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सोमवार, 27 जुलाई 2020

वो ज़माना और था..

वो ज़माना और था.......

 दरवाजों पे ताला नहीं भरोसा लटकता था , खिड़कियों पे पर्दे भी आधे होते थे,  ताकि रिश्ते अंदर आ सकें।

पड़ोसियों के आधे बर्तन हमारे घर और हमारे बर्तन उनके घर मे होते थे।
 पड़ोस के घर बेटी पीहर आती थी तो सारे मौहल्ले में रौनक होती थी , गेंहूँ साफ करना किटी पार्टी सा हुआ करता था 

वो ज़माना और था......
 जब छतों पर किसके पापड़ और आलू चिप्स सूख रहें है बताना मुश्किल था।

जब हर रोज़ दरवाजे पर लगा लेटर बॉक्स टटोला जाता था , डाकिये का अपने घर की तरफ रुख मन मे उत्सुकता भर देता था ।

वो ज़माना और था......
जब रिश्तेदारों का आना,
 घर को त्योहार सा कर जाता था , मौहल्ले के सारे बच्चे हर शाम हमारे घर ॐ जय जगदीश हरे गाते .....और फिर हम उनके घर णमोकार मंत्र गाते ।

 जब बच्चे के हर जन्मदिन पर महिलाएं बधाईयाँ गाती थीं....और बच्चा गले मे फूलों की माला लटकाए अपने को शहंशाह समझता था।

जब बुआ और मामा जाते समय जबरन हमारे हाथों में पैसे पकड़ाते थे...और बड़े आपस मे मना करने और देने की बहस में एक दूसरे को अपनी सौगन्ध दिया करते थे।

वो ज़माना और था ......
कि जब शादियों में स्कूल के लिए खरीदे काले नए चमचमाते जूते पहनना किसी शान से कम नहीं हुआ करता था , जब छुट्टियों में हिल स्टेशन नहीं मामा के घर जाया करते थे....और अगले साल तक के लिए यादों का पिटारा भर के लाते थे।

कि जब स्कूलों में शिक्षक हमारे गुण नहीं हमारी कमियां बताया करते थे।

वो ज़माना और था......
कि जब शादी के निमंत्रण के साथ पीले चावल आया करते थे , दिनों तक रोज़ नायन गीतों का बुलावा देने आया करती थी।

 बिना हाथ धोये मटकी छूने की इज़ाज़त नहीं थी।

वो ज़माना और था......
 गर्मियों की शामों को छतों पर छिड़काव करना जरूरी  था ,  सर्दियों की गुनगुनी धूप में स्वेटर बुने जाते थे और हर सलाई पर नया किस्सा सुनाया जाता था।

रात में नाख़ून काटना मना था.....जब संध्या समय झाड़ू लगाना बुरा था ।

वो ज़माना और था........
 बच्चे की आँख में काजल और माथे पे नज़र का टीका जरूरी था ,  रातों को दादी नानी की कहानी हुआ करती थी ,  कजिन नहीं सभी भाई बहन हुआ करते थे ।

वो ज़माना और था......
 जब डीजे नहीं , ढोलक पर थाप लगा करती थी.. गले सुरीले होना जरूरी नहीं था, दिल खोल कर बन्ने बन्नी गाये जाते थे , शादी में एक दिन का महिला संगीत नहीं होता था आठ दस दिन तक गीत गाये जाते थे।

वो ज़माना और था......
कि जब कड़ी धूप में 10 पैसे का बर्फ का पानी.... गिलास के गिलास पी जाते थे मगर गला खराब नहीं होता था, 
जब पंगत में बैठे हुए रायते का दौना तुरंत  पी जाते..... ज्यों ही रायते वाले भैया को आते देखते थे।
जब बिना AC रेल का लंबा सफर पूड़ी, आलू और अचार के साथ बेहद सुहाना लगता था।

वो ज़माना और था.......
जब सबके घर अपने लगते थे......बिना घंटी बजाए बेतकल्लुफी से किसी भी पड़ौसी के घर घुस जाया करते थे ,  किसी भी छत पर अमचूर के लिए सूखते कैरी के टुकड़े उठा कर मुँह में रख लिया करते थे ,  अपने यहाँ जब पसंद की सब्ज़ी ना बनी हो तो पडौस के घर कटोरी थामे पहुँच जाते थे।

