रामचरितमानस के अयोध्याकाण्ड में तुलसीदास जी ने भगवान् राम की स्तुति करते हुए कहा है ---
"चिदानन्दमय देह तुम्हारी ।
विगत विकार जान अधिकारी ।।"
आपका यह शरीर पंच-महाभूतों का विकार नहीं है , किन्तु सच्चिदानन्द-स्वरूप है ।
अर्थात् आपका स्थूल शरीर सत् , सूक्ष्म शरीर चित् तथा कारण शरीर आनन्द तत्त्व से बना है ।
जिसका आपकी अन्तरङ्ग लीला में प्रवेश हो चुका है , वह अधिकारी पुरुष ही आपके सच्चिदानन्द-स्वरूप विकार रहित शरीर के सम्बन्ध में जान सकता है ।
भागवत के दशम स्कन्ध के चौदहवें अध्याय में ब्रह्मा जी भी भगवान् श्रीकृष्ण के प्रति कहते हैं --
"आपका यह शरीर पंच-भौतिक नहीं है , किन्तु दिव्यातिदिव्य है , चिन्मय-अविनाशी है।"
वैशेषिक-दर्शन में कणाद जी ने छः प्रकार के स्थूल शरीरों का वर्णन किया है ---
१ . सर्वसाधारण प्राणियों के पार्थिव शरीर।
२. वरुण लोक के जल तत्त्व प्रधान जलीय शरीर ।
३. इन्द्र तथा ब्रह्मादि लोकों के अग्नि तत्त्व प्रधान दिव्य शरीर ।
४. वायु तत्त्व की प्रधानता वाले भूत-प्रेत-बेताल-कूष्माण्ड-ब्रह्मराक्षस आदिकों के स्थूल नेत्रों से न दिखाई देने वाले वायु तत्त्व प्रधान वायवीय शरीर ।
५. युक्त-योगियों की सत्य-संकल्पता से युक्त यौगिक शरीर अर्थात् योगी जब अपने प्रतिबिम्ब में धारणा-ध्यान-समाधि का संयम करते हैं , तब अनेक रूप धारण कर लेते हैं ।
जैसे भगवान् कृष्ण ने रास-क्रीड़ा में अनेक रूप धारण किये ।
भगवान् राम ने दण्डक वन में खर-दूषण-त्रिशिरा से युद्ध करते समय सबको राम रूप दे दिया ।
६. दिव्यातिदिव्य शरीर -- महाविष्णु , परम शिव, परम स्वरूपा दुर्गा , महागणपति एवं राम-कृषणादि अवतारों के शरीर दिव्यातिदिव्य कहलाते हैं ।
देवताओं के शरीर दिव्य है , उनके शरीरों से पसीना नहीं निकलता , बुढापा नहीं आता ।
परन्तु देवता आंख से देखते व कान से सुनते हैं अर्थात् उनकी प्रत्येक इन्द्रिय एक प्रकार का कर्म तथा ज्ञानेन्द्रिय द्वारा एक प्रकार का ज्ञान होता है ।
किन्तु दिव्यातिदिव्य राम-कृषणादि के शरीरों में यह विशेषता है कि उनकी प्रत्येक ज्ञानेन्द्रिय में पांचों प्रकार की ज्ञान शक्तियां रहती हैं , यह विशेषता देवताओं में नहीं होता ।
अतः मनुष्य तो क्या ब्रह्मवेत्ता महर्षि तथा देवता भी उनका नित्य वैकुण्ठ तथा गोलोक धाम और भगवान् का श्रीविग्रह अविनाशी-अमृत रूप कैसे है , नहीं समझ सकते ।
किन्तु भगवान् की विशेष कृपा तथा सद्गुरुओं की महती कृपा से प्रत्यक्ष अनुभव कर सकते हैं ।
यतिधर्म में कहा है --
दुर्लभो विषयत्यागो दुर्लभं तत्त्वदर्शनम् ।
दुर्लभा सहजावस्था सद्गुरो: करुणां विना ।।
जय श्री कृष्णा, ब्लॉग में आपका स्वागत है यह ब्लॉग मैंने अपनी रूची के अनुसार बनाया है इसमें जो भी सामग्री दी जा रही है कहीं न कहीं से ली गई है। अगर किसी के कॉपी राइट का उल्लघन होता है तो मुझे क्षमा करें। मैं हर इंसान के लिए ज्ञान के प्रसार के बारे में सोच कर इस ब्लॉग को बनाए रख रहा हूँ। धन्यवाद, "साँवरिया " #organic #sanwariya #latest #india www.sanwariya.org/
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गुरुवार, 28 जनवरी 2021
चिदानन्दमय देह तुम्हारी । विगत विकार जान अधिकारी
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