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बुधवार, 29 दिसंबर 2021

सोचे आनेवाली पीढी।*घर चाहिये या दिखावे की आज़ादी

सभी से अनुरोध है कि एक बार पढ़ियेगा अवश्य । काफी समय के बाद किसी ने बेहद सुंदर आर्टिकल भेजा है ।

🙏🏽 

*नींव ही कमजोर पड़ रही है गृहस्थी की..!!* 


आज हर दिन किसी न किसी का घर खराब हो रहा है ।
*इसके मूल कारण और जड़ पर कोई नहीं जा रहा है, जो कि अति संभव है एवं निम्न हैं----------------।


*1, पीहरवालों की अनावश्यक दखलंदाज़ी।*

*2, संस्कार विहीन शिक्षा*

*3, आपसी तालमेल का अभाव* 

*4, ज़ुबानदराज़ी*

*5, सहनशक्ति की कमी*

*6, आधुनिकता का आडम्बर*

*7, समाज का भय न होना*

*8, घमंड झूठे ज्ञान का*

*9, अपनों से अधिक गैरों की राय*

*10, परिवार से कटना।*

 *11. घण्टों मोबाइल पर चिपके रहना ,और घर गृहस्थी की तरफ ध्यान न देना।* 

*12. अहंकार के वशीभूत होना ।* 

पहले भी तो परिवार होता था,
*और वो भी बड़ा।*
*लेकिन वर्षों आपस में निभती थी!*
*भय था , प्रेम था और रिश्तों की मर्यादित जवाबदेही भी।*
*पहले माँ बाप ये कहते थे कि मेरी बेटी गृह कार्य में दक्ष है*, 

*और अब कहते हैं कि मेरी बेटी नाज़ों से पली है । आज तक हमने तिनका भी नहीं उठवाया।*

*तो फिर करेगी क्या शादी के बाद ?*



*शिक्षा के घमँड में बेटी को आदरभाव,अच्छी बातें,घर के कामकाज सिखाना और परिवार चलाने के सँस्कार नहीं देते।*

*माँएं खुद की रसोई से ज्यादा बेटी के घर में क्या बना इसपर ध्यान देती हैं।*

*भले ही खुद के घर में रसोई में सब्जी जल रही है ।*

*मोबाईल तो है ही रात दिन बात करने के लिए।*

परिवार के लिये किसी के पास समय नहीं।

*या तो TV या फिर पड़ोसन से एक दूसरे की बुराई या फिर दूसरे के घरों में तांक-झांक।*

जितने सदस्य उतने मोबाईल।
*बस लगे रहो।*

बुज़ुर्गों को तो बोझ समझते हैं।
*पूरा परिवार साथ बैठकर भोजन तक नहीं कर सकता।*
सब अपने कमरे में।

*वो भी मोबाईल पर।*


बड़े घरों का हाल तो और भी खराब है।
*कुत्ते बिल्ली के लिये समय है।*
*परिवार के लिये नहीं*।



*सबसे ज्यादा बदलाव तो इन दिनों महिलाओं में आया है।*

*दिन भर मनोरँजन,* 

*मोबाईल,*

*स्कूटी..कार पर घूमना फिरना ,*

*समय बचे तो बाज़ार जाकर शॉपिंग करना*

*और ब्यूटी पार्लर।*

जहां घंटों लाईन भले ही लगानी पड़े ।

भोजन बनाने या परिवार के लिये समय नहीं।

*होटल रोज़ नये-नये खुल रहे हैं।*
जिसमें स्वाद के नाम पर कचरा बिक रहा है।

*और साथ ही बिक रही है बीमारी एवं फैल रही है घर में अशांति।*

आधुनिकता तो होटलबाज़ी में है।
*बुज़ुर्ग तो हैं ही घर में बतौर चौकीदार।*


पहले शादी ब्याह में महिलाएं गृहकार्य में हाथ बंटाने जाती थीं।
*और अब नृत्य सीखकर।*
क्यों कि *महिला संगीत* में अपनी नृत्य प्रतिभा जो दिखानी है।


*जिस महिला की घर के काम में तबियत खराब रहती है वो भी घंटों नाच सकती है।


👌🏻*घूँघट और साड़ी हटना तो चलो ठीक है,
*लेकिन बदन दिखाऊ कपड़े ?
*बड़े छोटे की शर्म या डर रहा क्या ?*
वरमाला में पूरी फूहड़ता।
*कोई लड़के को उठा रहा है।*
*कोई लड़की को उठा रहा है* 
*और हम ये तमाशा देख रहे हैं, खुश होकर, मौन रहकर।*



