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गुरुवार, 29 दिसंबर 2022

कार में ब्रेक क्यों लगाते हैं...?

एक बार भौतिक विज्ञान की कक्षा में शिक्षक ने विद्यार्थियों से पूछा:- कार में ब्रेक क्यों लगाते हैं...?




एक छात्र ने उठकर उत्तर दिया:- सर, कार को रोकने के लिए

एक अन्य छात्र ने उत्तर दिया:-कार की गति को कम करने और नियंत्रित करने के लिए
 
एक अन्य ने कहा:- टक्कर से बचने के लिए

जल्द ही,जवाब दोहराए जाने लगे, इसलिए शिक्षक ने स्वयं प्रश्न का उत्तर देने का निर्णय लिया... 

चेहरे पर एक मुस्कान के साथ उन्होंने कहा:-मैं आप सभी की सराहना करता हूं कि आप इस सवाल का जवाब देने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि मेरा मानना ​​​​है कि यह सब व्यक्तिगत धारणा का विषय है। पर मैं इसे इस तरह से देखता हूं:-कार में ब्रेक, हमें इसे और तेज चलाने में सक्षम बनाते हैं.....

कक्षा में गहरा सन्नाटा छा गया! इस जवाब की किसी ने कल्पना नहीं की थी
 
शिक्षक ने बात जारी रखते हुए कहा:-एक पल के लिए,मान लेते हैं कि हमारी कार में कोई ब्रेक नहीं है। अब हम अपनी कार को कितनी तेज चलाने के लिए तैयार होंगे ?

आगे उन्होंने कहा:- ये ब्रेक ही हैं जिनके कारण हम कार को तेजी से चलाने की हिम्मत करते हैं और अपने गंतव्य तक पहुंच सकते हैं.... 

कक्षा के सभी छात्र सोच में पड़ गए। उन्होंने पहले कभी इस तरह से "ब्रेक" के बारे में नहीं सोचा था।

आइए विचार करें!
जीवन में हमारे सामने कई ऐसे ब्रेक आते हैं जो हमें निराश करते हैं। हमारे माता-पिता, शिक्षक,शुभचिंतक और हमारे मित्र हमारी प्रगति की दिशा या जीवन में निर्णय के बारे में हमसे पूछते हैं... 

हम उनके प्रश्नों तथा जीवन की कठिन स्थितियों को "ब्रेक" के रूप में देखते हैं जो हमारी गति को बाधित करते हैं..., 

लेकिन कैसा हो.....अगर हम उन्हें अपने समर्थक या उत्प्रेरक के रूप में देखें
 
ऐसे उपकरण के रूप में जो हमें जोखिम लेने में सक्षम बनाते हैं,साथ ही यह सुनिश्चित करते हैं कि हम अपनी रक्षा कर सकें..... 

क्योंकि कभी-कभी हमें रुकना पड़ता है। यहां तक कि एक कदम पीछे भी हटना पड़ता है ताकि हम एक लंबी छलांग लगा सकें.... 

ऐसे सवालों और परिस्थितियों (समय-समय पर ब्रेक) के कारण ही हम आज जहॉं हैं, वहां पहुँचने में कामयाब रहे हैं.... 

जीवन में इन "ब्रेक" के बिना हम फिसल सकते थे,दिशा खो सकते थे या एक दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना का शिकार हो सकते थे.... 

"ब्रेक"
 हमें वापस पीछे धकेलने या हमें बांधने के लिए नहीं होते बल्कि वे हमें पहले की तुलना में तेजी से आगे बढ़ने में सहायक होते हैं ताकि हम अपने गंतव्य तक शीघ्र और सुरक्षित पहुंच सकें.... 

क्या हम अपने जीवन में 'ब्रेक' के लिए आभारी हैं । या हम उन्हें केवल अपने काम में बाधा के रूप में देखते हैं ?

जब हम जीवन में कठिन परिस्थितियों से गुजरते हैं तो पहले से ज्यादा मजबूत होकर उभरते हैं...?

जो भी हो कुछ भी करने के लिए शुरुवात जरूरी होता है आप भी सही समय पर और सही मुहूर्त से शुरुवात करे !!

सोमवार, 26 दिसंबर 2022

क्या बॉयकॉट बॉलीवुड ट्रेंड के पीछे राजनैतिक कारण हैं ?

 

उन लोगों के लिए जो सोचते हैं कि बहिष्कार के पीछे बीजेपी है:

  • देखिए, अगर 100 रुपये टिकट की कीमत पर 1 करोड़ लोग फिल्म देखने जाते हैं, तो फिल्म 100 करोड़ रुपये कमाती है।
  • अब भारत की 18 साल से ऊपर की आबादी 95 करोड़ है!
  • अब, 2019 के चुनावों के अनुसार, भाजपा का वोट प्रतिशत लगभग 37 प्रतिशत था।
  • 18 वर्ष से अधिक आयु के लगभग 60 प्रतिशत लोग बचे हैं, साथ ही किशोर भी हैं जिनके लिए टिकट अनिवार्य है।
  • अब बीजेपी के ये सारे वोटर भले ही फिल्म का बहिष्कार कर रहे हों, लेकिन फिल्म को सुपरहिट करने वाले भी काफी से ज्यादा लोग बचे हैं!

मैं जो समझाने की कोशिश कर रहा हूं वह यह है कि बहिष्कार सभी पार्टी लाइनों में है! अलग-अलग राजनीतिक विचारधारा वाले लोग बॉलीवुड का बहिष्कार कर रहे हैं।

यह कोई रहस्य नहीं है कि एक विशेष समुदाय कभी बीजेपी को वोट नहीं देता है, वह समुदाय अब लगभग 30-35 प्रतिशत है! यहां तक ​​कि अगर इस समुदाय के 1 करोड़ लोग भी एक फिल्म देखने जाते हैं, तो यह 100 करोड़ रुपये कमा सकती है। फिर फिल्में क्यों नहीं चल रही हैं?

इसलिए, मुझे नहीं लगता कि बॉलीवुड के बहिष्कार के पीछे कोई राजनीतिक कारण है। यदि यह राजनीतिक बहिष्कार होता तो मुझे नहीं लगता कि यह सफल होता।

अगर इस प्रकार पोलिटिकल पार्टियां फ़िल्में हिट या फ्लॉप करा पातीं तो न नरेंद्र मोदी जी के ऊपर बानी फिल्म फ्लॉप होती न राहुल गाँधी के !

एकता कपूर जिस तरह के एडल्ट वेब सीरीज बनाती है तो क्या उनकी मानसिकता भी ऐसी ही है?

 

मैंने कहीं पढ़ा था , कि एकता कपूर छोटी उम्र में ही अपने ड्राइवर के साथ भाग गई थी ,

अगर ये सच है तो आप ही सोच लीजिये उनकी सोच और परवरिश कैसी होगी ?

