यह ब्लॉग खोजें

शनिवार, 1 दिसंबर 2012

इन गाँवों में आज भी संस्कृत बोलते हैं लोग ?

क्या आप जानते कि भारत वर्ष के इन गाँवों में आज भी संस्कृत बोलते हैं लोग ?

संस्कृत संस्कार देने वाली भाषा है... अत: उसके नित्य उच्चारण से व्यक्ति के जीवन जीने...की शैली अधिक भारतीय हो जाती है, उच्च आदर्शों के निकट पहुँचने में सहायक बनती है...

आज देश में ऐसे अनेक गाँवों में लोगों की आपसी बोलचाल की भाषा संस्कृत बन चुकी है। इन गाँवों में दैनिक जीवन का सम्पूर्ण वार्तालाप सिर्फ संस्कृत में ही किया जा रहा है। ऐसे ग्रामों में सबसे महत्वपूर्ण नाम है कर्नाटक के मुत्तुर व होसहल्ली और मध्य प्रदेश के झिरी गाँव का, जहाँ सही अर्थों में संस्कृत जन-जन की भाषा बन चुकी है। इन ग्रामों में लगभग 95 प्रतिशत लोग संस्कृत में ही वार्तालाप करते हैं। मुतरु, होसहल्ली व झिरी के अलावा मध्य प्रदेश के मोहद और बधुवार तथा राजस्थान के गनोडा भी ऐसे ग्राम हैं जहाँ दैनिक जीवन का अधिकांश वार्तालाप संस्कृत में ही किया जाता है। सिर्फ एक-दूसरे का हालचाल जानने के लिए ही नहीं बल्कि खेतों में हल चलाने, दूरभाष पर बात करने, दुकान से सामान खरीदने और यहाँ तक कि नाई की दुकान पर बाल कटवाते समय भी संस्कृत में ही वार्तालाप देखने को मिलता है। लोगोंके घरों में रसोईघर में रखे मसालों व अन्य सामान के डिब्बों पर नाम संस्कृत में ही लिखे मिलते हैं। इन ग्रामों में अब यह कोई नहीं पूछता कि संस्कृत सीखने से उन्हें क्या फायदा होगा? इससे नौकरी मिलेगी या नहीं? संस्कृत अपनी भाषा है और इसे हमें सीखना है, बस यही भाव लोगों के मन में है...

*** कर्नाटक का मुत्तुरु ग्राम...

मुत्तुरु ग्राम कर्नाटक के शिमोगा शहर से लगभग 10 किमी.दूर है। तुंग नदी के किनारे बसे इस ग्राम में संस्कृत प्राचीन काल से ही बोली जाती है। लेकिन आधुनिक समय की आवश्यकताओं के अनुरूप इसे संवारा है संस्कृत भारती ने। लगभग 2000 की जनसंख्या और 250 परिवारों वाले इस ग्राम में प्रवेश करते ही सबसे पहला सवाल जो आपसे पूछा जाएगा वह होगा…”भवत: नाम किम्?” (आपका नाम क्या है?) “काफी वा चायं किम् इच्छति भवान्?” (काफी या चाय, क्या पीने की इच्छा है?) “हैलो” के स्थान पर “हरि ओम्” और “कैसे हो” के स्थान पर “कथा अस्ति?” का ही उच्चारण यहाँ सुनने को मिलता है।

यहाँ बच्चे, बूढ़े, युवा और महिलाएं- सभी बहुत ही सहज रूप से संस्कृत में बात करते हैं। ग्राम के मुस्लिम परिवारों में भी संस्कृत उतनी ही सहजता से बोली जाती है जितनी हिन्दू घरों में। मुस्लिम बालक कहीं भी संस्कृत में श्लोक गुनगुनाते मिल जाएंगे। यहाँ तक कि क्रिकेट खेलते हुए और आपस में झगड़ते हुए भी बच्चे संस्कृत में ही बात करते हैं। ग्राम के सभी घरों की दीवारों पर लिखे हुए बोध वाक्य संस्कृत में ही हैं। ऐसा ही एक बोधवाक्य है-”मार्गे स्वच्छता विराजते। ग्रामे सुजना: विराजते।” अर्थात् सड़क पर स्वच्छता होने से यह पता चलता है कि गाँव में अच्छे लोग रहते हैं। कुछ घरों के बाहर स्पष्ट शब्दों में लिखा हुआ है कि “इस घर में आप संस्कृत में वार्तालाप कर सकते हैं।” यह संकेत वास्तव में बाहर से आने वाले लोगों के लिए है, गाँव वालों के लिए नहीं।

