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बुधवार, 22 फ़रवरी 2017

विजया एकादशी व्रत कथा→ 22nd Feb, 2017.

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

विजया एकादशी व्रत कथा→ 22nd Feb, 2017.

युधिष्ठिर ने पूछा: हे वासुदेव! फाल्गुन (गुजरात महाराष्ट्र के अनुसार माघ) के कृष्णपक्ष में किस नाम की एकादशी होती है और उसका व्रत करने की विधि क्या है? कृपा करके बताइये ।

भगवान श्रीकृष्ण बोले: युधिष्ठिर ! एक बार नारदजी ने ब्रह्माजी से फाल्गुन के कृष्णपक्ष की ‘विजया एकादशी’ के व्रत से होनेवाले पुण्य के बारे में पूछा था तथा ब्रह्माजी ने इस व्रत के बारे में उन्हें जो कथा और विधि बतायी थी, उसे सुनो :

ब्रह्माजी ने कहा : नारद ! यह व्रत बहुत ही प्राचीन, पवित्र और पाप नाशक है । यह एकादशी राजाओं को विजय प्रदान करती है, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है ।

त्रेतायुग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचन्द्रजी जब लंका पर चढ़ाई करने के लिए समुद्र के किनारे पहुँचे, तब उन्हें समुद्र को पार करने का कोई उपाय नहीं सूझ रहा था । उन्होंने लक्ष्मणजी से पूछा : ‘सुमित्रानन्दन ! किस उपाय से इस समुद्र को पार किया जा सकता है ? यह अत्यन्त अगाध और भयंकर जल जन्तुओं से भरा हुआ है । मुझे ऐसा कोई उपाय नहीं दिखायी देता, जिससे इसको सुगमता से पार किया जा सके ।‘

लक्ष्मणजी बोले : हे प्रभु ! आप ही आदिदेव और पुराण पुरुष पुरुषोत्तम हैं । आपसे क्या छिपा है? यहाँ से आधे योजन की दूरी पर कुमारी द्वीप में बकदाल्भ्य नामक मुनि रहते हैं । आप उन प्राचीन मुनीश्वर के पास जाकर उन्हींसे इसका उपाय पूछिये ।

श्रीरामचन्द्रजी महामुनि बकदाल्भ्य के आश्रम पहुँचे और उन्होंने मुनि को प्रणाम किया ।
महर्षि ने प्रसन्न होकर श्रीरामजी के आगमन का कारण पूछा ।

श्रीरामचन्द्रजी बोले : ब्रह्मन् ! मैं लंका पर चढ़ाई करने के उद्धेश्य से अपनी सेनासहित यहाँ आया हूँ । मुने ! अब जिस प्रकार समुद्र पार किया जा सके, कृपा करके वह उपाय बताइये ।

बकदाल्भय मुनि ने कहा : हे श्रीरामजी ! फाल्गुन के कृष्णपक्ष में जो ‘विजया’ नाम की एकादशी होती है, उसका व्रत करने से आपकी विजय होगी । निश्चय ही आप अपनी वानर सेना के साथ समुद्र को पार कर लेंगे । राजन् ! अब इस व्रत की फलदायक विधि सुनिये :

दशमी के दिन सोने, चाँदी, ताँबे अथवा मिट्टी का एक कलश स्थापित कर उस कलश को जल से भरकर उसमें पल्लव डाल दें । उसके ऊपर भगवान नारायण के सुवर्णमय विग्रह की स्थापना करें । फिर एकादशी के दिन प्रात: काल स्नान करें । कलश को पुन: स्थापित करें । माला, चन्दन, सुपारी तथा नारियल आदि के द्वारा विशेष रुप से उसका पूजन करें । कलश के ऊपर सप्तधान्य और जौ रखें । गन्ध, धूप, दीप और भाँति भाँति के नैवेघ से पूजन करें । कलश के सामने बैठकर उत्तम कथा वार्ता आदि के द्वारा सारा दिन व्यतीत करें और रात में भी वहाँ जागरण करें । अखण्ड व्रत की सिद्धि के लिए घी का दीपक जलायें । फिर द्वादशी के दिन सूर्योदय होने पर उस कलश को किसी जलाशय के समीप (नदी, झरने या पोखर के तट पर) स्थापित करें और उसकी विधिवत् पूजा करके देव प्रतिमासहित उस कलश को वेदवेत्ता ब्राह्मण के लिए दान कर दें । कलश के साथ ही और भी बड़े बड़े दान देने चाहिए । श्रीराम ! आप अपने सेनापतियों के साथ इसी विधि से प्रयत्नपूर्वक ‘विजया एकादशी’ का व्रत कीजिये । इससे आपकी विजय होगी ।

