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शनिवार, 28 दिसंबर 2019

क्या महाराणा प्रताप वास्तव में 7 फ़ीट 4 इंच लंबे थे? क्या उनके भाले के अलावा और कोई प्रमाण है कि उनका कद इतना लंबा था?

आप प्रमाण मांगते हैं लीजिए प्रमाण,
गूगल बाबा
पुरातत्व विभाग के कई शोधों के बाद पता चला है कि उनका कद 7 फीट 4 इंच ही था!
🔴महाराणा प्रताप के बारे में कुछ रोचक जानकारी:-
1... महाराणा प्रताप एक ही झटके में घोड़े समेत दुश्मन सैनिक को काट डालते थे।
2.... जब इब्राहिम लिंकन भारत दौरे पर आ रहे थे । तब उन्होने अपनी माँ से पूछा कि- हिंदुस्तान से आपके लिए क्या लेकर आए ? तब माँ का जवाब मिला- ”उस महान देश की वीर भूमि हल्दी घाटी से एक मुट्ठी धूल लेकर आना, जहाँ का राजा अपनी प्रजा के प्रति इतना वफ़ादार था कि उसने आधे हिंदुस्तान के बदले अपनी मातृभूमि को चुना ।”
लेकिन बदकिस्मती से उनका वो दौरा रद्द हो गया था |
“बुक ऑफ़ प्रेसिडेंट यु एस ए ‘ किताब में आप यह बात पढ़ सकते हैं |
3.... महाराणा प्रताप के भाले का वजन 80 किलोग्राम था और कवच का वजन भी 80 किलोग्राम ही था|
कवच, भाला, ढाल, और हाथ में तलवार का वजन मिलाएं तो कुल वजन 207 किलो था।
4.... आज भी महाराणा प्रताप की तलवार कवच आदि सामान उदयपुर राज घराने के संग्रहालय में सुरक्षित हैं |
5.... अकबर ने कहा था कि अगर राणा प्रताप मेरे सामने झुकते है, तो आधा हिंदुस्तान के वारिस वो होंगे, पर बादशाहत अकबर की ही रहेगी|
लेकिन महाराणा प्रताप ने किसी की भी अधीनता स्वीकार करने से मना कर दिया |
6.... हल्दी घाटी की लड़ाई में मेवाड़ से 20000 सैनिक थे और अकबर की ओर से 85000 सैनिक युद्ध में सम्मिलित हुए |
7.... महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक का मंदिर भी बना हुआ है, जो आज भी हल्दी घाटी में सुरक्षित है |
8.... महाराणा प्रताप ने जब महलों का त्याग किया तब उनके साथ लुहार जाति के हजारो लोगों ने भी घर छोड़ा और दिन रात राणा कि फौज के लिए तलवारें बनाईं | इसी समाज को आज गुजरात मध्यप्रदेश और राजस्थान में गाढ़िया लोहार कहा जाता है| मैं नमन करता हूँ ऐसे लोगो को |
9.... हल्दी घाटी के युद्ध के 300 साल बाद भी वहाँ जमीनों में तलवारें पाई गई।
आखिरी बार तलवारों का जखीरा 1985 में हल्दी घाटी में मिला था |
10..... महाराणा प्रताप को शस्त्रास्त्र की शिक्षा "श्री जैमल मेड़तिया जी" ने दी थी, जो 8000 राजपूत वीरों को लेकर 60000 मुसलमानों से लड़े थे। उस युद्ध में 48000 मारे गए थे । जिनमे 8000 राजपूत और 40000 मुग़ल थे |
11.... महाराणा के देहांत पर अकबर भी रो पड़ा था |
12.... मेवाड़ के आदिवासी भील समाज ने हल्दी घाटी में
अकबर की फौज को अपने तीरो से रौंद डाला था । वो महाराणा प्रताप को अपना बेटा मानते थे और राणा बिना भेदभाव के उन के साथ रहते थे ।
आज भी मेवाड़ के राजचिन्ह पर एक तरफ राजपूत हैं, तो दूसरी तरफ भील |
13..... महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक महाराणा को 26 फीट का दरिया पार करने के बाद वीर गति को प्राप्त हुआ | उसकी एक टांग टूटने के बाद भी वह दरिया पार कर गया। जहाँ वो घायल हुआ वहां आज खोड़ी इमली नाम का पेड़ है, जहाँ पर चेतक की मृत्यु हुई वहाँ चेतक मंदिर है |
14..... राणा का घोड़ा चेतक भी बहुत ताकतवर था उसके मुँह के आगे दुश्मन के हाथियों को भ्रमित करने के लिए हाथी की सूंड लगाई जाती थी । यह हेतक और चेतक नाम के दो घोड़े थे|
15..... मरने से पहले महाराणा प्रताप ने अपना खोया हुआ 85 % मेवाड फिर से जीत लिया था । सोने चांदी और महलो को छोड़कर वो 20 साल मेवाड़ के जंगलो में घूमे ।
16.... महाराणा प्रताप का वजन 110 किलो और लम्बाई 7’4” थी, दो म्यान वाली तलवार और 80 किलो का भाला रखते थे हाथ में।
महाराणा प्रताप के हाथी की कहानी:
मित्रो, आप सब ने महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक के बारे में तो सुना ही होगा,
लेकिन उनका एक हाथी भी था। जिसका नाम था रामप्रसाद। उसके बारे में आपको कुछ बाते बताता हुँ।
रामप्रसाद हाथी का उल्लेख अल- बदायुनी, जो मुगलों की ओर से हल्दीघाटी के
युद्ध में लड़ा था ने अपने एक ग्रन्थ में किया है।
वो लिखता है की- जब महाराणा प्रताप पर अकबर ने चढाई की थी, तब उसने दो चीजो को ही बंदी बनाने की मांग की थी । एक तो खुद महाराणा और दूसरा उनका हाथी रामप्रसाद।
आगे अल बदायुनी लिखता है की- वो हाथी इतना समझदार व ताकतवर था की उसने हल्दीघाटी के युद्ध में अकेले ही अकबर के 13 हाथियों को मार गिराया था ।
वो आगे लिखता है कि- उस हाथी को पकड़ने के लिए हमने 7 बड़े हाथियों का एक
चक्रव्यूह बनाया और उन पर14 महावतो को बिठाया, तब कहीं जाकर उसे बंदी बना पाये।
अब सुनिए एक भारतीय जानवर की स्वामी भक्ति।
उस हाथी को अकबर के समक्ष पेश किया गया ।
जहा अकबर ने उसका नाम पीरप्रसाद रखा।
रामप्रसाद को मुगलों ने गन्ने और पानी दिया।
पर उस स्वामिभक्त हाथी ने 18 दिन तक मुगलों का न तो दाना खाया और न ही
पानी पिया और वो शहीद हो गया।
तब अकबर ने कहा था कि- जिसके हाथी को मैं अपने सामने नहीं झुका पाया,
उस महाराणा प्रताप को क्या झुका पाउँगा.?
इसलिए मित्रो हमेशा अपने भारतीय होने पे गर्व करो।

