पित्त दोष
- जब शरीर में अग्नि तत्व की अधिकता हो जाए ; तो इसे पित्त दोष कहते है।
- पित्त बढ़ा हुआ हो तो नाड़ी देखते समय बीच वाली ऊँगली में स्पंदन अधिक महसूस होता है।यह ऐसा लगता है मानो मेंढक उछल रहा हो।
- पित्त यानी गर्मी बढ़ने से जिस तरह दूध कुनकुना रहने से उसमे जीवाणु
तेज़ गति से बढ़ते है और दही तुरंत जम जाता है ; वैसे ही शरीर में भी
कीटाणु तेज़ी से पनपते है। इससे किसी भी तरह का इन्फेक्शन होने की पूरी
संभावना होती है। अगर पित्त संतुलित हो तो शरीर किसी भी इन्फेक्शन से लड़कर
ख़त्म कर देता है।
- गर्मी ज़्यादा होती है , पसीना अधिक आयेगा , चेहरा लाल या पीला दिख सकता है . दांत पीले रहेंगे और जल्दी सड़ने की संभावना रहेगी।
- गर्मी अधिक होने से सभी धातु पिघल कर बहेंगे। इससे बहता हुआ ज़ुकाम ,
अत्याधिक कफ वाली खांसी होने की संभावना होगी। श्वेत प्रदर , रक्त प्रदर
आदि होने की संभावना रहेगी।
- गर्मी अधिक होने से ज़रूरी अंग जैसे किडनी खराब हो सकती है , हार्ट एन्लार्ज हो सकता है, बाल सफ़ेद हो सकते है।
- गर्मी अधिक होने से मुंह में दुर्गन्ध आ सकती है , पसीने में भी
दुर्गन्ध आ सकती है। पित्त संतुलित हो तो कितना भी पसीना आये उसमे कोई गंध
नहीं होगी।
- पिम्पल्स , फोड़े फुंसी आदि होने की संभावना बढ़ जाती है।
- सर दर्द , माइग्रेन आदि हो सकता है।
- पेट जल्दी जल्दी खराब होता है।
- क्रोध ,चिडचिडापन अधिक रहेगा।
- गुस्से से ,काम भावना से , ईर्ष्या की भावना से पित्त बढ़ता है।
- खान पान जैसे तिल , दाना , सुखा मेवा , मिर्च-मसाले , तैलीय पदार्थ ,
गाजर , ऊष्ण के खाद्य पदार्थों आदि के सेवन से पित्त बढ़ता है।
- सौंफ , धनिया ( सुखा या हरा ) , हिंग , अजवाइन , आंवला आदि पित्त को नियंत्रित करते है।
- सुबह सुबह छाछ , निम्बू पानी , नारियल पानी , मूली , फलों के रस आदि के सेवन से पित्त नहीं बढ़ता।
- रात को दूध में चम्मच गाय का घी मिलाकर लेने से पित्त नहीं बढ़ता।
- दिन में गर्म पानी में एक चम्मच घी मिलाकर पित्त और वात दोनों नियंत्रण में रखा जा सकता है।
- शरीर में पित्त का स्थान छोटी आंत होता है। गर्मियों में अक्सर पित्त
बढ़ जाता है और पसीने से वस्त्र भी पीले होने लगते है , तब एरंडी का तेल
लेने से एक दो दस्त हो कर छोटी आंत से पित्त निकल जाता है और ठंडक आती है।
- गोमूत्र त्रिदोषों का निवारण करता है ; पर पित्त प्रवृत्ति के लोगों को गाय का घी भी साथ में लेना चाहिए।
- जीवन के मध्य प्रहर यानी जवानी में पित्त बढ़ जाता है।
- दिन के मध्य प्रहर और रात्री के मध्य प्रहर में पित्त बढ़ता है। इस समय रोग की तीव्रता बढना पित्त रोग की और इशारा करता है।
- त्वचा में खुजली हो सकती है। डैंड्रफ भी तैलीय हो सकता है। बालों में भी पसीने की दुर्गन्ध आ सकती है।
