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सोमवार, 7 अक्तूबर 2013

शिवलिंग पर नहीं चढ़ाना चाहिए शंख से जल, क्योंकि...

शिवलिंग पर नहीं चढ़ाना चाहिए शंख से जल, क्योंकि...

पूजन कार्य में शंख का उपयोग महत्वपूर्ण माना गया है। वैसे तो लगभग सभी देवी-देवताओं को शंख से जल चढ़ाने का विधान है लेकिन शिवलिंग पर शंख से जल चढ़ाना वर्जित किया गया है। शंख से शिवजी को जल क्यों अर्पित नहीं करते हैं? इस संबंध में शिवपुराण में एक कथा बताई गई है।

शिवपुराण के अनुसार शंखचूड नाम का महापराक्रमी दैत्य हुआ। शंखचूड दैत्यराम दंभ का पुत्र था। दैत्यराज दंभ को जब बहुत समय तक कोई संतान उत्पन्न नहीं हुई तब उसने भगवान विष्णु के लिए कठिन तपस्या की। तप से प्रसन्न होकर विष्णु प्रकट हुए। विष्णुजी ने वर मांगने के लिए कहा तब दंभ ने तीनों लोको के लिए अजेय एक महापराक्रमी पुत्र का वर मांगा। श्रीहरि तथास्तु बोलकर अंतध्र्यान हो गए। तब दंभ के यहां एक पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम शंखचूड़ पड़ा। शंखचुड ने पुष्कर में ब्रह्माजी के निमित्त घोर तपस्या की और उन्हें प्रसन्न कर लिया। ब्रह्मा ने वर मांगने के लिए कहा तब शंखचूड ने वर मांगा कि वो देवताओं के लिए अजेय हो जाए। ब्रह्माजी ने तथास्तु बोला और उसे श्रीकृष्णकवच दिया। साथ ही ब्रह्मा ने शंखचूड को धर्मध्वज की कन्या तुलसी से विवाह करने की आज्ञा दी। फिर वे अंतध्र्यान हो गए।

ब्रह्मा की आज्ञा से तुलसी और शंखचूड का विवाह हो गया। ब्रह्मा और विष्णु के वरदान के मद में चूर दैत्यराज शंखचूड ने तीनों लोकों पर स्वामित्व स्थापित कर लिया। देवताओं ने त्रस्त होकर विष्णु से मदद मांगी परंतु उन्होंने खुद दंभ को ऐसे पुत्र का वरदान दिया था अत: उन्होंने शिव से प्रार्थना की। तब शिव ने देवताओं के दुख दूर करने का निश्चय किया और वे चल दिए। परंतु श्रीकृष्ण कवच और तुलसी के पातिव्रत धर्म की वजह से शिवजी भी उसका वध करने में सफल नहीं हो पा रहे थे तब विष्णु से ब्राह्मण रूप बनाकर दैत्यराज से उसका श्रीकृष्णकवच दान में ले लिया। इसके बाद शंखचूड़ का रूप धारण कर तुलसी के शील का हरण कर लिया। अब शिव ने शंखचूड़ को अपने त्रिशुल से भस्म कर दिया और उसकी हड्डियों से शंख का जन्म हुआ। चूंकि शंखचूड़ विष्णु भक्त था अत: लक्ष्मी-विष्णु को शंख का जल अति प्रिय है और सभी देवताओं को शंख से जल चढ़ाने का विधान है। परंतु शिव ने चूंकि उसका वध किया था अत: शंख का जल शिव को निषेध बताया गया है। इसी वजह से शिवजी को शंख से जल नहीं चढ़ाया जाता है।

शिवलिंग पर नहीं चढ़ाना चाहिए हल्दी

शिवलिंग पर नहीं चढ़ाना चाहिए हल्दी

शिवलिंग एक ऐसी शक्ति है, जिसकी पूजा से हमारी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। शिवलिंग यानी शिवजी का साक्षात रूप। विधि-विधान से शिवलिंग का पूजन करने से महादेव प्रसन्न होते हैं और साथ ही सभी देवी-देवताओं की कृपा भक्त को प्राप्त होती है।

