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शुक्रवार, 15 जून 2018

भारतवर्ष का गौरवशाली इतिहास जम्बूदीप


क्या आप जानते हैं कि हमारे प्राचीन महादेश का नाम “भारतवर्ष” कैसे पड़ा....?????


साथ ही क्या आप जानते हैं कि हमारे प्राचीन हमारे महादेश का नाम ..."जम्बूदीप" था..?????

परन्तु क्या आप सच में जानते हैं जानते हैं कि हमारे  महादेश को ""जम्बूदीप"" क्यों कहा जाता है  और, इसका मतलब क्या होता है .??

दरअसल. हमारे लिए यह जानना बहुत ही आवश्यक है कि भारतवर्ष का नाम भारतवर्ष कैसे पड़ा ????

क्योंकि एक सामान्य जनधारणा है कि महाभारत एक कुरूवंश में राजा दुष्यंत और उनकी पत्नी शकुंतला के प्रतापी पुत्र भरत के नाम पर इस देश का नाम "भारतवर्ष" पड परन्तु इसका साक्ष्य उपलब्ध नहीं है...!

लेकिन वहीँ हमारे पुराण इससे अलग कुछ अलग बात पूरे साक्ष्य के साथ प्रस्तुत करता है।

आश्चर्यजनक रूप से इस ओर कभी हमारा ध्यान नही गया जबकि पुराणों में इतिहास ढूंढ़कर अपने इतिहास के साथ और अपने आगत के साथ न्याय करना हमारे लिए बहुत ही आवश्यक था।

परन्तु , क्या आपने कभी इस बात को सोचा है कि जब आज के वैज्ञानिक भी इस बात को मानते हैं कि प्राचीन काल में साथ भूभागों में अर्थात महाद्वीपों में भूमण्डल को बांटा गया था।

लेकिन ये सात महाद्वीप किसने और क्यों तथा कब बनाए गये इस पर कभी, किसी ने कुछ भी नहीं कहा ।

अथवा दूसरे शब्दों में कह सकता हूँ कि जान बूझकर इस से सम्बंधित अनुसंधान की दिशा मोड़ दी गयी।

परन्तु हमारा "जम्बूदीप नाम " खुद में ही सारी कहानी कह जाता है जिसका अर्थ होता है - समग्र द्वीप .

इसीलिए हमारे प्राचीनतम धर्म ग्रंथों तथा विभिन्न अवतारों में सिर्फ "जम्बूद्वीप" का ही उल्लेख है क्योंकि उस समय सिर्फ एक ही द्वीप था
साथ ही हमारा वायु पुराण इस से सम्बंधित पूरी बात एवं उसका साक्ष्य हमारे सामने पेश करता है।

वायु पुराण के अनुसार त्रेता युग के प्रारंभ में स्वयम्भुव मनु के पौत्र और प्रियव्रत के पुत्र ने इस भरत खंड को बसाया था।

चूँकि महाराज प्रियव्रत को अपना कोई पुत्र नही था इसलिए , उन्होंने अपनी पुत्री के पुत्र अग्नीन्ध्र को गोद ले लिया था जिसका लड़का नाभि था.....!

नाभि की एक पत्नी मेरू देवी से जो पुत्र पैदा हुआ उसका नाम ऋषभ था और, इसी ऋषभ के पुत्र भरत थे तथा इन्ही भरत के नाम पर इस देश का नाम "भारतवर्ष" पड़ा।

उस समय के राजा प्रियव्रत ने अपनी कन्या के दस पुत्रों में से सात पुत्रों को संपूर्ण पृथ्वी के सातों महाद्वीपों के अलग-अलग राजा नियुक्त किया था।
राजा का अर्थ उस समय धर्म, और न्यायशील राज्य के संस्थापक से लिया जाता था।

इस तरह राजा प्रियव्रत ने जम्बू द्वीप का शासक अग्नीन्ध्र को बनाया था।
इसके बाद राजा भरत ने जो अपना राज्य अपने पुत्र को दिया और, वही " भारतवर्ष" कहलाया।

ध्यान रखें कि भारतवर्ष का अर्थ है राजा भरत का क्षेत्र और इन्ही राजा भरत के पुत्र का नाम सुमति था।

