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शनिवार, 13 जनवरी 2024

चमत्कारी शनि मंदिर : जहां शनि देव साक्षात विराजमान होते हैं * शनि देव के भारत में तमाम मंदिर हैं लेकिन कुछ स्थान ऐसे हैं जहां शनि देव साक्षात विराजमान होते हैं।

 * चमत्कारी शनि मंदिर : जहां शनि देव साक्षात विराजमान होते हैं*
शनि देव के भारत में तमाम मंदिर हैं लेकिन कुछ स्थान ऐसे हैं जहां शनि देव साक्षात विराजमान होते हैं।
भक्तों पर शनि देव की कृपा हमेशा बनी रहता है। शनि देव भक्तों पर जल्द ही प्रसन्न हो जाते हैं और उनकी गलतियों को क्षमा भी कर देते हैं। जो भक्त शनि देव के सामने अपना सबकुछ समर्पित कर देता है वह जीवन में हमेशा सुखी रहता है।
शनि देव के भारत में तमाम मंदिर हैं लेकिन कुछ स्थान ऐसे हैं जहां शनि देव साक्षात विराजमान होते हैं। तो चलिए आपको भी स्थानों के बारे में बताते हैं जहां जाकर आप शनि देव दर्शन कर मनचाहा फल प्राप्त कर सकते हैं।

*1⃣शनि शिंगणापुर*
महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में स्थित है शिंगणापुर गांव इसे शनि शिंगणापुर के नाम से भी जाना जाता है। इस गांव में शनि देव का चमत्कारी मंदिर स्थित है। इस गांव में किसी भी घर या दुकान में दरवाजा नहीं है। यहां शनि देव की कोई मूर्ति नहीं बल्कि एक बड़ा सा काला पत्थर है, जिसे शनि का विग्रह रूप माना जाता है। गांव में शनि देव की कृपा हमेशा बनी रहती है और यहां कभी चोरी नहीं होती।

*2⃣उज्जैन का शनि मंदिर*
मध्य प्रदेश की धार्मिक राजधानी उज्जैन मानी जाती है। यहां भगवान महाकाल का मंदिर है जो पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। भगवान शिव के मंदिर के साथ-साथ यहां प्राचीन शनि मंदिर भी है। यहां स्थित शनि मंदिर की विशेषता ये है कि यहां शनि देव के साथ-साथ अन्य नवग्रहों की मूर्तियां भी हैं, जिसकी वजह से इसे नवग्रह मंदिर भी कहा जाता है। उज्जैन के इस मंदिर में दूर-दूर से शनि भक्त दर्शन करने आते हैं।

*3⃣महादेव के साथ विराजमान शनि देव*
तिरुनल्लर शनि मंदिर तमिलनाडु के प्रमुख मंदिरों में गिना जाता है। मान्यता है कि जिन लोगों पर शनि की कृपा नहीं होती है वो लोग यहां दर्शन के लिए आते हैं। शनि मंदिर, तिरुनल्लर शनि देव को समर्पित तमिलनाडु के नवग्रह मंदिरों में से एक है। भारत में स्थित शनि देव के मंदिरों में यह सबसे पवित्र भी माना जाता है। माना जाता है कि इस मंदिर में भगवान शिव की पूजा करने से शनि ग्रह के सभी बुरे प्रभावों से मुक्ति मिल जाती है।

*4⃣भगवान श्रीकृष्ण ने यहां किए शनि देव के दर्शन*
उत्तर प्रदेश में ब्रज मंडल के कोसीकलां गांव के पास भी एक शनि मंदिर स्थित है। मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण ने शनिदेव को दर्शन दिए थे। जिसका वर्णन गीता में मिलता है। इस जगह को लेकर यह भी कहा जाता है की जो भक्त यहां की परिक्रमा करता है, उसे भगवान शनि कभी कष्ट नहीं पहुंचाते।

*5⃣स्त्री रुप में विराजमान हैं शनिदेव*
गुजरात में भावनगर के सारंगपुर में भगवान हनुमान का एक प्राचीन मंदिर स्थित है। इस मंदिर को कष्टभंजन हनुमानजी के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर की सबसे खास बात ये है कि यहां भगवान हनुमान के साथ शनि देव भी विराजित हैं। यहां पर शनि देव स्त्री रूप में हनुमान के चरणों में बैठे दिखाई देते हैं। इस मंदिर को लेकर कहा जाता है कि यदि किसी भी भक्त की कुंडली में शनि दोष हो तो कष्टभंजन हनुमान के दर्शन करने से सभी दोष खत्म हो जाते हैं।

*6⃣इंदौर के शनिदेव* 
इंदौर (अहिल्या नगरी) में शनिदेव का प्राचीन व चमत्कारिक मंदिर जूनी इंदौर में स्थित है। इस मंदिर के संबंध में कथा प्रचलित है- 
मंदिर के स्थान पर लगभग 300 वर्ष पूर्व एक 20 फुट ऊंचा टीला था, जहां वर्तमान पुजारी के पूर्वज पंडित गोपालदास तिवारी आकर ठहरे। एक रात शनिदेव ने पंडित गोपालदास को स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि उनकी एक प्रतिमा उस टीले के अंदर दबी हुई है। शनिदेव ने पंडित को टीला खोदकर प्रतिमा बाहर निकालने का आदेश दिया। जब पंडित कहा कि वे दृष्टिहीन होने से इस कार्य में असमर्थ हैं, तो शनिदेव उनसे बोले- 'अपनी आंखें खोलो, अब तुम सब कुछ देख सकोगे।' आंखें खोलने पर पंडित गोपालदास ने पाया कि उनका अंधत्व दूर हो गया है और वे सबकुछ साफ-साफ देख सकते हैं। दृष्टि पाने के बाद पंडितजी ने टीले को खोदना शुरू किया। उनकी आंखें ठीक होने की वजह से अन्य लोगों को भी उनके स्वप्न की बात पर यकीन हो गया तथा वे खुदाई में उनकी मदद करने लगे। पूरा टीला खोदने पर पंडितजी का स्वप्न सच साबित हुआ तथा उसमें से शनिदेव की एक प्रतिमा निकली। बाहर निकालकर उसकी स्थापना की गई। यही प्रतिमा आज इस मंदिर में स्थापित है। 
🚩ॐ शं शनैश्चराय नमः🚩