ब्रह्माजी कहते हैं : नारद ! यह सुनकर श्रीरामचन्द्रजी ने मुनि के कथनानुसार उस समय ‘विजया एकादशी’ का व्रत किया । उस व्रत के करने से श्रीरामचन्द्रजी विजयी हुए । उन्होंने संग्राम में रावण को मारा, लंका पर विजय पायी और सीता को प्राप्त किया । बेटा ! जो मनुष्य इस विधि से व्रत करते हैं, उन्हें इस लोक में विजय प्राप्त होती है और उनका परलोक भी अक्षय बना रहता है ।

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं : युधिष्ठिर ! इस कारण ‘विजया’ का व्रत करना चाहिए । इस प्रसंग को पढ़ने और सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है ।

महाशिवरात्री की हार्दिक शुभकामनाये ।

महाशिवरात्री की हार्दिक शुभकामनाये ।
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महाशिवरात्री भगवान शंकर और भगवती पार्वती का महामिलन का महोत्सव है। यह हमें कल्याणकारी कार्य करने की ओर शिवत्व का बोध कराता है। फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन महाशिवरात्रि का पर्व आता है। शैव और वैष्णव, दोनों ही महाशिवरात्रि का व्रत रखते है। वैष्ण्व इस तिथि को शिव चतुर्दशी कहते है। भगवान शिव को वेदों में रुद्र कहा गया है, क्...योंकि दुख को नष्ट कर देते है। इस प्रकार शिव और रुद्र एक परमेश्वर के ही पर्यायवाची शब्द हैं। कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि चंद्र-दर्शन की आखिरी तिथि है, क्योंकि इसके बाद अमावस्या की रात्रि में चंद्र लुप्त हो जाता है। अमावस्या को कालरात्रि भी कहा जाता है। धर्मग्रंथों के अनुसार, फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को भगवान शंकर और भगवती पार्वती का विवाह हुआ था। शिव और शक्ति के पावन परिणय की तिथि होने के कारण इसे महाशिवरात्री का नाम दिया गया। इस दिन लोग व्रत रखकर शिव-पार्वतीाâा विवाहोत्सव धूमधाम से मनाते है। काशी में महाशिवरात्रि के दिन निकलने वाली शिव-बारात तो विश्वविख्यात है, जिसे देखने के लिए देश-विदेश से लोग पहुंचते है। बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में हर घर शिवरात्रि की उमंग में रंग जाता है।इस तिथि के मध्यरात्रिकालीन महानिशीथकाल में महेश्वर के निराकार ब्रह्म-स्वरूप प्रतीक शिवलिंग का आविर्भाव होने से भी यह तिथि महाशिवरात्रि के नाम से प्रसिद्ध हो गई। शिवपुराण के अनुसार, शिव के दो रूप है- सगुण और निर्गुण। सगुण-रूप मूर्ति में साकार होता है, जबकि शिवलिंग निर्गुण-निराकार ब्रह्म है।
महाशिवरात्रि का यह पावन व्रत सुबह से ही शुरू हो जाता है। इस दिन शिव मंदिरों में जाकर मिट्टी के बर्तन में पानी भरकर, ऊपर से बेलपत्र, आक-धतूरे के पुष्प, चावल आदि डालकर शिविंलग पर चढ़ाया जाता है. अगर पास में शिवालय न हो, तो शुद्ध गीली मिट्टी से ही शिविंलग बनाकर उसे पूजने का विधान है। इस दिन भगवान शिव की शादी भी हुई थी, इसलिए रात्रि में शिवजी की बारात निकाली जाती है। रात में पूजन कर फलाहार किया जाता है। अगले दिन सवेरे जौ, तिल, खीर और बेलपत्र का हवन करके व्रत समाप्त किया जाता है।

स्कंदपुराण महाशिवरात्रि को व्रतों में सर्वोपरि कहता है। इस व्रत के तीन प्रमुख अंग है- उपवास, शिवार्चन और रात्रि-जागरण। उपवास से तन शुद्ध होता है, अर्चना से मन पवित्र होता है तथा रात्रि-जागरण से आत्म-साक्षात्कार होता है। यही महाशिवरात्रि के व्रत का उद्देश्य है।