इस विषय में हमारा वायु पुराण कहता है—

सप्तद्वीपपरिक्रान्तं जम्बूदीपं निबोधत।
अग्नीध्रं ज्येष्ठदायादं कन्यापुत्रं महाबलम।।
प्रियव्रतोअभ्यषिञ्चतं जम्बूद्वीपेश्वरं नृपम्।।
तस्य पुत्रा बभूवुर्हि प्रजापतिसमौजस:।
ज्येष्ठो नाभिरिति ख्यातस्तस्य किम्पुरूषोअनुज:।।
नाभेर्हि सर्गं वक्ष्यामि हिमाह्व तन्निबोधत। (वायु 31-37, 38)

मैं अपनी बात को प्रमाणित करने के लिए रोजमर्रा के कामों की ओर आपका ध्यान दिलाना चाहूँगा कि

हम अपने घरों में अब भी कोई याज्ञिक कार्य कराते हैं  तो, उसमें सबसे पहले पंडित जी संकल्प करवाते हैं।

हालाँकि हम सभी उस संकल्प मंत्र को बहुत हल्के में लेते हैं और, उसे पंडित जी की एक धार्मिक अनुष्ठान की एक क्रिया मात्र मानकर छोड़ देते हैं।

परन्तु यदि आप संकल्प के उस मंत्र को ध्यान से सुनेंगे तो उस संकल्प मंत्र में हमें वायु पुराण की इस साक्षी के समर्थन में बहुत कुछ मिल जाता है।

संकल्प मंत्र में यह स्पष्ट उल्लेख आता है कि -जम्बू द्वीपे भारतखंडे आर्याव्रत देशांतर्गते।

संकल्प के ये शब्द ध्यान देने योग्य हैं क्योंकि, इनमें जम्बूद्वीप आज के यूरेशिया के लिए प्रयुक्त किया गया है।

इस जम्बू द्वीप में भारत खण्ड अर्थात भरत का क्षेत्र अर्थात ‘भारतवर्ष’ स्थित है जो कि आर्याव्रत कहलाता है।

इस संकल्प के छोटे से मंत्र के द्वारा हम अपने गौरवमयी अतीत के गौरवमयी इतिहास का व्याख्यान कर डालते हैं।

परन्तु अब एक बड़ा प्रश्न आता है कि जब सच्चाई ऐसी है तो फिर शकुंतला और दुष्यंत के पुत्र भरत से इस देश का नाम क्यों जोड़ा जाता है?

इस सम्बन्ध में ज्यादा कुछ कहने के स्थान पर सिर्फ इतना ही कहना उचित होगा कि शकुंतला, दुष्यंत के पुत्र भरत से इस देश के नाम की उत्पत्ति का प्रकरण जोडऩा शायद नामों के समानता का परिणाम हो सकता है अथवा , हम हिन्दुओं में अपने धार्मिक ग्रंथों के प्रति उदासीनता के कारण ऐसा हो गया होगा ।

परन्तु जब हमारे पास वायु पुराण और मन्त्रों के रूप में लाखों साल पुराने साक्ष्य मौजूद है और, आज का आधुनिक विज्ञान भी यह मान रहा है कि धरती पर मनुष्य का आगमन करोड़ों साल पूर्व हो चुका था, तो हम पांच हजार साल पुरानी किसी कहानी पर क्यों विश्वास करें ??

सिर्फ इतना ही नहीं हमारे संकल्प मंत्र में पंडित जी हमें सृष्टि सम्वत के विषय में भी बताते हैं कि अभी एक अरब 96 करोड़ आठ लाख तिरेपन हजार एक सौ तेरहवां वर्ष चल रहा है।

फिर यह बात तो खुद में ही हास्यास्पद है कि एक तरफ तो हम बात एक अरब 96 करोड़ आठ लाख तिरेपन हजार एक सौ तेरह पुरानी करते हैं परन्तु, अपना इतिहास पश्चिम के लेखकों की कलम से केवल पांच हजार साल पुराना पढ़ते और मानते हैं!

आप खुद ही सोचें कि यह आत्मप्रवंचना के अतिरिक्त और क्या है ?????