जानते हो राम ! तुम्हारी प्रतीक्षा तब से कर रही हूँ, जब तुम जन्मे भी नहीं थे, यह भी नहीं जानती थी कि तुम कौन हो ? कैसे दिखते हो ? क्यों आओगे मेरे पास ? बस इतना ज्ञात था कि कोई पुरुषोत्तम आएगा, जो मेरी प्रतीक्षा का अंत करेगा ।

शबरी को आश्रम सौंपकर महर्षि मतंग जब देवलोक जाने लगे, तब शबरी भी साथ जाने की जिद करने लगीं ।
शबरी की उम्र "दस वर्ष" थी । वो महर्षि मतंग का हाथ पकड़ रोने लगीं ।

महर्षि शबरी को रोते देख व्याकुल हो उठे । शबरी को समझाया "पुत्री इस आश्रम में भगवान आएंगे, तुम यहीं प्रतीक्षा करो ।"

अबोध शबरी इतना अवश्य जानती थी कि गुरु का वाक्य सत्य होकर रहेगा, उसने फिर पूछा- "कब आएंगे..?"

महर्षि मतंग त्रिकालदर्शी थे । वे भूत भविष्य सब जानते थे, वे ब्रह्मर्षि थे । महर्षि शबरी के आगे घुटनों के बल बैठ गए और शबरी को नमन किया ।

 आसपास उपस्थित सभी ऋषिगण असमंजस में डूब गए ।  ये उलट कैसे हुआ । गुरु यहां शिष्य को नमन करे, ये कैसे हुआ ???

महर्षि के तेज के आगे कोई बोल न सका ।
महर्षि मतंग बोले- 
पुत्री अभी उनका जन्म नहीं हुआ ।
अभी दशरथ जी का लग्न भी नहीं हुआ ।
उनका कौशल्या से विवाह होगा । फिर भगवान की लम्बी प्रतीक्षा होगी । 
फिर दशरथ जी का विवाह सुमित्रा से होगा । फिर प्रतीक्षा..

फिर उनका विवाह कैकई से होगा । फिर प्रतीक्षा.. 

फिर वो "जन्म" लेंगे, फिर उनका विवाह माता जानकी से होगा । फिर उन्हें 14 वर्ष वनवास होगा और फिर वनवास के आखिरी वर्ष माता जानकी का हरण होगा । तब उनकी खोज में वे यहां आएंगे । तुम उन्हें कहना आप सुग्रीव से मित्रता कीजिये । उसे आतताई बाली के संताप से मुक्त कीजिये, आपका अभीष्ट सिद्ध होगा । और आप रावण पर अवश्य विजय प्राप्त करेंगे ।

शबरी एक क्षण किंकर्तव्यविमूढ़ हो गई । "अबोध शबरी" इतनी लंबी प्रतीक्षा के समय को माप भी नहीं पाई ।

वह फिर अधीर होकर पूछने लगी- "इतनी लम्बी प्रतीक्षा कैसे पूरी होगी गुरुदेव ???"

महर्षि मतंग बोले- "वे ईश्वर हैं, अवश्य ही आएंगे । यह भावी निश्चित है । लेकिन यदि उनकी इच्छा हुई तो काल दर्शन के इस विज्ञान को परे रखकर वे कभी भी आ सकते हैं । लेकिन आएंगे "अवश्य"...!

जन्म मरण से परे उन्हें जब जरूरत हुई तो प्रह्लाद के लिए खम्बे से भी निकल आये थेक्ष। इसलिए प्रतीक्षा करना । वे कभी भी आ सकते हैं । तीनों काल तुम्हारे गुरु के रूप में मुझे याद रखेंगे । शायद यही मेरे तप का फल है ।"

शबरी गुरु के आदेश को मान वहीं आश्रम में रुक गईं । उसे हर दिन प्रभु श्रीराम की प्रतीक्षा रहती थीं । वह जानती थीं समय का चक्र उनकी उंगली पर नाचता है, वे कभी भी आ सकतें हैं । 

हर रोज रास्ते में फूल बिछाती है और हर क्षण प्रतीक्षा करती ।

कभी भी आ सकतें हैं ।
हर तरफ फूल बिछाकर हर क्षण प्रतीक्षा । शबरी बूढ़ी हो गई । लेकिन प्रतीक्षा उसी अबोध चित्त से करती रही ।

और एक दिन उसके बिछाए फूलों पर प्रभु श्रीराम के चरण पड़े । शबरी का कंठ अवरुद्ध हो गया । आंखों से अश्रुओं की धारा फूट पड़ी ।

गुरु का कथन सत्य हुआ । भगवान उसके घर आ गए । शबरी की प्रतीक्षा का फल ये रहा कि जिन राम को कभी तीनों माताओं ने जूठा नहीं खिलाया, उन्हीं राम ने शबरी का जूठा खाया ।

ऐसे पतित पावन मर्यादा, पुरुषोत्तम, दीन हितकारी श्री राम जी की जय हो । जय हो । जय हो.। एकटक देर तक उस सुपुरुष को निहारते रहने के बाद वृद्धा भीलनी के मुंह से स्वर/बोल फूटे-

"कहो राम ! शबरी की कुटिया को ढूंढ़ने में अधिक कष्ट तो नहीं हुआ..?"

