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गुरुवार, 16 नवंबर 2023

शुक्ल पक्ष में जन्मे लोगों की और भी है खासियत

शुक्लशुक्ल पक्ष में जन्म लेने वाले लोगों में होती है ये विशेषताएं
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ऐसे लोग दानवीर के नाम से होते हैं मशहूर
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हिन्दू पंचांग के अनुसार एक वर्ष में कुल 12 महीने होते हैं और इसमें एक दिन को एक तिथि कहते हैं। इस तिथि की अवधि 19 से 24 घंटों तक की हो सकती है। जानकारी के लिए यह भी बता दें कि पंचांग में यह भी माना जाता है कि हर माह में तीस दिन होते हैं और इन महीनों की गणना सूरज और चन्द्रमा की गति के अनुसार ही की जाती है। चन्द्रमा की कलाओं के ज्यादा होने या कम होने के अनुसार ही महीने को दो पक्षों में बांटा गया है, जिन्हें कृष्ण पक्ष या शुक्ल पक्ष कहा जाता है। आपको बता दें कि अमावस्या और पूर्णिमा के मध्य के चरण को हम शुक्ल पक्ष कहते हैं। माना जाता है कि कोई भी शुभ काम करने के लिए इस पक्ष को उपयुक्त और सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। यही वजह है कि हिन्दू समाज में किसी भी नए काम की शुरुआत शुक्ल पक्ष में ही की जाती है।

शुक्ल पक्ष में जन्मे लोग
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शास्त्रों में भी इस बात का उचित उल्लेख है कि हर महीने के पंद्रह दिन कृष्ण पक्ष में आते हैं और अन्य पंद्रह दिन शुक्ल पक्ष में और ऐसे में यदि किसी भी व्यक्ति का जन्‍म शुक्‍ल पक्ष की प्रतिपदा को हुआ है तो निश्चित रूप से आपकी कुंडली में चंद्रमा बाल्यावस्था में होगा जिसके अनुसार आपकी कुंडली में चंद्रमा की स्थिति कमजोर है और इस वजह से आपको इसके नकारात्‍मक प्रभाव मिल सकते हैं। लेकिन इसके अलावा आपकी जानकारी के लिए यह भी बताना चाहेंगे कि शुक्ल पक्ष की एकादशी से कृष्णपक्ष की पंचमी तक जन्‍म लेने वाले जातकों की कुंडली में चंद्रमा बेहद ही मजबूत स्थिति में होता है। ऐसे में इन जातकों को चंद्रमा के प्रभाव में सकारात्‍मक फल प्राप्‍त होते हैं। चंद्रमा की शुभ स्थिति के कारण ये लोग इससे जुड़े भाव में सफलता हासिल करते हैं।

शुक्ल पक्ष में जन्मे जातक का स्वभाव
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शुक्ल पक्ष की अवधि में जन्म लेने वाले जातकों को सदैव लम्बी आयु प्राप्त होती है। सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि ये अन्नदाता, पालन करने वाले, पुत्रवान, दानवीर और उच्च श्रेणी के मित्र वाले इन्सान होते हैं। इस पक्ष को चांदण पक्ष भी कहा जाता है। चूंकि शुक्ल पक्ष में जन्मे जातक रौशनी और उजाले का प्रतीक माने जाते हैं इसलिए ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यह बताया गया है कि शुक्ल पक्ष में जन्म लेने वाले व्यक्ति का स्वभाव भी पूर्णिमा के चांद के समान उज्जवल और रोशन होता है। जो भी शिशु इस पक्ष में जन्म लेता है उसे ज्ञानी और कई विषयों में महारथ रखने वाला माना जाता है, साथ ही इन जातकों की बुद्धि सुन्दर और शुद्ध होती है। यह भी मान्यता है कि इस दौरान जन्म लेने वाले व्यक्ति जिस भी कार्य को करने की ठान लेते हैं, उसे पूरे मन से और पूरी कुशलता के साथ करते हैं क्योंकि ये जातक बहुत ही परिश्रमी होते हैं और इनकी सबसे खास बात ये होती है कि ये लोग कभी भी मेहनत करने से पीछे नही हटते।

