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रविवार, 31 जनवरी 2021

कल रात से हल्ला मच गया कि टिकैत ने बाजी पलट दी, जाट consolidate हो गया, खेल पलट गया


कल रात से हल्ला मच गया कि टिकैत ने बाजी पलट दी, जाट consolidate हो गया, खेल पलट गया।

भाई सच मे?? क्या ये पहली बार हुआ है? ऐसे खेल पिछले 6 साल में कई बार हुए, 2-4 दिन का उफान हुआ और फिर झाग बैठ गया। 

2015- Hardik Patel आया, गुजरात की स्ट्रांग पटेल कम्युनिटी का मसीहा बन कर। खबर आई कि अब पटेल हमेशा के लिये छिटक जाएंगे। लेकिन हुआ क्या??

लंगोट और समझ का ढीला था। आज कहां है,किसी को नही पता।

2016- Kanhaiya Kumar - छात्रों,मजदूरों, दबे कुचलो का मसीहा और इनके वोट को को consolidate करने वाला । हर छोटे बड़े मंच पर जगह मिली, चुनाव का टिकट भी मिला, लेकिन अब कहाँ है??

2017- Jignesh Mewani - दलितों का राजा, जिसको प्रोजेक्ट करने के लिए गुजरात मे बाकायदा दंगे करवाये गए, दलितों पर अत्याचार की प्लांटेड खबरें चलाई गई। ऐसा बताया गया कि दलित को consolidate हो गए हैं, हमेशा के लिए छिटक जाएंगे। क्या हुआ???

2018- Shehla Rashid - छात्र और मुसलमानों की नेता। JNU में बवाल किया, खुद की पार्टी भी बनाई। आज आपने घरवालों से ही केस लड़ रही है।

2019- Shah Faesal - देश मे पहली रैंक पर आया। फिर भड़काऊ पोस्ट्स और स्टेटमेंट्स दे कर कश्मीर में मुसलमानों को consolidate किया। झक मार कर नौकरी फिर से जॉइन की, आज Covid वैक्सीन की तारीफ में पोस्ट करता है, और जिहादियों से गाली खाता है। क्या हुआ?

इसके अलावा हर 6 महीने में एक नया नेता उभरता है, जिसे विपक्षी मसीहा प्रोजेक्ट करते हैं। भीमा कोरेगांव के बाद हो, चाहे नोटबन्दी के समय के छुटभैय्ये नेता हों, भीम आर्मी का रावण हो, डॉक्टर कफील हो, वरावरा राव हो, केजरीवाल हो, उद्धव ठाकरे हो, देवेगौड़ा का पूत हो, या सोनिया गांधी का कपूत हो.....हर 6 महीने में एक नई मिसाइल लांच होती है.....लेकिन takeoff से पहले ही फुसस हो जाती है।

2021- Rakesh Tikait - अब आते हैं इन साहब पर। हल्ला हो रहा है कि जाट consolidate हो रहा है। भाई कितना हो रहा है? कितने लोग आ गए.....10 हजार, 20 हजार, 50 हजार? ?

इससे ज्यादा तो सिंघू बॉर्डर पर थे, 2 महीने से....क्या हासिल हुआ?

दरअसल नेता वो होता है जिसका जनाधार हो, जो पलटी ना मारे, जिसका सार्वजनिक जीवन और चरित्र साफ हो। टिकैत परिवार तो पैसा लेकर आंदोलन करने के लिए कुख्यात रहा है....आपको लगता है ये लंबा खेल पायेगा? लीगल एक्शन चालू है, एजेंसियां लगी हुई है.....सबूत और फंडिंग सब बाहर आएंगे.....और फिर ये भी भागेगा। जैसे इनके पिताजी भागे थे दिल्ली बोट क्लब से।

तब तक कर लो गुंडई.....लेकिन जनता भी देख रही है। महापंचायत टिकैत के लिए हो रही है, तो वहीं रास्ते खुलवाने के लिए भी हो रही है। हर consolidation का counter consolidation भी होता है....ये नही भूलना चाहिए.....ये राजनीति का पहला नियम है

मै एक नौकरीपेशा हूं कोई सबसिडी नही लेता, हर साल टैक्स भरता हूँ, समाज सेवा, राष्ट्र सेवा करता हूं !