बाकी उनके किये काम से पता चलता है।

टीवी पर जो गंद मचा हुआ है आजकल वो सब इसी के देन है ।

एक पत्नी के 4 -6 पति ,

एक पति की 4 -5 पत्नियां ,

दादी बनने वाली की शादी ,

और सास और बहु एक समय में गर्भवती ,

घर के बच्चों का भी कहीं ना कहीं चक्कर वो भी स्कूल वाली ऐज में ,

घर में हमेशा कलेश होना ,

घर के मर्द सारा दिन कुर्ता पायजामा / 3 पीस सूट पहन के घर में बैठे रहते हैं।

सारा घर कोई न कोई षड़यंत्र करता रहता है ,

दुखियारी माँ / बहु / बेटी

बेचारा बाप / बेटा/ भाई

तो ऐसी है एकता कपूर

क्या पठान मूवी का बॉयकॉर्ट होना चाहिए या नहीं?

 क्या पठान मूवी का बॉयकॉर्ट होना चाहिए या नहीं?

यदि आप सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या(?) से दुखी है

यदि आप सोनू निगम जैसे प्रतिभाशाली गायकों के करियर खतम करने से दुखी है

यदि आप सनी देओल बॉबी देओल विवेक ओबेरॉय अभय देओल विद्युत जामवाल जैसे कई प्रतिभाशाली लेकिन राष्ट्रवादी नायकों के कैरियर को तबाह करने से दुखी है

यदि आप कंगना राणावत जैसी राष्ट्रवादी अभिनेत्री को परेशान करने से दुखी है

तो आपको उस पाकिस्तान नियंत्रित बॉलीवुड को तबाह करने के लिए और राष्ट्रवादी सिनेमा को मजबूत करने के लिए बिना तर्क वितर्क के इस फिल्म पठान का बॉयकॉट करना ही पड़ेगा!! यही लोकतांत्रिक विरोध है और लोकतांत्रिक तरीका है भारत में राष्ट्रवादी शक्तियों को मजबूत करने का।

आज सिर्फ चुनावों में वोटिंग से सरकार नहीं बनती है । सिर्फ सरकार और सेना देश की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं कर सकती है जनता को भी अंदरूनी राष्ट्रविरोधी शक्तियों को लोकतांत्रिक तरीके से कमजोर करने में पूरा सहयोग देना होगा।

हर वेब सीरीज और फिल्म में पाकिस्तान नियंत्रित बॉलीवुड कुछ ना कुछ एजेंडा घुसा ही देता है देश को कमजोर करने का या युवाओं को दिग्भ्रमित करके नशे या कु–संस्कृति की तरफ ले जाने का।

तुनिषा आत्महत्या हो , श्रद्धा वाकर हत्याकांड हो या उर्मि वैष्णव या शांतिदेवी हत्याकांड हो उसकी शुरुआत बॉलीवुड की बनाई संस्कृति से ही होती है । जिसमें लड़कियों के दिमाग में भरा जाता है कि किसी भी मनुष्य से शादी करो सब एक हैं। लेकिन पर्दे की पीछे की बातों को बॉलीवुड ने कभी नहीं दिखाया। कभी नहीं बताया की किसी संस्कृति में लड़की से छुटकारा पाने का उपाय तलाक या मायके भेजना है । और किसी संस्कृति में पत्नी से छुटकारा पाने का उपाय हत्या करके शव के टुकड़े करना है।

भारत पर हमले हमेशा कई तरीके से हुए हैं।

अप्रत्यक्ष हमले कविताओं, कहानियों , पत्रिकाओं, समाचारपत्रों, धार्मिक सभाओं, फिल्मों धारावाहिकों वेब सीरीज के माध्यम से ज्यादा हुए हैं।

आज सोशल मीडिया पर बॉलीवुड और राष्ट्रविरोधी शक्तियां मुखर हैं जो सिर्फ मनोरंजन के नाम पर मजाक मजाक में आपके और बच्चो के दिमाग में कचरा भर रहे हैं। हमको पता ही नहीं पड़ रहा है कि अनजाने में हमारे दिमाग में क्या भर दिया गया है।

आप अंदर ही अंदर करोड़ो लोगों को आसानी से पहले संस्कृति से दूर करो , फिर धर्मनिरपेक्षता सहिष्णुता के नाम पर भीरू कायर बना दो, राष्ट्रवाद से दूर कर दो।

लाल बहादुर शास्त्री जी के एक आव्हान पर अमीर गरीब सबने अपना सहयोग दिया था सेना को।

आज कितने लोगों वैसा करेंगे??

उल्टे सेना के मरने पर हारने पर देश में तालियां बजाने वालों की फौज खड़ी हो गई है।

सोचिए !! तर्क , निष्पक्षता और बुद्धिजीवी का चोला उतार कर फेंकिए और शतरंजी चालों को समझने में निपुण बनिए।

वरना आपको पता भी नहीं पड़ेगा और आप खुद अनजाने में अपने देश को तोड़ देंगे संस्कृति को नष्ट कर देंगे।

फन मनोरंजन आवश्यक है जीवन में लेकिन जरूरी नहीं की उसके नाम पर हम किसी भी व्यक्ति को अपने दिमाग में कचरा भरने दें!

कुछ लोग 300 या 500 लोगों के रोजगार की खातिर मूवी देखने की बात कर रहे हैं तो ऐसे में आपको साल में आने वाली सभी 800–900 फिल्में देखनी चाहिए।

पठान तो मूवी राइट्स सैटेलाइट राइट्स म्यूजिक राइट से अपना खर्च निकाल लेगी।

शाहरुख और दीपिका के पास पैसे की कोई कमी नहीं है वो इन 500 लोगों के लिए अपना मेहनताना छोड़ सकते हैं।


ऐसे जीव जिनकी कभी मृत्यु ही नहीं होती

ऐसे जीव जिनकी कभी मृत्यु ही नहीं होती

हाइड्रा

इसे आप बहुत सिरों वाला जीव समझ सकते हैं। इसकी कभी भी प्राकृतिक मृत्यु नहीं होती। हाइड़ा अपने शरीर को अनेक भाग में विभाजित करके प्रत्येक भाग से ग्रोथ करके नए हाइड़ा में विकसित हो जाता है। देखने में यह आपको ऑक्टोपस जैसा लग सकता है। लेकिन पूर्णतः इसका अंत नहीं होता है।

टार्डीग्रेड

पानी में रहने वाला आठ पैरों और 4 एमएम लंबा जीव 30 वर्षों तक बिना, खाए पीए रह सकता है और इसमें अंतरिक्ष में भी जिंदा रहने की क्षमता है। यह लगभग माइनस 272 डिग्री में बिना किसी परेशानी के रह सकता है। वहीं, करीब 150 डीग्री की गर्मी भी आराम से सह लेता है।

प्लेनरियन फ्लेटवर्म

यह प्राणी अमर है। आप इसके लगभग दो सौ टुकड़े कर दें, तो भी हर टुकड़े से एक जीव बन जाएगा। यहीं नहीं, इसके सिर और नर्वस सिस्टम को भी टुकड़ों में काट दें, तो भी यह फिर से बनने लगता है। इसके सेल्स डेड भी हो जाते हैं तो भी ये नए जीवों को अपने आप से निर्माण कर सकता है।

लम्बी लंगफिश

कहा जाता है कि यह मछली पांच साल तक बिना कुछ खाए पीये जीवित रह सकती है। विशेषकर अफ्रीका में पाई जाने वाली यह मछली सूखा पड़ने पर खुद को जमीन में दफन कर लेती है। सूखे के मौसम के दौरान जब यह जमीन के अंदर- होती है, तब अपने शरीर के मेटाबोलिज्म को 60 गुना तक कम कर लेती है।

