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शुक्रवार, 13 अप्रैल 2018

नाभी कुदरत की एक अद्भुत देन है

नाभी कुदरत की एक अद्भुत देन है

एक 62 वर्ष के बुजुर्ग को अचानक बांई आँख  से कम दिखना शुरू हो गया। खासकर  रात को नजर न के बराबर होने लगी।जाँच करने से यह निष्कर्ष निकला कि उनकी आँखे ठीक है परंतु बांई आँख की रक्त नलीयाँ सूख रही પરંતુ है। रिपोर्ट में यह सामने आया कि अब वो जीवन भर देख  नहीं पायेंगे।.... मित्रो यह सम्भव नहीं है..

मित्रों हमारा शरीर परमात्मा की अद्भुत देन है...गर्भ की उत्पत्ति नाभी के पीछे होती है और उसको माता के साथ जुडी हुई नाडी से पोषण मिलता है અને और इसलिए मृत्यु के तीन घंटे तक नाभी गर्म रहती है।

गर्भधारण के नौ महीनों अर्थात 270 दिन बाद एक सम्पूर्ण बाल स्वरूप बनता है। नाभी के द्वारा सभी नसों का जुडाव गर्भ के साथ होता है। इसलिए नाभी एक अद्भुत भाग है।

नाभी के पीछे की ओर पेचूटी या navel button होता है।जिसमें 72000 से भी अधिक रक्त धमनियां स्थित होती है।अगर सारी धमनियों को जोड़ा जाए तो उनकी लम्बाई इतनी हो जायेगी कि पृथ्वी के गोलाई पर दो बार लपेटा जा सके।

नाभी में गाय का शुध्द घी या तेल लगाने से बहुत सारी शारीरिक दुर्बलता का उपाय हो सकता है।

1. आँखों का शुष्क हो जाना, नजर कमजोर हो जाना, चमकदार त्वचा और बालों के लिये उपाय...

सोने से पहले 3 से 7 बूँदें शुध्द घी और नारियल के तेल नाभी में डालें और नाभी के आसपास डेढ ईंच  गोलाई में फैला देवें।

2. घुटने के दर्द में उपाय

सोने  से पहले तीन से सात बूंद इरंडी का तेल नाभी में डालें और उसके आसपास डेढ ईंच में फैला देवें।

3. शरीर में कमपन्न तथा जोड़ोँ में दर्द और शुष्क त्वचा के लिए उपाय :-
रात को सोने से पहले तीन से सात बूंद राई या सरसों कि तेल नाभी में डालें और उसके
चारों ओर डेढ ईंच में फैला देवें।
  
4. मुँह और गाल पर होने वाले पिम्पल के लिए उपाय:- 

नीम का तेल तीन से सात बूंद नाभी में उपरोक्त तरीके से डालें।

*नाभी में तेल डालने का कारण*

हमारी नाभी को मालूम रहता है कि हमारी कौनसी रक्तवाहिनी सूख रही है,इसलिए वो उसी धमनी में तेल का प्रवाह कर देती है।

जब बालक छोटा होता है और उसका पेट दुखता है तब हम हिंग और पानी या तैल का मिश्रण उसके पेट और नाभी के आसपास लगाते थे और उसका दर्द तुरंत गायब हो जाता था।बस यही काम है तेल का।

*घी और तेल नाभी में डालते समय ड्रापर का प्रयोग करें, ताकि उसे डालने में आसानी रहे।*

अपने स्नेहीजनों, मित्रों और परिजनों में इस नाभी में तेल और घी डालने के उपयोग और फायदों को शेयर करिये।

बाबर ने मुश्किल से कोई 4 वर्ष राज किया।

बाबर ने मुश्किल से कोई 4 वर्ष राज किया। हुमायूं को ठोक पीटकर भगा दिया। मुग़ल साम्राज्य की नींव अकबर ने डाली और जहाँगीर, शाहजहाँ से होते हुए औरंगजेब आते आते उखड़ गया।*
*कुल 100 वर्ष (अकबर 1556ई. से औरंगजेब 1658ई. तक) के समय के स्थिर शासन को मुग़ल काल नाम से इतिहास में एक पूरे पार्ट की तरह पढ़ाया जाता है....*
*मानो सृष्टि आरम्भ से आजतक के कालखण्ड में तीन भाग कर बीच के मध्यकाल तक इन्हीं का राज रहा....!*

*अब इस स्थिर (?) शासन की तीन चार पीढ़ी के लिए कई किताबें, पाठ्यक्रम, सामान्य ज्ञान, प्रतियोगिता परीक्षाओं में प्रश्न, विज्ञापनों में गीत, ....इतना हल्ला मचा रखा है, मानो पूरा मध्ययुग इन्हीं 100 वर्षों के इर्द गिर्द ही है।*

