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शनिवार, 2 सितंबर 2017

जलझूलनी एकादशी

*Jal Jhulani Ekadashi | जल झुलनी एकादशी व्रत कथा | व्रत विधि | महत्व*

हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जलझूलनी एकादशी कहते हैं। इसे परिवर्तिनी एकादशी (Parivartani Ekadashi), पदमा एकादशी (Padma Ekadashi), वामन एकादशी Vaman Ekadashi) एवं डोल ग्यारस (Dol Ekadashi) आदि नामों से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान वामन की पूजा की जाती है। कुछ स्थानों पर ये दिन भगवान श्रीकृष्ण की सूरज पूजा (जन्म के बाद होने वाला मांगिलक कार्यक्रम) के रूप में मनाया जाता है।

शिशु के जन्म के बाद जलवा पूजन, सूरज पूजन या कुआं पूजन का विधान है। उसी के बाद अन्य संस्कारों की शुरूआत होती है। यह पर्व उसी का एक रूप माना जा सकता है। शाम के वक्त भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा को झांकी के रूप में मन्दिर के नजदीक किसी पवित्र जलस्रोत पर ले जाया जाता है और वहां उन्हें स्नान कराते है एवं वस्त्र धोते है और फिर वापस आकर उनकी पूजा की जाती है। इस दिन व्रत किया जाता है। कई जगह भगवान की इस झांकी को देखने के बाद व्रत खोलने की परम्परा है। झांकी में भगवान को पालकी यानि डोली में ले जाया जाता है इसलिए इसे डोल एकादशी (Dol Ekadashi) भी कहते है। एक मान्यता यह भी है कि भगवान विष्णु इस दिन करवट बदलते है। इस बदलाव के कारण इसे परिवर्तिनी एकादशी (Parivartani Ekadashi) कहते है। देखा जाए तो यह मौसम में बदलाव का भी सूचक होता है। इस दिन भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा होती है इसलिए वामन एकादशी (Vaman Ekadashi) भी कहा जाता है।

*जल झुलनी एकादशी व्रत विधि | Jal Jhulani Ekadashi Vrat Vidhi*

जल झुलनी एकादशी व्रत का नियम पालन दशमी तिथि की रात से ही शुरू करें व ब्रह्मचर्य का पालन करें। एकादशी के दिन सुबह स्नान आदि करने के बाद साफ कपड़े पहनकर भगवान वामन की प्रतिमा के सामने बैठकर व्रत का संकल्प लें। इस दिन यथासंभव उपवास करें उपवास में अन्न ग्रहण नहीं करें संभव न हो तो एक समय फलाहारी कर सकते हैं।

इसके बाद भगवान वामन की पूजा विधि-विधान से करें (यदि आप पूजन करने में असमर्थ हों तो पूजन किसी योग्य ब्राह्मण से भी करवा सकते हैं।) भगवान वामन को पंचामृत से स्नान कराएं। स्नान के बाद उनके चरणामृत को व्रती (व्रत करने वाला) अपने और परिवार के सभी सदस्यों के अंगों पर छिड़कें और उस चरणामृत को पीएं। इसके बाद भगवान को गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि पूजन सामग्री अर्पित करें।

विष्णु सहस्त्रनाम का जाप एवं भगवान वामन की कथा सुनें। रात को भगवान वामन की मूर्ति के समीप हो सोएं और दूसरे दिन यानी द्वादशी के दिन वेदपाठी ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान देकर आशीर्वाद प्राप्त करें जो मनुष्य यत्न के साथ विधिपूर्वक इस व्रत को करते हुए रात्रि जागरण करते हैं, उनके समस्त पाप नष्ट होकर अंत में वे स्वर्गलोक को प्राप्त होते हैं। इस एकादशी की कथा के श्रवणमात्र से वाजपेयी यज्ञ का फल प्राप्त होता है।