शुक्रवार, 20 दिसंबर 2019

धर्मनिरपेक्षता हिंदुस्तान का सबसे बड़ा झूठ है

धर्मनिरपेक्षता हिंदुस्तान का सबसे बड़ा झूठ है

लोग हज़ारों की हिंसक भीड़ को कुछ ‘अराजक तत्व’ बताकर खारिज कर देते हैं। वो दावा करते हैं कि ये असली प्रदर्शनकारी नहीं है बल्कि असमाजिक तत्व हैं। और यही लोग पिछले 6 सालों से कुछ-एक लिंचिंग घटनाओं को आगे रख ये माहौल बना रहे हैं कि एक कौम ज़ुल्म कर रही है और दूसरे पर जुल्म हो रहा है...

तब कभी ये समझने की कोशिश नहीं की गई वो हिंसा करने वाले भी कुछ हिंसक तत्व ही थे। क्या 130 करोड़ लोगों के मुल्क में जहां 20 करोड़ के करीब मुसलमान हैं आप कुछ-एक घटनाओं को आगे रखकर ये दावा कर सकते हैं कि हर किसी के साथ ऐसा हो रहा है? होनी तो एक भी घटना नहीं चाहिए...लेकिन अगर कोई अफसोसनाक घटना हुई तो उसे उसी संदर्भ में क्यों न देखा जाए मगर तब तक तो आप उसे पूरे देश के माहौल से जोड़कर टिप्पणी करने लगते हैं...आज आप अराजक तत्वों को कौम से न जोड़ने की अपील कर रहे हैं और कठुआ की अफसोसनाक घटना के बाद आपने पूरी हिंदू कौम को ही बलात्कारी बता दिया था...हिंदू धर्म से जुड़े चिन्हों पर आपत्तिजनक चित्र बनाकर हिंदू धर्म को बलात्कारी बताया गया...जिस देश में ये घिनौना अपराध हर किसी के साथ हर रोज़ होता है, उसे इस तरह पेश किया गया जैसे उस बच्ची के साथ सिर्फ उसके धर्म की वजह से ऐसा किया गया...तब क्यूं सिर्फ कुछ लोगों के अपराध की तरह लिया गया...किस-किस मक्कारी का ज़िक्र करू...किस्से ख़त्म नहीं होंगे...