इसीलिए जब इतिहास के लिए हमारे पास एक से एक बढ़कर साक्षी हो और प्रमाण पूर्ण तर्क के साथ उपलब्ध हों तो फिर , उन साक्षियों, प्रमाणों और तर्कों केआधार पर अपना अतीत अपने आप खंगालना हमारी जिम्मेदारी बनती है।

हमारे देश के बारे में वायु पुराण का ये श्लोक उल्लेखित है—-हिमालयं दक्षिणं वर्षं भरताय न्यवेदयत्।तस्मात्तद्भारतं वर्ष तस्य नाम्ना बिदुर्बुधा:।।

यहाँ हमारा वायु पुराण साफ साफ कह रहा है कि हिमालय पर्वत से दक्षिण का वर्ष अर्थात क्षेत्र भारतवर्ष है।

इसीलिए हमें यह कहने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए कि हमने शकुंतला और दुष्यंत पुत्र भरत के साथ अपने देश के नाम की उत्पत्ति को जोड़कर अपने इतिहास को पश्चिमी इतिहासकारों की दृष्टि से पांच हजार साल के अंतराल में समेटने का प्रयास किया है।

ऐसा इसीलिए होता है कि आज भी हम गुलामी भरी मानसिकता से आजादी नहीं पा सके हैं और, यदि किसी पश्चिमी इतिहास कार को हम अपने बोलने में या लिखने में उद्घ्रत कर दें तो यह हमारे लिये शान की बात समझी जाती है परन्तु, यदि हम अपने विषय में अपने ही किसी लेखक कवि या प्राचीन ग्रंथ का संदर्भ दें तो, रूढि़वादिता का प्रमाण माना जाता है ।

और यह सोच सिरे से ही गलत है।

इसे आप ठीक से ऐसे समझें कि राजस्थान के इतिहास के लिए सबसे प्रमाणित ग्रंथ कर्नल टाड का इतिहास माना जाता है।

परन्तु आश्चर्य जनक रूप से हमने यह नही सोचा कि एक विदेशी व्यक्ति इतने पुराने समय में भारत में आकर साल, डेढ़ साल रहे और यहां का इतिहास तैयार कर दे, यह कैसे संभव है?

विशेषत: तब जबकि उसके आने के समय यहां यातायात के अधिक साधन नही थे और , वह राजस्थानी भाषा से भी परिचित नही था।

फिर उसने ऐसी परिस्थिति में सिर्फ इतना काम किया कि जो विभिन्न रजवाड़ों के संबंध में इतिहास संबंधी पुस्तकें उपलब्ध थीं उन सबको संहिताबद्घ कर दिया।

इसके बाद राजकीय संरक्षण में करनल टाड की पुस्तक को प्रमाणिक माना जाने लगा और, यह धारणा बलवती हो गयीं कि राजस्थान के इतिहास पर कर्नल टाड का एकाधिकार है।

और ऐसी ही धारणाएं हमें अन्य क्षेत्रों में भी परेशान करती हैं इसीलिए अपने देश के इतिहास के बारे में व्याप्त भ्रांतियों का निवारण करना हमारा ध्येय होना चाहिए।

क्योंकि इतिहास मरे गिरे लोगों का लेखाजोखा नही है जैसा कि इसके विषय में माना जाता है बल्कि, इतिहास अतीत के गौरवमयी पृष्ठों और हमारे न्यायशील और धर्मशील राजाओं के कृत्यों का वर्णन करता है।

इसीलिए हिन्दुओं जागो और , अपने गौरवशाली इतिहास को पहचानो!

हम गौरवशाली हिन्दू सनातन धर्म का हिस्सा हैं और, हमें गर्व होना चाहिए कि  हम हिन्दू हैं!

97 % तक आँखों की रौशनी बढाएं

उतार कर फेंक दीजिये आँखों का चश्मा 97 % तक आँखों की रौशनी बढाएं इस आसान से घरेलु उपाय से

हमारी आखे हमारे शरीर का एक अनमोल हिस्सा है | दिन में होने वाली 90% क्रियाओं को हम अपनी आखों के जरिये सेन्स कर पाते है | बढती उम्र के साथ हमारी आखो की रौशनी धीमी होने लग जाती है , जो के एक आम बात है | लेकिन आखो की रौशनी कम होने के कई और कार्ण भी हो सकते है |
अगर आप चश्मे से परेशान है और अपनी आखो की रौशनी दोबारा पाना चाहते है तो आप बिलकुल सही जगह पर है | आज हम आपको बतायेगे कैसे आप पा सकते है आखों की तेज रौशनी और चश्मे तथा लेन्सेस से छुटकारा

सामग्री :-
केसर – 1 छोटी चुटकी
एक गिलास सादा पानी

बस इन दो चीजों के जरिये आप आखों की रौशनी को दुबारा पा सकते है सकते है | आपको सिर्फ केसर की चाये बनानी है | पनी को उबाल लेना है और उस में केसर डाल देना है अगर आप चाहे तो इसमें थोडा सा शहद भी डाल सकते है (मिठास के लिए)
रात को सोने से पहले इक गिलास केसर चाय का सेवन करने से आप जादुई नतीजे पायेगे |

