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शनिवार, 2 अप्रैल 2022

भगवान शिव की पांच बेटियों के जन्म की कथा

भगवान शिव की पांच बेटियों के जन्म की कथा
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भारत में शिव जी को भगवान के रूप में तथा देवी पार्वती को माँ की रूप में पूजा जाता है। भगवान शिव को देवों के देव भी कहते हैं। इनके अन्य नाम महादेव, भोलेनाथ, नीलकंठ, तथा शंकर आदि हैं। शिव के गले में नाग देवता विराजित हैं। उनके हाथों में डमरू और त्रिशूल रहता है।

माँ पार्वती भगवान शिव की पत्नी हैं। माँ पार्वती देवी सती का ही रूप हैं। माँ पार्वती को उमा तथा गौरी आदि नामो से भी जाना जाता है। माँ पार्वती का जन्म हिमनरेश के घर हुआ था जो कि हिमालय का अवतार थे। माँ पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए घोर तप किया था तथा अपने कठोर तप में वह सफल भी हुई।

आपने भगवान शिव तथा देवी पार्वती से सम्बंधित कई कथाएं भी सुनी होंगी। परन्तु भगवान शिव की पांच बेटियों की कथा के बारे में केवल कुछ ही लोग जानते हैं।

एक दिन भगवान शिव और माँ पार्वती एक सरोवर में जल क्रीड़ा कर रहे थे। उस समय भगवान शिव का वीर्यस्खलन हो गया।  तब महादेव ने वीर्य को एक पत्ते पर रख दिया। उन वीर्य से पांच कन्यायों का जन्म हो गया। परन्तु यह कन्याएं मनुष्य रूप में ना होकर सर्प रूप में थी।

माँ पार्वती को इस विषय में कोई जानकारी नही थी। परन्तु भगवान शिव तो सब जानते थे कि वो अब पांच नाग कन्यायों के पिता हैं। कौन पिता नही चाहता कि वह अपनी पुत्रियों के साथ खेले। महादेव भी अब एक पिता थे और वह भी अपनी पुत्रियों के साथ समय बिताना चाहते थे तथा उनके साथ खेलना चाहते थे। इसलिए पुत्री मोह के कारण भगवान शिव अब हर दिन उस सरोवर पर नाग कन्यायों से मिलने आते तथा उनके साथ खेलते।

प्रतिदिन महादेव का ऐसे चले जाने से देवी पार्वती को शंका हुई। इसलिए उन्होंने भगवान शिव का रहस्य जानने की कोशिश की। एक दिन जब महादेव सरोवर की ओर जाने लगे तो देवी पार्वती उनके पीछे-पीछे सरोवर पहुँच गयी। 

वहां देवी पार्वती ने भगवान शिव को नाग कन्यायों के साथ खेलते हुए देखा। यह देखकर देवी पार्वती को बहुत क्रोध आया। क्रोध के वशीभूत होकर देवी पार्वती ने नाग कन्यायों को मारना चाहा। जैसे ही उन्होंने नाग कन्यायों को मारने के लिए अपना पैर उठाया तो भगवान शिव ने कहा कि यह आपकी पुत्रियां हैं। देवी पार्वती बहुत आश्चर्यचकित हुई। फिर भगवान शिव ने देवी पार्वती को नाग कन्यायों के जन्म की कथा सुनाई। कथा सुनकर देवी पार्वती हंसने लगी।

भगवान शिव ने बताया की इन नाग कन्यायों का नाम है- जया, विषहर, शामिलबारी, देव और दोतलि। भगवान शिव ने अपनी पुत्रियों के बारे में बताते हुए कहा कि सावन में जो भी इन कन्यायों की पूजा करेगा उसे सर्प भय नही रहेगा। इन कन्यायों की पूजा करने से परिवार के सदस्यों को सांप नही डसेगा। यही कारण है की सावन में भगवान शिव की पांच नाग पुत्रियों की पूजा की जाती है।
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मोदी की लाठी और कांग्रेस की तिलमिलाहट

