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मंगलवार, 19 अक्तूबर 2021

आजकल के बच्चे ये कभी नहीं जान पाएंगे कि पुराने जमाने में हमें निम्नलिखित कारणों से कूटा जाता था

*आजकल के बच्चे ये कभी नहीं जान पाएंगे कि  पुराने जमाने में हमें निम्नलिखित कारणों से कूटा जाता था:-*

1. पिटने के बाद रोने पर।
2. पिटने के बाद नहीं रोने पर।
3. बिना पिटे रोने पर।
4. दोस्तों के साथ खेलने-कूदने पर।
5. दोस्तों के साथ नहीं खेलने-कूदने पर।
6. जहां बड़े बैठे हों वहां टहलने पर।
7. बड़ों को जवाब देने पर।
8. बड़ों को जवाब नहीं देने पर।
9. बहूत समय तक बिना पिटे रहने पर।
10. उपदेश पर गाना गुनगुनाने पर।
11. अतिथियों को प्रणाम नहीं करने पर।
12. अतिथियों के लिए बनाए नाश्ते पर हाथ साफ करने पर।
13. अतिथियों के जाते समय साथ जाने की जिद पर।
14. खाने से मना करने पर।
15. सूर्यास्त के बाद घर आने पर।
16. पड़ोसियों के यहां खाना खा लेने पर।
17.  जिद्दी होने पर।
18. अति उत्साही होने पर।
19. हम उम्र बच्चों के साथ लड़ाई में हार जाने पर।
20. हम उम्र बच्चों के साथ लड़ाई में जीत जानेपर।
21. धीरे-धीरे खाने पर।
22. जल्दी-जल्दी खाने पर।
23. बड़े जाग गए हों तो सोते रहने पर।
24. अतिथियों को खाते समय निहारने पर।
25. चलते समय रपट कर गिर जाने पर।
26. बड़ों के साथ नजरें मिलाने पर।
27. बड़ों के साथ नजरें नहीं मिलाने पर।
28. बड़ों के साथ बात करते समय पलकें झपकाने पर।
29. बड़ों के साथ बात करते समय पलकें नहीं झपकाने पर।
30. रोते हुए बच्चे को देखकर हंसने पर।

*#  कूटे ही नही "भय़ंकर कूटे" जाते थे. ....   जब रोना निकल जाता था ..  तब ... चिल्ला कर कहा जाता था ....
अबे  चुप होता है ..
कि    ...उठाएं जूता ...
😂😂
लेकिन
वो प्यार का तरीका अदभुत था, सब कुछ हमारी भलाई के लिये ही  था ...
अपने माता पिता व कूटने डाँटने वाले सभी बड़े-बुजुर्गों को सादर प्रणाम.. 🙏🙏🙏🌹💕🌹🙏🙏

शरद पूर्णिमा विशेष 19,20 अक्टूबर, 2021- कुछ विशेष करने योग्य बातें

 🌝 शरद पूर्णिमा 🌝
19,20 अक्टूबर, 2021-

कुछ विशेष करने योग्य बातें

आँखों के लिए टॉनिक
त्रिफला, शहद और देसी गाय के घी का 02:02:01 के अनुपात में मिश्रण तैयार करके उसे शरद पूनम की पूरी रात (19,20 अक्तूबर 2021) को चांदनी में रखो । फिर उस मिश्रण को काँच की बाटल में रख लें । फिर अगले 40 दिनों तक इस मिश्रण को 11 ग्राम सुबह - शाम लें । आंखें टनाटन, न मोतिया न मोतियाबिंद न लेंस ।

बल, सौंदर्य व आयुवर्धक प्रयोग
शरद पूर्णिमा की चाँदनी में रखे हुए आँवलों के रस 4 चम्मच, शुद्ध शहद 2 चम्मच् व गाय का घी 1 चम्मच मिलाकर नियमित सेवन करें। इससे बल, वर्ण, ओज, कांति व दीर्घायुष्य की प्राप्ति होती है।

नेत्र सुरक्षा के लिए शरद पूर्णिमा का प्रयोग

वर्षभर आंखें स्वस्थ रहे, इसके लिए शरद पूनम की रात को चन्द्रमा की चांदनी में एक सुई में धागा पिरोने का प्रयास करें । कोई अन्य प्रकाश नहीं होना चाहिए । दशहरा से शरद पूर्णिमा तक 15-20 मिनट चन्द्रमा की ओर देखते हुए त्राटक करने से भी आखों की रौशनी बढती है l

शरद पूर्णिमा पर अध्यात्मिक उन्नति
शरद पूनम रात आध्यात्मिक उत्थान के लिए बहुत फायदेमंद है । इसलिए सबको इस रात को जागरण करना चाहिए अर्थात जहाँ तक संभव हो सोना नही चाहिए और इस पवित्र रात्रि में जप, ध्यान, कीर्तन करना चाहिए ।

शरद पूर्णिमा विशेष
चावल, दूध और मिश्री की खीर बनायें । खीर बनाते समय उसमें कुछ समय के लिए थोड़ा चाँदी मिला दें । खीर को कम से कम 2 घंटे के लिए चन्द्रमा के प्रकाश में रख दें । उस दिन के लिए कोई अन्य भोजन नहीं पकाएं, केवल खीर खाएं ।

हमें देर रात को भारी आहार नहीं लेना चाहिए इसलिए तदनुसार खीर खाएं । शरद पूनम की रात में रखी गयी खीर को भगवान को भोग लगाने के बाद अगले दिन प्रसाद रूप में नाश्ते में भी ले सकते है ।


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अमृत बरसाने वाला त्यौहार : शरद पूर्णिमा 19 अक्टूबर 2021 को शाम 07 बजे से प्रारंभ

अमृत बरसाने वाला त्यौहार : शरद पूर्णिमा.......

