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शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2011

सकल पदारथ है जग माहीं,करमहीन नर पावत नाहीं

सकल पदारथ एहि जग मांही, कर्महीन नर पावत नाही।

 

विधाता से विधान,विधान से विधि


तुलसीदास जी ने कहा है कि "सकल पदारथ है जग माहीं,करमहीन नर पावत नाहीं",लेकिन कर्म को करवाने के लिये जो शक्ति साथ चलती है उसके बारे में भी कहा है,-"बिनु पग चलै सुनै बिनु काना,कर बिनु करम करै विधि नाना",जब सभी कर्म वह शक्ति करवाती है तो शक्ति को समझने के लिये भी लिखा है,-"उमा दारु ज्योतिष की नाईं,सबहि नचावत राम गुसांई".

कर्म प्रधान विश्व रचि राखा, जो जस करहिं सो तस फल चाखा।

 

6 टिप्‍पणियां:

  1. यह चौपाई रामचरितमानस के कौन से काण्ड मे है

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  2. यह चौपाई रामचरितमानस के कौन से काण्ड मे है

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  3. सकल पदारथ है जग माही कर्म हीन नर पावत नाही यह चौपाई किस अध्याय में कौन से दोहा में है

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  4. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय श्री राधे जय श्री राधे जी आप बहुत बहुत आभार

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  5. तो होइहि सोई जो राम रची राखा का क्या मतलब है , मतलब राम के रचे हुए को कर्म से काटा जा सकता है ?

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  6. इसे तुलसीदास जी ने कब और कहाँ कहा है कृपया संदर्भ ग्रंथ देने की कृपा करें

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