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सोमवार, 29 अक्तूबर 2012

Acidity / अम्लता / पेट व छाती में जलन(Heartburn)"; उपाय :-

"Acidity / अम्लता / पेट व छाती में जलन(Heartburn)"; उपाय :-


01. ठंडे पेयों (aerated drinks) व चाय, काफी के सेवन से बचें. इनके स्थान पर प्राकृतिक व हर्बल पेय का सेवन करें.
02. गर्म/कुनकुने पानी का नियमित रूप से सेवन करें.
03. मौसम के अनुसार छिटके वाले पके केले, ककड़ी/खीरा व तरबूज का सेवन करें. तरबूज का रस काफी लाभप्रद होता है.
04. 'नारियल-पानी-सेवन' काफी लाभप्रद होता है.
05. ठंडे दूध के सेवन से लाभ मिलता है.
06. रात का भोजन, रात्रिशयन के कम से कम 3-4 घंटे पहले कर लें.
07. हरएक भोजन की मात्रा कम-कम लिया करें व दिन में प्रत्येक दो भोजनों के बीच का अंतराल 3 घंटे से ज्यादा न रखें.
08. तीखे मिर्च, मसाले, अचार, चटनी, सिरका व तेल-घी युक्त गरिष्ठ आहार के सेवन से बचें.
09. भोजन करने के आधा/एक घंटे बाद पुदीना की कुछ पत्तियाँ डालकर उबला हुआ एक गिलास पानी पियें.
10. लौंग के एक दाने को चूसने से भी प्रभावी लाभ मिलता है.
11. शकर से बचें. गाँव के देशी गुड़, बादाम, नींबू, व दही आदि का अल्प मात्रा में सेवन करें.
12. धूम्रपान व अन्य सभी प्रकार के नशे, शरीर एवं रक्त में एसिडिटी को तेजी से बढ़ाते हैं अतः इनका सेवन न करें.
13. लोंग, अदरक, छोटी हर्र्ड़ आदि चूसने से मुँह में बनने वाला सेलाईवा (लार) जलन (heartburn) में काफी लाभप्रद होता है.
14. अदरक व शहद का सेवन जिस रूप में भी हो सके नियमित रूप से करना चाहिये.
15. अन्न, घी-तेल व बारीक पिसे हुये आहार की तुलना में हरी साग-भाजी, सलाद, फल व मोटे/दरदरे आहार को वरीयता देना चाहिये.
16. एसिडिटी की हालात में तुरंत लाभ लेने हेतु 4 से 6 गिलास गरम पानी पीकर उल्टी करें. यह क्रिया तब तक दोहराएँ जब तक कि उल्टी में खट्टा पानी आना बंद न हो जावे. ध्यान रखें! जिन्हें हृदयरोग, उच्चरक्तचाप व पेट में अल्सर की शिकायत हो उन्हें वमन-क्रिया (उल्टी) नहीं करना चाहिये.

सौंदर्य के लिये फायदेमंद दही

सौंदर्य के लिये फायदेमंद दही
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अगर आपको अपनी उम्र छुपानी हो तो अपने चेहरे को एकदम दमकता हुआ सा बना लें। कॉस्मेटिक्स से आपके चेहरे की रंगत कुछ समय के लिए बरकरार रह सकती है लेकिन घर में मौजूद प्राकृतिक दही को चेहरे पर लगाने से उसकी रंगत हमेशा बरकरार बनी रहेगी। त्वचा की रंगत निखारने में दही महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। दही खाना ना केवल हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है बल्कि इसे शरीर
पर उबटन या किसी फेस पैक में मिला कर भी लगाया जा सकता है। तो ऐसे में चलिये जानते हैं दही का त्‍वचा पर निखार किस प्रकार से होता है।