जेलफिश

यह अपने ही सेल्स को बदल कर फिर से युवा अवस्था में पहुंच जाती है और यह चक्र चलता ही रहता है।

अलास्कन वुड फ्रॉग

यह मेढक भी अमर है। अलास्का में जब तापमान माइनस 20 डिग्री गिर जाता है, तब इस मेढक का शरीर लगभग फ्रीज हो जाता है और यह शीतनिद्रा में सो जाता है। तब यह लगभग 80 प्रतिशत तक बर्फ में जम जाता है। इस दौरान उसका सांस लेना भी बंद हो जाता है। हृदय की धड़कन भी बंद हो जाती है। डॉक्टरी भाषा में यह मर चुका होता है, लेकिन जब वसंत की शुरुआत होती है और इसके ऊपर से बर्फ हटती है तो इसके हृदय में अचानक से इलेक्ट्रिक चार्ज उत्पन्न होता है और उसका हृदय फिर से धड़कने लगता है। इसे फ्रोजन फोग भी कहते हैं।

संघ क्यों चुप है ??

*संघ क्यों चुप है ??*

_आज मैं जब सुबह सुबह घूमने निकला, तो सामने से एक परिचित किन्तु पक्के कर्मकांडी हिन्दू महानुभाव भी साथ हो लिये। देश- विदेश की चर्चा एवं राजनीतिक चर्चा आजकल प्रिय विषय है ही। तो वह बन्धु चर्चा करते करते कश्मीर से कैराना व केरल से बंगाल तक मानसिक व वाचालिक भ्रमण करने लगे।मैं चुप हो उनकी सुन रहा था। तभी अचानक बोले "वहां इन स्थानों पर हिन्दू परेशान है। आखिर संघ क्यों चुप है - इस मामले में आखिर संघ कर क्या रहा है?"_

*अब तो मुझे जवाब देना ही पड़ा। मैने कहा "संघ क्या है?"* 
*बोले "हिन्दुओं का संगठन।"* 

मैं बोला "तो आप हिन्दू हैं?" 
वह बोले "कैसा प्रश्न है यह आपका? मैं कट्टर सनातन हिन्दू हूं।" 

तब मैने कहा तो क्या आप जुडे हैं संघ से?" 
वह बोले.. "नहीं तो" 

तब मैने पूछा "आपका बेटा, पोता, नाती या परिवारजन कोई रिश्तेदार जुड़ा है क्या?"  
तब बोले "नहीं कोई नहीं। बेटा नौकरी पर है, फुर्सत नहीं मिलती उसे। पोता नाती विदेश में सैटल हो चुके हैं। रिश्तेदार बडे व्यवसायी हैं। उसी में व्यस्त हैं व शेष घर पर ही रहते हैं और बच्चों को तो कोचिंग से फुर्सत नहीं मिलती।" 

_मैने कहा - इसका मतलब यह हुआ कि संघ आपके व आपके परिवार व रिश्तेदारों को छोडकर शेष अन्य हिन्दुओं का संगठन है?_
_वह चिढकर बोले "आज क्या हुआ है आपको? कैसी बात कर रहे हो आप? अरे भाई ऐसी स्थिति मेरी अकेले की थोड़े है। देश में 90% लोग ऐसे हैं  जिनको अपने काम से फुर्सत ही नहीं मिलती है। तो यह आप केवल मुझ पर ही क्यों इशारा कर रहे हो? काम ही तो पूजा है, काम नहीं करेंगे तो देश कैसे चलेगा?"_ 

मैने फिर कहा "तो मतलब आपके हिसाब से संघ से केवल 10% हिन्दू लोग ही जुड़े हैं।" 

*वह बोले "जी नहीं साहब, मेरे वार्ड में रहते सारे हिन्दू ही है। कुल 10000 की जनसंख्या है वार्ड में हिन्दुओं की। पर सुबह सुबह देखता हूं बस रोज तो उसमें से भी केवल 10-15 लोग ही नजर आते हैं संघ की शाखा में। बाकी कभी उत्सव त्योहार पर ही नजर आते हैं।"*

मैने पूछ लिया कि कभी जाकर मिले उनसे?  
बोले "नहीं.." 

मैंने पूछा कभी उनकी कोई मदद की?" 
बोले "नहीं"

मैं "कभी उनके उत्सवों कार्यक्रमों में भागीदारी की?" 
बोले "नहीं" 

मैं "तो फिर आप की संघ से यह सारी अपेक्षा क्यों ?

*मैं भी तो खीज गया था अन्दर से आखिर बोल ही पड़ा "तो ठेका लिया है संघ ने आप जैसे हिन्दुओं का? क्या वह संघ के सारे लोग बेरोजगार हैं? उनके पास अपना काम नहीं है,या उनका अपना कोई परिवार नहीं हैं क्या? आप तो अपने व्यवसाय व परिवार की चिन्ता करें, बस। और वह अपने व्यवसाय व परिवार की भी चिन्ता करें व साथ में आप जैसे अकर्मण्य, एकांकी, आत्मकेंद्रित हिन्दुओं की भी चिन्ता करें ?*

 यह केवल उनसे ही क्यों चाहते हैं आप ?

 क्योंकि वह भारतमाता की जय बोलते हैं, देश से प्यार करते हैं, वन्देमातरम कहते हैं? 

क्या यह करना गुनाह है उनका? इसलिये उन से आप यह जजिया वसूलना चाहते हैं?जो आप सभी समर्थ होकर भी नहीं करना चाहते वह सब कुछ वह करें। वही कश्मीर, कैराना व बंगाल तथा आप जैसों की चिन्ता करें? देश व समाज की हर तरह की आपदा व संकटों में वही अपना श्रम या धन व जीवन तक बलिदान करें? उनको क्यों आपकी तरह मूक या तटस्थ बने रहने का हक नहीं है ? क्यों वही अपना घर परिवार सब छोडकर केवल आप जैसों के लिये ही जियें ?

*कभी सोचा है कि जब वह आप से चाहते हैं कि आप उनको बल दो, साथ दो, समर्थन दो, उन्हें ऐसे 10% पर ही अकेला मत छोड़ो।* 

तब आप उनको निठल्ला, फालतू व पागल समझ कर उनकी उपेक्षा करते हो-और इतना ही नहीं उन्हैं साम्प्रदायिक कह कर गाली देते हो। अपने को सेक्यूलर मानकर अपनी शेखी बघारते हो।केवल अपने घर-परिवार, व्यवसाय को प्राथमिकता देते हो तथा अपने बच्चों का भविष्य बनाने में ही जुटे रहते हो।

*अगर वह हिन्दू संगठन वाले हैं, तो आप जैसे भी तो सारे हिन्दू ही हैं। तो जो कर्तव्य उनका बनता है वह आपका क्यों नहीं बनता ? बस जरा यह तो स्पष्ट करें। कि क्या वही हिन्दू हैं आप हिन्दू नहीं है?*

