किस बात का संविधान ? किस बात का गणतंत्र ?
जिस देश में "गीता", "रामायण", "गुरुग्रंथ साहबजी", "महाभारत ", "चाणक्य निति, "अर्थ शास्त्र" जैसे महान ग्रन्थ, साहित्य का जन्म हुआ हो, ऐसे देश में अमेरिका, ब्रिटेन, फ़्रांस, इटली, जर्मनी के सविधान से चुराए अनुच्छेदों से अपना सविंधान लिखा गया हो इससे बड़े शरम की बात और कोई नहीं हो सकती!\
संपूर्ण विश्व गवाह है की सभी भाषा की जननी "संस्कृत" भाषा हमारी है, सबसे पुरानी संस्कृति हमारी है!
तब भी हम अपना सविंधान चोरी करके बनाते है!
250 किलो का सविंधान वो भी अंग्रेजी भाषा में लिखा हुआ जो आम नागरिक की समझ से परे
जिसे समझने के लिए भी काले कोट पहनकर वकालत सिखनी पड़ती है...और बावजूद भी इसके समझ में आ जाए उसमे भी संदेह है!
250 किलो का सविंधान हमने बना तो दिया लेकिन ढाई ग्राम की भी काम की बात उसमे नहीं लिखी हुई है!
250 किलो का सविंधान
स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति का गला घोंटता है
और अश्लीलता को पुरस्कार देता है....
खुद आंबेडकर ने १९५२ में कहा था की मेरा बस चले तो इस संविधान को जला डालूं
अंग्रेजो ने जान बुझ कर ऐसा संविधान थोपा ताकि किसी आम भारतीय को इस संविधान से कोई लाभ नहीं पहुंचे कोई न्याय न मिले आज भी देश की अदालतों में ३.४५ करोड़ से ज्यादा मामले ४०-५० वर्षो से लंबित है......
अब दीजिए ऐसे गणतंत्र-दिवस कि शुभ-कामनाये....
जिस देश में "गीता", "रामायण", "गुरुग्रंथ साहबजी", "महाभारत ", "चाणक्य निति, "अर्थ शास्त्र" जैसे महान ग्रन्थ, साहित्य का जन्म हुआ हो, ऐसे देश में अमेरिका, ब्रिटेन, फ़्रांस, इटली, जर्मनी के सविधान से चुराए अनुच्छेदों से अपना सविंधान लिखा गया हो इससे बड़े शरम की बात और कोई नहीं हो सकती!\
संपूर्ण विश्व गवाह है की सभी भाषा की जननी "संस्कृत" भाषा हमारी है, सबसे पुरानी संस्कृति हमारी है!
तब भी हम अपना सविंधान चोरी करके बनाते है!
250 किलो का सविंधान वो भी अंग्रेजी भाषा में लिखा हुआ जो आम नागरिक की समझ से परे
जिसे समझने के लिए भी काले कोट पहनकर वकालत सिखनी पड़ती है...और बावजूद भी इसके समझ में आ जाए उसमे भी संदेह है!
250 किलो का सविंधान हमने बना तो दिया लेकिन ढाई ग्राम की भी काम की बात उसमे नहीं लिखी हुई है!
250 किलो का सविंधान
स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति का गला घोंटता है
और अश्लीलता को पुरस्कार देता है....
खुद आंबेडकर ने १९५२ में कहा था की मेरा बस चले तो इस संविधान को जला डालूं
अंग्रेजो ने जान बुझ कर ऐसा संविधान थोपा ताकि किसी आम भारतीय को इस संविधान से कोई लाभ नहीं पहुंचे कोई न्याय न मिले आज भी देश की अदालतों में ३.४५ करोड़ से ज्यादा मामले ४०-५० वर्षो से लंबित है......
अब दीजिए ऐसे गणतंत्र-दिवस कि शुभ-कामनाये....
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