दही के गुण-
रूखी त्‍वचा के लिये दही- यदि आपकी त्वचा रूखी है तो आप आधा कप दही में एक छोटा चम्मच जैतून का तेल तथा एक छोटा चम्मच नींबू का रस मिलाकर चेहरे पर लगाकर गुनगुने पानी से चेहरा धोने से त्वचा का रूखापन समाप्त हो जाता है।
रंग साफ करे- दही को आप किसी फेस पैक या फल के साथ मिला कर लगा सकती हैं या फिर ऐसे ही दही को त्वचा पर लगाकर त्वचा को गुनगुने पानी से धोने से आपकी त्वचा नर्म व मुलायम होती है। फलों व सब्जियों का पैक- एक कटोरी दही में आधी कटोरी गाजर, ककड़ी, पपीता आदि मौसमी फलों का रस मिलाकर चेहरे पर लगाने से आपकी त्वचा में निखार आएगा। आप चाहे तो मौसमी सब्जियों के रस को भी दही में मिलाकर पैक तैयार कर सकते हैं।
मुंहासे से मुक्‍ती दिलाए- दही में एंटी बैक्‍टीरियल और एंटी फंगल गुण होते हैं। पिंपल से छुटकारा पाने के लिये दही को सीधे चेहरे पर लगाएं और इसे 30 मिनट के बाद धो लें।
झुर्रियां मिटाए- अगर उम्र से पहले ही झुर्रियों ने अपना प्रकोप फैलाना शुरु कर दिया है तो इनकी रफतार को धीमा कर दें। झुर्रियों को प्राकृतिक तरीके से कम करें जिसके लिये दही का फेस मास्‍क लगाएं। इसमें मौजूद लैक्‍टिक एसिड मृत्‍य कोशिकाओं को दूर कर के पोर्स को टाइट करती हैं।
इस प्रकार गुणकारी दही से आपकी त्वचा में नई रंगत व चमक आती है। दही के साथ आप बेसन या चोकर मिलाकर भी चेहरे पर लगा सकती हैं। इस प्रकार दही का एक गुणकारी सौंदर्य प्रसाधन के रूप में प्रयोग कर आप अपनी त्वचा में निखार ला सकती हैं।

“हिन्दू धर्म मे चरण स्पर्श का वैज्ञानिक आधार”

“हिन्दू धर्म मे चरण स्पर्श का वैज्ञानिक आधार”

हिन्दू धर्म मे अपने से बड़े के अभिवादन के लिए चरण स्पर्श उत्तम माना गया है ॥ चरण स्पर्श से आपको सामने वाला व्यक्ति आयु,बल,यश,ज्ञान का आशीर्वाद देता है॥ आइये इसके वैज्ञानिक आधार की विवेचना करते हैं॥ वैज्ञानिक न्यूटन के नियम के अनुसार इस संसार में सभी वस्तुएँ "गुरूत्वाकर्षण" के नियम से बंधी हैं और गुरूत्व भार सदैव आकर्षित करने वाले की तरफ जाता है, हमारे शरीर में भी यही नियम है। सिर को उत्तरी ध्रुव और पैरों को दक्षिणी ध्रुव माना जाता है अर्थात् गुरूत्व ऊर्जा या चुंबकीय ऊर्जा या विद्युत चुंबकीय ऊर्जा सदैव उत्तरी ध्रुव से प्रवेश कर दक्षिणी ध्रुव की ओर प्रवाहित होकर अपना चक्र (cycle) पूरा करती है। इसका आशय यह हुआ कि मनुष्य के शरीर में उत्तरी ध्रुव (सिर) से सकारात्मक ऊर्जा प्रवेश कर दक्षिणी ध्रुव (पैरों) की ओर प्रवाहित होती है और दक्षिणी ध्रुव पर यह ऊर्जा असीमित मात्रा मे स्थिर हो जाती है | यहाँ ऊर्जा का केंद्र बन जाता है, यही कारण है कि व्यक्ति सैकड़ो मील चलने के पश्चात् भी मनुष्य भी जड़ नहीं होता वो आगे चलने की हिम्मत रख सकता है।
ऐसा पैरों में संग्रहित इस ऊर्जा के कारण ही पाता है। शरीर क्रिया विज्ञानियों ने यह सिद्ध कर लिया है कि हाथों और पैरों की अंगुलियों और अंगूठों के पोरों (अंतिम सिरा) में यह ऊर्जा सर्वाधिक रूप से विद्यमान रहती है तथा यहीं से आपूर्ति और मांग की प्रक्रिया पूर्ण होती है। पैरों से हाथों द्वारा इस ऊर्जा के ग्रहण करने की प्रक्रिया को ही हम "चरण स्पर्श" करना कहते हैं।
इस प्रकार हिन्दू धर्म मे चरण स्पर्श की मान्यता पूर्णतया प्रामाणिक और वैज्ञानिक है।

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