एक बात वह है दवा निर्माण में उपयुक्त कच्चे माल की गुणवत्ता।
एक ही साल्ट 10 हजार रु से लेकर 1 लाख रु तक की थोक कीमत में मिल सकता है
अर्थात दवाइयों के साल्ट के थोक मूल्य में बहुत अंतर पाया जाता है जिसमें
कहीं न कहीं गुणवत्ता जरूर मायने रखती है।
उदाहरण के लिए इस समय पैरासिटामोल पाउडर का थोक मूल्य रु200-1200 के बीच है.
सहज
सामान्य सिद्धांत (बेसिक थंब रूल) से समझा जा सकता है कि कौन मंहगा और
उच्च गुणवत्ता वाला साल्ट प्रयोग करते होंगे और क्यों - जबकि दूसरे लोग
क्यों सस्ता साल्ट यूज करते होंगे। पहले को अपनी साख बचाए रखना मुख्य
उद्देश्य है भले उत्पाद महंगा क्यों न हो जाए जबकि दूसरे को बाजार में अपनी
जगह बनानी है जिसके कारण लागत को घटाया जाता है कि खुदरा व्यापारियों को
ज्यादा कमीशन और उपभोक्ता को कम कीमत से लुभाया जा सके।
बाजार
से आप कैसे उम्मीद करते हैं कि वो बाजार की तरह व्यवहार न करके मानवीयता
और ईमानदारी का पालन करे?
हर जगह उद्यमी और निवेशक तो एक आम इंसान ही है
जिनकी औरों की तरह ही जरूरतें और ख्वाहिशें हैं।
सबसे
पहले यह समझना होगा कि पेटेंटेड मेडिसिन व नॉन-पेटेंटेड (जेनेरिक) मेडिसिन
और ब्रांडेड मेडिसिन व नॉन-ब्रांडेड मेडिसिन ये दो नहीं बल्कि तीन चीजें
हैं। राजनीति ने इन्हें गोलमाल कर रखा है।
पेटेंटेड मेडिसिन बिना लाइसेंस के कोई अन्य कंपनी नहीं बना सकती लेकिन पेटेंट अवधि खत्म होने के बाद उसे (जेनेरिक) कोई भी बना सकता है मतलब ब्रांड या नॉन-ब्रांड सब। तो मुद्दा ही नहीं क्योंकि जब पेटेंटेड मेडिसिन बिना पेटेंटधारी की अनुमति के कोई अन्य बना ही नही सकता तो सस्ता या महंगा कैसे होगा? मुद्दा है ब्रांडेड और नॉन-ब्रांडेड का जिसमे गुणवत्ता मायने रखती है।
सॉल्ट के थोक मूल्य के अलावा अन्य कारक जैसे श्रम, संयंत्र और मशीनरी, पैकिंग मेटेरियल, हाइजीन, दवा निर्माण में प्रयुक्त अन्य सामग्री (बॉन्डिंग, थिकनिंग, कोटिंग एजेंट आदि), छपाई, अनुकूल भंडारण और सुरक्षित परिवहन आदि में भी खर्च को घटाया बढ़ाया जा सकता है।
बाकी बचा औषधियों की गुणवत्ता के ऊपर सरकारी नियंत्रण, तो उस पर लिखने की क्या जरूरत? सबको पता है कि सरकारी तंत्र कैसे काम करता है।
बाकी ये मैने नहीं लिखा कि नॉन-ब्रांडेड दवा असर नहीं करेगी। मेरा कहने का मतलब है कि राजनीति और बाजार के दांव-पेंचों में फंसे बगैर अपनी हैसियत के अनुसार अच्छे डॉक्टर की सलाह माने क्योंकि कोई भी डाक्टर आपका दुश्मन नहीं है, हां थोड़ा बहुत लालच सबमें होता है; बाकी जमीन जायदाद बेच कर कुछ हासिल नहीं होता।
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