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बुधवार, 30 मार्च 2022

भारतीय नववर्ष (विक्रमी संवत) चैत्र शुक्ल प्रतिपदा

5 मिनट अपनी संस्कृति की झलक को पढ़े-
1 जनवरी को क्या नया हो रहा है ?

* न ऋतु बदली.. न मौसम
* न कक्षा बदली... न सत्र
* न फसल बदली...न खेती
* न पेड़ पौधों की रंगत
* न सूर्य चाँद सितारों की दिशा
* ना ही नक्षत्र।।

1 जनवरी आने से पहले ही सब नववर्ष की बधाई देने लगते हैं। मानो कितना बड़ा पर्व है।

नया केवल एक दिन ही नही होता.. 
कुछ दिन तो नई अनुभूति होनी ही चाहिए। आखिर हमारा देश त्योहारों का देश है।

ईस्वी संवत का नया साल 1 जनवरी को और भारतीय नववर्ष (विक्रमी संवत) चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को मनाया जाता है। आईये देखते हैं दोनों का तुलनात्मक अंतर: 

1. प्रकृति- 
1 जनवरी को कोई अंतर नही जैसा दिसम्बर वैसी जनवरी.. चैत्र मास में चारो तरफ फूल खिल जाते हैं, पेड़ो पर नए पत्ते आ जाते हैं। चारो तरफ हरियाली मानो प्रकृति नया साल मना रही हो I

2. वस्त्र- 
दिसम्बर और जनवरी में वही वस्त्र, कंबल, रजाई, ठिठुरते हाथ पैर.. 
चैत्र मास में सर्दी जा रही होती है, गर्मी का आगमन होने जा रहा होता है I

3. विद्यालयो का नया सत्र- दिसंबर जनवरी वही कक्षा कुछ नया नहीं.. 
जबकि मार्च अप्रैल में स्कूलो का रिजल्ट आता है नई कक्षा नया सत्र यानि विद्यालयों में नया साल I

4. नया वित्तीय वर्ष- 
दिसम्बर-जनबरी में कोई खातो की क्लोजिंग नही होती.. जबकि 31 मार्च को बैंको की (audit) कलोसिंग होती है नए वही खाते खोले जाते है I सरकार का भी नया सत्र शुरू होता है I

5. कलैण्डर- 
जनवरी में नया कलैण्डर आता है.. 
चैत्र में नया पंचांग आता है I उसी से सभी भारतीय पर्व, विवाह और अन्य महूर्त देखे जाते हैं I इसके बिना हिन्दू समाज जीबन की कल्पना भी नही कर सकता इतना महत्वपूर्ण है ये कैलेंडर यानि पंचांग I

6. किसानो का नया साल- दिसंबर-जनवरी में खेतो में वही फसल होती है.. 
जबकि मार्च-अप्रैल में फसल कटती है नया अनाज घर में आता है तो किसानो का नया वर्ष और उतसाह I

7. पर्व मनाने की विधि- 
31 दिसम्बर की रात नए साल के स्वागत के लिए लोग जमकर मदिरा पान करते है, हंगामा करते है, रात को पीकर गाड़ी चलने से दुर्घटना की सम्भावना, रेप जैसी वारदात, पुलिस प्रशासन बेहाल और भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों का विनाश.. 
जबकि भारतीय नववर्ष व्रत से शुरू होता है पहला नवरात्र होता है घर घर मे माता रानी की पूजा होती है I शुद्ध सात्विक वातावरण बनता है I

8. ऐतिहासिक महत्त्व- 1 जनवरी का कोई ऐतेहासिक महत्व नही है.. 
जबकि चैत्र प्रतिपदा के दिन महाराज विक्रमादित्य द्वारा विक्रमी संवत् की शुरुआत, भगवान झूलेलाल का जन्म, नवरात्रे प्रारंम्भ, ब्रहम्मा जी द्वारा सृष्टि की रचना इत्यादि का संबंध इस दिन से है I

अंग्रेजी कलेंडर की तारीख और अंग्रेज मानसिकता के लोगो के अलावा कुछ नही बदला.. 
अपना नव संवत् ही नया साल है I

जब ब्रह्माण्ड से लेकर सूर्य चाँद की दिशा, मौसम, फसल, कक्षा, नक्षत्र, पौधों की नई पत्तिया, किसान की नई फसल, विद्यार्थी की नई कक्षा, मनुष्य में नया रक्त संचरण आदि परिवर्तन होते है। जो विज्ञान आधारित है I

अपनी मानसिकता को बदले I विज्ञान आधारित भारतीय काल गणना को पहचाने। स्वयं सोचे की क्यों मनाये हम 1 जनवरी को नया वर्ष..?

