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मंगलवार, 11 दिसंबर 2012

पित्त दोष

पित्त दोष
- जब शरीर में अग्नि तत्व की अधिकता हो जाए ; तो इसे पित्त दोष कहते है।
- पित्त बढ़ा हुआ हो तो नाड़ी देखते समय बीच वाली ऊँगली में स्पंदन अधिक महसूस होता है।यह ऐसा लगता है मानो मेंढक उछल रहा हो।
- पित्त यानी गर्मी बढ़ने से जिस तरह दूध कुनकुना रहने से उसमे जीवाणु तेज़ गति से बढ़ते है और दही तुरंत जम जाता है ; वैसे ही शरीर में भी कीटाणु तेज़ी से पनपते है। इससे किसी भी तरह का इन्फेक्शन होने की पूरी संभावना होती है। अगर पित्त संतुलित हो तो शरीर किसी भी इन्फेक्शन से लड़कर ख़त्म कर देता है।
- गर्मी ज़्यादा होती है , पसीना अधिक आयेगा , चेहरा लाल या पीला दिख सकता है . दांत पीले रहेंगे और जल्दी सड़ने की संभावना रहेगी।
- गर्मी अधिक होने से सभी धातु पिघल कर बहेंगे। इससे बहता हुआ ज़ुकाम , अत्याधिक कफ वाली खांसी होने की संभावना होगी। श्वेत प्रदर , रक्त प्रदर आदि होने की संभावना रहेगी।
- गर्मी अधिक होने से ज़रूरी अंग जैसे किडनी खराब हो सकती है , हार्ट एन्लार्ज हो सकता है, बाल सफ़ेद हो सकते है।
- गर्मी अधिक होने से मुंह में दुर्गन्ध आ सकती है , पसीने में भी दुर्गन्ध आ सकती है। पित्त संतुलित हो तो कितना भी पसीना आये उसमे कोई गंध नहीं होगी।
- पिम्पल्स , फोड़े फुंसी आदि होने की संभावना बढ़ जाती है।
- सर दर्द , माइग्रेन आदि हो सकता है।
- पेट जल्दी जल्दी खराब होता है।
- क्रोध ,चिडचिडापन अधिक रहेगा।
- गुस्से से ,काम भावना से , ईर्ष्या की भावना से पित्त बढ़ता है।
- खान पान जैसे तिल , दाना , सुखा मेवा , मिर्च-मसाले , तैलीय पदार्थ , गाजर , ऊष्ण के खाद्य पदार्थों आदि के सेवन से पित्त बढ़ता है।
- सौंफ , धनिया ( सुखा या हरा ) , हिंग , अजवाइन , आंवला आदि पित्त को नियंत्रित करते है।
- सुबह सुबह छाछ , निम्बू पानी , नारियल पानी , मूली , फलों के रस आदि के सेवन से पित्त नहीं बढ़ता।
- रात को दूध में चम्मच गाय का घी मिलाकर लेने से पित्त नहीं बढ़ता।
- दिन में गर्म पानी में एक चम्मच घी मिलाकर पित्त और वात दोनों नियंत्रण में रखा जा सकता है।
- शरीर में पित्त का स्थान छोटी आंत होता है। गर्मियों में अक्सर पित्त बढ़ जाता है और पसीने से वस्त्र भी पीले होने लगते है , तब एरंडी का तेल लेने से एक दो दस्त हो कर छोटी आंत से पित्त निकल जाता है और ठंडक आती है।
- गोमूत्र त्रिदोषों का निवारण करता है ; पर पित्त प्रवृत्ति के लोगों को गाय का घी भी साथ में लेना चाहिए।
- जीवन के मध्य प्रहर यानी जवानी में पित्त बढ़ जाता है।
- दिन के मध्य प्रहर और रात्री के मध्य प्रहर में पित्त बढ़ता है। इस समय रोग की तीव्रता बढना पित्त रोग की और इशारा करता है।
- त्वचा में खुजली हो सकती है। डैंड्रफ भी तैलीय हो सकता है। बालों में भी पसीने की दुर्गन्ध आ सकती है।

गुरु बनना हंसी खेल नहीं...

गुरु बनना हंसी खेल नहीं...