5 सालों में 100 से ज़्यादा हिंदू भी हेटक्राइम का शिकार हुए जिसमें अपराधी मुस्लिम थे...उस पर चर्चा करना तो आपको पता तक नहीं होगा...मगर नहीं, हमें तो वही कुछ-एक मामले आगे रखकर हायतौबा मचानी है। खुद इस बात की शिकायत करते हैं कि सरकार की आलोचना पर आपको एंटी नेशनल बता दिया जाता है और खुद हर उस आदमी को एक खास पार्टी का एजेंट बताते हैं जो आपसे सहमत नहीं होता है। अगर आपका विरोध आपके विश्वास से निकला है, आपकी राजनीतिक Conviction से निकला है, तो सामने वाले का विरोध भी तो उसकी कंवीकशन से निकला हो सकता है...तब आपको ये क्यूं लगता है कि सामने वाला किसी से पैसे लेकर अपना राजनीतिक राय बना रहा है। 
जब आप खुद विरोध का हक चाहते हैं, तो सामने वाले पर बिना लांछन लगाए उसे ये अधिकार क्यों नहीं देते...क्या ये ज़रूरी है कि आप किसी इंसान को तभी ईमानदार मानेंगे जब वो आपकी नफरत से सहमत हो...क्या उसकी पवित्रता तभी साबित होगी जब वो उस इंसान से उतनी ही नफरत करे जितना आप करते हैं...अगर आप अपनी आलोचना में संयम नहीं बरतते तो तब क्यूं भड़क उठते हैं जब लोग आपको पाकिस्तान का हमदर्द बताते हैं...क्या वजह है कि कश्मीर से लेकर 370 तक और सर्जिकल स्ट्राइक से लेकर कैब तक आपको और पाकिस्तान के सुर एक ही होते हैं...आपको कैसा लगेगा अगर ऐसे हर मामले पर आपको पाकिस्तानी एजेंट बता दिया जाए...बुरा लगता है न...उसी तरह उन लोगों को भी लगता है जो अपनी निजी निष्ठा से कोई बात बोलते हैं और आप उन्हें भक्त, एजेंट या बिका हुआ बता देते हैं।

आप हज़ारों सालों की गंगा ज़मनी संस्कृति की दुहाई देते हैं, तो क्यूं आपकी कुछ कमज़ोरियों पर सवाल उठाने पर इतना बिदक जाते हैं...क्या दुनिया के सारे रिश्ते ऐसे ही वर्क करते हैं...घर पर मां-बाप से प्यार करते हैं, तो क्या उनकी हर बात से सहमत होते हैं...नहीं न..उनसे प्यार करते हुए उन्हें उनकी गलती बताते हैं न...वो भी आपको प्यार करते हुए आपको भी आपको गलती बताते हैं, तो क्यों ये छूट धर्मों के बीच लोगों को नहीं हो सकती...आप क्यों खुद को आलोचना से ऊपर मानते हैं...ये कैसी गंगा जमनी संस्कृति है जहां आप सिर्फ तारीफ तो सुन सकते हैं मगर आलोचना नहीं...मगर आपके तो किसी विश्वास पर ज़रा सा सवाल उठा दिया जाए, तो आप सामने वाले कट्टर घोषित कर देते हैं...क्या भाईचारे का मतलब ये होता है कि कोई भी इंसान दूसरे की कमज़ोरी पर सवाल उठाकर उसको शर्मिंदा नहीं करेगा...मगर आप तो हो जाते हैं...तभी तो ट्रिपल तलाक ख़त्म करने को आप मुसलमानों के खिलाफ साजिश बताते हैं...बिना ये सोचे कि पूरी दुनिया इससे कब से मुक्त हो चुकी है..भाइचारे का मतलब क्या किसी को उसके हाल पर छोड़ देना होता है क्या... आप इन सब सवालों पर कभी नहीं सोचते...बस अपनी नफरतों से चिपके रहते हैं...

हिंदुस्तान सेक्युलर मुल्क इसलिए नहीं है क्योंकि नेहरू या कांग्रेस ने आज़ादी के वक्त ऐसा चाहा था..वो इसलिए सेक्युलर है क्योंकि यहां कि बहुसंख्यक आबादी भी यही चाहती रही है...अगर आवाम नहीं चाहती, तो वो कभी नेताओं के कहने पर ऐसा नहीं करती...जैसे पाकिस्तान की मुस्लिम आबादी ने जिन्ना की ख्वाहिश के बावजूद पाकिस्तान को सेक्युलर नहीं होने दिया...संविधान में ही उसे मुस्लिम मुल्क घोषित करवा दिया...अगर ये देश सेक्युलर नहीं होता, तो पाकिस्तान की धर्म लोगों को अपना हीरो बनाने से पहले पूंछ उठाकर देखता कि वो हिंदू या मुसलमान...वो तीनों खानों का बालीवुड का बादशाह नहीं बनाता..अज़हर से लेकर ज़हीर और इरफान जैसों को अपना हीरो नहीं मानता...ये हिंदू धर्म नहीं देखता तभी तो हिंद्स्तान से बेपनाह नफरत करने वाले कश्मीरियों को भी सिर आंखों पर बिठात है....याद है कुछ साल पहले फेमगुरू कुल में आए एक कश्मीरी लड़के काज़ी को लोगों ने सिर्फ इसलिए जीता दिया क्योंकि वो बातें अच्छी करता था...लोगों को उसकी शख्सियत से प्यार हो गया था...अगर हम धर्म या प्रांत के आधार पर नफरत करने वाले होते तो क्या उस राज्य के मुस्लिम लड़के को जीताते जो हर दिन भारत के झंडे जलाती है...