*जबकि उक्त समय में मेवाड़ इनके पास नहीं था। दक्षिण और पूर्व भी एक सपना ही था।*
*अब जरा विचार करें..... क्या भारत में अन्य तीन चार पीढ़ी और शताधिक वर्ष पर्यन्त राज्य करने वाले वंशों को इतना महत्त्व या स्थान मिला है ?*
*अकेला विजयनगर साम्राज्य ही 300 वर्ष तक टिका रहा। हीरे माणिक्य की हम्पी नगर में मण्डियां लगती थीं।महाभारत युद्ध के बाद 1006 वर्ष तक जरासन्ध वंश के 22 राजाओं ने । 5 प्रद्योत वंश के राजाओं ने 138 वर्ष , 10 शैशुनागों ने 360 वर्षों तक , 9 नन्दों ने 100 वर्षों तक , 12 मौर्यों ने 316 वर्ष तक , 10 शुंगों ने 300 वर्ष तक , 4 कण्वों ने 85 वर्षों तक , 33 आंध्रों ने 506 वर्ष तक , 7 गुप्तों ने 245 वर्ष तक राज्य किया ।*
*फिर विक्रमादित्य ने 100 वर्षों तक राज्य किया था । इतने महान् सम्राट होने पर भी भारत के इतिहास में गुमनाम कर दिए गए ।*

*उनका वर्णन करते समय इतिहासकारों को मुँह का कैंसर हो जाता है। सामान्य ज्ञान की किताबों में पन्ने कम पड़ जाते है। पाठ्यक्रम के पृष्ठ सिकुड़ जाते है। प्रतियोगी परीक्षकों के हृदय पर हल चल जाते हैं।*
*वामपंथी इतिहासकारों ने नेहरूवाद का मल भक्षण कर, जो उल्टियाँ की उसे ज्ञान समझ चाटने वाले चाटुकारों...!*
*तुम्हे धिक्कार है !!!*

*यह सब कैसे और किस उद्देश्य से किया गया ये अभी तक हम ठीक से समझ नहीं पाए हैं और ना हम समझने का प्रयास कर रहे हैं।*

*नोट : दबाकर कॉपी-पेस्ट करें.... ताकी इस आलेख का अधिक से अधिक प्रचार-प्रसार हो सके !*
*जय हिंद*👏

रुद्राक्ष कितने प्रकार के होते हैं, ओर क्या है उनका महत्व

रुद्राक्ष कितने प्रकार के होते हैं, ओर क्या है उनका महत्व,,

भारतीय संस्कृति में रुद्राक्ष का बहुत महत्व है। माना जाता है कि रुद्राक्ष इंसान को हर तरह की हानिकारक ऊर्जा से बचाता है। इसका इस्तेमाल सिर्फ तपस्वियों के लिए ही नहीं, बल्कि सांसारिक जीवन में रह रहे लोगों के लिए भी किया जाता है। जानिए, कैसे इंसानी जीवन में नकारात्मकता को कम करने में मदद करता है रुद्राक्ष:।

1 मुखी रुद्राक्ष,,,पौराणिक मान्यताओके अनुसार, एकमुखी रुद्राक्ष साक्षात शिवस्वरुप माना जाता है. ईसके निरंतर सानिध्यसे एव्ं ध्यानधारणासे , धारणकर्ता – वैश्विकज्ञान , उच्चतम चेतनावस्था पाते हुए त्रिकालदर्शी हो जाता है, और स्वर्गीय (ईश्वरीय) परम चेतना में विलीन हो जाता है।

यह मणि ईश्वरीय ज्ञान और आध्यात्मिक दृष्टि जागृत करने, आज्ञा चक्र पर प्रभावी सिद्ध होता है. भगवान शिव और की कृपा और पवित्र कर्मोके फलस्वरुप कुछ गिनेचुने भाग्यशाली व्यक्तियोको ही यह दुर्लभ मनी धारण करने का अवसर मिलता है। इसे धारण करने से व्यक्ति निश्चित रूप से मोक्ष मार्ग पे जाता है।

धारणकर्ता मन की इच्छाएं पूर्ण करने की, सारे विश्व पर शासन करने की, उसे अपने मुट्ठी में रखने की क्षमता प्राप्त करता है।धारण कर्ता हर एक परिस्थितीमे सुयोग्य निर्णय लेनेकी क्षमता प्राप्त करता है। वह भगवान शंकर की कृपा से सब सुख प्राप्त करता है। यह अभय लक्ष्मी दिलाता है। इसके धारण करने पर सूर्य जनित दोषों का निवारण होता है।

नेत्र संबंधी रोग, सिर दर्द, हृदय का दौरा, पेट तथा हड्डी संबंधित रोगों के निवारण हेतु इसको धारण करना चाहिए। यह यश और शक्ति प्रदान करता है। इसे धारण करने से आध्यात्मिक उन्नति, एकाग्रता, सांसारिक, शारीरिक, मानसिक तथा दैविक कष्टों से छुटकारा, मनोबल में वृद्धि होती है। कर्क, सिंह और मेष राशि वाले इसे माला रूप में धारण अवश्य करें।

एक मुखी रुद्राक्ष को धारण करने का मंत्र: ऊँ एं हे औं ऐं ऊँ। इस मंत्र का जाप 108 बार (एक माला) करना चाहिए तथा इसको सोमवार के दिन धारण करें।

2 मुखी रुद्राक्ष,,,,,दो मुखी रुद्राक्ष शिव का अर्धनारीश्वर स्वरुप है. इससे भगवान अर्द्धनारीश्वर प्रसन्न होते हैं। उसकी ऊर्जा से सांसारिक बाधाएं तथा दाम्पत्य जीवन सुखी रहता है दूर होती हैं। इसे स्त्रियांे के लिए उपयोगी माना गया है।