पित्त दोष
- जब शरीर में अग्नि तत्व की अधिकता हो जाए ; तो इसे पित्त दोष कहते है।
- पित्त बढ़ा हुआ हो तो नाड़ी देखते समय बीच वाली ऊँगली में स्पंदन अधिक महसूस होता है।यह ऐसा लगता है मानो मेंढक उछल रहा हो।
- पित्त यानी गर्मी बढ़ने से जिस तरह दूध कुनकुना रहने से उसमे जीवाणु तेज़ गति से बढ़ते है और दही तुरंत जम जाता है ; वैसे ही शरीर में भी कीटाणु तेज़ी से पनपते है। इससे किसी भी तरह का इन्फेक्शन होने की पूरी संभावना होती है। अगर पित्त संतुलित हो तो शरीर किसी भी इन्फेक्शन से लड़कर ख़त्म कर देता है।
- गर्मी ज़्यादा होती है , पसीना अधिक आयेगा , चेहरा लाल या पीला दिख सकता है . दांत पीले रहेंगे और जल्दी सड़ने की संभावना रहेगी।
- जब शरीर में अग्नि तत्व की अधिकता हो जाए ; तो इसे पित्त दोष कहते है।
- पित्त बढ़ा हुआ हो तो नाड़ी देखते समय बीच वाली ऊँगली में स्पंदन अधिक महसूस होता है।यह ऐसा लगता है मानो मेंढक उछल रहा हो।
- पित्त यानी गर्मी बढ़ने से जिस तरह दूध कुनकुना रहने से उसमे जीवाणु तेज़ गति से बढ़ते है और दही तुरंत जम जाता है ; वैसे ही शरीर में भी कीटाणु तेज़ी से पनपते है। इससे किसी भी तरह का इन्फेक्शन होने की पूरी संभावना होती है। अगर पित्त संतुलित हो तो शरीर किसी भी इन्फेक्शन से लड़कर ख़त्म कर देता है।
- गर्मी ज़्यादा होती है , पसीना अधिक आयेगा , चेहरा लाल या पीला दिख सकता है . दांत पीले रहेंगे और जल्दी सड़ने की संभावना रहेगी।
- गर्मी अधिक होने से सभी धातु पिघल कर बहेंगे। इससे बहता हुआ ज़ुकाम ,
अत्याधिक कफ वाली खांसी होने की संभावना होगी। श्वेत प्रदर , रक्त प्रदर
आदि होने की संभावना रहेगी।
- गर्मी अधिक होने से ज़रूरी अंग जैसे किडनी खराब हो सकती है , हार्ट एन्लार्ज हो सकता है, बाल सफ़ेद हो सकते है।
- गर्मी अधिक होने से मुंह में दुर्गन्ध आ सकती है , पसीने में भी दुर्गन्ध आ सकती है। पित्त संतुलित हो तो कितना भी पसीना आये उसमे कोई गंध नहीं होगी।
- पिम्पल्स , फोड़े फुंसी आदि होने की संभावना बढ़ जाती है।
- सर दर्द , माइग्रेन आदि हो सकता है।
- पेट जल्दी जल्दी खराब होता है।
- क्रोध ,चिडचिडापन अधिक रहेगा।
- गुस्से से ,काम भावना से , ईर्ष्या की भावना से पित्त बढ़ता है।
- खान पान जैसे तिल , दाना , सुखा मेवा , मिर्च-मसाले , तैलीय पदार्थ , गाजर , ऊष्ण के खाद्य पदार्थों आदि के सेवन से पित्त बढ़ता है।
- सौंफ , धनिया ( सुखा या हरा ) , हिंग , अजवाइन , आंवला आदि पित्त को नियंत्रित करते है।
- सुबह सुबह छाछ , निम्बू पानी , नारियल पानी , मूली , फलों के रस आदि के सेवन से पित्त नहीं बढ़ता।
- रात को दूध में चम्मच गाय का घी मिलाकर लेने से पित्त नहीं बढ़ता।