मोदी की लाठी और कांग्रेस की तिलमिलाहट
कहते हैं कि भगवान की लाठी बेआवाज होती है। कुछ इसी तरह मोदी जी की लाठी भी बेआवाज होती है पर बहुत गहरी चोट पहुंचाती है। वैसे तो यह खबर आप अंबेडकर जयंती १४ अप्रैल को सुनेंगे पर इसकी पृष्ठभूमि अभी जान लीजिए। 

हुआ यह था कि १९४७में आजादी के बाद तत्कालीन वायसराय हाउस राष्ट्रपति आवास बना दिया गया। उसके बाद क्षेत्रफल और साज-सज्जा के अनुसार दूसरे नंबर पर तीन मूर्ति भवन था। नेहरू ने इसे अपना आवास बना लिया।
अगले १७ वर्षों तक सारे कर्म कुकर्म इसी भवन में करते रहे।
उनकी गुप्त रोग से मृत्यु होनेपर दूसरे पूर्व स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री जब तीन मूर्ति भवन में जाने लगे तो इंदिरा गांधी ने रोक दिया।कहा कि आपकी हैसियत नेहरू के भवन में रहने लायक नहीं है। सीधे-सादे शास्त्री जी मान गए और अपने लिए एक बहुत छोटा सा बंगला चुना और वहीं रहने लगे।
उनकी रहस्यमय असामयिक मृत्युके बाद तीन मूर्ति भवन को इंदिरा गांधी ने नेहरू संग्रहालय बना दिया। इसमें उनका गद्दा तकिया रजाई चश्मा घड़ी और उनकी ऐयाशी के सारे सामान जिसमें एडविना की फोटो भी थी रहा दिया। 
बाद में जितने प्रधानमंत्री आए किसी का कोई संग्रहालय नहीं बना।
पी वी नरसिम्हा राव को इतना बेइज्जतकिया कि उनका अंतिम संस्कार तक दिल्ली में नहीं करने दिया क्योंकि वे इंदिरा गांधी के गुलाम नहीं थे।
समय बीतता गया। प्रधानमंत्री आते गए और सबके बंगले सुरक्षित होते रहे। 
इसी समय राजनीति के फलक पर एक सितारे का उदय हुआ जिसे सब नरेंद्र मोदी के नाम से जानते हैं।
 उन्होंनेबिना हल्ला गुल्ला किये खामोशी से काम शुरू कर दिया।तीन मूर्ति भवन के एक एक करके १८ कमरे खुलवा दिया और उनमें सभी प्रधानमंत्रियों की स्मरणीय वस्तुओं को रखवाकर उनके नाम से अलग अलग संग्रहालय बनवा दिया।

अब बारी थी नेहरू का नाम मिटाने की।अब तक इसका नाम केवल"जवाहरलाल नेहरू संग्रहालय तीन मूर्ति भवन दिल्ली' था। मोदी जी ने अब नेहरू शब्द हटाकर इसका नया
नामकरण कर दिया " प्रधानमंत्री संग्रहालय' ।इसका विधिवत उद्घाटन दिनांक 14-04-2022 करेंगे। 

नेहरू संग्रहालय अब कहलाएगा 'पीएम म्यूजियम'; सभी PM की यादों को मिलेगी जगह, 14 अप्रैल को उद्घाटन

देश की राजधानी नई दिल्ली में स्थित नेहरू-गांधी परिवार की विरासत नेहरू संग्रहालय (Nehru Memorial Museum) यानी द नेहरू मेमोरियल म्यूजियम का नाम अब ‘प्रधानमंत्री संग्रहालय’ (Nehru Memorial Museum) होगा. तीन मूर्ति भवन पर बने इस 'प्रधानमंत्री संग्रहालय' का उद्घाटन पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) की ओर से 14 अप्रैल को डॉ बाबासाहेब अंबेडकर के जन्मदिन के मौके पर किया जाएगा. 