जब दो दो कौड़ी के आदमी देश के प्रधानमंत्री को गालियां देते हैं,
उनकी कब्र खोदने के नारे लगा सकते हैं ,
 गांव से महिलाओं को ट्रैक्टर में बिठाकर दिल्ली  बार्डर पर मोदी को गालियां दिलवा सकते हैं,
तो हम अपने विचार रखने में क्यों हिचकें।देश मेरा भी है।
जिन के कारण और जिनको घोर कष्ट हो रहा है ,वो सब भी हमारे आत्मीयजन हैं।

सरकारें  आती जाती रहती हैं ।
एक महिने से सुन सुन कर कान पक गए, किसान,
किसान,
किसान,
देश का अन्नदाता है, 
पालनहार है।
किसान खेती नहीं करेगा तो देश भूखा मर जायेगा।
हां है,बिल्कुल है अन्नदाता ....
पर  ऐसे तो जो भी जो व्यक्ति कार्य करता है उसकी अबश्यकता होती है, डॉक्टर डाक्टरी ना करे, मास्टर मास्टरी ना करे, टेलर कपड़े ना सिले, सिपाही रक्षा ना करे......... अनगिनत कार्य है ।
कोई मुझे ईमानदारी से बतायेगा कि यदि किसान खेती नहीं करेगा तो किसान का परिवार बचेगा?
उसके परिवार का लालन पालन हो जायेगा?
उसके बच्चों की फीस कपड़े दवाई सब कहां  से आयेगा ? कपड़े कहाँ से लाएगा, अन्य आवश्यकता की वस्तुएँ कहाँ से लाएगा, 
मानते हैं वो कड़ी मेहनत करके अन्न उगाता है तो क्या मुफ्त में बांटता है?
बदले में उसका मूल्य नहीं लेता क्या?
फिर वह दुनिया का पालनहार कैसे माना जाये?
दुनिया का हर व्यक्ति रोजगार करके चार पैसे कमा कर अपना परिवार पालता है।और प्रत्येक कार्य का अपनी जगह अपना महत्व है ..।
तो किसान का रोजगार है खेती करना। सच्चाई तो ये है उन्हे खेती के अलावा और कुछ आता ही नहीं,
और जिन्होंने कुछ सीख लिया कुछ अच्छा  कमा लिया उन्होंने खेती करनी ही छोड़ दी।कोई आढत की दुकानदारी करता है,
तो कोई प्रोपर्टी का धन्धा करता है,
तो कोई हीरो होन्डा आदि की ऐजेन्सी लिये बैठा है,
तो कोई रोड़ी बदरपुर सीमेंट ही बेच रहा है।
और नहीं तो मुर्गा फार्म खोले बैठा है यानि सबसीडी के चक्कर में जोहड़ में मछली ही पाल रहा है।
उन्हें क्या किसान कहेंगे? 
36 प्रकार की सबसिडी किसानों को मिल रही है,
6000 वार्षिक खाते में में आ रहे हैं,
माता पिता पैन्शन ले रहे हैं,
आये गये साल कर्जे माफ करा लेते हैं,
फिर कहते हैं मोदी तेरी कब्र खुदेगी।
किसी रिक्शा वाले की,
किसी ऑटो वाले की,
किसी नाई की,
किसी दर्जी की,
किसी लुहार की,
किसी साइकिल पेन्चर लगाने वाले की,
किसी रेहड़ी वाले की,
ऐसे न जाने कितने छोटे रोजगारों की कोई सबसिडी आई है आज तक?
किसी का कर्जा माफ हुआ है आज तक? क्या ये लोग इस देश के वासी नही हैं?
कल को ये भी आन्दोलन करके कहेंगे देश के पालनहार हम ही हैं।
रही बात MSP की 😀😀 कल हलवाई कहेंगे
सरकार हमारे समोसे की एम एस पी 50 रुपये निश्चित करो।
चाहे उसमें सड़े हुए आलु भरें।
हमारे सब बिकने चाहियें।
नहीं बिके तो सरकार खरीदे,
चाहे सूअरों को खिलाये।
हमें समोसे की कीमत मिलनी चाहिए ।परसों बिरयानी वाले कहेंगे एक प्लेट बिरयानी 90 रुपये एम एस पी रखो चाहे उसमें कुत्ते का मांस डालें या चूहों का सब बिकनी चाहिये।
जो नहीं बिके उसे मोदी  खरीदें और पैसे सीधे हमारे खाते में जमा हों।
ये सब तमाशा नहीं तो क्या हो रहा है।
दिल्ली में जो त्राहि त्राहि हो रही है,
ना दूध पहुंच रहा है,
ना सब्जी पहुंच रही है,
ना कर्मचारी समय पर पहुंच पा रहे हैं उनकी ये दशा बनाने का क्या अधिकार है इन तथाकथित किसानों का?
सत्य कड़ुवा होता है
पंजाब वाले घेराव करें अपने मन्त्रियों का और हरियाणा वाले अपने मन्त्रियों का अपनी माँगो के लिए राज्य सर कार के द्वारा केन्द्र सरकार पर दवाब बनाये!
दिल्ली को घेर कर आम आदमी को क्यों परेशान किया जा रहा है ?
        आम जनता को परेशान होते देखकर यह पोस्ट लिखी जा रही है कृपया जिन जिन लोगों को यह पोस्ट अच्छी लगे और वह भी इस आंदोलन से परेशान हो वह इसे जरूर आगे बढ़ाएं

