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बुधवार, 30 सितंबर 2020

28 ग्राम शहद से मधुमक्खी को इतनी शक्ति मिल जाती है कि वो पूरी धरती का चक्कर लगा देगी.


मधुमक्खी अपनी जिंदगी में कभी नही सोती. ये इतनी मेहनती होती है कि पूछो मत! बेचारी एक बूंद शहद के लिए दूर-दूर तक उड़ती है. आजकल तो फिर भी कम हो गए लेकिन पहले मधुमक्खियों के छत्ते जगह-जगह पेड़ो पर, दीवारों पर लटके मिल जाते थे. आपके मन में उस समय कुछ सवाल आए होगे, चलिए आज रोचक तथ्यों के माध्यम से Honey Bee से जुड़ी हर जानकारी से आपको रूबरू करवाते है…

- मधुमक्खियों की 20,000 से ज्यादा प्रजातियाँ है लेकिन इनमें से सिर्फ 5 ही शहद बना सकती है.

- एक छत्ते में 20 से 60 हजार मादा मधुमक्खियाँ, कुछ सौ नर मधुमक्खियाँ और 1 रानी मधुमक्खी होती है. इनका छत्ता मोम से बना होता है जो इनके पेट की ग्रंथियों से निकलता है.

- मधुमक्खी धरती पर अकेली ऐसी कीट (insects) है जिसके द्वारा बनाया गया भोजन मनुष्य द्वारा खाया जाता है.

- केवल मादा ( यानि वर्कर मधुमक्खियां ) मधुमक्खी ही शहद बना सकती है और डंक मार सकती है. नर मधुमक्खी (drones) तो केवल रानी के साथ सेक्स करने के लिए पैदा होते है.

- किसी आदमी को मारने के लिए मधुमक्खी के 100 डंक काफी है.

- मधुमक्खी, शहद को पहले ही पचा देती है इसलिए इसे हमारे खून तक पहुंचने में केवल 20 मिनट लगते है.

- मधुमक्खी 24KM/H की रफ्तार से उड़ती है और एक सेकंड में 200 बार पंख हिलाती है. मतलब, हर मिनट 12,000 बार.

- कुत्तों की तरह मधुमक्खियों को भी बम ढूंढना सिखाया जा सकता है. इनमें 170 तरह के सूंघने वाले रिसेप्टर्स होते है जबकि मच्छरों में सिर्फ 79.

- मधुमक्खी फूलों की तलाश में छत्ते से 10 किलोमीटर दूर तक चली जाती है. यह एक बार में 50 से 100 फूलों का रस अपने अंदर इकट्ठा कर सकती है. इनके पास एक एंटिना टाइप छड़ी होती है जिसके जरिए ये फूलों से ‘nectar’ चूस लेती है. इनके पास दो पेट होते है कुछ nectar तो एनर्जी देने के लिए इनके मेन पेट में चला जाता है और बाकी इनके दूसरे पेट में स्टोर हो जाता है. फिर आधे घंटे बाद ये इसका शहद बनाकर मुंह के रास्ते बाहर निकाल देती है. जिसे कुछ लोग उल्टी भी कहते है. (नोट: nectar में 80% पानी होता है मगर शहद में केवल 18-20% पानी होता है.)

- 1 किलो शहद बनाने के लिए पूरी मधुमक्खियों को लगभग 40 लाख फूलों का रस चूसना पड़ता है और 90,000 मील उड़ना पड़ता है, यह धरती के तीन चक्कर लगाने के बराबर है.

- पूरे साल मधुमक्खियों के छत्ते के आसपास का तापमान 33°C रहता है. सर्दियों में जब तापमान गिरने लगता है तो ये सभी आपस में बहुत नजदीक हो जाती है ताकि गर्मी बनाई जा सके. गर्मियों में ये अपने पंखों से छत्ते को हवा देते है आप कुछ दूरी पर खड़े होकर इनके पंखो की ‘हम्म’ जैसी आवाज सुन सकते है.

- एक मधुमक्खी अपनी पूरी जिंदगी में चम्मच के 12वें हिस्से जितना ही शहद बना पाती है. इनकी जिंदगी 45-120 दिन की होती है.

- नर मधुमक्खी, सेक्स करने के बाद मर जाती है. क्योंकि सेक्स के आखिर में इनके अंडकोष फट जाते है.

- नर मधुमक्खी यानि Drones का कोई पिता नही होता, बल्कि सीधा दादा या माता होती है. क्योंकि ये unfertilized eggs से पैदा होते है. ये वो अंडे होते है जो रानी मधुमक्खी बिना किसी नर की सहायता के स्वयं अकेले पैदा करती है. इसलिए इनका पिता नही होता केवल माता होती है.

- शहद में ‘Fructose’ की मात्रा ज्यादा होने की वजह से यह चीनी से भी 25% ज्यादा मीठा होता है.

- शहद, हजारों साल तक भी खराब नही होता. यह एकमात्र ऐसा फूड है जिसके अंदर जिंदगी जीने के लिए आवश्यक सभी चीजें पाई जाती है: हमें जीने के लिए 84 पोशाक तत्वों की जरूरत होती है , जबकि शहद में 83 तत्व पायें जाते हैं । बस एक तत्व नही मिलता और वो है वसा । Enzymes: इसके बिना हम सांस ली गई ऑक्सीजन का भी प्रयोग नही कर सकते, Vitamins: पोषक तत्व, Minerals: खनिज पदार्थ, Water: पानी etc. यह अकेला ऐसा भोजन भी है जिसके अंदर ‘pinocembrin’ नाम का एंटीऑक्सीडेंट पाया जाता है जो दिमाग की गतिविधियाँ बढ़ाने में सहायक है.

- रानी मधुमक्खी पैदा नही होती बल्कि यह बनाई जाती है. यह 3-4 दिन की होते ही सेक्स करने के लायक हो जाती है. ये नर मधुमक्खी को आकर्षित करने के लिए हवा में ‘pheromone’ नाम का केमिकल छोड़ती है. जिससे नर भागा चला आता है फिर ये दोनों हवा में सेक्स करते है.

- रानी मधुमक्खी की उम्र 3 साल तक हो सकती है. यह छत्ते की अकेली ऐसी मेम्बर है जो अंडे पैदा करती है. यह शर्दियों में बहुत व्यस्त हो जाती है क्योंकि इस समय छत्ते में मधुमक्खियों की जनसंख्या अधिक हो जाती है. ये जिंदगी में एक ही बार सेक्स करती है और अपने अंदर इतने स्पर्म इकट्ठा कर लेती है कि फिर उसी से पूरी जिंदगी अंडे देती है. यह एक दिन में 2000 अंडे दे सकती है. मतलब, हर 45 सेकंड में एक.

- 28 ग्राम शहद से मधुमक्खी को इतनी शक्ति मिल जाती है कि वो पूरी धरती का चक्कर लगा देगी.

- धरती पर मौजूद सभी जीव-जंतुओं में से, मधुमक्खियों की भाषा सबसे कठिन है. 1973 में ‘Karl von Frisch’ को इनकी भाषा “The Waggle Dance” को समझने के लिए नोबेल पुरस्कार मिला था.

- एक छत्ते में 2 रानी मधुमक्खी नही रह सकती, अगर रहेगी भी तो केवल थोड़े समय के लिए. क्योंकि जब दो Queen Bee आपस में मिलती है तो वे दोस्ती करने की बजाय एक दूसरे पर हमला करना पसंद करती है. और ये तब तक जारी रहता है जब तक एक की मौत न हो जाए.

- रानी मधुमक्खी (Queen Bee) पैदा क्यों नही होती, ये बनाई क्यों जाती है ?