दूधिया रौशनी का अमृत बरसाने वाला त्यौहार शरद पूर्णिमा हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है हिन्दू धर्मावलम्बी इस पर्व को कोजागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा के रूप में भी मनाते हैं ज्योतिषों के मतानुसार पूरे साल भर में केवल इसी दिन भगवान 'चंद्रदेव' अपनी सोलह कलाओं के साथ परिपूर्ण होते हैं | हिन्दू धर्मशास्त्र में वर्णित कथाओं के अनुसार देवी देवताओं के अत्यंत प्रिय पुष्प 'ब्रह्मकमल' केवल इसी रात में खिलता है इस रात इस पुष्प से मां लक्ष्मी की पूजा करने से भक्त को माता की विशेष कृपा प्राप्त होती है

कहते हैं इसी मनमोहक रात्रि पर भगवान श्री कृष्ण ने गोपियों के संग महारास रचाया था



शरद पूर्णिमा के सम्बन्ध में एक दंतकथा अत्यंत प्रचलित है कथानुसार एक साहूकार की दो बेटियां थी और दोनों पूर्णिमा का व्रत रखती थी, लेकिन बड़ी बेटी ने विधिपूर्वक व्रत को पूर्ण किया और छोटी ने व्रत को अधूरा ही छोड़ दिया फलस्वरूप छोटी लड़की के बच्चे जन्म लेते ही मर जाते थे एक बार बड़ी लड़की के पुण्य स्पर्श से उसका बालक जीवित हो गया और उसी दिन से यह व्रत विधिपूर्वक पूर्ण रूप से मनाया जाने लगा इस दिन व्रती को जितेन्द्रय भाव से रहना चाहिए और हाथ में गेंहू लेकर इस पुण्यशाली व्रत की कथा सुननी चाहिए इस दिन शिव-पार्वती, कार्तिक और महालक्ष्मी की पूजा की जाती है, मान्यता है कि इस दिन विधिपूर्वक व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है |

शरद पूर्णिमा का शास्त्रों में महत्व :

16 कलाओं के चांद वाली पूनम रात.......

शरद पूर्णिमा की रात्रि का विशेष महत्त्व है । इस रात को चन्द्रमा की किरणों से अमृत-तत्त्व बरसता है । चन्द्रमा अपनी पूर्ण कलाओं के साथ पृथ्वी पर शीतलता, पोषकशक्ति एवं शांतिरूपी अमृतवर्षा करता है । आज की रात्रि चन्द्रमा पृथ्वी के बहुत नजदीक होता है और उसकी उज्जवल किरणें पेय एवं खाद्य पदार्थों में पड़ती हैं तो उसे खाने वाला व्यक्ति वर्ष भर निरोग रहता है । उसका शरीर पुष्ट होता है । भगवान ने भी कहा है -

पुष्णमि चौषधीः सर्वाः सोमो भूत्वा रसात्मकः।।

'रसस्वरूप अर्थात् अमृतमय चन्द्रमा होकर सम्पूर्ण औषधियों को अर्थात् वनस्पतियों को पुष्ट करता हूँ।' (गीताः15.13)

चन्द्रमा की किरणों से पुष्ट यह खीर पित्तशामक, शीतल, सात्त्विक होने के साथ वर्ष भर प्रसन्नता और आरोग्यता में सहायक सिद्ध होती है । इससे चित्त को शांति मिलती है और साथ ही पित्तजनित समस्त रोगों का प्रकोप भी शांत होता है ।

आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाये तो चन्द्र का मतलब है, शीतलता । बाहर कितने भी परेशान करने वाले प्रसंग आयें लेकिन आपके दिल में कोई फरियाद न उठे । आप भीतर से ऐसे पुष्ट हों कि बाहर की छोटी मोटी मुसीबतें आपको परेशान न कर सकें ।


पौराणिक मान्यताएं एवं शरद ऋतु, पूर्णाकार चंद्रमा, संसार भर में उत्सव का माहौल । इन सबके संयुक्त रूप का यदि कोई नाम या पर्व है तो वह है 'शरद-पूनम' । वह दिन जब इंतजार होता है रात्रि के उस पहर का जिसमें 16 कलाओं से युक्त चंद्रमा अमृत की वर्षा धरती पर करता है । वर्षा ऋतु की जरावस्था और शरद ऋतु के बाल रूप का यह सुंदर संजोग हर किसी का मन मोह लेता है । प्राचीन काल से शरद पूर्णिमा को बेहद महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है । शरद पूर्णिमा से हेमंत ऋतु की शुरुआत होती है । इसके महत्व और उल्लास के तौर-तरीकों का महत्व शास्त्रों में भी वर्णित है । इस रात्रि को चंद्रमा अपनी समस्त कलाओं के साथ होता है और धरती पर अमृत वर्षा करता है । रात्रि 12 बजे होने वाली इस अमृत वर्षा का लाभ मानव को मिले इसी उद्देश्य से चंद्रोदय के वक्त गगन तले खीर या दूध रखा जाता है, जिसका सेवन रात्रि 12 बजे बाद किया जाता है । मान्यता तो यह भी है कि इस तरह रोगी रोगमुक्त भी होता है । इसके अलावा खीर देवताओं का प्रिय भोजन भी है ।

शरद पूर्णिमा को कोजागौरी लोक्खी (देवी लक्ष्मी) की पूजा की जाती है । चाहे पूर्णिमा किसी भी वक्त प्रारंभ हो पर पूजा दोपहर 12 बजे बाद ही शुभ मुहूर्त में होती है । पूजा में लक्ष्मीजी की प्रतिमा के अलावा कलश, धूप, दुर्वा, कमल का पुष्प, हर्तकी, कौड़ी, आरी (छोटा सूपड़ा), धान, सिंदूर व नारियल के लड्डू प्रमुख होते हैं । जहां तक बात पूजन विधि की है तो इसमें रंगोली और उल्लू ध्वनि का विशेष स्थान है । इस प्रकार प्रतिवर्ष किया जाने वाला यह कोजागर व्रत लक्ष्मीजी को संतुष्ट करने वाला है । इससे प्रसन्न हुईं माँ लक्ष्मी इस लोक में तो समृद्धि देती ही हैं और शरीर का अंत होने पर परलोक में भी सद्गति प्रदान करती हैं ।

इस रात्रि में ध्यान-भजन, सत्संग, कीर्तन, चन्द्रदर्शन आदि शारीरिक व मानसिक आरोग्यता के लिए अत्यन्त लाभदायक है।
शरद पूर्णिमा कब मनाई जाती है?


शरद पूर्णिमा की तिथ‍ि और शुभ मुहूर्त

आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा कहते हैं. इस बार पंचांग भेद के कारण शरद पूर्णिमा दोनों दिन 19 और 20 अक्टूबर को मनाई जाएगी.
अश्विन मास की पूर्णिमा तिथि 19 अक्टूबर 2021 को शाम 07 बजे से प्रारंभ होगी जो कि 20 अक्टूबर 2021 को रात 08 बजकर 20 मिनट पर समाप्त होगी.

शरद पूर्णिमा का महत्‍व

शरद पूर्णिमा का हिन्‍दू धर्म में विशेष महत्‍व है. मान्‍यता है कि शरद पूर्णिमा का व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. शरद पूर्णिमा को 'कोजागर पूर्णिमा' (Kojagara Purnima) और 'रास पूर्णिमा' (Raas Purnima) के नाम से भी जाना जाता है. इस व्रत को 'कौमुदी व्रत' (Kamudi Vrat) भी कहा जाता है. मान्‍यता है कि शरद पूर्णिमा का व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. कहा जाता है कि जो विवाहित स्त्रियां इसका व्रत करती हैं उन्‍हें संतान की प्राप्‍ति होती है. जो माताएं इस व्रत को रखती हैं उनके बच्‍चे दीर्घायु होते हैं. वहीं, अगर कुंवारी कन्‍याएं यह व्रत रखें तो उन्‍हें मनवांछित पति मिलता है. शरद पूर्णिमा का चमकीला चांद और साफ आसमान मॉनसून के पूरी तरह चले जाने का प्रतीक है. मान्‍यता है कि इस दिन आसमान से अमृत बरसता है. माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा के प्रकाश में औषधिय गुण मौजूद रहते हैं जिनमें कई असाध्‍य रोगों को दूर करने की शक्ति होती है.