*माँ बाप बच्ची को शिक्षा तो बहुत दे रहे हैं ,
*लेकिन उस शिक्षा के पीछे की सोच ?*
ये सोच नहीं है कि परिवार को शिक्षित करें।
*बल्कि दिमाग में ये है कि कहीं तलाक-वलाक हो जाये तो अपने पाँव पर खड़ी हो जाये*
*ख़ुद कमा खा ले।*
*जब ऐसी अनिष्ट सोच और आशंका पहले ही दिमाग में हो तो रिज़ल्ट तो वही सामने आना ही है।*


 साइँस ये कहता है कि गर्भवती महिला अगर कमरे में सुन्दर शिशु की तस्वीर टांग ले तो शिशु भी सुन्दर और हृष्ट-पुष्ट होगा।
*मतलब हमारी सोच का रिश्ता भविष्य से है।*


बस यही सोच कि - अकेले भी जिंदगी जी लेगी गलत है ।
*संतान सभी को प्रिय है।*
लेकिन ऐसे लाड़ प्यार में हम उसका जीवन खराब कर रहे हैं।


*पहले पुराने समय में , स्त्री तो छोड़ो पुरुष भी थाने, कोर्ट कचहरी जाने से घबराते थे।*
*और शर्म भी करते थे।*
*लेकिन अब तो फैशन हो गया है।*
पढ़े-लिखे युवक-युवतियाँ *तलाकनामा* तो जेब में लेकर घूमते हैं।


*पहले समाज के चार लोगों की राय मानी जाती थी।*
*और अब तो समाज की कौन कहे , माँ बाप तक को जूते की नोंक पर रखते हैं।*


*सबसे खतरनाक है - ज़ुबान और भाषा,जिस पर अब कोई नियंत्रण नहीं रखना चाहता।*
कभी-कभी न चाहते हुए भी चुप रहकर घर को बिगड़ने से बचाया जा सकता है।
*लेकिन चुप रहना कमज़ोरी समझा जाता है।*आखिर शिक्षित जो हैं।
*और हम किसी से कम नहीं वाली सोच जो विरासत में मिली है।*


*आखिर झुक गये तो माँ बाप की इज्जत चली जायेगी।*
*गोली से बड़ा घाव बोली का होता है।*


*आज समाज ,सरकार व सभी चैनल केवल महिलाओं के हित की बात करते हैं।*


*पुरुष जैसे अत्याचारी और नरभक्षी हों।*
*बेटा भी तो पुरुष ही है।*
*एक अच्छा पति भी तो पुरुष ही है।*
*जो खुद सुबह से शाम तक दौड़ता है, परिवार की खुशहाली के लिये।*
*खुद के पास भले ही पहनने के कपड़े न हों।*
*घरवाली के लिये हार के सपने ज़रूर देखता है।*
बच्चों को महँगी शिक्षा देता है।


*मैं मानता हूँ पहले नारी अबला थी।*
माँ बाप से एक चिठ्ठी को मोहताज़।
*और बड़े परिवार के काम का बोझ।*


अब ऐसा है क्या ?
*सारी आज़ादी।*

मनोरंजन हेतु TV,

*कपड़े धोने के लिए वाशिंग मशीन,* 

*मसाला पीसने के लिए मिक्सी*, 

*रेडिमेड पैक्ड आटा,

*पैसे हैं तो नौकर-चाकर,*

*घूमने को स्कूटी या कार* 

*फिर भी और आज़ादी चाहिये।*

आखिर ये मृगतृष्णा का अंत कब और कैसे होगा ?

*घर में कोई काम ही नहीं बचा।*

दो लोगों का परिवार।

*उस पर भी ताना।।*
कि रात दिन काम कर रही हूं।


*ब्यूटी पार्लर आधे घंटे जाना आधे घंटे आना और एक घंटे सजना नहीं अखरता।*


लेकिन दो रोटी बनाना अखर जाता है।

*कोई कुछ बोला तो क्यों बोला ?*

*बस यही सब वजह है घर बिगड़ने की।*
खुद की जगह घर को सजाने में ध्यान दें , तो ये सब न हो।

*समय होकर भी समय कम है परिवार के लिये।*

ऐसे में परिवार तो टूटेंगे ही।


*पहले की हवेलियां सैकड़ों बरसों से खड़ी हैं।*और पुराने रिश्ते भी।

*आज बिड़ला सीमेन्ट वाले मजबूत घर कुछ दिनों में ही धराशायी।*

और रिश्ते भी महीनों में खत्म।


*इसका कारण है
रिश्तों मे *ग़लत सँस्कार*
*खैर हम तो जी लिये।*


सोचे आनेवाली पीढी।
*घर चाहिये या दिखावे की आज़ादी ?*


दिनभर बाहर घूमने के बाद रात तो घर में ही महफूज़ होती है ।
आप मानो या ना मानो आप की मर्जी मगर यह कड़वा सत्य है ।

प0 रघुवीर शर्मा

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