 इसे प्रधानमंत्री संग्रहालय नाम देने के बाद देश के सभी पूर्व प्रधानमंत्रियों से जुड़ी यादों को अब इस म्यूजियम में जगह दी जाएगी.

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, ‘हमारे तो एक ही हैं, बाकी उनके हैं ….वह किसी भी दल के रहे हों, फिर भी हमने पूर्व प्रधानमंत्रियों के योगदान को सम्मान दिया है. हमें दलगत भावना से ऊपर उठकर सभी प्रधानमंत्रियों का सम्मान करना चाहिए. आप सभी को यहां जाना चाहिए.’ बता दें कि भाजपा अक्सर यह आरोप लगाती रही है कि आजादी के बाद अधिकांश समय कांग्रेस ने देश पर शासन किया और वह सिर्फ गांधी-नेहरू परिवार के प्रधानमंत्रियों का ही गुणगान करती रही थी जबकि अन्य के साथ उसका व्यवहार ठीक नहीं रहा.

संग्रहालय को 271 करोड़ रुपये की लागत से 10,000 वर्ग मीटर क्षेत्र में बनाया गया है. इसे 2018 में मंजूरी दी गई थी. संग्रहालय में पूर्व पीएम से संबंधित दुर्लभ तस्वीरें, भाषण, वीडियो क्लिप, समाचार पत्र की कतरन, साक्षात्कार और मूल लेखन जैसे प्रदर्शन होंगे. बता दें कि भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, गृह मंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह समेत पार्टी के कई नेता बैठक में शामिल थे. भाजपा द्वारा कई एक सप्ताह तक कार्यक्रम आयोजित होंगे

कांग्रेस में इसीलिए पीड़ा बढ़ गई है।रो भी नहीं सकती, हंसने का तो सवाल ही नहीं उठता।😎

Jai Shree Ram.🚩

वैदिक नववर्ष, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा विक्रमी संवत् 2079 

🙏💐वैदिक नववर्ष, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा विक्रमी संवत् 2079 (2
अप्रैल, 2022)" एवं नव रात्रि स्थापना की आप सभी को शुभकामनाएँ।
सृष्टि स्थापना दिवस, कालगणना की सर्वाधिक वैज्ञानिक पद्धति, सबसे प्राचीन व्यवस्था, प्रकृति में छाए सबसे उत्साह के दिन चैत्र शुक्ला प्रतिपदा की आप सभी को शुभकामनाएं और बधाइयां।
विक्रम संवत २०७९ विश्व के लिए कल्याणकारी हो।💐🙏

*चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का ऐतिहासिक महत्व :-

* इसी दिन आज से 1,97,38,13,122 वर्ष पूर्व ईश्वर ने
सृष्टि की रचना प्रारंभ की थी।(सृष्टि संवत्)


* मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का राज्याभिषेक भी इसी दिन
हुआ था।    

* महाराज युधिष्ठिर का राज्याभिषेक 5157 वर्ष पूर्व इसी
दिन हुआ था।

* 2078 वर्ष पूर्व सम्राट विक्रमादित्य ने इसी दिन अपना
राज्य स्थापित किया। उसी दिन से प्रसिद्ध विक्रमी संवत् प्रारंभ
हुआ।

 *147 वर्ष पूर्व महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने इसी दिन कोआर्य समाज की स्थापना दिवस के रूप में चुना।* आर्य समाज वेद प्रचार का महान कार्य करने वाला एकमात्र संगठन है।

* विक्रमादित्य की भांति शालिवाहन ने हूणों को परास्त कर
दक्षिण भारत में श्रेष्ठतम राज्य स्थापित करने हेतु यही दिन चुना।


*वैदिक नववर्ष का प्राकृतिक महत्व :-

* वसंत ऋतु का आरंभ वर्ष प्रतिपदा से ही होता है जो
उल्लास, उमंग, खुशी तथा चारों तरफ पुष्पों की सुगंधि से भरी
होती है।