कहते हैं कि चन्द्रमा की 16 कलाएं हैं तथा इस पूर्णिमा की रात को चन्द्रमा अपनी 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है तथा उसकी चांदनी से अमृत बरसता है। उस अमृत का लाभ पाने के लिए चांद की चांदनी में खीर तैयार की जाती है तथा उसमें चन्द्रमा की चांदनी का अमृत पडऩे से वह प्रसाद बन जाता है। वैसे तो हर मास पूर्णिमा आती है तथा मंदिरों में इस दिन रात्रि संकीर्तन होता है परंतु शरद पूर्णिमा को विशेष उत्सव होते हैं तथा अमृतमय खीर का प्रसाद अगले दिन प्रात:भक्तों में बांटा जाता है। माना जाता है कि जब चन्द्रमा अपनी आलौकिक किरणें बिखेरता है तो इस शुभ मुहूर्त में लक्ष्मी जी का आगमन होता है। इस रोज लक्ष्मी जी के पूजन का विशेष महत्व है। मान्यता है की इस रात जो भक्त प्रेम और श्रद्धा से मां को अपने घर आने का न्यौता देता है, वह उसके आशियाने में जरूर आती हैं। लक्ष्मी जी के स्वागत के लिए सुन्दर रंगोली सजाने का भी विधान है।

शरद पूर्णिमा से जुड़ी मान्‍यताएं
- शरद पूर्णिम को 'कोजागर पूर्णिमा' कहा जाता है. मान्‍यता है कि इस दिन धन की देवी लक्ष्‍मी रात के समय आकाश में विचरण करते हुए कहती हैं, 'को जाग्रति'. संस्‍कृत में को जाग्रति का मतलब है कि 'कौन जगा हुआ है?' कहा जाता है कि जो भी व्‍यक्ति शरद पूर्णिमा के दिन रात में जगा होता है मां लक्ष्‍मी उन्‍हें उपहार देती हैं.
- श्रीमद्भगवद्गीता के मुताबिक शरद पूर्णिमा के दिन भगवान कृष्‍ण ने ऐसी बांसुरी बजाई कि उसकी जादुई ध्‍वनि से सम्‍मोहित होकर वृंदावन की गोपियां उनकी ओर खिंची चली आईं. ऐसा माना जाता है कि कृष्‍ण ने उस रात हर गोपी के लिए एक कृष्‍ण बनाया. पूरी रात कृष्‍ण गोपियों के साथ नाचते रहे, जिसे 'महारास' कहा जाता है. मान्‍यता है कि कृष्‍ण ने अपनी शक्ति के बल पर उस रात को भगवान ब्रह्म की एक रात जितना लंबा कर दिया. ब्रह्मा की एक रात का मतलब मनुष्‍य की करोड़ों रातों के बराबर होता है.
- माना जाता है कि शरद पूर्णिमा के दिन ही मां लक्ष्‍मी का जन्‍म हुआ था. इस वजह से देश के कई हिस्‍सों में इस दिन मां लक्ष्‍मी की पूजा की जाती है, जिसे 'कोजागरी लक्ष्‍मी पूजा' के नाम से जाना जाता है.
- ओड‍िशा में शरद पूर्णिमा को 'कुमार पूर्णिमा' कहते हैं. इस दिन कुंवारी लड़कियां सुयोग्‍य वर के लिए भगवान कार्तिकेय की पूजा करती हैं. लड़कियां सुबह उठकर स्‍नान करने के बाद सूर्य को भोग लगाती हैं और दिन भर व्रत रखती हैं. शाम के समय चंद्रमा की पूजा करने के बाद अपना व्रत खोलती हैं.

शरद पूर्णिमा की पूजा विधि


आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा शरद पूर्णिमा के नाम से प्रसिद्घ है। इस पूर्णिमा से सर्दी आरम्भ हो जाती है, इसी कारण इसका नाम शरद पूर्णिमा पड़ा। वैसे तो इस पूर्णिमा को रास पूर्णिमा, कौमुदी पूर्णिमा तथा कोजागर पूर्णिमा भी कहा जाता है। शास्त्रानुसार भगवान श्री कृष्ण ने इसी पूर्णिमा की रात को गोपियों के साथ महारास रचाई थी इसलिए यह पूर्णिमा रास पूर्णिमा के रुप में भी जानी जाती है।
इस दिन महिलाएं अपने घर की सुख-समृद्धि के लिए व्रत करती हैं। वह प्रात: नहा धोकर धूप, दीप, नैवेद्य, फल और फूलों से भगवान विष्णु और श्री सत्यनारायण भगवान का पूजन करके व्रत रखती हैं। जल के पात्र को भरकर तथा हाथ में 13 दाने गेहूं के लेकर मन में शुद्घ भावना से संकल्प करके पानी में डालती हैं रात को चांद निकलने पर उसी जल से अर्घ्य देकर व्रत पूरा करती हैं। पूजा में कमल के फूल शुभ हैं तथा नारियल के लड्डूओं का भोग लगाया जाता है। मान्यता है कि रात को राजा इन्द्र अपने एरावत हाथी पर सवार होकर निकलते हैं इसलिए रात को मंदिर में अधिक से अधिक दीपक जलाने चाहिए तथा श्रीमहालक्ष्मी जी का पूजन, जागरण तथा लक्ष्मीं स्रोत का पाठ करना चाहिए।





- शरद पूर्णिमा के दिन सुबह उठकर स्‍नान करने के बाद व्रत का संकल्‍प लें.
- घर के मंदिर में घी का दीपक जलाएं
- इसके बाद ईष्‍ट देवता की पूजा करें.
- फिर भगवान इंद्र और माता लक्ष्‍मी की पूजा की जाती है.
- अब धूप-बत्ती से आरती उतारें.
- संध्‍या के समय लक्ष्‍मी जी की पूजा करें और आरती उतारें.
- अब चंद्रमा को अर्घ्‍य देकर प्रसाद चढ़ाएं और आारती करें.
- अब उपवास खोल लें.
- रात 12 बजे के बाद अपने परिजनों में खीर का प्रसाद बांटें.

