श्रीकृष्ण –‘ना’. ‘क्या बढ़िया दही? ‘ना’.
‘क्या खुरचन? ‘ना’.
‘मलाई? ‘ना’.ताजा माखन? ना’
फिर क्या ?
श्रीकृष्ण ने धीरे से कहा- अँगुली उठाकर चन्द्रमा की ओर संकेत कर दिया.
गोपी बोली- ‘ओं मेरे बाप!, यह कोई माखन का लौदा थोड़े ही है? हाय! हाय! हम यह कैसे देगी?
कृष्ण ने कहा- मै तो इसे ही चाहता हूँ शीघ्रता करो पार जाने के पूर्व ही मुझे ला दो’. अब और भी मचल गये धरती पर पाँव पीट-पीट कर रोने लगे अभी दो, अभी दो, ‘जब बहुत रोने लगे, तब यशोदा माता ने गोद में उठा लिया और प्यार करके बोली- यह माखन तुम्हे देने योग्य नहीं है देखो इसमें वह काला काला विष लगा हुआ है
बात बदल गयी मैया ने गोद में लेकर मधुर-मधुर स्वर से कथा सुनना प्रारंभ किया .
यशोदा-‘लाला ! एक क्षीर सागर है,
श्रीकृष्ण- ‘मैया ! वह कैसा है’.
यशोदा- ‘बेटा ! यह जो तुम दूध देख रहे हो इसी का एक समुद्र है.’
श्रीकृष्ण- ‘मैया ! कितनी गायों ने दूध दिया होगा जब समुद्र बना होगा.
यशोदा- ‘कन्हैया ! वह गाय का दूध नही है .
श्रीकृष्ण- ‘अरी मैया! तू मुझे बहला रही है भला बिना गाय के दूध कैसा?’
यशोदा- बेटा ! जिसने गायों में दूध बनाया वह गाय के बिना भी दूध बना सकता है’.
श्रीकृष्ण- वह कौन है?
यशोदा- ‘वह भगवान है,’एक बार देवता और दैत्यों में लड़ाई हुई असुरों को मिहित करने के लिए भगवान ने क्षीर सागर को मथा,मंदराचल की रई बनी,वासुकि नाग की रस्सी.
श्रीकृष्ण- ‘जैसे गोपियाँ दही मथती है, क्यों मैया?
यशोदा- ‘हाँ बेटा! उसी से विष पैदा हुआ,जब शंकर भगवान ने वही विष पी लिया तब उसकी जो फुइयाँ धरती पर गिरी, उन्हें पीकर साँप विषधर हो गये. चंद्रमा की ओर इशारा करते हुए, यह माखन भी उसी से निकला है.इसलिए थोडा-सा विष इसमें भी लग गया.सो मेरे प्राण !तुम घर का ही माखन खाओ.’कथा सुनते-सुनते श्यामसुन्दर की आँखों में नीद आ गयी ओर मैया ने उन्हें पलग पर सुला दिया.