कल रात से हल्ला मच गया कि टिकैत ने बाजी पलट दी, जाट consolidate हो गया, खेल पलट गया।
भाई सच मे?? क्या ये पहली बार हुआ है? ऐसे खेल पिछले 6 साल में कई बार हुए, 2-4 दिन का उफान हुआ और फिर झाग बैठ गया।
2015- Hardik Patel आया, गुजरात की स्ट्रांग पटेल कम्युनिटी का मसीहा बन कर। खबर आई कि अब पटेल हमेशा के लिये छिटक जाएंगे। लेकिन हुआ क्या??
लंगोट और समझ का ढीला था। आज कहां है,किसी को नही पता।
2016- Kanhaiya Kumar - छात्रों,मजदूरों, दबे कुचलो का मसीहा और इनके वोट को को consolidate करने वाला । हर छोटे बड़े मंच पर जगह मिली, चुनाव का टिकट भी मिला, लेकिन अब कहाँ है??
2017- Jignesh Mewani - दलितों का राजा, जिसको प्रोजेक्ट करने के लिए गुजरात मे बाकायदा दंगे करवाये गए, दलितों पर अत्याचार की प्लांटेड खबरें चलाई गई। ऐसा बताया गया कि दलित को consolidate हो गए हैं, हमेशा के लिए छिटक जाएंगे। क्या हुआ???
2018- Shehla Rashid - छात्र और मुसलमानों की नेता। JNU में बवाल किया, खुद की पार्टी भी बनाई। आज आपने घरवालों से ही केस लड़ रही है।
2019- Shah Faesal - देश मे पहली रैंक पर आया। फिर भड़काऊ पोस्ट्स और स्टेटमेंट्स दे कर कश्मीर में मुसलमानों को consolidate किया। झक मार कर नौकरी फिर से जॉइन की, आज Covid वैक्सीन की तारीफ में पोस्ट करता है, और जिहादियों से गाली खाता है। क्या हुआ?
इसके अलावा हर 6 महीने में एक नया नेता उभरता है, जिसे विपक्षी मसीहा प्रोजेक्ट करते हैं। भीमा कोरेगांव के बाद हो, चाहे नोटबन्दी के समय के छुटभैय्ये नेता हों, भीम आर्मी का रावण हो, डॉक्टर कफील हो, वरावरा राव हो, केजरीवाल हो, उद्धव ठाकरे हो, देवेगौड़ा का पूत हो, या सोनिया गांधी का कपूत हो.....हर 6 महीने में एक नई मिसाइल लांच होती है.....लेकिन takeoff से पहले ही फुसस हो जाती है।
2021- Rakesh Tikait - अब आते हैं इन साहब पर। हल्ला हो रहा है कि जाट consolidate हो रहा है। भाई कितना हो रहा है? कितने लोग आ गए.....10 हजार, 20 हजार, 50 हजार? ?
इससे ज्यादा तो सिंघू बॉर्डर पर थे, 2 महीने से....क्या हासिल हुआ?
दरअसल नेता वो होता है जिसका जनाधार हो, जो पलटी ना मारे, जिसका सार्वजनिक जीवन और चरित्र साफ हो। टिकैत परिवार तो पैसा लेकर आंदोलन करने के लिए कुख्यात रहा है....आपको लगता है ये लंबा खेल पायेगा? लीगल एक्शन चालू है, एजेंसियां लगी हुई है.....सबूत और फंडिंग सब बाहर आएंगे.....और फिर ये भी भागेगा। जैसे इनके पिताजी भागे थे दिल्ली बोट क्लब से।
तब तक कर लो गुंडई.....लेकिन जनता भी देख रही है। महापंचायत टिकैत के लिए हो रही है, तो वहीं रास्ते खुलवाने के लिए भी हो रही है। हर consolidation का counter consolidation भी होता है....ये नही भूलना चाहिए.....ये राजनीति का पहला नियम है