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बुधवार, 30 सितंबर 2020

जीरो बजट प्राकृतिक खेती(नैसर्गिक खेती, आर्गेनिक खेती)


जीरो बजट प्राकृतिक खेती(नैसर्गिक खेती, आर्गेनिक खेती)

जीरो बजट प्राकृतिक खेती

    जीरो बजट प्राकृतिक खेती देसी गाय के गोबर एवं गौमूत्र पर आधारित है । एक देसी गाय के गोबर एवं गौमूत्र से एक किसान तीस एकड़ जमीन पर जीरो बजट खेती कर सकता है । देसी प्रजाति के गौवंश के गोबर एवं मूत्र से जीवामृत, घनजीवामृत तथा जामन बीजामृत बनाया जाता है । इनका खेत में उपयोग करने से मिट्टी में पोषक तत्वों की वृद्धि के साथ-साथ जैविक गतिविधियों का विस्तार होता है । जीवामृत का महीने में एक अथवा दो बार खेत में छिड़काव किया जा सकता है । जबकि बीजामृत का इस्तेमाल बीजों को उपचारित करने में किया जाता है ।

 इस विधि से खेती करने वाले किसान को बाजार से किसी प्रकार की खाद और कीटनाशक रसायन खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती है। 

फसलों की सिंचाई के लिये पानी एवं बिजली भी मौजूदा खेती-बाड़ी की तुलना में दस प्रतिशत ही खर्च होती है ।

सफल उदाहरण

    गाय से प्राप्त सप्ताह भर के गोबर एवं गौमूत्र से निर्मित घोल का खेत में छिड़काव खाद का काम करता है और भूमि की उर्वरकता का ह्रास भी नहीं होता है। इसके इस्तेमाल से एक ओर जहां गुणवत्तापूर्ण उपज होती है, वहीं दूसरी ओर उत्पादन लागत लगभग शून्य रहती है । राजस्थान में सीकर जिले के एक प्रयोगधर्मी किसान कानसिंह कटराथल ने अपने खेत में प्राकृतिक खेती कर उत्साह वर्धक सफलता हासिल की है । श्री सिंह के मुताबिक इससे पहले वह रासायिक एवं जैविक खेती करता था, लेकिन देसी गाय के गोबर एवं गोमूत्र आधारित जीरो बजट वाली प्राकृतिक खेती कहीं ज्यादा फायदेमंद साबित हो रही है।

प्राकृतिक खेती के सूत्रधार महाराष्ट्र के सुभाष पालेकर की मानें तो जैविक खेती के नाम पर जो लिखा और कहा जा रहा है, वह सही नहीं है । जैविक खेती रासायनिक खेती से भी खतरनाक है तथा विषैली और खर्चीली साबित हो रही है । उनका कहना है कि वैश्विक तापमान वृद्धि में रासायनिक खेती और जैविक खेती एक महत्वपूर्ण यौगिक है । वर्मीकम्पोस्ट का जिक्र करते हुये वे कहते हैं... यह विदेशों से आयातित विधि है और इसकी ओर सबसे पहले रासायनिक खेती करने वाले ही आकर्षित हुये हैं, क्योंकि वे यूरिया से जमीन के प्राकृतिक उपजाऊपन पर पड़ने वाले प्रभाव से वाकिफ हो चुके हैं।

पर्यावरण पर असर

कृषि वैज्ञानिकों एवं इसके जानकारों के अनुसार फसल की बुवाई से पहले वर्मीकम्पोस्ट और गोबर खाद खेत में डाली जाती है और इसमें निहित 46प्रतिशत उड़नशील कार्बन हमारे देश में पड़ने वाली 36 से 48 डिग्री सेल्सियस तापमान के दौरान खाद से मुक्त हो वायुमंडल में निकल जाता है । इसके अलावा नायट्रस, ऑक्साइड और मिथेन भी निकल जाती है और वायुमंडल में हरितगृह निर्माण में सहायक बनती है । हमारे देश में दिसम्बर से फरवरी केवल तीन महीने ही ऐसे है, जब तापमान उक्त खाद के उपयोग के लिये अनुकूल रहता है ।

आयातित केंचुआ या देशी  केंचुआ?