संतान जन्म, गर्भ रक्षा तथा मिर्गी रोग के लिए उपयोगी माना गया है। ईससे पति-पत्नि, पिता-पुत्र, मित्र एव्ं व्यावसायिक संबंधोमे सौहार्द आता है. एकता बनाए रखनेवाला यह मणी आत्मिक शांती और पुर्णता प्रदान करता है. चंद्रमा की प्रतिकुलता से उत्पन्न दोषो का निवारण यह करता है।

हृदय, फेफड़ों, मस्तिष्क, गुर्दों तथा नेत्र रोगों में इसे धारण करने पर लाभ पहुंचता है। यह ध्यान लगाने में सहायक है। इसे धारण करने से सौहार्द्र लक्ष्मी का वास रहता है। धनु व कन्या राशि वाले तथा कर्क, वृश्चिक और मीन लग्न वालों के लिए इसे धारण करना लाभप्रद होता है। दो मुखी रुद्राक्ष धारण का मंत्र: ऊँ ह्रीं क्षौं श्रीं ऊँ।

3 मुखी रुद्राक्ष,,,,यह अग्नीदेवता का प्रतिनिधीत्व करता है. सुर्य की प्रतिकुलता से उत्पन्न सभी दोषोका निवारण ३ मुखी रुद्राक्ष करता है. ३ मुखी रुद्राक्ष धारण करनेसे मनुष्य जन्मजन्मांतर के चक्र से मुक्त होकर मोक्ष पाता है. ईससे पेट और यक्रूत की बिमारिया दुर होती है. तीन मुखी रुद्राक्ष को अग्नि का रूप कहा गया है। मंगल इसका अधिपति ग्रह है।

मंगल ग्रह निवारण हेतु इसे धारण किया जाता है यह मूंगे से भी अधिक प्रभावशाली है। मंगल को लाल रक्त कण, गुर्दा, ग्रीवा, जननेन्द्रियों का कारक ग्रह माना गया है। अतः तीन मुखी रुद्राक्ष को ब्लडप्रेशर, चेचक, बवासीर, रक्ताल्पता, हैजा, मासिक धर्म संबंधित रोगों के निवारण हेतु धारण करना चाहिए। उन व्यक्तियों के द्वारा इसे पहनना श्रेष्ठ है जो हीन भावना से ग्रस्त हो ,मन में किसी बात का डर हो ,आत्मग्लानि हो ,आत्म विश्वास का अभाव हो , मानसिक तनाव अथवा मानसिक रोग हो .इसके धारण करने से श्री, तेज एवं आत्मबल मिलता है।

यह सेहत व उच्च शिक्षा के लिए शुभ फल देने वाला है। इसे धारण करने से दरिद्रता दूर होती है तथा पढ़ाई व व्यापार संबंधित प्रतिस्पर्धा में सफलता मिलती है। अग्नि स्वरूप होने के कारण इसे धारण करने से अग्नि देव प्रसन्न होते हैं, ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है तथा शरीर स्वस्थ रहता है। मेष, सिंह, धनु राशि वाले तथा मेष, कर्क, सिंह, वृश्चिक, धनु तथा मीन लग्न के जातकों को इसे अवश्य धारण करना चाहिए।

इसे धारण करने से सर्वपाप नाश होते हैं। तीन मुखी रुद्राक्ष धारण करने का मंत्र – ऊँ रं हैं ह्रीं औं। इस मंत्र को प्रतिदिन 108 बार यथावत पढ़ें।

4 मुखी रुद्राक्ष,,,,,4 मुखी रुद्राक्ष के अधिपती ब्रह्मा है. ईसे ब्रह्म स्वरूप माना जाता है। ईससे स्मरणशक्ती, मौखिकशक्ती, व्यवहार चातुर्य, वाक्चातुर्य तथा बुध्दीमत्ता का विकास होता है।

बुध ग्रह की प्रतिकुलतासे उत्पन्न सभी दोषो का निवारण यह करता है. इसमें पन्ना रत्न के समान गुण हैं चार मुखी रुद्राक्ष व्यापारियों वैज्ञानिक अनुसंधानकर्ता बुद्धिजीवी कलाकार लेखक विद्यार्थी व् शिक्षक के लिए पहनना अत्यंत लाभकारी होता है इसके विलक्षण परिणाम मिलते है मानसिक रोग, पक्षाघात, पीत ज्वर, दमा तथा नासिका संबंधित रोगों के निदान हेतु इसे धारण करना चाहिए।

चार मुखी रुद्राक्ष धारण करने से वाणी में मधुरता, आरोग्य तथा तेजस्विता की प्राप्ति होती है। सेहत, ज्ञान, बुद्धि तथा खुशियों की प्राप्ति में सहायक है। इसे चारों वेदों का रूप माना गया है तथा धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चतुर्वर्ग फल देने वाला है। इसे धारण करने से सांसारिक दुःखों, शारीरिक, मानसिक, दैविक कष्टों तथा ग्रहों के कारण उत्पन्न बाधाओं से छुटकारा मिलता है।

वृष, मिथुन, कन्या, तुला, मकर व कुंभ लग्न के जातकों को इसे धारण करना चाहिए। चार मुखी रुद्राक्ष धारण करने का मंत्र – ऊँ बां क्रां तां हां ईं। सोमवार को यह मंत्र 108 बार जपकर धारण करें।