सही अर्थो में शिवचतुर्दशी का लक्ष्य है पांच ज्ञानेंद्रियों, पांच कर्मेद्रियों तथ मन, अहंकार, और बुद्धि-इन चतुर्दश १४, का समुचित नियंत्रण। यही सच्ची शिव-पूजा है। वस्तुतः इसी से शिवत्व का बोध होता है। यही अनुभूति ही इस पर्व को सार्थक बनाती है और यह पर्व समस्त प्राणियों के लिए कल्याणकारी बन जाता है ।

कहा जाता है कि महाशिवरात्रि के दिन भगवान् शिव हर मंदिर में लिंग रूप में प्रत्यक्ष होते है l भक्तों का मानना है कि उस दिन शिव पूजा एवं लिंगाभेशक करने पर शिव प्रसन्न होंगे l उस दिन उपवास रहकर रात भर जागारण कर पूजा एवं भजन करते है l कहा जाता है कि उस दिन स्वामी को बिल्वपत्र और अभिषेक समर्पित करने से पुनर्जन्म नहीं रहेगा और और मुक्त प्राप्त होगी l इस पर्व दिन पर शिवलिंग ज्योतिर्लिंग के रूप परिवर्तित होगा l कश्मीर में शिवरात्री उत्सव १५ दिनों तक मनाया जाता है l

शिवरात्री का व्रत फाल्गुन कृष्णा त्रयोदशी का होता है l कुछ लोग चतुर्दशी को भी इस व्रत को करते है l ऐसा माना जाता है कि सृष्टि के आदि में इसी दिन भगवान् शंकर का ब्रह्मा से रुद्रा के रूप में ,रात्री के मध्य में अवतरण हुआ था l प्रलय की बेला में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान् शिव ताण्डव करते हुये ब्रह्माण्ड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से समाप्त कर देते है l इसी लिए इसे महा शिवरात्री अथवा कालरात्री कहा गया है l

भगवान शिव अपने कर्मों से तो अद्भुत हैं ही; अपने स्वरूप से भी रहस्यमय हैं। भक्त से प्रसन्न हो जाएं तो अपना धाम उसे दे दें और यदि गुस्सा हो जाएं तो उससे उसका धाम छीन लें। शिव अनोखेपन और विचित्रताओं का भंडार हैं। शिव की तीसरी आंख भी ऐसी ही है। धर्म शास्त्रों के अनुसार सभी देवताओं की दो आंखें हैं पर शिव की तीन आंखें हैं।

दरअसल शिव की तीसरी आंख प्रतीकात्मक नेत्र है। आंखों का काम होता है रास्ता दिखाना और रास्ते में पढऩे वाली मुसीबतों से सावधान करना। जीवन में कई बार ऐसे संकट भी आ जाते हैं; जिन्हें हम अपनी दोनों आंखों से भी नहीं देख पाते। ऐसे समय में विवेक और धैर्य ही एक सच्चे मार्गदर्शक के रूप में हमें सही-गलत की पहचान कराता है।

यह विवेक अत:प्रेरणा के रूप में हमारे अंदर ही रहता है। बस जरुरत है उसे जगाने की। भगवान शिव का तीसरा नेत्र आज्ञाचक्र का स्थान है। यह आज्ञाचक्र ही विवेकबुद्धि का स्रोत है।

| शिव |

1 व्युत्पत्ति और अर्थ:
- शिव शब्द वश् शब्द से तैयार हुआ है। वश् का मतलब है प्रकाश देना, अर्थात जो प्रकाश देते है वह शिव। शिव यह स्वयंसिद्ध, स्वयंप्रकाशी है। वे स्वयं प्रकाशित रहकर विश्व को प्रकाशित करते है।

2 कुछ अन्य नाम...
- शंकर --
"शं करोति इति शंकर:।" 'शं' अर्थात कल्याण और 'करोति' अर्थात कार्य करनेवाला। जो कल्याण करते है वह शंकर।

- महाकालेश्वर --
अखिल ब्रह्माण्ड के अधिष्ठाता देव (क्षेत्रपाल देव)। वह कालपुरुष अर्थात महाकाल (महान् काल) है; अर्थात उन्हें महाकालेश्वर कहते है।

