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मंगलवार, 8 अगस्त 2023

कबाड़ को जल्दी करें घर से बाहर वरना हो जाएगा आपका कबाड़ा

कबाड़ को जल्दी करें घर से बाहर वरना हो जाएगा आपका कबाड़ा
नकारात्मक ऊर्जा बढ़ाता है कबाड़
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कई बार देखने में आता है कि घर में अच्छी खासी चहल-पहल रहने के बावजूद उसमें नकारात्मक ऊर्जा सी रहती है। घर के सदस्य आपस में उलझते रहते हैं। छोटी-छोटी बातों पर झगड़ा, रूठना आदि लगा रहता है। यही नहीं उनमें आलस्य भी भरा रहता है। उनमें आपसी प्यार तो होता है लेकिन टकराव भी खूब होता है। यदि आपके घर में भी ऐसा होता है तो देख लें कि कहीं आपने अपने घर को कबाड़ घर में तो नहीं तब्दील कर लिया है। कुछ लोगों में पुराना सामान सहजकर रखने की आदत होती है। चाहे वह पुराना फर्नीचर हो, पुराना लोहे का सामान हो, कपड़े या फिर कोई इलेट्रॉनिक आइटम। ऐसे सामान को सहजकर रखने के पीछे मंशा यह होती है कि वह आगे चलकर काम आ जाएगा। लेकिन ऐसा होता नहीं है। एक बार जो सामान जहां रखा रह जाता है, वह महीनों या वर्षों तक वैसे ही पड़ा रहता है। उसे हाथ लगाने तक की कोई जहमत नहीं उठाता। ऐसा लगभग सभी मध्यमवर्गीय परिवारों में होता है। शायद आपका घर भी इससे अछूता न हो।

अब सोचिए ऐसा करने से होता क्या है? प्रकृति के नियम के अनुसार इस चल संसार में प्रत्येक प्राणी और वस्तु में ऊर्जा होती है। चाहे वह सजीव हो या निर्जीव। इतना जरूर है कि सजीव वस्तु में ज्यादा ऊर्जा होती है और निर्जीव में उससे थोड़ी कम। अब होता क्या है कि जो पुराना सामान बिना इस्तेमाल के घर में वर्षों तक यूं ही पड़ा रहता है तो नकारात्मक ऊर्जा छोड़ने लगता है। इसके पीछे भी प्रकृति का नियम काम करता है। इसके मुताबिक जो प्राणी या वस्तु जितना सक्रिय रहेगा, वह उतनी ही सकारात्मक ऊर्जा प्रवाहित करेगा। इसके उलट जो जितना निष्क्रिय रहेगा, वह उतनी ज्यादा नकारात्मक ऊर्जा छोड़ेगा। इसी नियम के अनुसार घर में पड़ा पुराना सामान या सीधे तौर पर कहें कबाड़ नकारात्मक ऊर्जा छोड़ने लगता है। महीनों तक पड़े रहने से पूरे घर में धीरे-धीरे यह नकारात्मक ऊर्जा हावी होने लगती है, जिसका असर घर के प्रत्येक सदस्य पर पड़ने लगता है। वह आलसी हो जाएगा, जरा-जरा सी बात पर गुस्सा करने लगेगा या खिसयाएगा। यह सब इस में एकत्र हुई नकारात्मक ऊर्जा का ही परिणाम होता है। इसे इस तरह भी समझ सकते हैं कि जब आप घर में सारा दिन खाली पड़े रहते हैं, कुछ काम नहीं करते तो मन सुस्ताने लगता है। आलस आने लगता है और दिनभर सोने का मन करता है। यानि आपमें नकारात्मक ऊर्जा आने लगती है। ऐसा ही घर में पड़े कबाड़ के साथ होता है।

वास्तु और कबाड़
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वास्तु शास्त्र के अनुसार कबाड़ का संबंध राहु ग्रह से होता है। कबाड़ का मतलब आमतौर पर काम में नहीं आने वाला सामान, खराब या नष्ट हो चुकी वस्तु, बंद पड़ी घड़ी, खराब टीवी, मोबाइल, रेडियो, फ्रिज, पुरानी बैटरी आदि होता है। इनमें राहु ग्रह का वास होता है। जिनता कबाड़ घर में इकट्ठा होगा, राहु का प्रभाव उतना ही घर पर पड़ेगा।  जिन जातकों की राहू की महादशा, अंतरदशा या सूक्ष्म अंतर चल रहाीहो, उन्हें तो विशेष तौर पर ध्यान रखना चाहिए।