5 मुखी रुद्राक्ष,,,,पाँच मुखी रुद्रकालाग्नी का प्रतिनिधीत्व करता है. इस रुद्राक्ष को रुद्र का स्वरूप कहा गया है। ईससे मन:शांती प्राप्त होती है. गुरु ग्रह की प्रतिकुलतासे उत्पन्न सभी दोषो का निवारण यह करता है. इसमें पुखराज के समान गुण होते हैं। 5 मुखी रुद्राक्ष भी व्यापारियों वैज्ञानिक अनुसंधानकर्ता बुद्धिजीवी कलाकार लेखक विद्यार्थी व् शिक्षक के लिए पहनना अत्यंत लाभकारी होता है इसके विलक्षण परिणाम मिलते है।

इसे धारण करने से निर्धनता, दाम्पत्य सुख में कमी, जांघ व कान के रोग, मधुमेह जैसे रोगों का निवारण होता है। पांच मुखी रुद्राक्ष धारण करने वालों को सुख, शांति व प्रसिद्धि प्राप्त होते हैं। यह हृदय रोगियों के लिए उत्तम है।

इससे आत्मिक विश्वास, मनोबल तथा ईश्वर के प्रति आसक्ति बढ़ती है। मेष, कर्क, सिंह, वृश्चिक, धनु, मीन वाले जातक इसे धारण कर सकते हैं। पांच मुखी रुद्राक्ष धारण करने का मंत्र: ऊँ ह्रां क्रां वां हां। सोमवार की सुबह मंत्र एक माला जप कर, इसे काले धागे में विधि पूर्वक धारण करना चाहिए।

6 मुखी रुद्राक्ष,,,छः मुखी रुद्राक्ष भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय का स्वरूप है। ईसपर मंगल ग्रह का अधिपत्य है. ईसे धारण करनेपर साफसुथरी प्रतिमा, मजबूत निंव (Strong Base), के साथ जीवन मे स्थिरता प्राप्त होती है. ऐशो आराम तथा वाहनसुख की लालसा पुरी होती है. शुक्र ग्रह की प्रतिकूलता होने पर इसे अवश्य धारण करना चाहिए।

नेत्र रोग, गुप्तेन्द्रियों, पुरुषार्थ, काम-वासना संबंधित व्याधियों में यह अनुकूल फल प्रदान करता है। इसके गुणों की तुलना हीरे से होती है। यह दाईं भुजा में धारण किया जाता है। इसे प्राण प्रतिष्ठित कर धारण करना चाहिए तथा धारण के समय ‘ऊँ नमः शिवाय’ मंत्र का जप अवश्य करना चाहिए। इसे हर राशि के बच्चे, वृद्ध, स्त्री, पुरुष कोई भी धारण कर सकते हैं।

गले में इसकी माला पहनना अति उत्तम है। कार्तिकेय तथा गणेश का स्वरूप होने के कारण इसे धारण करने से ऋद्धि-सिद्धि की प्राप्ति होती है। इसे धारण करने वाले पर माँ पार्वती की कृपा होती है। आरोग्यता तथा दीर्घायु प्राप्ति के लिए वृष व तुला राशि तथा मिथुन, कन्या, मकर व कुंभ लग्न वाले जातक इसे धारण कर लाभ उठा सकते हैं।

छः मुखी रुद्राक्ष धारण करने का मंत्र: ‘ऊँ ह्रीं क्लीं सौं ऐं’। इसे धारण करने के पश्चात् प्रतिदिन ‘ऊँ ह्रीं हु्रं नमः’ मंत्र का एक माला जप करें।

7 मुखी रुद्राक्ष,,,सातमुखी रुद्राक्ष ऐश्वर्य की देवता महालक्ष्मी का प्रतिनिधीत्व करता है. ईसे धारण करने से संपन्नता, ऐश्वर्य तथा उन्नती के नये नये अवसर प्राप्त होते है. आर्थिक विपत्तीयोसे ग्रस्त लोग ईसे धारण करे।

व्यवसाय मे घाटा टालने या कम करने मे यह मददगार होता है. अगर सफलता देरी से मिलनेकी शिकायत है तो 7 मुखी रुद्राक्ष जरुर धारण करे., ईससे नाम, प्रतिष्ठा तथा सम्रूध्दि मे उत्तरोत्तर बढौत्तरी होती है. इस रुद्राक्ष के देवता सात माताएं व हनुमानजी हैं।

यह शनि ग्रह द्वारा संचालित है। इसे धारण करने पर शनि जैसे ग्रह की प्रतिकूलता दूर होती है तथा नपुंसकता, वायु, स्नायु दुर्बलता, विकलांगता, हड्डी व मांस पेशियों का दर्द, पक्षाघात, सामाजिक चिंता, क्षय व मिर्गी आदि रोगों में यह लाभकारी है। इसे धारण करने से कालसर्प योग की शांति में सहायता मिलती है।

यह नीलम से अधिक लाभकारी है तथा किसी भी प्रकार का प्रतिकूल प्रभाव नहीं देता है। इसे गले व दाईं भुजा में धारण करना चाहिए। इसे धारण करने वाले की दरिद्रता दूर होती है तथा यह आंतरिक ज्ञान व सम्मान में वृद्धि करता है।

इसे धारण करने वाला उत्तरोत्तर प्रगति पथ पर चलता है तथा कीर्तिवान होता है। मकर व कुंभ राशि वाले, इसे धारण कर लाभ ले सकते हैं। सात मुखी रुद्राक्ष धारण करने का मंत्र: ‘ऊँ ह्रं क्रीं ह्रीं सौं’। इसे सोमवार के काले धागे में धारण करें।