* फसल पकने का प्रारंभ यानि किसान की मेहनत का फल
मिलने का भी यही समय होता है।

*वैदिक नववर्ष कैसे मनाएँ :-

* हम परस्पर एक दूसरे को नववर्ष की शुभकामनाएँ दें।

* अपने परिचित मित्रों, रिश्तेदारों को नववर्ष एवं नव रात्रि स्थापना के शुभ संदेश
भेजें। 

* इस मांगलिक अवसर पर अपने-अपने घरों पर भगवा
पताका फेहराएँ। वेद , रामायण, गीता आदि शास्त्रो के स्वाध्याय का संकल्प ले।

 *घरों एवं धार्मिक स्थलों में हवन यज्ञ के कार्यक्रमों का
आयोजन जरूर करें ।*

* इस अवसर पर होने वाले धार्मिक एवं सांस्कृतिक
कार्यक्रमों में भाग लें अथवा कार्यक्रमों का आयोजन करें।

देश भर के मंदिरों में इस दिन नव रात्रि स्थापना के विशेष कार्यक्रम
आयोजित किए जा रहे हैं।

*आप सभी से विनम्र निवेदन है कि "वैदिक नववर्ष" हर्षोउल्लास
के साथ मनाने के लिए "ज्यादा से ज्यादा सज्जनों को प्रेरित"
करें।*
          धन्यवाद 

       🚩नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं🚩
भवन्निष्ठ-🙏 
कैलाश चन्द्र लढा 

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प्रथम पूजा का दिन* : नवरात्र में मां शैलपुत्री जी की पूजा 

*माता शैलपुत्री*
             🚩🙏🙏🚩
🌷 *नवरात्रि पूजन विधि* 🌷
➡ *02 अप्रैल 2022 शनिवार से नवरात्रि प्रारंभ ।*
🙏🏻 *नवरात्रि के प्रत्येक दिन माँ भगवती के एक स्वरुप श्री शैलपुत्री, श्री ब्रह्मचारिणी, श्री चंद्रघंटा, श्री कुष्मांडा, श्री स्कंदमाता, श्री कात्यायनी, श्री कालरात्रि, श्री महागौरी, श्री सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। यह क्रम चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को प्रातःकाल शुरू होता है। प्रतिदिन जल्दी स्नान करके माँ भगवती का ध्यान तथा पूजन करना चाहिए। सर्वप्रथम कलश स्थापना की जाती है।*
➡ *कलश / घट स्थापना विधि*
🌷 *घट स्थापना शुभ मुहूर्त (सुरत - गुजरात) :*
*02 अप्रैल 2022 शनिवार को सुबह 06:31 से 08:31 तक*
*अभिजित मुहूर्त दोपहर 12:18 से दोपहर 01:07 तक* 
🙏🏻 *देवी पुराण के अनुसार मां भगवती की पूजा-अर्चना करते समय सर्वप्रथम कलश / घट की स्थापना की जाती है। घट स्थापना करना अर्थात नवरात्रि की कालावधि में ब्रह्मांड में कार्यरत शक्ति तत्त्व का घट में आवाहन कर उसे कार्यरत करना । कार्यरत शक्ति तत्त्व के कारण वास्तु में विद्यमान कष्टदायक तरंगें समूल नष्ट हो जाती है। धर्मशास्त्रों के अनुसार कलश को सुख-समृद्धि, वैभव और मंगल कामनाओं का प्रतीक माना गया है। कलश के मुख में विष्णुजी का निवास, कंठ में रुद्र तथा मूल में ब्रह्मा स्थित हैं और कलश के मध्य में दैवीय मातृशक्तियां निवास करती हैं।*

🌷 *सामग्री:*
👉🏻 *जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र*
👉🏻 *जौ बोने के लिए शुद्ध साफ़ की हुई मिटटी*
👉🏻 *पात्र में बोने के लिए जौ*
👉🏻 *घट स्थापना के लिए मिट्टी का कलश (“हैमो वा राजतस्ताम्रो मृण्मयो वापि ह्यव्रणः” अर्थात 'कलश' सोने, चांदी, तांबे या मिट्टी का छेद रहित और सुदृढ़ उत्तम माना गया है । वह मङ्गलकार्योंमें मङ्गलकारी होता है )*

