क्या आपने कोलंबस का नाम सुना है? कैसे वह अपने छोटे से जहाज़ 'पिल्टा' कोलेकर अथाह सागर में नई दुनिया की खोज में निकल पड़ा था? उसका संकल्प बहुत प्रबल
था। जब उसका जहाज़ महासागर की लहरों से टक्कर ले रहा था, ऊपर आकाश और नीचे
अनंत जलराशि थी -ऐसे विकट समय में जहाज़ का एक मस्तूल खराब हो गया। पर
कोलंबस को कौन विचलित कर सकता था? उसने नाविकों को धन का प्रलोभन दिया।
नाविक आगेचले, पर केनरीज़ द्वीप के दो सौ मील पश्चिम में उसके कुतुबनुमा की
सुई खराब हो गई। अब तो मल्लाहों का रहा-सहा साहस भी टूट गया। इस प्रकार
समुद्र में अज्ञात दिशा की ओर बढ़ना मृत्यु से खेलना था। पर कोलंबस अपने
निश्चय पर अड़ा रहा। अंतत: उसके संकल्प की विजय हुई और नाविक आगे चलने को
तैयार हो गए। और 12 अक्टूबर, 1492 को उनका जहाज़ नई दुनिया- अमेरिका के
तट पर जाकर लग गया। यदि कोलंबस अपने निश्चय पर दृढ़ नहीं रहता और बाधाओं
से घबराकर अपना निश्चय बदल देता, तो वह कभी इस नई दुनिया की खोज नहीं कर
पाता। हर व्यक्ति में उतनी ही शक्ति छिपी हुई है, जितनी कोलंबस में थी। पर
कोई बिरला ही उसे समझ कर उसका उपयोग करता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि एक
एकड़ भूमि की घास में इतनी शक्ति होती है कि उससे
संसारकी सारी मोटरों का संचालन किया जासकता है। परंतु वह बिखरी हुई
अवस्था में है। केवल उस शक्ति को इंजन के पिस्टन रॉड पर केंद्रित करने
की आवश्यकता है। इसी तरह से ऐसे हज़ारों व्यक्ति हैं जो ज्ञानी हैं, जिनमें
शक्ति भरी पड़ी है, परंतु वे उसे इकट्ठा करके किसी निश्चित स्थान पर लाने में असमर्थ हैं। इसी कारण उन्हें विफल होना पड़ता है। शक्ति को बिखेर देने
से उसका अपव्यय ही नहीं होता, बल्कि काम करने का उत्साह भी नष्ट
हो जाता है। भारत की आजादी की लड़ाई में महात्मा गांधी ने देश को एक
नारा दिया था, 'करो या मरो।' इसके पीछे आशय यही था कि हमें यदि आज़ादी प्राप्त करनी है तो उसके लिए दृढ़ता से जुटना होगा। सारा देश दृढ़ता से उनकी बात पर अड़ गया। इसी का परिणाम था कि भारत बिना किसी रक्तपात के विदेशी शासन से मुक्त हो गया। इसीलिए सभी धर्मों में प्रतिज्ञा और संकल्प का बहुत महत्व है। इसका मूल उद्देश्य मनुष्य को मन से दृढ़ बनाना है। जब हम एक क्षेत्र में अपनी संकल्पशक्ति को विकसित कर लेते हैं, तो दूसरे क्षेत्रों में भी हम उसी प्रकार से सफलता प्राप्त कर सकते हैं।
संसारकी सारी मोटरों का संचालन किया जासकता है। परंतु वह बिखरी हुई
अवस्था में है। केवल उस शक्ति को इंजन के पिस्टन रॉड पर केंद्रित करने
की आवश्यकता है। इसी तरह से ऐसे हज़ारों व्यक्ति हैं जो ज्ञानी हैं, जिनमें
शक्ति भरी पड़ी है, परंतु वे उसे इकट्ठा करके किसी निश्चित स्थान पर लाने में असमर्थ हैं। इसी कारण उन्हें विफल होना पड़ता है। शक्ति को बिखेर देने
से उसका अपव्यय ही नहीं होता, बल्कि काम करने का उत्साह भी नष्ट
हो जाता है। भारत की आजादी की लड़ाई में महात्मा गांधी ने देश को एक
नारा दिया था, 'करो या मरो।' इसके पीछे आशय यही था कि हमें यदि आज़ादी प्राप्त करनी है तो उसके लिए दृढ़ता से जुटना होगा। सारा देश दृढ़ता से उनकी बात पर अड़ गया। इसी का परिणाम था कि भारत बिना किसी रक्तपात के विदेशी शासन से मुक्त हो गया। इसीलिए सभी धर्मों में प्रतिज्ञा और संकल्प का बहुत महत्व है। इसका मूल उद्देश्य मनुष्य को मन से दृढ़ बनाना है। जब हम एक क्षेत्र में अपनी संकल्पशक्ति को विकसित कर लेते हैं, तो दूसरे क्षेत्रों में भी हम उसी प्रकार से सफलता प्राप्त कर सकते हैं।
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