"केबल कैलेंडर बदलें.. अपनी संस्कृति नहीं"

आओ जागेँ जगायेँ, भारतीय संस्कृति अपनायेँ और आगे बढ़े I
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आप  को 2 अप्रैल से शुरू होने वाले  नव वर्ष विक्रम संवत 2079 के लिए अग्रिम शुभकामनाएं।।

प्रायः देखा जाता है कि हम आने वाले New year पर 5 दिन पहले शुभकामनाएँ भेजना शुरू कर देते हैं, परन्तु जब अपना हिन्दू नववर्ष आ रहा हे तो कोई, क्यों नहीं शुभकामनाएँ भेज रहे हैं।
चलो अब हम भी शुभकामनाएँ देना शुरू करे।   

                                     🍁"रिद्धि दे, सिद्धि दे,
वंश में वृद्धि दे, ह्रदय में ज्ञान दे,
चित्त में ध्यान दे, अभय वरदान दे,
दुःख को दूर कर, सुख भरपूर कर, आशा को संपूर्ण कर,
सज्जन जो हित दे, कुटुंब में प्रीत दे,
जग में जीत दे, माया दे, साया दे, और निरोगी काया दे,
मान-सम्मान दे, सुख समृद्धि और ज्ञान दे,
शान्ति दे, शक्ति दे, भक्ति भरपूर दें..."🍁
🍁आप  को 2 अप्रैल से शुरू होने वाले  नव वर्ष विक्रम संवत 2079 के लिए अग्रिम शुभकामनाएं।।

मंगलवार, 29 मार्च 2022

मोदीजी क्यों बदल रहे है किताबो का इतिहास

मोदीजी क्यों बदल रहे है किताबो का इतिहास....

एक फिजिक्स के प्रोफेसर ने कक्षा 6 से 12 NCERT की हिस्ट्री बुक्स के अध्ययन का निश्चय किया और उसने पाया कि लगभग 110 बातें ऐसी हैं जो संदिग्ध हैं... 

NCERT की Book में लिखा है कि दो सुल्तान, कुतुबुद्दीन ऐबक और इल्लतुतमिश ने वो मीनार बनवाया था, जिसे आज कुतुबमीनार कहा जाता है।
इस पर प्रोफेसर साहब ने RTI लगाया कि NCERT ने इस तथ्य को कहाँ से सत्यापित किया है? सत्यापित करने वाले लोग कौन थे?

इस पर NCERT की तरफ से उत्तर आया है कि...

1. विभाग के पास कोई सत्यापित प्रति उपलब्ध नही है। 
2. इस पुस्तक को प्रोफेसर मृणाल मीरी ने मंजूर किया था, जो राष्ट्रीय निगरानी समिति का हेड था।

मृणाल मीरी शिलांग का एक ईसाई है जिसे काँग्रेस ने 12 सालों तक राज्यसभा में नॉमिनेट किया था। काँग्रेस राज के दौरान यह कई मलाईदार पदों पर था और कम्युनिस्ट चर्च के गठजोड़ से इसने भारतीय इतिहास में कई झूठे तथ्य जोड़ें जो आज भी बच्चों को पढ़ाए जाते है जिसका कोई सुबूत किसी के पास नहीं है।

जैसे कक्षा 6, सामाजिक विज्ञान के पृष्ठ 46 पर ऋग्वेद के आधार पर भारत के बारे में लिखा है कि "आर्यों द्वारा कुछ लड़ाइयाँ मवेशी और जलस्रोतों की प्राप्ति के लिए लड़ी जाती थी। कुछ लड़ाइयाँ मनुष्यों को बंदी बनाकर बेचने खरीदने के लिए भी लड़ी जाती थी।"

स्पष्ट है कि किताब लिखने वाला यह साबित करना चाहता है कि भारत में भी गुलाम प्रथा थी और मनुष्यों को खरीदने बेचने की जो बातें बाइबल और कुरान में हैं वे कोई नई नहीं हैं, बल्कि वैसा ही अमानवीय व्यवहार भारत में भी होता था।