वर्मीकम्पोस्ट खाद बनाने में इस्तेमाल किये जाने वाले आयातित केंचुओं को भूमि के उपजाऊपन के लिये हानिकारक मानने वाले श्री पालेकर बताते है कि दरअसल इनमें देसी केचुओं का एक भी लक्षण दिखाई नहीं देता । आयात किया गया यह जीव केंचुआ न होकर आयसेनिया फिटिडा नामक जन्तु है, जो भूमि पर स्थित काष्ट पदार्थ और गोबर को खाता है । जबकि हमारे यहां पाया जाने वाला देशी केंचुआ मिट्टी एवं इसके साथ जमीन में मौजूद कीटाणु एवं जीवाणु जो फसलों एवं पेड़- पौधों को नुकसान पहुंचाते है, उन्हें खाकर खाद में रूपान्तरित करता है । साथ ही जमीन में अंदर बाहर ऊपर नीचे होता रहता है, जिससे भूमि में असंख्य   छिद्र होते हैं, जिससे वायु का संचार एवं बरसात के जल का पुर्नभरण हो जाता है । इस तरह देसी केचुआ जल प्रबंधन का सबसे अच्छा वाहक है । साथ ही खेत की जुताई करने वाले “हल “ का काम भी करता है ।

सफलता की शुरुआत

जीरो बजट प्राकृतिक खेती जैविक खेती से भिन्न है तथा ग्लोबल वार्मिंग और वायुमंडल में आने वाले बदलाव का मुकाबला एवं उसे रोकने में सक्षम है । इस तकनीक का इस्तेमाल करने वाला किसान कर्ज के झंझट से भी मुक्त रहता है । प्राप्त जानकारी के अनुसार अब तक देश में करीब 40 लाख किसान इस विधि से जुड़े हुये है।

जीरो बजट की खेती करने की विधि

(एक एकड़ खेत के लिए)

१.      बीजोपचार :    कोई भी बीज खेत में लगाने से पहले आप बीज को उपचारित करते है ताकि उसमे कभी कीड़ा ना लगे क्योकि कई बार ऐसा होता है की हमारा बीज बोने के बाद भी नहीं अंकुरण देतासामग्री : पानी २० लीटर, देशी गाय का गोबर ५ किलो, देशी गाय का मूत्र ५ लीटर, ५० ग्राम चुना और १ मुट्ठी मिटटी(जंगल, जहा कभी हल न चला हो) !बनाने की विधि :
१. सबसे पहले ५ किलो गोबर किसी कपडे में लेकर उसे बांधकर, २० लीटर पानी में डालकर १२ घंटे के लिए लटकाकर रख दें.२. १ लीटर पानी में ५० ग्राम चुना डालकर रात भर के लिए छोड़ दो
३. १२ घंटे के बाद पानी से गोबर को निकालो औऔर उसका पानी निचोड़ दो उस २० लीटर पानी में १ मुठ्ठी मिटटी+५ लीटर गोमूत्र + चुना वाला पानी मिलाकर मिश्रण को दाए से बाए की तरफ चलाकर मिलाओ | अब इस मिश्रण को २४ घंटे के लिए रख दो अब ये बीजोपचार के लिए तैयार है ! इसे बिजामृत कहते है!
५. जिस फसल की बीज लगानी है उसका बीज लेकर उसमे इस पानी को छिड़क कर मिला ले और आधे घंटे से एक घंटे में खेत में बुवाई कर दें|लाभ : बीज को कैल्शियम मिल जाता है, बीज मजबूत और खराब नहीं होते, और फसल रोग रहित होगी|नोट : बीज खेत में डालने का सही समय शाम का होता है!२.      खाद :
बीजोपचार के पश्चात हम आपको फसल में खाद बनाने की विधि भी बता रहे है जिससे आपको रासायनिक खाद पर निर्भरता बंद हो जाए. हमारी मिटटी में सारा काम जीवाणु करते है वो ही हमारे फसल को आवश्यक पोषक तत्व पहुचाते है. इस खाद को बनाने से मिटटी में फसल को फायदा पहुचाने वाले जीवो की वृद्दि होगी. आईये जानते है कैसे बनाये खाद |
प्रथम विधि : (जीवामृत): इस विधि में खेत में लाभ पहुँचाने वाले जीवाणु का धीरे-धीरे वृद्धि होता है इसका फल आपको १ से दो साल में अनुभव होता है लेकिन लाभकारी है यदि आपका खेत ज्यादा बीमार ना हो तो इस जीवामृत का उपयोग करें!
सामग्री : १५० लीटर पानी, १५ किलो ताज़ा गोबर, ५-१० लीटर मूत्र, १ किलो दाल का आटा(कोई भी दाल), १ किलो गुड, १/२ किलो मिटटी (पीपल या बरगद के पेड़)नोट : 1.  मूत्र ज्यादा ना मिले तो १ लीटर मूत्र में ५ लीटर पानी (अच्छा तो नहीं फिर भी विकल्प के रूप में)2. इस विधि में जीवामृत लगभग ४८ घंटे में तैयार हो जाती है| इसकी समाप्ति तिथि ६-७ दिन तक है!