इस गाँव में बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा संस्कृत में होती है। बच्चों को छोटे-छोटे गीत संस्कृत में सिखाये जाते हैं। चंदा मामा जैसी छोटी-छोटी कहानियाँ भी संस्कृत में ही सुनाई जाती हैं। बात सिर्फ छोटे बच्चों की ही नहीं है, गाँव के उच्च शिक्षा प्राप्त युवक प्रदेश के बड़े शिक्षा संस्थानों व विश्वविद्यालयों में संस्कृत पढ़ा रहे हैं और कुछ साफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में बड़ी कंपनियों में काम कर रहे हैं। इस ग्राम के 150 से अधिक युवक व युवतियाँ “आईटी इंजीनियर” हैं और बाहर काम करते हैं। विदेशों से भी अनेक व्यक्ति यहाँ संस्कृत सीखने आते हैं।

*** उत्तर प्रदेश के बागपत जिले का बावली ग्राम...

संस्कृत सीखने के लिए व्यक्ति का पढ़ा-लिखा होना आवश्यक नहीं है। बिल्कुल अनपढ़ व्यक्ति भी संस्कृत सीख सकता है। ऐसे हजारों लोग हैं जिन्हें पहले बिल्कुल भी अक्षर ज्ञान नहीं था लेकिन अब वे संस्कृत की अच्छी समझ रखते हैं। अब तो ऐसे लोग अन्य लोगों को भी संस्कृत सिखा-पढ़ा रहे हैं। ऐसा ही एक उदाहरण है - उत्तर प्रदेश के बागपत जिले का बावली ग्राम । यहाँ के 50 वर्षीय जयप्रकाश कभी स्कूल नहीं गये, लेकिन संस्कृत भारती के संभाषण वर्गों से संस्कृत सीखकर वे न केवल अब फर्राटेदार संस्कृत बोलते हैं बल्कि अपने ग्राम के 25 से अधिक युवकों व प्रौढ़ों को संस्कृत सिखा रहे हैं।

*** मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले का मोहद ग्राम...

मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के मोहद ग्राम की आबादी लगभग 3500 है। यहाँ भी एक हजार से अधिक लोग संस्कृत में वार्तालाप करते हैं। इस ग्राम में संस्कृत भारती के कई शिविर आयोजित हो चुके हैं जिनमें स्कूलों के बच्चे ही नहीं गाँव की अनपढ़ व कम पढ़ी-लिखी महिलाएं भी संस्कृत में वार्तालाप करती हैं। मोहद ग्राम पंचायत की ओर से ही विशेष प्रयास करके संस्कृत सीखने और सिखाने का काम होता है। यहाँ संस्कृत समाज के किसी वर्ग विशेष या जाति विशेष की भाषा नहीं है बल्कि कथित वंचित घरों में भी उतने ही सम्मान और गौरव की अनुभूति के साथ बोली जाती है जितनी कथित उच्च परिवारों में।

*** मध्य प्रदेश के राजगढ़ जिले का झिरी ग्राम...

झिरी (जिला राजगढ़, मध्य प्रदेश) कोई सामान्य ग्राम नहीं है। यह उत्तर भारत का ऐसा दिव्य ग्राम है जहाँ समस्त ग्रामवासी संस्कृत में वार्तालाप करते हैं। यहाँ तो खेतों में हल चलाने वाला किसान भी अपने बैलों को संस्कृत में ही आदेश देता है और बैल उसके आदेश का पालन भी करते हैं।

*** राजस्थान के बाँसवाड़ा जिले का गनोडा ग्राम...

गनोडा ग्राम अनुसूचित जनजाति का गाँव माना जाता है और राजस्थान के बाँसवाड़ा जिले में स्थित है। इस ग्राम में संस्कृत धीरे-धीरे सबकी जीवनशैली का अंग बनती जा रही है। विद्यालयों में जाने वाले लगभग सभी छात्र कुछ-कुछ संस्कृत वाक्यों को बोलते ही हैं। ग्राम की मूल भाषा वागदी है जिसका स्थान अब संस्कृत ले रही है।

इन छोटे छोटे गाँवों के अनपढ़ और कम पढ़े-लिखे लोगों ने सिद्ध कर दिया है कि संस्कृत मात्र पंडितों की ही भाषा नहीं है, बल्कि यह तो लोगों के ह्रदय में बसी हुई है और हमारी गौरवशाली संस्कृति की प्रतीक है...
:--वंदे मातृ संस्कृति...

