बरसो पहले जब में रामायण या महाभारत जैसे सिरियल्स देखता था तो उसमें युद्ध के दृश्य देखकर बड़ी हँसी आती थी। मैं देखता था की कैसे एक योद्धा धनुष पर बाण चढाकर आँख बंद कर दो चार मंत्र बुदबुदाता था और तीर छोड़ देता था। इससे कभी उस तीर के आगे बिजली लग जाती थी, तो कभी आग जल उठती थी। और दोनों पक्षों के तीर बराबर एक दुसरे से आकर टकराते थे। यहां तक तो मैं झेल लेता था, लेकिन वह जो कभी कभी छोड़ा गया एक तीर दस तीरों में बदल जाता था उसे मैं कभी पचा नहीं पाता था।
हमेशा लगा की यह क्या बकैती है?
लेकिन फिर वह दिन आया जब मोदी जी ने धनुष पर धारा 370 वाला तीर चढाया, मंत्र फुका, और तीर छोड़ दिया।
मैं क्या देखता हूँ? वह छोड़ा गया तीर अचानक से एक से बदलकर हजार तीरों में बँट गया।
एक तीर जाकर कांग्रेसीयों को लगा...
कुछ तीर पाकिस्तान गये, इमरान खान, बाजवा साहेब सबने उसे उचित स्थान दिया...
कुछ तीर NDTV की ओर गये...
कुछ JNU में...
एक तीर यूपी जा रहा था उसे बीच में केजरीवाल जी ने लपक लिया...
एक तीर ट्रंप जी को भी लगा... बिलकुल मध्य में.. ताकी मध्यस्तता वाला कीड़ा मर जाये...
कुछ तीर अपनों को भी लगे... जैसे मोदी को मौलाना बोलने वालों को... मोदी को भिकास भिकास करने वाला बोलने वालों को... रंगा बिल्ला कहने वालों को... मोदी कुछ नहीं कर सकता बोलने वालों को... नोटा नोटा करने वालों को...
कोई तीर कोलकाता गया... तो कोई कहीं ओर...
हर तीर खाने वाला सहलाते हुये पाया गया...
यह देख मुझे विश्वास हो गया कि रामायण, महाभारत में दिखाये जाने वाले युद्ध के दृश्य झुठे नहीं है। एक तीर से कई निशाने लगाये जा सकते हैं।
एक हल्का फुल्का तीर एक अल्प-समय के लिये नोटाधारी बने भक्त को ढूँढता हुआ दिल्ली जा रहा था...