Ans. वर्कर मधुमक्खियाँ मौजूदा क्वीन के अंडे को फर्टीलाइज़ करके मोम की 20 कोशिकाएँ तैयार करती है. फिर युवा नर्स मधुमक्खियाँ, Queen के लार्वा से तैयार एक विशेष भोजन जिसे ‘Royal Jelly’ कहा जाता है, कि मदद से मोम के अंदर कोशिकाएँ निर्मित करती है. ये प्रकिया तब तक जारी रहती है जब तक कोशिकाओं की लंबाई 25mm तक न हो जाए. निर्माण की प्रकिया के 9 दिन बाद ये कोशिकाएँ मोम की परत से पूरी तरह ढक दी जाती है. आगे चलकर इसी से रानी मधुमक्खी तैयार होती है.

- यदि छत्ते की रानी मधुमक्खी मर जाए तो क्या होगा?

Ans. रानी मधुमक्खी लगातार एक खास़ तरह का केमिकल ‘फेरोमोन्स’ निकालती रहती है जब यह मर जाती है तो काम करने वाली मधुमक्खियों को इसकी महक मिलनी बंद हो जाती है. जिससे उन्हें पता चल छाता है कि रानी या तो मर गई या फिर छत्ता छोड़कर चली गई. रानी मधुमक्खी के मरने से पूरे छत्ते का विनाश हो सकता है क्योंकि यदि ये मर गई तो फिर नए अंडे कौन पैदा करेगा. इसकी मौत के बाद काम करने वाली मधुमक्खियों को सिर्फ 3 दिन के अंदर-अंदर कोशिका निर्माण कर नई Queen Bee बनानी पड़ती है.

-यदि धरती की सारी मधुमक्खी खत्म हो जाए तो क्या होगा ?

Ans. अगर ऐसा हुआ तो मानव जीवन भी धीरे-धीरे खत्म हो जाएगा. क्योंकि धरती पर मौजूद 90% खाद्य वस्तुओं का उत्पादन करने में मधुमक्खियों का बहुत बड़ा हाथ है. बादाम, काजू, संतरा, पपीता, कपास, सेब, कॉफी, खीरे, बैंगन, अंगूर, कीवी, आम, भिंडी, आड़ू, नाश्पाती, मिर्च, स्ट्राबेरी, किन्नू, अखरोट, तरबूज आदि का परागन मधुमक्खी द्वारा होता है. जबकि गेँहू, मक्कें और चावल का परागण हवा द्वारा होता है. इनके मरने से 100 में 70 फसल तो सीधे तौर पर नष्ट हो जाएगी, यहाँ तक कि घास भी नही उगेगा. महान वैज्ञानिक ‘अल्बर्ट आइंस्टीन’ ने भी कहा था कि अगर धरती से मधुमक्खियाँ खत्म हो गई तो मानव प्रजाति ज्यादा से ज्यादा 4 साल ही जीवित रहेगी.


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बुरी_परिस्थितियो_का_समाधान


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                  #बुरी_परिस्थितियो_का_समाधान 

**एक गांव था , जहा ज्यादातर लोग अपने खेतोँ में आलू की खेती करते थे***

 गांव मे सभी किसानो के पास लगभग समान ही जमीन थी और गाँव के पास नदी होने के कारण किसी को पानी की कोई कमी नहीँ होती थी***

 उसी गाँव में एक सुखीराम नाम का किसान भी था जो बाकी किसानो से ज्यादा अमीर और धनवान था***

 जबकि जमीन उसके पास भी उतनी ही थी जितनी की दूसरे लोगोँ के पास और फसल भी लगभग
सभी के बराबर निकलती थी पर वह दूसरोँ से ज्यादा पैसे कमाता था***

 सभी गाँव वाले  इस बात को लेकर चिंतित थे कि सब के पास जमीन लगभग बराबर है , हम सभी आलू की ही फसल लगाते हैँ , सभी को लगभग समान फसल होती है और एक ही मंडी मेँ बेचते है फिर भी सुखीराम के पास ज्यादा पैसे क्यूँ हे ?***

एक दिन सभी गाँव वाले मिल कर निर्णय करते हें कि हम सुखीराम के पास जाकर पूछते है कि वह हमसे ज्यादा अमीर क्यूँ है और केसे बना ?***

सभी लोग सुखीराम के घर जाते है। सुखीराम सभी की उचित आओ-भगत करता है और पूछता है – ” आप सभी का मेरे घर कैसे आना हुआ ?  ”  सभी लोग पूछते है – ” हमारे खेत , जमीन , फसल , मंडी सभी समान है पर फिर भी तुम ज्यादा  अमीर हो इसका कारण हम जानना चाहते है। ”***

सुखीराम दिल का अच्छा आदमी होता है। वह सभी से पूछता है – ” आप लोग आलू पकने के बाद क्या करते हो। ” गांव वाले बोलते  है – ” आलू पकने के बाद सभी आलू एक जगह इकट्ठा करते है और उन्हें ट्रक या ट्राली मेँ डाल कर मंडी ले जाते है***

 ” सुखीराम पूछता है – ” ट्रक मेँ डाल कर कौन से रास्ते से मंडी ले जाते हो।  ” गांव वाले कहते है – ” जो नया डामर का रास्ता बना है उससे ले जाते है***

 ” सुखीराम बोलता है – ” मै पुराने गड्डे वाले रास्ते से ले जाता हूँ। ” गांव वाले समझ नहीँ पाते है***

 सुखीराम समझाता है – ” मै ट्रक मेँ सारे आलू डाल देता हूँ और पुराने गड्ढे वाले रास्ते से ले जाता हूँ। ”  ट्रक जब गड्डो मे हिलता है तो सभी आलू हिलते है , जिससे बडे-बडे आलू अपने आप ऊपर आ जाते है***

 मीडियम आलू बीच मेँ रह जाते है। छोटे-छोटे आलू अपने आप नीचे चले जाते हैँ***

 और जब मैं मंडी पहुँचता हूँ तो बडे-बड़े आलू को अलग रख देता हूँ , मीडियम आलू अलग लगाता हूँ और छोटे-छोटे आलू को अलग लगाता हूँ***

 बडे आलू देखकर खरीददार सेठ मुझे ज्यादा भाव देते हैँ , मीडियम आलू भी सभी एक समान होने के कारण ज्यादा भाव मिल जाता है***

 और  जिनको छोटे आलू चाहिए वह भी ठीक-ठाक भाव मेँ छोटे आलू खरीद लेते है***

  इसलिए मै तुम लोगो से ज्यादा पैसा कमाता  हूँ***

***हमारी इस दुनिया मेँ भी भगवान हमेँ उस सुखीराम जैसे ही एक साथ सभी लोगोँ को इस दुनिया मेँ डाल देता है  और कई बार हमारे सामने खराब से खराब परिस्थितियाँ लाता है। जिसमे हम अंदर से बाहर तक पूरे हिल जाते है***

 जीवन मेँ इन परिस्थितियों में जो अपने आप को मजबुत  करके ऊपर ले जाता है , आज की दुनिया मेँ उसको ज्यादा मान-सम्मान मिलता है***

 और जो इन परिस्थितियोँ के निचे दब जाता है , निराश हो जाता है , टूट जाता है। उसको दुनिया मेँ कोई जगह नहीँ मिल पाती। ऊपर वाला हमारे लिए ऐसी कई परिस्थितियाँ लाता है , जिसमें हम अपने आपको सफलता  की तरफ ले जा सके। हमेँ हमेशा अपने आप को बड़ा आलू मतलब सफल व्यक्ति बनाने की कोशिश करना चाहिए***

 परिस्थितियाँ हमेँ हमेशा मजबुत बनाने के लिए ही हमारे विपरीत होती है***
😊🌻 "🌻 
👌 👌

जैविक खेती के मूल सिद्धांत


माँ बुलाती है 
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जैविक खेती के मूल सिद्धांत :-

इसके लिए सबसे पहले सभी को पूर्ण संकल्पित होना चाहिए क्यों कि शुरुआत में जानकारी और अनुभव के अभाव में कुछ परेशानी हो सकती हैं
लेकिन जब अच्छी तरह से जानकर करेंगे तो जैविक खेती जरा भी मुश्किल नहीं है