वो ज़माना और था.....
जब पेड़ों की शाखें हमारा बोझ उठाने को बैचेन हुआ करती थी , एक लकड़ी से पहिये को लंबी दूरी तक संतुलित करना विजयी मुस्कान देता था ,  गिल्ली डंडा, चंगा पो, सतोलिया और कंचे दोस्ती के पुल हुआ करते थे।

वो ज़माना और था.....
 हम डॉक्टर को दिखाने कम जाते थे डॉक्टर हमारे घर आते थे....डॉक्टर साहब का बैग उठाकर उन्हें छोड़ कर आना तहज़ीब हुआ करती थी 
 सबसे पसंदीदा विषय उद्योग हुआ करता था....भगवान की तस्वीर चमक से सजाते थे।
 इमली और कैरी खट्टी नहीं मीठी लगा करती थी।

वो ज़माना और था.....
जब बड़े भाई बहनों के छोटे हुए  कपड़े ख़ज़ाने से लगते थे , लू भरी दोपहरी में नंगे पाँव गालियां नापा करते थे।
 कुल्फी वाले की घंटी पर मीलों की दौड़ मंज़ूर थी ।

वो ज़माना और था......
जब मोबाइल नहीं धर्मयुग, साप्ताहिक हिंदुस्तान, सरिता और कादम्बिनी के साथ दिन फिसलते जाते थे ,  TV नहीं प्रेमचंद के उपन्यास हमें कहानियाँ सुनाते थे।
 जब पुराने कपड़ों के बदले चमकते बर्तन लिए जाते थे।

वो ज़माना और था.......
स्वेटर की गर्माहट बाज़ार से नहीं खरीदी जाती थी। 
मुल्तानी मिट्टी से बालों को रेशमी बनाया जाता था 

वो ज़माना और था......
कि जब चौपड़ पत्थर के फर्श पे उकेरी जाती थी ,  पीतल के बर्तनों में दाल उबाली जाती थी , चटनी सिल पर पीसी जाती थी।

वो ज़माना और था.....
वो ज़माना वाकई कुछ और था।

हिंदी के मुहावरे, बड़े ही बावरे है,

बड़े बावरे हिन्दी के मुहावरे
          
हिंदी के मुहावरे, बड़े ही बावरे है,
खाने पीने की चीजों से भरे है...
कहीं पर फल है तो कहीं आटा-दालें है,
कहीं पर मिठाई है, कहीं पर मसाले है ,
फलों की ही बात ले लो...
 
 
आम के आम और गुठलियों के भी दाम मिलते हैं,
कभी अंगूर खट्टे हैं,
कभी खरबूजे, खरबूजे को देख कर रंग बदलते हैं,
कहीं दाल में काला है,
तो कहीं किसी की दाल ही नहीं गलती,
 
 
कोई डेड़ चावल की खिचड़ी पकाता है,
तो कोई लोहे के चने चबाता है,
कोई घर बैठा रोटियां तोड़ता है,
कोई दाल भात में मूसरचंद बन जाता है,
मुफलिसी में जब आटा गीला होता है,
तो आटे दाल का भाव मालूम पड़ जाता है,
 
 
सफलता के लिए बेलने पड़ते है कई पापड़,
आटे में नमक तो जाता है चल,
पर गेंहू के साथ, घुन भी पिस जाता है,
अपना हाल तो बेहाल है, ये मुंह और मसूर की दाल है,
 
 
गुड़ खाते हैं और गुलगुले से परहेज करते हैं,
और कभी गुड़ का गोबर कर बैठते हैं,
कभी तिल का ताड़, कभी राई का पहाड़ बनता है,
कभी ऊँट के मुंह में जीरा है,
कभी कोई जले पर नमक छिड़कता है,
किसी के दांत दूध के हैं,
तो कई दूध के धुले हैं,
 
 
कोई जामुन के रंग सी चमड़ी पा के रोई है,
तो किसी की चमड़ी जैसे मैदे की लोई है,
किसी को छटी का दूध याद आ जाता है,
दूध का जला छाछ को भी फूंक फूंक पीता है,
और दूध का दूध और पानी का पानी हो जाता है,
 
 
शादी बूरे के लड्डू हैं, जिसने खाए वो भी पछताए,
और जिसने नहीं खाए, वो भी पछताते हैं,
पर शादी की बात सुन, मन में लड्डू फूटते है,
और शादी के बाद, दोनों हाथों में लड्डू आते हैं,
 