अगर ये हिंदू संयमी नहीं होता, सब्र वाला नहीं होता तो 75 सालों से हिंदू बस्तियों में मुसलमानों को सुबह 6 बजे लाउस्पीकर पर अजान नहीं चलाने देता...यहां भी कॉलेज में हिंदू त्यौहार मनाया जाना खबर बनता...यहां भी पाकिस्तान की तरह Minority की आबादी घटती, उनके धार्मिक स्थल ढहाए जाते...कश्मीर की तरह मंदिरों पर ताले लगाए जाते...मगर तुम्हें ये सब दिखाई नहीं देता...तुम्हें ये इसलिए नहीं दिखाई देता क्योंकि तुम धार्मिक श्रेष्ठता के शिकार हो...तुममें इतना नैतिक साहस नहीं कि अपने मज़हब के कट्टपंथियों के खिलाफ आवाज़ उठा पाओ...
मोदी ने तो 6 साल में देश में धर्मनिरपेक्षता की नींव हिला दी...मगर हर शहर में जो सालों से जो तुम अपने मोहल्ले बसाकर रहते हैं क्या ये भी पीछे जाकर मोदी बसा आए हैं...या तो आपने अपनी मर्ज़ी से ऐसा किया है...या फिर इस देश की हिंदू कौम तुम्हें अपने साथ नहीं रहने देती...अगर ये दोनों ही बातें सच है, तो ये देश तो कभी सेक्युकलर था ही नहीं...मतलब हिंदू कट्टर रहे हैं जो तुम्हें साथ नहीं रख सकते या तुम इतने कट्टर हो जो उसके साथ रहना नहीं चाहते...अगर ऐसा है तो आज तुम किसी गंगा जमनी संस्कृति की, धार्मिक सौहार्द्र की दुहाई देते हो 

ये कैसी धर्मनिरपेक्षता है, जो ज़रा सी तकलीफ होने पर तो संविधान की दुहाई देती है मगर तुम्हें कॉमन सिविल कोड मानने नहीं देती, ट्रिपल तलाक लाने नहीं देती, वंदेमातरम नहीं बोलने देती, हिंदू परिवारों में शादी नहीं करने देती...ये किसी तरह का झूठ हम अपने आप से बोल रहे हैं...जब हमें कानून भी अपने बनाने हैं, रहना भी अपने लोगों के बीच है, मानना भी सिर्फ अपने ईश्वर को है, शादी भी अपने लोगों में ही करनी है, तो किस सेक्युरलिज़्म की बात कर रहे हैं हम...क्यों ये झूठ बोल रहे हैं कि हमने तो कट्टर पाकिस्तान के ऊपर सेकुलर हिंदुस्तान चुना...किसलिए चुना...अपने ही लोगों के बीच अपने मोहल्ले बनाकर उन्ही से रिश्तेदारियां जोड़कर...सेक्युरलिज़्म क्या नियम और शर्तों के साथ आता है...कम से कम मेरा तो नहीं आता...उसमें कोई रोक नहीं है, कोई बंधन नहीं है, मेरा सेकुयुरलजिम तो हर मंदिर-मस्जिद के आगे झुकता है, हर किसी की इबादत की इजाज़त देता है, हर किसी से मोहब्बत की छूट देता है..झांको अपने अंदर पूछो खुद से क्या तुम्हारा सेक्युलरज़िम भी यही बोलता है...अगर नहीं, तो बदलना तुम्हें है मुझे नहीं!