स्मरण करो, भगतसिंह को फांसी केवल इसलिये हुई थी एव॔ आजाद को भी इसीलिये अकेले लड़कर मौत को गले लगाना पडा था क्योंकि अगर यह आप जैसे शेष 90% हिन्दू हमें क्या करना कहकर सोये हुये ना होते, यह आप जैसे 90% हिन्दू आत्मकेन्द्रित हो हमें क्या फर्क पड़ता है कहकर ना जी रहे होते। उनके समर्थन में खुलकर आये होते तो उनको फांसी देने या मार सकने जितनी हिम्मत या औकात तब भी अग्रेजों में नहीं थी। अगर तब यह 90 % हिन्दू आपकी तरह तमाशा ना देखते, कभी इक्ठ्ठे होकर केवल एक बार अयोध्या पहुंच कर  जय श्रीराम का नारा लगा देते तो मंदिर कब का बन गया होता।
अगर हिंदूओ मे जरा सी भी शर्म होती तो मात्र कुछ करोड़ गद्दार वंदेमातरम,भारत माता की जय का विरोध करने की हिम्मत नही कर पाते।

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मंगलवार, 20 दिसंबर 2022

साइकिल चलाने वाले दुष्ट हैं। यूरो एक्ज़िम बैंक लिमिटेड के जनरल डायरेक्टर ने अर्थशास्त्रियों को सोचने पर मजबूर कर दिया जब उन्होंने कहा:

 

साइकिल चलाने वाले दुष्ट हैं।

यूरो एक्ज़िम बैंक लिमिटेड के जनरल डायरेक्टर ने अर्थशास्त्रियों को सोचने पर मजबूर कर दिया जब उन्होंने कहा:

"एक साइकिल चालक देश की अर्थव्यवस्था के लिए एक आपदा है:

वे कार नहीं खरीदते हैं और खरीदने के लिए पैसे उधार नहीं लेते हैं।

वे बीमा पॉलिसियों के लिए भुगतान नहीं करते हैं।

वे ईंधन नहीं खरीदते हैं, आवश्यक रखरखाव और मरम्मत के लिए भुगतान नहीं करते हैं।

वे सशुल्क पार्किंग का उपयोग नहीं करते हैं।

न ही गंभीर दुर्घटना का कारण बनता है।

उन्हें बहु-लेन राजमार्गों की आवश्यकता नहीं है।

वे मोटे नहीं होते।

स्वस्थ लोगों की न तो जरूरत है और न ही अर्थव्यवस्था के लिए उपयोगी।

वे दवा नहीं खरीदते हैं। वे अस्पतालों या डॉक्टरों के पास नहीं जाते हैं।

देश की जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में कुछ भी नहीं जोड़ा जाता है।

इसके विपरीत, हर नया मैकडॉनल्ड्स रेस्तरां कम से कम 30 नौकरियां पैदा करता है: 10 हृदय रोग विशेषज्ञ, 10 दंत चिकित्सक, 10 आहार विशेषज्ञ और पोषण विशेषज्ञ, और जाहिर है, जो लोग रेस्तरां में ही काम करते हैं।

सावधानी से चुनें:

साइकिल चालक या मैकडॉनल्ड्स?

यह विचार करने योग्य है।

चलना और भी अच्छा है। पैदल चलने वाले तो साइकिल भी नहीं खरीदते।

तस्वीर गूगल

धन्यवाद 🥰

रिसोर्ट मे शादियां ! नई सामाजिक बीमारी

 📌 रिसोर्ट मे शादियां !
      नई सामाजिक बीमारी  

कौन जिम्मेदार !
क्या निवारण सम्भव है
================
मर्ज बढ़ता गया ज्यों-ज्यों दवा करी

समाज प्रमुख चिल्ला चिल्ला कर थक गए
चिंतन करने वाले अभी भी चिंतन में लगे हैं
 किस तरह समाज को राह दिखाई जाए
किस तरह समाज को दिखावे के दंश से मुक्त किया जाए

हम बात करेंगे शादी समारोहो में होने वाली भारी-भरकम व्यवस्थाओं
और उसमें खर्च होने वाले अथाह धन राशि के दुरुपयोग की



सामाजिक भवन अब उपयोग में नहीं लाए जाते हे
शादी समारोह हेतु यह सब बेकार हो चुके हैं
कुछ समय पहले तक शहर के अंदर मैरिज हॉल मैं शादियां होने की परंपरा चली परंतु वह दौर भी अब समाप्ति की ओर है
अब शहर से दूर महंगे रिसोर्ट में शादीया होने लगी है

शादी के 2 दिन पूर्व ही ये रिसोर्ट बुक करा लिया जाते हैं और शादी वाला परिवार वहां शिफ्ट हो जाता है
आगंतुक और मेहमान सीधे वही आते हैं और वहीं से विदा हो जाते
इतनी दूर होने वाले समारोह में जिनके पास अपने चार पहिया वाहन होते हैं वहीं पहुंच पाते हैं
और सच मानिए समारोह के मेजबान की दिली इच्छा भी यही होती है कि


सिर्फ कार वाले मेहमान ही  रिसेप्शन हॉल में आए
और वह निमंत्रण भी उसी श्रेणी के अनुसार देता है
दो तीन तरह की श्रेणियां आजकल रखी जाने लगी है

किसको सिर्फ लेडीस संगीत में बुलाना है
किसको सिर्फ रिसेप्शन में बुलाना है
किसको कॉकटेल पार्टी में बुलाना है
और किस वीआईपी परिवार को इन सभी कार्यक्रमों में बुलाना है
इस आमंत्रण में अपनापने की भावना खत्म हो चुकी है


सिर्फ मतलब के व्यक्तियों को या परिवारों को आमंत्रित किया जाता है

लेडीज संगीत कहने को तो महिलाओं के लिए ही होता है
परंतु इसमें भी डिनर की व्यवस्था
रिसेप्शन की तरह ही इतनी भारी-भरकम होती है कि
एक आम व्यक्ति अपने दो बच्चों की शादी का रिसेप्शन कर ले
महिला संगीत में पूरे परिवार को नाच गाना सिखाने के लिए महंगे कोरियोग्राफर 10-15 दिन ट्रेनिंग देते हैं
मेहंदी लगाने के लिए आर्टिस्ट बुलाए जाने लगे हैं
हल्दी लगाने के लिए भी एक्सपर्ट बुलाए जाते हैं
ब्यूटी पार्लर को दो-तीन दिन के लिए बुक कर दिया जाता है
प्रत्येक परिवार अलग-अलग कमरे में ठहरते हैं
दूरदराज से आए बरसों बाद रिश्तेदारों से मिलने की उत्सुकता कहीं खत्म सी हो गई है
क्योंकि सब अमीर हो गए हैं पैसे वाले हो गए हैं
मेल मिलाप और आपसी स्नेह खत्म हो चुका हे
रस्म अदायगी पर मोबाइलो से बुलाये जाने पर कमरों से बाहर निकलते हैं
सब अपने को एक दूसरे से रईस समझते हैं
और यही अमीरीयत का दंभ
उनके व्यवहार से भी झलकता है
कहने को तो रिश्तेदार की शादी में आए हुए होते हैं
परंतु अहंकार उनको यहां भी नहीं छोड़ता
 वे अपना अधिकांश समय  करीबियों से मिलने के बजाय अपने कमरो में ही गुजार देते हैं
रिसेप्शन हाल की पार्किंग और बाहर खड़ी गाड़ियों से अंदाजा लग जाता हे कि अंदर व्यवस्था कितनी आलीशान होगी