*जलझूलनी एकादशी व्रत का महत्व | Importance of Jal Jhulani Ekadashi*

धर्म ग्रंथों के अनुसार, परिवर्तिनी एकादशी पर व्रत करने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। पापियों के पाप नाश के लिए इससे बढ़कर कोई उपाय नहीं है। जो मनुष्य इस एकादशी को भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा करता है, उससे तीनों लोक पूज्य होते हैं। इस व्रत के बारे में भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं युधिष्ठिर से कहा है कि जो इस दिन कमलनयन भगवान का कमल से पूजन करते हैं, वे अवश्य भगवान के समीप जाते हैं। जिसने भाद्रपद शुक्ल एकादशी को व्रत और पूजन किया, उसने ब्रह्मा, विष्णु सहित तीनों लोकों का पूजन किया। अत: हरिवासर अर्थात एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए। इस दिन भगवान करवट लेते हैं, इसलिए इसको परिवर्तिनी एकादशी भी कहते हैं।

*जलझूलनी एकादशी व्रत की कथा | Jal Jhulani Ekadashi Vrat Katha*

कथा इस प्रकार है सूर्यवंश में मान्धाता नामक चक्रवर्ती राजा हुए उनके राज्य में सुख संपदा की कोई कमी नहीं थी, प्रजा सुख से जीवन्म व्यतीत कर रही थी परंतु एक समय उनके राज्य में तीन वर्षों तक वर्षा नहीं हुई प्रजा दुख से व्याकुल थी तब महाराज भगवान नारायण की शरण में जाते हैं और उनसे अपनी प्रजा के दुख दूर करने की प्रार्थना करते हैं। राजा भादों के शुक्लपक्ष की ‘एकादशी’ का व्रत करता है।

इस प्रकार व्रत के प्रभाव स्वरुप राज्य में वर्षा होने लगती है और सभी के कष्ट दूर हो जाते हैं राज्य में पुन: खुशियों का वातावरण छा जाता है। इस उत्तम व्रत का अनुष्ठान अवश्य करना चाहिए ‘पदमा एकादशी’ के दिन सामर्थ्य अनुसार दान करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है, जलझूलनी एकादशी के दिन जो व्यक्ति व्रत करता है, उसे भूमि दान करने और गोदान करने के पश्चात मिलने वाले पुण्यफलों से अधिक शुभ फलों की प्राप्ति होती है।

*वामन अवतार कथा | Vaman Avtar Katha*

सत्ययुग में प्रह्लाद के पौत्र दैत्यराज बलि ने स्वर्गलोक पर अधिकार कर लिया। सभी देवता इस विपत्ति से बचने के लिए भगवान विष्णु के पास गए। तब भगवान विष्णु ने कहा कि मैं स्वयं देवमाता अदिति के गर्भ से उत्पन्न होकर तुम्हें स्वर्ग का राज्य दिलाऊंगा। कुछ समय पश्चात भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया।
एक बार जब बलि महान यज्ञ कर रहा था तब भगवान वामन बलि की यज्ञशाला में गए और राजा बलि से तीन पग धरती दान में मांगी। राजा बलि के गुरु शुक्राचार्य भगवान की लीला समझ गए और उन्होंने बलि को दान देने से मना कर दिया। लेकिन बलि ने फिर भी भगवान वामन को तीन पग धरती दान देने का संकल्प ले लिया। भगवान वामन ने विशाल रूप धारण कर एक पग में धरती और दूसरे पग में स्वर्ग लोक नाप लिया। जब तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान नहीं बचा तो बलि ने भगवान वामन को अपने सिर पर पग रखने को कहा। बलि के सिर पर पग रखने से वह सुतललोक पहुंच गया। बलि की दानवीरता देखकर भगवान ने उसे सुतललोक का स्वामी भी बना दिया। इस तरह भगवान वामन ने देवताओं की सहायता कर उन्हें स्वर्ग पुन: लौटाया।

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