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रविवार, 20 नवंबर 2011

दिन की शुरुआत करें इस विष्णु मंत्र से..पैसों से भरी रहेगी जेब व तिजोरी

परिवार, व्यवसाय हो या कार्यक्षेत्र, मुखिया के रूप में जिम्मेदारियों का वहन करते वक्त कार्य कुशलता, अच्छे व्यवहार, बोल व विचारों के साथ सबसे महत्वपूर्ण होता है धन का सही प्रबंधन। इसमें की गई किसी भी प्रकार की कोताही परिवार को बिखरने, व्यवसाय को चौपट करने या कार्यक्षेत्र में अपयश का कारण बनती है।

यही कारण है कि हर इंसान पारिवारिक  या व्यावसायिक तरक्की के लिए आर्थिक रूप से मजबूत बने रहने की कोशिश व कामना करता है। ऐसे ही प्रयासों में धार्मिक उपाय भी अपनाए जाते हैं।

शास्त्रों में धन संपन्न बने रहने के लिए ही जगत पालक व लक्ष्मीपति भगवान विष्णु की उपासना बहुत ही मंगलकारी व कामनासिद्धि करने वाली मानी गई है। विशेष रूप से आर्थिक दुर्दशा से बचने के लिए ज्ञानशक्ति रूप वेदों में बताया गया एक मंत्र बहुत ही प्रभावी माना गया है।

मान्यता है कि यह वेद मंत्र सुबह विष्णु की पूजा के साथ बोलने पर तमाम आर्थिक कष्ट दूर करता है। कर्ज, रोजगार या आजीविका के अभाव से भी मुक्ति मिलती है। जानते हैं यह मंत्र विशेष -

- प्रात: स्नान के बाद देवालय या वैष्णव मंदिर में भगवान विष्णु को पंचामृत (दूध, दही, शहद, शक्कर व घी का मिश्रण) या जल से स्नान कराएं। बाद केसरिया चंदन, पीले फूल, पीले वस्त्र, तुलसी के पत्तो की माला या मंजरी के साथ दूध की बनी मिठाई का भोग लगाएं।

- पूजा के बाद पीले आसन पर बैठ दीप जलाकर तुलसी के दानों की माला से नीचे लिखे मंत्र का स्मरण धन संपन्नता व दरिद्रता से मुक्ति की कामना से यथासंभव 108 या विषम संख्याओं जैसे 11, 21 बार करें -

ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि। ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि।।

इस मंत्र का उच्चारण न आने पर इस नीचे बताए सरल शब्दों में अर्थ से पवित्र भावों के साथ प्रार्थना कर सकते हैं -

हे लक्ष्मी के स्वामी, आप सबसे बड़े दाता हैं। आपकी कृपा से धन्य भक्तों ने कहा है कि पूरे संसार में सारी कोशिशों में असफलता से निराश प्राणी जब आपसे याचना करे तो आप उस पर कृपा कर हर आर्थिक पीड़ा का अंत कर उसे संपन्न कर देते हैं। हे परमेश्वर, मुझे भी आर्थिक कष्टों से छुटकारा दें।

- मंत्र जप या प्रार्थना के बाद धूप, दीप व कर्पूर से विष्णु आरती करें। बुद्धि की शुद्धि के साथ चंदन मस्तक पर लगाएं, चरणामृत व प्रसाद ग्रहण करें।



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