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शनिवार, 26 जनवरी 2013

किस बात का संविधान ? किस बात का गणतंत्र ?

किस बात का संविधान ? किस बात का गणतंत्र ?

जिस देश में "गीता", "रामायण", "गुरुग्रंथ साहबजी", "महाभारत ", "चाणक्य निति, "अर्थ शास्त्र" जैसे महान ग्रन्थ, साहित्य का जन्म हुआ हो, ऐसे देश में अमेरिका, ब्रिटेन, फ़्रांस, इटली, जर्मनी के सविधान से चुराए अनुच्छेदों से अपना सविंधान लिखा गया हो इससे बड़े शरम की बात और कोई नहीं हो सकती!\

संपूर्ण विश्व गवाह है की सभी भाषा की जननी "संस्कृत" भाषा हमारी है, सबसे पुरानी संस्कृति हमारी है!
तब भी हम अपना सविंधान चोरी करके बनाते है!

250 किलो का सविंधान वो भी अंग्रेजी भाषा में लिखा हुआ जो आम नागरिक की समझ से परे
जिसे समझने के लिए भी काले कोट पहनकर वकालत सिखनी पड़ती है...और बावजूद भी इसके समझ में आ जाए उसमे भी संदेह है!

250 किलो का सविंधान हमने बना तो दिया लेकिन ढाई ग्राम की भी काम की बात उसमे नहीं लिखी हुई है!
250 किलो का सविंधान
स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति का गला घोंटता है
और अश्लीलता को पुरस्कार देता है....

खुद आंबेडकर ने १९५२ में कहा था की मेरा बस चले तो इस संविधान को जला डालूं

अंग्रेजो ने जान बुझ कर ऐसा संविधान थोपा ताकि किसी आम भारतीय को इस संविधान से कोई लाभ नहीं पहुंचे कोई न्याय न मिले आज भी देश की अदालतों में ३.४५ करोड़ से ज्यादा मामले ४०-५० वर्षो से लंबित है......
अब दीजिए ऐसे गणतंत्र-दिवस कि शुभ-कामनाये....

हमारे राष्ट्रगान- जन गन मन की सच्चाई....

हमारे राष्ट्रगान- जन गन मन की सच्चाई....

राजीव जी दीक्षित द्वारा दिया गया व्याख्यान:-

सन 1911 तक भारत की राजधानी बंगाल हुआ करता था। सन 1905 में जब बंगाल विभाजन को लेकर अंग्रेजो के खिलाफ बंग-भंग आन्दोलन के विरोध में बंगाल के लोग उठ खड़े हुए तो अंग्रेजो ने अपने आपको बचाने के लिए ...के कलकत्ता से हटाकर राजधानी को दिल्ली ले गए और 1911 में दिल्ली को राजधानी घोषित कर दिया। पूरे भारत में उस समय लोग विद्रोह से भरे हुए थे तो ...अंग्रेजो ने अपने इंग्लॅण्ड के राजा को भारत आमंत्रित किया ताकि लोग शांत हो जाये। इंग्लैंड का राजा जोर्ज पंचम 1911 में भारत में आया। रविंद्रनाथ टैगोर पर दबाव बनाया गया कि तुम्हे एक गीत जोर्ज पंचम के स्वागत में लिखना ही होगा। उस समय टैगोर का परिवार अंग्रेजों के काफी नजदीक हुआ करता था, उनके परिवार के बहुत से लोग ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए काम किया करते थे, उनके बड़े भाई अवनींद्र नाथ टैगोर बहुत दिनों तक ईस्ट इंडिया कंपनी के कलकत्ता डिविजन के निदेशक (Director) रहे। उनके परिवार का बहुत पैसा ईस्ट इंडिया कंपनी में लगा हुआ था। और खुद रविन्द्र नाथ टैगोर की बहुत सहानुभूति थी अंग्रेजों के लिए।