जैविक कृषि के कुछ मूल सिद्धांत हैं
मिट्टी में जीवाणुओं की मात्रा भूमि की उत्पादकता का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है
ये जीवाणु मिट्टी ,हवा और कृषि अवशेषों में कुदरती रूप से उपलब्ध पोषक तत्वों को पौधों के अनुरूप बनाते हैं
ये जीवाणु जो जैविक कृषि का मूल है तो इनको हमनें कृत्रिम रसायन का प्रयोग करके इनको समाप्त कर दिया है जिसका दुष्प्रभाव हमें भुगतना पड़ रहा है ।हमारे भूमि उत्पादन शक्ति में और
हमारे भोजन मे

रासायनिक खादें भी मिट्टी में जीवाणु के पनपने में रूकावट करती हैं इसलिए सबसे पहला काम है मिट्टी में जीवाणु की संख्या बढाना
जिसके लिए केमिकल कीटनाशक और रसायनों का प्रयोग बिल्कुल  बंद करें
फिर बिक्री और खाने में प्रयोग होने वाले फसल के हिस्से को छोड़कर खेत मे पैदा होने वाली किसी भी सामग्री बायोमास को  खरपतवार को भी खेत से बाहर नहीं जाने देना चाहिए
हम काफी बार कृषि अवशेषों को खेत में ही जलाने का काम करते हैं
जलाना तो बिल्कुल भी नहीं चाहिए
उसका वहीं पर भूमि को ढंकने के लिए और खाद के रूप में प्रयोग करना चाहिए

इस प्रक्रिया को प्राकृतिक आच्छादन या मल्चिंग करना भी कहा गया है
खेत में अगर बायोमास की 3-4 ईंच की परत बन जाए तो बहुत अच्छा है यह परत बहुत से काम करती है
वाष्पीकरण कम करके पानी बचाती है जिससें जल संचय भी होता है
बारिश और तेज हवा आंधी में मिट्टी को बचाती है

खरपतवार को नियंत्रित व रोकथाम करती है

तापमान नियंत्रित करके ज्यादा गर्मी सर्दी में भी मिट्टी के जीवाणुओ के लिए उपयुक्त बनाती है व उनके लिए भोजन का काम करती है
और आखरी में गल सड कर मिट्टी की ऊपजाऊ शक्ति बढाती है

ज़मीन ढकने के लिये बायोमास के छोटे टुकड़े कर के डालना बेहतर रहता है. बायोमास के तौर पर चौड़े पत्ते और मोटी टहनी का प्रयोग नहीं करना चाही ये.

खरपतवार तभी नुकसान करती है जब वह फसल से ऊपर जाने लगे या उसमें फल या बीज बनने लगे सूर्य प्रकाश मे अवरोध पैदा करे 
तभी उसे निकालने की जरूरत है
निकालकर भी उसका खाद या भूमि को ढंकने में प्रयोग होना चाहिए

उसे खेत से बाहर फैंकने की जरूरत नहीं है
वैसे इस तरह की खेती में कुछ वर्ष पश्चात खरपतवार की समस्या नही के बराबर हो जाती है
इसका कारण ये है कि रासायनिक खाद के प्रयोग से खरपतवार को सहज ही उपलब्ध पोषण तत्व एकदम से मिल जाते हैं जिससे वह तेजी से बढता है परंतु कुदरती खेती में खरपतवार को सहज उपलब्ध पोषक तत्व नहीं मिलता इसलिए खरपतवार की समस्या धीरे धीरे कम हो जाती है

आगे यह है कि खेत में जैव-विविधता होनी चाहये, यानी कि केवल एक किस्म की फ़सल न बो कर खेत में एक ही समय पर कई किस्म की फसल बोनी चाहिए

र्जैव-विविधता या मिश्रित खेती मिट्टी की उत्पादकता बढ़ाने और कीटों का नियन्त्रण करने, दोनों मे सहायक सिद्ध होती है. जहाँ तक सम्भव हो सके हर खेत मे फ़ली वाली या दलहनी (दो दाने वाली) एवं कपास, गेहूँ या चावल जैसी एक दाने वाली फ़सलों को समला कर बौंए ...दलहनी या फली वाली फ़सल नाइट्रोजन की पूर्त्ति मे सहायक होती है. एक ही फ़सल यानी कि कपास इत्यादि की भी एक ही किस्म को न बो कर भिन्न-भिन्न किस्मों का प्रयोग करना चाहिए. फ़सल-चक्र मे भी समय-समय पर बदलाव करना चाहीये. एक ही तरह की फ़सल बार बार लेने से मिट्टी से कुछ तत्त्व ख़त्म हो जाते है एव कुछ विशेष कीटों और खरपतवारों को लगातार पनपने का मौका मिलता है. एक-दो फ़सल अपनाने के कारण ही आज किसान भी अपने खेत मे हो सकने वाली चीज़ भी बाज़ार से ख़रीद कर खा रहा है, जिस के चलते किसान परिवार को भी स्वस्थ भोजन नहीं मिलता. ..

कोशिश यह रहे कि भूमि नंगी न रहे. इस के लिये उस में विभिन्न तरह की, लम्बी, छोटी, लेटने वाली और अलग-अलग समय पर बोई और काटे जाने वाली फ़सल ली जाए
खेत मे लगातार फ़सल बने रहने से सूरज की रोशनी, जो धरती पर भोजन और ऊर्जा का असली स्रोत है, और जिसे मुख्य तौर से पौधे ही पकड़ पाते है, का पूरा प्रयोग हो पाता है इस के साथ ही इस से ज़मीन में नमी बनी रहती है और मिट्टी का तापमान नियंत्रित रहता है जिस से मिट्टी के र्जीवाणओ को लगातार उपयूक्त वातावरण मिलता है, वरना वे ज़्यादा गरमी/शरदी मे मर जाते है

खेत मे प्रतिएकड़ कम से कम 5-7 भिन्न-भिन्न प्रकार के पेड़ ज़रूर होने चाहिए. खेत के बीच के पेड़ों को 7-8 फ़ट से ऊपर न जाने दे उन की छ्टाई करते रहे उन के नीचे ऐसी फ़सल उगानी चाहिए जो कम धूप मे भी उगती है (ऐसी फ़सलों को बोना र्जैव-विविधता बनाने मे भी सहायक होगा.) खेत के किनारों पर ऊचे पेड़
हो सकते है. खेत मे पेड़ होने से मिट्टी की पानी सोखने की क्षमता बढ़ती है, मिट्टी का क्षरण नहीं होता. सबसेे बड़ा फ़ायदा

यह हे कि पेड़ की गहरी जड़ धरती

की निचली परतों से आवश्यक तत्त्व लेती है और टूटे हुए पत्तों, फल-फूल क माध्यम से ये तत्त्व मिट्टी में मिल कर अन्य फ़सलों को मिल जाते हैं उन पर बैठने वाले पक्षी कीट-नियन्त्रण मे भी सहायक सिद्ध होते है. इसलिये खेत मे पक्षियों के बैठने के लिये “T"आकार की व्यवस्था करना भी लाभदायक रहता है. जानकार यह बताते हैं कि ज्यादातर पक्षी शाकाहारी नहीं होते. व अन्न तभी खाते है जब उन्हे कीट खाने को न मिले। इसलिए जहाँ कीटनाशकों का प्रयोग होता है, वहाँ कीट न होने से ही पक्षी अन्न खाते है वरना तो ज़्यादातर पक्षी कीट खाना पसन्द करते हैं

अगला तत्व है खेत मे अधिक से अधिक बरसात का पानी इकट्ठा करना. अगर खेत से पानी बह कर बाहर जाता है तो उस के साथ उपर्जाऊ मिट्टी भी बह जाती है. इस लिए पानी बचाने से मिट्टी भी बचती है. दूसरी ओर जैसे-जैसे मिट्टी मे र्जीवाणओ की संख्या बढती है, मिट्टी की पानी सोखने की क्षमता भी बढ़ती है. यानी मिट्टी बचाने से पानी भी बचता है. इस के अलावा पानी बचाने के लिये बरसात से पहले मेढ़ों/डोलों की सम्भाल होनी चाहिये. खेत मे ढलान वाले कोने मे छोटे तालाबों और गड्ढों का सहारा भी लिया जा सकता है.