केसर चाय के अन्य फायदे

गठिया
कोलेस्ट्रॉल का स्तर
खून की सफाई
रक्तसंचार

जो अक्सर गर्मी में बहुत पेरशान करती है शरीर को -घमोरियां


जो अक्सर गर्मी में बहुत पेरशान करती है शरीर को , कही कंपनी इसको ठीक करने का दावा भी करती है और इसके लिये करोड़ो रूपये tv ads , पेपर ads , पे खर्च करती है और अरबो रुपये का व्यापार सिर्फ घमोरियां के नाम ले जाती है शायद इस जानकारी से आप के तो बचत हो जायेगी मगर कई कंपनी के नुकसान हो सकता है अगर आप इस मैसेज को हर ग्रुप , मित्र, परिचित तक भेज दे तो यह हो सकता है

◆◆घमौरियों से तुरंत आराम◆◆
गर्मियों में घमोरियां होना एक आम बात है एक तो भयंकर गर्मी और उस पर बहते पसीने में ये घमोरियां, पुरे तन बदन में आग लगा देती हैं। घमोरियां ज़्यादातर गले पेट और पीठ पर अधिक प्रकोप दिखाती हैं। गर्मियों में घमौरियों से बचने के लिए भोजन में तड़का (छोंक) लगते समय प्याज और लहसुन और गर्म मसालों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। कच्चा प्याज गर्मी से बचाता है तो छोंक लगा हुआ प्याज गर्मी करता है।
अगर घमोरियां हो गयी हों तो ऐसे में आप तुरंत आराम के लिए निम्नलिखित प्रयोग अपना कर घमौरियों के कष्ट से तुरंत आराम पा सकते हैं।
*बर्फ से घमौरियों का इलाज: घमौरियां होने पर शरीर पर बर्फ मलने से ठंडक मिलती है*
मुलतानी मिट्टी से घमौरियों का इलाज: शरीर पर मुलतानी मिट्टी का लेप करने से घमौरियां कुछ ही दिनों में मिट जाती हैं।
*नारियल से घमौरियों का इलाज: रोजाना सुबह और शाम नहाने के बाद नारियल के तेल में कपूर को मिलाकर पूरे शरीर पर मालिश करने से घमौरियां दूर हो जाती हैं।*
मेहंदी से घमौरियों का इलाज: शरीर में घमौरियां होने पर मेहंदी का लेप करने से घमौरियां कुछ ही समय में बिल्कुल खत्म हो जाती हैं।नहाते समय पानी में मेहंदी के पत्तों को पीसकर मिला लें। इस पानी से नहाने से घमौरियां ठीक हो जाती हैं और रोगी को राहत मिलती है।
*नीम से घमौरियों का इलाज: घमौरियां होने पर नीम की छाल को घिसकर चन्दन कीतरह शरीर पर लगाने से घमौरियां कुछ ही समय में ठीक हो जाती हैं। पानी में थोड़ी सी नीम की पत्तियां डालकर उबाल लें। इस पानी से नहाने से घमौरियां दूर हो जाती हैं।*
चंदन से घमौरियों का इलाज: सफेद चंदन को पानी के साथपीसकर शरीर पर लेप करने से घमौरियां ठीक हो जाती हैं।गुलाब जल में चंदन और कपूर को घिसकर घमौरियों पर लगाने से आराम आता है।
*खसखस से घमौरियों का इलाज:20 ग्राम खसखस को पीसकरपानी में मिलाकर घमौरियों पर लगाने से घमौरियों से राहत मिलती है। इसके अलावा 2 चम्मच खसखस के शर्बत को 1कप पानी में मिलाकर दिन में 2-3 बार पीने से भी घमौरियों में लाभ होता है।*
