामनाये  और  आशीर्वाद  ज़रूर  देना  ताकि  मैं  बिना   किसी  रुकावट  के  गरीब  लोगो  की  मदद  कर  सकूँ .
 ये  वेबसाइट  आप  जेसे  लोगों  से  संपर्क  रखने  के  उद्देश्य  से  बनाई  है
अगर  आप  मेरे  इस  काम  मैं  सहयोग  करना  चाहते  हैं  तो  अपनी श्रद्धानुसार तन-मन-धन से जिस भी प्रकार आप से हो सके आपके स्वयं के क्षेत्र में ही  आप  अपने  घर  मैं  जो  भी  चीज़  आपके  काम  नहीं  आ  रही  हो  जैसे   - कपडे , बर्तन , किताबे इत्यादि  को  फेंके  नहीं  और  उन्हें  किसी  गरीब  के  लिए  इकठ्ठा  कर  के  रखे  और  यदि  कोई  पैसे  की  मदद  करने  की  इच्छा  रखता  हो  तो  वो  भी  खुद  ही  रोजाना  अपनी  जेब खर्च  में  से  बचत  करना  शुरू  कर  दे  ताकि  वो भी किसी  गरीब के काम आ  सके  इस  तरह  एक  दिन  बचाते  बचाते  बिना किसी अतिरिक्त खर्च के आपके पास बहुत  सारे कपडे , बर्तन , किताबें और  पैसे  हो  जायेंगे  जो  की  उन  लोगो  के  काम  आ  जायेंगे  जिनके  पास  कुछ  भी  नहीं है |
कलियुग में पाप तो स्वतः हो जाते हैं किन्तु पुण्य करने के लिए प्रयत्न करने पड़ते है |
"अपने  लिए  तो  सभी  करते  हैं  दूसरों  के  लिए  कर  के  देखो कलियुग में राष्ट्र सेवा, गौ सेवा, और दीन दुखियों की सेवा ही सबसे बड़ा पुण्य का काम है "साँवरिया" का मुख्य उद्देश्य सम्पूर्ण भारत में गरीबों, दीन दुखियों, असहाय एवं निराश्रितों के उत्थान के लिए यथाशक्ति प्रयास करना है "साँवरिया" के अनुसार यदि भारत का हर सक्षम व्यक्ति अपने बिना जरुरत की वस्तु/कपडे/किताबे और अपनी धार्मिक कार्यों के लिए की गयी बचत आदि से सिर्फ एक गरीब असहाय व्यक्ति की सहायतार्थ देना शुरू करे तो भारत से गरीबी, निरक्षरता, बेरोजगारी और असमानता को गायब होने में ज्यादा समय नहीं लगेगा | आज भी देश में ३० करोड़ से ज्यादा भाई बहिन भूखे सोते हैं अतः भारत के उच्च परिवारों की जन्मदिन/विवाह समारोह एवं कार्यक्रमों में बचे हुए भोजन पानी जो फेंक दिया जाता है यदि वही भोजन उसी क्षेत्र मैं भूखे सोने वाले गरीब और असहाय व्यक्तियों तक पहुंचा दिया जाये तो आपकी खुशिया दुगुनी हो जाएगी और आपके इस प्रयास से देश में भुखमरी से मरने वाले लोगो की असीम दुआए आपको मिलेगी तथा देश में भुखमरी के कारण होने वाली लूटपाट/ चोरी/ डकेती जैसी घटनाएँ कम होकर देश में भाईचारे की भावना फिर से पनपने लगेगी और एक दिन एसा भी आएगा जब देश में कोई भी भूखा नहीं सोयेगा |
 "साँवरिया" का लक्ष्य ऐसे भारत का सपना साकार करना है जहाँ न गरीबी/ न निरक्षरता/न आरक्षण/ न असमानता/ न भुखमरी और न ही भ्रष्टाचार हो| चारो ओर सभी लोग सामाजिक और आर्थिक रूप से सक्षम और विकसित हो, जहाँ डॉलर और रुपया की कीमत एक समान हो और मेरा भारत जो पहले भी विश्वगुरु था उसका गौरव फिर से पहले जैसा हो जाये |                       
     "सर्वे  भवन्तु  सुखिनः " 