राम मुस्कुराए- "यहां तो आना ही था मां, कष्ट का क्या मोल/मूल्य..?"

"जानते हो राम ! तुम्हारी प्रतीक्षा तब से कर रही हूँ, जब तुम जन्मे भी नहीं थे, यह भी नहीं जानती थी कि तुम कौन हो ? कैसे दिखते हो ? क्यों आओगे मेरे पास ? बस इतना ज्ञात था कि कोई पुरुषोत्तम आएगा, जो मेरी प्रतीक्षा का अंत करेगा ।

राम ने कहा- "तभी तो मेरे जन्म के पूर्व ही तय हो चुका था कि राम को शबरी के आश्रम में जाना है ।”

"एक बात बताऊँ प्रभु ! भक्ति में दो प्रकार की शरणागति होती है । पहली ‘वानरी भाव’ और दूसरी ‘मार्जारी भाव’ ।

”बन्दर का बच्चा अपनी पूरी शक्ति लगाकर अपनी माँ का पेट पकड़े रहता है, ताकि गिरे न...  उसे सबसे अधिक भरोसा माँ पर ही होता है और वह उसे पूरी शक्ति से पकड़े रहता है । यही भक्ति का भी एक भाव है, जिसमें भक्त अपने ईश्वर को पूरी शक्ति से पकड़े रहता है । दिन रात उसकी आराधना करता है...!” (वानरी भाव)

पर मैंने यह भाव नहीं अपनाया । ”मैं तो उस बिल्ली के बच्चे की भाँति थी, जो अपनी माँ को पकड़ता ही नहीं, बल्कि निश्चिन्त बैठा रहता है कि माँ है न, वह स्वयं ही मेरी रक्षा करेगी, और माँ सचमुच उसे अपने मुँह में टांग कर घूमती है । मैं भी निश्चिन्त थी कि तुम आओगे ही, तुम्हें क्या पकड़ना...।" (मार्जारी भाव)

राम मुस्कुराकर रह गए..!!

भीलनी ने पुनः कहा- "सोच रही हूँ बुराई में भी तनिक अच्छाई छिपी होती है न... “कहाँ सुदूर उत्तर के तुम, कहाँ घोर दक्षिण में मैं !" तुम प्रतिष्ठित रघुकुल के भविष्य, मैं वन की भीलनी ।  यदि रावण का अंत नहीं करना होता तो तुम कहाँ से आते..?”

राम गम्भीर हुए और कहा-

भ्रम में न पड़ो मां ! “राम क्या रावण का वध करने आया है..?”

रावण का वध तो लक्ष्मण अपने पैर से बाण चलाकर भी कर सकता है ।

राम हजारों कोस चलकर इस गहन वन में आया है, तो केवल तुमसे मिलने आया है माँ, ताकि “सहस्त्रों वर्षों के बाद भी, जब कोई भारत के अस्तित्व पर प्रश्न खड़ा करे तो इतिहास चिल्ला कर उत्तर दे, कि इस राष्ट्र को क्षत्रिय राम और उसकी भीलनी माँ ने मिलकर गढ़ा था ।” 

"जब कोई भारत की परम्पराओं पर उँगली उठाये तो काल उसका गला पकड़कर कहे कि नहीं ! यह एकमात्र ऐसी सभ्यता है जहाँ, एक राजपुत्र वन में प्रतीक्षा करती एक वनवासिनी से भेंट करने के लिए चौदह वर्ष का वनवास स्वीकार करता है ।"

राम वन में बस इसलिए आया है, ताकि “जब युगों का इतिहास लिखा जाए, तो उसमें अंकित हो कि "शासन/प्रशासन और सत्ता" जब पैदल चलकर वन में रहने वाले समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुँचे, तभी वह रामराज्य है ।”
(अंत्योदय)

राम वन में इसलिए आया है, ताकि भविष्य स्मरण रखे कि प्रतीक्षाएँ अवश्य पूरी होती हैं । राम रावण को मारने भर के लिए नहीं आया है माँ !

माता शबरी एकटक राम को निहारती रहीं ।

राम ने फिर कहा-

राम की वन यात्रा रावण युद्ध के लिए नहीं है माता ! “राम की यात्रा प्रारंभ हुई है, भविष्य के आदर्श की स्थापना के लिए ।”

"राम राजमहल से निकला है, ताकि “विश्व को संदेश दे सके कि एक माँ की अवांछनीय इच्छओं को भी पूरा करना ही 'राम' होना है ।”

"राम निकला है, ताकि “भारत विश्व को सीख दे सके कि किसी सीता के अपमान का दण्ड असभ्य रावण के पूरे साम्राज्य के विध्वंस से पूरा होता है ।”

"राम आया है, ताकि “भारत विश्व को बता सके कि अन्याय और आतंक का अंत करना ही धर्म है ।”

"राम आया है, ताकि “भारत विश्व को सदैव के लिए सीख दे सके कि विदेश में बैठे शत्रु की समाप्ति के लिए आवश्यक है कि पहले देश में बैठी उसकी समर्थक सूर्पणखाओं की नाक काटी जाए और खर-दूषणों का घमंड तोड़ा जाए ।” 

और

"राम आया है, ताकि “युगों को बता सके कि रावणों से युद्ध केवल राम की शक्ति से नहीं बल्कि वन में बैठी शबरी के आशीर्वाद से जीते जाते हैं ।”

शबरी की आँखों में जल भर आया था ।
उसने बात बदलकर कहा-  "बेर खाओगे राम..?”