अनानास से घमौरियों का इलाज: घमौरियां होने पर अनान्नास का गूदा शरीर पर लगाने से रोगी को आराम होता है।
*बड़हल से घमौरियों का इलाज: बड़हल (बरहर) के पेड़ की छालकी फांट से त्वचा को धोने सेघमौरियां और फुन्सियां ठीक होजाती हैं।*
सरसों से घमौरियों का इलाज: पानी में बराबर मात्रा में सरसों का तेल मिलाकर सुबह और शाम मालिश करने से सिर्फ 3 दिनों में ही घमौरियां पूरी तरह से खत्म हो जाती है।
*नारंगी से घमौरियों का इलाज:नारंगी के छिलकों को सुखाकर उसका पाउडर बना लें। इसपाउडर को गुलाबजल में मिलाकर शरीर पर लेप करने से घमौरियों में लाभ होता है।*
घी से घमौरियों का इलाज : गाय या भैंस के असली घी की पूरे शरीर पर मालिश करने से घमौरियां मिट जाती हैं और दुबारा कभी होती भी नहीं हैं।
*तुलसी से घमौरियों का इलाज: तुलसी की लकड़ी को पीसकर चन्दन की तरह शरीर पर मलने से घमौरियां समाप्त हो जाती हैं।*
समुद्रफेन से घमौरियों का इलाज: समुद्रफेन के बारीक चूर्ण को गुलाब जल में मिलाकर शरीर पर लगाने से घमौरियों से राहत मिलती है।
*करेला से घमौरियों का इलाज: चौथाई कप करेले के रस में 1चम्मच खाने वाला मीठा सोडा मिलाकर दिन में 2 से 3 बार घमौरियों पर लेप करने से घमौरियां मिट जाती हैं।*
आम से घमौरियों का इलाज: कच्चे आम को धीमी आंच में भूनकर इसके गूदे का शरीर पर लेप करने से घमौरियों में आराम होता है।
*धनिया से घमौरियों का इलाज: बर्फ के पानी में 50 ग्राम धनिये के पानी को भिगो देना चाहिए। लगभग 5 घंटे बाद इस पानी को छानकर घमौरियों वाले स्थान पर लगाने से राहत मिलती है। यदि किसी छोटे तौलिये को इस पानी में भिगोकर घमौरियों पर रखा जाए तो रोगी को बहुत आराम मिलता है। इस प्रक्रिया को 2 दिन तक सुबह-शाम करने सेघमौरियां नष्ट हो जाती हैं। इसकेअतिरिक्त नींबू के रस में धनिया डालकर पीना भी घमौरियों में लाभकारी रहता है। ध्यान रहे कि घमौरियों के कारण शरीर में नमक की मात्रा कम होनेलगती है। इसलिए नमक का सेवन अवश्य ही करना चाहिए। यदि रोटी में नमक और अजवायन को मिला लिया जाएतो भी घमौरियों में बहुत आराम मिलता है।*
लहसुन से घमौरियों का इलाज: लहसुन की कलियों को पीसकर रस उसका रस निकाल लें। यह रस 3 दिन तक शरीर पर मलने से शरीर पर गर्मी से निकलने वाली घमौरियां मिट जाती हैं।
*स्वदेशी पेय से घमौरियों का इलाज। ऐसे में जौं या चने का सत्तू बहुत उपयोगी है। आर्टिफीसियल ड्रिंक्स की बजाये स्वदेशी ड्रिंक्स जैसे सत्तू, आम का पन्ना, निम्बू पानी, मट्ठा, छाछ आदि का सेवन करें।*