--

Jai shree krishna

Thanks,

Regards,

कैलाश चन्द्र  लढा(भीलवाड़ा)www.sanwariya.org
sanwariyaa.blogspot.com 
https://www.facebook.com/mastermindkailash

कुछ चुनिंदा कहावतों का संकलन

कुछ चुनिंदा कहावतों का संकलन

by sudhirvyas
भगवान ने मनुष्य को हाथ-पांव दिए हैं जिससे वह अपना काम स्वयं कर ले। जो व्यक्ति दूसरे पर निर्भर रहता है उसका कहीं आदर नहीं होता. सच कहा है- ' आस पराई जो तके जीवित ही मर जाए ' :-
1. कल करे सो आज कर, आज करे सो अब, पल में परलय होयेगी, बहुरि करेगा कब॥
2. नाकों चने चाबाना दाँत खटटे कर देना
3. अब पछताए क्या होत जब चिडिया चुग गयी खेत
4.  ओछे की प्रीत, बालू की भीत।
5. जैसे उदई, तैसेई भान, न उनके चुटिया, न उनके कान।
(इसका अर्थ इस रूप में लगाया जाता है जब किसी भी काम को करने के लिए एक जैसे स्वभाव के लोग मिल जायें और काम उनके कारण बिगड़ जाये।)
6. थोथा चना बाजे घना।
(कम योग्यता वाले लोग ज्यादा शोर मचाते हैं)
7. तीतर पारवी बादरी, विधवा काजर देय।
वे बरसे वे घर करें, ईमें नयी सन्देह
8. धूनी दीजे भांग की, बबासीर नहीं होय।
जल में घोलो फिटकरी, शौच समय नित धोय।
9. निन्नें पानी जो पियें, हर्र भूंजके खांय।
दूदन ब्यारी जो करें, तिन घर वैद्य न जॉय।
10. अधजल गगरी छलकत जाय।
भरी गगरिया चुप्पे जाय।
11. बन्दर जोगी अगिन जल, सूजी सुआ सुनार।
जे दस होंय ना आपनें, कूटी कटक कलार।
12. तीतर पारवी बादरी, विधवा काजर देय।
वे बरसे वे घर करें, ईमें नयी सन्देह
13. धूनी दीजे भांग की, बबासीर नहीं होय। जल में घोलो फिटकरी, शौच समय नित धोय।
14. निन्नें पानी जो पियें, हर्र भूंजके खांय। दूदन ब्यारी जो करें, तिन घर वैद्य न जॉय।
15. आस पराई जो तके जीवित ही मर जाए
16. बन्दर जोगी अगिन जल, सूजी सुआ सुनार, जे दस होंय ना आपनें, कूटी कटक कलार।
17. वेल पत्र शाखा नहीं, पंक्षी बसे ना डार। वे फल हमखों भेजियो, सियाराम रखवार।
18. काबुल गये मुगल बन आये, बोलन लागे वानी। आव-आव कर मर गये, खटिया तर रओ पानी।
19. मन मोती मूंगा मतो, ढ़ोगा मठ गढ़ ताल। दल-मल बाजौ बन्धुआ, घर फुटे वेहाल
20.  पय-पान-रस-पानहीं, पान दान सम्मान। जे दस मीटे चाहिए, साव-राज-दीवान।
21. कोदन की रोटी, और कल्लू लुगाई। पानी के मइरे में, राम की का थराई
22. आस-पास रबी बीच में खरीफ
     नून-मिर्च डाल के, खा गया हरीफ।
23. सन के डंठल खेत छिटावै, तिनते लाभ चौगुनो पावै।
24. खाद पड़े तो खेत, नहीं तो कूड़ा रेत।
25. पानी को धन पानी में, नाक कटे बेईमानी में।
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मैं..मेरा वैचारिक ‘वाद’ और समय….