एक महात्मा जी अपने शिष्यों के साथ कहीं जा रहे थे | रास्ते में एक सांप घायल अवस्था में पड़ा हुआ था और उस पर तमाम चींटियाँ लग रही थी | सांप हिल सकता नहीं था बैचैन होकर अपना फन उठाता था फिर गिर जाता था |

महात्मा जी उसे देखकर रो पड़े | शिष्यों को समझ में नहीं आया | उन्होंने कहा कि महाराज जी आप क्यों रो रहे हैं ? महात्मा जी बोले कि कर्मों का ऐसा विधान है जिसे जीव अपनी अज्ञानता में नहीं समझ पाता है | यह सांप कभी गुरु बना था | महात्माओं की नक़ल की और इतने शिष्य बनाये | इसने शिष्यों से तरह तरह की तन मन धन की सेवा ली लेकिन उनकी आत्माओं का कल्याण नहीं कर सका | क्योंकि इसने अपनी आत्मा का भी कल्याण नहीं किया था | अब कर्मी के जाल में फंसकर वह गुरु सांप बना और उसके सारे शिष्य चींटियाँ बन गये हैं | अब ये चींटिया इस घायल सांप को काट रही हैं और कह रही हैं कि मेरी सेवाओं का बदला दो | तुमने मुझे क्यों धोखे में रक्खा , मेरा आत्म कल्याण नहीं किया और ये बेचारा सांप ऐसी अधोगति में पड़ा हुआ पीड़ा सह रहा है और कुछ कर नहीं पा रहा है |

महात्मा जी ने आगे कहा कि गुरु बनना कोई हंसी खेल नहीं है , सबसे ख़राब काम है | चेले बनाकर उनकी सेवाओं को लेकर अगर आत्म कल्याण उनका न किया तो वो आत्माएं अपना बदला मांगती है | गृहस्थों के खून पसीने की कमाई की रोटी खाकर जो साधू उनका कल्याण नहीं करता तो ये रोटियां उसके आँतों को फाड़ देती हैं |
गुरु बनना हंसी खेल नहीं...

एक महात्मा जी अपने शिष्यों के साथ कहीं जा रहे थे | रास्ते में एक सांप घायल अवस्था में पड़ा हुआ था और उस पर तमाम चींटियाँ लग रही थी | सांप हिल सकता नहीं था बैचैन होकर अपना फन उठाता था फिर गिर जाता था |

महात्मा जी उसे देखकर रो पड़े | शिष्यों को समझ में नहीं आया | उन्होंने कहा कि महाराज जी आप क्यों रो रहे हैं ? महात्मा जी बोले कि कर्मों का ऐसा विधान है जिसे जीव अपनी अज्ञानता में नहीं समझ पाता है | यह सांप कभी गुरु बना था | महात्माओं की नक़ल की और इतने शिष्य बनाये | इसने शिष्यों से तरह तरह की तन मन धन की सेवा ली लेकिन उनकी आत्माओं का कल्याण नहीं कर सका | क्योंकि इसने अपनी आत्मा का भी कल्याण नहीं किया था | अब कर्मी के जाल में फंसकर वह गुरु सांप बना और उसके सारे शिष्य चींटियाँ बन गये हैं | अब ये चींटिया इस घायल सांप को काट रही हैं और कह रही हैं कि मेरी सेवाओं का बदला दो | तुमने मुझे क्यों धोखे में रक्खा , मेरा आत्म कल्याण नहीं किया और ये बेचारा सांप ऐसी अधोगति में पड़ा हुआ पीड़ा सह रहा है और कुछ कर नहीं पा रहा है |

महात्मा जी ने आगे कहा कि गुरु बनना कोई हंसी खेल नहीं है , सबसे ख़राब काम है | चेले बनाकर उनकी सेवाओं को लेकर अगर आत्म कल्याण उनका न किया तो वो आत्माएं अपना बदला मांगती है | गृहस्थों के खून पसीने की कमाई की रोटी खाकर जो साधू उनका कल्याण नहीं करता तो ये रोटियां उसके आँतों को फाड़ देती हैं |