- महादेव --
'विश्वसर्जन' के एवं 'व्यवहार के विचार' के मुलत: तीन विचार होते है - परिपूर्ण पावित्र्य, परिपूर्ण ज्ञान और परिपूर्ण साधना। यह तीन जिनके अन्दर साथ में है, ऐसे देव एवं देवोके देव, अर्थात महादेव।

- भालचंद्र --
भाल के ऊपर अर्थात कपाल के ऊपर, जिन्होंने चन्द्र को धारण किया हुआ है वह भालचंद्र। शिव पुत्र गणपति जी का भी भालचंद्र, यह एक नाम है।

- कर्पूरगौर --
शिव का रंग कर्पूर जैसा (कपूर जैसा) सफ़ेद है; वस्तुत: उन्हें कर्पूरगौर ऐसा भी कहा जाता है।

महाशिवरात्रि 2017 - 24 फरवरी - 2017

महाशिवरात्रि 2017

शिव यानि कल्याणकारी, शिव यानि बाबा भोलेनाथ, शिव यानि शिवशंकर, शिवशम्भू, शिवजी, नीलकंठ, रूद्र आदि। हिंदू देवी-देवताओं में भगवान शिव शंकर सबसे लोकप्रिय देवता हैं, वे देवों के देव महादेव हैं तो असुरों के राजा भी उनके उपासक रहे। आज भी दुनिया भर में हिंदू धर्म के मानने वालों के लिये भगवान शिव पूज्य हैं।
इनकी लोकप्रियता का कारण है इनकी सरलता। इनकी पूजा आराधना की विधि बहुत सरल मानी जाती है। माना जाता है कि शिव को यदि सच्चे मन से याद कर लिया जाये तो शिव प्रसन्न हो जाते हैं। उनकी पूजा में भी ज्यादा ताम-झाम की जरुरत नहीं होती। ये केवल जलाभिषेक, बिल्वपत्रों को चढ़ाने और रात्रि भर इनका जागरण करने मात्र से मेहरबान हो जाते हैं।
देवों के देव भगवान भोले नाथ के भक्तों के लिये श्री महाशिवरात्रि का व्रत विशेष महत्व रखता हैं. यह पर्व फाल्गुन कृ्ष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन मनाया जाता है. वर्ष 2017 में यह शुभ उपवास, 24 फरवरी - शुक्रवार के दिन का रहेगा. इस दिन का व्रत रखने से भगवान भोले नाथ शीघ्र प्रसन्न हों, उपवासक की मनोकामना पूरी करते हैं. इस व्रत को सभी स्त्री-पुरुष, बच्चे, युवा, वृ्द्धों के द्वारा किया जा सकता हैं.
24 फरवरी - 2017 के दिन विधिपूर्वक व्रत रखने पर तथा शिवपूजन, शिव कथा, शिव स्तोत्रों का पाठ व "उँ नम: शिवाय" का पाठ करते हुए रात्रि जागरण करने से अश्वमेघ यज्ञ के समान फल प्राप्त होता हैं. व्रत के दूसरे दिन ब्राह्माणों को यथाशक्ति वस्त्र-क्षीर सहित भोजन, दक्षिणादि प्रदान करके संतुष्ट किया जाता हैं.

शिवरात्री व्रत की महिमा

इस व्रत के विषय में यह मान्यता है कि इस व्रत को जो जन करता है, उसे सभी भोगों की प्राप्ति के बाद, मोक्ष की प्राप्ति होती है. यह व्रत सभी पापों का क्षय करने वाला है. व इस व्रत को लगातार 14 वर्षो तक करने के बाद विधि-विधान के अनुसार इसका उद्धापन कर देना चाहिए.

महाशिवरात्री व्रत का संकल्प

व्रत का संकल्प सम्वत, नाम, मास, पक्ष, तिथि-नक्षत्र, अपने नाम व गोत्रादि का उच्चारण करते हुए करना चाहिए. महाशिवरात्री के व्रत का संकल्प करने के लिये हाथ में जल, चावल, पुष्प आदि सामग्री लेकर शिवलिंग पर छोड दी जाती है.