शुक्ल पक्ष में जन्मे लोगों की और भी है खासियत
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इस बात से तो आप बेहतर ही परिचित होंगे कि जो भी व्यक्ति मेहनत से नहीं कतराता है सफलता उसी के कदमों को चूमती है। साथ ही ये कठिनाइयों को भी आसानी से पार कर लेते हैं। कुछ ऐसी ही इनकी भी फितरत होती है। इसके अलावा आपको यह भी बताते चलें कि ये अपनी बुद्धिमता और मेहनत से धन को अर्जित करने में भी सफल रहते हैं, इसलिए इन्हें कभी भी धन से संबंधित किसी भी तरह की परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता है। इनके स्वभाव की सबसे अच्छी विशेषता यही है कि ये सरल और स्नेहशील परवर्ती के व्यक्ति होते हैं। ये जातक अपने से बड़ो का आदर करने में कभी कोताही नहीं बरतते और अपने से छोटों के प्रति इनके मन में हमेशा प्रेम भाव बना रहता है। कला में भी ये काफी दिलचस्पी रखते हैं।

ऐसे लोग दानवीर के नाम से होते हैं मशहूर
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हिन्दू पंचांग के अनुसार एक वर्ष में कुल 12 महीने होते हैं और इसमें एक दिन को एक तिथि कहते हैं। इस तिथि की अवधि 19 से 24 घंटों तक की हो सकती है। जानकारी के लिए यह भी बता दें कि पंचांग में यह भी माना जाता है कि हर माह में तीस दिन होते हैं और इन महीनों की गणना सूरज और चन्द्रमा की गति के अनुसार ही की जाती है। चन्द्रमा की कलाओं के ज्यादा होने या कम होने के अनुसार ही महीने को दो पक्षों में बांटा गया है, जिन्हें कृष्ण पक्ष या शुक्ल पक्ष कहा जाता है। आपको बता दें कि अमावस्या और पूर्णिमा के मध्य के चरण को हम शुक्ल पक्ष कहते हैं। माना जाता है कि कोई भी शुभ काम करने के लिए इस पक्ष को उपयुक्त और सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। यही वजह है कि हिन्दू समाज में किसी भी नए काम की शुरुआत शुक्ल पक्ष में ही की जाती है।

शुक्ल पक्ष में जन्मे लोग
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शास्त्रों में भी इस बात का उचित उल्लेख है कि हर महीने के पंद्रह दिन कृष्ण पक्ष में आते हैं और अन्य पंद्रह दिन शुक्ल पक्ष में और ऐसे में यदि किसी भी व्यक्ति का जन्‍म शुक्‍ल पक्ष की प्रतिपदा को हुआ है तो निश्चित रूप से आपकी कुंडली में चंद्रमा बाल्यावस्था में होगा जिसके अनुसार आपकी कुंडली में चंद्रमा की स्थिति कमजोर है और इस वजह से आपको इसके नकारात्‍मक प्रभाव मिल सकते हैं। लेकिन इसके अलावा आपकी जानकारी के लिए यह भी बताना चाहेंगे कि शुक्ल पक्ष की एकादशी से कृष्णपक्ष की पंचमी तक जन्‍म लेने वाले जातकों की कुंडली में चंद्रमा बेहद ही मजबूत स्थिति में होता है। ऐसे में इन जातकों को चंद्रमा के प्रभाव में सकारात्‍मक फल प्राप्‍त होते हैं। चंद्रमा की शुभ स्थिति के कारण ये लोग इससे जुड़े भाव में सफलता हासिल करते हैं।
शुक्ल पक्ष में जन्मे जातक का स्वभाव
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शुक्ल पक्ष की अवधि में जन्म लेने वाले जातकों को सदैव लम्बी आयु प्राप्त होती है। सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि ये अन्नदाता, पालन करने वाले, पुत्रवान, दानवीर और उच्च श्रेणी के मित्र वाले इन्सान होते हैं। इस पक्ष को चांदण पक्ष भी कहा जाता है। चूंकि शुक्ल पक्ष में जन्मे जातक रौशनी और उजाले का प्रतीक माने जाते हैं इसलिए ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यह बताया गया है कि शुक्ल पक्ष में जन्म लेने वाले व्यक्ति का स्वभाव भी पूर्णिमा के चांद के समान उज्जवल और रोशन होता है। जो भी शिशु इस पक्ष में जन्म लेता है उसे ज्ञानी और कई विषयों में महारथ रखने वाला माना जाता है, साथ ही इन जातकों की बुद्धि सुन्दर और शुद्ध होती है। यह भी मान्यता है कि इस दौरान जन्म लेने वाले व्यक्ति जिस भी कार्य को करने की ठान लेते हैं, उसे पूरे मन से और पूरी कुशलता के साथ करते हैं क्योंकि ये जातक बहुत ही परिश्रमी होते हैं और इनकी सबसे खास बात ये होती है कि ये लोग कभी भी मेहनत करने से पीछे नही हटते।