रविंद्रनाथ टैगोर ने मन से या बेमन से जो गीत लिखा उसके बोल है “जन गण मन अधिनायक जय हे भारत भाग्य विधाता”। इस गीत के सारे के सारे शब्दों में अंग्रेजी राजा जोर्ज पंचम का गुणगान है, जिसका अर्थ समझने पर पता लगेगा कि ये तो हकीक़त में ही अंग्रेजो की खुशामद में लिखा गया था। इस राष्ट्रगान का अर्थ कुछ इस तरह से होता है “भारत के नागरिक, भारत की जनता अपने मन से आपको भारत का भाग्य विधाता समझती है और मानती है। हे अधिनायक (Superhero) तुम्ही भारत के भाग्य विधाता हो। तुम्हारी जय हो ! जय हो ! जय हो ! तुम्हारे भारत आने से सभी प्रान्त पंजाब, सिंध, गुजरात, मराठा मतलब महारास्त्र, द्रविड़ मतलब दक्षिण भारत, उत्कल मतलब उड़ीसा, बंगाल आदि और जितनी भी नदिया जैसे यमुना और गंगा ये सभी हर्षित है, खुश है, प्रसन्न है , तुम्हारा नाम लेकर ही हम जागते है और तुम्हारे नाम का आशीर्वाद चाहते है। तुम्हारी ही हम गाथा गाते है। हे भारत के भाग्य विधाता (सुपर हीरो ) तुम्हारी जय हो जय हो जय हो। ” में ये गीत गाया गया।

जब वो इंग्लैंड चला गया तो उसने उस जन गण मन का अंग्रेजी में अनुवाद करवाया। जब अंग्रेजी अनुवाद उसने सुना तो वह बोला कि इतना सम्मान और इतनी खुशामद तो मेरी आज तक इंग्लॅण्ड में भी किसी ने नहीं की। वह बहुत खुश हुआ। उसने आदेश दिया कि जिसने भी ये गीत उसके (जोर्ज पंचम के) लिए लिखा है उसे इंग्लैंड बुलाया जाये। रविन्द्र नाथ टैगोर इंग्लैंड गए। जोर्ज पंचम उस समय नोबल पुरस्कार समिति का अध्यक्ष भी था। उसने रविन्द्र नाथ टैगोर को नोबल पुरस्कार से सम्मानित करने का फैसला किया। तो रविन्द्र नाथ टैगोर ने इस नोबल पुरस्कार को लेने से मना कर दिया। क्यों कि गाँधी जी ने बहुत बुरी तरह से रविन्द्रनाथ टेगोर को उनके इस गीत के लिए खूब डांटा था। टैगोर ने कहा की आप मुझे नोबल पुरस्कार देना ही चाहते हैं तो मैंने एक गीतांजलि नामक रचना लिखी है उस पर मुझे दे दो लेकिन इस गीत के नाम पर मत दो और यही प्रचारित किया जाये क़ि मुझे जो नोबेल पुरस्कार दिया गया है वो गीतांजलि नामक रचना के ऊपर दिया गया है। जोर्ज पंचम मान गया और रविन्द्र नाथ टैगोर को सन 1913 में गीतांजलि नामक रचना के ऊपर नोबल पुरस्कार दिया गया।

रविन्द्र नाथ टैगोर की ये सहानुभूति ख़त्म हुई 1919 में जब जलिया वाला कांड हुआ और गाँधी जी ने लगभग गाली की भाषा में उनको पत्र लिखा और कहा क़ि अभी भी तुम्हारी आँखों से अंग्रेजियत का पर्दा नहीं उतरेगा तो कब उतरेगा, तुम अंग्रेजों के इतने चाटुकार कैसे हो गए, तुम इनके इतने समर्थक कैसे हो गए ? फिर गाँधी जी स्वयं रविन्द्र नाथ टैगोर से मिलने गए और बहुत जोर से डाटा कि अभी तक तुम अंग्रेजो की अंध भक्ति में डूबे हुए हो ? तब जाकर रविंद्रनाथ टैगोर की नीद खुली। इस काण्ड का टैगोर ने विरोध किया और नोबल पुरस्कार अंग्रेजी हुकूमत को लौटा दिया।

सन 1919 से पहले जितना कुछ भी रविन्द्र नाथ टैगोर ने लिखा वो अंग्रेजी सरकार के पक्ष में था और 1919 के बाद उनके लेख कुछ कुछ अंग्रेजो के खिलाफ होने लगे थे। रविन्द्र नाथ टेगोर के बहनोई, सुरेन्द्र नाथ बनर्जी लन्दन में रहते थे और ICS ऑफिसर थे। अपने बहनोई को उन्होंने एक पत्र लिखा था (ये 1919 के बाद की घटना है) । इसमें उन्होंने लिखा है कि ये गीत ‘जन गण मन’ अंग्रेजो के द्वारा मुझ पर दबाव डलवाकर लिखवाया गया है। इसके शब्दों का अर्थ अच्छा नहीं है। इस गीत को नहीं गाया जाये तो अच्छा है।लेकिन अंत में उन्होंने लिख दिया कि इस चिठ्ठी को किसी को नहीं दिखाए क्योंकि मैं इसे सिर्फ आप तक सीमित रखना चाहता हूँ लेकिन जब कभी मेरी म्रत्यु हो जाये तो सबको बता दे।