क्यों है जरूरी-टर्म इंश्योरेंस

टर्म इंश्योरेंस आखिर क्यों है जरूरी, 
 
इन दिनों टेलिवजन पर एक एड तेजी से पॉपुलर हो रहा है। इस एड में बॉलीवुड अभिनेता अक्षय कुमार यमराज बनकर टर्म इंश्योरेंस के फायदे गिनाते नजर आते हैं। आमतौर पर लोग सामान्य इंश्योरेंस को ही टर्म इंश्योरेंस मानने की गलती कर बैठते हैं, लेकिन इन दोनों में बुनियादी अंतर होता है। हम अपनी इस खबर के माध्यम से आपको विस्तार से जानकारी दे रहे हैं कि आखिर टर्म इंश्योरेंस होता क्या है और इसके फायदे क्या हैं।
सबसे पहले जानिए कि आखिर लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी के कितने प्रकार होते हैं..
क्या होती है टर्म इंश्योरेंस पॉलिसी?
जैसा कि हमने ऊपर बताया है कि टर्म प्लान इंश्योरेंस पॉलिसी का सबसे विशुद्ध स्वरूप होता है। जीवन बीमा लेने का सबसे सरल तरीका टर्म इंश्योरेंस ही होता है। इसमें बीमा लेने वाला व्यक्ति एक निश्चित समय तक प्रीमियम का भुगतान करता रहता है। यदि निश्चित अवधि के दौरान बीमाधारक की मृत्यु हो जाती है तो सम एश्योर्ड या एक मुश्त राशि उसके परिवार या नॉमिनी को दे दी जाती है। टर्म प्लान में हर साल मामूली प्रीमियम देने के बाद आपको कुछ विशेष सालों के लिए कवर उपलब्ध करवाया जाता है। आमतौर पर टर्म पॉलिसी 10 साल,15 साल, 20 साल, 25 साल और 30 सालों के लिए ली जाती हैं।
उदाहरण से समझिए:
अगर आपने 15 साल की समय अवधि के लिए 55 लाख रुपए का टर्म इंश्योरेंस खरीदा है। इसके लिए आपको हर साल 4 हजार रुपए का प्रीमियम भुगतान बीमा कंपनी को करना है। वहीं अगर इस पॉलिसी की मैच्योरिटी के दौरान बीमाधारक मृत्यु हो जाती है तो आपके परिवार को यह 55 लाख रुपए की राशि दे दी जाएगी। लेकिन अगर 15 वर्षों तक आप स्वस्थ रहते हैं तो भुगतान किए गए प्रीमियम के बदले में आपको कुछ भी नहीं मिलेगा।
टर्म इंश्योरेंस प्लान के दो बड़े फायदे:
क्यों जरूरी होता है टर्म इंश्योरेंस?
टर्म इंश्योरेंस परिवार के मुखिया की मृत्यु हो जाने के बाद भी परिवार को वित्तीय संकट से सुरक्षित रखता है। घर का मुखिया परिवार में आय का मुख्य स्रोत होता है। उस व्यक्ति की मृत्यु या गंभीर बीमारी से उसके अक्षम हो जाने के बाद अक्सर परिवार में अन्य सदस्यों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में अगर पर्याप्त राशि का टर्म इंश्योरेंस लिया गया है परिवार की आर्थिक सेहत पर कोई असर नहीं पड़ता है। साथ ही उन्हें नियमित आय का सहारा रहता है। टर्म इंश्योरेंस के अंतर्गत गंभीर बीमारी, अकस्मात मृत्यु, स्थायी बीमारी जैसी चीजें आती हैं। कई कंपनियां परिवार के सदस्यों को टर्म इंश्योरेंस में नियमित आय का भी विकल्प देती हैं।
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असाध्य रोगों का काल है -ज्वारों का रस

300 से ज्यादा असाध्य रोगों का काल है

●जीवन और मरण के बीच जूझते रोगियों को प्रतिदिन चार बड़े गिलास भरकर ज्वारों का रस दिया जाता है।●जीवन की आशा ही जिन रोगियों ने छोड़ दी उन रोगियों को भी तीन दिन या उससे भी कम समय में चमत्कारिक लाभ होता देखा गया है।
●ज्वारे के रस से रोगी को जब इतना लाभ होता है, तब नीरोगी व्यक्ति ले तो कितना अधिक लाभ होगा?
🙏🏼तो अगर आप अपने जीवन को निरोगी बनाना चाहते है तो हमारी पोस्ट ओर जानकारी को ध्यान पूर्वक पढ़े और शरीर आपका है तो आज से ही नीचे लिखे प्रयोग को काम में लाये।