मुख्य स्वागत द्वार पर
नव दंपत्ति के विवाह पूर्व आलिंगन वाली तस्वीरें
हमारी विकृत हो चुकी संस्कृति पर
सीधा तमाचा मारते हुए दिखती हैं
मखमल के कालीनो पर चल कर आगे बढ़ते हैं
सुगंधित धुअे के मदहोश करने वाले गुब्बार स्पर्श करते हैं
ऐसा लगता है किसी पांच सितारा मधुशाला या नवाबी मुजरे मे पहुंच रहे हो

अंदर एंट्री गेट पर आदम कद  स्क्रीन पर नव दंपति के विवाह पूर्व आउटडोर शूटिंग के दौरान फिल्माए गए फिल्मी तर्ज पर गीत संगीत और नृत्य चल रहे होते हैं



इच्छा होती है सिनेमाघरों की तरह कुछ खुले पैसे स्क्रीन की तरफ उछाल दे
क्योंकि इस तरह की शादिया,  एंटरटेनमेंट स्पाट ज्यादा लगती हैं
आशीर्वाद समारोह तो कहीं से भी नहीं लगते है
स्क्रीन पर पूरा परिवार प्रसन्न होता है अपने बच्चों के इन करतूतों पर
पास में लगा मंच
जहां नव दंपत्ति लाइव
गल - बगियाँ करते हुए मदमस्त दोस्तों और मित्रों के साथ अपने
परिवार से मिले संस्कारों का प्रदर्शन करते हुए दिखते हैं


मंच पर वर-वधू के नाम का बैनर लगा हुआ था
अब वर वधू के नाम के आगे कहीं भी चि० और सौ०का० नहीं लिखा जाता
 क्योंकि अब इन शब्दों का कोई सम्मान बचा ही नहीं
इसलिए अंग्रेजी में लिखे जाने लगे है

लेख को ज्यादा लंबा नहीं करूंगा
रिसेप्शन में क्या-क्या
वेराइटीया  थी
बताना बेकार हे
क्योंकि वहा इतना कुछ होता है
उसमें किए गए खर्चे से
गरीब परिवार की 25 - 30 कन्याओं का विवाह हो सकता है
रिसोर्ट में होने वाले एक शादी समारोह का कम से कम 25 से 30 लाख खर्च आता है

हमारी संस्कृति को दूषित करने का बीड़ा एसे ही अति संपन्न वर्ग ने अपने कंधों पर उठाए रखा है
ओर ये किसी की सुनने या मानने वाले नहीं होते हे
हम कितने ही सामाजिक नियम बना ले, कितनी ही आचार संहिता बना ले
परंतु कुछ हल नहीं निकलने वाला
समाज में पैदा होने वाली
हर सामाजिक बुराई इन्हीं लोगों की देन है
इन लोगो के परिवार मे हमारी संस्कृति का कोई अंश बचा ही नहीं है
और यह लोग अब अपनी बुराइयां
मध्यम और निम्न मध्यम वर्ग को देना चाहते हैं

मेरा अपने मध्यमवर्गीय समाज बंधुओं से अनुरोध है
आपका पैसा है , आपने कमाया है
आपके घर खुशी का अवसर है   खुशियां मनाएं
पर किसी दूसरे की देखा देखी नही
कर्ज लेकर
अपने और परिवार के मान सम्मान को खत्म मत करिएगा
जितनी आप में क्षमता है उसी के अनुसार खर्चा करिएगा
4 - 5 घंटे के रिसेप्शन में लोगों की जीवन भर की पूंजी लग जाती है
और आप कितना ही बेहतर करें
लोग जब तक रिसेप्शन हॉल में है तब तक आप की तारीफ करेंगे
और लिफाफा दे कर
आपके द्वारा की गई आव भगत की कीमत अदा करके निकल जाएंगे
मेरा युवा वर्ग से भी अनुरोध है कि
अपने परिवार की हैसियत से ज्यादा खर्चा करने के लिए अपने परिजनों को मजबूर न करें
लोगों की झुठी तारीफ से ज्यादा
आपके अपने परिवार की इज्जत और सम्मान अधिक महत्वपूर्ण होता है

आपके इस महत्वपूर्ण दिन के लिए
आपके माता-पिता ने कितने समर्पण किए हैं यह आपको खुद माता-पिता बनने के उपरांत ही पता लगेगा

दिखावे की इस सामाजिक बीमारी को अभिजात्य वर्ग तक ही सीमित रहने दीजिए

अपना दांपत्य जीवन सर उठा के , स्वाभिमान के साथ शुरू करिए और खुद को
अपने परिवार और अपने समाज के लिए सार्थक बनाइए !

अभी समाज ने कुछ समय पहले प्री वेडिंग सूट को प्रतिबंधित किया था? कितने लोग मान रहे है?समाज कम व्यंजनों की बात करता है?कोई सुनता है क्या?जगह जगह अच्छी बातें बिखरी पड़ी है,अच्छे उदाहरण आंखों के सामने है?अच्छी पहल करते हमने देखा है,कोई नज़र डालता है क्या? बारहवी गंगा प्रसादी की बात 100 साल से समाज कर रहा है,क्या नही हो रही है ?भगवान स्वरूप रामसुख दास जी महाराज पुरजोर शब्दो मे बोल कर गए,परिवार नियोजन मत करो, कोई एक भी सुनता है क्या? सब को पता है,अच्छे सवास्थ्य के लिए नियमित व्यायाम जरूरी है,10 पर्तिशत भी करते है क्या?
इसलिए बेहतर यह रहता है,जो ठीक नही है,जो समाज के लिए अनुकरणीय नही है,जिसके दुष्परिणाम ज्यादा है..हम किसी का इंतजार नही करे, कोई कहे?
बस जब भी अवसर आये, हम पहल करें।इस दुनिया मे अकेले चलने का साहस बहुत कम लोगो मे है।सब भीड़ का हिस्सा बन जाते है। पर पहल करने में जिस जिगर की जरूरत है,वो नही है। बस..हम फिर गेंद इस पाले से उस पाले में डालते रहते है।
  ।। जय महेश।।

वृश्चिक राशि वालों के लिए सबसे महत्वपूर्ण सलाह

 

वृश्चिक राशि वालों के लिए सबसे महत्वपूर्ण सलाह यह है कि जो भी कार्य शेष है, जल्दी जल्दी निपटा लें क्योंकि वृश्चिक राशि पर 17 जनवरी 2023 से शनि की ढैया लगने वाली है।

चित्र में दिखाई देने वाला बिच्छू वृश्चिक राशि का प्रतीक चिन्ह है।

अभी जन्मपत्री में जो भी गए स्थिति है अथवा ग्रह दशा आपकी चल रही है (अलग-अलग वृश्चिक राशि वालों की ग्रह स्थिति एवं ग्रह दशा अलग-अलग है) उससे भी ज्यादा समय संघर्ष वाला आने वाला है यही इस उत्तर का मूल स्रोत है। चित्र सोर्स है गूगल इमेजेस ।

इस पोस्ट को सभी राष्ट्र प्रेमी पूरा पढ़ें और सोचे कि हमारी बहन बेटियों के साथ कितनी बड़ी हैवानियत की गई थी

 "गांधी -नेहरू -जिन्ना" की करतूत का काला कालखंड



1 बाप, 7 बेटियां और गुजरांवाला का एक कुआं...
एक जमीन... इस पोस्ट को सभी राष्ट्र प्रेमी पूरा पढ़ें और सोचे कि हमारी बहन बेटियों के साथ कितनी बड़ी हैवानियत की गई थी बी एल मीणा दोसा की कलम से...