8 मुखी रुद्राक्ष,,,आठमुखी रुद्राक्ष के स्वामी संकटमोचन श्री गणेशजी है तथा केतु ग्रह ईसका अधिपती है. यह मार्ग के सारे अवरोध दुर करता है और सभी कार्योमे यश देता है. विरोधीयोके मन तथा हेतू मे बदलाव लाकर शत्रुओको भी धारणकर्ता के हित मे सोचने के लिये बाध्य करता है।

अर्थात इसे धारण करने से द्वेष शत्रुता, और विरोध रखने वालो का मन बदल जाता है और सर्व्रत्र मित्रता बढ़ती है आठ मुखी रुद्राक्ष में कार्तिकेय, गणेश और गंगा का अधिवास माना जाता है। राहु ग्रह की प्रतिकूलता होने पर इसे धारण करना चाहिए।

मोतियाविंद, फेफड़े के रोग, पैरों में कष्ट, चर्म रोग आदि रोगों तथा राहु की पीड़ा से यह छुटकारा दिलाने में सहायक है। इसकी तुलना गोमेद से की जाती है। आठ मुखी रुद्राक्ष अष्ट भुजा देवी का स्वरूप है। यह हर प्रकार के विघ्नों को दूर करता है। इसे धारण करने वाले को अरिष्ट से मुक्ति मिलती है। इसे सिद्ध कर धारण करने से पितृदोष दूर होता है।

मकर और कुंभ राशि वालों के लिए यह अनुकूल है। मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, कुंभ व मीन लग्न वाले इससे जीवन में सुख समृद्धि प्राप्त कर सकते हैं। आठ मुखी रुद्राक्ष धारण करने का मंत्र: ‘ऊँ ह्रां ग्रीं लं आं श्रीं’। सोमवार के दिन इसे काले धागे में धारण करें।

9 मुखी रुद्राक्ष,,,,,नौमुखी रुद्राक्ष की स्वामी नवदुर्गा है तथा राहु ईसका प्रतिनिधीत्व करता है. यह धारणकर्ता को अपार उर्जा, शक्ती तथा चैतन्य देता है. राहु की प्रतिकुलतासे उत्पन्न होनेवाले सभी दोषोका निवारण यह रुद्राक्ष करता है. नौ मुखी रुद्राक्ष को नव-दुर्गा स्वरूप माना गया है।

केतु ग्रह की प्रतिकूलता होने पर भी इसे धारण करना चाहिए। ज्वर, नेत्र, उदर, फोड़े, फुंसी आदि रोगों में इसे धारण करने से अनुकूल लाभ मिलता है। इसे धारण करने स केतु जनित दोष कम होते हैं। यह लहसुनिया से अधिक प्रभावकारी है। ऐश्वर्य, धन-धान्य, खुशहाली को प्रदान करता है। धर्म-कर्म, अध्यात्म में रुचि बढ़ाता है।

मकर एवं कुंभ राशि वालों को इसे धारण करना चाहिए। नौमुखी रुद्राक्ष धारण करने का मंत्र: ‘ऊँ ह्रीं बं यं रं लं’। सोमवार को इसका पूजन कर काले धागे में धारण करना चाहिए।

10 मुखी रुद्राक्ष,,,दशमुखी रुद्राक्ष के अधिपती भगवान महाविष्णु तथा यम देव है. यह रुद्राक्ष एक कवच का कार्य करता है जिसे धारण करनेपर नकारात्मक उर्जा से आसिम सुरक्षा प्राप्त होती है. ईससे न्यायालयीन मुकदमे, भूमी से जुडे व्यवहार (Real Estate) मे यश प्राप्त होता है तथा कर्ज से मुक्ती मिलती है।

10 मुखी रुद्राक्ष सारे नवग्रहो की प्रतिकुलतासे उत्पन्न दोषोका निवारण करता है. दस मुखी रुद्राक्ष में भगवान विष्णु तथा दसमहाविद्या का निवास माना गया है। इसे धारण करने पर प्रत्येक ग्रह की प्रतिकूलता दूर होती है। यह एक शक्तिशाली रुद्राक्ष है तथा इसमें नवरत्न मुद्रिका के समान गुण पाये जाते हैं।

सर्वग्रह इसके प्रभाव से शांत रहते हैं। यह सभी कामनाओं को पूर्ण करने में सक्षम है। जादू-टोने के प्रभाव से यह बचाव करता है। ‘ऊँ नमः शिवाय’ मंत्र का जप करने से पूर्व इसे प्राण-प्रतिष्ठित अवश्य कर लेना चाहिए। मानसिक शांति, भाग्योदय तथा स्वास्थ्य का यह अनमोल खजाना है। मकर तथा कुंभ राशि वाले जातकों को इसे प्राण-प्रतिषिठत कर धारण करना चाहिए।

दस मुखी रुद्राक्ष धारण करने का मंत्र: ‘ऊँ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं ऊँ’। काले धागे में सोमवार के दिन धारण करें।

11 मुखी रुद्राक्ष,,,,,ग्यारह मुखी रुद्राक्ष के अधिपती 11 रुद्र है. ईसका प्रभाव सारे ईंद्रिय, सशक्त भाषा, निर्भय जीवनपर होता है. ईससे सारे ग्रहोकी प्रतिकुलतासे उत्पन्न दोषो का निवारण होता है।