 
कोई जलेबी की तरह सीधा है, कोई टेढ़ी खीर है,
किसी के मुंह में घी शक्कर है, सबकी अपनी अपनी तकदीर है...
कभी कोई चाय-पानी करवाता है,
कोई मख्खन लगाता है
और जब छप्पर फाड़ कर कुछ मिलता है,
तो सभी के मुंह में पानी आता है,
 
भाई साहब अब कुछ भी हो,
घी तो खिचड़ी में ही जाता है,
जितने मुंह है, उतनी बातें हैं,
सब अपनी-अपनी बीन बजाते है,
पर नक्कारखाने में तूती की आवाज कौन सुनता है,
सभी बहरे है, बावरें है
ये सब हिंदी के मुहावरें हैं...
 
ये गज़ब मुहावरे नहीं बुजुर्गों के अनुभवों की खान हैं...
सच पूछो तो हिन्दी भाषा की जान हैं...

हिन्दू तो असली पाकिस्तान का है जो वहां रहकर भी अपने को हिन्दू बोलता है

*हिन्दू तो असली पाकिस्तान का है जो वहां रहकर भी अपने को हिन्दू बोलता है*

*अध्यापक : "सबसे अधिक हिन्दुओ वाला देश बताओ ?"*

*छात्र : "पाकिस्तान !"*

*अध्यापक  (चौंककर) : "तो सबसे कम हिन्दुओं वाला देश कौन सा है ?"*

*छात्र : "हिंदुस्तान !"*

*अध्यापक (घबराकर) : "कैसे ?"*

*छात्र : "सर यहाँ हिन्दू तो 'न' के बराबर ही समझिए, यहां तो सबसे ज्यादा 'सेक्यूलर' ही रहते हैं; और फिर जाट, गुर्जर, ठाकुर, ब्राह्मण, लाला, पटेल, कुर्मी, यादव, सोनार, लोहार, बढ़ई, प्रजापति, केवट, धुनिया, मल्लाह, कोरी, चमार, ढाढ़ी, पासी, पासवान...आदि... आदि रहते हैं !!"*

*"फिर हिंदू कहां रहते हैं ??"*

*"सर सोचिए !*

*यदि हिन्दू होते तो, क्या अयोध्या में हिंदुओं के कातिल को सत्ता देते ??*

*यदि हिन्दू होते तो, क्या रामसेतु को काल्पनिक बताने वाले को सत्ता देते ??*

*यदि हिन्दू होते तो, क्या भगवा आतंकी कहने वाले को सत्ता देते ??*

*यदि हिन्दू होते तो, क्या कश्मीर में हिंदुओं को मौत के घाट उतारने वाले को सत्ता देते ??*

*यदि हिन्दू होते तो, क्या दशहरा छोड़कर मोहर्रम मनाने वाले को सत्ता देते ??*

*यदि हिन्दू होते तो, क्या 'मन्दिर में जाने वाले लड़की छेड़ते हैं !' कहने वाले को सत्ता देते ??*

*यदि हिन्दू होते तो, क्या भगवान श्रीराम जी का प्रूफ मांगने वाले को सत्ता देते ??*

*यदि हिन्दू होते तो, क्या 8 राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक बनाने वाले को सत्ता देते ??*

*यदि हिन्दू होते तो, क्या 'इस देश के संसाधनों पे पहला हक़ मुसलमानों का है !' कहने वाले को सत्ता देते ??*

*यदि हिन्दू होते तो,क्या बुरहान, याकूब, ओसामा को शहीद कहने वाले को सत्ता देते ??*

*यदि हिन्दू होते तो, क्या देश के दो टुकड़े (भारत-पाकिस्तान) करने वाले को सत्ता देते ??"*

*अध्यापक आंखों में आंसू लिए : "वाह बेटे बहुत सही कहा !"*

 जय श्री राम 
*वन्दे मातरम् !* 🇮🇳

कविता नही यह सीधे सीधे,रामभक्तो को निमन्त्रण है!