गुजरांवाला। पाकिस्तान पंजाब का एक शहर। सरदार हरि सिंह नलवा की जमीन। यहां कभी एक पंजाबी हिंदू खत्री परिवार रहता था। मुखिया थे लाला जी उर्फ बलवंत खत्री। बड़े जमींदार। शानदार कोठी थी। लाला जी का एक भरा-पूरा परिवार इस कोठी में रहता था। पत्नी थी प्रभावती और बच्चे थे आठ। सात बेटियां और एक बेटा।

एक परिवार:

लाला जी के बेटे बलदेव की उम्र तब 20 साल थी। उससे छोटी लाजवंती (लाजो) 19 साल की थी। राजवती (रज्जो) 17 तो भगवती (भागो) 16 की थी। पार्वती (पारो) 15 साल और गायत्री (गायो) 13 तथा ईश्वरी (इशो) 11 बरस की थी। सबसे छोटी उर्मिला (उर्मी) 9 बरख की थी। जल्द ही फिर से कोठी में किलकारियां गूंजने वाली थी। प्रभावती पेट से थीं।

एक साल:

यह साल 1947 की बात है। हम आजाद हो गए थे। भारत का बंटवारा हो गया था। जिन्ना ने डायरेक्ट एक्शन डे का ऐलान कर दिया था। गुजरांवाला के आसपास के इलाकों से हिंदू-सिखों के कत्लेआम की खबरें आने लगी थी। 'अल्लाह हू अकबर' और 'ला इलाहा इल्लल्लाह' का शोर करती भीड़ यलगार करती- काफिरों की औरतें भारत न जा पाएं। हम उन्हें हड़प लेंगे।

एक उम्मीद:

पर लाला जी बेफिक्र थे। उन्हें गांधी के आदर्शों पर यकीन था। उन्हें लगता था ये कुछ मजहबी मदांध हैं। दो-चार दिन में शांत हो जाएंगे। और गुजरांवाला तो जट, गुज्जरों और राजपूत मुसलमानों का शहर है। सब 'अव्वल अल्लाह नूर उपाया' गाने वाले लोग हैं। बाबा बुल्ले शाह और बाबा फरीद की कविताएं पढ़ते हैं। सूफी मजारों पर जाते है। लाला जी का मन कहता था, सब भाई हैं। एक-दूसरे का खून नहीं बहाएंगे।

एक तारीख:

18 सितंबर 1947। एक सिख डाकिया हांफते हुए हवेली पहुॅंचा। चिल्लाया, लाला जी इस जगह को छोड़ दो। तुम्हारी बेटियों को उठाने के लिए वे लोग आ रहे हैं। लज्जो को सलीम ले जाएगा। रज्जो को शेख मुहम्मद। भगवती को... लाला बलवंत ने उस डाकिए को जोरदार तमाचा जड़ा। कहा, क्या बकवास कर रहे हो। सलीम, मुख्तार भाई का बेटा है। मुख्तार भाई हमारे परिवार की तरह हैं।

एक चेतावनी:

उसका जवाब था, “मुख्तार भाई ही भीड़ लेकर निकले हैं, लाला जी। सारे हिंदू-सिख भारत भाग रहे हैं। 300-400 लोगों का एक जत्था घंटे भर में निकलने वाला है। परिवार के साथ शहर के गुरुद्वारे पहुंचिए।” यह कह वह सिख डाकिया सरपट भागा। उसे दूसरे घर तक भी शायद खबर पहुंचानी रही होगी।

एक संवाद:

लाला जी पीछे मुड़े तो सात महीने की गर्भवती प्रभावती की आंखों से आंसू निकल रहे थे। उसने सारी बात सुन ली थी। उसने कहा, लाला जी हमे निकल जाना चाहिए। मैंने बच्चों से गहने, पैसे, कागज बांध लेने को कहा है। पर लाला जी का मन नहीं मान रहा था। कहा, हम कहीं नहीं जाएंगे। सरदार झूठ बोल रहा है। मुख्तार भाई ऐसा नहीं कर सकते। मैं खुद उनसे बात करूंगा। प्रभावती ने बताया, वे पिछले महीने घर आए थे। कहा कि सलीम को लाजो पसंद है। वे चाहते हैं कि दोनों का निकाह हो जाए। लज्जो ने भी बताया था कि सलीम अपने दोस्तों के साथ उसे छेड़ता है। इसी वजह से उसने घर से बाहर निकलना बंद कर दिया। लाला बलवंत बोले, तुमने यह बात पहले क्यों नहीं बताई। मैं मुख्तार भाई से बात करता। प्रभावती बोलीं, आप भी बहुत भोले हैं। मुख्तार भाई खुद लज्जो का निकाह सलीम से करवाना चाहते हैं। अब उसे जबरन ले जाने के लिए आ रहे हैं।

एक गुरुद्वारा:

गुरुद्वारा हिंदू-सिखों से खचाखच भरा था। पुरुषों के हाथों में तलवारें थी। गुजरांवाला पहलवानों के लिए मशहूर था। कई मंदिरों और गुरुद्वारों के अपने अखाड़े थे। हट्टे-कट्टे हिंदू-सिख गुरुद्वारे के द्वार पर सुरक्षा में मुस्तैद थे। कुछ लोग छत से निगरानी कर रहे थे। कुछ लोग कुएं के पास रखे पत्थरों पर तलवारों को धार दे रहे थे। महिलाएं, लड़कियां और बच्चे दहशत में थे। माएं नवजातों और बच्चों को सीने से चिपकाए हुईं थी।

एक भीड़:

अचानक एक भीड़ की आवाज आनी शुरू हुई। यह भीड़ बड़ी मस्जिद की तरफ से आ रही थी। वे नारा लगा रहे थे,

- पाकिस्तान का मतलब क्या, ला इलाहा इल्लल्लाह
- हंस के लित्ता पाकिस्तान, खून नाल लेवेंगे हिंदुस्तान
- कारों, काटना असी दिखावेंगे
- किसी मंदिर विच घंटी नहीं बजेगी हून
- हिंदू दी जनानी बिस्तर विच, ते आदमी श्मशान विच

एक निशाना:

प्रभावती एक खिड़की के पास बेटियों के साथ बैठी थी। इकलौता बेटा मुख्य दरवाजे के बाहर मुस्तैद था। अचानक भीड़ की आवाज शांत हो गई। फिर मिनट भर के भीतर ही 'ला इलाहा इल्लल्लाह' का वही शोर शुरू हो गया। हर सेकेंड के साथ शोर बढ़ती जा रही थी। भीड़ में शामिल लोगों के हाथों में तलवार, फरसा, चाकू, चेन और अन्य हथियार थे। गुरुद्वारा उनका निशाना था।