7 अगस्त 1941 को रबिन्द्र नाथ टैगोर की मृत्यु के बाद इस पत्र को सुरेन्द्र नाथ बनर्जी ने ये पत्र सार्वजनिक किया, और सारे देश को ये कहा क़ि ये जन गन मन गीत न गाया जाये। 1941 तक कांग्रेस पार्टी थोड़ी उभर चुकी थी। लेकिन वह दो खेमो में बट गई। जिसमे एक खेमे के समर्थक बाल गंगाधर तिलक थे और दुसरे खेमे में मोती लाल नेहरु थे। मतभेद था सरकार बनाने को लेकर। मोती लाल नेहरु चाहते थे कि स्वतंत्र भारत की सरकार अंग्रेजो के साथ कोई संयोजक सरकार (Coalition Government) बने। जबकि गंगाधर तिलक कहते थे कि अंग्रेजो के साथ मिलकर सरकार बनाना तो भारत के लोगों को धोखा देना है। इस मतभेद के कारण लोकमान्य तिलक कांग्रेस से निकल गए और उन्होंने गरम दल बनाया। कोंग्रेस के दो हिस्से हो गए। एक नरम दल और एक गरम दल। गरम दल के नेता थे लोकमान्य तिलक जैसे क्रन्तिकारी। वे हर जगह वन्दे मातरम गाया करते थे। और नरम दल के नेता थे मोती लाल नेहरु (यहाँ मैं स्पष्ट कर दूँ कि गांधीजी उस समय तक कांग्रेस की आजीवन सदस्यता से इस्तीफा दे चुके थे, वो किसी तरफ नहीं थे, लेकिन गाँधी जी दोनों पक्ष के लिए आदरणीय थे क्योंकि गाँधी जी देश के लोगों के आदरणीय थे)। लेकिन नरम दल वाले ज्यादातर अंग्रेजो के साथ रहते थे।

नरम दल वाले अंग्रेजों के समर्थक थे और अंग्रेजों को ये गीत पसंद नहीं था तो अंग्रेजों के कहने पर नरम दल वालों ने उस समय एक हवा उड़ा दी कि मुसलमानों को वन्दे मातरम नहीं गाना चाहिए क्यों कि इसमें बुतपरस्ती (मूर्ति पूजा) है। और आप जानते है कि मुसलमान मूर्ति पूजा के कट्टर विरोधी है। उस समय मुस्लिम लीग भी बन गई थी जिसके प्रमुख मोहम्मद अली जिन्ना थे। उन्होंने भी इसका विरोध करना शुरू कर दिया क्योंकि जिन्ना भी देखने भर को (उस समय तक) भारतीय थे मन,कर्म और वचन से अंग्रेज ही थे उन्होंने भी अंग्रेजों के इशारे पर ये कहना शुरू किया और मुसलमानों को वन्दे मातरम गाने से मना कर दिया। जब भारत सन 1947 में स्वतंत्र हो गया तो जवाहर लाल नेहरु ने इसमें राजनीति कर डाली। संविधान सभा की बहस चली। संविधान सभा के 319 में से 318 सांसद ऐसे थे जिन्होंने बंकिम बाबु द्वारा लिखित वन्देमातरम को राष्ट्र गान स्वीकार करने पर सहमति जताई। बस एक सांसद ने इस प्रस्ताव को नहीं माना। और उस एक सांसद का नाम था पंडित जवाहर लाल नेहरु। उनका तर्क था कि वन्दे मातरम गीत से मुसलमानों के दिल को चोट पहुचती है इसलिए इसे नहीं गाना चाहिए (दरअसल इस गीत से मुसलमानों को नहीं अंग्रेजों के दिल को चोट पहुंचती थी)। अब इस झगडे का फैसला कौन करे, तो वे पहुचे गाँधी जी के पास। गाँधी जी ने कहा कि जन गन मन के पक्ष में तो मैं भी नहीं हूँ और तुम (नेहरु ) वन्देमातरम के पक्ष में नहीं हो तो कोई तीसरा गीत तैयार किया जाये। तो महात्मा गाँधी ने तीसरा विकल्प झंडा गान के रूप में दिया “विजयी विश्व तिरंगा प्यारा झंडा ऊँचा रहे हमारा”। लेकिन नेहरु जी उस पर भी तैयार नहीं हुए। नेहरु जी का तर्क था कि झंडा गान ओर्केस्ट्रा पर नहीं बज सकता और जन गन मन ओर्केस्ट्रा पर बज सकता है।

