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बुधवार, 18 अगस्त 2021

अफगानिस्तान में टाइम वेल में फंसा मिला महाभारत कालीन विमान ?


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अफगानिस्तान में टाइम वेल में फंसा मिला महाभारत कालीन विमान ?महाभारत कल्पना नहीं, एक हकीकत लंबे समय से रामायण, महाभारत काल को केवल एक काल्पनिक गाथा के रुप में माना जा रहा था। परंतु यह सत्य नहीं है। जो लोग इस काल को काल्पनिक मान रहे हैं, उन्हें अब यह स्वीकार करना होगा कि महाभारत और रामायण काल भारत का गौरवमयी इतिहास था। जिसे कोरी कल्पना मानना एक भूल थी। अफगानिस्तान की विशाल गुफा में टाइम वेल में 5000 साल पुरान महाभारत कालीन विमान के फंसे होने की पुष्टि हुई है। इस विमान के मिलने का खुलासा वायर्ड डॉट कॉम की एक रिपोर्ट में किया गया है।
अफगानिस्तान में सदियों पहले था आर्यों का राज
मौजूदा अफगानिस्तानन में हिंदू कुश नाम का एक पहाड़ी क्षेत्र है ।जिसके उस पार कजाकिस्तान, रूस और चीन देश हैं। ईसा के 700 साल पूर्व तक यहां पर आर्यों का साम्राज्य था। इसके उत्तरी क्षेत्र में गांधार महाजनपद था। जिसके बारे में महाभारत के अलावा कई अन्य ग्रंथों में उल्लेख मिलता है। अफगानिस्तान की सबसे बड़ी होटलों की श्रृंखला का नाम आर्याना था। इतना ही नहीं हवाई कंपनी भी आर्याना के नाम से जानी जाती थी। इस्लाम धर्म से पहले मौजूदा अफगानिस्तान को आर्याना, आर्यानुम्र वीजू, पख्तिया, खुरासान, पश्तूनख्वाह और रोह नामों से पुकारा जाता था। वहीं पारसी मत के प्रवर्तक जरथ्रुष्ट द्वारा रचित ग्रंथ जिंदावेस्ता में इस भूखंड को ऐरीन-वीजो या आर्यानुम्र वीजो कहा गया है। सबसे खास बात यह है कि मौजूदा अफगानिस्तान के गांवों में बच्चों के नाम कनिष्क, आर्यन, वेद हैं। जो इस बात को प्रमाणित करता है कि यहां पर कभी आर्यों का राज था

अफगानिस्तान की गुफा में मौजूद है 5000 साल पुराना विमान
मौजूदा अफगानिस्तान में 5000 साल पुराने महाभारत कालीन एक विमान मिला है। यह विमान महाभारत काल का माना जा रहा है। इसका खुलासा वायर्ड डॉट कॉम की एक रिपोर्ट में किया गया है। अफगानिस्तान की एक प्राचीन गुफा में महाभारत काल का यह विमान टाइम वेल में फंसा हुआ है। इसी कारण यह आज तक सुरक्षित बना हुआ है। जो विमान मिला है, इसके आकार प्रकार का पूर्ण विवरण महाभारत व अन्य प्राचीन ग्रंथों में मौजूद है। वायर्ड डॉट कॉम की एक रिपोर्ट में किए गए खुलासे अनुसार प्राचीन भारत के पांच हजार वर्ष पुराने इस विमान को बाहर निकालने की सभी कोशिशें नकाम हो चुकी है। अमेरिका नेवी के आठ कमांडो इस विमान के पास पहुंचने में कामयाब भी हुए। परंतु टाइम वेल सक्रिय होने पर यह सभी गायब हो गए। अमेरिकी, रुस राष्ट्रपति सहित ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी के राष्ट्राध्यक्षों के साथ मिलकर इस साइट का अतिगोपनीय दौरा भी किया जा चुका है।
क्या होता है टाइम वेल
टाइम वेल इलेक्ट्रोमैग्नेटिक शॉकवेव्स से सुरक्षित क्षेत्र होता है। इस कारण इस क्षेत्र में मौजूद सामान सुरक्षित रहता है। यही कारण है कि इस विमान के पास जाने की चेष्टा करने वाला कोई भी व्यक्ति इसके प्रभाव के कारण गायब या अदृश्य हो जाता ह