राम मुस्कुराए, "बिना खाये जाऊंगा भी नहीं माँ !"

शबरी अपनी कुटिया से झपोली में बेर लेकर आई और राम के समक्ष रख दिये ।

राम और लक्ष्मण खाने लगे तो कहा- 
"बेर मीठे हैं न प्रभु..?” 

"यहाँ आकर मीठे और खट्टे का भेद भूल गया हूँ माँ ! बस इतना समझ रहा हूँ कि यही अमृत है ।”

शबरी मुस्कुराईं, बोली-   "सचमुच तुम मर्यादा पुरुषोत्तम हो, राम !"

मर्यादा-पुरुषोत्तम भगवान श्री राम को बारंबार सादर वन्दन।

जय श्री राम🙏🏻
 जय जय श्री राम 


🚩 *राम काज किये बिना मोहें कहा विश्राम*
🙏🏻🚩 *जय श्रीराम* 🙏🏻🚩

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राम आ रहे हैं तुम आओ, ना आओ तुम्हारी मर्जी!*तुम बहिष्कार करो, या ना करो, तुम्हारी मर्जी।तुम मुहूर्त,कर्मकांड, मंदिर शिल्प, मन्दिर की पूर्णता, अपूर्णता में कमी निकालो तुम्हारी मर्जी।*

*राम आ रहे हैं*
🚩🚩🚩🚩🚩🚩
*तुम आओ, ना आओ तुम्हारी मर्जी!*
*तुम बहिष्कार करो, या ना करो, तुम्हारी मर्जी।*
*तुम मुहूर्त,कर्मकांड, मंदिर शिल्प, मन्दिर की पूर्णता, अपूर्णता में कमी निकालो तुम्हारी मर्जी।*

*पर सुन लो, और जान लो......*
*पूरा भारत, आमजन, खास जन, बलिदानियों, शहीद कारसेवकों के परिवार, असली शिव सैनिक, सभी खासोआम जगतगुरु, महामंडलेश्वर, देश के सभी तीर्थों के महंत,प्रमुख मंदिरों के आचार्य, पीठाधीश्वर,सभी अखाड़ो के प्रमुख, देश के 1 करोड़ सनातनी, 8000 VVIP, धनकुबेर, अम्बानी अडानी डालमिया, बजाज, प्रमुख उद्यमी, देश के प्रतिष्ठित ऐसे लोग जिन्होंने देश का नाम सम्पूर्ण विश्व मे ऊंचा किया है, नामी खिलाड़ी, रामजी के भक्तजन, शबरी उर्मिला जो 31 सालों से मौन है,*
*अयोध्या के पास के 105 गांवों के ठाकुर जिन्होंने 500 सालों से राम मंदिर बनने तक पगड़ी, जूते नही पहनने की सौगंध खाई वो, और सभी आमोखास वो व्यक्ति जिसके हृदय में राम बसते हैं, और केरल से कश्मीर नेपाल भूटान तक।*
असम बंगाल से राजस्थान गुजरात तक के देश के राम में आस्था विश्वास रखने वाले वे लोग, *जो राम को जीते हैं राम के लिये मरते हैं, जिनका संबोधन राम राम है।* *जिनकी आस्था, अस्मिता, आत्मगौरव, अभिमान राम हैं, वे सभी, कोई 8000 किलोमीटर से सर पर रामचरण रखे पैदल, कोई कार, कोई गाड़ी, कोई ट्रैन से आ रहे हैं, पर आ रहे हैं,* सब पधार रहे हैं, *पूरा देश नाच रहा है झूम रहा है* जगह-जगह पर पूजा हो रही है, *बंदनवार सज रही है* सांस्कृतिक कार्यक्रम हो रहे हैं नए-नए गाने बनाए जा रहे हैं नई-नई पुस्तक लॉन्च हो रही है नए-नए भजन बनाए जा रहे हैं सामूहिक कार्यक्रम हो रहे हैं गोष्ठियां हो रही है, चर्चाएं हो रही हैं *पूरा राष्ट्र खुशी के मारे सब कुछ भूल कर नर्तन कर रहा है, कीर्तन कर रहा है, भजन कर रहा है,* हर कोई व्यक्ति *आह्लादित है उमंगित है अर्जित है* 500 सालों का इंतजार खत्म हो रहा है, *राम आ रहे हैं*..... *हमारे राम आ रहे हैं*... *वैसे ही* जैसे *रावण* को खत्म करके राम *अयोध्या* पधारे थे. *उस समय केवल अयोध्या ने तैयारियां की थी, अब पूरा देश उनके स्वागत में घी के दीए जला रहा है।।*
*और....*
*सुनो...*
1 राम मंदिर के भूतल का निर्माण समर्पण निधि के ब्याज से ही हो गया है
2 *नेपाल कंबोडिया सिंगापुर श्री लंका इंडोनेशिया थाईलैंड जैसे कई देशों ने अयोध्या में अपने काउंसलेट बनाने के लिए जमीन मांग ली है*
3 अयोध्या में पर्यटन से *55000 करोड़* सालाना आने वाले हैं आसपास के 6-7 जिलों के आर्थिक परिदृश्य में परिवर्तन आने वाला है.
4 अयोध्या में *160 नए होटल* खोलने के लिए प्राइवेट कंपनियों के प्रस्ताव आ चुके हैं
5 करोड़ों रुपए का चढ़ावा राम मंदिर में रोजाना आने वाला है
6 तुम आओ या ना हो अयोध्या *विश्व का सांस्कृतिक चेतना केंद्र बनने वाला है*
7 तुम मानो या ना मानो 22 जनवरी राम मंदिर में रामलला के प्राण प्रतिष्ठा के दिन *50000 करोड रुपए का व्यवसाय होने वाला है*
8 तुम मानो या ना मानो राम जी के काज में इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने वाली कंपनियों के *शेयरों में कई गुना वृद्धि* हो चुकी है एलएनटी का शेयर ₹400 से 972 पहुंच चुका है और ₹4000 तक जाने वाला है
9 अयोध्या में अब *अंतरराष्ट्रीय पुष्पक विमान चलने वाला है और सरयू में अब क्रूज भी चलने वाला है*
10. *22 जनवरी प्रतिष्ठा के दिन संपूर्ण विश्व टेलीविजन पर लाइव जुड़कर पूरे विश्व में एक नया कीर्तिमान बनाने वाला है*
11 *तुम मानो या ना मानो विरोधियों तुम्हारी दुकान पर बस अब ताला पड़ने वाला है*
◆ *अब तुम मानो या ना मानो अब यह देश ही नहीं पूरा विश्व राममय होने वाला है।◆*