🌾कैंसर में गेहूँ के ज्वारे का उपयोग🌾

●गेहूँ के दाने बोने पर जो एक ही पत्ता उगकर ऊपर आता है उसे ज्वारा कहा जाता है। नवरात्रि आदि उत्सवों में यह घर-घर में छोटे-छोटे मिट्टी के पात्रों में मिट्टी डालकर बोया जाता है। ये गेहूँ के ज्वारे का रस, प्रकृति के गर्भ में छिपी औषधियों के अक्षय भंडार में से मानव को प्राप्त एक अनुपम भेंट है।
●शरीर के आरोग्यार्थ यह रस इतना अधिक उपयोगी सिद्ध हुआ है कि विदेशी जीववैज्ञानिकों ने इसे ‘हरा लहू’ (Green Blood) कहकर सम्मानित किया है। डॉ. एन. विगमोर नामक एक विदेशी महिला ने गेहूँ के कोमल ज्वारों के रस से अनेक असाध्य रोगों को मिटाने के सफल प्रयोग किये हैं।
●उपरोक्त ज्वारों के रस द्वारा उपचार से 300 से अधिक रोग मिटाने के आश्चर्यजनक परिणाम देखने में आये हैं। जीव-वनस्पति शास्त्र में यह प्रयोग बहुत मूल्यवान है।
●गेहूँ के ज्वारों के रस में रोगों के उन्मूलन की एक विचित्र शक्ति विद्यमान है। शरीर के लिए यह एक शक्तिशाली टॉनिक है।
●इसमें प्राकृतिक रूप से कार्बोहाईड्रेट आदि सभी विटामिन, क्षार एवं श्रेष्ठ प्रोटीन उपस्थित हैं। इसके सेवन से असंख्य लोगों को विभिन्न प्रकार के रोगों से मुक्ति मिली है।
●कैन्सर, मूत्राशय की पथरी, हृदयरोग, लीवर, डायबिटीज, पायरिया एवं दाँत के अन्य रोग, पीलिया, लकवा, दमा, पेट दुखना, पाचन क्रिया की दुर्बलता, अपच, गैस, विटामिन ए, बी आदि के अभावोत्पन्न रोग, जोड़ों में सूजन, गठिया, संधिशोथ, त्वचासंवेदनशीलता (स्किन एलर्जी) सम्बन्धी बारह वर्ष पुराने रोग, आँखों का दौर्बल्य, केशों का श्वेत होकर झड़ जाना, चोट लगे घाव तथा जली त्वचा सम्बन्धी सभी रोग।हजारों रोगियों एवं निरोगियों ने भी अपनी दैनिक खुराकों में बिना किसी प्रकार के हेर-फेर किये गेहूँ के ज्वारों के रस से बहुत थोड़े समय में चमत्कारिक लाभ प्राप्त किये हैं।
●ये अपना अनुभव बताते हैं कि ज्वारों के रस से आँख, दाँत और केशों को बहुत लाभ पहुँचता है। कब्जी मिट जाती है, अत्यधिक कार्यशक्ति आती है और थकान नहीं होती।

🌾गेहूँ के ज्वारे उगाने की विधि :🌾

■आप मिट्टी के नये खप्पर, कुंडे या सकोरे लें। उनमें खाद मिली मिट्टी लें। रासायनिक खाद का उपयोग बिलकुल न करें। पहले दिन एक कुंडे की सारी मिट्टी ढँक जाये इतने गेहूँ बोयें। पानी डालकर कुंडों को छाया में रखें। सूर्य की धूप कुंडों को अधिक या सीधी न लग पाये इसका ध्यान रखें।
■इसी प्रकार दूसरे दिन दूसरा कुंडा या मिट्टी का खप्पर बोयें और प्रतिदिन एक बढ़ाते हुए नौवें दिन नौवां कुंडा बोयें। सभी कुंडों को प्रतिदिन पानी दें। नौवें दिन पहले कुंडे में उगे गेहूँ काटकर उपयोग में लें। खाली हो चुके कुंडे में फिर से गेहूँ उगा दें। इसी प्रकार दूसरे दिन दूसरा, तीसरे दिन तीसरा करते चक्र चलाते जायें। इस प्रक्रिया में भूलकर भी 🤜🏼प्लास्टिक के बर्तनों का उपयोग कदापि न करें❌।
■प्रत्येक कुटुम्ब अपने लिए सदैव के उपयोगार्थ 10, 20, 30 अथवा इससे भी अधिक कुंडे रख सकता है। प्रतिदिन व्यक्ति के उपयोग अनुसार एक, दो या अधिक कुंडे में गेहूँ बोते रहें। मध्याह्न के सूर्य की सख्त धूप न लगे परन्तु प्रातः अथवा सायंकाल का मंद ताप लगे ऐसे स्थान में कुंडों को रखें।
■सामान्यतया आठ-दस दिन नें गेहूँ के ज्वारे पाँच से सात इंच तक ऊँचे हो जायेंगे। ऐसे ज्वारों में अधिक से अधिक गुण होते हैं। ❌ज्यो-ज्यों ज्वारे सात इंच से अधिक बड़े होते जायेंगे त्यों-त्यों उनके गुण कम होते जायेंगे।❌ अतः उनका पूरा-पूरा लाभ लेने के लिए ✅सात इंच तक बड़े होते ही उनका उपयोग कर लेना चाहिए।✅
■ज्वारों की मिट्टी के धरातल से कैंची द्वारा काट लें अथवा उन्हें समूल खींचकर उपयोग में ले सकते हैं। खाली हो चुके कुंडे में फिर से गेहूँ बो दीजिये। इस प्रकार प्रत्येक दिन गेहूँ बोना चालू रखें।