👉🏻 *कलश में भरने के लिए शुद्ध जल, गंगाजल*
👉🏻 *मौली*
👉🏻 *इत्र*
👉🏻 *साबुत सुपारी*
👉🏻 *दूर्वा*
👉🏻 *कलश में रखने के लिए कुछ सिक्के*
👉🏻 *पंचरत्न*
👉🏻 *अशोक या आम के 5 पत्ते*
👉🏻 *कलश ढकने के लिए ढक्कन*
👉🏻 *ढक्कन में रखने के लिए बिना टूटे चावल*
👉🏻 *पानी वाला नारियल*
👉🏻 *नारियल पर लपेटने के लिए लाल कपडा*
👉🏻 *फूल माला*
🌷 *विधि*
🙏🏻 *सबसे पहले जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र लें। इस पात्र में मिट्टी की एक परत बिछाएं। अब एक परत जौ की बिछाएं। इसके ऊपर फिर मिट्टी की एक परत बिछाएं। अब फिर एक परत जौ की बिछाएं। जौ के बीच चारों तरफ बिछाएं ताकि जौ कलश के नीचे न दबे। इसके ऊपर फिर मिट्टी की एक परत बिछाएं। अब कलश के कंठ पर मौली बाँध दें। कलश के ऊपर रोली से ॐ और स्वास्तिक लिखें। अब कलश में शुद्ध जल, गंगाजल कंठ तक भर दें। कलश में साबुत सुपारी, दूर्वा, फूल डालें। कलश में थोडा सा इत्र डाल दें। कलश में पंचरत्न डालें। कलश में कुछ सिक्के रख दें। कलश में अशोक या आम के पांच पत्ते रख दें। अब कलश का मुख ढक्कन से बंद कर दें। ढक्कन में चावल भर दें। श्रीमद्देवीभागवत पुराण के अनुसार “पञ्चपल्लवसंयुक्तं वेदमन्त्रैः सुसंस्कृतम्। सुतीर्थजलसम्पूर्णं हेमरत्नैः समन्वितम्॥” अर्थात कलश पंचपल्लवयुक्त, वैदिक मन्त्रों से भली भाँति संस्कृत, उत्तम तीर्थ के जल से पूर्ण और सुवर्ण तथा पंचरत्न मई होना चाहिए।*
🙏🏻 *नारियल पर लाल कपडा लपेट कर मौली लपेट दें। अब नारियल को कलश पर रखें। शास्त्रों में उल्लेख मिलता है: “अधोमुखं शत्रु विवर्धनाय,ऊर्ध्वस्य वस्त्रं बहुरोग वृध्यै। प्राचीमुखं वित विनाशनाय,तस्तमात् शुभं संमुख्यं नारीकेलं”। अर्थात् नारियल का मुख नीचे की तरफ रखने से शत्रु में वृद्धि होती है।नारियल का मुख ऊपर की तरफ रखने से रोग बढ़ते हैं, जबकि पूर्व की तरफ नारियल का मुख रखने से धन का विनाश होता है। इसलिए नारियल की स्थापना सदैव इस प्रकार करनी चाहिए कि उसका मुख साधक की तरफ रहे। ध्यान रहे कि नारियल का मुख उस सिरे पर होता है, जिस तरफ से वह पेड़ की टहनी से जुड़ा होता है।*
🙏🏻 *अब कलश को उठाकर जौ के पात्र में बीचो बीच रख दें। अब कलश में सभी देवी देवताओं का आवाहन करें। "हे सभी देवी देवता और माँ दुर्गा आप सभी नौ दिनों के लिए इसमें पधारें।" अब दीपक जलाकर कलश का पूजन करें। धूपबत्ती कलश को दिखाएं। कलश को माला अर्पित करें। कलश को फल मिठाई अर्पित करें। कलश को इत्र समर्पित करें।*
🌷 *कलश स्थापना के बाद माँ दुर्गा की चौकी स्थापित की जाती है।*
🙏🏻 *नवरात्रि के प्रथम दिन एक लकड़ी की चौकी की स्थापना करनी चाहिए। इसको गंगाजल से पवित्र करके इसके ऊपर सुन्दर लाल वस्त्र बिछाना चाहिए। इसको कलश के दायीं ओर रखना चाहिए। उसके बाद माँ भगवती की धातु की मूर्ति अथवा नवदुर्गा का फ्रेम किया हुआ फोटो स्थापित करना चाहिए। मूर्ति के अभाव में नवार्णमन्त्र युक्त यन्त्र को स्थापित करें। माँ दुर्गा को लाल चुनरी उड़ानी चाहिए। माँ दुर्गा से प्रार्थना करें "हे माँ दुर्गा आप नौ दिन के लिए इस चौकी में विराजिये।" उसके बाद सबसे पहले माँ को दीपक दिखाइए। उसके बाद धूप, फूलमाला, इत्र समर्पित करें। फल, मिठाई अर्पित करें।*
🙏🏻 *नवरात्रि में नौ दिन मां भगवती का व्रत रखने का तथा प्रतिदिन दुर्गा सप्तशती का पाठ करने का विशेष महत्व है। हर एक मनोकामना पूरी हो जाती है। सभी कष्टों से छुटकारा दिलाता है।*
🙏🏻 *नवरात्रि के प्रथम दिन ही अखंड ज्योत जलाई जाती है जो नौ दिन तक जलती रहती है। दीपक के नीचे "चावल" रखने से माँ लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है तथा "सप्तधान्य" रखने से सभी प्रकार के कष्ट दूर होते है*
🙏🏻 *माता की पूजा "लाल रंग के कम्बल" के आसन पर बैठकर करना उत्तम माना गया है*
🙏🏻 *नवरात्रि के प्रतिदिन माता रानी को फूलों का हार चढ़ाना चाहिए। प्रतिदिन घी का दीपक (माता के पूजन हेतु सोने, चाँदी, कांसे के दीपक का उपयोग उत्तम होता है) जलाकर माँ भगवती को मिष्ठान का भोग लगाना चाहिए। मान भगवती को इत्र/अत्तर विशेष प्रिय है।*
🙏🏻 *नवरात्रि के प्रतिदिन कंडे की धुनी जलाकर उसमें घी, हवन सामग्री, बताशा, लौंग का जोड़ा, पान, सुपारी, कर्पूर, गूगल, इलायची, किसमिस, कमलगट्टा जरूर अर्पित करना चाहिए।*
🙏🏻 *लक्ष्मी प्राप्ति के लिए नवरात्रि में पान और गुलाब की ७ पंखुरियां रखें तथा मां भगवती को अर्पित कर दें*
🙏🏻 *मां दुर्गा को प्रतिदिन विशेष भोग लगाया जाता है। किस दिन किस चीज़ का भोग लगाना है ये हम विस्तार में आगे बताएँगे।*
🙏🏻 *प्रतिदिन कन्याओं का विशेष पूजन किया जाता है। श्रीमद्देवीभागवत पुराण के अनुसार “एकैकां पूजयेत् कन्यामेकवृद्ध्या तथैव च। द्विगुणं त्रिगुणं वापि प्रत्येकं नवकन्तु वा॥” अर्थात नित्य ही एक कुमारी का पूजन करें अथवा प्रतिदिन एक-एक-कुमारी की संख्या के वृद्धिक्रम से पूजन करें अथवा प्रतिदिन दुगुने-तिगुने के वृद्धिक्रम से और या तो प्रत्येक दिन नौ कुमारी कन्याओं का पूजन करें।*
🙏🏻 *यदि कोई व्यक्ति नवरात्रि पर्यन्त प्रतिदिन पूजा करने में असमर्थ हैं तो उसे अष्टमी तिथि को विशेष रूप से अवश्य पूजा करनी चाहिए। प्राचीन काल में दक्ष के यज्ञ का विध्वंश करने वाली महाभयानक भगवती भद्रकाली करोङों योगिनियों सहित अष्टमी तिथि को ही प्रकट हुई थीं।*
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प्रथम नवदुर्गा : देवी दुर्गा के नौ रूप होते है | देवी दुर्गा ज़ी के पहले स्वरूप को "माता शैलपुत्री" के नाम से जाना जाता है | ये ही नवदुर्गाओ मे प्रथम दुर्गा हैं| शैलराज हिमालय के घर पुत्री रूप मे उत्पन्न होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा |नवरात्र पूजन मे प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा ओर उपासना की जाती है |