*सिया राम मय सब जग जानी.*
*करहु कृपा जगदंबा भवानी!!!*

*जय श्रीराम...!!,🚩,🚩*

*प्रभु आपसे बस इतनी सी अरदास है....*
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*"जो भी इस पोस्ट को पढ़े, लाइक करें, शेयर करें और फॉरवर्ड करें, बस उस पर अपनी कृपा का हाथ रख देना।"*
*और जब आए अंत समय, तब उसके सम्मुख हो जाना। बस आपसे यही अरदास है कि इस पोस्ट को पढ़ने भेजने शेयर करने वाले को अपने लोक में अपने सेवक "हनुमान"के रूप में स्थान दे देना।*
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

🚩 *राम काज किये बिना मोहें कहा विश्राम*
🙏🏻🚩 *जय श्रीराम* 🙏🏻🚩

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श्री बाँके बिहारी जी की मंगला आरती क्यों नहीं होती जाने सत्य*

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*श्री बाँके बिहारी जी की मंगला आरती क्यों नहीं होती जाने सत्य*
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एक बार कलकत्ता से बूढ़े ब्राह्मण श्री बिहारी जी के दर्शन के लिए वृंदावन आये तो प्रभु से मिलने के बाद वहीं के हो गए। 

उन्होंने मंदिर के गोस्वामी जी से सेवा मांगी तो स्वामी जी ने कहा - बाबा! इस उम्र में आप क्या सेवा कर पाओगे? 

बाबा ने बहुत विनती की तो स्वामी जी ने श्री बिहारी जी की चौखट पर रात की चौकीदारी की सेवा लगा दी और कहा - बाबा! आपको यह ध्यान रखना है कि कोई चोर चकुटा मंदिर में प्रवेश न कर पाए।

बाबा ने  बड़े भाव से सेवा स्वीकार की।

कई वर्ष बीत गये सेवा करते हुए।

एक बार क्या देखते हैं कि बिहारी जी आधी रात को चल दिये सेवाकुंज की ओर, तो बाबा भी चल दिए उनके पीछे पीछे! सेवाकुंज के नजदीक पहुंचने पर बिहारी जी थक गए। उन्होंने पीछे मुड़कर देखा तो बाबा भी उनके पीछे थे। 

उन्होंने बाबा से कहा कि, मैं बहुत थक गया हूँ आप मुझे सेवाकुंज तक तो पहुंचा दो।

बाबा श्री बांके बिहारी जी को अपने कंधों पर बैठाकर सेवाकुंज की चौखट पर ले गए।

प्रभु ने बाबा से कहा - मुझे यहीं उतार दो और मेरा इंतजार करो।

बाबा के मन में आया कि प्रभु इतनी रात में सेवाकुंज में क्या करने आयें हैं? जानने की इच्छा से उन्होंने आले से झांक कर देखा तो उन्हें दिव्य प्रकाश नज़र आया। उस प्रकाश में उन्होंने श्री बिहारी जी को श्री राधा जी संग रास करते हुए देखा। बाबा की हालत पागलों जैसी हो गई और गिर कर बेहोश हो गए।

सुबह बिहारी जी ने बाबा को पुकारा और बाबा से कहा - बाबा! मुझे मंदिर तक नहीं ले जाओगे।

बाबा ने बिहारी जी को सुबह चार बजे मंदिर में पहुंचाया और गोस्वामी जी से सारा वृत्तांत कहा।

गोस्वामी जी मंगला आरती के लिए बिहारी जी को उठाने लगे तो बाबा ने उनके पांव पकड़ लिये और कहने लगे - मेरे गोविन्द अभी तो सोयें हैं!

कहते हैं कि उसी दिन से साल में जन्माष्टमी को छोड़कर कभी भी श्री बांके बिहारी जी की मंगला आरती नहीं हुई और उसी दिन ही श्री बिहारी जी ने उस बाबा को अपने सेवाधाम में बुला लिया..!!
    *🙏🙏🏿🙏🏻जय जय श्री राधे*🙏🏼🙏🏽🙏🏾

निर्माणाधीन (शिखर, कलश, ध्वजादि रहित) मंदिर में प्राणप्रतिष्ठा की अशास्त्रीयता-- सर्वत्र प्रसारित करें!!