पेड़ कोई भी जो अपने आसपास एरिया के देशी प्रजाति के हो जो बहुपयोगी हो जैसे नीम आदि
हरियाणा में हो सकने वाले कुछ पेड़ हैं: , आाँवला, जामुन, चीकू, पपीता (देसी  किस्म लें), अनार, बेर, अमरूद, कीनू, शहतूत, हरड़, बहेड़ा, नींबू , देशी कीकर, करोंदा, सहजन (6 महीन मे फल देने वाली किस्म चुने) अनेक तरह के पेड़ यहा हो सकत ह. रोह्तक की एक सरकारी नर्सरी मे 100 से अधिक तरह के पेड़ लगे हुए है अपने पड़ोस की नर्सरी से आप के इलाके मे लग शकने वाले पौधों के बारे मे पता कर शकते हैं
पेड जो अपने एरिया में होते हैं अपने देश के और फलदार होते है कोई बूरे नहीं होते सभी अच्छे होते हैं

किसी भी फ़सल को, धान और गन्ने र्जैसी फ़सल को भी, पानी की नहीं बल्कि नमी की ज़रूरत होती है. बैड बना कर बीज बोने से और नालियों से पानी देने से, या बिना बैड के भी बदल-बदल कर एक नाली छोड़ कर पानी देने से पानी की खपत काफ़ी घट जाती है और जड़ें ज्यादा फैलती हैं. कम पानी वाली जगह या खारा पानी वाली जगह पर यह काफ़ी फ़ायदेमन्द रहता है. बैड ऐसा हो (3-4 फूट का) कि सब जगह नमी भी पहूच जाये और बाहर बैठ कर पूरे बैड से थोड़ा  खरपतवार भी निकाला जा शके

अगर बी्जों पर कम्पनियों या बाज़ार का कब्ज़ा रहा तो किसान स्वतंत्र हो ही नहीं सकता. इस लिये अपना बीज बनाना क़ुदरती कृषी का आधार है. अपने बाप-दादा के ज़माने के अच्छे बीजों को ढूढ़ कर इकट्ठा करे और उन्है बढ़ाए, सुधारे और बांटे. स्थानीय परन्तु सधरे हुऐ बीजों और पशुओ की देसी लेकिन अच्छी नस्ल का प्रयोग किया जाना चाहिये.बीजोंं के अकुरण की जांच और बोने से पहले उन का उपचार भी ज़रूरी है. बीज बोने के समय का भी कीट नियंत्रण और पैदावार में योगदान पाया जाता है बेमौसमी फसलें लेना भी ठीक नहीं है
बीजों के बीच की परस्पर दूरी जैविक खेती मे प्रचलित खेती के मुकाबले लगभग सवा से डेढ़ गुणा ज्यादा होती है. धान 1 फ़ुट और ईंख 8-9 फ़ुट (चारों तरफ़) की दुरी पर भी बोया जा रहा है. इस से जड़ों को फेलने का पूरा मौका मिलता है बीज कम लगता है परन्तु उत्पादन ज़्यादा होता है.

आमतौर पर सैद्धांतिक रुप से जैविक कृषि में मिट्टी स्वस्थ होने के कारण और जैव विविधता के कारण कीड़ा और बीमारी कम लगते हैं
और लगते भी हैं तो कम घातक होते हैं आवश्यकता पड़ने पर बीमारी या कीटों की रोकथाम के लिए जैविक कीटनाशक किसान द्वारा घर पर आसानी से बिना खास खर्चे के बनाया जा शकता है
यह भी बात ध्यान रखे कि कोई कीट हमारी फसलो को नुकसान नहीं करते बल्कि अधिकतर हमारे मित्र कीट ही होते हैं
जो शत्रु कीटो को स्वतः समाप्त कर देते हैं इसलिए हमे ऐसे जैव तालमेल की तरफ बढना है प्रकृति को समझना है

किसानों को आत्मनिर्भर बनना पडेगा क्यों कि कुछ कंपनियों और विदेशी दुष्चक्रों की नजर हमारी खेती पर हो चुकी है इसलिए इनसे कुछ न खरीदकर स्वयं खाद बनाना
कीटनाशक बनाना
बीजो से बीज बनाना
आदि का प्रशिक्षण लेकर करना चाहिए

इसके लिए पशुपालन खासकर देशी गौपालन अभिन्न अंग है
केवल 1-2 फसलों पर आधारित खेती प्राकृतिक खेती हो नहीं शकती इसमें तो पशुपालन और पेड मिश्रित बहु फसली खेती ही हो सकती हैं

अंतिम में ये वैकल्पिक खेती ज्यादा मुनाफा के चक्कर में नहीं करनी चाहिए बल्कि कुदरती और अन्य जीवो और इंसानों के साथ मिल जुलकर करनी चाहिए जिससे यह टिकाऊ हो
और अपने पूर्वजों कै ज्ञान की तरफ लौट शके
     वो ज्ञान मे भी हमारे पिताजी थे  और  जीवन मे भी... उनकी जीवनशैली केवल हमारे घर की नही .. पूरी मानव जात का आधार थी... वो कभी यूरिया की लाईन मे नही खड़े रहे... एक गाय माता और प्रकृति माता दोनो को छोड़ उन्हे किसी की जरूरत नही थी  हमारे पुरखो को केवल फ्रेम मे मत रखे.. जीवन मे अपने आचरण मे साथ रखे 
जिन्हे  सब्सीडी
का अर्थ ही नही पता था 
हम कहा से चले थे.. कहा आ गए..? चलो वापिस अपने ही घर... 👣   मा बुलाती है

जीरो बजट प्राकृतिक खेती(नैसर्गिक खेती, आर्गेनिक खेती)


जीरो बजट प्राकृतिक खेती(नैसर्गिक खेती, आर्गेनिक खेती)

जीरो बजट प्राकृतिक खेती

    जीरो बजट प्राकृतिक खेती देसी गाय के गोबर एवं गौमूत्र पर आधारित है । एक देसी गाय के गोबर एवं गौमूत्र से एक किसान तीस एकड़ जमीन पर जीरो बजट खेती कर सकता है । देसी प्रजाति के गौवंश के गोबर एवं मूत्र से जीवामृत, घनजीवामृत तथा जामन बीजामृत बनाया जाता है । इनका खेत में उपयोग करने से मिट्टी में पोषक तत्वों की वृद्धि के साथ-साथ जैविक गतिविधियों का विस्तार होता है । जीवामृत का महीने में एक अथवा दो बार खेत में छिड़काव किया जा सकता है । जबकि बीजामृत का इस्तेमाल बीजों को उपचारित करने में किया जाता है ।

 इस विधि से खेती करने वाले किसान को बाजार से किसी प्रकार की खाद और कीटनाशक रसायन खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती है। 

फसलों की सिंचाई के लिये पानी एवं बिजली भी मौजूदा खेती-बाड़ी की तुलना में दस प्रतिशत ही खर्च होती है ।

सफल उदाहरण

    गाय से प्राप्त सप्ताह भर के गोबर एवं गौमूत्र से निर्मित घोल का खेत में छिड़काव खाद का काम करता है और भूमि की उर्वरकता का ह्रास भी नहीं होता है। इसके इस्तेमाल से एक ओर जहां गुणवत्तापूर्ण उपज होती है, वहीं दूसरी ओर उत्पादन लागत लगभग शून्य रहती है । राजस्थान में सीकर जिले के एक प्रयोगधर्मी किसान कानसिंह कटराथल ने अपने खेत में प्राकृतिक खेती कर उत्साह वर्धक सफलता हासिल की है । श्री सिंह के मुताबिक इससे पहले वह रासायिक एवं जैविक खेती करता था, लेकिन देसी गाय के गोबर एवं गोमूत्र आधारित जीरो बजट वाली प्राकृतिक खेती कहीं ज्यादा फायदेमंद साबित हो रही है।