संतान प्राप्ति के सरल उपाय :-पंडित कौशल पाण्डेय

संतान प्राप्ति के सरल उपाय :-पंडित कौशल पाण्डेय

हमारे ऋषि महर्षियों ने हजारो साल पहले ही संतान प्राप्ति के कुछ नियम और सयम बताये है ,संसार की उत्पत्ति पालन और विनाश का क्रम पृथ्वी पर हमेशा से चलता रहा है,और आगे भी चलता रहेगा। इस क्रम के अन्दर पहले जड चेतन का जन्म होता है,फ़िर उसका पालन होता है और समयानुसार उसका विनास होता है।
मनुष्य जन्म के बाद उसके लिये चार पुरुषार्थ सामने आते है,पहले धर्म उसके बाद अर्थ फ़िर काम और अन्त में मोक्ष, धर्म का मतलब पूजा पाठ और अन्य धार्मिक क्रियाओं से पूरी तरह से नही पोतना चाहिये,धर्म का मतलब मर्यादा में चलने से होता है,माता को माता समझना पिता को पिता का आदर देना अन्य परिवार और समाज को यथा स्थिति आदर सत्कार और सबके प्रति आस्था रखना ही धर्म कहा गया है,अर्थ से अपने और परिवार के जीवन यापन और समाज में अपनी प्रतिष्ठा को कायम रखने का कारण माना जाता है,काम का मतलब अपने द्वारा आगे की संतति को पैदा करने के लिये स्त्री को पति और पुरुष को पत्नी की कामना करनी पडती है,पत्नी का कार्य धरती की तरह से है और पुरुष का कार्य हवा की तरह या आसमान की तरह से है,गर्भाधान भी स्त्री को ही करना पडता है,वह बात अलग है कि पादपों में अमर बेल या दूसरे हवा में पलने वाले पादपों की तरह से कोई पुरुष भी गर्भाधान करले। धरती पर समय पर बीज का रोपड किया जाता है,तो बीज की उत्पत्ति और उगने वाले पेड का विकास सुचारु रूप से होता रहता है,और समय आने पर उच्चतम फ़लों की प्राप्ति होती है,अगर वर्षा ऋतु वाले बीज को ग्रीष्म ऋतु में रोपड कर दिया जावे तो वह अपनी प्रकृति के अनुसार उसी प्रकार के मौसम और रख रखाव की आवश्यकता को चाहेगा,और नही मिल पाया तो वह सूख कर खत्म हो जायेगा,इसी प्रकार से प्रकृति के अनुसार पुरुष और स्त्री को गर्भाधान का कारण समझ लेना चाहिये। जिनका पालन करने से आप तो संतानवान होंगे ही आप की संतान भी आगे कभी दुखों का सामना नहीं करेगा…

कुछ राते ये भी है जिसमे हमें सम्भोग करने से बचना चाहिए .. जैसे अष्टमी, एकादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, पूर्णिमा और अमवाश्या .चन्द्रावती ऋषि का कथन है कि लड़का-लड़की का जन्म गर्भाधान के समय स्त्री-पुरुष के दायां-बायां श्वास क्रिया, पिंगला-तूड़ा नाड़ी, सूर्यस्वर तथा चन्द्रस्वर की स्थिति पर निर्भर करता है।गर्भाधान के समय स्त्री का दाहिना श्वास चले तो पुत्री तथा बायां श्वास चले तो पुत्र होगा।

यदि आप पुत्र प्राप्त करना चाहते हैं और वह भी गुणवान, तो हम आपकी सुविधा के लिए हम यहाँ माहवारी के बाद की विभिन्न रात्रियों की महत्वपूर्ण जानकारी दे रहे हैं।मासिक धर्म शुरू होने के प्रथम चार दिवसों में संभोग से पुरूष रुग्णता को प्राप्त होता है. पांचवी रात्रि से संतान उत्पन्न करने की विधि करनी चाहिए .

ज्योतिष के अनुसार गर्भाधान के समय केंद्र एवम त्रिकोण मे शुभ ग्रह हों, तीसरे छठे ग्यारहवें घरों में पाप ग्रह हों, लग्न पर मंगल गुरू इत्यादि शुभ कारक ग्रहों की दॄष्टि हो, विषम चंद्रमा नवमांश कुंडली में हो और मासिक धर्म से सम रात्रि हो, उस समय सात्विक विचार पूर्वक योग्य पुत्र की कामना से यदि रति की जाये तो निश्चित ही योग्य पुत्र की प्राप्ति होती है.

इस समय में पुरूष का दायां एवम स्त्री का बांया स्वर ही चलना चाहिये, यह अत्यंत अनुभूत और अचूक उपाय है जो खाली नही जाता. इसमे ध्यान देने वाली बात यह है कि पुरुष का जब दाहिना स्वर चलता है तब उसका दाहिना अंडकोशः अधिक मात्रा में शुक्राणुओं का विसर्जन करता है जिससे कि अधिक मात्रा में पुल्लिग शुक्राणु निकलते हैं. अत: पुत्र ही उत्पन्न होता है.