शास्त्रों के अनुसार सभी देवी-देवताओं के विधिवत पूजन आदि धार्मिक कर्मों में बहुत सी सामग्रियां शामिल की जाती हैं। इन सामग्रियों में हल्दी भी है। पूजन कर्म में हल्दी का महत्वपूर्ण स्थान है। कई पूजन विधियां ऐसी हैं जो हल्दी के बिना पूर्ण नहीं मानी जा सकती। हल्दी एक औषधि भी है और हम इसका प्रयोग सौंदर्य प्रसाधन में भी करत हैं।

पूजन में हल्दी गंध और औषधि के रूप में प्रयोग की जाती है। हल्दी शिवजी के अतिरिक्त लगभग सभी देवी-देवताओं को अर्पित की जाती है। हल्दी का स्त्री सौंदर्य प्रसाधन में मुख्य रूप से उपयोग किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार शिवलिंग पुरुष तत्व का प्रतीक है और इसी वजह से महादेव को हल्दी नहीं चढ़ाई जाती है।

जलाधारी पर चढ़ानी चाहिए हल्दी: शिवलिंग पर हल्दी नहीं चढ़ाना चाहिए लेकिन जलाधारी पर चढ़ाई जानी चाहिए। शिवलिंग दो भागों से मिलकर बनी होती है। एक भाग शिवलिंग शिवजी का प्रतीक है और दूसरा भाग जलाधारी माता पार्वती का प्रतीक है। शिवलिंग चूंकि पुरुष तत्व का प्रतिनिधित्व करता है अत: इस पर हल्दी नहीं चढ़ाई जाती है। हल्दी स्त्रियों के सौंदर्य प्रसाधन की सामग्री है और जलाधारी मां पार्वती की प्रतीक है अत: इस पर हल्दी चढ़ाई जानी चाहिए।

क्यों करते हैं शिवलिंग की आधी परिक्रमा?

क्यों करते हैं शिवलिंग की आधी परिक्रमा?

हिन्दू धर्म पंचांग के पांचवे माह श्रावन यानी सावन में शिव पूजा का विशेष महत्व है। हर शिव भक्त अपनी श्रद्धा, आस्था और शक्ति से शिव पूजा कर अपनी कामनाओं को पूरा करना चाहता है। लेकिन शास्त्रों में शिव उपासना के लिए शिवलिंग पूजा की मर्यादाएं भी नियत है। इसकी जानकारी के अभाव में कुछ देव अपराध हो जाते हैं। शिवलिंग परिक्रमा भी शिव पूजा विधि का एक अंग है। यहां जानिए क्या है शिवलिंग परिक्रमा की मर्यादाएं -

- भगवान शिव की पूजा के बाद शिवलिंग की परिक्रमा हमेशा बांई ओर से शुरू कर जलाधारी के आगे निकले हुए भाग यानी स्त्रोत (जहां से भगवान शिव को चढ़ाया जल बाहर निकलता है) तक जाकर फिर विपरीत दिशा में लौट दूसरे सिरे तक आकर परिक्रमा पूरी करें। इसे शिवलिंग की आधी परिक्रमा भी कहा जाता है।

- जलाधारी या अरघा के स्त्रोत को लांघना नहीं चाहिये, क्योंकि माना जाता है कि उस स्थान पर ऊर्जा और शक्ति का भंडार होता है। अगर शिवलिंग की परिक्रमा के दौरान जलाधारी को लांघा जाए, तो लांघते वक्त पैर फैलने से वीर्य या रज और इनसे जुड़ी शारीरिक क्रियाओं पर इस शक्तिशाली ऊर्जा का बुरा असर हो सकता है। इसलिए जब भी शिवलिंग पूजा करें, इस बात का ध्यान रखकर अनजाने में होने वाले इस देव दोष से बचें।

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