बनाने की विधि :
१.      सबसे पहले इन सामग्रियों को प्लास्टिक के एक पात्र मे मिलाकर ६ दिन तक छाया में या अँधेरे में ढककर रखे ६ दिन तक रखे और सुबह शाम किसी डंडे से चलाते रहे. ६वे दिन के बाद ये तैयार हो जाती है
२.      अब ये खेत में डालने के लिए तैयार है इसे जीवामृत कहते है! ये १५० लीटर का होगा!
द्वितीय विधि : (जीवाणु घोल):- इस विधि में ये खाद दूध से दही ज़माने के पद्धति पर काम करता है जैसे १०० किलो दूध में १ चम्मच दही डालो तो वो दूध को अपने जैसा बनाने की क्षमता रखता है ठीक इसी प्रकार ये घोल है बीमार से बीमार मिटटी में डालने पर इसके जीवाणु अपने आप मिटटी को अपने जैसा बनाने लगते है इसको डालने पर आपके खेत को इसका फल जल्दी ही मिलने लगता है!सामग्री : १५-२० किलो ताज़ा गोबर, ५-१० लीटर मूत्र, १ किलो दाल का आटा (कोई भी दाल), १ किलो गुड, १/२ किलो मिटटी (पीपल या बरगद के पेड़).बनाने की विधि :
१.      इन सभी सामग्री को आप प्लास्टिक के बर्तन में मिलाकर कपडे- या जुट के बोरे से इसका मुह ढक दो और सुबह–शाम लकड़ी के डंडे से बाए से दांये एक बार चला दो १५ दिन तक ऐसा करो १५ दिन के बाद ये खाद तैयार हो जायेगी! इसमें करोडो करोडो सूक्ष्म जीव पैदा हो जायेंगे!२.      अब इस खाद को १० गुना पानी में डालकर घोल बनाना है यानि १५०-२०० लीटर पानी में इसे मिला दें और अच्छी तरह मिला ले अब ये पूर्ण घोल मिटटी में डालने योग्य तैयार हो गया है इसे जीवाणु घोल कहते है|खेत में डालने की विधि :१.      यदि खेत खाली है तो खेत में डब्बे से छिड़ककर दे दीजिये! डालने के एक दिन बाद बुवाई कर दीजिये!
२.      यदि खेती में फसल खड़ी है तो पानी लगाते वक्त दे दीजिये पानी की नाली में एक छिद्रयुक्त कंटेनर लेकर उसके मुहाने पर भरकर खोल दीजिये वो पानी के साथ अपने आप चला जायेगा
३.      इसके अलावा इसको डालने की विधि
 यदि आपके पास जानवर ज्यादा है तो इसी १५०-२०० लिटर  घोल में उनका उपला राख मिलाकर लड्डू बना लो और उन लड्डुओ को खेतों में डालो.४.      याद रहे ये ये घोल हर २१ दिन पर बनाकर डालना है!