उस समय बात नहीं बनी तो नेहरु जी ने इस मुद्दे को गाँधी जी की मृत्यु तक टाले रखा और उनकी मृत्यु के बाद नेहरु जी ने जन गण मन को राष्ट्र गान घोषित कर दिया और जबरदस्ती भारतीयों पर इसे थोप दिया गया जबकि इसके जो बोल है उनका अर्थ कुछ और ही कहानी प्रस्तुत करते है, और दूसरा पक्ष नाराज न हो इसलिए वन्दे मातरम को राष्ट्रगीत बना दिया गया लेकिन कभी गया नहीं गया। नेहरु जी कोई ऐसा काम नहीं करना चाहते थे जिससे कि अंग्रेजों के दिल को चोट पहुंचे, मुसलमानों के वो इतने हिमायती कैसे हो सकते थे जिस आदमी ने पाकिस्तान बनवा दिया जब कि इस देश के मुसलमान पाकिस्तान नहीं चाहते थे, जन गण मन को इस लिए तरजीह दी गयी क्योंकि वो अंग्रेजों की भक्ति में गाया गया गीत था और वन्देमातरम इसलिए पीछे रह गया क्योंकि इस गीत से अंगेजों को दर्द होता था। बीबीसी ने एक सर्वे किया था। उसने पूरे संसार में जितने भी भारत के लोग रहते थे, उनसे पुछा कि आपको दोनों में से कौन सा गीत ज्यादा पसंद है तो 99 % लोगों ने कहा वन्देमातरम। बीबीसी के इस सर्वे से एक बात और साफ़ हुई कि दुनिया के सबसे लोकप्रिय गीतों में दुसरे नंबर पर वन्देमातरम है। कई देश है जिनके लोगों को इसके बोल समझ में नहीं आते है लेकिन वो कहते है कि इसमें जो लय है उससे एक जज्बा पैदा होता है। तो ये इतिहास है वन्दे मातरम का और जन गण मन का। अब ये आप को तय करना है कि आपको क्या गाना है ? इतने लम्बे पत्र को आपने धैर्यपूर्वक पढ़ा इसके लिए आपका धन्यवाद्। और अच्छा लगा हो तो इसे फॉरवर्ड कीजिये, आप अगर और भारतीय भाषाएँ जानते हों तो इसे उस भाषा में अनुवादित कीजिये.

Source:-
Youtube Click here
http://www.youtube.com/watch?v=WPu4OM1kEcc
Wikipedia Click here
http://en.wikipedia.org/wiki/Jana_Gana_Mana_%28the_complete_song%29

जैसा चित्र पट आज भारत मे दिखाया जा रहा है उसकी उत्पत्ति और उसके दुष्परिणाम पर एक नजर डालिये -


जिस भारत मे कभी श्रवण कुमार ,श्री राम जैसे युवाओ ने जन्म लिया अचानक उस भारत को क्या हो गया आतंकवादी हत्यारे और राक्षस इस देश मे पैदा होने लग गए ...........................
तो उसका कारण है युवाओ को दुष्प्रभवित करने वाली फिंल्मे जैसे की राजा हरिशचन्द्र का नाटक
देखकर कोई महात्मा बन जाता है वैसे ही कोई सनी लीओन को देखकर समूहिक बलात्कारी बन जाता है

कोई ज्ञानी जामवंत बनके युवा की शक्ति को जागृत कर उसे महान बलवान वीर हनुमान बना देता है तो कोई महेश भट्ट जैसा "टूच्छा व्यक्ति "अच्छे भले करोड़ो युवाओ को चोर और उचक्का और यौन हिंसक बना देता है ..............................