धर्मनिरपेक्षता और कट्टरता पर कुछ समय पहले एक पोस्ट लिखी थी...यहां फिर से दोहरा रहा हूं...शायद इसके बाहर कुछ नहीं है

अगर आपको लगता है कि जिस धर्म में आप पैदा हुए हैं, उसे डिफेंड करना आपकी मजबूरी या फर्ज़ है, तो आप कट्टर हैं। अगर आपको लगता है कि आपका धर्म आलोचना से परे है, तो आप कट्टर हैं। अगर आपको लगता है कि आपका जीवन प्राकृतिक या मानवीय नियमों पर नहीं, आपकी धार्मिक मान्यताओं से तय होगा, तो आप कट्टर हैं। अगर आपको लगता है कि एक भी चीज़ सवाल से परे है या वो अंतिम सत्य है, तो आप कट्टर हैं।

अगर आप अपनी धार्मिक मान्यताओं पर चर्चा के लिए तैयार हैं, तो आप उदार हैं। अगर आप मानते हैं कि सच को किसी धर्म या किताब में नहीं बांधा जा सकता, तो आप उदार हैं। अगर आपको लगता है कि सब कुछ आलोचना के दायरे में है, तो आप उदार हैं।

अगर आपको लगता है कि कुछ चीज़ों पर चर्चा नहीं हो सकती, तो आपको किसी को भी कट्टर कहने का हक नहीं। अगर आपके लिए कोई मान्यता या किताब आलोचना से परे है, तो किसी और के लिए कोई संगठन या व्यक्ति आलोचना से परे हो सकता है। मूर्खता हर हाल में मूर्खता ही होती है फिर चाहे वो एक किताब को जीवन का सच मानने की ज़िद्द में छिपी हो या किसी एक व्यक्ति को राष्ट्र का सच मानने में।

जीवन इतना तेज़ी से बदलता है कि कुछ महीनों के अंतराल में हमारा अपने आप से सहमत होना मुश्किल हो जाता है, ऐसे में अपने आज को हज़ारों साल पुराने किसी किताबी संविधान के हवाले कर देना सिवाए बौधिक आलस्य को और कुछ नहीं। और आलस्य से बड़ा तो दुनिया में दूसरा और कोई पाप है ही नहीं।

किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है

जिन ने राहत इन्दोरी के शेर को शान से पढ़ा कि
"सभी का खून है शामिल यहाँ की मिटटी में
किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है "
तो - उनको उन्ही की भाषा में मुँहतोड़ जवाब :
ख़फ़ा होते हैं होने जाने दो, घर के मेहमान थोड़ी हैं
जहाँ भर से लताड़े जा चुके हैं , इनका मान थोड़ी है
ये कान्हा राम की धरती, सजदा करना ही होगा
मेरा वतन ये मेरी माँ है, लूट का सामान थोड़ी है
मैं जानता हूँ, घर में बन चुके हैं सैकड़ों भेदी
जो सिक्कों में बिक जाए वो मेरा ईमान थोड़ी है
मेरे पुरखों ने सींचा है लहू के कतरे कतरे से
बहुत बांटा मगर अब बस, ख़ैरात थोड़ी है
जो रहजन थे उन्हें हाकिम बना कर उम्र भर पूजा
मगर अब हम भी सच्चाई से अनजान थोड़े हैं ?
बहुत लूटा फिरंगी ने कभी बाबर के पूतों ने
ये मेरा घर है मेरी जाँ, मुफ्त की सराय थोड़ी है...
बिरले मिलते है सच्चे मुसलमान दुनिया में
हर कोई अब्दुल हमीद और कलाम थोड़ी है ।।
कुछ तो अपने भी शामिल है वतन तोड़ने में
अब ये बरखा और रविश मुसलमान थोड़ी है ।
नही शामिल है तुम्हारा खून इस मिट्टी में,
ये तुम्हारे बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है ।।