महाशिवरात्री व्रत की सामग्री

उपवास की पूजन सामग्री में जिन वस्तुओं को प्रयोग किया जाता हैं, उसमें पंचामृ्त (गंगाजल, दुध, दही, घी, शहद), सुगंधित फूल, शुद्ध वस्त्र, बिल्व पत्र, धूप, दीप, नैवेध, चंदन का लेप, ऋतुफल आदि.
महाशिवरात्रि 2017 
24 फरवरी
  • निशिथ काल पूजा- 24:08 से 24:59
    पारण का समय- 06:54 से 15:24 (25 फरवरी)
    चतुर्दशी तिथि आरंभ- 21:38 (24 फरवरी)
    चतुर्दशी तिथि समाप्त- 21:20 (25 फरवरी)

महाशिवरात्री व्रत की विधि

महाशिवरात्री व्रत को रखने वाले जन को उपवास के पूरे दिन भगवान भोले नाथ का ही ध्यान किया जाता हैं. प्रात: स्नान करने के बाद भस्म का तिलक कर रुद्राक्ष की माला धारण की जाती है. इसके ईशान कोण दिशा की ओर मुख कर शिव का पूजन धूप, पुष्पादि व अन्य पूजन सामग्री से पूजन करना चाहिए.

इस व्रत में चारों पहर में पूजन किया जाता है, प्रत्येक पहर की पूजा में "उँ नम: शिवाय" व " शिवाय नम:" का जाप करते रहना चाहिए. अगर शिव मंदिर में यह जाप करना संभव न हों, तो घर की पूर्व दिशा में, किसी शान्त स्थान पर जाकर इस मंत्र का जाप किया जा सकता हैं. चारों पहर में किये जाने वाले इन मंत्र जापों से विशेष पुन्य प्राप्त होता है. इसके अतिरिक्त उपावस की अवधि में रुद्राभिषेक करने से भगवान शंकर अत्यन्त प्रसन्न होते है.

शिव अभिषेक विधि

महाशिव रात्रि के दिन शिव अभिषेक करने के लिये सबसे पहले एक मिट्टी का बर्तन लेकर उसमें पानी भरकर, पानी में बेलपत्र, आक धतूरे के पुष्प, चावल आदि डालकर शिवलिंग को अर्पित किये जाते है. व्रत के दिन शिवपुराण का पाठ सुनना चाहिए. ओर मन में असात्विक विचारों को आने से रोकना चाहिए. शिवरात्रि के अगलए दिन सवेरे जौ, तिल, खीर और बेलपत्र का हवन करके व्रत समाप्त किया जाता है.

पूजन करने का विधि-विधान

महाशिवरात्री के दिन शिवभक्त का जमावडा शिव मंदिरों में विशेष रुप से देखने को मिलता है. भगवान भोले नाथ अत्यधिक प्रसन्न होते है, जब उनका पूजन बेल- पत्र आदि चढाते हुए किया जाता है. व्रत करने और पूजन के साथ जब रात्रि जागरण भी किया जाये, तो यह व्रत और अधिक शुभ फल देता है. इस दिन भगवान शिव की शादी हुई थी, इसलिये रात्रि में शिव की बारात निकाली जाती है. सभी वर्गों के लोग इस व्रत को कर पुन्य प्राप्त करते है.

महाशिवरात्रि व्रत कथा

एक बार. 'एक गाँव में एक शिकारी रहता था. पशुओं की हत्या करके वह अपने कुटुम्ब को पालता था. वह एक साहूकार का ऋणी था, लेकिन उसका ऋण समय पर न चुका सका. क्रोधवश साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया. संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी. शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा. चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि की कथा भी सुनी. संध्या होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात की. शिकारी अगले दिन सारा ऋण लौटा देने का वचन देकर बंधन से छूट गया.

अपनी दिनचर्या की भाँति वह जंगल में शिकार के लिए निकला, लेकिन दिनभर बंदीगृह में रहने के कारण भूख-प्यास से व्याकुल था. शिकार करने के लिए वह एक तालाब के किनारे बेल वृक्ष पर पड़ाव बनाने लगा. बेल-वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो बिल्वपत्रों से ढँका हुआ था. शिकारी को उसका पता न चला.

पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियाँ तोड़ीं, वे संयोग से शिवलिंग पर गिरीं. इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गए.

एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी मृगी तालाब पर पानी पीने पहुँची. शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, मृगी बोली, 'मैं गर्भिणी हूँ. शीघ्र ही प्रसव करूँगी. तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है. मैं अपने बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे सामने प्रस्तुत हो जाऊँगी, तब तुम मुझे मार लेना.' शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और मृगी झाड़ियों में लुप्त हो गई.

शिकार को खोकर उसका माथा ठनका. वह चिंता में पड़ गया. रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था. तभी एक अन्य मृगी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था. उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर न लगाई, वह तीर छोड़ने ही वाला था कि मृगी बोली, 'हे पारधी! मैं इन बच्चों को पिता के हवाले करके लौट आऊँगी. इस समय मुझे मत मार.'