यदि पति पत्नि संतान प्राप्ति के इच्छुक ना हों और सहवास करना ही चाहें तो मासिक धर्म के अठारहवें दिन से पुन: मासिक धर्म आने तक के समय में सहवास कर सकते हैं, इस काल में गर्भादान की संभावना नही के बराबर होती है.
चार मास का गर्भ हो जाने के पश्चात दंपति को सहवास नही करना चाहिये. अगर इसके बाद भी संभोग रत होते हैं तो भावी संतान अपंग और रोगी पैदा होने का खतरा बना रहता है. इस काल के बाद माता को पवित्र और सुख शांति के साथ देव आराधन और वीरोचित साहित्य के पठन पाठन में मन लगाना चाहिये. इसका गर्भस्थ शिशि पर अत्यंत प्रभावकारी असर पदता है,

अगर दंपति की जन्मकुंडली के दोषों से संतान प्राप्त होने में दिक्कत आरही हो तो बाधा दूर करने के लिये संतान गोपाल के सवा लाख जप करने चाहिये. यदि संतान मे सूर्य बाधा कारक बन रहा हो तो हरिवंश पुराण का श्रवण करें, राहु बाधक हो तो क्न्यादान से, केतु बाधक हो तो गोदान से, शनि या अमंगल बाधक बन रहे हों तो रूद्राभिषेक से संतान प्राप्ति में आने वाली बाधायें दूर की जा सकती हैं.
मासिक स्राव रुकने से अंतिम दिन (ऋतुकाल) के बाद 4, 6, 8, 10, 12, 14 एवं 16वीं रात्रि के गर्भाधान से पुत्र तथा 5, 7, 9, 11, 13 एवं 15वीं रात्रि के गर्भाधान से कन्या जन्म लेती है।
१- चौथी रात्रि के गर्भ से पैदा पुत्र अल्पायु और दरिद्र होता है।
२- पाँचवीं रात्रि के गर्भ से जन्मी कन्या भविष्य में सिर्फ लड़की पैदा करेगी।
३- छठवीं रात्रि के गर्भ से मध्यम आयु वाला पुत्र जन्म लेगा।
४- सातवीं रात्रि के गर्भ से पैदा होने वाली कन्या बांझ होगी।
५- आठवीं रात्रि के गर्भ से पैदा पुत्र ऐश्वर्यशाली होता है।
६- नौवीं रात्रि के गर्भ से ऐश्वर्यशालिनी पुत्री पैदा होती है।
७- दसवीं रात्रि के गर्भ से चतुर पुत्र का जन्म होता है।
८- ग्यारहवीं रात्रि के गर्भ से चरित्रहीन पुत्री पैदा होती है।
९- बारहवीं रात्रि के गर्भ से पुरुषोत्तम पुत्र जन्म लेता है।
१०- तेरहवीं रात्रि के गर्म से वर्णसंकर पुत्री जन्म लेती है।
११- चौदहवीं रात्रि के गर्भ से उत्तम पुत्र का जन्म होता है।
१२- पंद्रहवीं रात्रि के गर्भ से सौभाग्यवती पुत्री पैदा होती है।
१३- सोलहवीं रात्रि के गर्भ से सर्वगुण संपन्न, पुत्र पैदा होता है।

सहवास से निवृत्त होते ही पत्नी को दाहिनी करवट से 10-15 मिनट लेटे रहना चाहिए, एमदम से नहीं उठना चाहिए।

पति-पत्नी दोनों सुबह स्नान कर पूरी पवित्रता के साथ इस मंत्र का जप तुलसी की माला से करें।
संतान गोपाल मंत्र का जप करें -

देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते।देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत:।।

- मंत्र जप के बाद भगवान से समर्पित भाव से निरोग, दीर्घजीवी, अच्छे चरित्रवाला, सेहतमंद पुत्र की कामना करें।

कई बार प्रायः देखने में आया है की विवाह के वर्षो बाद भी गर्भ धारण नहीं हो पाता या बार-बार गर्भपात हो जाता है, ज्योतिष में इस समस्या या दोष का एक प्रमुख कारण पति या पत्नी की कुंडली में संतान दोष अथवा पितृ दोष हो सकता है या घर का वास्तुदोष भी होता है, जिसके कारण गर्भ धारण नहीं हो पाता या बार-बार गर्भपात हो जाता है

ज्योतिष- वास्तु शास्त्र में कुछ ऐसे प्रमुख दोष बताये गए है जिनके कारण संतान की प्राप्ति नहीं होती या वंश वृद्धि रुक जाती है | इस समस्या के पीछे की वास्तविकता..क्या है इसका शास्त्रीय और ज्योतिषीय आधार क्या है ये आप अपनी जन्म कुंडली के द्वारा जानकारी प्राप्त कर सकते है ...
इसके लिए आप हरिवंश पुराण का पाठ या संतान गोपाल मंत्र का जाप करे या किसी अछे विद्वान से कराये .अधिक जानकारी के लिए जन्म पत्रिका के साथ मिले या संपर्क करे :- पंडित कौशल पाण्डेय

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