विमान की क्या है खासियत
रशियन फॉरेन इंटेलिजेंस सर्विज की रिपोर्ट अनुसार इस 5000 साल पुराने विमान का जब इंजन शुरू होता है। जिसमें से बहुत तेज रोशनी ‍निकलती है। इस विमान के चार पहिए है। इसमें कई तरह के हथियार भी लगे हुए हैं। यह सभी हथियार प्रज्जवलन शील है। इन्हें किसी लक्ष्य पर केन्द्रित किया जा सकता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह टाइम वेल सर्पाकार है। इसके संपर्क में आते ही सभी जीवित प्राणियों का अस्तित्व समाप्त हो जाता है। इस सर्पाकार टाइम वेल की थ्योरी समझने के लिए वैज्ञानित प्रयासरत हैं। फिलहाल तक इस टाइम वेल का समाधान नहीं निकाला जा सका है।

मंगलवार, 17 अगस्त 2021

साईं शब्द की उत्पत्ति फ़ारसी से है, जिसका अर्थ फ़कीर होता है।


साईं शब्द की उत्पत्ति फ़ारसी से है, जिसका अर्थ फ़कीर होता है।

साईं के पिता का नाम बहरुद्दीन था, जो कि अफगान का एक पिंडारी मुसलमान था। पिंडारियों का काम भारत में लूटपाट करना, और राहगीरों को धोखे से ठग कर उनकी निर्मम हत्या कर देना था। इन्हीं पिंडारियों के महिमा वर्णन का काम सलमान खान एंड गैंग ने फिल्म 'वीर' में किया था। जिनको पिंडारियों की असलियत न पता हो, वे अंग्रेजों द्वारा इनके समूलनाश की हठ ठानने वाले इतिहास को पढ़ें, जिसको कि मैं अंग्रेजों द्वारा कुछेक अच्छे कार्यों जैसे कि रेल, टेलीफोन आदि में योगदान है मानता हूँ।
           हिन्दुओं इतिहास की पुस्तकें उठाओ और उन्हें पढ़ो, सब अंकित है वहाँ।

स्वामी शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती (सोचिये कि हिन्दुओं के इतने बड़े शंकराचार्य) ने साईं के बारे बताया है कि उसका पिता अहमदनगर में एक वेश्या के पास जाता था, उसी वेश्या से चाँद मियाँ पैदा हुआ। इसको इसके पिता ने दस वर्ष की उम्र में पहले हिन्दू मुहल्लों में हरी चादर घुमा कर पैसा कमाने का काम सौंपा, जिससे यह आसानी से धनी घरों की रेकी कर उन्हें चिन्हित कर लेता था, तथा बाद में उसका पिता अपने लुटेरे साथियों के साथ लूट कर उन घरों के निवासियों को क्रूरता से मार देता था।

अंग्रेजों ने चाँद मियाँ को गिरफ्तार कर लिया और वह 8-10 साल तक जेल में रहा। उसको छुड़ाने की जब सारी कोशिशें बेकार हो गयीं तो थक हार कर बहरुद्दीन अंग्रेजों के साथ मिल गया और अंग्रेजों के लिए जासूसी करना स्वीकार कर लिया। अंग्रेजों ने उसको कहा कि, "हमें झाँसी चाहिए"। तो वो अपने सिपाहियों सहित जाकर किसी तरह झाँसी की सेना में शामिल हो गया। अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए झाँसी को भी सेना चाहिए ही थी, इसलिए यह धोखा देना कतिपय आसान रहा। फिर जब अंग्रेजों ने लक्ष्मीबाई पर आक्रमण किया तब इन पिंडारियों ने रात में चुपके से किले का द्वार खोल दिया, जिससे अंग्रेजी सेना आसानी से किले में घुस गई और रानी को किला छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा। बाद में अंग्रेजों द्वारा पीछा करने में 5 पिंडारी सैनिक भी अंग्रेजों के साथ थे।