प्राकृतिक खेती के सूत्रधार महाराष्ट्र के सुभाष पालेकर की मानें तो जैविक खेती के नाम पर जो लिखा और कहा जा रहा है, वह सही नहीं है । जैविक खेती रासायनिक खेती से भी खतरनाक है तथा विषैली और खर्चीली साबित हो रही है । उनका कहना है कि वैश्विक तापमान वृद्धि में रासायनिक खेती और जैविक खेती एक महत्वपूर्ण यौगिक है । वर्मीकम्पोस्ट का जिक्र करते हुये वे कहते हैं... यह विदेशों से आयातित विधि है और इसकी ओर सबसे पहले रासायनिक खेती करने वाले ही आकर्षित हुये हैं, क्योंकि वे यूरिया से जमीन के प्राकृतिक उपजाऊपन पर पड़ने वाले प्रभाव से वाकिफ हो चुके हैं।

पर्यावरण पर असर

कृषि वैज्ञानिकों एवं इसके जानकारों के अनुसार फसल की बुवाई से पहले वर्मीकम्पोस्ट और गोबर खाद खेत में डाली जाती है और इसमें निहित 46प्रतिशत उड़नशील कार्बन हमारे देश में पड़ने वाली 36 से 48 डिग्री सेल्सियस तापमान के दौरान खाद से मुक्त हो वायुमंडल में निकल जाता है । इसके अलावा नायट्रस, ऑक्साइड और मिथेन भी निकल जाती है और वायुमंडल में हरितगृह निर्माण में सहायक बनती है । हमारे देश में दिसम्बर से फरवरी केवल तीन महीने ही ऐसे है, जब तापमान उक्त खाद के उपयोग के लिये अनुकूल रहता है ।

आयातित केंचुआ या देशी  केंचुआ?

वर्मीकम्पोस्ट खाद बनाने में इस्तेमाल किये जाने वाले आयातित केंचुओं को भूमि के उपजाऊपन के लिये हानिकारक मानने वाले श्री पालेकर बताते है कि दरअसल इनमें देसी केचुओं का एक भी लक्षण दिखाई नहीं देता । आयात किया गया यह जीव केंचुआ न होकर आयसेनिया फिटिडा नामक जन्तु है, जो भूमि पर स्थित काष्ट पदार्थ और गोबर को खाता है । जबकि हमारे यहां पाया जाने वाला देशी केंचुआ मिट्टी एवं इसके साथ जमीन में मौजूद कीटाणु एवं जीवाणु जो फसलों एवं पेड़- पौधों को नुकसान पहुंचाते है, उन्हें खाकर खाद में रूपान्तरित करता है । साथ ही जमीन में अंदर बाहर ऊपर नीचे होता रहता है, जिससे भूमि में असंख्य   छिद्र होते हैं, जिससे वायु का संचार एवं बरसात के जल का पुर्नभरण हो जाता है । इस तरह देसी केचुआ जल प्रबंधन का सबसे अच्छा वाहक है । साथ ही खेत की जुताई करने वाले “हल “ का काम भी करता है ।

सफलता की शुरुआत

जीरो बजट प्राकृतिक खेती जैविक खेती से भिन्न है तथा ग्लोबल वार्मिंग और वायुमंडल में आने वाले बदलाव का मुकाबला एवं उसे रोकने में सक्षम है । इस तकनीक का इस्तेमाल करने वाला किसान कर्ज के झंझट से भी मुक्त रहता है । प्राप्त जानकारी के अनुसार अब तक देश में करीब 40 लाख किसान इस विधि से जुड़े हुये है।

जीरो बजट की खेती करने की विधि

(एक एकड़ खेत के लिए)

१.      बीजोपचार :    कोई भी बीज खेत में लगाने से पहले आप बीज को उपचारित करते है ताकि उसमे कभी कीड़ा ना लगे क्योकि कई बार ऐसा होता है की हमारा बीज बोने के बाद भी नहीं अंकुरण देतासामग्री : पानी २० लीटर, देशी गाय का गोबर ५ किलो, देशी गाय का मूत्र ५ लीटर, ५० ग्राम चुना और १ मुट्ठी मिटटी(जंगल, जहा कभी हल न चला हो) !बनाने की विधि :
१. सबसे पहले ५ किलो गोबर किसी कपडे में लेकर उसे बांधकर, २० लीटर पानी में डालकर १२ घंटे के लिए लटकाकर रख दें.२. १ लीटर पानी में ५० ग्राम चुना डालकर रात भर के लिए छोड़ दो
३. १२ घंटे के बाद पानी से गोबर को निकालो औऔर उसका पानी निचोड़ दो उस २० लीटर पानी में १ मुठ्ठी मिटटी+५ लीटर गोमूत्र + चुना वाला पानी मिलाकर मिश्रण को दाए से बाए की तरफ चलाकर मिलाओ | अब इस मिश्रण को २४ घंटे के लिए रख दो अब ये बीजोपचार के लिए तैयार है ! इसे बिजामृत कहते है!
५. जिस फसल की बीज लगानी है उसका बीज लेकर उसमे इस पानी को छिड़क कर मिला ले और आधे घंटे से एक घंटे में खेत में बुवाई कर दें|लाभ : बीज को कैल्शियम मिल जाता है, बीज मजबूत और खराब नहीं होते, और फसल रोग रहित होगी|नोट : बीज खेत में डालने का सही समय शाम का होता है!२.      खाद :
बीजोपचार के पश्चात हम आपको फसल में खाद बनाने की विधि भी बता रहे है जिससे आपको रासायनिक खाद पर निर्भरता बंद हो जाए. हमारी मिटटी में सारा काम जीवाणु करते है वो ही हमारे फसल को आवश्यक पोषक तत्व पहुचाते है. इस खाद को बनाने से मिटटी में फसल को फायदा पहुचाने वाले जीवो की वृद्दि होगी. आईये जानते है कैसे बनाये खाद |
प्रथम विधि : (जीवामृत): इस विधि में खेत में लाभ पहुँचाने वाले जीवाणु का धीरे-धीरे वृद्धि होता है इसका फल आपको १ से दो साल में अनुभव होता है लेकिन लाभकारी है यदि आपका खेत ज्यादा बीमार ना हो तो इस जीवामृत का उपयोग करें!
सामग्री : १५० लीटर पानी, १५ किलो ताज़ा गोबर, ५-१० लीटर मूत्र, १ किलो दाल का आटा(कोई भी दाल), १ किलो गुड, १/२ किलो मिटटी (पीपल या बरगद के पेड़)नोट : 1.  मूत्र ज्यादा ना मिले तो १ लीटर मूत्र में ५ लीटर पानी (अच्छा तो नहीं फिर भी विकल्प के रूप में)2. इस विधि में जीवामृत लगभग ४८ घंटे में तैयार हो जाती है| इसकी समाप्ति तिथि ६-७ दिन तक है!

