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शनिवार, 12 नवंबर 2022

बात वो नहीं जिसके चर्चे उङ रहे हैं.. महंगाई नही साहब खर्चे बढ गए हैं..*

*बात वो नहीं जिसके चर्चे उङ रहे हैं..*
*महंगाई नही साहब खर्चे बढ गए हैं..*


पहले नानी के घर मनती थी छुट्टियां
आम-अमरूद खाकर मनती थी छुट्टियां
अब तो गोआ मनाली के ट्रिप लग रहे हैं
*महंगाई नही साहब खर्चे बढ गए हैं...*

सरे राह रोज यूं ही नही मिलते थे लोग
पहले मीलो मील पैदल चलते थे लोग
आज दो कदम जाने को कैब बुक कर रहे हैं 
*महंगाई नही साहब खर्चे बढ गए हैं...*


घर में बने खाने पर स्वाद लेकर इतराते थे हम
नमक संग रोटी भी खुशी-खुशी खाते थे हम
अब तो हर वीकेंड सब होटल में दिख रहे हैं
*महंगाई नही साहब खर्चे बढ गए हैं...*

दो जोङी कपङे में पूरा साल निकलता था 
बस दिवाली के दिन नया जोङा सिलता था
अब तो शौक-फैशन के लिए शापिंग कर रहे हैं
*महंगाई नही साहब खर्चे बढ गए हैं...*

एक टीवी से पूरा मोहल्ला चलता था
एक दूरदर्शन से पूरा घर बहलता था 
अब तो चैनलो और वेब के जाल में फंस गए हैं
*महंगाई नही साहब खर्चे बढ गए हैं...*

पैंतीस पैसे के पत्र का इंतजार रहता था
और पत्र के अंदर हरेले का त्योहार रहता था
अब तो बस सब के हाथो में मोबाइल दिख रहे हैं
*महंगाई नही साहब खर्चे बढ गए हैं...*

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