सीएए : मामला उतना सीधा भी नहीं जितना बताया जा रहा

सीएए : मामला उतना सीधा भी नहीं जितना बताया जा रहा
कैब (सीएबी) यानी अब सीएए पर संसद में बहस सुन रहा था, दोनों पक्ष सरकार और प्रतिपक्ष जितनी सरल शब्दों में इसकी व्याख्या कर रहे थे असल में मामला उतना सीधा है नहीं। असल बात दोनों पक्षों ने छिपा ली। सरकार ने अपना दूरगामी लक्ष्य छिपा लिया और विपक्ष ने अपनी हार की तिलमिलाहट छिपाने के लिए संविधान की आड़ ले ली। कुछ बिंदुवार समझने की कोशिश करते हैं। 
क्या हैं इसके दूरगामी परिणाम 
- सीएए के माध्यम से सरकार ने पाकिस्तान और बांग्लादेश  पर ऐसा घुटना मारा है जिससे ये तिलमिला तो गए हैं लेकिन अपना दर्द नहीं बयां कर पा रहे हैं। सरकार ने ये बिल लाकर बिना इनका नाम लिए बिना पूरी दुनिया को बता दिया कि इन देशों में अल्पसंख्यकों का उत्पीडऩ हो रहा है। 
- बिल पास होते ही बांग्लादेश को दुनिया के सामने अपनी इज्जत बचाने के लिए कहना पड़ा कि वह अपने सभी नागरिकों को वापस लेने के लिए तैयार है। उसने स्वीकार भी किया कि उसके यहां अल्पसंख्यकों का उत्पीडऩ हुआ है। 
- कश्मीर में उत्पीडऩ का आरोप लगाने वाले पाकिस्तान ने ऊल-जुलूल बयान दिया लेकिन यूएन की रिपोर्ट ने उसकी पोल खोल दी।
- इस बिल के आने से पाकिस्तान और बांग्लादेश में जो अल्पसंख्यकों का उत्पीडऩ हो रहा था वह अब एक दस्तावेजी रिकॉर्ड बन गया है, जुबानी जमा खर्च नहीं है। भारत में जितने लोगों को यहां नागरिकता दी जाएगी ये दोनों देश उतने ही एक्सपोज होंगे। 
- इस बिल के पास होने के बाद ही बांग्लादेश ने रोहिंग्याओं को वापस लेने के लिए म्यांमार पर दबाव बना शुरू कर दिया है। 
- इस बिल के आने के बाद भारत में रह रहे तमाम अल्पसंख्यक पीडि़त खुलकर बता सकेंगे कि वे किस देश से आए हैं, इससे इन देशों की और पोल खुलेगी। इसके चलते इनको अपने यहां उन कट्टरपंथी ताकतों के खिलाफ खड़ा होना पड़ेगा, जिनका उपयोग ये दोनों देश  भारत को ब्लैकमेल करने के लिए करते हैं। 

विपक्ष ने क्या छिपाया अपना दर्द
- विपक्ष को पता है कि इसका भारत के नागरिकों पर असर नहीं पडऩे वाला लेकिन 370, राम मंदिर, तीन तलाक पर प्रतिरोध न होना, सबकुछ शांति से निपट जाने पर विपक्ष काफी चकित था, उसे इस तरह का निष्कंटक राज पसंद नहीं आ रहा था। 
- इसलिए उसने एनआरसी का डर दिखाकर लोगों को भड़काया, लेकिन देश में इतनी हिंसा हो गई इससे विपक्ष का ये पांसा भी उल्टा ही पड़ता दिखाई दे रहा है। 
- अमित शाह का ये कहना कि रोहिंग्या को हम रहने नहीं देंगे, एनआरसी तो हम लेकर ही आएंगे। भारत में पिछले 70 साल में इतनी स्पष्टता से संसद में किसी नेता ने भाषण नहीं दिया था। इस भाषण से देश के बहुत से स्वयंभू लोगों ने खुद को बहुत अपमानित महसूस किया, उनकी अकड़ को ठेस पहुंची। 
- मौलाना, पर्सनल लॉ बोर्ड, फतवेबाजों के फफोले भी इस बिल के माध्यम से फूट पड़े जो पिछले कई महीनों से इस सरकार की कारगुजारियों से कलेजे में पड़े हुए थे। इन्हें अपनी भड़ास निकालने का मौका मिल गया। 

अब आगे क्या
- मौलानाओं, धर्म के ठेकेदारों, पर्सनल लॉ बोर्ड जैसी अवैध संस्थाओं को डर है कि ये सरकार कॉमन सिविल कोड, जनसंख्या नियंत्रण कानून, एनआरसी पर बहुत तेजी से काम कर सकती है, इसलिए इसका एक ही उपाय है हिंसा। हिंसा फैलाकर देश-दुनिया का ध्यान खींचो, सरकार अपने आप कदम पीछे खींच लेगी। 
- सरकार इसको लिटमस टेस्ट भी मान सकती है क्योंकि 370, राम मंदिर, तीन तलाक पर जिस तरह से शांति रही थी, उससे सरकार मुगालते में आ गई थी, अब सरकार आगे की चीजों को करने से पहले अपनी जरूरी तैयारी करके रखेगी। 
- अब शायद हिन्दू बोलते ही चीखने, हिंसा करने वालों को शायद समझ में आ जाए कि एक तो चीखने का कोई फायदा नहीं, दूसरा आप लोग एक्सपोज हो चुके हो और तीसरा इस देश के नागरिक हिन्दू भी हैं,  उनके लिए भी कुछ करने की जिम्मेदारी सरकार की है, सिर्फ एक ही समुदाय का तुष्टिकरण नहीं किया जा सकता। 
- इस सख्ती का तात्कालिक फायदा ये होता दिख रहा है कि फिलहाल बाकी देशों से घुसपैठिए थोड़ा ठिठकेंगे, जो खिसक सकते हैं वे तुरंत यहां से खिसकेंगे।
- भारत को सराय समझने वाले यहां आने से पहले दस बार सोचेंगे। पड़ोसी सरकारें भी शायद हमारी सरकारों को गंभीरता से लेने लगेंगी, क्योंकि अब चीजें रिकॉर्ड पर आएंगी, हवाई किले बनाने के दिन लद गए।
#nrc #amitshah #CAA