उसके बाद बहरुद्दीन मर गया। कैसे और कब मरा यह मुझे ज्ञात नहीं है। 

लेकिन फिर चाँद मियाँ को अंग्रेजों ने बालगंगाधर तिलक के स्वराज अभियान में शामिल होकर जासूसी करने को कहा। तिलक पहचान गए उसको, और वहीं बम्बई की सड़कों पर इसको पटक पटक कर अपने जूतों से पीटा था। उसके बाद वह वहाँ से भागा और शिरडी गाँव पहुँच गया। वह संत ज्ञानेश्वर की पवित्र भूमि थी, जनता बहुत भोली तथा धार्मिक थी। वहाँ इसने फ़कीर का चोला पहना और साईं बन गया।

आगे की कहानी, खुद साईं ट्रस्ट द्वारा लिखी हुई "साईं सच्चरित" नामक पुस्तक से, ( इन्टरनेट में उपलब्ध है-)

-साईं ने यह कभी नहीं कहा कि "सबका मालिक एक"। साईं सच्चरित्र के अध्याय 4, 5, 7 में इस बात का उल्लेख है कि वो जीवनभर सिर्फ "अल्लाह मालिक है" यही बोलता रहा। कुछ लोगों ने उसको हिन्दू संत बनाने के लिए यह झूठ प्रचारित किया कि वे "सबका मालिक एक है" भी बोलते थे।

-कोई हिन्दू संत सिर पर कफन जैसा नहीं बांधता, ऐसा सिर्फ मुस्लिम फकीर ही बांधते हैं। जो पहनावा साईं का था, वह एक मुस्लिम फकीर का ही हो सकता है। हिन्दू धर्म में सिर पर सफेद कफन जैसा बांधना वर्जित है या तो पगड़ी या जटा रखी जाती है या किसी भी प्रकार से सिर पर बाल नहीं होते।

-साईं बाबा ने रहने के लिए मस्जिद का ही चयन क्यों किया? वहाँ और भी स्थान थे, लेकिन वह जिंदगी भर मस्जिद में ही रहा।

-मस्जिद से बर्तन मंगवाकर वह मौलवी से फातिहा पढ़ने के लिए कहता था। इसके बाद ही भोजन की शुरुआत होती थी।

-साईं का जन्म 1830 में हुआ, पर इसने आजादी की लड़ाई में भारतीयों की मदद करना जरूरी नहीं समझा, क्योंकि यह भारतीय था ही नहीं।                                                                                                1918 में मरा अगर यह देशभक्त होता तो 1811 में बंग भंग आंदोलन मे सम्मिलित होता जो बांग्लादेश 1947 मैं अलग हुआ उसे अंग्रेजों के समय में 1911 में ही अलग करने की मुहिम चल रही थी इस्लामी कट्टरपंथ की तरफ से देश के बड़े से बड़े क्रांतिकारी लोग भाग लिए थे जिसमें लोकमान्य तिलक वीर सावरकर आदि                                                                         साईं उर्फ चांद मोहम्मद मरने से पहले उसके हाथ में मार चोट लगने पर हाथ टूट गया तो लकड़ी की पट्टी के द्वारा हाथ पर प्लास्टर लगा था साईं सच्चरित्र बुक में इसका जिक्र है इतना बड़ा तांत्रिक विद्या इसके पास थी तो ठीक क्यों नहीं कर लिया

-"साईं भक्त साठे ने शिवरात्रि के अवसर पर बाबा से पूछा कि वे बाबा की पूजा महादेव या शिव की तरह कर सकते हैं? तो बाबा ने साफ इंकार कर दिया, क्योंकि वे मस्जिद में किसी भी तरह के हिन्दू तौर-तरीके का विरोध करते थे। फिर भी साठे साहेब और मेघा रात में फूल, बेलपत्र, चंदन लेकर मस्जिद की सीढ़ियों पर बैठकर चुपचाप पूजा करने लगे। तब तात्या पाटिल ने उन्हें देखा तो पूजा करने के लिए मना किया। उसी वक्त साईं की नींद खुल गई और उन्होंने जोर-जोर से चिल्लाना और गालियां देना शुरू कर दिया।" फिर भी  मूर्ख हिन्दू उसके पहनावे से भ्रमित होते रहे।