शरद पूर्णिमा के दिन खीर कैसे बनाएं?

 शरद पूर्णिमा पर बनाई जाने वाली खीर मात्र एक व्यंजन नहीं होती है। ग्रन्थों के अनुसार ये एक दिव्य औषधि होती है। इस खीर को गाय के दूध और गंगाजल के साथ ही अन्य पूर्ण सात्विक चीजों के साथ बनाना चाहिए। अगर संभव हो तो ये खीर चांदी के बर्तन में बनाएं। इसे गाय के दूध में चावल डालकर ही बनाएं। ग्रन्थों में चावल को हविष्य अन्न यानी देवताओं का भोजन बताया गया है।
          महालक्ष्मी भी चावल से प्रसन्न होती हैं। इसके साथ ही केसर, गाय का घी और अन्य तरह के सूखे मेवों का उपयोग भी इस खीर में करना चाहिए। संभव हो तो इसे चन्द्रमा की रोशनी में ही बनाना चाहिए।

शरद पूर्णिमा के दिन खीर का विशेष महत्‍व है. मान्‍यता है कि इस दिन चंद्रमा अपनी 16 कलाओं ये युक्‍त होकर रात 12 बजे धरती पर अमृत की वर्षा करता है. शरद पूर्णिमा के दिन श्रद्धा भाव से खीर बनाकर चांद की रोशनी में रखी जाती है और फिर उसका प्रसाद वितरण किया जाता है. इस दिन चंद्रोदय के समय आकाश के नीचे खीर बनाकर रखी जाती है. इस खीर को 12 बजे के बाद खाया जाता है. आप शरद पूर्णिमा की खीर इस तरह बना सकते हैं:
- एक मोटे तले वाले बर्तन में दूध गर्म करें. जब दूध घटकर तीन चौथाई रह जाए तब उसमें थोड़े से चावल डालें.
- अब करछी से दूध को हिलाते रहें ताकि चावल नीचे न लग पाएं.
- जब चावल अच्‍छी तरह पक जाएं तब स्‍वादानुसार चीनी डालें.
- करछी से खीर हिलाने के बाद अब इसमें कुटी हुई हरी इलायची या इलायची पाउडर डालें.
- अब काजू, बादाम, किशमिश, चिरौंजी और पिस्‍ते कूटकर डालें. साथ ही केसर भी डालें.
- खीर को अच्‍छी तरह मिलाएं. अगर खीर गाढ़ी हो गई हो तो गैस बंद कर दें.
- खीर को बारीक कटे काजू-बादाम से सजाकर परोसें.

कैसे हुई चांद की उत्पत्ति?

पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु जी के नाभि कमल से ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई तथा ब्रह्मा जी के पुत्र अत्रि मुनि के नेत्रों से चन्द्रमा की उत्पत्ति हुई थी तथा व्रह्मा जी ने चन्द्रमा को संसार में उपलब्ध समस्त औषधियों और नक्षत्रों का स्वामित्व प्रदान किया। प्रभु नाम से जैसे जीव के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं उसी तरह चन्द्रमा की शीतल चांदनी संसार की समस्त वनस्पतियों में जीवन प्रदायिनी औषधि का निर्माण करती है। शरद पूर्णिमा की किरणों से अनेक रोगों की विशेष औषधियां तैयार की जाती हैं। आयुर्वेद के अनुसार जिस खीर में चांद की छिटकती चांदनी की किरणें पड़ जाती हैं वह अमृत से कम नहीं होती, उसे खाने से अनेक मानसिक एवं असाध्य रोगों का निवारण हो जाता है। इसी रात्रि को अनेक आयुर्वैदिक औषधियां भी तैयार की जाती है।




शरद पूर्णिमा व्रत कथा
पौराणिक मान्‍यता के अनुसार एक साहुकार की दो बेटियां थीं. वैसे तो दोनों बेटियां पूर्णिमा का व्रत रखती थीं, लेकिन छोटी बेटी व्रत अधूरा करती थी. इसका परिणाम यह हुआ कि छोटी पुत्री की संतान पैदा होते ही मर जाती थी. उसने पंडितों से इसका कारण पूछा तो उन्‍होंने बताया, ''तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती थीं, जिसके कारण तुम्‍हारी संतानें पैदा होते ही मर जाती हैं. पूर्णिमा का व्रत विधिपूर्वक करने से तुम्‍हारी संतानें जीवित रह सकती हैं.''

उसने पंडितों की सलाह पर पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक किया. बाद में उसे एक लड़का पैदा हुआ, जो कुछ दिनों बाद ही मर गया. उसने लड़के को एक पीढ़े पर लेटा कर ऊपर से कपड़ा ढक दिया. फिर बड़ी बहन को बुलाकर लाई और बैठने के लिए वही पीढ़ा दे दिया. बड़ी बहन जब उस पर बैठने लगी तो उसका घाघरा बच्चे का छू गया. बच्चा घाघरा छूते ही रोने लगा. तब बड़ी बहन ने कहा, "तुम मुझे कलंक लगाना चाहती थी. मेरे बैठने से यह मर जाता." तब छोटी बहन बोली, "यह तो पहले से मरा हुआ था. तेरे ही भाग्य से यह जीवित हो गया है. तेरे पुण्य से ही यह जीवित हुआ है."

उसके बाद नगर में उसने पूर्णिमा का पूरा व्रत करने का ढिंढोरा पिटवा दिया.


क्या है पुण्य फल?

व्रत के प्रभाव से इस दिन किया गया कोई भी अनुष्ठान निर्विध्न सम्पन्न होता है तथा जिसने विवाह के उपरांत पूर्णिमा के व्रत आरम्भ करने हो वह इसी दिन से उनकी शुरुआत कर सकता है। इस व्रत से घर में सुख-सम्पत्ति आती है तथा सभी मनोकामनाएं भी पूरी हो जाती हैं। जिन कन्याओं ने 25 पुण्यां (पूर्णिमा) व्रत करने होते हैं वह यदि इस पूर्णिमा से व्रत करें तो अति उत्तम है।

कहते हैं जो व्यक्ति सच्चे मन से इस दिन मां लक्ष्मी की अराधना करता है उसे आर्थिक समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता। धन की प्राप्ति के लिए इस दिन श्री सूक्त का पाठ, श्री विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ, कनकधारा स्त्रोत का पाठ करना चाहिए। इस दिन माता लक्ष्मी के साथ-साथ चंद्रदेव की भी विशेष पूजा की जाती है  शरद पूर्णिमा के दिन धन प्राप्ति के लिए रात के समय मां लक्ष्मी के समक्ष घी का दीपक जलाएं। उन्हें गुलाब के फूलों की माला अर्पित करें। उन्हें सफेद मिठाई अर्पित करें। इसके बाद “ॐ ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद महालक्ष्मये नमः” की 11 माला जाप करें। किसी भी काम में सफलता पाने के लिए इस दिन शाम के समय राधा-कृष्ण की पूजा करें। उन्हें गुलाब के फूलों की माला अर्पित करें। मध्य रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य दें। फिर “ॐ राधावल्लभाय नमः” मंत्र के जाप की कम से कम तीन बार माला जपें।