बनाने की विधि :
१.      सबसे पहले इन सामग्रियों को प्लास्टिक के एक पात्र मे मिलाकर ६ दिन तक छाया में या अँधेरे में ढककर रखे ६ दिन तक रखे और सुबह शाम किसी डंडे से चलाते रहे. ६वे दिन के बाद ये तैयार हो जाती है
२.      अब ये खेत में डालने के लिए तैयार है इसे जीवामृत कहते है! ये १५० लीटर का होगा!
द्वितीय विधि : (जीवाणु घोल):- इस विधि में ये खाद दूध से दही ज़माने के पद्धति पर काम करता है जैसे १०० किलो दूध में १ चम्मच दही डालो तो वो दूध को अपने जैसा बनाने की क्षमता रखता है ठीक इसी प्रकार ये घोल है बीमार से बीमार मिटटी में डालने पर इसके जीवाणु अपने आप मिटटी को अपने जैसा बनाने लगते है इसको डालने पर आपके खेत को इसका फल जल्दी ही मिलने लगता है!सामग्री : १५-२० किलो ताज़ा गोबर, ५-१० लीटर मूत्र, १ किलो दाल का आटा (कोई भी दाल), १ किलो गुड, १/२ किलो मिटटी (पीपल या बरगद के पेड़).बनाने की विधि :
१.      इन सभी सामग्री को आप प्लास्टिक के बर्तन में मिलाकर कपडे- या जुट के बोरे से इसका मुह ढक दो और सुबह–शाम लकड़ी के डंडे से बाए से दांये एक बार चला दो १५ दिन तक ऐसा करो १५ दिन के बाद ये खाद तैयार हो जायेगी! इसमें करोडो करोडो सूक्ष्म जीव पैदा हो जायेंगे!२.      अब इस खाद को १० गुना पानी में डालकर घोल बनाना है यानि १५०-२०० लीटर पानी में इसे मिला दें और अच्छी तरह मिला ले अब ये पूर्ण घोल मिटटी में डालने योग्य तैयार हो गया है इसे जीवाणु घोल कहते है|खेत में डालने की विधि :१.      यदि खेत खाली है तो खेत में डब्बे से छिड़ककर दे दीजिये! डालने के एक दिन बाद बुवाई कर दीजिये!
२.      यदि खेती में फसल खड़ी है तो पानी लगाते वक्त दे दीजिये पानी की नाली में एक छिद्रयुक्त कंटेनर लेकर उसके मुहाने पर भरकर खोल दीजिये वो पानी के साथ अपने आप चला जायेगा
३.      इसके अलावा इसको डालने की विधि
 यदि आपके पास जानवर ज्यादा है तो इसी १५०-२०० लिटर  घोल में उनका उपला राख मिलाकर लड्डू बना लो और उन लड्डुओ को खेतों में डालो.४.      याद रहे ये ये घोल हर २१ दिन पर बनाकर डालना है!

३.      फसल पर कीटों का प्रभाव :
यदि फसल पर कीटों का प्रभाव हो तो इनसे निपटने के लिए ३ तरह की विधियां है
   अ. निमास्त्रम, ब. ब्रहमास्त्रं, स.अग्निअस्त्रम द. सप्तधान्यांकुर काढ़ा(शक्तिवर्धक दवा)अ. निमास्त्रम :  १०० लीटर पानी + ५ लीटर गोमूत्र + ५ किलो गोबर + ५ किलो निम् के पत्ते और फलियाँ| इन सबको मिलकर ४८ घंटे के लिए रखे| दिन में इसे २ बार चला दे | ४८ घंटे के बाद इसे छानकर फसल पर छिडकाव करे. (उपयोग : फसल बोने के २१वे दिन से ३०वे दिन तक)ब. ब्रह्मास्त्रम : (निमास्त्र छिडकाव के १५ दिन के बाद)   १० लीटर गोमूत्र + ३ किलों निम की पत्ती(निम् का फल यदि हो) + २ किलों सीताफल का पत्ता + २ किलों पपीता का पत्ता + २ किलो अनार का पत्ता + २ किलों अमरुद का पत्ता + २ किलों धतुरा का पत्ता | इन सबको मिलकर कूटकर ५ बार उबाल आने तक उबालकर १ दिन के लिए रखो फिर इसे छानकर अलग कर लो ये ब्रह्मास्त्र   है
 उपयोग करने के लिए १०० लीटर पानी में २ लीटर डालकर स्प्रे कीजिये! (रोकथाम : चुसक किट, फली छेदक के लिए, इल्लियो के उपयोग)स. अग्निअस्त्रम :  १० लीटर गोमूत्र + १ किलों सुरती(खैनी) + १/२ किलों हरी लालमिर्च ++ ५ किलों निम् की पत्ती + १/२ किलो लहसुन (स्थानीय),  खूब अच्छी तरह से कूटकर ५ बार उबाल आने तक पकाए उसके बाद २४ घंटे के लिए रख दे फिर उसके बार उसको छानकर फसल पर छिडक दे. (रोकथाम: पत्ती छेदक कीड़ा,तना छेदक, फल छेदक को दूर करने के काम आता है)नोट: इन तीन प्रकार के जो अस्त्रं दिए है इनको निश्चित समय पर छिडकाव करें बीमारी आगमन की प्रतीक्षा ना करें!द. सप्तधान्यांकुर काढ़ा (टोनिक, शक्तिवर्धक औषधि)- जब फसल के दाने दुग्ध अवस्था(फल की बाल्यावस्था) में हो तब इसका प्रयोग लाभकारी सिद्ध होता है और इसको हरी सब्जी के काटने के ५ दिन पहले और यदि आपके पास कोई फूल का बागान हो तो उसकी कलि निकलने से पहले इसका छिडकाव अवश्य करें|सामग्री: मुंग – १०० ग्राम, उड़द – १०० ग्राम, लोबिया(बोडा, चौली)- १०० ग्राम, मोठ(दाल वाली साबुत) – १००ग्राम, मसूर साबुत  – १०० ग्राम, चना साबुत – १०० ग्राम, गेहूं – १०० ग्राम.
बनाने की विधि और छिडकाव :१.     सबको आपस में मिलाकर पानी में भिगो दें तत्पश्चात ३ दिन के बाद निकालकर गिले कपडे में पोटली बांधकर अंकुरण के लिए रख देवे. जो पानी हे  उसे फेके नहीं. जब एक सेमी की अंकुर निकल आये तब सातों प्रकार के अनाजो को सिल – बट्टे पर पिस कर चटनी बना ले!२.      २०० लीटर पानी में १० लीटर गोमूत्र और वो दानो का पानी और चटनी अच्छे से मिलाकर २ घंटे के लिए रख देवे३.      कपडे से छानकर उसी दिन १ एकड़ में स्प्रे कीजिये!

कुछ और कीटनाशक

१.      छाछ द्वारा – १ मिटटी का घड़ा, ५ लीटर छास, १ ताम्बे की धातु
विधि. सबसे पहले एक मिटटी के घड़े को लेकर उसमे ५ लीटर छाछ डालकर उसमे ताम्बे की कोई धातु (किल, लोटा, तार) आदि डालकर पशु और बच्चो से दूर १५ दिन के लिए रखे इतने दिन में ये पूर्णतया तैयार हो जाता है इसके बाद १० – १५ लीटर पानी मे २०० – २५० ml में  इस छास को मिलकर किसी भी फसल पर स्प्रे करिए.
रोकथाम : पेड़ो पर लगने वाले मकड़ी के जाले, पत्तियों के किट
२.      निम् आक और छाछ द्वारा – २ किलो निम् की पत्ती, २ किलो आकडे(मदार) के पत्ते, ५ लीटर छाछ + १ मिटटी का घडा, उबालने के लिए टिन का डिब्बा, ५ लीटर पानी.विधि. सबसे पहले निम् और आकडे के पत्ते को तोड़कर आपस में मिला कर हल्का कूट ले. फिर टिन के डिब्बे में ५ लीटर पानी और इन पत्तियों को डाले अब इसे तब तक पकायें जब तक पूरी पत्तिया काली ना पड़ जाएँ. फिर इसके बाद इनको मिटटी के घड़े में डालकर छाछ मिला दे. इसके बाद इसको किसी भूमि में १० दिन के लिए गाड़कर रख दे. इसके बाद इसको निकलकर १५ लीटर पानी में १००-१५० मिलीग्राम मिलाकर छिडकाव करें !रोकथाम : मिर्च के फसल पर विशेष प्रभावी, फसलो में मच्छरों का प्रकोप, तना छेदक, फली चुसक कीटों(इल्लियों) के लिए प्रभावी दवा है!३.      निम् + गो-मूत्र द्वारा- ५ किलो निम् की कुट्टी हुई पत्ती + १० लीटर गो-मुत्र को मिलकर १५ दिन तक रख दीजिये १५ दिन के बाद छानकर, १०० लीटर पानी में मिलकर फसल पर छिडकाव करिए|रोकथाम: फफुद, पत्ती किट से बचाव होता हैं.
सुभाष पालेकर विधि

आपको अपनी बिक्री पर 01 अक्टूबर 2020 से TCS Collect करना होगा


*आयकर प्रावधानों में TCS संबंधित महत्वपूर्ण बदलाव*

*अब आपको अपनी बिक्री पर 01 अक्टूबर 2020 से TCS Collect करने की आवश्यकता होगी.*
 
*प्रश्न-* यह प्रावधान किस करदाता पर लागू होगा ?
*उत्तर-* उपरोक्त प्रावधान सभी करदाताओं जिनका की वित्त वर्ष 2019-20 में कुल बिक्री (Total Sale) 10 करोड़ से अधिक है, उन पर लागू होगा.
यदि ऐसे करदाता किसी एक खरीददार को वित्त वर्ष में 50 लाख से ज्यादा का माल बेचते हों, तो 50 लाख से ऊपर की बिक्री पर *बिल में ही* TCS Collect करके गवर्नमेंट को जमा कराना होगा.