- दिन में गर्म पानी में एक चम्मच घी मिलाकर पित्त और वात दोनों नियंत्रण में रखा जा सकता है।
- शरीर में पित्त का स्थान छोटी आंत होता है। गर्मियों में अक्सर पित्त बढ़ जाता है और पसीने से वस्त्र भी पीले होने लगते है , तब एरंडी का तेल लेने से एक दो दस्त हो कर छोटी आंत से पित्त निकल जाता है और ठंडक आती है।
- गोमूत्र त्रिदोषों का निवारण करता है ; पर पित्त प्रवृत्ति के लोगों को गाय का घी भी साथ में लेना चाहिए।
- जीवन के मध्य प्रहर यानी जवानी में पित्त बढ़ जाता है।
- दिन के मध्य प्रहर और रात्री के मध्य प्रहर में पित्त बढ़ता है। इस समय रोग की तीव्रता बढना पित्त रोग की और इशारा करता है।
- त्वचा में खुजली हो सकती है। डैंड्रफ भी तैलीय हो सकता है। बालों में भी पसीने की दुर्गन्ध आ सकती है।
- गर्मी अधिक होने से ज़रूरी अंग जैसे किडनी खराब हो सकती है , हार्ट एन्लार्ज हो सकता है, बाल सफ़ेद हो सकते है।
- गर्मी अधिक होने से मुंह में दुर्गन्ध आ सकती है , पसीने में भी दुर्गन्ध आ सकती है। पित्त संतुलित हो तो कितना भी पसीना आये उसमे कोई गंध नहीं होगी।
- पिम्पल्स , फोड़े फुंसी आदि होने की संभावना बढ़ जाती है।
- सर दर्द , माइग्रेन आदि हो सकता है।
- पेट जल्दी जल्दी खराब होता है।
- क्रोध ,चिडचिडापन अधिक रहेगा।
- गुस्से से ,काम भावना से , ईर्ष्या की भावना से पित्त बढ़ता है।
- खान पान जैसे तिल , दाना , सुखा मेवा , मिर्च-मसाले , तैलीय पदार्थ , गाजर , ऊष्ण के खाद्य पदार्थों आदि के सेवन से पित्त बढ़ता है।
- सौंफ , धनिया ( सुखा या हरा ) , हिंग , अजवाइन , आंवला आदि पित्त को नियंत्रित करते है।
- सुबह सुबह छाछ , निम्बू पानी , नारियल पानी , मूली , फलों के रस आदि के सेवन से पित्त नहीं बढ़ता।
- रात को दूध में चम्मच गाय का घी मिलाकर लेने से पित्त नहीं बढ़ता।
- दिन में गर्म पानी में एक चम्मच घी मिलाकर पित्त और वात दोनों नियंत्रण में रखा जा सकता है।
- शरीर में पित्त का स्थान छोटी आंत होता है। गर्मियों में अक्सर पित्त बढ़ जाता है और पसीने से वस्त्र भी पीले होने लगते है , तब एरंडी का तेल लेने से एक दो दस्त हो कर छोटी आंत से पित्त निकल जाता है और ठंडक आती है।
- गोमूत्र त्रिदोषों का निवारण करता है ; पर पित्त प्रवृत्ति के लोगों को गाय का घी भी साथ में लेना चाहिए।
- जीवन के मध्य प्रहर यानी जवानी में पित्त बढ़ जाता है।
- दिन के मध्य प्रहर और रात्री के मध्य प्रहर में पित्त बढ़ता है। इस समय रोग की तीव्रता बढना पित्त रोग की और इशारा करता है।
- त्वचा में खुजली हो सकती है। डैंड्रफ भी तैलीय हो सकता है। बालों में भी पसीने की दुर्गन्ध आ सकती है।
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