यह धारक को सही निर्णय लेने में मदद करता है ,यह बल व् बुद्धि प्रदान करता है , तथा शरीर को बलिष्ठ व् निरोगी बनाता है , विदेश में बसने के इच्छुक व्यक्तियों के लिए इसे पहनने से लाभ मिलता है . ग्यारह मुखी रुद्राक्ष भगवान इंद्र का प्रतीक है। यह ग्यारह रुद्रों का प्रतीक है।

इसे शिखा में बांधकर धारण करने से हजार अश्वमेध यज्ञ तथा ग्रहण में दान करने के बराबर फल प्राप्त होता है। इस रुद्राक्ष के धारणकर्ता को अकालमृत्यु का भय नहीं रहता. इसे धारण करने से समस्त सुखों में वृद्धि होती है। यह विजय दिलाने वाला तथा आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करने वाला है।

दीर्घायु व वैवाहिक जीवन में सुख-शांति प्रदान करता है। विभिन्न प्रकार के मानसिक रोगों तथा विकारों में यह लाभकारी है तथा जिस स्त्री को संतान प्राप्ति नहीं होती है इसे विश्वास पूर्वक धारण करने से बंध्या स्त्री को भी सकती है संतान प्राप्त हो। इसे धारण करने से बल व तेज में वृद्धि होती है। मकर व कुंभ राशि के व्यक्ति इसे धारण कर जीवन-पर्यंत लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

ग्यारह मुखी रुद्राक्ष धारण करने का मंत्र: ‘ऊँ रूं मूं औं’। विधि विधान से पूजन अर्चना कर काले धागे में सोमवार के दिन इसे धारण करना चाहिए।

12 मुखी रुद्राक्ष,,,बारह मुखी रुद्राक्ष के अधिपती सुर्यदेव है. धारण कर्ता को शासन करने की क्षमता, अलौकीक बुध्दीमत्ता की चमक, तेज और शक्ती जैसे सुर्यदेव के गुण प्राप्त होते है. आत्मिक उर्जा मे बढौतरी होती है. इसे धारण करने से व्यक्ति में नेतृत्व क्षमता में वृद्धि और शासक का पद प्राप्त करता है।

बारहमुखी रुद्राक्ष प्रत्येक कार्य क्षेत्र से संलग्न व्यक्ति ,राजनीतिज्ञ, मंत्री ,उद्योग प्रमुख , व्यापारियों एवं यश प्रसिद्धि चाहने वालों को अवस्य धारण करना चाहिए ताकि उनमे ओजस्विता एवं कार्यक्षमता सतत बनी रहे . सरकारी अफसर व कर्मचारीयोके लिये 12 मुखी रुद्राक्ष विशेष लाभदायी सिध्द होता है।

ईससे प्रमोशन, मनचाही जगहपर पोस्टींग, पद, प्रतिष्ठा, Progress व अन्य लाभ प्राप्त होते है. UPSC व अन्य Competitive Exams कि तैय्यारी कर रहे Candidates के लिये भी यह रुद्राक्ष शुभफलदायी होता है। व्यक्तित्व निखारते हुए उँचे दर्जेका आत्मविश्वास एवं Commanding Power प्रदान करनेका कार्य भी यह रुद्राक्ष करता है।

बारह मुखी रुद्राक्ष को विष्णु स्वरूप माना गया है। इसे धारण करने से सर्वपाप नाश होते हैं। इसे धारण करने से दोनों लोकों का सुख प्राप्त होता है तथा व्यक्ति भाग्यवान होता है। यह नेत्र ज्योति में वृद्धि करता है। यह बुद्धि तथा स्वास्थ्य प्रदान करता है। यह समृद्धि और आध्यात्मिक ज्ञान दिलाता है। दरिद्रता का नाश होता है। मनोबल बढ़ता है ।

सांसारिक बाधाएं दूर होती हैं तथा ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है तथा असीम तेज एवं बल की प्राप्ति होती है। बारह मुखी रुद्राक्ष धारण करने का मंत्र: ‘ऊँ ह्रीं क्षौंत्र घुणंः श्रीं’। मंत्रोच्चारण के साथ प्रातः काले धागे में सोमवार को पूजन अर्चन कर इसे धारण करें।

13 मुखी रुद्राक्ष,,,13 मुखी रुद्राक्ष के स्वामी ईन्द्रदेव (देवो के राजा) तथा अधिपती कामदेव होते है. धारणकर्ताकी सारी सांसारीक मनोकामनाए पुरी होती है।

कामदेव की क्रुपा से वशीकरण, आकर्षण ऐश्वर्य एवं प्रभावित करने की क्षमता , शक्ती तथा करिशमाई व्यक्तित्व प्राप्त होता है. अनेक सिध्दीयोको जाग्रुत करते हुए कुंडलिनी जाग्रुती मे सहाय्यकारी होता है. हमेशा Center of Attraction रहने हेतू यह रुद्राक्ष फिल्म अभिनेता एवं कलाजगत , राजनेता व कारोबारीयो तथा व्यापर से जुड़े लोगो के लिए अति श्रेष्ठा है।

ईससे धारणकर्ता के प्रती आकर्षण तथा जनाधार दिन ब दिन बढते जाता है. यह रुद्राक्ष साक्षात् इंद्र का स्वरूप है। यह समस्त कामनाओं एवं सिद्धियों को प्रदान करने वाला है। निः संतान को संतान तथा सभी कार्यों में सफलता मिलती है अतुल संपत्ति की प्राप्ति होती है तथा भाग्योदय होता है। यह समस्त शक्ति तथा ऋद्धि-सिद्धि का दाता है।