निर्माणाधीन (शिखर, कलश, ध्वजादि रहित) मंदिर में प्राणप्रतिष्ठा की अशास्त्रीयता-- सर्वत्र प्रसारित करें!!
सावधान
राजनैतिक हिंदू पोस्ट से दुर रहे।
पोस्ट से पुर्व अज्ञानी हिंदु के लिए गीता मे भगवान श्रीकृष्ण का आदेश 
अवश्य स्मरण करने योग्य है।
👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻
श्रीमद्भगवद्गीता 
अध्याय १६ श्लोक २३

यः शास्त्रविधिमुत्सृज्य वर्तते कामकारतः।
न स सिद्धिमवाप्नोति न सुखं न परां गतिम्।।16.23।।

देवप्रासाद(मन्दिर) निर्माण के प्रमुख हेतु के विषय में बताते हुए कहा गया है कि देवप्रासाद के प्रत्येक अङ्ग और उपाङ्गो में देव और देवियों के विन्यास करके देवप्रतिष्ठा के समय उसका अभिषेक किया जाता है। इसलिए देवप्रासाद सर्वदेवमय बन जाता है। 

देवप्रासाद को स्थाप्यदेवता/श्रीहरि का स्थूल विग्रह माना गया है। यथा-

'प्रासादो वासुदेवस्य मूर्तिरूपो निबोध मे॥' 
'निश्श्चलत्वं च गर्भोऽस्या अधिष्ठाता तु केशवः।
एवमेष हरिः साक्षात्प्रासादत्वेन संस्थितः॥'
(आग्नेयमहापुराण ६१।१९,२६)

'प्रासादं देवदेवस्य प्रोच्यते तात्त्विकी तनुः।
तत्त्वानि विन्यसेत्पीठे यथा तत्त्वाधिवासकः॥'
(विश्वामित्रसंहिता १४।८४)

'प्रासादो देवरूपः स्यात्...'
(विश्वकर्माविरचित क्षीरार्णव २)

अतः देवप्रासाद की प्रतिष्ठा (विधानवर्णन- आग्नेयमहापुराण १०१ में) के पश्चात प्रासाद का देवता के विग्रह के रूप में ध्यान किया जाता है, जिसमें प्रासाद के मूल या भूतलवर्ती हिस्सों से लेकर शिखर और ध्वज पर्यन्त विभिन्न अंशों में स्थाप्य देवता के विभिन्न अवयवों(अंगों) की कल्पना की जाती है।

ईश्वर उवाच-
प्रासादस्थापनं वक्ष्ये तच्चैतन्यं स्वयोगतः।
शुकनाशासमाप्तौ तु पूर्ववेद्याश्च मध्यतः॥
(आग्नेयमहापुराण १०१।१)
श्रीशिवजी ने कहा- 
स्कन्द! अब मैं मन्दिर की प्रतिष्ठा का वर्णन कर रहा हूँ और उसमें चैतन्य का योग बतला रहा हूँ।

विधायैवं प्रकृत्यन्ते कुम्भे तं विनिवेशयेत्॥
(आग्नेयमहापुराण १०१।१३)
विधिपूर्वक समस्त उपदिष्ट कर्मों को करने के पश्चात उस पुरुष को कलश में स्थापित करना चाहिए।

उक्त श्लोकों के आधार पर यह तथ्य सुस्पष्ट हो जाता है कि प्रासाद(मन्दिर) भगवान् वासुदेव का (स्थूल) मूर्तिरूप है-

पत्ताकां प्रकृतिं विद्धि दण्डं पुरुषरूपिणंम्।
प्रासादो वासुदेवस्य मूर्तिरूपो निबोध मे॥
धारणाद्धरणीं विद्धि आकाशं सुषिरात्मकम्।
तेजस्तत्पावकं विद्धि वायुं स्पर्शगतं तथा॥
पाषाणादिष्वेवजलं पार्थिवं पृथिवीगुणम्।
प्रतिशब्दोद्भवं शब्दं स्पर्श स्यात्कर्कशादिकम्॥
शुक्लादिकं भवेद्रूपं रसमाह्लाद दर्शकम्।
धूपादिगन्धं गन्धं तु वाग्भेर्यादिषु संस्थिता॥
शुकनासाश्रिता नासा बाहू भद्रात्मकौ स्मृतौ।
शिरस्त्वण्डं निगदितं कलशाः मूर्धजाः स्मृताः॥
कण्ठं कण्ठमितिज्ञेयं स्कन्धो वेदी निगद्यते।
पायूपस्थे प्रणाले तु त्वक्सुधा परिकीर्तिता॥
मुखं द्वारं भबेदस्य प्रतिमा जीव उच्यते।
तच्छक्तिं पिण्डिकां विद्धि प्रकृतिं च तदाकृतिम्॥
निश्श्चलत्वं च गर्भोऽस्या अधिष्ठाता तु केशवः।
एवमेष हरिः साक्षात्प्रासादत्वेन संस्थितः॥
जङ्घं त्वस्य शिवो ज्ञेयः स्कन्धे धाता व्यवस्थितः।
ऊर्ध्वभागे स्थितो विष्णुरेवं तस्य स्थितस्य हि॥
(आग्नेयमहापुराण ६१।१९-२७)

'मध्ये ब्रह्मा शिवोऽन्ते स्यात् कलशे तु स्वयं हरिः॥ 
कलशान्ते महाविष्णुः सदाविष्णुस्तदग्रतः।....'
'मेखला रशना कुक्षिर्गर्भः स्तम्भाश्च बाहवः।
मध्यं नाभिश्च हृत् पीठमपानं जलनिर्गमः॥
पादाधारस्त्वहंकारः पिण्डिका बुद्धिरुच्यते।
तदन्ते प्रकृतिः पद्मं प्रतिमा पुरुषः स्मृतः॥
पादाधारस्त्वहंकारः पिण्डिका बुद्धिरुच्यते।
तदन्ते प्रकृतिः पद्मं प्रतिमा पुरुषः स्मृतः॥
घण्टा जिह्वा मनो दीपो दारु स्नायुः शिलाऽस्थि च।
त्वक् सुधा लेपनं मांसं रुधिरं तत्र यो रसः॥
चक्षुः शिखरपार्श्वे तु ध्वजाग्रं च शिखा भवेत्।
तलकुम्भो भवेत् पाणिर्द्वारं प्रजननं स्मृतम्॥
शुकनासैव नासोक्ता गवाक्षं श्रवणं विदुः।
कपोतालिं तथा स्कन्धं कण्ठं चामलसारकम्॥
घटं शिरो घृतं मज्जा वाङ् मन्त्रः सेचन पयः।
नामशैत्यादिवर्णान्नधूपेषु विषयाः स्थिताः॥
रन्ध्रे वातायने धाम्नि लेपे स्थैर्य च खादयः।
पर्वाणि सन्धयो ज्ञेया लोहबन्धास्तथा नखाः॥
केशरोमाणि चैवास्य विज्ञेया दुग्धकूर्चकाः।
प्रासादपादमात्रोच्चः प्राकारः परितो भवेत्॥'
(विष्णुसंहिता १६।६३-७०)

