लगता तो कुछ ऐसा ही है. अफगान सरकार, उसकी सेना और पूरा का पूरा एडमिनिस्ट्रेशन चरमरा चुका है. महत्वपूर्ण पदों पर बैठे लोग पहले ही देश छोड़कर भाग चुके हैं. सेना का मनोबल इतना गिरा हुआ है कि लड़ना तो छोड़िए, बिना एक गोली चलाए आत्मसमर्पण कर रही है.
ताजा जानकारी के अनुसार करीब 17 जिला मुख्यालयों पर आज सुबह तक कब्ज़ा हो चुका है
इसमे देश का दूसरा (कंधार), तीसरा (हेरात) और चौथा (मजार ए शरीफ) सबसे बड़ा शहर शामिल हैं. ये सिर्फ शहर ही नहीं बल्कि देश का सप्लाई लाइन भी है. अफगानिस्तान को पड़ोसी मुल्कों और दुनिया से जोड़ने वाली सड़के इन्हीं शहरो से होके जाती है.
मतलब कम शब्दों में कहें तो काबुल का पतन तय है. सवाल ये है कि ये आज होगा या कल या परसों…
इसके साथ ही भारत और पश्चिमी देशों द्वारा किए गए विकास के सारे काम पर पानी फिर गया है. पूरी दुनिया सन्न है और सारा ध्यान अपने फंसे हुए नागरिको को जैसे तैसे निकालने मे लगाया है.
खुद ही देखिए, पाक-अफगान सीमा पर तालिबानी अत्याचार से बचकर भागते लोग कैसे गिड़गिड़ा रहे हैं. पाकिस्तान क्या, अब कोई भी इनकी मदद नहीं कर पाएगा.
—————————————————-
अफगानिस्तान एक ब्लैकहोल से कम नहीं. यू ही नहीं इसे ग्रेवयार्ड ऑफ एम्पायर्स कहा जाता है. आप कितनी भी ताकत और पैसे लगा दो, कुछ समय के बाद आपको पीठ दिखाकर भागना ही पड़ेगा.
चलिए झांकते है इतिहास में उन साम्राज्यों पर जिन्होंने अफगानिस्तान पर कब्ज़ा तो किया पर ज्यादा दिन सम्भाल न सके.
प्रथम ईरानी साम्राज्य :
सिकंदर के सेनापति सेल्युक्स ने अफगानिस्तान के कुछ हिस्सों को अपने दामाद चंद्रगुप्त मौर्य को दहेज मे दिया था.
इस्लाम के उदय के बाद अरबों ने अफगानिस्तान पर कब्ज़ा कर लिया और मूलतः बौद्ध देश को इस्लामी बना दिया.
एक और ईरानी साम्राज्य. मौर्य और अब्बासिद को छोड़कर अबतक के सारे कब्ज़े ईरानीयों ने किए है.
महान मंगोल साम्राज्य
तुर्क-मंगोल तैमूर भी अफगानिस्तान के रास्ते ही भारत आया.
आखिरी प्रभावी विदेशी साम्राज्य जिसने अफगानिस्तान पर कब्ज़ा रखा. फिर उदय हुआ अहमद शाह अब्दाली (वही पानीपत वाला) का जिसे अफगानिस्तान का जनक कहा जाता है.
बाकी सोवियत संघ और अमेरिका का हश्र तो हम अपने आँखों के सामने देख ही रहे हैं.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी करें
टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.