कबाड़ का असर
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– घर में किसी भी प्रकार की बंद पड़ी घड़ी, टी.वी., टेप रिर्काडर, रेडियो, ईत्यादि हों तो यह तरक्की में रूरकावट पैदा करती है।
– कबाड़घर किसी व्यक्ति को रहने, सोने अथवा किराए पर नही दिया जाना चाहिए। गृह स्वामी ऐसे व्यक्ति से सदैव परेशान रहेगा।
– उत्तर, पूर्व, ईशान, वायव्य कोण कबाड़ आदि का भण्डारण करने से अर्थहानि व मानसिक अशांति में वृद्वि होती है। आग्नेय कोण में कबाड़ का भंडारन करने अग्नि से हानि होने की संभावना होती है।
– -घर में कहीं भी मकड़ी के जाले न रहने दें। इससे घर से संपन्नता चली जाती है।
– घर की छत व बालकनी में गंदगी न रहने दें। घर की छत मस्तक के समान होती है, जिसमें कोई भी दाग जीवन में नकारात्मकता ला सकता है।
घर के कोने, कबाड़ और उसका असर
पूर्वी कोना : यहां सूर्य का अधिकार होता है। अगर इस कोने में कचरा या कबाड़ जमा रहता है तो परिवार के मुखिया पर मुसीबत बन रहती है। उसकी घर में नहीं चलती। नुकसान होने की आशंका बनी रहती है। अगर यहां गंदा पानी जमा हो तो या सीलन रहती है तो परिवार के पुरुष सदस्य पीड़ित रहते हैं।
उत्तरी-पूर्वी कोना : यहां बृहस्पति का वास होता है है। अगर इस कोण में गंदगी, कचरा या कबाड़ रहता है तो ऐसे के अधिकांश सदस्य सुस्त होंगे। घर में आलस्य रहेगा। बात-बात में झगड़े होंगे।  इस क्षेत्र में कबाड़ रखा है तो उसे तुंरत निकाल दें या घर के दक्षिण पश्चिम कोने में रख दें।
उतरी कोना : यहां बुध का वास होता है। यह रचनात्मक क्षेत्र है। इस कोने में कचरा या कबाड़ होने पर सदस्यों में रचनात्मतकता खत्म हो जाती है। खासकर लोग सलाहकार व्यवसाय या बैंकिंग क्षेत्र में उन पर इसका खासा असर रहता है। उन्हें सतर्क रहने की जरूरत है।
उत्तर-पश्चिम कोना : यहां चंद्रमा का वास होता है। इस कोने को भारी रखा जा सकता है। यहां ठोस कबाड़ के बजाय द्रव वाली वस्तु रखी जा सकती है। ऐसे पौधे रखे जा सकते हैं जिनमें नियमित रूप से पानी डालने की जरूरत हो।
पश्चिमी कोना : यहां शनि का वास होता है। इस क्षेत्र में भी कचरा नहीं होना चाहिए। शनि न्यायप्रिय ग्रह है। वह अव्यवस्था की स्थिति को पसंद नहीं करता। ऐसे में कबाड़ को यहां से निकाल देना चाहिए।
दक्षिणी पश्चिमी कोना : यह क्षेत्र राहू का स्थान होता है, इसलिए यहां सर्वाधिक सावधानी बरतनी चाहिए। यहां गंदगी और कचरा होने पर राहू अपने खराब प्रभाव देना शुरू कर देता है और परिवार के सदस्य ऐसी समस्याओं से रूबरू होते हैं। इस क्षेत्र में उस सामान को रखा जाता है, जो कीमती हो, सबसे भारी हो और लंबे समय तक जिस सामान को सुरक्षित रखना हो।
दक्षिणी कोना : यहां मंगल का वास होता है। इस क्षेत्र की ऊर्जा अग्नि के समान होती है।
अगर इस क्षेत्र में कचरा हो या नमी हो तो परिवार के सदस्यों में साहस का अभाव देखा जाता है। कई घरों में यहां सीढ़ियां बना दी जाती हैं और उसके नीचे कचरा भर दिया जाता है। यह परिवार की संपत्ति और सदस्यों के लिए हानिकारक होता है।
