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रविवार, 28 अप्रैल 2024

धरती पर एक ऐसा लोक जहां कलयुग की अभी तक नहीं हुई एंट्री, यहां के बिना अधूरी है चारधाम यात्रा

 

🛕धरती पर एक ऐसा लोक जहां कलयुग की अभी तक नहीं हुई एंट्री, यहां के बिना अधूरी है चारधाम यात्रा

कलयुग के प्रभाव से बचने के लिए 88,000 ऋषि-मुनियों ने एक स्थान पर रहकर तप किया था। यह स्थान उन्हें स्वयं ब्रह्माजी ने उपलब्ध कराया था। मान्यता है कि इस स्थान पर सभी तीर्थों का वास रहता है। इसलिए इस स्थान की यात्रा के बिना आपके तीर्थ अधूरे रहते हैं।

कलयुग का दूसरा चरण चल रहा है। हर जगह कलयुग का प्रभाव देखने को मिलता है। लेकिन धरती पर खासकर भारत में एक ऐसी जगह है, जहां अभी तक कलयुग का प्रभाव नहीं पहुंचा है। ट्रैवलॉग में आज हम आपको ऐसी जगह लेकर चल रहे हैं जिसका इतिहास बहुत ही प्राचीन है। यह एक ऐसा तीर्थ स्थान है जहां के दर्शन के बिना आपकी चार धाम की यात्रा भी अधूरी मानी जाती है। इसे इस पावन भूमि का महान तीर्थ बताया गया है। इसे तीर्थों में तीर्थ कहा गया है। इसका वर्णन वेद-पुराण से लेकर हर हिंदू धर्मग्रंथ में मिलता है। श्रीमद्भागवत महापुराण, महाभारत, वायु पुराण, वामन पुराण, पद्म पुराण, शिव पुराण, देवी भागवत पुराण, यजुर्वेद का मंत्र भाग श्वेताश्वर उपनिषद्, प्रश्नोपनिषद, अग्नि पुराण, गरुड़ पुराण, स्कंद पुराण, विष्णु पुराण, कालिका तंत्र, कर्म पुराण, शक्ति यामल तंत्र, श्रीरामचरित मानस, योगिनी तंत्र आदि ग्रंथों में इस स्थान का उल्लेख मिलता है। यह वही स्थान है, जहां महापुराणों की रचना हुई। महाभारत काल में युधिष्ठिर और अर्जुन भी यहां आए थे। इतना ही नहीं प्राचीन काल में 88 हजार ऋषि-मुनियों ने इसी स्थान पर कठोर तपस्या की थी। इसलिए इसे तपोभूमि भी कहा जाता है। नैमिषारण्य का प्राचीनतम उल्लेख वाल्मीकि रामायण के युद्ध काण्ड में होता है। यहां उल्लेख है कि लव और कुश ने गोमती नदी के किनारे राम के अश्वमेध यज्ञ में सात दिनों में वाल्मीकि रचित काव्य का गायन किया था।

उत्तर प्रदेश के सीतापुर में नैमिषारण्य महान तीर्थ है । यह. लखनऊ से 80 किलोमीटर दूर गोमती नदी के तट पर स्थित यह प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ. इस स्थान को नैमिषारण्य, नैमिष या नीमषार के नाम से भी जाना जाता है। नैमिष यानी निमिष किंवा निमेष तथा आरण्य यानी अरण्य अर्थात वन क्षेत्र परमात्म तत्व का क्षेत्र.कहा जाता है, कि ब्रह्मा जी ने खुद भी इस स्थान को, ध्यान योग के लिए सबसे उत्तम बताया था। इस स्थान के मुख्य आकर्षण की बात करें तो इनमें चक्रतीर्थी, भूतेश्वरनाथ मंदिर, व्यास गद्दी, हवन कुंड, ललिता देवी का मंदिर, पंचप्रयाग, शेष मंदिर, हनुमान गढ़ी, शिवाला-भैरव जी मंदिर, पंच पांडव मंदिर, पंचपुराण मंदिर, मां आनंदमयी आश्रम, नारदानन्द सरस्वती आश्रम-देवपुरी मंदिर, रामानुज कोट, रुद्रावर्त आदि शामिल हैं।

चक्रतीर्थ (Chakratirtha Naimisharanya)

नैमिषारण्य स्टेशन से लगभग एक मील दूर चक्रतीर्थ सरोवर है.

यह एक बड़ा गोलाकार जलाशय है। घेरे के चारों ओर बाहर जल भरा रहता है, जिसमें श्रद्धालु स्नान करते हैं। जल में चलते हुए इस गोल चक्र की परिक्रमा भी करते हैं। जल के भरे हुए घेरे के बाद चारों ओर सीढ़ियां बनी हुई हैं। यहां विभिन्न देवी-देवताओं के मंदिर हैं। मुख्य मंदिर भूतनाथ महादेव का है.चक्रतीर्थ के बारे में कथा प्रचलित है कि एक बार अट्ठासी हजार ऋषि-मुनियों ने ब्रह्मा जी से निवेदन कि जगत कल्याण के लिए उन्हें तपस्या करनी है और तपस्या के लिए दुनिया में सर्वश्रेष्ठ पवित्र, सौम्य और शांन्त भूमि के बारे में बताएं. यह घटना महाभारत के युद्ध के बाद की है। ऋषि-मुनि कलयुग के प्रारंभ को लेकर भी चिंतित थे। ब्रह्मा जी ने अपने मन से एक चक्र उत्पन्न करके ऋषियों कहा कि इस चक्र के पीछे चलते हुए जाएं। जिस भूमि पर इस चक्र का मध्य भाग यानी नेमि खुद गिर जाए तो समझ लेना कि पॄथ्वी का मध्य भाग वही है। ब्रह्माजी ने यह भी कहा कि वह स्थान कलयुग के प्रभाव से मुक्त रहेगा। कहा जाता है कि इसी स्थान पर चक्र का नेमि गिरा था, जिस वजह से इसका नाम नैमिषारण्य पड़ा और यह जगह चक्रतीर्थ कहलाई। यह भी कहा जाता है कि नैमिषारण्य वो स्थान है जहां पर ऋषि दधीचि ने लोक कल्याण के लिए अपने दुश्मन देवराज इन्द्र को अपनी अस्थियां दान की थीं। ऐसी मान्यता है कि इस परम पवित्र भूमि के दर्शन बिना सभी तीर्थ अधूरे रहते हैं।

84 कोस की परिक्रमा

नैमिषारण्य की परिक्रमा भी की जाती है। यह 84 कोस की परिक्रमा है। परिक्रमा हर साल फाल्गुनमास की अमावस्या के बाद की प्रतिपदा तिथी से शुरू होकर पूर्णिमा तक चलती है। यहां पंचप्रयाग नाम से एक पक्का सरोवर है. सरोवर के किनारे अक्षयवट नामक वृक्ष हैं।

अन्य दर्शनीय स्थल

नैमिषारण्य में व्यास शुकदेव का मंदिर है। मंदिर के बाहर व्यासजी की गद्दी है। यहां दशाश्वमेध टीला पर एक मंदिर में श्रीकृष्ण और पांचों पांडवों की मूर्तियां हैं। यहीं पर चारों धाम मंदिर भी हैं। महर्षि गोपाल दास जी के द्वारा स्थापित जगन्नाथ धाम, बद्रीनाथ धाम, द्वारिकाधीश धाम और रामेश्वरम धाम के मंदिर हैं ।

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