वार्षिक माघ मेले का आकर्षण कल्पवासी होते हैं
कल्पवास की शुरूआत पौष पूर्णिमा के स्नान से आरंभ होती है
गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती पर हर साल लगने वाला सबसे बड़ा धार्मिक माघ मेला चल रहा है. संगम की रेती पर लगने वाले कुम्भ की पहचान अखाड़े होते हैं, जबकि वार्षिक माघ मेले का आकर्षण कल्पवासी होते हैं. श्रद्धालु नियम और संयम के साथ कठोर तप कर एक महीने यहां ठहरकर अपना कल्पवास सम्पन्न करते हैं. इस कल्पवास की शुरूआत पौष पूर्णिमा के स्नान से आरंभ हो जाती है.
कितना कठिन होता है कल्पवास?
कल्पवास करने आए श्रद्धालु पौष पूर्णिमा के दिन तुलसी-शालिग्राम की स्थापना करते हैं और दिन में तीन बार स्नान और एक बार भोजन करते हैं. श्रद्धालु भजन-कीर्तन कर अपना समय व्यतीत करते हैं. दान पुण्य करते हैं और जमीन पर सोते हैं. ऐसा बारह वर्षों तक किया जाता है. कुछ श्रद्धालु इससे ज्यादा भी कल्पवास करते हैं और ईश्वर का आशीर्वाद लेकर अपना परिवारिक जीवन सार्थक करते हैं.
कौन करता है कल्पवास?
वैसे तो एक माह तक संगम की रेती पर कल्पवास करने वाले साधक अपने जीवन के सभी कार्यों से विरत होते हैं. इसके बाद श्रद्धालु यहां आकर कल्पवास करते हैं. यानी बच्चों की शादी और तमाम कार्य जब व्यक्ति पूरे कर लेता है और जिम्मेदारियों से मुक्त हो जाता है तो 12 वर्षों तक लगातार कल्पवास करता है और एक माह कल्पवास करने वाले साधक को ब्रम्हा के एक दिन का पुण्य मिलता है. कल्पवासी को इस साधना के बाद मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. उसे जन्म-जन्मांतर के बंधनों से भी मुक्ति मिल जाती है.
कल्पवास करने से क्या मिलता है फल?
ऐसी मान्यताएं हैं कि 100 साल तक बिना अन्न के तपस्या करने वाले को जो फल मिलता है वो एक माह संगम की रेती पर कल्पवास करने से मिल जाता है. इससे कल्पवासी की हर मनोकामना पूरी होती है. अपने घर के बाहर कल्पवास करने वाले तुलसी का पौधा लगाते हैं भोर में जागकर साधक स्नान कर पूजा पाठ में लग जाते हैं.
सिर्फ प्रयाग में ही होता है कल्पवास
ऐसा बताया जाता है कि प्रयाग में महर्षि भारद्वाज का आश्रम रहा करता था और ब्रम्हा जी ने यहां यज्ञ और पूजन किया था. तभी से ऋषियों और मुनियों की इस तपोभूमि पर साधू-संत और गृहस्त जीवन बिताने वाले श्रद्धालु कल्पवास करते हैं और ये सिर्फ प्रयाग में ही होता है. साधू-संत और कल्पवास करने वाले श्रद्धालु अपने हांथो से कुटिया बनाकर यहां रहते हैं. हालांकि आज के दौर में कुटिया का रूप आधुनिक टेंटों ने ले लिया है.
।। माघ मेला प्रयागराज में।।
🔻🔻🔴नक्षत्र एवं संबंधित दान 🔻🔻 🔴
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अश्विनी नक्षत्र में कांस्य पात्र में घी भरकर दान करने से रोग मुक्ति होती है।
- भरणी नक्षत्र में ब्राह्मण को तिल एवं धेनु का दान करने से सद्गतिप्राप्त होती है व कष्ट कम होता है।
- कृतिका नक्षत्र में घी और खीर से युक्त भोजन ब्राह्मण व साधु संतांे को दान करने से उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है ..
- रोहिणी नक्षत्र में घी मिश्रित अन्न को ब्राह्मण व साधुजन को दान करना चाहिए।
– मृगशिरा नक्षत्र में ब्राह्मणों को दूध दान करने से किसी प्रकार का ऋण नहीं रहता व व्याधि से दूर रहते हैं।
- आद्र्रा नक्षत्र में तिल मिश्रित खिचड़ी का दान करने से सभी प्रकार के संकटों से मुक्त हो जाते हंै।
- पुनर्वसु नक्षत्र में घी के बने मालपुए ब्राह्मण को दान करने से रोग का निदान होता है।
-पुष्य नक्षत्र में इच्छा अनुसार स्वर्ण दान करने से सभी कष्ट दूर हो जाते हंै।
- अश्लेषा नक्षत्र में इच्छा अनुसार चांदी दान करने से रोग से शांति व निर्भय हो जाता है।
- मघा नक्षत्र में तिल से भरे घड़ों का दान करने से रोग से निदान व धन की प्राप्ति भी होती है।
-पूर्वाफाल्गुनी में ब्राह्मण को घोड़ी का दान करने से सद्गति मिलती है।
– उत्तराफाल्गुनी में स्वर्ण कमल ब्राह्मण को दान देने से बाधाएं दूर हो जाती हैं व रोग से शांति मिलती है।
- हस्त नक्षत्र में रोग से निदान पाने के लिए ब्राह्मण को चांदी दान करना व जल सेवा लाभदायक होती है।
- चित्रा नक्षत्र में ताम्रपत्र, घी का दान शुभ होता है।
- स्वाति नक्षत्र में जो पदार्थ स्वयं का प्रिय हो, उनका दान करने से शांति मिलती हैऔर अंत में सद्गति मिलती है।
– विशाखा नक्षत्र में वस्त्रादि के साथ अपना कुछ धन ब्राह्मण को देने से सारे कष्ट दूर होते हैं साथही आपके पितृगण भी प्रसन्न होते हंै।
- अनुराधा नक्षत्र में यथाशक्ति कम्बल ओढ़ने तथा पहनने वाले वस्त्र ब्राह्मण को दान किये जायें तो आयु में वृद्धि होती है।
- ज्येष्ठा नक्षत्र में मूली दान देने से अभीष्ट गति प्राप्त होती है।
– मूल नक्षत्र में कंद, मूल, फल, आदि देने से पितृ संतुष्ट हो जाते हैं, स्वास्थ्य मेंलाभ व उत्तम गति मिलती है।
-पूर्वाषाढ़ा में कुलीन और वेदवेत्ता ब्राह्मण को दधिपात्र देने से कष्ट दूर हो जाते हंै।
– उत्तराषाढ़ा में घी और मधु का दान ब्राह्मण को देने से रोग में शांति होती है।
– श्रवण नक्षत्र में पुस्तक दान करना लाभदायक।
- धनिष्ठा में दो गायों का दान करने से रोग में शांति व जन्मांेतक सुख की प्राप्ति भी होतीहै।
– शतभिषा नक्षत्र में अगरु व चन्दन दान करने से शरीर के कष्ट दूर हो जाते हैं।
- पूर्वाभाद्रपद में साबुत उड़द के दान से सभी कष्ट से आराम व सुख प्राप्तहोता है।
- उत्तराभाद्रपद में सुन्दर वस्त्रों के दान से पितृ संतुष्ट होते हैं और उसे सद्गति प्राप्त होती है।
- रेवती में कांस्य के पात्र दान करना लाभदायक होता है।🕉️🌹🌷💐🕉️