मै एक नौकरीपेशा हूं 
कोई सबसिडी नही लेता, हर साल टैक्स भरता हूँ, समाज सेवा, राष्ट्र सेवा करता हूं ! 
🙏🙏🙏🙏🙏

सुनने में लगता है कि नाथूराम गोडसे बहुत हिम्मती और दबंग किस्म के इंसान होंगे।


*मोहनदास गांधी की हत्या आज ही के दिन 73 वर्ष पूर्व (30 जनवरी 1948) नाथूराम गोडसे ने भारी भीड़ के बीच गोली मारकर की थी।*

आज उनकी 72वीं पुण्यतिथि है। उनकी हत्या के आरोप में 15 नवंबर 1949 को अंबाला जेल में नाथूराम गोडसे को फांसी दी गई थी। सुनने में लगता है कि नाथूराम गोडसे बहुत हिम्मती और दबंग किस्म के इंसान होंगे। इसके विपरीत गोडसे का बचपन एक अंधविश्वास की वजह से डर के सायें में गुजरा था। बहुत कम लोग जानते हैं कि इसी अंधविश्वास में उन्हें बचपन के कई वर्ष लड़कियों की तरह रह कर बिताने पड़े थे।
जी हां, आपको यकीन नहीं होगा, लेकिन ये सच है। नाथूराम गोड़से का असली नाम ‘नथूराम’ है। उनका परिवार भी उन्हें इसी नाम से बुलाता था। अंग्रेजी में लिखी गई उनके नाम की स्पेलिंग के कारण काफी समय बाद उनका नाम नथूराम से नाथूराम (Nathuram) हो गया। इसके पीछे एक लंबी कहानी है।
दरअसल नाथूराम के परिवार में उनसे पहले जितने लड़के पैदा हुए, सभी की अकाल मौत हो जाती थी। इसे देखते हुए जब नथू पैदा हुए तो परिवार ने उन्हें लड़कियों की तरह पाला। उन्हें बकायदा नथ तक पहनाई गई थी और लड़कियों के कपड़ों में रखा जाता था। इसी नथ के कारण उनका नाम नथूराम पड़ गया था, जो आगे चलकर अंग्रेजी की स्पेलिंग के कारण नाथूराम हो गया था।