गुरुवार, 19 दिसंबर 2019

किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है "

जिन ने राहत इन्दोरी के शेर को शान से पढ़ा कि
"सभी का खून है शामिल यहाँ की मिटटी में
किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है "
तो - उनको उन्ही की भाषा में मुँहतोड़ जवाब :
ख़फ़ा होते हैं होने जाने दो, घर के मेहमान थोड़ी हैं
जहाँ भर से लताड़े जा चुके हैं , इनका मान थोड़ी है
ये कान्हा राम की धरती, सजदा करना ही होगा
मेरा वतन ये मेरी माँ है, लूट का सामान थोड़ी है
मैं जानता हूँ, घर में बन चुके हैं सैकड़ों भेदी
जो सिक्कों में बिक जाए वो मेरा ईमान थोड़ी है
मेरे पुरखों ने सींचा है लहू के कतरे कतरे से
बहुत बांटा मगर अब बस, ख़ैरात थोड़ी है
जो रहजन थे उन्हें हाकिम बना कर उम्र भर पूजा
मगर अब हम भी सच्चाई से अनजान थोड़े हैं ?
बहुत लूटा फिरंगी ने कभी बाबर के पूतों ने
ये मेरा घर है मेरी जाँ, मुफ्त की सराय थोड़ी है...
बिरले मिलते है सच्चे मुसलमान दुनिया में
हर कोई अब्दुल हमीद और कलाम थोड़ी है ।।
कुछ तो अपने भी शामिल है वतन तोड़ने में
अब ये बरखा और रविश मुसलमान थोड़ी है ।
नही शामिल है तुम्हारा खून इस मिट्टी में,
ये तुम्हारे बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है ।।

बुधवार, 18 दिसंबर 2019

गौर से पढें*, क्यूँ भारत के अस्तित्व के लिए CAB और NRC आख़िरी मौका

*गौर से पढें*, क्यूँ भारत के अस्तित्व के लिए CAB और NRC आख़िरी मौका हैं 👇👇👇

📢 *लेबनान की कहानी*

70 के दशक में *लेबनान* अरब का एक ऐसा मुल्क था । जिसे *'अरब का स्वर्ग'* कहा जाता था । और इसकी राजधानी *बेरूत* को *'अरब का पेरिस'*। लेबनान एक progressive, tolerant और multi-cultural society थी, ठीक वैसे ही जैसे *भारत* है।

लेबनान में दुनिया की बेहतरीन Universities थीं । जहाँ पूरे अरब से बच्चे पढ़ने आते थे । और फिर वहीं रह जाते थे, काम करते थे, मेहनत करते थे। लेबनान की banking दुनिया की श्रेष्ठ banking व्यवस्थाओं में शुमार थी। Oil न होने के बावजूद लेबनान एक शानदार economy थी।

लेबनान का समाज कैसा था ।  इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है ।  कि 60 के दशक में बहुचर्चित हिंदी फिल्म *An Evening in Paris* दरअसल Paris में नहीं बल्कि लेबनान में shoot की गई थी।

60 के दशक के उत्तरार्ध में वहाँ *जेहादी ताकतों* ने सिर उठाना शुरू किया। 70 में जब *Jordan* में अशांति हुई , तो लेबनान ने *फिलिस्तीनी शरणार्थियों* के लिए दरवाज़े खोल दिए - _आइये, स्वागत है!_ 1980 आते-आते लेबनान की ठीक वही हालत हो गयी जो आज *सीरिया* की है।

लेबनान की *Christian आबादी* को शरणार्थी बनकर घुसे जिहादियों ने ठीक उसी तरह मारा जैसे सीरिया के ISIS ने मारा। *पूरे के पूरे शहर में पूरी Christian आबादी को क़त्ल कर दिया गया।* कोई बचाने नहीं आया।

किसी समाज का एक छोटा-सा हिस्सा भी उन्मादी जिहादी हो जाए । तो फिर शेष peace loving society का कोई महत्त्व नहीं रहता। वो irrelevant हो जाते हैं। लेबनान की कहानी ज़्यादा पुरानी नहीं सिर्फ 25-30 साल पुरानी है।

लेबनान के इतिहास से बहुत कुछ सीखने की ज़रूरत है। और कोई सीखे न सीखे भारत को लेबनान के इतिहास से सीखने की ज़रूरत है। *रोहिंग्याओं, बाँग्लादेशी घुसपैठियों* और *सीमान्त प्रदेशों* में पल रहे जेहादियों से सतर्क रहने की ज़रूरत है।