इस रात को हजार काम छोड़कर 15 मिनट चन्द्रमा को एकटक निहारना । एक आध मिनट आँखें पटपटाना । कम से कम 15 मिनट चन्द्रमा की किरणों का फायदा लेना, ज्यादा करो तो हरकत नहीं । इससे 32 प्रकार की पित्त संबंधी बीमारियों में लाभ होगा, शांति होगी और फिर ऐसा आसन बिछाना जो विद्युत का कुचालक हो, चाहे छत पर चाहे मैदान में । चन्द्रमा की तरफ देखते-देखते अगर मौज पड़े तो आप लेट भी हो सकते हैं । श्वासोच्छवास के साथ भगवन्नाम और शांति को भरते जायें, निःसंकल्प नारायण में विश्रान्ति पायें । ऐसा करते-करते आप विश्रान्ति योग में चले जाना । विश्रांति योग.... भगवदयोग.... अंतरंग जप करते हुए अपने चित्त को शांत, मधुमय, आनंदमय, सुखमय बनाते जाना । हृदय से जपना प्रीतिपूर्वक, आपको बहुत लाभ होगा ।

जिनको नेत्रज्योति बढ़ानी हो
, वे शरद पूनम की रात को सुई में धागा पिरोने की कोशिश करें । जिनको दमे की बीमारी हो, वे नजदीक के किसी आश्रम या समिति से सम्पर्क के साथ लेना । दमा मिटाने वाली बूटी निःशुल्क मिलती है, उसे खीर में डाल देना । जिसको दमा है वह बूटी वाली खीर खाये और घूमे, सोये नहीं, इससे दमे में आराम होता है ।



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जिहादी मोहम्मद शोएब आफ़ताब ने किया भगवान श्रीराम का अपमान

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*🔴 जिहादी मोहम्मद शोएब आफ़ताब ने किया भगवान श्रीराम का अपमान...!*



सच में हिंदुओं की धार्मिक भावनाएं एक घंटे की तरह हो गई हैं जिन्हें जो चाहे बजाकर जा सकता है।

जिहादी मोहम्मद शोएब अख्तर ने दिल्ली स्थित AIIMS में खुलेआम फ़नी रामलीला का मंचन करके @unacademy Vlogs पर इस लाइव शो को प्रचारित किया। इस कार्यक्रम में जिहादी शोएब ने भगवान श्री राम सहित माता सीता एवं लक्ष्मण जी का अपमान करके 100 करोड़ हिंदुओं के मुंह पर तमाचा मारा।


वे मज़हब के अपमान के नाम पर कमलेश तिवारी जी जैसे लोगों का क़त्ल करते हैं लेकिन स्वयं हिंदुओं के सर्वपूज्य प्रभु श्रीराम, माता जानकी, लक्ष्मण जी, प्रभु श्री राम के पिता राजा दशरथ एवं माता कैकेयी का सरेआम मज़ाक भी उड़ा सकते हैं।

ऐसा इसलिए क्योंकि वर्तमान में हिंदू एक नपुंसक क़ौम बनकर रह गयी है। बस उसका अपना स्वार्थ निकलता रहे, बाकी अन्य किसी चीज़ से उसे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। अगर ऐसा न होता तो अभी तक इस जिहादी का सर, इस के धड़ पर सुरक्षित नहीं रहता। 

बाबा महाकाल से प्रार्थना है कि वे  हिन्दुओ को वह शक्ति प्रदान करें जिसके पश्चात इस तरह की घटनाओं को अंजाम देने वाले हिंदू विरोधी राक्षसों को तत्काल संहार करे 

राम ‘छोकरा’, लक्ष्मण ‘लौंडा’ और ‘सॉरी डार्लिंग’ पर नाचते दशरथ: AIIMS वाले शोएब आफ़ताब का रामायण, Unacademy से जुड़ा है

सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें रामायण का मजाक उड़ाया जा रहा है। ये सामने नहीं आया है कि ये वीडियो कब का है, लेकिन कहा जा रहा है कि 2020 में NEET की परीक्षा में पूरे भारत में पहला रैंक लाने वाले शोएब आफताब इसके वीडियो होस्ट हैं। वो ऑनलाइन शैक्षिक प्लेटफॉर्म Unacademy से भी जुड़े हुए हैं। जिस वीडियो को लेकर विवाद है, उसे दिल्ली AIIMS के छात्रों ने शूट किया है।

वायरल वीडियो में तब के दृश्य का मजाक उड़ाया गया है, जब रावण की बहन सूर्पनखा वनवास काट रहे राम और लक्ष्मण के पास पहुँचती है। वीडियो में इस दौरान राम के किरदार को कहते हुए दिखाया गया है, “अगर तुझे इतनी ही ठरक है तो तू मेरे भाई लक्ष्मण के पास चला जा।” नाक काटे जाने के बाद सूर्पनखा इस वीडियो में लक्ष्मण को ‘अबे ओ लौंडे’ कहते हुए दिखाया गया है। लोग इस एक्ट का विरोध कर रहे हैं।


वीडियो में राम ‘बाहुबली’ के डायलॉग से प्रेरित ये डायलॉग बोलते हैं, “लक्षमण, लड़कों को छेड़ने वाली लड़कियों की नाक नहीं काटते, काटते हैं उसकी गर्दन।” इसके बाद प्रतीकात्मक रूप से राम को सूर्पनखा की गर्दन काटते हुए दिखाया गया है और भीड़ ठहाके लगाती है। इसके बाद एक व्यक्ति कहना दिखाई देता है, “नमस्कार, मैं रवीश कुमार। आज अमेजॉन के जंगल में राम नाम के एक लौंडे ने सूर्पनखा का ख़त्म कर दिया।”

इसके बाद रावण ये पूछते हुए दिख रहा है कि कौन नया ‘छोकरा’ आ गया है? रावण को इसमें भोजपुरी में कहते हुए दिखाया गया है कि उसकी (राम की) ‘लुगाई (पत्नी)’ को उठा लो। एक अन्य दृश्य में मंथरा को कैकयी से कहते हुए दिखाया गया है, “तेरी तो इज्जत दारू-पानी के चखने से भी कम रह जाएगी।” कैकयी कहती है, “मैंने गलत निर्णय ले लिया। मुझे अपने कॉलेज वाले बंदे के साथ भाग जाना चाहिए था।”