एक प्रतिज्ञा: गुरुद्वारे का प्रवेश द्वार अंदर से बंद था। कुछ लोग द्वार पर तो कुछ दीवार से सट कर हथियारों के साथ खड़े थे। अचानक पुजारी और पहलवान सुखदेव शर्मा की आवाज गूंजी। वे बोले, “वे हमारी मां, बहन, पत्नी और बेटियों को लेने आ रहे हैं। उनकी तलवारें हमारी गर्दन काटने के लिए है। वे हमसे समर्पण करने और धर्म बदलने को कहेंगे। मैंने फैसला कर लिया है। झुकुंगा नहीं। अपना धर्म नहीं छोड़ूंगा। न ही उन्हें अपनी स्त्रियों को छूने दूंगा।” चंद सेकेंड के सन्नाटे के बाद 'जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल, वाहे गुरु जी दा खालसाए वाहे गुरु जी दी फतह' से गुरुद्वारा गूंज उठा। वहां मौजूद हर किसी ने हुंकार भरी, हममें से कोई अपने पुरखों का धर्म नहीं छोड़ेगा।

एक इंतजार:

50-60 लोगों ने गुरुद्वारे में घुसने की कोशिश की। देखते ही देखते ही सिर धड़ से अलग हो गया। गुरुद्वारे में मौजूद लोगों को कोई नुकसान नहीं हुआ था। महिलाएं और बच्चे भी अंदर हॉल में सुरक्षित थे। यह देख वह मजहबी भीड़ गुरुद्वारे से थोड़ा पीछे हट गई। करीब 30 मिनट तक गुरुद्वारे से 50 मीटर दूर वे खड़े होकर मजहबी नारे लगाते रहे। ऐसा लगा रहा था मानो उन्हें किसी चीज का इंतजार है। जिसका इंतजार था, वे आ गए थे। हजारों का हुजूम। बाहर हजारों लोग। गुरुद्वारे के अंदर मुश्किल से 400 हिंदू-सिख। उनमें 50-60 युवा। बाकी बुजुर्ग, महिलाएं और बच्चे।

एक उन्माद:

अंतिम लड़ाई का क्षण आ चुका था। भीड़ ने एक सिख महिला को आगे खींचा। वह नग्न और अचेत थी। भीड़ में शामिल कुछ लोग उसे नोंच रहे थे। अचानक किसी ने उसका वक्ष तलवार से काट डाला और उसे गुरुद्वारे के भीतर फेंक दिया।

एक सवाल:

गुरुद्वारे में मौजूद गुजरांवाला के हिंदू-सिखों ने इससे पहले इस तरह की बर्बरता के बारे में सुना ही था। पहली बार आंखों से देखा। अब हर कोई अपनी स्त्री के बारे में सोचने लगा। यदि उनकी मौत के बात उनकी स्त्री इनके हाथ लग गईं तो क्या होगा? उन्हें अब केवल मौत ही सहज लग रही थी। उसके अलावा सब कुछ भयावह।

एक कत्लेआम:

भीड़ ने दरवाजे पर चढ़ाई की। कत्लेआम मच गया। हिंदू-सिख लड़े बांकुरों की तरह। पर गिनती के लोग, हजारों के हुजूम के सामने कितनी देर टिकते...

एक मुक्ति:

लाजो ने कहा, तुस्सी काटो बापूजी, मैं मुसलमानी नहीं बनूंगी। लाला बलवंत रोने लगे। आवाज नहीं निकल पा रही थी। लाजो ने फिर कहा, जल्दी करिए बापूजी। लाला बलवंत फूट-फूटकर रोने लगे। भला कोई बाप अपने ही हाथों अपनी बेटियों की हत्या कैसे करे? लाजो ने कहा, यदि आपने नहीं मारा तो वे मेरे वक्ष... बात पूरी होने से पहले ही लाला जी ने लाजो का सिर धड़ से अलग कर दिया। अब राजो की बारी थी। फिर भागो... पारो... गायो... इशो... और आखिरकार उर्मी। लाला जी हर बेटी का माथा चमूते गए और सिर धड़ से अलग करते गए। सबको एक-एक कर मुक्ति दे दी। लेकिन उस मजहबी भीड़ से मृत महिलाओं का शरीर भी सुरक्षित नहीं था। नरपिशाचों के हाथ बेटियों का शरीर न छू ले, यह सोच सबके शव को लाला जी ने गुरुद्वारे के कुएं में डाल दिया।

एक आदेश:

लाल बलवंत ने प्रभावती से कहा, गुरुद्वारे के पिछले दरवाजे पर तांगा खड़ा है, तुम बलदेव के साथ निकलो। कुछ लोग तुम्हें सुरक्षित स्टेशन तक लेकर जाएंगे। वहां से एक जत्था भारत जाएगा। तुम दोनों निकलो। प्रभावती ने कहा, मैं आपके बिना कहीं नहीं जाऊंगी। लाला जी बोले, तुम्हें अपने पेट में पल रहे बच्चे के लिए जिंदा रहना होगा। तुम जाओ, मैं पीछे से आता हूं। लाला जी ने प्रभावती का माथा चूमा। बलदेव को गले लगाया और कहा जल्दी करो। तांगा प्रभावती और बलदेव को लेकर स्टेशन की तरफ चल दिया।

एक पिता:

फिर लाला जी ने खुद को चाकुओं से गोदा। उसी कुएं में छलांग लगा दी, जिसमें सात बेटियों को काट कर डाला था। आखिर दो बच्चों के पास उनकी मां थी। सात बच्चों के पास उनके पिता का होना तो बनता था।

लाला जी के बेटे बलदेव का पोता है। भारत के विभाजन में अपने परिवार के 28 सदस्य खोए थे। लाला जी, उनके भाई-बहन और उनके परिवार के कई लोगों की हत्या कर दी गई थी। लाला जी की पत्नी, बेटे बलदेव और अजन्मे संतान के साथ जान बचाकर भारत आने में कामयाब रही थीं। वे पंजाब के अमृतसर में रहते थे।

एक पेंटिंग:



पाकिस्तान में सन् 1947 में हिंदू-सिखों का कत्लेआम हुआ। स्त्रियों के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया। उन्हें नग्न कर घुमाया गया। उनके वक्ष काट डाले गए। कइयों ने कुएं में कूद जान दे दी। उसी भयावहता को बयां करते हुए केसी आर्यन ने यह पेंटिंग बनाई थी।


तीन मक्कार आदमियों की भेंट लाखो चढ़े तब बटवारा हुआ।😢😡😡😡😡😡

#साभार

अब तक की सबसे विचलित करने वाली फिल्म हवाएँ

 

फिल्म का नाम है हवाएँ (Hawayein) जो 1984 के सिख नस्लकुशी दंगों पर आधारित है। जब य़ह फिल्म आई थी तब मैं 17 साल की थी और इस फिल्म ने मुझपर गहरा असर डाला। खास तौर पर वो दृश्य जिन में सिख ल़डकियों और औरतों को दंगाइयों की भीड़ उठा ले जा रहे हैं, उनके के साथ सामुहिक बलात्कार कर रहे हैं, उनके कपड़े उतार उन्हें नंगी कर उनकी इज्ज़त लूट रहे हैं।