'तत्रापि तत्त्वविन्यासं वक्ष्यामि शृणु तत्त्वतः॥
शिला ध्यातास्य पृथिवी स्नानवेद्याप उच्यते।
तेजो रविकराः ज्ञेयाः जालान्तर्गताः मुने॥
गवाक्षस्तु समीरस्स्यात् गगनं गगनं स्मृतम्।
प्राग्द्वारमुच्यते तस्य कवाटौ कीर्तितौ करौ॥
पादाः पादास्तु विज्ञेयाः पायुः स्याज्जलनिर्गमः।
योनिराणि समाख्याता विमानस्याग्रतो मुने॥
श्रोत्रे कपोतपाली तु त्वक् सुधा परिकीर्तिता।
नेत्रे शिखरपार्श्वे तु जिह्वा ज्ञेया च वेदिका॥
घ्राणं नासा समाख्याता गीर्वाणनिकरान्विता।
श्यामकृष्णौ तथा पीतं रक्तश्वेतौ यथाक्रमम्॥
गन्धमात्रादिकाः पञ्च वर्णास्तु परिकीर्तिताः।
मनो दीपस्तु विज्ञेयः पिण्डिका बुद्धिरुच्यते॥
पादाधारो विमानस्तु प्रकृतिः पिण्डिकान्तरम्।
पञ्चविंशतिको ज्ञेयः प्रतिमा पुरुषः परः॥
विज्ञेया दण्डकूर्चास्तु केशरोमाणि सर्वतः।
विमानमेवं सङ्कल्प्य सर्वतत्त्वसमन्वितम्॥'
(नारदसंहिता १५।१७३-१८१)

ध्वजादि अंगों से रहित देवालयों में तो असुर वास करते हैं। यथा-
ततो ध्वजस्य विन्यासः कर्तव्यः पृथिवीपते।
असुरा वासमिच्छन्ति ध्वजहीने सुरालये॥
(विष्णुधर्मोत्तरपुराण ९४।४४)
अर्थात- हे राजन! तत्पश्चात देवमन्दिर में ध्वज को प्रतिष्ठित करना चाहिए। (क्योंकि) ध्वजविहीन देवालय में असुर वास करना चाहते हैं!

तथा ध्वजारोह करने से भूताप्रेतादि नष्ट होते हैं ऐसा शास्त्रों का स्पष्ट निर्देश है-
चत्वारो वा चतुर्दिक्षु स्थापनीया गरुत्मतः।
ध्वजारोहं प्रवक्ष्यामि येन भूतादि नश्यति॥
प्रासादस्य प्रतिष्ठां तु ध्वजरूपेण मे शृणु। 
ध्वजं कृत्वा सुरैर्दैत्या जिताः शस्त्रादिचिह्नितम्॥
(आग्नेयमहापुराण ६१।१६, २८)

हरिप्रोक्त तथा श्रीविश्वकर्मा विरचित ग्रंथ 'क्षीरार्णव' में विश्वकर्मा जी कहते हैं-
प्रासादो देवरूपः स्यात् पादौ पाद शिलास्तथा। 
गर्भश्चैवोदरं ज्ञेयं जंघा पादोर्ध्व मुच्यते॥
स्तंभाश्च जानवो ज्ञेया घंटा जिह्वा प्रकीर्तिता।
दीपः प्राण रूपो ज्ञेया ह्यपाने जल निर्गतः॥
ब्रह्मस्थानं यदैतच्च तन्नाभिः परिकीर्तिता।
हृदयं पीठिका ज्ञेया प्रतिमा पुरुषः स्मृतः॥
पादचारस्त्वहंकारो ज्योतिस्तच्चक्षुरुच्यते।
तदूर्ध्वं प्रकृतिस्तस्य प्रतिमात्मा स्मृतौ बुधैः॥
तलकुंभादधोद्वार तस्य प्रजननं स्मृतम्।
शुकनासा भवेन्नासा गवाक्षः कर्णउच्यते॥
कायापाली स्मृतः स्कंधे ग्रीवा चामलसारिका। 
कलशस्तु शिरोज्ञेयो मज्जादित्पर संयुतं॥
मेदश्च वसुधा विद्यात् प्रलेपो मासमुच्यते।
अस्थिनो च शिलास्तस्य स्नायुकीलादयः स्मृताः॥
चक्षुषि शिखरास्तस्य ध्वजाकेश प्रकीर्तिताः।
एव पुरुषरूपं तु ध्यायेच्च मनसा सुधीः॥
(विश्वकर्माविरचित क्षीरार्णव, श्लोक- २-९)

यहाँ देवप्रासाद(देवमन्दिर) को अधिष्ठित देवता का शरीररूप माना गया है। देवप्रासाद के कलश को देवता का शिर/मस्तक जानना चाहिए। शिखर को देवता का नेत्र तथा ध्वजा को केश जानना चाहिए।

