वेदों में " माँसाहार " और " बली " निषेध है
अक्सर ऐसी तस्वीरें और कुछ श्लौक दिखा कर
हिन्दु ( सनातन ) धर्म को बदनाम करने की कोशिश की जाती है जानें सत्य....
पहले मुगलों और फिर अंग्रेजों ने मैक्समूलर के द्वारा फिर भीमराव अंबेडकर ने वेद पुराणों का गलत अर्थ बताकर और ई.वी.पेरियार ने ट्रु रामायण नाम की पुस्तक लिखकर जिसका हिन्दी में सच्ची रामायण नाम से अनुवाद हुआ है ऐसे बहुत से नाम हैं ....
हिन्दु (सनातन) धर्म को बदनाम करने के लिए समय समय पर
हिन्दु धर्म के वेद पुराणों में मिलावट की गई है और अाज भी मुस्लिम संगठन और ईसाई ,नवबौद्ध लगातार इंटरनैट पर ब्लौग लिखकर बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन नकल के लिऐ भी अक्ल की जरूरत होती है एक ही धर्मग्रंथ में दो विपरीत श्लौक नहीं होते इतनी इन्हें अक्ल नहीं थी
और ऐसी तस्वीरें ज्यादातर जहाँ पर बौद्धों की जनसंख्या ज्यादा है वहाँ की हैं क्योंकि बौद्धों में तांत्रिक प्रक्रिया का प्रचलन है वहीं पर ऐसा किया जाता है हिन्दु धर्म ऐसा नहीं किया जाता है....
वेदों में मांसाहार निषेध
वेद में माँस भक्षण का स्पष्ट विरोध
ऋग्वेद ८.१०१.१५ – मैं समझदार मनुष्य को कहे देता हूँ की तू बेचारी बेकसूर गाय की हत्या मत कर, वह अदिति हैं अर्थात काटने- चीरने योग्य नहीं हैं.
ऋग्वेद ८.१०१.१६ – मनुष्य अल्पबुद्धि होकर गाय को मारे कांटे नहीं.
अथर्ववेद १०.१.२९ –तू हमारे गाय, घोरे और पुरुष को मत मार.
अथर्ववेद १२.४.३८ -जो(वृद्ध) गाय को घर में पकाता हैं उसके पुत्र मर जाते हैं.
अथर्ववेद ४.११.३- जो बैलो को नहीं खाता वह कष्ट में नहीं पड़ता हैं
ऋग्वेद ६.२८.४ –गोए वधालय में न जाये
अथर्ववेद ८.३.२४ –जो गोहत्या करके गाय के दूध से लोगो को वंचित करे , तलवार से उसका सर काट दो
यजुर्वेद १३.४३ –गाय का वध मत कर , जो अखंडनिय हैं
अथर्ववेद ७.५.५ –वे लोग मूढ़ हैं जो कुत्ते से या गाय के अंगों से यज्ञ करते हैं
यजुर्वेद ३०.१८-गोहत्यारे को प्राण दंड दो
मनुस्मृती में मांसाहार निषेध
स्वामी दयानंद के अनुसार मनु स्मृति में वही ग्रहण करने योग्य हैं जो वेदानुकुल हैं और वह त्याग करने योग्य हैं जो की वेद विरुद्ध हैं।
महाभारत में मनु स्मृति के प्रक्षिप्त होने की बात का समर्थन इस प्रकार किया हैं:-
महात्मा मनु ने सब कर्मों में अहिंसा बतलाई हैं, लोग अपनी इच्छा के वशीभूत होकर वेदी पर शास्त्र विरुद्ध हिंसा करते हैं। शराब, माँस,द्विजातियों का बली, ये बातें धूर्तों ने फैलाई हैं, वेद में यह नहीं कहा गया हैं। . शांति पर्व मोक्ष धर्म अध्याय २६६
मनुस्मृती में मांसाहार निषेध
माँस खाने के विरुद्ध मनु स्मृति की साक्षी
जिसकी सम्मति से मारते हो और जो अंगों को काट काट कर अलग करता हैं। मारने वाला तथा क्रय करने वाला,विक्रय करनेवाला,पकानेवाला, परोसने वाला तथा खाने वाला ये ८ सब घातक हैं। जो दूसरों के माँस से अपना माँस बढ़ाने की इच्छा रखता हैं, पितरों,देवताओं और विद्वानों की माँस भक्षण निषेधाज्ञा का भंग रूप अनादर करता हैं उससे बढ़कर कोई भी पाप करने वाला नहीं हैं।
मनु स्मृति ५/५१,५२
मद्य, माँस आदि यक्ष,राक्षस और पिशाचों का भोजन हैं। देवताओं की हवि खाने वाले ब्राह्मणों को इसे कदापि न खाना चाहिए।
मनु स्मृति ११/७५
जिस द्विज ने मोह वश मदिरा पी लिया हो उसे चाहिए की आग के समान गर्म की हुई मदिरा पीवे ताकि उससे उसका शरीर जले और वह मद्यपान के पाप से बचे। मनुस्मृति ११/९०
इसी अध्याय में मनु जी ने श्लोक ७१ से ७४ तक मद्य पान के प्रायश्चित बताये हैं।
जय जय श्रीराम