-वह बाजार से खाद्य सामग्री में आटा, दाल, चावल, मिर्च, मसाला, मटन आदि सब मंगाता था। भिक्षा मांगना तो उसका ढोंग था। इसके पास घोड़ा भी था। शिर्डी के अमीर हिन्दुओं ने उसके लिए सभी तरह की सुविधाएं जुटा दी थीं।

-साईं अपने शिष्य मेघा की ओर देखकर कहने लगा, 'तुम तो एक उच्च कुलीन ब्राह्मण हो और मैं बस निम्न जाति का यवन (मुसलमान) इसलिए तुम्हारी जाति भ्रष्ट हो जाएगी इसलिए तुम यहां से बाहर निकलो। -साई सच्चरित्र।-(अध्याय 28)

-एक एकादशी को उसने पैसे देकर केलकर (ब्राह्मण) को मांस खरीद लाने को कहा और उस साईं ने उसी भक्त तथा ब्राह्मण केलकर को बलपूर्वक बिरयानी चखने को कहा।। -साईं सच्चरित्र (अध्याय 38)

-साईं सच्चरित्र अनुसार साईं जब गुस्से में आता था तब अपने ही भक्तों को गन्दी गन्दी गालियाँ बकता था। ज्यादा क्रोधित होने पर वह अपने भक्तों को पीट भी देता था। कभी पत्‍थर और कभी गालियां। -पढ़ें 6, 10, 23 और 41 साईं सच्चरित्र अध्याय।

-इसने स्वयं कभी उपवास नहीं किया और न ही किसी को करने दिया। साईं सच्चरित्र (अध्याय 32)

"मुझे इस झंझट से दूर ही रहने दो। मैं तो एक फकीर हूं, मुझे गंगाजल से क्या प्रयोजन?"- साई सच्चरित्र (अध्याय 28)
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साईं को भगवान् बनाने का यह सारा प्रपंच शुरू होता है 1971 के पहले खुर्द क़ब्र मज़ार होता था उसे पक्का करके समाधि बनाया गया मार्केटिंग शुरू किया 1977 में आई महानालायक की फिल्म "अमर अकबर एंथोनी" के गाने "शिरडी वाले साईं बाबा" से। जरा सोचिये कि फिल्म के केवल एक गीत ने पूरे भारत की मानसिकता पर क्या असर डाला! उसके पहले कहीं किसी पुस्तक, धर्म, शास्त्र आदि में इसका कहीं भी विवरण आया? हाँ, पर्चे में विवरण अवश्य आया कि साईं के नाम का 100 पर्चा छपवाओ, नहीं तो बहुत नुकसान होगा, और कुछ डरपोक हिन्दुओं ने छपवा डाला।

"मार्केट में कोई नया भगवान नहीं आया है बहुत समय से" क्या आपको फिल्म OMG का वह डायलॉग याद है?

हम आप "बस एक मनोरंजक फिल्म ही तो है" कहकर हँस देते हैं, लेकिन देखिये कि हमारी जड़ों में मट्ठा किस तरह चुपके से डाल दिया जाता है। आप में थोड़ी बहुत अभी चेतना बाकी है, तो आप बच जायेंगे लेकिन आपकी जो नई पीढ़ी आ रही है, उसको कैसे बचायेंगे?

जरा सोचिये, कि जिस साईं को हिन्दू मुसलमान एकता के नाम पर प्रायोजित किया जाता है, उस ट्रस्ट में सबसे ज्यादा पैसा किसका जा रहा है..? 99 प्रतिशत हिन्दुओं का। दुनिया भर के हिन्दू संस्थानों ने राम मंदिर के लिए चंदा दिया, लेकिन भारत के सर्वाधिक अमीर ट्रस्टों में शुमार इस शिरडी संस्थान ने " राम मंदिर" के लिए एक फूटी कौड़ी भी देने से इनकार कर दिया है। और आप इसको साईं राम, साईं कृष्ण, साईं शिव बनाकर पूज रहे हैं? इसको आरम्भ में प्रायोजित करने का सारा फंड इंडोनेशिया मुस्लिम जैसे देशों से आया है। अब जब इसकी चाँदी ही चाँदी है तो सोचिये कि सारा पैसा कहाँ जा रहा है और किसलिए खर्च किया जा रहा होगा।

