प्रतिवर्ष फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि के व्रत
का पालन किया जाता है, जिसे शिव पार्वती के विवाह का अवसर माना जाता है –
अर्थात मंगल के साथ शक्ति का मिलन | कुछ पौराणिक मान्यताएँ इस प्रकार की भी
हैं कि इसी दिन महादेव के विशालकाय स्वरूप अग्निलिंग से सृष्टि का आरम्भ
हुआ था | जो भी मान्यताएँ हों, महाशिवरात्रि का पर्व समस्त हिन्दू समाज में
बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है | इसी दिन ऋषि बोधोत्सव भी है, जिस दिन
आर्यसमाज के प्रवर्तक स्वामी दयानन्द को सच्चे शिवभक्त का ज्ञान प्राप्त
हुआ था और उनके हृदय से उदगार फूटे थे कि सच्चा शिव किसी मन्दिर या स्थान
विशेष में विराजमान मूर्ति में निवास नहीं करता, अपितु वह इस सृष्टि के
प्राणि मात्र में विराजमान है, और इसलिए प्राणिमात्र की सेवा ही सच्ची
ईश्वरभक्ति है | इस वर्ष 13 फरवरी को दिन भर त्रयोदशी तिथि है तथा रात्रि
में 10:34 से चतुर्दशी तिथि का आगमन हो रहा है | 14 फरवरी को रात्रि 12:46
तक चतुर्दशी तिथि है | क्योंकि दोनों ही दिन निशीथ काल में चतुर्दशी तिथि
है अतः यह द्विविधा होनी स्वाभाविक ही है कि किस दिन व्रत किया जाए | इसका
समाधान धर्मग्रन्थों में इस प्रकार है कि यदि दूसरे दिन निशीथ काल में कुछ
ही समय के लिए चतुर्दशी हो किन्तु पहले दिन सम्पूर्ण भाग में हो तो अभिषेक
पहली रात्रि में करना चाहिए | हाँ यदि एक ही दिन चतुर्दशी तिथि है तो भले
ही वह मध्यरात्रि में कुछ ही पलों के लिए है, अभिषेक उसी दिन होगा | रात्रि
का मध्यभाग निशीथ काल कहलाता है | इस वर्ष सौभाग्य से दो रातों में
चतुर्दशी तिथि है – ऐसा योग कभी कभी ही बनता है | 13 फरवरी को सम्पूर्ण
रात्रि में चतुर्दशी तिथि है अतः अधिकाँश भागों में 13 तारीख़ को ही
शिवरात्रि का व्रत रखकर निशीथ काल का अभिषेक किया जाएगा | इसी दिन भौम
प्रदोष भी है | जिन लोगों को रात्रि में अभिषेक नहीं करना है और दिन में ही
व्रत रखकर उसका पारायण करना है वे लोग 14 फरवरी को व्रत रख सकते हैं |
वैसे Vedic Astrologers और पण्डितों के अनुसार निशीथ काल की पूजा का समय
मध्य रात्रि बारह बजकर नौ मिनट से आरम्भ होकर एक बजे तक का बताया जा रहा है
| यानी कुल 51 मिनट मुहूर्त की अवधि है | रात्रि में चार बार भगवान शिव का
अभिषेक किया जाता है | 14 फरवरी को प्रातः 07:04 से लेकर दोपहर 15:20 तक
पारायण का समय बताया जा रहा है | शिव का अभिषेक अनेक वस्तुओं से किया जाता
है | जिनमें प्रमुख हैं : सुगन्धित जल : भौतिक सुख सुविधाओं की उपलब्धि के
लिए जल में चन्दन आदि की सुगन्धि मिलाकर उस जल से शिवलिंग को अभिषिक्त किया
जाता है | मधु अर्थात शहद : अच्छे स्वास्थ्य तथा जीवन साथी की मंगलकामना
के लिए मधु से शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है | गंगाजल : समस्त प्रकार के
तनावों से मुक्तिदाता माना जाता है गंगाजल को | इसी भावना से गंगाजल द्वारा
शिवलिंग को अभिसिंचित करने की प्रथा है | गौ दुग्ध तथा गौ धृत : गाय का
दूध और घी पौष्टिकता प्रदान करता है | हृष्ट पुष्ट रहने के लिए गाय के दूध
और घी से शिवलिंग को स्नान कराया जाता है | बिल्व पत्र और धतूरा : सांसारिक
तापों से मुक्ति के लिए बिल्व पत्रों तथा धतूरे से शिवलिंग का शृंगार किया
जाता है | ऐसी मान्यता है कि धतूरा भगवान शंकर का सबसे अधिक प्रिय पदार्थ
है और बिल्व को अमर वृक्ष तथा बिल्व पत्र को अमर पत्र और बिल्व फल को अमर
फल की संज्ञा दी जाती है | किन्तु हमारी मान्यता है कि केवल जल तथा बिल्व
पत्र के साथ श्रद्धा, भक्ति और पूर्ण आस्था तथा विश्वास का गंगाजल एक साथ
मिलाकर उस जल से यदि शिवलिंग को अभिषिक्त किया जाए तो भोले शंकर को उससे
बढ़कर और कुछ प्रिय हो ही नहीं हो सकता | इसी श्रद्धा, भक्ति और पूर्ण आस्था
तथा विश्वास के गंगाजल के साथ प्रस्तुत है
शिव स्तुति तथा शिव पञ्चाक्षर स्तोत्रम्...
नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्माङ्गरागाय महेश्वराय ।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै नकाराय नमः शिवाय ||
शिव स्तुति तथा शिव पञ्चाक्षर स्तोत्रम्...
नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्माङ्गरागाय महेश्वराय ।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै नकाराय नमः शिवाय ||
मन्दाकिनीसलिलचन्दनचर्चिताय
नन्दीश्वरप्रमथनाथमहेश्वराय ।
मन्दारपुष्पबहुपुष्पसुपूजिताय तस्मै मकाराय
नमः शिवाय ||
शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्द सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय ।
शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्द सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय ।
श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय तस्मै शिकाराय नमः शिवाय ||
वशिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्य मूनीन्द्रदेवार्चितशेखराय ।
चन्द्रार्कवैश्वानरलोचनाय तस्मै वकाराय नमः शिवाय ||
यज्ञस्वरूपाय जटाधराय
पिनाकहस्ताय सनातनाय ।
दिव्याय देवाय दिगम्बराय तस्मै यकाराय नमः शिवाय ||
पञ्चाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसंनिधौ |
शिवलोकमावाप्नोति शिवेन सह मोदते
||
ॐ नमः शिवाय... ॐ नमः शिवाय... ॐ नमः शिवाय.