दक्षिणी पूर्वी कोना : यहां शुक्र का वास होता है। यह घर का सबसे समृद्ध दिखाई देने वाला स्थान होना चाहिए। यहां पड़ा कचरा अथवा कबाड़ आपकी समृद्धि को घटाता है। यहां पर फूलों वाले पौधे लगाने चाहिए।
सलाह
– घर या ऑफिस के किसी भी भाग में कबाड़ न जमा होने दें। वे सभी चीजें कबाड़ हैं, जिनका कभी इस्तेमाल नहीं होता है। जब कबाड़ साफ होता है तो जगह स्वयं अपनी ऊर्जा एवं सृजनात्मकता को बढ़ाती है।  फाइलें रखी जाने वाली अलमारियां हमेशा साफ रखें और मेज के ऊपर कोई भी फालतू सामान न रखें।
-अपनी खिड़कियां साफ रखें और धूल व मिट्टी भी साफ करें। ऑफिस की नियमित सफाई और कूड़े का डिद्ब्रबा रोज साफ करने से ऊर्जा साफ-सुथरी रहती है और उसमें वृद्धि भी होती है।-
– कबाड़ के दरवाजे का रंग काला होना चाहिए ।.कबाड़घर का द्वार लोहे अथवा टीन का बना होना चाहिए।
– कबाड़घर का द्वार एक पल्ले का होना चाहिए। कबाड़घर का दरवाजा घर के अन्य दरवाजों से छोटे आकार का होना चाहिए।
– कबाड़ घर की लम्बाई व चौड़ाई बहुत कम होनी चाहिए। कबाड़घर के नीचे तहखाना नहीं होना चाहिए।
– कबाड़ घर की दीवारों तथा फर्श पर सीलन नहीं होना चाहिए। कबाड़ घर में पानी नहीं रखना चाहिए।  कबाड़घर में किसी भी व्यक्ति का सोना या रहना अशुभ होता है।
– किसी भी प्रकार के युद्ध वाले चित्र, इंद्रजालिक तस्वीरें, पत्थर या लकड़ी के बने राक्षसों की प्रतिमाएं या फिर रोते हुए किसी मनुष्य की पेंटिंग को रखना अशुभकारी होता है
4. मुक्चयद्वार पर धार्मिक या मांगलिक चित्र या मूर्तियां जैसे ऊँ गणपति, मंगल कलश, मीन, स्वास्तिक, गायत्री मंत्र आदि के चित्र अवश्य लगाने चाहिए। इन चित्रों के प्रभाव से घर को बुरी नजर नहीं लगती है और नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।
5. घर में तुलसी का पौधा जरूर लगाएं। यह कृमिनाशक है और दूषित वायु को शुद्ध करता है। यह सौ हाथ एक वायुमंडल को शुद्ध करता है। रविवार के दिन सूर्य के संयोग से दूषित किरणें तुलसी में जन्म लेती है। रविवार के दिन तुलसी का स्पर्श व संसर्ग वर्जित है।
–  मकान के प्रवेश द्वार के समक्ष वृक्ष, स्तम्भ, कुआं तथा जल भण्डारण नहीं होना चाहिए। द्वार के सामने कूड़ा करकट और गंदगी एकत्र न होने दें यह अशुभ और दरिद्रता का प्रतीक हैं।
– मकान के किसी एक कोने में अधिक पेड़ एवं पौधे ना लगाएं, माता-पिता पर भी इसका दुष्प्रभाव  पड़ता हैं।
–  मकान के किसी भाग (आंगन , दीवारों या रसोई अथवा शयनकक्ष ) का प्लास्टर उखड़ा नहीं होना चाहिए। दरवाजे एवं खिड़कियाँ टुटी-फुटी नहीं होनी चाहिए। मुख्य द्वार का रंग काला नहीं होना चाहिए तथा अन्य दरवाजों एवं खिड़की पर भी काले रंग के इस्तेमाल से बचें।
–  मकान के मुख्य द्वार के बिल्कुल समीप शौचालय न बनावें। शौचालय की दिशा उत्तर दक्षिण में होनी चाहिए अर्थात इसे प्रयुक्त करने वाले व्यक्ति का मुँह दक्षिण में व पीठ उत्तर दिशा में होनी चाहिए।  सीढ़ियों के नीचे शौचालय के  निर्माण से बचें, यह लक्ष्मी का मार्ग अवरूद्घ करती है।