*पाँच अगस्त बस पांच नही,*
*यह पंचामृत कहलायेगा!*
*एक रामायण फिरसे अब,*
*राम मंदिर का लिखा जाएगा!!*

*जितना समझ रहे हो उतना,*
*भूमिपूजन आसान न था!*
*इसके खातिर जाने कितने,*
*माताओं का दीप बुझा!!*

*गुम्बज पर चढ़कर कोठारी,*
*बन्धुओं ने गोली खाई थी!*
*नाम सैकड़ो गुमनाम हैं,*
*जिन्होंने जान गवाई थी!!*

*इसी पांच अगस्त के खातिर,*
*पांचसौ वर्षो तक संघर्ष किया!*
*कई पीढ़ियाँ खपि तो खपि,*
*आगे भी जीवन उत्सर्ग किया!!*

*राम हमारे ही लिए नही बस,*
*उतने ही राम तुम्हारे हैं!*
*जो राम न समझसके वो,*
*सचमुच किस्मत के मारे हैं!!*

*एक गुजारिस है सबसे बस,*
*दीपक एक जला देना!*
*पाँच अगस्त के भूमिपूजन में,*
*अपना प्रकाश पहुँचा देना!!*

*नही जरूरत आने की कुछ,*
*इतनी ही हाजरी काफी है!*
*राम नाम का दीप जला तो,*
*कुछ चूक भी हो तो माफी है!!*

*कविता नही यह सीधे सीधे,*
*रामभक्तो को  निमन्त्रण है!*
*असल सनातनी कहलाने का,*
*समझो कविता आमंत्रण है!!*

*जय श्रीराम, जय जय श्रीराम💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐*

अशोक सिंघल - कोटि कोटि नमन इस इस महामानव के अयोध्या संघर्ष को।

#अग्रकुल_के_महासूर्य - जिन्होंने अपने तप से खुद को श्री राम जी का सच्चा वंशज सिद्ध किया..
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ताजमहल बनाने में दो प्रकार के पत्थरों का उपयोग हुआ है। एक तो बहुमूल्य संगमरमर, जिसका उपयोग गुम्बद में हुआ। दूसरा एक साधारण पत्थर, जिसका उपयोग नींव में किया गया है, जिसकी ओर किसी का ध्यान नहीं होता। आज के लालची गुम्बद के पत्थर बनने के लिए मरे जा रहे , चाहे वो धर्मगुरु हो या म्लेच्छ ।अरे उनका नाम तक नहीं ले रहे जिन्होंने सत्याग्रह , आन्दोलन यहां तक कि लाठियां तक खाई ।

इस राममंदिर निर्माण में एक नींव का पत्थर हमेशा अपने जेहन में रखियेगा - अशोक सिंघल । आज सब लम्बरदार बने हुए हैं,लेकिन न आप को भूला हूँ ....न भूलने दूंगा... 

कमी खलेगी #अयोध्या_राममंदिर_आंदोलन का हनुमान जिसने आखरी सांस तक राम लला के लिए संघर्ष किया, मन्दिर तो बनेगा पर  इस ऐतिहासिक पल में #अशोक_सिंघल_जी  की कमी बहुत खलेगी। अयोध्या के संघर्ष का अग्रणी सेना पति जिसने राम लला के मन्दिर निर्माण के लिए अपने जीवन की आहुति मन्दिर की नींव में रखी। अशोक जी की कमी इस पल में भावुक कर देती है अशोक जी के संघर्ष पर हजार पोस्ट लिखूं तो भी कम है। बस यूं समझो ये हनुमान थे अयोध्या आंदोलन संघर्ष के। अशोक जी सिंघल के बिना अयोध्या के सारे अध्याय अधूरे, विश्व हिंदू परिषद ओर बाबूजी अयोध्या आंदोलन की रीढ़ थे आखरी सांस तक रामलला के मंदिर के लिए लड़ते रहे और भीषण संघर्ष की सफलता के कुछ वर्ष पूर्व ही राम जी ने अपने बजरंगी को अपने पास बुला लिया, अशोक जी शरीर से नही है पर उनकी आत्मा आज भी मन्दिर निर्माण के पत्थरों को साफ कर रही होगी सिलाओ को उठा उठाकर नीव के पास रख रही होगी, बिना मन्दिर निर्माण के अशोक सिंघल जी मर नही सकते वो आज भी डटे है मन्दिर निर्माण के पत्थरों की आवाज सुनलो, अशोक सिंघल जी आज भी हमारे साथ है।

आपके वो शब्द आज भी कानों में गूँजते हैं कि ; 2030 तक पूरा विश्व हिंदू ;हिंदी; हिन्दुस्तान का अनुसरण करेगा । ‘जो हिंदू हित की बात करेगा, वही देश पर राज करेगा।’, ‘अयोध्या तो बस झांकी है, काशी मथुरा बाकी है।’ 

कोटि कोटि नमन इस इस महामानव के अयोध्या संघर्ष को।

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