ऐसे ही वे आगे लिखते हैं "युद्ध में जीते गये धन का एक बड़ा हिस्सा सरदार और पुरोहित रख लेते थे, शेष जनता में बाँट दिया जाता था।" यहाँ भी मुहम्मद के गजवों को जस्टिफाई करने की भूमिका बनाई गई है।

आगे एक जगह लिखा है "पुरोहित यज्ञ करते थे और अग्नि में घी अन्न के साथ कभी कभी जानवरों की भी आहुति दी जाती थी।"

आगे पृष्ठ 60 पर लिखा है "खेती की कमरतोड़ मेहनत के लिए दास और दासी को उपयोग में लाया जाता था।"

तब उस प्रोफेसर ने पहले तो स्वयं अध्ययन किया, मेगस्थनीज की इंडिका आदि के आधार पर यह सिद्ध हुआ कि ये सब मनगढ़ंत लिखा जा रहा है, तब उन्होंने NCERT में RTI डाली कि इन बातों का आधार क्या है? 
आप हिस्ट्री लिख रहे हैं, रेफरेंस कहाँ हैं? ऋग्वेद की सम्बंधित ऋचाएं, अनुवाद बताया जाए और यदि नहीं है तो खंडन या सुधार किया जाए।

जानकर आश्चर्य होगा कि NCERT ने सभी 110 प्रश्नों का एक ही जवाब दिया कि हमारे पास इसका कोई प्रूफ नहीं है। इसके अलावा जवाब टालने और लटकाने का रवैया रखा। कई वर्ष ऐसे ही बीत गए। हारकर वे पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट में गये कि NCERT हमें इनका जवाब नहीं दे रही।

कोर्ट ने पिटीशन स्वीकार कर लिया और NCERT को जवाब देने के लिए कहा। तब NCERT ने कहा कि हमारी सभी पुस्तकों का लेखन जेएनयू के हिस्ट्री के प्रोफेसर ने किया है और हमने उन्हें जवाब के लिए कह दिया है। लगभग एक वर्ष बाद जेएनयू के लेखकों ने जवाब दिया कि हमने इन बातों के लिए ऋग्वेद के अनुवाद का सहारा लिया है।

ऋग्वेद में इंद्र को एक योद्धा बताया गया है और उसमें आये नरजित शब्द से यह साबित होता है कि वे लूटपाट करते थे और मनुष्यों को गुलाम बनाते थे।

इस पर इस प्रोफेसर ने संस्कृत के जानकारों को वे मंत्र बताए कि क्या इनका यही अर्थ होता है जो जेएनयू के प्रोफेसर ने किया है...

संस्कृत के विद्वानों ने एक स्वर में कहा कि जेएनयू वालों का अर्थ मनमाना, कहीं कहीं तो मूल कथ्य से बिल्कुल उलटा है। इस पर कोर्ट ने इन्हें पूछा कि क्या आप संस्कृत जानते हैं? आपने यह अनुवाद कहाँ से उठाया?

तो जेएनयू के कथित इतिहासकारों ने कहा कि वे संस्कृत का स भी नहीं जानते, उन्होंने एक बहुत पुराने अंग्रेज लेखक के ऋग्वेद के अनुवाद का इस्तेमाल किया है।

कोर्ट:- "और, जो आपने लिखा है कि लूट के माल को ब्राह्मण आदि आपस में बाँट लेते थे, उसका आधार क्या है?"
जेएनयू:- "चूंकि ऋग्वेद में अग्नि का वर्णन है और अग्नि को पुरोहित कहा गया है तो इसका अर्थ यही है कि जो जो अग्नि को समर्पित किया जा रहा है मतलब पुरोहित आपस में बाँट रहे हैं।"

अब जेएनयू के इतिहासकारों और NCERT के इन तर्कों पर माथा पीटने के सिवाय कोई चारा नहीं है और वे शायद यही चाहते हैं कि हम माथा पीटते रहें...