इतना ही नहीं, रामायण के इस कथित एक्ट में राजा दशरथ को ‘सॉरी डार्लिंग’ गाने पर कान पकड़ के नाचते हुए भी दिखाया गया है। कैकयी कहती है, “अगर तुमने मेरे दो वचन नहीं माने तो मेरे कमरे में तुम्हारी नो एंट्री।” साथ ही इसमें राम को अमेज़ॉन जंगल भेजने की बात की जाती है। राजा दशरथ को इस वीडियो में अजोबोग़रीब हरकतें करते हुए दिखाया गया है। नाटक के दौरान लोग लगातार हँस भी रहे होते हैं।

शोएब आफताब यूट्यूब पर ‘AIIMS Insider’ नाम का एक चैनल भी चलाता है। इसके जरिए वो NEET व अन्य मेडिकल परीक्षाओं की तैयारी कर रहे छात्र-छात्राओं को सलाह देता है। साथ ही Unacademy के जरिए वो कोचिंग भी पढ़ाता है। यूट्यूब पर उसके 49,000 सब्सक्राइबर्स भी हैं। इस दौरान वो नैनीताल जैसी जगहों की यात्रा कर के वीलॉग भी शूट करता है। साथ ही क्रिकेट मैच के वीडियोज भी डालता है।

पण्डितराज -बनारस की एक सत्य अमर प्रेम कथा

*🔥"पण्डितराज -बनारस की एक सत्य अमर प्रेम कथा"🔥*

*सत्रहवीं शताब्दी का पूर्वार्ध था, दूर दक्षिण में गोदावरी तट के एक छोटे राज्य की राज्यसभा में एक विद्वान ब्राह्मण सम्मान पाता था, नाम था जगन्नाथ शास्त्री। साहित्य के प्रकांड विद्वान, दर्शन के अद्भुत ज्ञाता। इस छोटे से राज्य के महाराज चन्द्रदेव के लिए जगन्नाथ शास्त्री सबसे बड़े गर्व थे। कारण यह, कि जगन्नाथ शास्त्री कभी किसी से शास्त्रार्थ में पराजित नहीं होते थे। दूर दूर के विद्वान आये और पराजित हो कर जगन्नाथ शास्त्री की विद्वता का ध्वज लिए चले गए।पण्डित जगन्नाथ शास्त्री की चर्चा धीरे-धीरे सम्पूर्ण भारत में होने लगी थी। उस समय दिल्ली पर मुगल शासक शाहजहाँ का शासन था। शाहजहाँ मुगल था, सो भारत की प्रत्येक सुन्दर वस्तु पर अपना अधिकार समझना उसे जन्म से सिखाया गया था। पण्डित जगन्नाथ की चर्चा जब शाहजहाँ के कानों तक पहुँची तो जैसे उसके घमण्ड को चोट लगी। "मुगलों के युग में एक तुच्छ ब्राह्मण अपराजेय हो, यह कैसे सम्भव है?", शाह ने अपने दरबार के सबसे बड़े मौलवियों को बुलवाया और जगन्नाथ शास्त्री तैलंग को शास्त्रार्थ में पराजित करने के आदेश के साथ महाराज चन्द्रदेव के राज्य में भेजा। जगन्नाथ को पराजित कर उसकी शिखा काट कर मेरे कदमों में डालो...." शाहजहाँ का यह आदेश उन चालीस मौलवियों के कानों में स्थायी रूप से बस गया था।सप्ताह भर पश्चात मौलवियों का दल महाराज चन्द्रदेव की राजसभा में पण्डित जगन्नाथ को शास्त्रार्थ की चुनौती दे रहा था। गोदावरी तट का ब्राह्मण और अरबी मौलवियों के साथ शास्त्रार्थ, पण्डित जगन्नाथ नें मुस्कुरा कर सहमति दे दी। मौलवी दल ने अब अपनी शर्त रखी, "पराजित होने पर शिखा देनी होगी..."। पण्डित की मुस्कराहट और बढ़ गयी, "स्वीकार है, पर अब मेरी भी शर्त है। आप सब पराजित हुए तो मैं आपकी दाढ़ी उतरवा लूंगा।"*
*मुगल दरबार में "जहाँ पेंड़ न खूंट वहाँ रेंड़ परधान" की भांति विद्वान कहलाने वाले मौलवी विजय निश्चित समझ रहे थे, सो उन्हें इस शर्त पर कोई आपत्ति नहीं हुई।शास्त्रार्थ क्या था; खेल था। अरबों के पास इतनी आध्यात्मिक पूँजी कहाँ जो वे भारत के समक्ष खड़े भी हो सकें। पण्डित जगन्नाथ विजयी हुए, मौलवी दल अपनी दाढ़ी दे कर दिल्ली वापस चला गया...*
*दो माह बाद महाराज चन्द्रदेव की राजसभा में दिल्ली दरबार का प्रतिनिधिमंडल याचक बन कर खड़ा था, "महाराज से निवेदन है कि हम उनकी राज्य सभा के सबसे अनमोल रत्न पण्डित जगन्नाथ शास्त्री तैलंग को दिल्ली की राजसभा में सम्मानित करना चाहते हैं, यदि वे दिल्ली पर यह कृपा करते हैं तो हम सदैव आभारी रहेंगे"।मुगल सल्तनत ने प्रथम बार किसी से याचना की थी। महाराज चन्द्रदेव अस्वीकार न कर सके। पण्डित जगन्नाथ शास्त्री दिल्ली के हुए, शाहजहाँ नें उन्हें नया नाम दिया "पण्डितराज"।*
*दिल्ली में शाहजहाँ उनकी अद्भुत काव्यकला का दीवाना था, तो युवराज दारा शिकोह उनके दर्शन ज्ञान का भक्त। दारा शिकोह के जीवन पर सबसे अधिक प्रभाव पण्डितराज का ही रहा, और यही कारण था कि मुगल वंश का होने के बाद भी दारा मनुष्य बन गया।मुगल दरबार में अब पण्डितराज के अलंकृत संस्कृत छंद गूंजने लगे थे। उनकी काव्यशक्ति विरोधियों के मुह से भी वाह-वाह की ध्वनि निकलवा लेती। यूँ ही एक दिन पण्डितराज के एक छंद से प्रभावित हो कर शाहजहाँ ने कहा- अहा! आज तो कुछ मांग ही लीजिये पंडितजी, आज आपको कुछ भी दे सकता हूँ।*
*पण्डितराज ने आँख उठा कर देखा, दरबार के कोने में एक हाथ माथे पर और दूसरा हाथ कमर पर रखे खड़ी एक अद्भुत सुंदरी पण्डितराज को एकटक निहार रही थी। अद्भुत सौंदर्य, जैसे कालिदास की समस्त उपमाएं स्त्री रूप में खड़ी हो गयी हों। पण्डितराज ने एक क्षण को उस रूपसी की आँखों मे देखा, मस्तक पर त्रिपुंड लगाए शिव की तरह विशाल काया वाला पण्डितराज उसकी आँख की पुतलियों में झलक रहा था।* *पण्डित जी ने मौन के स्वरों से ही पूछा- चलोगी? लवंगी की पुतलियों ने उत्तर दिया- अविश्वास न करो पण्डित! प्रेम किया है....पण्डितराज जानते थे यह एक नर्तकी के गर्भ से जन्मी शाहजहाँ की पुत्री 'लवंगी' थी। एक क्षण को पण्डित ने कुछ सोचा, फिर ठसक के साथ मुस्कुरा कर कहा-*
*न याचे गजालीम् न वा वजीराजम्*
*न वित्तेषु चित्तम् मदीयम् कदाचित।*
*इयं सुस्तनी       मस्तकन्यस्तकुम्भा,*
*लवंगी    कुरंगी     दृगंगी   करोतु।।*
*शाहजहाँ मुस्कुरा उठा! कहा- लवंगी तुम्हारी हुई पण्डितराज। यह भारतीय इतिहास की "एकमात्र घटना" है जब किसी मुगल ने किसी हिन्दू को बेटी दी थी। लवंगी अब पण्डित राज की पत्नी थी। युग बीत रहा था। पण्डितराज दारा शिकोह के गुरु और परम् मित्र के रूप में विख्यात थे। समय की अपनी गति है। शाहजहाँ के पराभव, औरंगजेब के उदय और दारा शिकोह की निर्मम हत्या के पश्चात पण्डितराज के लिए दिल्ली में कोई स्थान नहीं रहा। पण्डित राज दिल्ली से बनारस आ गए, साथ थी उनकी प्रेयसी लवंगी।*