मोहनदास गांधी (Mohandas Gandhi) की 30 जनवरी 1948 को गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।  गाँधी की हत्या नाथूराम विनायक गोडसे (Nathuram Godse) ने की थी। गोडसे ने 30 जनवरी 1948 को गाँधी का सीना उस वक्‍त छलनी कर दिया जब वे दिल्‍ली के बिड़ला भवन में शाम की प्रार्थना सभा से उठ रहे थे। गोडसे ने गाँधी के साथ खड़ी महिला को हटाया और अपनी सेमी ऑटोमेटिक पिस्टल से एक बाद के एक तीन गोली मारकर उनकी हत्‍या कर दी। नाथूराम गोडसे को गांधी की हत्या करने के तुरंत बाद ही गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद उस पर शिमला की अदालत में ट्रायल चला। नाथूराम गोडसे को 8 नवंबर, 1949 को फांसी की सजा सुनाई गई थी। जिसके बाद उसे 15 नवंबर, 1949 को फांसी पर चढ़ाया गया था। गांधी की हत्या के बाद उनके पुत्र देवदास गांधी नाथूराम से मिलने पहुंचे। इसके संदर्भ में नाथूराम गोडसे के भाई  ने अपनी किताब ''मैंने गांधी वध क्यों किया'' में लिखा है, ''देवदास (गांधी के पुत्र) शायद इस उम्मीद में आए होंगे कि उन्हें कोई वीभत्स चेहरे वाला, गांधी के खून का प्यासा कातिल नजर आएगा, लेकिन नाथूराम सहज और सौम्य थे। उनका आत्म विश्वास बना हुआ था। देवदास ने जैसा सोचा होगा, उससे एकदम उलट।'' 
गांधी की हत्या में नाथूराम अकेले नहीं थे। गांधी की हत्या में नाथूराम गोड़से अकेले नहीं थे। दिल्ली के लाल किले में चले मुकदमे में न्यायाधीश आत्मचरण की अदालत ने नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को फांसी की सज़ा सुनाई थी। बाक़ी पाँच लोगों विष्णु करकरे, मदनलाल पाहवा, शंकर किस्तैया, गोपाल गोडसे और दत्तारिह परचुरे को उम्रकैद की सज़ा मिली थी। बाद में हाईकोर्ट ने किस्तैया और परचुरे को हत्या के आरोप से बरी कर दिया था।

*अदालत को गोडसे ने बताई थी हत्या की ये वजह* अदालत में चले ट्रायल के दौरान नाथूराम ने गांधी की हत्या की बात स्वीकार कर ली थी। कोर्ट में अपना पक्ष रखते हुए गोडसे ने कहा था कि गांधी जी ने देश की जो सेवा की है, मैं उसका आदर करता हूँ। उन पर गोली चलाने से पूर्व मैं उनके सम्मान में इसीलिए नतमस्तक हुआ था। किंतु जनता को धोखा देकर पूज्य मातृभूमि के विभाजन का अधिकार किसी बड़े से बड़े महात्मा को भी नहीं है। गाँधी जी ने देश को छल कर देश के टुकड़े कर दिए। ऐसा कोई न्यायालय या कानून नहीं था, जिसके आधार पर ऐसे अपराधी को दंड दिया जा सकता, इसीलिए मैंने गाँधी को गोली मारी।
मौत से ठीक पहले गांधी ने कहा था *‘जो देर करते हैं उन्हें सजा मिलती है* गांधी को 30 जनवरी 1948 को शाम 5:15 बजे गाँधी भागते हुए बिरला हाउस के प्रार्थना स्थल की तरफ़ बढ़ रहे थे। उनके स्टाफ़ के सदस्य गुरबचन सिंह ने घड़ी देखते हुए कहा था, "बापू आज आपको थोड़ी देरी हो गई।" इस पर गांधी ने भागते हुए ही हंसकर जवाब दिया था, "जो लोग देर करते हैं उन्हें सज़ा मिलती है।" इसके दो मिनट बाद ही नथूराम गोडसे ने अपनी बेरेटा पिस्टल की तीन गोलियाँ महात्मा गाँधी के शरीर में उतार दी थीं।
गोडसे से जेल में मिलने गए गांधी के बेटे ने कहा थानाथूराम के भाई गोपाल गोडसे की किताब ‘गांधी वध और मैं’ के अनुसार जब गोडसे संसद मार्ग थाने में बंद थे, तो उन्हें देखने के लिए कई लोग जाते थे। एक बार गांधी जी के बेटे देवदास भी उनसे मिलने जेल पहुंचे थे। गोडसे ने उन्हें सलाखों के अंदर से देखते ही पहचान लिया था। इसके बाद गोडसे ने देवदास गांधी से कहा था कि आप आज मेरे कारण पितृविहीन हो चुके हैं। आप पर और आपके परिवार पर जो वज्रपात हुआ है उसका मुझे खेद है। लेकिन आप विश्वास करें, किसी व्यक्तिगत शत्रुता की वजह से मैंने ऐसा नहीं किया है। इस मुलाकात के बाद देवदास ने नथूराम को एक पत्र लिखा था। इसमें उन्होंने लिखा था आपने मेरे पिता की नाशवान देह का ही अंत किया है और कुछ नहीं। इसका ज्ञान आपको एक दिन होगा, क्योंकि मुझ पर ही नहीं संपूर्ण संसार के लाखों लोगों के दिलों में उनके विचार अभी तक विद्यमान हैं और हमेशा रहेंगे।