NCERT आगे कक्षा 11 की हिस्ट्री में लिखती हैं "गुलामी प्रथा यूरोप की एक सच्चाई थी और ईसा की चतुर्थ शताब्दी में जबकि रोमन साम्राज्य का राजधर्म भी ईसाई था, गुलामों के सुधार पर कुछ खास नहीं कर सका।"

यहाँ NCERT के लिखने के तरीके से छात्र यह समझते होंगे कि ईसाई धर्म गुलामी के खिलाफ है। जबकि सच्चाई यह है कि एक चौथाई बाइबल इन्हीं बातों से भरी हुई है कि गुलाम कैसे बनाने, उनके साथ कितना यौन व्यवहार करना, उन्हें कब कब मार सकते हैं, वगैरह वगैरह।

सच्चाई यह है कि NCERT के 2006 के पाठ्यक्रम का एक मात्र उद्देश्य था हिन्दू धर्म को जबरदस्ती बदनाम करना, यानि जो नहीं है उसे भी हिंदुओं से जोड़कर प्रस्तुत करना और ईसाइयों की बुराइयों पर पर्दा डालकर भारत में उसके प्रचार के अनुकूल वातावरण बनाना।

सोनिया गाँधी की तत्कालीन मंडली ने पूरी साजिश कर उक्त पाठ्यक्रम की रचना की थी और आज विगत 16 वर्ष से वही पुस्तकें चल रही हैं, एक अक्षर तक नहीं बदला गया।

और हाँ, उन प्रोफेसर का नाम आदरणीय नीरज अत्रि (Neeraj Atri) है, जिन्होंने कोर्ट में यह पिटीशन डाली थी, वे यूट्यूब पर हैं।

#साभार🙏

रविवार, 27 मार्च 2022

👞जूते में जीवन है!👞


 👞जूते में जीवन है!👞



गर्मियों की छुट्टी हुई तो जैसे सभी बच्चे अपने रिश्तेदारों के यहां जाते हैं तो हम भी अपनी बुआ के घर गए जूते पहनकर। एक दिन हमने देखा कि फ़ूफ़ा जी अपने पैर की मरहम-पट्टी कर रहे हैं। तो हमने पूछा क्या हुआ ?

बोले जूते ने काट लिया।

हम हैरान परेशान... तो 👞जूता 'काटता भी है'।

अगली छुट्टियों में मामा के घर गए तो उन्हें जूते में तेल लगाते पाया। हमने पूछा क्या हुआ?

बोले ये चूं चूं करता है।


अच्छा बोलता है... कमाल है ' 👞 जूता बोलता भी है'।

फिर अगली छुट्टियों में चाचा के घर गए तो उन्हें कहते सुना कि फ़लांना तो जूते का यार है...
ओह तो '👞जूते दोस्ती भी करते हैं'।

उससे अगली छुट्टियों में ताऊ जी के यहां गए तो वह किसी के बारे में कह रहे थे कि वह तो जूते खाये बिना मानेगा नहीं। शायद किसी सर जी के बारे में कह रहे होंगे।

👞अरे वाह... 'जूते खाये भी जाते हैं' मने भूख मिटाते हैं।

फिर अगली होली में देखा कि एक आदमी को गधे पर बैठाया गया है और उसके गले में जूते पड़े हैं और लोग नाच गा रहे हैं। हमने अपने पापा जी से पूछा कि ये क्या है?

तो बोले कि इस आदमी को इस साल मूर्खाधिराज चुना गया है और इसके गले में जूतों का हार पहना कर सम्मानित किया गया है।

कमाल है .... '👞जूते सम्मान प्रदान करने के काम भी आते हैं'।

थोड़ा और बड़े हुए और फुटबॉल मैच देखने का चस्का लगा तो पता चला कि सबसे अधिक गोल स्कोर करने वाले खिलाड़ी को 'गोल्डन बूट' दिया जाता है।

वाह.... पुरस्कार में सोने का 👞जूता दिया जाता है।

फिर थोड़ा और बड़े हुए तो पता चला कि वेस्टर्न टेलीविज़न और मूवीज इंडस्ट्री में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता को 'गोल्डन बूट अवार्ड' दिया जाता है।

कमाल है.... सम्मान अभिनेता का हो रहा है कि 👞जूते का!

एक दिन देखा कि एक आदमी बेहोश पड़ा है। शायद उसे मिर्गी का दौरा आया था। उसके चारों तरफ भीड़ लगी थी। तभी भीड़ में से एक बुजुर्ग ने फरमाया... जूता मंगवाओ और इसे जूता सुंघाओ। अभी ठीक हो जाएगा।

अरे वाह... '👞जूता तो औषधी भी है'।

फिर एक शादी में गये तो वहां देखा कि वर और वधु पक्ष में कुछ सौदेबाजी हो रही है। हमने अपने पापा जी से पूछा कि यह क्या हो रहा है?