यह कार्य सिद्धि प्रदायक तथा मंगलदायी है। सिंह राशि वालों के लिए यह उत्तम है। तेरह मुखी रुद्राक्ष धारण करने का मंत्र: ‘ऊँ इं यां आप औं‘ं प्रातः काल स्नान कर आसन पर भगवान के समक्ष बैठकर विधि-विधान से पूजन कर काले धागे में सोमवार को इसे धारण करना चाहिए। ‘ऊँ ह्रीं नमः’। मंत्र का भी उच्चारण किया जा सकता है।

14 मुखी रुद्राक्ष,,,,,चौदह मुखी रुद्राक्ष अनमोल ईश्वरीय रत्न है. ईसे साक्षात ‘देवमणी’ कहा जाता है. ईसके अधिपती स्वय्ं भगवान शिव और महाबली हनुमान है. धारणकर्ता को दुर्घटना, यातना व चिंतासे मुक्ती दिलाते हुए सफलता की ओर ले जाता है. इसे धारण करने से छठी इन्द्रिय जागृत हो जाती है एवं भविस्य में होने वाली घटनाओ का पहले ही ज्ञान होने लगता है और किसी भी विषय पर लिया गया निर्णय अंततः सफल ही होता है।

यह अपने प्रभाव से धारक को समस्त संकट , हानि , दुर्घटना ,रोग और चिंता से मुक्त करके ऐश्वर्य, धन-धान्य- , सुख शांति , समृद्धि प्रदान करता है . सांसारिक बाधाएं दूर होती हैं समस्त कामनाओं एवं सिद्धियों को प्रदान करने वाला है। सभी कार्यों में सफलता मिलती है अतुल संपत्ति की प्राप्ति होती है तथा भाग्योदय होता है।

14 मुखी रुद्राक्ष के अधिपती ग्रह शनि और मंगल है. अर्थात यह रुद्राक्ष शनी तथा मंगल दोनो ग्रहोकी बाधा से उत्पन्न दोषो का निवारण करता है.जिन्हे साढेसाती, 4 था या 8 वा शनि चल रहा है, एेसे तमाम लोगोको ईसे पहेननेसे बडी राहत मिलती है. यह भगवान शंकर का सबसे प्रिय रुद्राक्ष है। यह हनुमान जी का स्वरूप है।

धारण करने वाले को परमपद प्राप्त होता है। इसे धारण करने से शनि व मंगल दोष की शांति होती है। दैविक औषधि के रूप में यह शक्ति बनकर शरीर को स्वस्थ रखता है। चैदह मुखी रुद्राक्ष धारण करने का मंत्र: ‘ऊँ औं हस्फ्रे खत्फैं हस्त्रौं हसत्फ्रैं’। सोमवार के दिन स्नानादि कर पूजन-अर्चन कर काले धागे में इसे धारण करें।

15 मुखी रुद्राक्ष,,,,यह रुद्राक्ष भगवान पशुपतीनाथ का स्वरुप है. यह रुद्राक्ष व्यानपार में वृद्धि के लिए होता है। पंद्रह मुखी रुद्राक्ष से ऊर्जा प्राप्त‍ होती है जिससे व्यरक्तिन अपने कार्य में सफल हो पाता है।

इस रुद्राक्ष को पहनने से बुद्धि तेज होती है। रुद्राक्ष पर भगवान शिव का आशीर्वाद माना जाता है इसलिए पंद्रह मुखी रुद्राक्ष धारण करने से आपके व्या्पार पर भगवान शिव की कृपा प्राप्ता होती है। 15 मुखी रूद्राक्ष भगवान पशुपतिनाथ का प्रतीक तथा राहु द्वारा शासित है अर्थात् इस रुद्राक्ष को पहनने से आपको राहु की कृपा भी प्राप्तख होती है। यह रुद्राक्ष आपका उचित मार्गदर्शन करता है। 15 मुखी रुद्राक्ष के प्रभाव से आपको कभी भी धन का अभाव नहीं होता।

15 मुखी रुद्राक्ष त्व चा रोग दूर करने में भी प्रभावकारी होता है। इससे पौरुष शक्ति भी बढ़ती है। ह्रिदयरोग, मधुमेह, अस्थमा जैसे रोगे से राहत दिलाता है.

16 मुखी रुद्राक्ष,,,यह भगवान शिव का महाम्रुत्युंजय रुप है. ईसे विजय रुद्राक्ष भी कहा जाता है. शत्रु को परास्त करते हुए दिग्विजयी होने मे का शुभाषिश यह प्रदान करता है.ईसे धारण करना प्रतिदिन 1,25,000 बार महाम्रुत्युंजय मंत्र का जाप करने बराबर है।

17 मुखी रुद्राक्ष,,,,सत्तरह मुखी रूद्राक्ष को सीता जी एवं राम जी का प्रतीक माना गया है. यह रुद्राक्ष राजयोग का सुख प्रदान करता है सुख एवं समृद्धि दायक होता है।

यह रुद्राक्ष राम सीता जी के संयुक्त बलों का प्रतिनिधित्व करता है. यह एक दुर्लभ रूद्राक्ष है,. इस रूद्राक्ष के पहनने से सफलता, स्मृति ज्ञान, कुंडलिनी जागरण और तथा धन धान्य की वृद्धि होती है. 17 मुखी रुद्राक्ष भौतिक संपत्ति प्राप्त करने के लिए विशेष रूप से उपयोगी है ईसके अधिपती विश्व के निर्माता विश्वकर्मा है।