*प्रश्न-* TCS की Rate क्या होगी ?
*उत्तर-* TCS की Rate 1 अक्टूबर 2020 से 31 मार्च 2021 तक @0.075 % होगी. 1 अप्रैल 2021 से @0.1% होगी (यदि खरीददार के पास Valid PAN हो तो) अन्यथा @5% से TCS Collect करना होगा.

*प्रश्न-* विक्रेता की उपरोक्त प्रावधानों के लिए क्या-क्या जिम्मेदारी है ?
*उत्तर-* विक्रेता को बिक्री पर विक्रय बिल में TCS Charge करना होगा और ऐसे TCS को Govt. Treasury में जमा कराना होगा. *उसके पश्चात TCS की Return भी भरनी होगी.*

*प्रश्न-* TCS को Govt. Treasury में कब जमा कराना है ?
*उत्तर-* TCS को क्रेता से पेमेंट मिलने पर जमा कराना है. अतः TCS जमा कराने का दायित्व Collection Basis पर है ना कि Bill Basis पर.

*प्रश्न-* यदि 30 सितंबर 2020 तक किसी क्रेता को 50 लाख तक की बिक्री की है और उसके पश्चात 1 अक्टूबर से 31 मार्च 2021 तक 10 लाख की बिक्री की है तो TCS किस राशि पर जमा कराना है ?
*उत्तर-* TCS 50 लाख से ऊपर की राशि 10 लाख पर ही जमा कराना है.

*प्रश्न-* TCS को बिल में कहां और कैसे दर्शाना है और इसका GST पर क्या प्रभाव पड़ेगा ?
*उत्तर-* TCS को बिल में GST Charge करने के पहले दिखाना है और GST, Sale Value + TSC की Amount पर चार्ज किया जाएगा.

सोमवार, 28 सितंबर 2020

JIO POS Lite Application से पैसा कमाए

 JIO POS Application क्या है और इससे पैसा कैसे कमाए?

नमस्कार दोस्तों, यदि आप भी JIO POS Lite Application से पैसे कैसे कमाना चाहते है और वो भी घर बैठे तो आप सही जगह पर है। क्युकी इस post पर में आपको पूरी जानकारी देने वाला हूं कि कैसे Jio POS Lite Application को उपयोग करके घर बैठे पैसे कमा सकते हो। हां, ये सच बात है कि Jio POS Lite एप्लिकेशन के मदद से आप लाखो रूपए तो कमा नहीं सकते पर अपने pocket money जरूर निकाल सकते हो।
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अगर आप वास्तव में JIO POS Lite Application से पैसे कमाने के इच्छुक हैं तो इस पोस्ट को अवश्य पढ़ें।

JIO POS Lite Application क्या है?



JIO POS Lite एक तरह की application है। इसके मदद से आप किसी के भी Jio number को रिचार्ज कर सकते है। पहले जैसे हम लोगो को कोई भी recharge करना पड़ता था तो कोई भी mobile recharging shop पर जाना पड़ता था या फिर Paytm या Phonepe जैसे aaplication के मदद से रिचार्ज करना पड़ता था।


पर आज से कोई भी अपने मोबाइल से JIO POS Lite Application को उपयोग करके अपने और दूसरे किसी के भी jio नंबर को recharge कर सकता है। और इस के बदले jio के तरफ से रेकेज करने वाले को 4% की cashback भी मिलता है। 


JIO POS Lite Application से पैसे कैसे कमाए |

JIO ने JIO POS Lite Application को develop किया। इस एप्लिकेशन के मदद से आप घर बैठे किसी का भी रेचेज कर सकते हो बड़े ही आसानी से और इसके बदले हर रिचार्ज के 4% प्रतिशत तक कमीशन मिल जाती है। 

Jio Recharge करके पैसे बड़े आसानी से कमा सकते है।


JIO POS Lite Application से पैसे कमाने केलिए क्या करना पड़ेगा?



Step 1. सबसे पहले play store से Jio POS Lite Application Download करे।
Jio POS Application क्या है और इससे पैसा कैसे कमाए?
Step 2. Allow All बटन पर क्लिक करे और उसको contact, location or media का एसेस देदो।
Jio POS Application क्या है और इससे पैसा कैसे कमाए?
Step 3. अब JIO associate से पैसे कमाई करने के लिए आपको Sign up बटन पर क्लिक करे।
Jio POS Application क्या है और इससे पैसा कैसे कमाए?
Step 4. Sign up करने केलिए अपना Email ID और Jio नंबर डालकर Generate OTP के उपर क्लिक करना होगा।
Jio POS Application क्या है और इससे पैसा कैसे कमाए?
Step 5. Generate OTP के उपर क्लिक करने के बाद आपको एक OTP मिलेगा अपने Jio नंबर पर उस OTP को लिख कर Validate OTP के उपर क्लिक करे। 
Jio POS Application क्या है और इससे पैसा कैसे कमाए?
Step 6. एप्लिकेशन आपका full name और Email ID अपने आप show कर देगा खाली आपको नीचे दिए गए दोनों बॉक्स पर क्लिक कर के Countinue बटन पर क्लिक करे।
Jio POS Application क्या है और इससे पैसा कैसे कमाए?
Step 7. अब Done बटन पर क्लिक करे।

Step 8. लगभग सारे काम ख़तम हो चुका है। अब आपको Sign In के बटन के उपर क्लिक करे।
Jio POS Application क्या है और इससे पैसा कैसे कमाए?

Step 9. अपना JIO मोबाइल नंबर डाले और Generate OTP के उपर क्लिक करे।
Jio POS Application क्या है और इससे पैसा कैसे कमाए?
Step 10. अब के JIO नंबर पे एक OTP आयेगा उसको OTP वाले बॉक्स मे लिख कर Velidate OTP के उपर क्लिक करे।
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Step 11. अपना mPIN set करे Transections Authentication केलिए। और set pin के बटन पर क्लिक करे।
Jio POS Application क्या है और इससे पैसा कैसे कमाए?
Step 12. Finally, आपका JIO POS Lite Application तैयार है पैसे कमाने केलिए। 

JIO POS Lite Application कैसे Use करे?

JIO POS Lite Application को Use करना बहुत ही आसान है। इसको कोई भी चला सकता है, क्युकी ये एप्लिकेशन कि यूजर इंटरफेस (User Interface or UI) बहुत ही simple है।


इसमें बड़े ही आसानी से पैसे add कर सकते है और किसी का रिचार्ज कर सकते है और वो भी अपने ही मोबाइल से घर बैठे।

Jio POS Lite एप्लिकेशन के कुछ FAQs:


1. Jio नंबर रिचार्ज करके पैसा कैसे कमाएं?


Jio नंबर रिचार्ज करके आप पैसे कमाई कर सकते है, आपको हर रिचार्ज पर कुछ प्रतिशत की कमीशन मिलता है। Jio ने लॉकडाउन के चलते ये सुनेहरा अवसर लाया है।


2. इस एप से कैसे होगी कमाई?