🌾ज्वारों का रस बनाने की विधि :🌾

◆जब समय अनुकूल हो तभी ज्वारे काटें। काटते ही तुरन्त धो डालें। धोते ही उन्हें कूटें। कूटते ही उन्हें कपड़े से छान लें। इसी प्रकार उसी ज्वारे को तीन बार कूट-कूट कर रस निकालने से अधिकाधिक रस प्राप्त होगा।
◆चटनी बनाने अथवा रस निकालने की मशीनों आदि से भी रस निकाला जा सकता है। रस को निकालने के बाद विलम्ब किये बिना तुरन्त ही उसे धीरे-धीरें पियें।
◆किसी 🙏🏼✅🙏🏼सशक्त अनिवार्य कारण के अतिररिक्त एक क्षण भी उसको पड़ा न रहने दें, कारण कि उसका गुण प्रतिक्षण घटने लगता है और तीन घंटे में तो उसमें से पोषक तत्व ही नष्ट हो जाता है। प्रातःकाल खाली पेट यह रस पीने से अधिक लाभ होता है।🙏🏼✅🙏🏼
◆दिन में किसी भी समय ज्वारों का रस पिया जा सकता है। परन्तु रस लेने के आधा घंटा पहले और लेने के आधे घंटे बाद तक कुछ भी खाना-पीना न चाहिए।
◆❌आरंभ में कइयों को यह रस पीने के बाद उबकाई आती है, उलटी हो जाती है अथवा सर्दी हो जाती है। परंतु इससे घबराना न चाहिए।❌
◆शरीर में कितने ही विष एकत्रित हो चुके हैं यह प्रतिक्रिया इसकी निशानी है। सर्दी, दस्त अथवा उलटी होने से शरीर में एकत्रित हुए वे विष निकल जायेंगे।ज्वारों का रस निकालते समय मधु, अदरक, नागरबेल के पान (खाने के पान) भी डाले जा सकते हैं।
◆इससे स्वाद और गुण का वर्धन होगा और उबकाई नहीं आयेगी। विशेषतया यह बात ध्यान में रख लें कि ज्वारों के रस में नमक अथवा नींबू का रस तो कदापि न डालें।
◆रस निकालने की सुविधा न हो तो ज्वारे चबाकर भी खाये जा सकते हैं। इससे दाँत मसूढ़े मजबूत होंगे। मुख से यदि दुर्गन्ध आती हो तो दिन में तीन बार थोड़े-थोड़े ज्वारे चबाने से दूर हो जाती है। दिन में दो या तीन बार ज्वारों का रस लीजिये।

🌾सस्ता और सर्वोत्तम ज्वारों का रस 🌾
■ज्वारों का रस दूध, दही और मांस से अनेक गुना अधिक गुणकारी है। दूध और मांस में भी जो नहीं है उससे अधिक इस ज्वारे के रस में है।
■इसके बावजूद दूध, दही और मांस से बहुत सस्ता है। घर में उगाने पर सदैव सुलभ है। गरीब से गरीब व्यक्ति भी इस रस का उपयोग करके अपना खोया स्वास्थ्य फिर से प्राप्त कर सकता है।गरीबों के लिए यह ईश्वरीय आशीर्वाद है।
◆नवजात शिशु से लेकर घर के छोटे-बड़े, अबालवृद्ध सभी ज्वारे के रस का सेवन कर सकते हैं।
◆ नवजात शिशु को प्रतिदिन पाँच बूँद दी जा सकती है।
◆ज्वारे के रस में लगभग समस्त क्षार और विटामिन उपलब्ध हैं। इसी कारण से शरीर मे जो कुछ भी अभाव हो उसकी पूर्ति ज्वारे के रस द्वारा आश्चर्यजनक रूप से हो जाती है।
■इसके द्वारा प्रत्येक ऋतु में नियमित रूप से प्राणवायु, खनिज, विटामिन, क्षार और शरीरविज्ञान में बताये गये कोषों को जीवित रखने से लिए आवश्यक सभी तत्त्व प्राप्त किये जा सकते हैं।
◆डॉक्टर की सहायता के बिना गेहूँ के ज्वारों का प्रयोग आरंभ करो और खोखले हो चुके शरीर को मात्र तीन सप्ताह में ही ताजा, स्फूर्तिशील एवं तरावटदार बना दो।
◆ज्वारों के रस के सेवन के प्रयोग किये गये हैं। कैंसर जैसे असाध्य रोग मिटे हैं। शरीर ताम्रवर्णी और पुष्ट होते पाये गये हैं।

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