*बनारस तो बनारस है, वह अपने ही ताव के साथ जीता है। बनारस किसी को इतनी सहजता से स्वीकार नहीं कर लेता। और यही कारण है कि बनारस आज भी बनारस है, नहीं तो अरब की तलवार जहाँ भी पहुँची वहाँ की सभ्यता-संस्कृति को खा गई। यूनान, मिश्र, फारस, इन्हें सौ वर्ष भी नहीं लगे समाप्त होने में, बनारस हजार वर्षों तक प्रहार सहने के बाद भी  "ॐ शं नो मित्रः शं वरुणः। शं नो भवत्वर्यमा...." गा रहा है। बनारस ने एक स्वर से पण्डितराज को अस्वीकार कर दिया। कहा- लवंगी आपके विद्वता को खा चुकी, आप सम्मान के योग्य नहीं।*
*तब बनारस के विद्वानों में पण्डित अप्पय दीक्षित और पण्डित भट्टोजि दीक्षित का नाम सबसे प्रमुख था, पण्डितराज का विद्वत समाज से बहिष्कार इन्होंने ही कराया।*
*पर पण्डितराज भी पण्डितराज थे, और लवंगी उनकी प्रेयसी। जब कोई कवि प्रेम करता है तो कमाल करता है। पण्डितराज ने कहा- लवंगी के साथ रह कर ही बनारस की मेधा को अपनी सामर्थ्य दिखाऊंगा।पण्डितराज ने अपनी विद्वता दिखाई भी, पंडित भट्टोजि दीक्षित द्वारा रचित काव्य "प्रौढ़ मनोरमा" का खंडन करते हुए उन्होंने " प्रौढ़ मनोरमा कुचमर्दनम" नामक ग्रन्थ लिखा। बनारस में धूम मच गई, पर पण्डितराज को बनारस ने स्वीकार नहीं किया।*
*पण्डितराज नें पुनः लेखनी चलाई, पण्डित अप्पय दीक्षित द्वारा रचित "चित्रमीमांसा" का खंडन करते हुए " चित्रमीमांसाखंडन" नामक ग्रन्थ रच डाला। बनारस अब भी नहीं पिघला, बनारस के पंडितों ने अब भी स्वीकार नहीं किया पण्डितराज को। पण्डितराज दुखी थे, बनारस का तिरस्कार उन्हें तोड़ रहा था। आषाढ़ की सन्ध्या थी। गंगा तट पर बैठे उदास पण्डितराज ने अनायास ही लवंगी से कहा- गोदावरी चलोगी लवंगी? वह मेरी मिट्टी है, वह हमारा तिरस्कार नहीं करेगी।लवंगी ने कुछ सोच कर कहा- गोदावरी ही क्यों, बनारस क्यों नहीं?  स्वीकार तो बनारस से ही करवाइए पंडित जी।*
*पण्डितराज ने थके स्वर में कहा- अब किससे कहूँ, सब कर के तो हार गया...लवंगी मुस्कुरा उठी, "जिससे कहना चाहिए उससे तो कहा ही नहीं।  गंगा से कहो, वह किसी का तिरस्कार नहीं करती। गंगा ने स्वीकार किया तो समझो शिव ने स्वीकार किया।"*
*पण्डितराज की आँखे चमक उठीं। उन्होंने एकबार पुनः झाँका लवंगी की आँखों में, उसमें अब भी वही बीस वर्ष पुराना उत्तर था-"प्रेम किया है पण्डित! संग कैसे छोड़ दूंगी?"पण्डितराज उसी क्षण चले, और काशी के विद्वत समाज को चुनौती दी-" आओ कल गंगा के तट पर, तल में बह रही गंगा को सबसे ऊँचे स्थान पर बुला कर न दिखाया, तो पण्डित जगन्नाथ शास्त्री तैलंग अपनी शिखा काट कर उसी गंगा में प्रवाहित कर देगा......"*
*पल भर को हिल गया बनारस, पण्डितराज पर अविश्वास करना किसी के लिए सम्भव नहीं था। जिन्होंने पण्डितराज का तिरस्कार किया था, वे भी उनकी सामर्थ्य जानते थे। अगले दिन बनारस का समस्त विद्वत समाज दशाश्वमेघ घाट पर एकत्र था।पण्डितराज घाट की सबसे ऊपर की सीढ़ी पर बैठ गए, और गंगलहरी का पाठ प्रारम्भ किया। लवंगी उनके निकट बैठी थी। गंगा बावन सीढ़ी नीचे बह रही थी। पण्डितराज ज्यों ज्यों श्लोक पढ़ते, गंगा एक एक सीढ़ी ऊपर आती। बनारस की विद्वता आँख फाड़े निहार रही थी।*
*गंगलहरी के इक्यावन श्लोक पूरे हुए, गंगा इक्यावन सीढ़ी चढ़ कर पण्डितराज के निकट आ गयी थी। पण्डितराज ने पुनः देखा लवंगी की आँखों में, अबकी लवंगी बोल पड़ी- क्यों अविश्वास करते हो पण्डित? प्रेम किया है तुमसे...*
*पण्डितराज ने मुस्कुरा कर बावनवाँ श्लोक पढ़ा। गंगा ऊपरी सीढ़ी पर चढ़ी और पण्डितराज-लवंगी को गोद में लिए उतर गई।बनारस स्तब्ध खड़ा था, पर गंगा ने पण्डितराज को स्वीकार कर लिया था।तट पर खड़े पण्डित अप्पाजी दीक्षित ने मुह में ही बुदबुदा कर कहा- क्षमा करना मित्र, तुम्हें हृदय से लगा पाता तो स्वयं को सौभाग्यशाली समझता, पर धर्म के लिए तुम्हारा बलिदान आवश्यक था। बनारस झुकने लगे तो सनातन नहीं बचेगा।*