ऐसी ताकतों के विरूद्ध एकजुट होइये । जो जेहादियों की समर्थक हैं । और इनका समर्थन दे रही  पार्टियों , संस्थाओ, औऱ इनसे जुड़े लोगों का बहिष्कार करिये।
चुप मत बैठिये।
पढ़िए, समझिये और दूसरों को
 भी समझाइए। 

*वंदे मातरम*
जय भारत 
🙏🙏🙏

सोमवार, 16 दिसंबर 2019

मोदी जी हमारे देश भारत के लिए राजनीतिक औषधि हैं

आयुर्वेद में शहद को अमृत के समान माना गया हैं और मेडिकल साइंस भी शहद को सर्वोत्तम पौष्टिक और एंटीबायोटिक भंडार मानती हैं लेकिन आश्चर्य इस बात का हैं कि शहद की एक बूंद भी अगर कुत्ता चाट ले तो वह मर जाता हैं यानी जो मनुष्यों के लिये अमृत हैं वह *शहद कुत्ते के लिये जहर है*..!!!

दूसरा # देशी_घी शुद्ध देशी गाय के घी को आयुर्वेद अमृत मानता हैं और मेडिकल साइंस भी इसे औषधीय गुणों का भंडार कहता हैं पर आश्चर्य ये हैं कि मक्खी घी नहीं खा सकती *अगर गलती से देशी घी पर मक्खी बैठ भी जाये तो अगले पल वह मर जाती है*। इस अमृत समान घी को चखना भी मक्खी के भाग्य में नहीं होता!

# मिश्री .. इसे भी अमृत के समान मीठा माना गया हैं आयुर्वेद में हाथ से बनी मिश्री को श्रेष्ठ मिष्ठान्न बताया गया हैं और मेडिकल साइंस हाथ से बनी मिश्री को सर्वोत्तम एंटबायोटिक मानता है लेकिन आश्चर्य हैं कि अगर खर (गधे) को एक डली मिश्री खिला दी जाए तो कुछ समय पश्चात ही उसके प्राण पखेरू उड़ जाएंगे! *ये अमृत समान श्रेष्ठ मिष्ठान मिश्री गधा नहीं खा सकता हैं* !!!

नीम के पेड़ पर लगने वाली पकी हुई #निम्बोली में सब रोगों को हरने वाले औषधीय गुण होते हैं और आयुर्वेद उसे सर्वोत्तम औषधि ही कहता हैं मेडिकल साइंस भी नीम के बारे में क्या राय रखता है। आप जानते होंगे! लेकिन आश्चर्य ये हैं कि रात दिन नीम के पेड़ पर रहने वाला #कौवा अगर गलती से निम्बोली को चख भी ले तो उसका गला खराब हो जाता हैं *अगर निम्बोली खा ले तो कौवे की मृत्यु निश्चित है*....!!!

इस धरती पर ऐसा बहुत कुछ हैं जो अमृत समान हैं, अमृत_तुल्य है औषधीय है.....पर इस धरती पर कुछ ऐसे जीव भी हैं जिनके भाग्य में वह अमृत भी नहीं हैं ...!! 

*मोदी जी भारत के लिये #अमृत समान ही हैं*     

पर भारत के  *#मक्खी_कुत्ते_कौवे_गधे* और मीडिया के कीड़ों आदि को अमृत समान औषध की महत्ता समझाने में अपना समय नष्ट न कीजिये.....इनके भाग्य में वो अमृत ही नहीं है....ये जीवन भर गंदगी में ही सांस लिये हैं। इसलिये उसे ही अपना सर्वश्रेष्ठ प्रारब्ध समझतें हैं...!

मोदी जी हमारे देश भारत के लिए *राजनीतिक औषधि हैं*।क्योंकि वो मेरे भारत को खोखला और बीमार करने वालों से मुक्त करा *भारत को विश्व गुरु बना कर ,सामरिक शक्ति सिद्ध कर भारतीयों का मस्तक गर्व से ऊंचा करने में रात दिन लगे है*। 

भारत के इन कुत्ते,गधे, मक्खी जैसों को समझ में नहीं आ रहा। ये तो एकजुट होकर अमृत को विष सिद्ध करने में जी जान से लगे हैं। देश को विश्व पटल पर पहले जैसा दीन-हीन अशिक्षित, सम्मान विहीन, दरिद्र बनाने के अनेकों प्रयास में लगे है।

*आप अपने आप को किस श्रेणी में रखते हैं। ये आपके अपने उपर निर्भर है। इसलिए आने वाली पीढ़ियों के लिए हिन्दू समाज के लिए कुछ तो अच्छा करो। जागो और जगाओ।*
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