वो दृश्य मैं आज तक नहीं भूली हालांकि इस फिल्म को आए 18 साल हो गये हैं।

य़ह लिंक इसी फिल्म का है :


रविवार, 18 दिसंबर 2022

सनातन धर्म में सुबह उठने के बाद धरती माता पर पैर रखने से पहले उसे प्रणाम करने की सलाह इसलिए दी जाती है



    *🌷🌷।। भूमि वन्दना ।।🌷🌷*

हिंदू सनातन धर्म में सुबह उठने के बाद धरती माता पर पैर रखने से पहले उसे प्रणाम करने की सलाह इसलिए दी जाती है क्योंकि धरती माता हमारी पालनकर्ता है। हमारे जीवन के लिए सभी आवश्यक पदार्थ धरती ही हमें उपलब्ध कराती है। फिर चाहे जल हो या भोजन। धरती माता को प्रणाम करने और उसके प्रति आभार जताकर हम अपना सौभाग्य बढ़ा सकते हैं, क्योंकि धरती को भी देवी मां का स्थान प्राप्त है…

शास्त्रों में मनुष्य को प्रात:काल उठने के बाद धरती माता की वंदना करके ही भूमि पर पैर रखने का विधान किया गया है। पहले दायें पैर को भूमि पर रख कर हाथ से पृथ्वी का स्पर्श कर फिर मस्तक पर लगाया जाता है, साथ ही पांव रखने के लिए विष्णुपत्नी भूदेवी से क्षमा मांगी जाती है — ‘हे धरती माता ! मुझे तुम्हारे ऊपर पैर रखने में बहुत संकोच होता है, तुम तो मेरे भगवान की शक्ति हो ।’

भूमि वंदना क्यों करनी चाहिए ?

▪️ नींद से उठने के बाद चूंकि हमें बिस्तर से उतर कर आगे के कार्यों के लिए भूमि पर पांव रखना पड़ेगा और कौन मनुष्य ऐसा होगा जिसे अपनी माता के ऊपर पैर रखना अच्छा लगेगा ? इसी विवशता के कारण सबसे पहले भूमि वंदना कर उन पर पांव रखने के लिए विष्णुपत्नी भूदेवी से क्षमा मांगी जाती है।

▪️ पृथ्वी माता ने सबको धारण कर रखा है; अत: वे सभी के लिए पूज्य और वंदन-आराधन के योग्य हैं। वे न रहें या उनकी कृपा न रहे तो सारा जगत कहीं भी ठहर नहीं सकता है।

▪️ पृथ्वी माता धैर्य और क्षमा की देवी हैं। पृथ्वी पर मनुष्य कितना आघात करता है, जल निकालने के लिए भूमि के हृदय को चीरा जाता है, अन्न उपजाने के लिए भूमि के हृदय पर हल चलाया जाता है, मनुष्य व जीव-जन्तु भी उस पर मल-मूत्र का त्याग करते हैं; लेकिन धरती को कभी क्रोध नहीं आता। जिस दिन धरती माता को क्रोध आ जाए, धरती हिलने लगे, भूकम्प आ जाए तो मानव जाति का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा।

▪️ भूमि की शस्य-सम्पदा से ही अन्नरूप प्राण उत्पन्न होता है। साथ ही भूमि के हृदय में अनंत ऐश्वर्य जैसे—हीरा, पन्ना, रूबी, नीलम, सोना, लोहा, तांबा और न जानें कितनी धातुएं रहती हैं, जो वे हमें प्रदान करती हैं; इसलिए पृथ्वी देवी का सदा सम्मान करना चाहिए।

कुछ चीजें जो भूदेवी की मर्यादा के विरुद्ध हैं, वह नहीं करनी चाहिए। जैसे—

▪️ दीपक, शिवलिंग, देवी की मूर्ति, शंख, यंत्र, शालग्राम का जल, फूल, तुलसीदल, जपमाला, पुष्पमाला, कपूर, गोरोचन, चंदन की लकड़ी, रुद्राक्ष माला, कुश की जड़, पुस्तक और यज्ञोपवीत—इन वस्तुओं को कभी भी भूमि पर नहीं रखना चाहिए।

▪️ ग्रहण के अवसर पर भूमि को नहीं खोदना चाहिए।

भूमि वंदन करने के पीछे यही शिक्षा छिपी है कि मनुष्य को पृ्थ्वी की तरह सहनशील, धैर्यवान और क्षमावान होना चाहिए। बोलिए वासुदेव भगवान की जय।



भूमि-वंदना का मंत्र इस प्रकार है—

*समुद्रवसने देवि पर्वत स्तन मण्डिते।*
*विष्णुपत्निनमस्तुभ्यं पादस्पर्शंक्षमस्वमे।।*

*अर्थात् :–* समुद्ररूपी वस्त्रों को धारण करने वाली, पर्वतरूपी स्तनों से शोभित विष्णुपत्नी, मेरे द्वारा होने वाले पाद स्पर्श के लिए आप मुझे क्षमा करें।

भगवान नारायण श्रीदेवी और भूदेवी (पृथ्वी) के पति हैं। भूदेवी कश्यप ऋषि की पुत्री हैं, और पुराणों में इनका एक देवी रूप है। भूदेवी अपने एक रूप से संसार में सब जगह फैली हुईं हैं और दूसरे रूप में देवी रूप में स्थित रहती हैं।

कश्यप ऋषि की पुत्री होने से ये *‘काश्यपी’*, स्थिर रूप होने से ‘स्थिरा’, विश्व को धारण करने से ‘विश्वम्भरा’, अनंत रूप होने से ‘अनंता’ और सब जगह फैली होने से ‘पृथ्वी’ कहलाती हैं । भगवान की पत्नी होने के कारण वे ‘विष्णुप्रिया’ के नाम से जानी जाती हैं ।

सृष्टि के समय ये प्रकट होकर जल के ऊपर स्थिर हो जाती हैं, और प्रलयकाल में ये जल के अंदर छिप जाती हैं।

वाराहकल्प में जब हिरण्याक्ष दैत्य पृथ्वी को चुराकर रसातल में ले गया, तब भगवान श्रीहरि हिरण्याक्ष को मार कर रसातल से पृथ्वी को ले आए और उसे जल पर इस प्रकार रख दिया, मानो तालाब में कमल का पत्ता हो। इसके बाद ब्रह्मा जी ने उसी पृथ्वी पर सृष्टि रचना की। उस समय वाराहरूपधारी भगवान श्रीहरि ने सुंदर देवी के रूप में उपस्थित भूदेवी का वेदमंत्रों से पूजन किया और उन्हें ‘जगत्पूज्य’ होने का वरदान देते हुए कहा—
‘तुम सबको आश्रय प्रदान करने वाली बनो। देवता, सिद्ध, मानव, दैत्य आदि से पूजित होकर तुम सुख पाओगी। गृहप्रवेश, गृह निर्माण के आरम्भ, वापी, तालाब आदि के निर्माण के समय मेरे वर के कारण लोग तुम्हारी पूजा करेंगे।’

इसके बाद त्रिलोकी में पृथ्वी की पूजा होने लगी।

    *🪷🪷।। शुभ वंदन ।।🪷🪷*

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