*प्रथम पूजा का दिन* : नवरात्र में मां शैलपुत्री जी की पूजा   की जाएगी। 
*माता शैलपुत्री का उपासना मंत्र*
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।*
*वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥*
*माता का स्वरूप*
वृषभ–स्थिता माता शैलपुत्री खड्ग, चक्र, गदा, बाण, धनुष, त्रिशूल, भुशुंडि, कपाल तथा शंख को धारण करने वाली संपूर्ण आभूषणों से विभूषित नीलमणि के समान कांतियुक्त , दस मुख ओर दसचरण वाली है | इन के दाहिने हाथ मे त्रिशूल ओर बाए हाथ मे कमल पुष्प शुशोभित है |
*आराधना महत्व*
महाकाली की आराधना करने से साधक को कुसंस्कारो , दूर्वासनाओ तथा असुरी व्रतियो के साथ संग्राम कर उन्हे ख़त्म करने का सामर्थ्य प्राप्त होता है | ये देवी शक्ति, आधार व स्थिरता की प्रतीकहै | इसके अतिरिक्त उपरोक्त मंत्र का नित्य एक माला जाप करने पर सभी मनोरथ पूर्ण होते है | इस देवी की उपासना जीवन मे स्थिरता देती है |
*पूजा मे उपयोगी वस्तु*
मां भगवती की विशेष कृपा प्राप्ति हेतु सभी तरीकों से माता की पूजा के बाद नियमानुसार प्रतिपदा तिथि को नैवेद्य के रूप में गाय का घी मां को अर्पित करना चाहिए और फिर वह घी ब्राह्मण को दे देना चाहिए। 