आज कुछ लालची पुजारियों को खरीद कर हिन्दू मंदिरों में अन्य देवी देवताओं के साथ साईं की मूर्ति भी बिठवा दी जा रही है। शुरुआत होती है कोने में छोटी मूर्ति बिठाने से, और फिर धीरे धीरे यह मूर्ति बड़ी होती जाती है तथा हमारे आराध्य हनुमान जी इस मूर्ति के चरणों में हाथ जोड़े बिठा दिए जाते हैं।

क्या आपने किसी भी जैन, बौद्ध सिख आदि के मठों में इसकी मूर्ति देखी? आपने गिरजाघरों या मस्जिदों में इसका एक कैलेंडर तक टंगे देखा? कोई मुसलमान यदि साईं नाम का उपयोग भी करता है, तो वह बस हिन्दुओं को मूर्ख बनाकर चंदे के रूप में ठगने के लिए।

"साईं को मानने वालों में सर्वाधिक प्रतिशत पढ़े लिखे लोगों का है, जो अपने आपको तार्किक और आधुनिक समझते हैं। ये वही धिम्मी, कायर, तथा मूर्ख हिन्दू हैं जो मक्कारों के बहकावे "सबका मालिक एक है" में आकर अपने ही देवी-देवताओं, त्यौहारों, प्रतीकों का तो उपहास उड़ाते हैं, उसमें इन्हें जड़ता तथा अन्धविश्वास की बू आती है, लेकिन इस मांसाहारी व्यभिचारी साईं के लिए इनका सर श्रद्धा से झुक जाता है। मन्दिरों की दान पेटिका में एक सिक्का डालने पर भी इनका कलेजा धधकने लगता है और सारे पुजारी धन के लोभी लगने लगते हैं। लेकिन साईं ट्रस्ट के लिए हज़ारों रुपये की चैरिटी करने में इन्हें रत्ती भर भी परेशानी नहीं होती।

वैसे लाख आप साईं को दोषी मान लें, इसे भारत में प्रतिष्ठित कराने में बाहरी षड़यन्त्रकारियों को गरिया लें, लेकिन इन सबसे भी अधिक घृणा के पात्र यही "दोहरे, कायर,  हिन्दू" हैं, जिन्होंने अपनी मूर्खता  से अपने ही धर्म की जड़ें खोदने का दुस्साहस किया है।" मांसाहारी, व्यभिचारी, मदिरापान करने वाला इनका भगवान्! "ऐसे म्लेच्छ को अपने देवालयों में स्थापित करने का महापाप किया है इन मूर्ख हिन्दुओं ने, जिसका प्रायश्चित शायद ही हो पाएगा।

चलते चलते,... गीता के नवें अध्याय के 25वें श्लोक में प्रभु कृष्ण कहतें हैं....

यान्ति देवव्रता देवान्, पितृन्यान्ति पितृव्रता:।
भूतानि यान्ति भूतेज्या, यान्ति मद्याजिनोऽपि माम्।।

(देवताओं को पूजने वाले देवताओ को प्राप्त होते हैं, पितरों को पूजने वाले पितरों को प्राप्त होते हैं, भूतों को पूजने वाले भूतों को प्राप्त होते हैं, और मेरा पूजन करने वाले भक्त मुझको ही प्राप्त होते हैं। इसीलिये मेरे भक्तों का पुनर्जन्म नहीं होता।)
 "जय हिंद..!!"

सोमवार, 16 अगस्त 2021

मछ मणि किसे और कब धारण करनी चाहिए




मछ मणि किसे और कब धारण करनी चाहिए, और इसके क्या लाभ व नुकसान हो सकते हैं?




मित्रों मच्छमनी अत्यंत दुर्लभ मणि है और यह बहुत कम मात्रा में लोगों द्वारा पाई जाती है लोगों का यह मानना है की यह श्री लंका के समुद्र में एकदम नीचे तल में रहने वाली मछलियों के पेट से पाई जाती है ।

पूर्णिमा के रात को यह मछली समुद्र के तट पर तैरती है, इस समय वहां के मछुआरे वहां की मछलियों को पकड़ लेते हैं और अपने जानकारी के अनुसार जिन मछली में उन्हें ऐसा लगता है की इनमें मछमनी मिल जाएगी उसे पकड़ कर उसके पेट को दबाते हैं पेट को दबाते ही मच्छमनी बाहर निकाल जाती है और उसके बाद मछुआरे उन मछलियों को समुद्र में वापस छोड़ देते हैं ।


ज्योतिषों की माने तो यदि आप राहु ग्रह से परेशान हैं तो आपको मच्छमनी धारण करना चाहिए इससे अच्छा दूसरा कोई उपाय उपलब्ध नहीं है।

मछमणि किसे और कब धारण करना चाहिए ?