शुक्ल पक्ष में जन्मे लोगों की और भी है खासियत
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इस बात से तो आप बेहतर ही परिचित होंगे कि जो भी व्यक्ति मेहनत से नहीं कतराता है सफलता उसी के कदमों को चूमती है। साथ ही ये कठिनाइयों को भी आसानी से पार कर लेते हैं। कुछ ऐसी ही इनकी भी फितरत होती है। इसके अलावा आपको यह भी बताते चलें कि ये अपनी बुद्धिमता और मेहनत से धन को अर्जित करने में भी सफल रहते हैं, इसलिए इन्हें कभी भी धन से संबंधित किसी भी तरह की परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता है। इनके स्वभाव की सबसे अच्छी विशेषता यही है कि ये सरल और स्नेहशील परवर्ती के व्यक्ति होते हैं। ये जातक अपने से बड़ो का आदर करने में कभी कोताही नहीं बरतते और अपने से छोटों के प्रति इनके मन में हमेशा प्रेम भाव बना रहता है। कला में भी ये काफी दिलचस्पी रखते हैं।


#आओ_सनातन_संस्कृति_की_ओर_लौटे, भारतीय रसोई के चूल्हे की राख में ऐसा क्या था कि, वह पुराने जमाने का Hand Sanitizer थी ...?

#आओ_सनातन_संस्कृति_की_ओर_लौटे
भारतीय रसोई के चूल्हे की राख में ऐसा क्या था कि, वह पुराने जमाने का Hand Sanitizer थी ...?


उस समय Hand Sanitizer नहीं हुआ करते थे, तथा साबुन भी दुर्लभ वस्तुओं की श्रेणी आता था। उस समय हाथ धोने के लिए जो सर्वसुलभ वस्तु थी, वह थी चूल्हे की राख। जो बनती थी लकड़ी तथा गोबर के कण्डों के जलाये जाने से। चूल्हे की राख का रासायनिक संगठन है ही कुछ ऐसा ।
आइये चूल्हे की राख का वैज्ञानिक विश्लेषण करें। इस राख में वो सभी तत्व पाए जाते हैं, वे पौधों में भी उपलब्ध होते हैं। इसके सभी Major तथा Minor Elements पौधे या तो मिट्टी से ग्रहण करते हैं या फिर वातावरण से। इसमें सबसे अधिक मात्रा में होता है Calcium.