धारणकर्ता को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्राप्त होते है. यह रूद्राक्ष सभी पापों का शमन करता है. अपने पेशे मे व भाग्य मे लगातार बढौतरी चाहनेवाले व्यवसायी, प्रबंधक, सरकारी अधिकारी तथा राजकीय नेताओ के लिए 17 मुखी रुद्राक्ष अत्यंत लाभदायी होता है।

कात्यायनी तंत्र के अनुसार धारणकर्ता पर लगातार सफलता, अचानक संपत्ती तथा सांसारिक सुखो की वर्षा होती है. और अपने सभी कार्यों में सफलता प्राप्त होती है. स्मृति हानि, शाररिक ऊर्जा की कमी से पीड़ित लोगों के लिए यह रुद्राक्ष बहुत उपयोगी है. इसके साथ ही जो महिलाएं इस रूद्राक्ष को धारण करती हैं उन्हें अच्छा वैवाहिक जीवन, बच्चे और दांपत्य सुख प्राप्त होता है, हिंदू वैदिक ग्रंथों के अनुसार, 17 मुखी रूद्राक्ष सभी कमियों को दूर करने सहायक है।

18 मुखी रुद्राक्ष,,,,यह भूमीदेवी (माँ पृथ्वी )का स्वरुप है. यह धारणकर्ता के लिए व्यवसाय, भूमी व्यवहार तथा आपार वैभव के रास्ते खोलने वाला एक शक्तिशाली रुद्राक्ष है. अठारह मुखी रुद्राक्ष भूमि संबंधित कार्यों से जुडे़ लोगों के लिए उत्तम माना गया है प्रॉपर्टी कारोबार मे अल्प समय मे सफलता एव् विपुलता पाने हेतु ईसे धारण किया जाता है.लैण्ड डेवलपर्स, रियल एस्टेट ब्रोकर्स, कंन्सट्रक्शन व्यवसाई आदि कारोबारियों के लिए अत्यंत लाभदायक।

इस प्रकार, यह लौह अयस्क, जवाहरात, बिल्डरों, आर्किटेक्ट, संपत्ति डीलरों, ठेकेदारों, आर्किटेक्ट, किसानों, आदि के लिए उपयुक्त है.18 मुखी रूद्राक्ष को पहनने से सभी प्रकार के सम्मान, सफलता और प्रसिद्धि मिलेगी . निर्भय बनेंगे, दुर्घटनाओं और ग्रहों के बुरे प्रभाव से बचाव होगा. यह मधुमेह और लकवा जैसे रोगो मे आराम दिलाता है।

19 मुखी रुद्राक्ष,,,यह भगवान नारायण का स्वरुप है. यह मणी शरिर के सारे चक्र खोल देता है जिससे व्याधियोसे मुक्ती मिलती है. यह नौकरी, व्यवसाय, शिक्षा के सारे अवरोध दुर करता है।

20 मुखी रुद्राक्ष,,,,यह रुद्राक्ष ब्रह्मा का स्वरुप है. ईसमे नवग्रह, आठ दिकपाल तथा त्रिदेव की शक्तियॉ है जिससे व्यक्ती ईच्छाधारी बन जाता है.

21 मुखी रुद्राक्ष,,,,यह दुर्लभ रुद्राक्ष कुबेर का स्वरुप है. धारण करने वाला अपार जमिन- जायदाद, सुख और भौतिक ईच्छाए पुर्ण होने का वरदान पाता है.

गौरीशंकर रुद्राक्ष,,,2 मणी प्राक्रुतीक रुप से एकसाथ होने से शिव-पार्वती के एकरुप का प्रतिनिधीत्व करते है. ईसे धारण करने या घरमे रखने से परिवार के सारे सदस्योमे एकता तथा समाज के सभी वर्गो के साथ भाईचारा बना रहता है. जिनके विवाह में अनावश्यक विलम्ब हो रहा हो, उन्हें इस रुद्राक्ष को अवश्य धारण करना चाहिए।

गणेश रुद्राक्ष,,,इस रुद्राक्ष को भगवान गणेश जी का स्वरुप माना जाता है. इसे धारण करने से ऋद्धि-सिद्धि की प्राप्ति होती है. यह रुद्राक्ष विद्या प्रदान करने में लाभकारी है विद्यार्थियों के लिए यह रुद्राक्ष बहुत लाभदायक है।

गौरीपाठ रुद्राक्ष,,,यह रुद्राक्ष त्रिदेवों का स्वरूप है. इस रुद्राक्ष द्वारा ब्रह्मा, विष्णु और महेश की कृपा प्राप्त होती है।

गर्भ गौरी रूद्राक्ष,,,यह रुद्राक्ष उन महिलाओं के लिए बहुत ही लाभदायक है जो संतान की कामना रखती हैं या जिन्हें किसी कारण वश, संतान उत्पत्ति में विलंब का सामना करना पड़ रहा हो. इसके साथ ही साथ यह रुद्राक्ष गृभ की सुरक्षा करता है तथा जिन्हें गर्भ न ठहरता हो या गर्भपात हो जाता हो उनके लिए यह रुद्राक्ष अमूल्य निधि बनता है।

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