दान से धन एवं मन की शुद्धि

दान से धन एवं मन की शुद्धि
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कलियुग में दान प्रधान है । श्रुति में निर्देश है जो सिर्फ अपने लिये पकाकर खाता है, वह अन्न नहीं खाता, पाप पकाकर खाता है-'केवलाघो भवति केवलादी।' अत: अन्नदान को सर्वोपरि दान कहा गया है। 

कलियुग का धर्म केवल एक पैर अर्थात् दान के ऊपर टिका हुआ है। ईमानदारी, परिश्रम तथा धर्म अनुसार अर्जित धन-संपत्ति का दान ही पुण्य दायक होता है । लक्ष्मी माता हैं। उनका सत्कर्म के लिये उपयोग तो किया जा सकता है, परंतु सांसारिक सुख-सुविधाओं के लिये-व्यक्तिगत लाभ के लिये उनका उपभोग नहीं किया जाना चाहिये। -अर्थ अमृत है, पर असावधानी से वह जहर भी बन जाता है। जो नीति से आये और जिसका उपयोग रीति से हो, वह अर्थ अमृत है; पर अनीति से अर्जित धन जहर बन जाता है। -यदि धर्म की मर्यादा न रहे तो धन अनर्थ करता है। धन साधन है, धर्म साध्य है।

धन कमाना कठिन नहीं है, उसका धर्म-कार्यों सेवा, सहायता, दान आदि में सदुपयोग करना कठिन है। धन का धार्मिक कर्तव्यों-दान, सेवा, गोसेवा-जैसे सत्कर्म में सदुपयोग हो तो वह सुख देता है और विलासिता आदि दुष्कर्मों में उपभोग करने पर तरह-तरह के दुख देता है। ज्ञान दान श्रेष्ठ दान है। अन्नदान और वस्त्रदान कुछ समय के लिये शान्ति प्राप्त होती है, किंतु ज्ञान दान अर्थात जहाँ अध्यात्म ज्ञान का दान होता है, वहाँ सारे तीर्थ आ जाते हैं।

दान के नियम और फल
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👉 दान देने का अधिकार गृहस्थ को दिया गया है। दान में विवेक रखो। इतना दान दो कि गृहस्थ की आवश्यकता की पूर्ति में बाधा न पड़े।

👉 दान से धन की शुद्धि, स्नान से तन की शुद्धि तथा ध्यान से मन की शुद्धि होती है।

👉 जिसका धन शुद्ध नहीं, उसका दान तथा उसकी सहायता स्वीकार नहीं करनी चाहिये। 

👉 यदि सत्कर्मों में, धर्म में सम्पत्ति का सदुपयोग करोगे तो लक्ष्मीमाता तुम्हें नारायण की गोद में बिठायेंगी। 

👉 धन का दान करते रहने से धन के प्रति ममता कम होती है तथा तन से सेवा करने से देहाभिमान में कमी आती है।

👉 दान देते समय जब तुम लेने वाले को परमात्मा का रूप समझकर दान दो तभी दान सफल-सार्थक होगा। 

👉 आँगन में आये याचक को यदि कुछ नहीं मिलता है तो वह घर का पुण्य ले जाता है।

👉 याचका माँगने नहीं आता, वह तो हमको ज्ञान देने आता है कि पूर्वजन्म में मैंने किसी को कुछ दिया नहीं, इसीलिये मैं भिखारी हुआ हूँ। यदि आप भी किसी को कुछ न देंगे तो अगले जन्म में मेरे-जैसे याचक बनेंगे।

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