*गोड़से की अंतिम इच्छा* 15 नवंबर 1949 को नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को फाँसी दी गई थी। फांसी के लिए जाते वक्त नाथूराम के एक हाथ में गीता और अखंड भारत का नक्शा था और दूसरे हाथ में भगवा ध्वज। प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि फाँसी का फंदा पहनाए जाने से पहले उन्होंने *नमस्ते सदा वत्सले* का उच्चारण किया और नारे लगाए थे। गोडसे ने अपनी अंतिम इच्छा लिखकर दी थी कि उनके शरीर के कुछ हिस्से को संभाल कर रखा जाए और जब सिंधु नदी स्वतंत्र भारत में फिर से समाहित हो जाए और फिर से अखंड भारत का निर्माण हो जाए, तब उनकी अस्थियां उसमें प्रवाहित की जाए। इसमें दो-चार पीढ़ियाँ भी लग जाएं तो कोई बात नहीं। उनकी अंतिम इच्छा अब भी अधूरी है और शायद ही कभी पूरी हो।

*नाथूराम गोडसे ने गांधी को क्यों मारा?*
नाथूराम गोडसे (Nathuram Godse)  गांधी के उस फैसले के खिलाफ था जिसमें वह चाहते थे कि पाकिस्तान को भारत की तरफ से आर्थिक मदद दी जाए। इसके लिए बापू ने उपवास भी रखा था। उसे यह भी लगता था कि सरकार की मुस्लिमों के प्रति तुष्टीकरण की नीति गांधी जी के कारण है। नाथूराम गोडसे का मानना था कि भारत के विभाजन और उस समय हुई साम्प्रदायिक हिंसा में लाखों हिन्‍दुओं की हत्या के लिए महात्मा गांधी जिम्मेदार थे। गोडसे ने दिल्ली स्थित बिड़ला भवन में बापू की हत्या की थी। 30 जनवरी 1948 की शाम नाथूराम गोडसे बापू के पैर छूने बहाने झुका और फिर बैरेटा पिस्तौल से तीन गोलियां दाग कर उनकी हत्या कर दी थी।

*अब भी सुरक्षित हैं नाथूराम की अस्थियां* 
नाथूराम का शव उनके परिवार को नहीं दिया गया था। अंबाला जेल के अंदर ही अंदर एक गाड़ी में डालकर उनके शव को पास की घग्घर नदी ले जाया गया। वहीं सरकार ने गुपचुप तरीके से उनका अंतिम संस्कार कर दिया था। उस वक्त गोडसे के हिंदू महासभा के अत्री नाम के एक कार्यकर्ता उनके शव के पीछे-पीछे गए थे। उनके शव की अग्नि जब शांत हो गई तो, उन्होंने एक डिब्बे में उनकी अस्थियाँ समाहित कर लीं थीं। उनकी अस्थियों को अभी तक सुरक्षित रखा गया है। गोडसे परिवार ने उनकी अंतिम इच्छा का सम्मान करते हुए उनकी अस्थियों को अभी तक नव चाँदी के एक कलश में सुरक्षित रखा हुआ है।

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