जब आप Jio POS Lite ऐप को अपने मोबाइल पर install करेंगे, तो सबसे पहले ₹2000 रूपए add करना पड़ेगा, उसके बाद ही आप दूसरे जियो नंबर में recharge कर सकते है। जब भी आप किसी भी मोबाइल नंबर मे recharge करते है, तो आपको कुछ प्रतिशत की कमीशन मिलेगा।


इसी तरीके से आप Jio POS Lite एप्लिकेशन से पैसे कमाई कर सकते है।


3. इस एप से कमीशन पाने के लिए रजिस्ट्रेशन आवश्यक है?


जी हां, दोस्तो जदी आप Jio POS Lite एप्लिकेशन के जरिए पैसे या कमीशन पाने केलिए आपको रागिस्टेशन करना आवश्यक है। हालाकि आपको कोई हार्ड कॉपी इसमें देने की जरूरत नहीं है, फिर भी बिना रजिस्टेशन के आपको कमीशन नहीं मिल सकता।


4. Jio POS Lite एप्लिकेशन install कैसे करे?


आपको सबसे पहले गूगल प्ले स्टोर पर जाना होगा और सर्च बार मे Jio POS Lite सर्च करे। आप ऐसे ही इस एप्लिकेशन को install कर सकते है।


5. Jio POS Lite App से कितने प्रतिशत कमीशन मिलता है?


इस एप्लिकेशन से आपको यादा तो नहीं पर लगभग 4 प्रतिशत की कमीशन मिलता है।


6. Jio POS Lite Application मे Cash Add कैसे करे?


JIO POS Lite Application मे Cash Add करने के लिए आपको load money के उपर क्लिक करना होगा उसके बाद जितना पैसे add करना चाहते उतना amount डाल के Devid card, credit card, etc. से Cash Add कर सकते है।

सिर्फ एक केंचुआ एक किसान के बचा देता है 4800 रू,जाने कैसे


👉सिर्फ एक केंचुआ एक किसान के बचा देता है 4800 रू,जाने कैसे
केंचुए मिट्टी को नरम बनाते है पोला बनाते है उपजाऊ बनाते हैं केंचुए का काम क्या है ?? ऊपर से नीचे जाना ,नीचे से ऊपर आना पूरे दिनमे दस वीस  चक्कर वो ऊपर से नीचे ,नीचे से ऊपर लगा देता है !

अब जब केंचुआ नीचे जाता तो एक रास्ता बनाते हुए जाता है और जब फिर ऊपर आता है तो फिर एक रास्ता बनाते हुए ऊपर आता है ! तो इसका परिणाम ये होता है की ये छोटे छोटे छिद्र जब केंचुआ तैयार कर देता है तो बारिश का पानी एक एक बूंद इन छिद्रो से होते हुए तल मे जमा हो जाता है !

साथ ही अगर एक केंचुआ साल भर जिंदा रहे तो एक वर्ष मे 36 मेट्रिक टन मिट्टी को उल्ट पूलट कर देता है और उतनी ही मिट्टी को ट्रैक्टर से उल्ट पलट करना पड़े तो सौ लीटर डीजल लग जाता है 100 लीटर डीजल 4800 का है ! मतलब एक केंचुआ एक किसान का 4800 रूपये बचा रहा है ऐसे करोड़ो केंचुए है सोचो कितना लाभ हो रहा है इस देश को !

👉गोबर खाद डालने से फायदा क्या होता है ?

रसायनिक खाद डालो केंचुआ मर जाता है गोबर का खाद डालो केंचुआ ज़िंदा हो जाता है क्योंकि गोबर केंचुए का भोजन है केंचुए को भोजन मिले वह अपनी जन संख्या बढ़ाता है और इतनी तेज बढ़ाता है की कोई नहीं बढ़ा शकता भारत सरकार कहती है हम दो हमारे दो !

केंचुआ इसे नहीं मानता इसको । एक एक केंचुआ 50 50 हजार बच्चे पैदा करके मरता है एक प्रजाति का केंचुआ तो 1 लाख बच्चे पैदा करता है ! तो वो एक ज़िंदा है तो उसने एक लाख पैदा कर दिये अब वो एक एक लाख आगे एक एक लाख पैदा करेंगे करोड़ो केंचुए हो जाएंगे अगर गोबर डालना शुरू किया !!

ज्यादा केंचुआ होंगे तो ज्यादा मिट्टी उलट पलट होगी तो फिर छिद्र भी ज्यादा होंगे तो बारिश का सारा पानी मिट्टी मे धरती मे चला जाएगा ! पानी मिट्टी मे चला गया तो फालतू पानी नदियो मे नहीं जाएगा ,नदियो मे फालतू पानी नहीं गया तो बाढ़ नहीं आएगी तो समुद्र मे फालतू पानी नहीं जाएगा इस देश का करोड़ो करोड़ो रूपये का फायदा हो जाएगा !! इसलिए आप किसानो को समझाओ की भाई गोबर की खाद डालो एक ग्राम भी उत्पादन कम नहीं होगा

दरअसल गोबर जो है वो बहुत तरह के जीव जन्तुओ का भोजन है और यूरिया भोजन नहीं जहर है ।आपके खेत मे एक जीव होता है जिसे केंचुआ कहते हैं केंचुआ को कभी पकड़ना और उसके ऊपर थोड़ा यूरिया डाल देना आप देखोगे केंचुआ तडपना शुरू हो जाएगा और तुरंत मर जाएगा ! जब हम टनों टन यूरिया खेत मे डालते है करोड़ो केंचुए मार डाले हमने यूरिया डाल डाल के !!

जिस किसान के खेत मे यूरिया डालेगा तो केंचुआ मर जाएगा केंचुआ मर गया तो मिट्टी मे ऊपर नीचे कोई जाएगा नहीं तो मिट्टी कठोर होती जाएगी कड़क होती जाएगी ।मिट्टी और रोटी के बारे एक बात कही जाती है की इन्हे फेरते रहो नहीं तो खत्म हो जाती है रोटी को फेरना बंद किया तो जल जाती है मिट्टी को फेरना बंद करो पत्थर जैसी हो जाती है !मिट्टी को फेरने का मतलब समझते है ?? ऊपर की मिट्टी नीचे ! नीचे की ऊपर !ऊपर की नीचे ,नीचे की ऊपर ये केंचुआ ही करता है ! केंचुआ किसान का सबसे बड़ा दोस्त है

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रविवार, 27 सितंबर 2020

Mukul Kanitkar thanks PM Modi for mentioning Suryanamaskar in Parliament...

श्री मुकुल भैया के द्वारा मा.प्रधान मंत्री जी के साथ संवाद का वीडियो प्रधानमंत्री जी के official channel पर

इस वीडियो में आदरणीय मुकुल भैया द्वारा मोदीजी के माध्यम से पूरे राष्ट्र को दिए संदेश को सुनकर स्वयं को गौरवान्वित अनुभव कर रहा हूं कि मुझे बचपन से सदैव आपका सानिध्य और मार्गदर्शन मिलता रहा है ।



आप द्वारा फिटनेस के अर्थ और महत्व को लेकर दिया गया चिंतन/स्पष्टीकरण अत्यंत महत्वपूर्ण और अनुकरणीय है।



मात्र 7 मिनट के वक्तव्य में आपने स्पष्ट कर दिया है कि राष्ट्र कार्य में लगे हुवे कार्यकर्ताओं के लिए फिट रहना कितना आवश्यक है? क्यों हमें राष्ट्र कार्य करना है? विश्वगुरु का आशय क्या है? क्यों इस राष्ट्र को विश्वगुरु होना है? इन सबके स्पष्टीकरण के लिए गीता स्वाध्याय कितना महत्वपूर्ण है ?

"खुद को फिट रखना केवल एक व्यक्तिगत अपेक्षा नहीं अपितु समाज के प्रति हमारा परम कर्तव्य है।"



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