*युगों बीत गए। बनारस है, सनातन है,  गंगा है, तो उसकी लहरों में पण्डितराज भी हैं।*

*🚩पंकज पाराशर🚩*

कमरे के दरवाजे पर पहुंचे तो याद आया कि कमरे की चाबी Reception पर ही भूल गए...

तीन नौजवान एक बड़े होटल में ठहरे,75th floor
पर कमरा मिला...

एक रात लेट हो गए...रात के 12 बजे लिफ्ट किसी कारण से बन्द थी..

तीनो सीढिया चढने लगे...बोरियत दूर करने के लिये एक ने चुटकुला सुनाया और पच्चीसवी मंजिल तक आ गए ।

दूसरे ने गाना सुनाया और पचासवी मंजिल तक आ गए ।

और तीसरे ने सेहत पर किस्सा सुनाया और 75 floor पर आ गए

कमरे के दरवाजे पर पहुंचे तो याद आया कि कमरे की चाबी Reception पर ही भूल गए...
तीनो बेदम होकर गिर पडे..।।

इसी तरह इंसान भी अपनी जिदंगी के 25 साल खेल-कूद, हंसी मजाक में व्यर्थ करता है...

अगले 25 साल नौकरी, शादी, बच्चे और उनकी शादी मे गुजार देता हैं....

और आगे 25 साल जिंदा रहे तो बीमारी, डॉक्टर, अस्पताल मे गुजर जाते हैं...

मरने के बाद पता चलता है कि परमात्मा के द्वार की चाबी तो लाए ही नही...दुनिया मे ही रह गई...

प्रभु का स्मरण ही परमात्मा के द्वार की चाबी है...

तो आइए अपने कर्तव्य करते हुए हर समय प्रभु का सुमिरन करे...और अच्छे कर्म करे ताकि भगवान के द्वार पर जाकर पछताना ना पड़े ।

राधे राधे❤️🙏

गौमाता राष्ट्रमाता महा जनांदोलन - गौहत्या मुक्त भारत बनाने का ब्रह्मसूत्र -7 नवंबर 2021, चलो दिल्ली

*🚩गौमाता राष्ट्रमाता महा जनांदोलन - गौहत्या मुक्त भारत बनाने का ब्रह्मसूत्र🚩* - 7 नवंबर 2021, चलो दिल्ली ✊

7 नवंबर 1966 का वो दिन जब धर्मसम्राट पूज्य करपात्री जी महाराज के नेतृत्व में हुये गौरक्षा आंदोलन में हजारो गौभक्त साधु-संत गौमाता की प्रतिष्ठा हेतु गौरक्षा पर बलिदान हुये थे उसके 55 वर्ष बाद उन महान आत्माओ को सच्ची श्रद्धांजलि देने हेतु #गौमाता_राष्ट्रमाता घोषित कर गोवंश हत्या मुक्त भारत के ब्रह्मसंकल्प को पूर्ण करने देश के सच्चे धर्मनिष्ठ सनातनियो, गौभक्तो एवं राष्ट्रभक्तो को आमंत्रित करते है... 🔥🔥


पूज्य धर्मसम्राट करपात्री जी ने जो स्वप्न, संकल्प, और पुरुषार्थ गौमाता की प्रतिष्ठा के लिये किया था उसी कार्य को करने देश के पूज्य शंकराचार्यों, अखाड़ो, महात्माओ, पीठो, आचार्यो, कथावाचकों , धर्मधुरंधरो को हृदय की गहराइयों से तथा दंडवत पूर्ण, मुक्त विनयपूर्ण आमंत्रण एवं प्रार्थन- निवेदन करते हैं। विश्व मे गौकथा से लेकर गौक्रांति को सुनामी बनाने वाले गौ गंगा कृपाकांक्षी पूज्य गोपाल मणि जी महाराज जी की अपील पर देशभर से करोड़ो सनातनियो को जाग्रत किया गया है तथा विगत 13 वर्षों से गौमाता को राष्ट्रमाता बनाने हेतु महायुद्ध कर रहे हैं। 
आइये हम सब मिलकर इस पुनीत कार्य मे लगे तथा विश्वमाता गाय को पहले अपने देश मे माता का संवैधानिक सम्मान दिलायें क्योंकि यदि गाय पशु है तो कौन उसे बचा पा रहा है किन्तु यदि गाय राष्ट्रमाता हो तो कौन माई का लाल उसे काट सकता है...जब बात धर्म की हो तो पार्टियों और अपने स्वार्थों को छोड़ हमे बस धर्म की ओर, गौमाता की ओर खड़ा होना चाहिये क्योंकि देश मे प्रति दिवस हजारो गोवंश जब कटता है तो भगवान राम मंदिर में प्रतिमा के रूप में तो रहेंगे किन्तु उनमे प्राण नही आ सकेंगे...जय श्री राम और हरे कृष्ण करने से पूर्व एक बार विशुद्ध रूप से गौमाता की दुर्गति और उनकी पीड़ा को समाप्त करने गौमाता को राष्ट्रमाता का संवैधानिक सम्मान दिलाकर अपना कर्तव्य निभायें क्योंकि मरने के बाद गौमाता ही वैतरणी पार कराती है , धर्म ही साथ जाता है वहां को नेता और पार्टी काम नही आती.. अब प्रतीक्षा और नही की जा सकती क्योंकि सनातन धर्म का मूल गौमाता है, जड़ गौमाता है बांकी मंदिर, मठ आदि तो इसकी शाखाएं हैं। 
इस पम्पलेट को हर सनातनी/आर्य भारतीय तक पहुंचाये , शेयर करें क्योंकि जो गौ-धर्म की बात को सब तक नही पहुँचता वो धर्मद्रोह करता है, गौद्रोह करता है। 🙏🚩🙏🚩

✊ एक देश एक संकल्प - #गौमाता_राष्ट्रमाता ✊
 ✍️ - 
( गौ प्रचारक)
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