इन्हीं श्लोकों को प्रतिष्ठामयूख में श्रीनीलकण्ठभट्ट ने उद्धृत किया गया है-

पादौ पादशिलास्तस्य जङ्घा पादोर्ध्वमुच्यते।
गर्भश्चैवोदरं ज्ञेयं कटिश्च कटिमेखला॥
स्तम्भाश्च बाहवो ज्ञेया घण्टा जिह्वा प्रकीर्तिता।
दीपः प्राणोऽस्य विज्ञेयो ह्यपानो जलनिगमः॥
ब्रह्मस्थानं यदेतच्च तन्नाभिः परिकीर्तिता।
हृत्पद्म पिण्डिका ज्ञेया प्रतिमा पुरुषः स्मृतः॥
पादचारस्त्वहङ्कारो ज्योतिस्तच्चक्षुरुच्यते।
तदूर्ध्वं प्रकृतिस्तस्य प्रतिमात्मा स्मृतो बुधः॥
नलकुम्भादधोद्वारं तस्य प्रजननं स्मृतम्।
शुकनासा भवेन्नासा गवाक्षः कर्ण उच्यते॥
कपोतपाली स्कन्धोऽस्य ग्रीवा चामलसारिका।
कलशस्तु शिरो ज्ञेयं मज्जादिप्रदसंहितम्॥
मेदश्चैव सुधां विद्यात्प्रलेपो मांसमुच्यते।
प्रस्थीनि च शिलास्तस्य स्नायुः कीलादयः स्मृताः॥
चक्षुषी शिखरास्तस्य ध्वजाः केशाः प्रकीर्तिताः।
एवं पुरुषरूपं त ध्यात्वा च मनसा सुधीः॥
प्रासादं पूजयेत्पश्चाद्‌गन्धध्वजादिभिः शुभेः।
सूत्रण वेष्टयेद्देवं वासस्तत्परिकल्पयेत्॥
प्रासादमेवमभ्यर्च्य वाहनं चाग्रमण्डपे। इति।
(प्रतिष्ठामयूखे, श्रीनीलकण्ठभट्ट)

अर्थात- देवप्रासाद में पादशिला को प्रासादरूपी देवता(श्रीहरि) के दोनों चरणों के रूप में ध्यान करे। पाद के ऊपर के भाग को प्रासादरूपी देवता के जंघाओं के रूप में ध्यान करे। गर्भगृह को श्रीहरि का उदर (पेट) समझना चाहिए और प्रासाद के कटिभाग को कटि की मेखला समझना चाहिए। प्रासाद के स्तम्भों को प्रासाद रूपी देवता की भुजाएँ समझना चाहिए। घण्टा को जिह्वा, दीपक को प्राण और जलनिर्गम को अपान समझना चाहिए। प्रासाद के गर्भगृह की भूमि के मध्य में स्थित ब्रह्मस्थान को श्रीहरि की नाभि कहा गया है। पिण्डिका को हृदय कमल समझना चाहिए और पिण्डिका के ऊपर स्थापित प्रतिमा को पुरुष (आत्मा) समझना चाहिए। पादचार को उस प्रासाद रूपी देवपुरुष का अहङ्कार, ज्योति को नेत्र, उसके ऊपर के भाग को प्रकृति और प्रतिमा को विद्वानों ने आत्मा कहा है। नलकुम्भ के अधोवर्ती द्वार को उसका जननेन्द्रिय कहा गया है। शुकनासा को उसकी नासिका और गवाक्ष को कान कहा गया है। कपोतपाली को उसका (श्रीहरि का) स्कन्ध (कन्धा), अमलसारिका को ग्रीवा (गरदन), प्रासाद-शिखरस्थ कलश को शिर और ईंट-पत्थर आदि को जोड़ने के लिए प्रयुक्त गारे को मज्जा आदि समझना चाहिए। सुधा के लेप को मेद, प्रलेप को मांस, शिलाओं, इंटो आदि को अस्थियाँ और कोलो आदि को स्नायु समझे। मन्दिर के शिखरों को श्रीहरि के दोनों नेत्र, ध्वजों और पताकाओं को केश कहा गया है। इस प्रकार विद्वान् आचार्य अपने मन में उस प्रासाद का पुरुष रूप में ध्यान करके शुभ गन्धों और ध्वजाओ आदि से उस प्रासाद का पूजन करे। उस प्रासाद रूपी देव को सूत्र से वेष्टित करे बऔर उस वेष्टन-सूत्र में प्रासादरूपी देवता के वस्त्र की कल्पना करें।

उक्त शास्त्रीयसंदर्भों के आधार पर मन्दिरको अधिष्ठित देवता का शरीर माना जाता है। कलश को देवता का शिर, शिखर को देवता का नेत्र तथा ध्वजा को केश जानना चाहिए।

तब इन अंगों से विहीन शरीर में आत्मा(मूर्ति) की प्रतिष्ठा कैसै हो सकती है? बिना शिर वाले, बिना नेत्र वाले, बिना केश वाले ऐसे निर्माणाधीन प्रासादपुरुष के शरीर(मन्दिर) में आत्मा की प्रतिष्ठा पूर्णतः अशास्त्रीय ही सिद्ध होती है! विष्णुधर्मोत्तरपुराण के अनुसार ऐसे हीनांग ध्वाजादि रहित प्रासाद में तो असुर ही निवास करेंगे-
असुरा वासमिच्छन्ति ध्वजहीने सुरालये॥
(विष्णुधर्मोत्तरपुराण ९४।४४)

हर हर महादेव
आध शंकराचार्य भगवान कि जय हो
हर हर शंकर
जय जय शंकर


🚩 *राम काज किये बिना मोहें कहा विश्राम*
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