भारत मे देश भक्ति की फिल्मे बनाई जाये तो युवा अपने देश की रक्षा के लिए आगे आएगे  पर अगर भारत मे हर फिल्म ही यौन और कामुकता को बड़ाएगी तो फिर तो देश का सवा सत्यानाश हो जाएगा हमारा किसी भी फिल्म डाइरेक्टर या निर्माता से कोई निजी बैर नहीं है लेकिन वो भारत के युवाओ को पश्चिमी अज्ञान का आदि बनाएगे तो हम उनके सबसे बड़े विरोधी है और रहेगे ................................................................
जैसा चित्र पट आज भारत मे दिखाया जा रहा है उसकी उत्पत्ति और उसके दुष्परिणाम पर एक नजर डालिये ------------------------------नेशनल क्राइम विक्टिमाइजेशन सर्वे के अनुसार -------अमेरिका मे सन 2002 मे कुल 16,86,600,बड़े गुनाह हुए ।
जिसमे 10 लाख 36 हजार 400 गुनाह दर्ज किए गए ।

28हजार 797 खून ,

2 लाख 1 हजार 581 बलात्कार

6लाख 33 हजार 543 लुटपाट ,

12 लाख 38 हजार 288 गंभीर मारकाट ,

44 लाख 63 हजार 593 साधारण मारकाट ,
इस प्रकार कुल 65 ,65 ,805 हिंसक अपराध हुए ।

वर्ष 2002 मे अमेरिका मे ------- 12 से 17 वर्ष की उम्र के लड़को ने 2 लाख 78 हजार अपराध किए

18 वर्ष से बड़ी उम्र के लड़को ने 1 लाख 81 अपराध किए ।

अज्ञात उम्र के लोगो ने 1 लाख 93 अपराध किए ।

सन 2002 मे अमेरिका मे राष्ट्रिय व्यय 1548 अरब डॉलर अर्थात 69 हजार 660 अरब रुपये के बराबर ।
सन 2001 मेकिए गए सर्वे के अनुसार अमेरिका मे 51 %शादिया तलाक मे बदल जाती है ।


16सितंबर , 1977 के ‘न्यूयार्क टाइम्स मे छपा था था:
“अमेरिकन पेनल कहती है की अमेरिका में दो करोड़ से अधिक लोगों को मानिसक चिकित्सा की आवश्यकता है |

”-आँकड़े बताते है की आज पाश्चात्य देशों में यौन सदाचार की कितनी दुर्गति हुई है ! इस दुर्गति के परिणाम स्वरूप वहाँ के निवासियों के व्यक्तिगत जीवन में रोग इतने बढ़ गये है कि भारत से 10 गुनी ज्यादा दवाइयाँ अमेरीका में खर्च होती है जबिक भारत की आबादी अमेरिका से तीन गुनी ज्यादा है | मानिसक रोग इतने बढ़े है कि हर दस अमेरिकन में से एक को मानिसक रोग होता है | दुवार्सनाएँ इतनी बढ़ी है कि हर छः सेकण्ड में एक बलात्कार होता है और हर वर्ष लगभग 20 लाख कन्याएँ विवाह के पूर्व ही गभर्वती हो जाती है | मुक्त सहचर्य (free sex) का हिमायती होने के कारण शादी के पहले वहाँ का हर व्यक्ति शारीरिक संबंध बनाने लगता है | इसी वजह से लगभग 65% शादिया तलाक में बदल जाती है |मनुष्य के लिए प्रकृति द्वारा निर्धारित किए गये संयम का उपहास करने के कारण प्रकृति ने उन लोगों को जातीय रोगों का शिकार बना रखा है | उनमें मुख्यतः एड्स (AIDS) की बीमारी दिन दूनी रात चौगुनी फैलती जा रही है | वहाँ के पारिवारिक व सामाजिक जीवन में बोध, कलह, असंतोष, संताप, उच्चश्रखला उड़ंदता संताप ,शत्रुता का महा भयानक वातावरण छा गया है |विश्व कि  लगभग 4% जनसंख्या अमेरिका में है | उसके उपभोग के लिए विश्व की लगभग 40% साधन-साममी (जैसे कि कार, टी वी, वातानुकूलित मकान आदि ) मौजूद है फिर भी वहाँ अपराधवृत्ति इतनी बढ़ी है की हर 10 सेकण्ड में एक सेंधमारी होती है, हर लाख व्यक्तियों में से 425 व्यक्ति कारागार में सजा भोग रहे है

अब आप खुद सोचिए कि हम किस तरह का डेवलोपमेंट चाहते है सवा सत्यानाशी या भारतीय पद्धति से किया गया स्वदेशी और सर्वोदयी विकास जिसमे न प्रकृति का हास हो न प्रकृति हमसे रुष्ट हो
तो आइये "श्री राजीव दीक्षित जैविक संस्थान" के साथ मिलकर स्वर्णिम भारत की ओर

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