३.      फसल पर कीटों का प्रभाव :
यदि फसल पर कीटों का प्रभाव हो तो इनसे निपटने के लिए ३ तरह की विधियां है
   अ. निमास्त्रम, ब. ब्रहमास्त्रं, स.अग्निअस्त्रम द. सप्तधान्यांकुर काढ़ा(शक्तिवर्धक दवा)अ. निमास्त्रम :  १०० लीटर पानी + ५ लीटर गोमूत्र + ५ किलो गोबर + ५ किलो निम् के पत्ते और फलियाँ| इन सबको मिलकर ४८ घंटे के लिए रखे| दिन में इसे २ बार चला दे | ४८ घंटे के बाद इसे छानकर फसल पर छिडकाव करे. (उपयोग : फसल बोने के २१वे दिन से ३०वे दिन तक)ब. ब्रह्मास्त्रम : (निमास्त्र छिडकाव के १५ दिन के बाद)   १० लीटर गोमूत्र + ३ किलों निम की पत्ती(निम् का फल यदि हो) + २ किलों सीताफल का पत्ता + २ किलों पपीता का पत्ता + २ किलो अनार का पत्ता + २ किलों अमरुद का पत्ता + २ किलों धतुरा का पत्ता | इन सबको मिलकर कूटकर ५ बार उबाल आने तक उबालकर १ दिन के लिए रखो फिर इसे छानकर अलग कर लो ये ब्रह्मास्त्र   है
 उपयोग करने के लिए १०० लीटर पानी में २ लीटर डालकर स्प्रे कीजिये! (रोकथाम : चुसक किट, फली छेदक के लिए, इल्लियो के उपयोग)स. अग्निअस्त्रम :  १० लीटर गोमूत्र + १ किलों सुरती(खैनी) + १/२ किलों हरी लालमिर्च ++ ५ किलों निम् की पत्ती + १/२ किलो लहसुन (स्थानीय),  खूब अच्छी तरह से कूटकर ५ बार उबाल आने तक पकाए उसके बाद २४ घंटे के लिए रख दे फिर उसके बार उसको छानकर फसल पर छिडक दे. (रोकथाम: पत्ती छेदक कीड़ा,तना छेदक, फल छेदक को दूर करने के काम आता है)नोट: इन तीन प्रकार के जो अस्त्रं दिए है इनको निश्चित समय पर छिडकाव करें बीमारी आगमन की प्रतीक्षा ना करें!द. सप्तधान्यांकुर काढ़ा (टोनिक, शक्तिवर्धक औषधि)- जब फसल के दाने दुग्ध अवस्था(फल की बाल्यावस्था) में हो तब इसका प्रयोग लाभकारी सिद्ध होता है और इसको हरी सब्जी के काटने के ५ दिन पहले और यदि आपके पास कोई फूल का बागान हो तो उसकी कलि निकलने से पहले इसका छिडकाव अवश्य करें|सामग्री: मुंग – १०० ग्राम, उड़द – १०० ग्राम, लोबिया(बोडा, चौली)- १०० ग्राम, मोठ(दाल वाली साबुत) – १००ग्राम, मसूर साबुत  – १०० ग्राम, चना साबुत – १०० ग्राम, गेहूं – १०० ग्राम.
बनाने की विधि और छिडकाव :१.     सबको आपस में मिलाकर पानी में भिगो दें तत्पश्चात ३ दिन के बाद निकालकर गिले कपडे में पोटली बांधकर अंकुरण के लिए रख देवे. जो पानी हे  उसे फेके नहीं. जब एक सेमी की अंकुर निकल आये तब सातों प्रकार के अनाजो को सिल – बट्टे पर पिस कर चटनी बना ले!२.      २०० लीटर पानी में १० लीटर गोमूत्र और वो दानो का पानी और चटनी अच्छे से मिलाकर २ घंटे के लिए रख देवे३.      कपडे से छानकर उसी दिन १ एकड़ में स्प्रे कीजिये!

कुछ और कीटनाशक

१.      छाछ द्वारा – १ मिटटी का घड़ा, ५ लीटर छास, १ ताम्बे की धातु
विधि. सबसे पहले एक मिटटी के घड़े को लेकर उसमे ५ लीटर छाछ डालकर उसमे ताम्बे की कोई धातु (किल, लोटा, तार) आदि डालकर पशु और बच्चो से दूर १५ दिन के लिए रखे इतने दिन में ये पूर्णतया तैयार हो जाता है इसके बाद १० – १५ लीटर पानी मे २०० – २५० ml में  इस छास को मिलकर किसी भी फसल पर स्प्रे करिए.
रोकथाम : पेड़ो पर लगने वाले मकड़ी के जाले, पत्तियों के किट
२.      निम् आक और छाछ द्वारा – २ किलो निम् की पत्ती, २ किलो आकडे(मदार) के पत्ते, ५ लीटर छाछ + १ मिटटी का घडा, उबालने के लिए टिन का डिब्बा, ५ लीटर पानी.विधि. सबसे पहले निम् और आकडे के पत्ते को तोड़कर आपस में मिला कर हल्का कूट ले. फिर टिन के डिब्बे में ५ लीटर पानी और इन पत्तियों को डाले अब इसे तब तक पकायें जब तक पूरी पत्तिया काली ना पड़ जाएँ. फिर इसके बाद इनको मिटटी के घड़े में डालकर छाछ मिला दे. इसके बाद इसको किसी भूमि में १० दिन के लिए गाड़कर रख दे. इसके बाद इसको निकलकर १५ लीटर पानी में १००-१५० मिलीग्राम मिलाकर छिडकाव करें !रोकथाम : मिर्च के फसल पर विशेष प्रभावी, फसलो में मच्छरों का प्रकोप, तना छेदक, फली चुसक कीटों(इल्लियों) के लिए प्रभावी दवा है!३.      निम् + गो-मूत्र द्वारा- ५ किलो निम् की कुट्टी हुई पत्ती + १० लीटर गो-मुत्र को मिलकर १५ दिन तक रख दीजिये १५ दिन के बाद छानकर, १०० लीटर पानी में मिलकर फसल पर छिडकाव करिए|रोकथाम: फफुद, पत्ती किट से बचाव होता हैं.
सुभाष पालेकर विधि

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