उन्होंने बताया कि बेटा ये दूल्हे की सालियों ने दूल्हे के जूते चुरा लिए और अब उन्हें वापस करने के लिए रुपये मांग रही हैं।

ओह नो... 👞जूते का 'अपहरण भी हो जाता है'।

जूता काटता है, जूता बोलता है, जूता दोस्ती यारी करता है, जूता खाया जाता है। जूता सम्मान प्रदान करता है। जूता औषधी है और तो और जूते के अपहरण का भरा-पूरा व्यवसाय है।

फिर किसी ने याद दिलाया कि श्री राम चन्द्र जी के वनगमन पर श्री भरत जी ने उनके जूते अर्थात खड़ाऊँ को राजगद्दी पर विराजमान करके चौदह वर्षों तक अयोध्या का राजकाज चलाया।

तो '👞 जूता महाराज भी है'।

कुल मिलाकर मुझे तो लगता है कि '👞जूते में जीवन' है।

कश्मीरी पंडित गिरिजा टिक्कू कौन थीं?



किसी स्त्री का बलात्कार करने के उपरांत आरा मशीन से उसे दो भागों में चीर देने की किसी घटना के बारे में आपने सुना है ? और दो भाग भी ऐसे कि उसके गुप्तांग से आरी चलाते हुए दोनों वक्ष स्थलों को दो भाग में करते हुए माथे को दो भाग में चीर देना .

सुना है आपने ?
नहीं ???

लेकिन आपने फिलिस्तीन में , सीरिया में शरणार्थियों के बुरे हाल के बारे में जरूर सुना होगा. सुना है कि नहीं ? कई लोग तो फिलिस्तीन पर कवितायेँ लिख कर महान भी बन गए।

खैर!!छोडिये उसको  जिसके बारे में आपने सुना है,  आइये!उसके बारे में जानें और तय करें कि हमने उसके बारे में क्यों नहीं सुना. किसी स्त्री के साथ होने वाली इतनी लोमहर्षक घटना आप तक क्यों नहीं पहुँच पायी? किसी ने उसकी इस खौफनाक मौत पर अफ़सोस क्यों नहीं जाहिर किया?

उस स्त्री का नाम था गिरिजा टिक्कू . जो 25 वर्ष की एक ख़ूबसूरत महिला थी एवं कश्मीर के बांदीपोरा में एक शिक्षिका थी . 1990 में जब आतंकवाद बढ़ा तो वह बांदीपोरा छोड़ कर बाहर निकल गयी लेकिन वह अपना सामान नहीं ले जा पायी थी. एक दिन किसी के यह कहने पर कि अब वहां स्थिति सामान्य है, वह बांदीपोरा अपना सामान लाने गयी. लेकिन वहां से वह वापस नहीं आ पायी. एक शिक्षिका जो अपना सामान लाने गयी थी का भीड़ के द्वारा बलात्कार किया गया . लेकिन बलात्कार इस देश में कौन सी बड़ी घटना है , यह तो होता ही रहता है..... आपने सुना नहीं लड़कों से गलतियाँ हो जाती हैं . ......

लेकिन बलात्कार के बाद जो हुआ वह अत्यंत वीभत्स था एवं सम्पूर्ण मानव इतिहास को कलंकित करने वाला था . बलात्कार के बाद उसके शरीर को उसके गुप्तांगो के पास से आरी चलाकर दो भागों में काट दिया गया एवं सड़क के किनारे फ़ेंक दिया गया ..... लेकिन इतनी बड़ी घटना अखबारों के मुख्य पृष्ठ पर अपना स्थान नहीं बना पायी . देश के लोगों को इसकी खबर नहीं हुई. कोई कैंडल मार्च नहीं निकला ... कोई सभा नहीं हुई..... क्यों ?

कश्मीर की आज़ादी के नाम पर एक स्त्री से ऐसा व्यवहार क्या भुला देने योग्य था ? लेकिन ऐसा हुआ।

यहाँ यह बात दृष्टव्य है कि यह घटना 25 जून 1990 की है , उस समय V P singh प्रधानमंत्री थे एवं मुफ़्ती मोहम्मद सईद उनके गृह मंत्री।

आपको बताता चलूँ कि 19 जनवरी 1990 को जब कश्मीर में मस्जिदों से यह घोषणा की गयी कि कश्मीर के हिन्दू काफ़िर हैं एवं वे कश्मीर छोड़ दें या  इस्लाम कबूल कर लें या मारे जायें और जो पहला विकल्प चुने वे अपनी औरतों को छोड़ कर जाएँ ,