मैं..मेरा वैचारिक ‘वाद’ और समय….

by sudhirvyas
मेरा हीरो मैं खुद हूँ , मेरा अपना वैचारिक 'वाद' है ...जिंदा हूँ ना, अंधा नहीं.. सोच बाकी है, थोप के पीछे नहीं...
" हीरा वहाँ न खोलिये, जहाँ कुंजड़ों की हाट
बांधो चुप की पोटरी, लागहु अपनी बाट "
छोटे मोटों को मैं कभी घास नहीं डालता,'बड़े बड़े'  मुझे घास नहीं डालते...कारण...डर..!!
' ऊँचे पानी न टिके, नीचे ही ठहराय
नीचा हो सो भरिए पिए, ऊँचा प्यासा जाय '
पर डर तो हमेशा हर जगह हर समय कायम था, कायम है,,कायम रहेगा,क्योंकि ...
" तिनका कबहुँ न निंदिये, जो पाँयन तर होय
कबहुँ उड़ आँखिन परे, पीर घनेरी होय '
मित्रों ,, मैं तो रमता जोगी हूँ, मेरी अपनी स्वीकार्यता है, भीड़ भले पीछे नहीं पर बोल, विचार ही अपने में संपूर्ण सक्षम हैं, फैलते रहते हैं यही कम है..? यह तो प्रभु आशीर्वाद है, मेरे लिये तो यही सच्चा क्रांतिकारी कदम है...
" जहाँ काम तहाँ नाम नहिं, जहाँ नाम नहिं वहाँ काम ।
दोनों कबहूँ नहिं मिले, रवि रजनी इक धाम "
किंतु मेरा समय अभी नहीं, यहाँ नहीं, अभी झुंड और मानसिकताऐं उहापोह में ही बटीं पड़ी हैं,सब ओर शांति है,, अभी सबको आनंद करने दो...
" जब ही नाम ह्रदय धरयो, भयो पाप का नाश
मानो चिनगी अग्नि की, परि पुरानी घास "
कही, सुनाई मेरी जब समझ आ जायेगी ,तब ना शांति होगी, ना निर्लिप्तता और ना ही ठूंसे विचारों की विचारधाराएं ..तब राष्ट्र ही सर्वप्रथम होगा और आक्रमण ही बचाव का सशक्त साधन ....
" सुख सागर का शील है, कोई न पावे थाह
शब्द बिना साधु नही, द्रव्य बिना नहीं शाह "
समय है, अभी समय है, बहुत समय है .. बृहस्पतिवार को ही अवकाश घोषित होनें में बहुत समय है,क्योंकि अभी राष्ट्रधर्म सिर्फ भाईचारा और वसुधैव कुटुंबकम से बडे शाश्वत झूठ से घिरा है ..पर राष्ट्रवाद और राष्ट्रधर्म तो प्रकृति की भांति कड़ा है, कठोर है, लचीला नहीं..सो प्राकृतिक न्याय में समय है, धीरज धरो...मैं भी धीरज का ही ग्राही हूँ .. समय लिख रहा है सबका हिसाब....!!
" फल कारण सेवा करे, करे न मन से काम
कहे कबीर सेवक नहीं, चहै चौगुना दाम "
जब मेरी बात 'आत्मप्रशंसा' और आलोचना के बिल्लौरी चश्में उतर जाने के बाद पढो तो समझ आ जायेगा कि हम कहां खड़े है ही.. वन्दे मातरम्
जहँ गाहक ता हूँ नहीं, जहाँ मैं गाहक नाँय मूरख यह भरमत फिरे, पकड़ शब्द की छाँय....!!
नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे..!!
Posted By Dr. Sudhir Vyas at sudhirvyas's blog in WordPress

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