शिकारी हँसा और बोला, 'सामने आए शिकार को छोड़ दूँ, मैं ऐसा मूर्ख नहीं. इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार खो चुका हूँ. मेरे बच्चे भूख-प्यास से तड़प रहे होंगे.'

उत्तर में मृगी ने फिर कहा, 'जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी, इसलिए सिर्फ बच्चों के नाम पर मैं थोड़ी देर के लिए जीवनदान माँग रही हूँ. हे पारधी! मेरा विश्वास कर मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूँ.'

मृगी का दीन स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई. उसने उस मृगी को भी जाने दिया. शिकार के आभाव में बेलवृक्ष पर बैठा शिकारी बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था. पौ फटने को हुई तो एक हष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया. शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्व करेगा.

शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृग विनीत स्वर में बोला,' हे पारधी भाई! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है तो मुझे भी मारने में विलंब न करो, ताकि उनके वियोग में मुझे एक क्षण भी दुःख न सहना पड़े, मैं उन मृगियों का पति हूँ. यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण जीवनदान देने की कृपा करो. मैं उनसे मिलकर तुम्हारे सामने उपस्थित हो जाऊँगा.'

मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटना-चक्र घूम गया. उसने सारी कथा मृग को सुना दी. तब मृग ने कहा, 'मेरी तीनों पत्नियाँ जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएँगी. अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो. मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूँ.'

उपवास, रात्रि जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाने से शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया था। उसमें भगवद् शक्ति का वास हो गया था। धनुष तथा बाण उसके हाथ से सहज ही छूट गए. भगवान शिव की अनुकम्पा से उसका हिंसक हृदय कारुणिक भावों से भर गया. वह अपने अतीत के कर्मों को याद करके पश्चाताप की ज्वाला में जलने लगा.

थोड़ी ही देर बाद मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके, किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई. उसके नेत्रों से आँसुओं की झड़ी लग गई. उस मृग परिवार को न मारकर शिकारी ने अपने कठोर हृदय को जीव हिंसा से हटा सदा के लिए कोमल एवं दयालु बना लिया.

देव लोक से समस्त देव समाज भी इस घटना को देख रहा था. घटना की परिणति होते ही देवी-देवताओं ने पुष्प वर्षा की. तब शिकारी तथा मृग परिवार मोक्ष को प्राप्त हुए.'

आज का पंचांग एवं राशिफल

🌞 ~ *आज का हिन्दू पंचांग* ~ 🌞
⛅ *आज का दिनांक - 22 फरवरी  2017*
⛅ *दिन - बुधवार*
⛅ *विक्रम संवत - 2073*
⛅ *शक संवत -1938*
⛅ *अयन - उत्तरायण*
⛅ *ऋतु - वसंत ऋतु*
⛅ *गुजरात एवं महाराष्ट्र अनुसार मास - माघ*
⛅ *मास - फाल्गुन*
⛅ *पक्ष - कृष्ण*    
⛅ *तिथि - एकादशी रात्रि 08:19 तक - रात्रि 08:20 से द्वादशी*
⛅ *नक्षत्र - पूर्वाषाढा*
⛅ *योग- सिद्धि*
⛅ *राहुकाल - दोपहर 12:34 से दोपहर 01:59 तक*
⛅ *सूर्योदय - 07:06*
⛅ *सूर्यास्त - 18:38*
⛅ *दिशाशूल - उत्तर दिशा में*
⛅ *व्रत पर्व  विवरण - विजया एकादशी, गुरु गोलवरकर जयंती  (ति.अ.)*
💥 *विशेष* - *हर एकादशी को श्री विष्णु सहस्रनाम का पाठ करने से घर में सुख शांति बनी रहती है lराम रामेति रामेति । रमे रामे मनोरमे ।। सहस्त्र नाम त तुल्यं । राम नाम वरानने ।। आज एकादशी के दिन इस मंत्र के पाठ से विष्णु सहस्रनाम के जप के समान पुण्य प्राप्त होता है l*
💥 *एकादशी के दिन बाल नहीं कटवाने चाहिए।*
💥 *एकादशी को चावल व साबूदाना खाना वर्जित है | एकादशी को शिम्बी (सेम) ना खाएं अन्यथा पुत्र का नाश होता है।*
💥 *जो दोनों पक्षों की एकादशियों को आँवले के रस का प्रयोग कर स्नान करते हैं, उनके पाप नष्ट हो जाते हैं।*
          🌞 *~ हिन्दू पंचांग ~* 🌞