गिरिजा टिक्कू बांदीपोरा की एक कश्मीरी पंडित विवाहित महिला थी और कश्मीर घाटी के एक सरकारी स्कूल में प्रयोगशाला सहायक के रूप में काम करती थी। वह अपने पूरे परिवार के साथ कश्मीर क्षेत्र से भाग गई और जेकेएलएफ (यासीन मलिक के नेतृत्व में जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट) के "आजादी आंदोलन" के बाद जम्मू में बस गई। एक दिन, उसे किसी का फोन आया जिसने उसे बताया कि घाटी में सांप्रदायिक अलगाववादी आंदोलन शांत हो गया है और वह वापस आकर अपना बकाया वेतन ले सकती है। उसे आश्वासन दिया गया था कि वह सुरक्षित घर लौट आएगी और क्षेत्र अब सुरक्षित था।




जून 1990 में, गिरिजा घाटी लौटने के लिए निकलीं, स्कूल से अपना वेतन बकाया लिया और अपने स्थानीय मुस्लिम सहयोगी के घर का दौरा किया क्योंकि वह लंबे समय के बाद इस क्षेत्र का दौरा कर रही थीं। उसके लिए अज्ञात, उसे जिहादी आतंकवादियों द्वारा बारीकी से ट्रैक किया गया था, जिन्होंने गिरिजा को उसके सहयोगी के घर से अपहरण कर लिया था और उसे आंखों पर पट्टी बांधकर अज्ञात स्थान पर ले जाया गया था। उस सहकर्मी के अलावा, इलाके के अन्य सभी लोग या तो चुपचाप देखते रहे जब उसका अपहरण जनता के सामने किया जा रहा था, या यह देखने के लिए तैयार थे, क्योंकि उनका मानना ​​था कि वह एक 'काफिर' थी और इसलिए उन्हें बहुत ज्यादा नहीं सोचना चाहिए उसके लिए।

कुछ दिनों के बाद, उसका मृत शरीर बेहद भयानक स्थिति में सड़क के किनारे पाया गया, पोस्टमॉर्टम में बताया गया कि उसके जीवित रहने के दौरान उसे बेरहमी से सामूहिक बलात्कार किया गया, उसके साथ दुष्कर्म किया गया, बुरी तरह से प्रताड़ित किया गया और एक यांत्रिक आरी का उपयोग करके उसे दो हिस्सों में काट दिया गया। जी हाँ, एक ज़िंदा महिला के शरीर के बीचों-बीच नुकीले आरी से टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए! उसके दर्द, पीड़ा और रोने की कल्पना करना असंभव है जो उसने उस वक्त छैला होगा होगा। बस इसे देखने की कोशिश करें, यदि आप कर सकते हैं, तो 2012 के निर्भया कांड की क्रूरता भी उतनी खराब नहीं थी।


मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, अदालतों और सरकारों ने इस खूनी हत्या का कोई जवाब नहीं दिया और कोई गिरफ्तारी नहीं हुई, इस अपराध के लिए विशेष रूप से किसी का नाम भी नहीं लिया गया। अतिसक्रिय सर्वव्यापी मुख्यधारा के मीडिया ने उसकी कहानी को प्रसारित नहीं किया, जैसा कि वे कुछ समुदायों के खिलाफ अपराध के लिए करते हैं। उसके लिए न्याय मांगने के लिए कोई तख्तियां नहीं लिखी गईं, कोई विरोध नहीं, कोई आक्रोश नहीं! इस शर्मनाक अत्याचार का एकमात्र उल्लेख कश्मीरी नरसंहार की कहानियों को प्रदर्शित करने वाली वेबसाइटों पर और कांग्रेस के पूर्व कैबिनेट मंत्री सलमान खुर्शीद द्वारा "बियॉन्ड टेररिज्म- ए न्यू होप फॉर कश्मीर" नामक पुस्तक में था।


बीस साल की एक युवती, जिसने प्रयोगशाला सहायक के रूप में काम किया, राजनीति से कोई संबंध नहीं, इतनी घिनौनी क्रूरता से गुजरना पड़ा उसको जिसका कोई गुनाह नहीं था| शायद एक ही गुनाह था कि गिरिजा टिक्कू एक भारतीय थी, एक कश्मीरी पंडित, एक हिंदू महिला थी, इसलिए किसी ने यहां न्याय नहीं मांगा और न ही उसके दोषियों को सजा मिलते देखा।