शुक्रवार, 30 नवंबर 2012

दूध पीने के नियम --

दूध पीने के नियम --
 
बोर्नविटा , होर्लिक्स के विज्ञापनों के चलते माताओं के मन में यह बैठ जाता है की बच्चों को ये सब डाल के दो कप दूध पिला दिया बस हो गया . चाहे बच्चे दूध पसंद करे ना करे , उलटी करे , वे किसी तरह ये पिला के ही दम लेती है . फिर भी बच्चों में केशियम की कमी , लम्बाई ना बढना , इत्यादि समस्याएँ देखने में आती है .आयुर्वेद के अनुसार दूध पिने के कुछ नियम है ---
- सुबह सिर्फ काढ़े के साथ दूध ...लिया जा सकता है .
- दोपहर में छाछ पीना चाहिए . दही की प्रकृति गर्म होती है ; ज
बकि छाछ की ठंडी .
- रात में दूध पीना चाहिए पर बिना शकर के ; हो सके तो गाय का घी १- २ चम्मच दाल के ले . दूध की अपनी प्राकृतिक मिठास होती है वो हम शकर डाल देने के कारण अनुभव ही नहीं कर पाते .
- एक बार बच्चें अन्य भोजन लेना शुरू कर दे जैसे रोटी , चावल , सब्जियां तब उन्हें गेंहूँ , चावल और सब्जियों में मौजूद केल्शियम प्राप्त होने लगता है . अब वे केल्शियम के लिए सिर्फ दूध पर निर्भर नहीं .
- कपालभाती प्राणायाम और नस्य लेने से बेहतर केशियम एब्ज़ोर्प्शन होता है और केल्शियम , आयरन और विटामिन्स की कमी नहीं हो सकती साथ ही बेहतर शारीरिक और मानसिक विकास होगा .
- दूध के साथ कभी भी नमकीन या खट्टे पदार्थ ना ले .त्वचा विकार हो सकते है .
- बोर्नविटा , कॉम्प्लान या होर्लिक्स किसी भी प्राकृतिक आहार से अच्छे नहीं हो सकते . इनके लुभावने विज्ञापनों का कभी भरोसा मत करिए . बच्चों को खूब चने , दाने , सत्तू , मिक्स्ड आटे के लड्डू खिलाइए
- प्रयत्न करे की देशी गाय का दूध ले .
- जर्सी या दोगली गाय से भैंस का दूध बेहतर है .
- दही अगर खट्टा हो गया हो तो भी दूध और दही ना मिलाये , खीर और कढ़ी एक साथ ना खाए . खीर के साथ नामकी पदार्थ ना खाए .
- अधजमे दही का सेवन ना करे .
- चावल में दूध के साथ नमक ना डाले .
- सूप में ,आटा भिगोने के लिए , दूध इस्तेमाल ना करे .
- द्विदल यानी की दालों के साथ दही का सेवन विरुद्ध आहार माना जाता है . अगर करना ही पड़े तो दही को हिंग जीरा की बघार दे कर उसकी प्रकृति बदल लें .
- रात में दही या छाछ का सेवन ना करे .

घमंड चूर-चूर

एक गांव में सप्ताह के एक दिन प्रवचन का आयोजन होता था। इसकी व्यवस्था गांव के कुछ प्रबुद्ध लोगों ने करवाई थी ताकि भोले-भाले ग्रामीणों को धर्म का कुछ ज्ञान हो सके। इसके लिए एक दिन एक ज्ञानी पुरुष को बुलाया गया। गांव वाले समय से पहुंच गए। ज्ञानी पुरुष ने पूछा - क्या आपको मालूम है कि मैं क्या कहने जा रहा हूं? गांव वालों ने कहा - नहीं तो...। ज्ञानी पुरुष गुस्से में भरकर बोले - जब आपको पता ही नहीं कि मैं
क्या कहने जा रहा हूं तो फिर क्या कहूं। वह नाराज होकर चले गए।

गांव के सरपंच उनके पास दौड़े हुए पहुंचे और क्षमायाचना करके कहा कि गांव के लोग तो अनपढ़ हैं, वे क्या जानें कि क्या बोलना है। किसी तरह उन्होंने ज्ञानी पुरुष को फिर आने के लिए मना लिया। अगले दिन आकर उन्होंने फिर वही सवाल किया -क्या आपको पता है कि मैं क्या कहने जा रहा हूं? इस बार गांव वाले सतर्क थे। उन्होंने छूटते ही कहा - हां, हमें पता है कि आप क्या कहेंगे। ज्ञानी पुरुष भड़क गए। उन्होंने कहा -जब आपको पता ही है कि मैं क्या कहने वाला हूं तो इसका अर्थ हुआ कि आप सब मुझसे ज्यादा ज्ञानी हैं। फिर मेरी क्या आवश्यकता है? यह कहकर वह चल पड़े।

गांव वाले दुविधा
में पड़ गए कि आखिर उस सज्जन से किस तरह पेश आएं, क्या कहें। उन्हें फिर समझा-बुझाकर लाया गया। इस बार जब उन्होंने वही सवाल किया तो गांव वाले उठकर जाने लगे। ज्ञानी पुरुष ने क्रोध में कहा - अरे, मैं कुछ कहने आया हूं तो आप लोग जा रहे हैं। इस पर कुछ गांव वालों ने हाथ जोड़कर कहा - देखिए, आप परम ज्ञानी हैं। हम गांव वाले मूढ़ और अज्ञानी हैं। हमें आपकी बातें समझ में नहीं आतीं। कृपया अपने अनमोल वचन हम पर व्यर्थ न करें। ज्ञानी पुरुष अकेले खड़े रह गए। उनका घमंड चूर-चूर हो गया।

function disabled

Old Post from Sanwariya