इसके अलावा होता है Potassium, Aluminium, Magnesium, Iron, Phosphorus, Manganese, Sodium तथा Nitrogen. कुछ मात्रा में Zinc, Boron, Copper, Lead, Chromium, Nickel, Molybdenum, Arsenic, Cadmium, Mercury तथा Selenium भी होता है ।
राख में मौजूद Calcium तथा Potassium के कारण इसकी ph क्षमता ९.० से १३.५ तक होती है। इसी ph के कारण जब कोई व्यक्ति हाथ में राख लेकर तथा उस पर थोड़ा पानी डालकर रगड़ता है तो यह बिल्कुल वही माहौल पैदा करती है जो साबुन रगड़ने पर होता है।

जिसका परिणाम होता है जीवाणुओं और विषाणुओं का विनाश । आइये, अब मनन करें सनातन धर्म के उस तथ्य पर जिसे अब सारा संसार अपनाने पर विवश है। सनातन में मृत देह को जलाने और फिर राख को बहते पानी में अर्पित करने का प्रावधान है। मृत व्यक्ति की देह की राख को पानी में मिलाने से वह पंचतत्वों में समाहित हो जाती है ।
मृत देह को अग्नि तत्व के हवाले करते समय उसके साथ लकड़ियाँ और उपले भी जलाये जाते हैं और अंततः जो राख पैदा होती है उसे जल में प्रवाहित किया जाता है । जल में प्रवाहित की गई राख जल के लिए डिसइंफैकटैण्ट का काम करती है ।

इस राख के कारण मोस्ट प्रोबेबिल नम्बर ऑफ कोलीफॉर्म (MPN) में कमी आ जाती है और साथ ही डिजोल्वड ऑक्सीजन (DO) की मात्रा में भी बढ़ोत्तरी होती है। वैज्ञानिक अध्ययनों में यह स्पष्ट हो चुका है कि गाय के गोबर से बनी राख डिसइन्फैक्शन के लिए एक एकोफ़्रेंडली विकल्प है...
जिसका उपयोग सीवेज वाटर ट्रीटमैंट (STP) के लिए भी किया जा सकता है। सनातन का हर क्रिया कलाप विशुद्ध वैज्ञानिक अवधारणा पर आधारित है। इसलिए सनातन अपनाइए स्वस्थ रहिये ।

आपने देखा होगा कि नागा साधु अपने शरीर पर धूनी की राख मलते हैं जो कि उन्हें शुद्ध रखती है साथ ही साथ भीषण ठंडक से भी बचाये रखती है ।

जय सनातन धर्म की...!🚩🚩

कभी चूल्हे की राख से होते थे बर्तन साफ, अब बादाम की कीमत में बिक रही ऑनलाइन
लकड़ी के कोयले या चारकोल की राख के बारे में आपने जरूर सुना होगा. कुछ वर्षों पहले तक चूल्हे में बची राख को बेकार मानकर फेंक दिया जाता था.
ग्रामीण इलाकों में इस राख को बर्तन साफ करने के काम में लाया जाता रहा है. लेकिन अब डिजिटल युग है तो इस राख का दर्जा भी बदल गया है. अब इस राख को आकर्षक पैकिंग में ई-कॉमर्स साइट्स पर ‘डिश वाशिंग वुड एश’ के नाम से बेचा जा रहा है

दरअसल, इस राख की मार्केंटिंग डिशवाशिंग वुड एश के नाम से हो रही है. अब इसकी कीमत भी जान लीजिए. इसकी कीमत 250 ग्राम के लिए 399 रुपए बताई गई है लेकिन डिस्काउंट के बाद इसे 160 रुपए प्रति 250 ग्राम दिया जा रहा है. यानि डिस्काउंट के बाद भी एक किलोग्राम राख की कीमत ग्राहक को 640 रुपए पड़ेगी. 
ई-कॉमर्स वेबसाइट्स पर राख को बर्तन धोने के लिए कारगर बताने के साथ इसे पौधों के लिए बेहतर उर्वरक (फर्टिलाइजर) भी बताया जा रहा है. इस तरह के  उत्पाद बनाने वाली कंपनियां अधिकतर तमिलनाडु से हैं.  

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Old Post from Sanwariya