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बुधवार, 16 जनवरी 2013

स्वाइन फ्लू का भंडा फोड़

******* स्वाइन फ्लू का भंडा फोड़ *******
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Code : राजीव दीक्षित Rajiv Dixit
जो बात राजीव भाई ने अपने अनेक ब्याख्यान में चिल्ला चिल्ला कर कहा था पर बहुत कम लोगों ने बिस्वास किया था आज वोही बात सत्य के रूप में सबके सामने जाहिर हो रहा है सबूत के साथ ..

केन्सर से रोज भारत मे 1500 लोग मरते है और साल मे 40 लाख से 45 लाख , मलेरिया से हर दिन 1200 और साल मे 36 लाख लोग मरते है ,1000 लोग रोज डायरिया ,हेजा आदि बीमारी से मरते है लाखो बच्चे इस देश मे कुपोषण से मर जाते है लेकिन भारत मे इन बीमारियो की बात नहीं होती है क्योकि इन बीमारियो का कोई वेकसिन नहीं है विदेशी कंपनियो के पास लेकिन उनके पास स्वाइन फ्लू का वेकसिन है इसलिए वो मीडिया और भ्रष्ट अधिकारियों के जरिये इस बीमारी का हल्ला मचा रहे है |
इस बीमारी का एक व्यक्ति को लगने वाले वेकसिन की कीमत 3000 रुपये है मान लीजिये की भारत मे 10 करोड़ लोगो ने इस बीमारी का वेकसिन लगवा लिया तो दवा बनाने वाली कंपनी का कारोबार 30,000 करोड़ का हो जाएगा अब आप सोचिए की कितना बड़ा धंधा है ये स्वाइन फ्लू का स्वाइन फ्लू नाम की बीमारी विदेशी बीमारी है जिसका वाइरस H1 NI जो सूअर मे पाया जाता है ये वाइरस 3 साल पहले मेक्सिको नाम की जगह से निकला है ,वो भी स्मिथ फूड नाम की सूअर का मांस बेचने वाली कंपनी के यहा से, और मजे की बात यह है की इस कंपनी के लोग ही अपने यहा के सूअर का मांस नहीं खाते है |
पूरी दुनिया मे 5000 से ज्यादा लोग इस बीमारी से नहीं मारे है अभी तक भारत मे इनकी संख्या 500 से ज्यादा नहीं है अब आप खुद जागृत हो जाइए और अपने शरीर व देश की रक्षा करिए इन विदेशी कंपनियो से..

http://www.youtube.com/watch?v=ktYHmH0MB1Q
PROOFS:
***Doctor Admits Vaccine Is More Deadly Than Swine Flu Itself & Will Not Give It To His Kids
http://www.youtube.com/watch?v=WJoCDqVXgRI

http://www.facebook.com/photo.php?fbid=319136668186071&set=a.304770972955974.54765.304762822956789&type=1&theater

http://www.facebook.com/photo.php?fbid=319115901521481&set=a.304770972955974.54765.304762822956789&type=1&theater

मंगलवार, 15 जनवरी 2013

ईश्वरचंद्र विद्यासागर

एक बालक नित्य विद्यालय पढ़ने जाता था। घर में उसकी माता थी। माँ अपने बेटे पर प्राण न्योछावर किए रहती थी, उसकी हर माँग पूरी करने में आनंद का अनुभव करती। पुत्र भी पढ़ने-लिखने में बड़ा तेज़ और परिश्रमी था। खेल के समय खेलता, लेकिन पढ़ने के समय का ध्यान रखता।
एक दिन दरवाज़े पर किसी ने - 'माई! ओ माई!' पुकारते हुए आवाज़ लगाई तो बालक हाथ में पुस्तक पकड़े हुए द्वार पर गया, देखा कि एक फटेहाल बुढ़िया काँपते हाथ फैलाए खड़ी थी।

उसने कहा, 'बेटा! कुछ भीख दे दे।'

बुढ़िया के मुँह से बेटा सुनकर वह भावुक हो गया और माँ से आकर कहने लगा, 'माँ! एक बेचारी गरीब माँ मुझे बेटा कहकर कुछ माँग रही है।'
उस समय घर में कुछ खाने की चीज़ थी नहीं, इसलिए माँ ने कहा, 'बेटा! रोटी-भात तो कुछ बचा नहीं है, चाहे तो चावल दे दो।'
पर बालक ने हठ करते हुए कहा - 'माँ! चावल से क्या होगा? तुम जो अपने हाथ में सोने का कंगन पहने हो, वही दे दो न उस बेचारी को। मैं जब बड़ा होकर कमाऊँगा तो तुम्हें दो कंगन बनवा दूँगा।'
माँ ने बालक का मन रखने के लिए सच में ही सोने का अपना वह कंगन कलाई से उतारा और कहा, 'लो, दे दो।'

बालक खुशी-खुशी वह कंगन उस भिखारिन को दे आया। भिखारिन को तो मानो एक ख़ज़ाना ही मिल गया। कंगन बेचकर उसने परिवार के बच्चों के लिए अनाज, कपड़े आदि जुटा लिए। उसका पति अंधा था।

उधर वह बालक पढ़-लिखकर बड़ा विद्वान हुआ, काफ़ी नाम कमाया।

एक दिन वह माँ से बोला, 'माँ! तुम अपने हाथ का नाप दे दो, मैं कंगन बनवा दूँ।' उसे बचपन का अपना वचन याद था।
पर माता ने कहा, 'उसकी चिंता छोड़। मैं इतनी बूढ़ी हो गई हूँ कि अब मुझे कंगन शोभा नहीं देंगे। हाँ, कलकत्ते के तमाम ग़रीब बालक विद्यालय और चिकित्सा के लिए मारे-मारे फिरते हैं, उनके लिए तू एक विद्यालय और एक चिकित्सालय खुलवा दे जहाँ निशुल्क पढ़ाई और चिकित्सा की व्यवस्था हो।'

माँ के उस पुत्र का नाम ईश्वरचंद्र विद्यासागर।

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