🌷 *विजया एकादशी* 🌷
🙏🏻 *फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को विजया एकादशी कहते हैं। यह एकादशी अपने अपने नाम के अनुसार ही विजय प्रदान करने वाली है। इस व्रत में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस बार विजया एकादशी व्रत 22 फरवरी, बुधवार को है।*
🌷 *व्रत विधि* 🌷
🙏🏻 *व्रत के एक दिन पहले (21 फरवरी, मंगलवार) पूजा स्थान पर एक बाजोट (पटिया) स्थापित करें। इस पर सप्त धान (7 प्रकार का अनाज) रखें। इसके बाद अपनी इच्छा के अनुसार सोना, चांदी, तांबा अथवा मिट्टी का कलश बनाकर अनाज पर स्थापित करें। एकादशी की सुबह स्नान आदि करने के बाद उस कलश में पंचपल्लव (पांच तरह के पेड़ के पत्ते) रखकर भगवान श्रीविष्णु की मूर्ति स्थापित करें और विधि सहित धूप, दीप, चंदन, फूल, फल एवं तुलसी से भगवान की पूजा करें।*
🙏🏻 *व्रती (व्रत करने वाला) पूरे दिन भगवान की कथा का पाठ करें  और रात में कलश के सामने बैठकर जागरण करें। द्वादशी तिथि (23 फरवरी, गुरुवार) को कलश किसी योग्य ब्राह्मण को दान कर दें।*
🙏🏻 *इस प्रकार विजया एकादशी व्रत करने से हर प्रकार की विपरीत परिस्थिति में भी विजय प्राप्त होती है।*
          🌞 *~ हिन्दू पंचांग ~* 🌞

🌷 *शिवरात्रि* 🌷
🙏🏻 *वैसे तो भगवान शिव का अभिषेक हमेशा करना चाहिए,लेकिन शिवरात्रि(24 फरवरी,2017)का दिन कुछ खास है। यह दिन भगवान शिवजी  का विशेष रूप से प्रिय माना जाता है। कई ग्रंथों में भी इस बात का वर्णन मिलता है। भगवान शिव का अभिषेक करने पर उनकी कृपा हमेशा बनी रहती है मनोकामना पूरी होती है। धर्मसिन्धू के दूसरे परिच्छेद के अनुसार,अगर किसी खास फल की इच्छा हो तो भगवान के विशेष शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए। यहां जानिए किस धातु के बने शिवलिंग की पूजा करने से कौन-सा फल मिलता है।*
1⃣ *सोने के शिवलिंग पर अभिषेक करने से सत्यलोक (स्वर्ग) की प्राप्ति होती है ।*
2⃣ *मोती के शिवलिंग पर अभिषेक करने से रोगों का नाश होता है।*
3⃣ *हीरे से निर्मित शिवलिंग पर अभिषेक करने से दीर्घायु की प्राप्ति होती है ।*
4⃣ *पुखराज के शिवलिंग पर अभिषेक करने से धन-लक्ष्मी की प्राप्ति होती है ।*
5⃣ *स्फटिक के शिवलिंग पर अभिषेक करने से मनुष्य की सारी कामनाएं पूरी हो जाती हैं ।*
6⃣ *नीलम के शिवलिंग पर अभिषेक करने से सम्मान की प्राप्ति होती है ।*
7⃣ *चांदी से बने शिवलिंग पर अभिषेक करने से पितरों की मुक्ति होती है ।*
8⃣ *ताम्बे के शिवलिंग पर अभिषेक करने से लम्बी आयु की प्राप्ति होती है ।*
9⃣ *लोहे के शिवलिंग पर अभिषेक करने से शत्रुओं का नाश होता है ।*
🔟 *आटे से बने शिवलिंग पर अभिषेक करने से रोगों से मुक्ति मिलती है ।*
1⃣1⃣ *मक्खन से बने शिवलिंग पर अभिषेक करने पर सभी सुख  प्राप्त होते हैं ।*
1⃣2⃣ *गुड़ के शिवलिंग पर अभिषेक करने से अन्न की प्राप्ति होती है ।*
        🌞 *~   हिन्दू पंचांग ~* 🌞
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