1989-90 के बाद से कश्मीर में ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जहां न केवल आतंकवादियों को ले जा रही जिहादी भीड़, बल्कि कभी-कभी विशेष समुदाय के पड़ोसी और सहयोगी बड़ी संख्या में हिंदू घरों के बाहर 'आजादी आजादी' के नारे लगाते हुए आते थे, जबरन अंदर घुस जाते थे और फिर हिंदू महिलाओं के साथ बलात्कार और तुरंत हिंदू पुरुषों को गोली मार देते थे, कुछ अन्य इतने आतंकित थे कि उन्हें अपनी महिलाओं और बेटियों की जान और सम्मान बचाने के लिए इस्लाम में परिवर्तित होना पड़ा।


तब से घाटी आतंकवादियों का अड्डा बन गई और कभी प्रसिद्ध हैवन-ऑन-अर्थ अपने मूल मूल निवासियों के लिए रक्तपात और घृणा के नर्क में बदल गया। तीन दशक बाद भी, 2020 में कश्मीरी पंडित होना अभी भी कश्मीर में एक अपराध है|

 विषय यह है कि गिरिजा टिक्कू की खबर आप तक कभी क्यों नहीं पहुंची . एक व्यक्ति को अभी हाल ही में फोर्सेज ने जीप के आगे बिठाकर घुमाया तो इसपर काफी चर्चा हुई एवं उसके मानवाधिकार पर गहरी चिंता जाहिर की गयी तो फिर गिरिजा टिक्कू के मानवाधिकार का क्या हुआ? उसके परिवार पर क्या बीती होगी? मैं अभी जब उसके यंत्रणा की कल्पना करता हूँ तो सिहर उठता हूँ ......

 कश्मीर मांगे आज़ादी का समर्थन करने वालों से मैं पूछना चाहता हूँ कि आपने कभी गिरिजा टिक्कू के बारे में क्यों नहीं बातें की ? आपको कभी गिरिजा टिक्कू के बारे में क्यों पता नहीं चला? कश्मीर की आजादी किसके लिए ?  कश्मीर मांगे आज़ादी या कश्मीर मांगे निज़ामे मुस्तफा ?  का नारा लगाने वाले या कश्मीर मांगे आज़ादी का समर्थन करने करने वाले, एक बार गिरिजा टिक्कू को जरूर याद कर लें!!!


मैं सोचता हूँ कभी गिरिजा टिक्कू के ऊपर एक कविता लिखूंगा. कितना दर्द , कितनी असह्य पीड़ा से गुजरी होगी वह, जब उसके शरीर को शर्मशार करने के बाद आरी से दो भागों में काटा जा रहा होगा और उन्मादी भीड़ मज़हबी नारे लगा रही होगी एवं चिल्ला रही होगी “कश्मीर मांगे आज़ादी”.   यह सोचकर ही मेरी कलम रूक जाती है . मैं कभी इससे ज्यादा नहीं सोच पाता हूँ।


यह सत्य है गिरिजा टिक्कू तुम्हारी पीड़ा को मैं शब्द दे सकूं इतनी क्षमता नहीं है अभी मुझमें . लेकिन एक दिन मैं लिखूंगा तुम्हारे लिए एक छोटी सी कविता. ना ना उस लोमहर्षक घटना के बारे में नहीं बल्कि उससे पहले के बारे में जब तुम  अपने पिता की एक प्यारी बेटी थी और कश्मीर की वादियों में उन्मुक्त तितली की भांति घुमती फिरती थी अपने भविष्य के सपने बुनते हुए. तुम्हारी उस ख़ुशी के बारे में जब तुम्हे शिक्षिका की नौकरी मिली थी और हाँ तुम्हारे  प्रेम के बारे में . मैं लिखूंगा गिरिजा टिक्कू यह वादा रहा।


मेरा मन उनके प्रति घृणा से भर जाता है, जो पत्थरबाजों की लड़ाई लड़ने सुप्रीम कोर्ट चले जाते हैं लेकिन कभी तुम्हारी चर्चा नहीं करते ....                                   
मैं शर्मिंदा हूँ ......

अपनी और अपनों की सुरक्षा के लिए इन पिशाचों के भयावह पैशाचिक कृत्यों को जानना ज़रूरी है।

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