हम बीमार क्यों होते हैं ?
स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है. इसीलिए अब समय आ गया है की हम जानें कि ऐसा क्यों हो रहा है.
पहले महिलाएं घर का सारा काम काज करती थी और उनकी नोर्मल delivery होती
थी. आजकल हर तरह की सुविधाएँ हैं और बहुत सारा काम machines करती है तो
डेलिवेरी सिसेरियन होती है. जिसके कारण महिला को ज़िन्दगी भर परेशानी उठानी
पड़ती है. मेहनत मजदूरी करने वाली महिलाओं के आज भी साधारण प्रसव होते है.
बच्चा पैदा होते ही उसे incubator में रखना पड़ता है. ventilator लगाना पड़ता है. तो ऐसा क्यों हो रहा है.
आजकल के आधुनिक रसोईघर में महिलाओं को घंटों या दिन भर खड़ा रहना पड़ता है. इससे भी उनको कम उम्र में ही शारीरिक दर्द होने लगे हैं.
पहले आदमी को काम पर जाने के लिए पैदल चलना या साइकिल पर जाना पड़ता था. इससे एक प्रकार से शारीरिक व्यायाम हो जाता था.
अब तो कोई भी काम हो गाड़ी उठाई और चले. इससे शरीर को काम या मेहनत करने की आदत नहीं होती है और मांसपेशियों को बल नहीं मिलता है.
देखा गया है की आसन प्राणायाम करने वालों के शरीर फूलते नहीं है. लेकिन
जिम जनेवालें अगर जिम जाना बंद कर दें तो उनका शरीर फुल कर कुप्पा हो जाता
है और फिर कभी शेप में नहीं आ सकता. और टेढ़ी मेढ़ी कसरत करने के चक्कर में
मांसपेशियों को इतना खींच लेते हैं कि दर्द पीड़ित हो जाते हैं
आजकल मेहनत ना करने से और खाने के लिए गरिष्ठ पदार्थ उपलब्ध होने के कारण
कम उम्र में ही लड़के लड़कियों के पेट निकल आते हैं. उसे काम करने के लिए उट
पटांग कसरत कर के शरीर में दर्द पैदा कर लेते हैं या बेवजह भूखे रहकर
शरीर की प्रतिरोधात्मक शक्ति को गवां बैठते हैं.
प्रायः हम
देखते हैं की जानवरों और पशु पक्षियों के कोई दवाखाने नहीं होते हैं. लेकिन
जब से कुत्ते बिल्ली को पालने का फैशन आया है तब से कुत्ते बिल्ली के भी
दवाखाने भी खुल गए हैं और उनके भी खान पान की चीजें दुकानों में मिलने लगी
है. इसी बात पर एक फिल्म का सीन याद आ गया. आदमी दुकान पर कहता है "भई एक
पाकेट कुत्ते के बिस्किट देना. तो दुकानदार पूछता है कि यहीं खायेंगे या
साथ ले जायेंगे?"
इसका सीधा मतलब यह निकला कि आदमी खुद तो डूब ही
रहा है अपने साथ अन्य प्राणियों को भी ले डूब रहा है. "हम तो डूबेंगे सनम
तुम्हें भी ले डूबेंगे"
लिखना अभी जारी रहेगा यदि आप कुछ सुझाव दे सकते हैं, कुच्छ त्रुटियाँ ठीक कर सकते हैं तो हम आपके आभारी होंगे.
बच्चा पैदा होते ही उसे incubator में रखना पड़ता है. ventilator लगाना पड़ता है. तो ऐसा क्यों हो रहा है.
आजकल के आधुनिक रसोईघर में महिलाओं को घंटों या दिन भर खड़ा रहना पड़ता है. इससे भी उनको कम उम्र में ही शारीरिक दर्द होने लगे हैं.
पहले आदमी को काम पर जाने के लिए पैदल चलना या साइकिल पर जाना पड़ता था. इससे एक प्रकार से शारीरिक व्यायाम हो जाता था.
अब तो कोई भी काम हो गाड़ी उठाई और चले. इससे शरीर को काम या मेहनत करने की आदत नहीं होती है और मांसपेशियों को बल नहीं मिलता है.
देखा गया है की आसन प्राणायाम करने वालों के शरीर फूलते नहीं है. लेकिन जिम जनेवालें अगर जिम जाना बंद कर दें तो उनका शरीर फुल कर कुप्पा हो जाता है और फिर कभी शेप में नहीं आ सकता. और टेढ़ी मेढ़ी कसरत करने के चक्कर में मांसपेशियों को इतना खींच लेते हैं कि दर्द पीड़ित हो जाते हैं
आजकल मेहनत ना करने से और खाने के लिए गरिष्ठ पदार्थ उपलब्ध होने के कारण कम उम्र में ही लड़के लड़कियों के पेट निकल आते हैं. उसे काम करने के लिए उट पटांग कसरत कर के शरीर में दर्द पैदा कर लेते हैं या बेवजह भूखे रहकर शरीर की प्रतिरोधात्मक शक्ति को गवां बैठते हैं.
प्रायः हम देखते हैं की जानवरों और पशु पक्षियों के कोई दवाखाने नहीं होते हैं. लेकिन जब से कुत्ते बिल्ली को पालने का फैशन आया है तब से कुत्ते बिल्ली के भी दवाखाने भी खुल गए हैं और उनके भी खान पान की चीजें दुकानों में मिलने लगी है. इसी बात पर एक फिल्म का सीन याद आ गया. आदमी दुकान पर कहता है "भई एक पाकेट कुत्ते के बिस्किट देना. तो दुकानदार पूछता है कि यहीं खायेंगे या साथ ले जायेंगे?"
इसका सीधा मतलब यह निकला कि आदमी खुद तो डूब ही रहा है अपने साथ अन्य प्राणियों को भी ले डूब रहा है. "हम तो डूबेंगे सनम तुम्हें भी ले डूबेंगे"
लिखना अभी जारी रहेगा यदि आप कुछ सुझाव दे सकते हैं, कुच्छ त्रुटियाँ ठीक कर सकते हैं तो हम आपके आभारी होंगे.
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