*पूजा फल*: मान्यता है कि माता शैलपुत्री की भक्तिपूर्वक पूजा करने से मनुष्य कभी रोगी नहीं होता। 
      🌺 *जय मां शैलपुत्री*🌺

प्रथम महीना चैत से गिनराम जनम का जिसमें दिन।।

प्रथम महीना चैत से गिन
राम जनम का जिसमें दिन।।

द्वितीय माह आया वैशाख।
वैसाखी पंचनद की साख।।

ज्येष्ठ मास को जान तीसरा।
अब तो जाड़ा सबको बिसरा।।

चौथा मास आया आषाढ़।
नदियों में आती है बाढ़।। 

पांचवें सावन घेरे बदरी।
झूला झूलो गाओ कजरी।।

भादौ मास को जानो छठा।
कृष्ण जन्म की सुन्दर छटा।। 

मास सातवां लगा कुंआर।
दुर्गा पूजा की आई बहार।। 

कार्तिक मास आठवां आए।
दीवाली के दीप जलाए।।

नवां महीना आया अगहन।
सीता बनीं राम की दुल्हन।। 

पूस मास है क्रम में दस।
पीओ सब गन्ने का रस।।

ग्यारहवां मास माघ को गाओ।
समरसता का भाव जगाओ।। 

मास बारहवां फाल्गुन आया।
साथ में होली के रंग लाया।। 

बारह मास हुए अब पूरे।
छोड़ो न कोई काम अधूरे।।
💐🌺🌹💐🌻
नव वर्ष की सभी को बहुत बहुत शुभकामनाएँ ।
यह वर्ष सबके लिये ख़ुशहाली और समृद्धि से भरपूर हो

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