राहु मकर राशि का स्वामी है इस प्रकार से हम कह सकते हैं कि मच्छमणि मकर राशि वालों के लिए अत्यंत लाभदायक है इसके अलावा तुला, मिथुन, वृष या कुंभ राशि वालों के लिए भी मच्छमणि अत्यंत लाभकारी है। यदि राहु दूसरे, तीसरे, नौवें या ग्यारहवें भाव में हो तो मच्छमनी धारण करना जातक के लिए लाभकारी है इसके अलावा राहु यदि केंद्र में एक, चार, सात या दसवें भाव में हो तो मच्छमनी पहनना उसके लिए अत्यंत लाभकारी है। इस मणि को धारण करने से पूर्व ॐ रां राहवे नम: का 1 माला (108 बार) जाप करना चाहिए ।


मच्छमणि धारण करने के चमत्कारी फायदे ?

मित्रों मच्छमणि एक दुर्लभ व चमत्कारी रत्न है इसलिए इसे धारण करने के भी अत्यंत लाभकारी फायदे हैं —
यदि आप पर राहु की महादशा या अंतर्दशा चल रही है और आप उसकी पीड़ा से बचाव हेतु यदि कुछ धारण करना चाहते हैं तो आपको मच्छमनी ही धारण करना चाहिए इससे अच्छा दूसरा कोई विकल्प नहीं हैं ।
वे लोग जो राजनीति में सक्रिय हो चुके हैं या ऐसे लोग जो सफल होना चाहते हैं उन लोगों के लिए मच्छमणि अत्यधिक लाभकारी है।
ऐसे लोग जो अपने जीवन को ऐश्वर्य के साथ जीना चाहते हैं जो ये सोचते हैं की उन्हें बिलकुल भी धन की कमी न हो लेकिन धन की कमी होने के कारण आपके सपने अधूरे रह जाते हैं तो ऐसी स्तिथि में आपको मच्छमणि अवस्य धारण करना चाहिए।
यदि कोई व्यक्ति काल सर्प दोष से परेशान है जीवन में अनेकों परेशानियां हैं, मानसिक और आर्थिक परेशानियां लगातार सता रहीं है और यदि आप काल सर्प दोष के कष्टों का निवारण चाहते हैं तो आपको मच्छमनी अवश्य धारण करना चाहिए ।
मच्छमणि शत्रुओं से हमें बचाता है और हमारे मनोबल में वृद्धि करता है यदि किसी व्यक्ति को या बच्चे को अपने घर में या किसी कोने में अनजान छाया दिखाई दे तो उसे मच्छमणि धारण करना चाहिए ।
शरीर में थकावट, नजरदोष, ऊपरी बाधा, गुरु चांडाल दोष, व्यापार में बाधा आदि दूर करने हेतु मच्छमणि धारण अवश्य धारण करना चाहिए।


ओरिजनल लैब प्रमाणित मच्छमणि कहां से खरीदें ?

मित्रों हमारे नवदुर्गा ज्योतिष केंद्र में अभिमंत्रित लैब प्रमाणित मच्छमणि मिल जाएगी साथ ही साथ यह आपको अभिमंत्रित करके दी जाएगी जिससे आपको इसका तुरंत लाभ प्राप्त हो, यह हमारे यहां मात्र 1800₹ में मिल जाएगी।

इसके अलावा हमारे यहां सभी प्रकार के रत्न, उपरत्न, रुद्राक्ष, पूजा से संबंधित सभी प्रकार के समान, जड़ी बूटी एवं हवन ऑनलाइन और ऑफलाइन कराए जाते हैं ।

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ऐसी ही अनेकों जानकारी के लिए हमारी ऑफिशियल वेबसाइट — Jyotisite.com » पर अवश्य जाएं।

हैमरहेड कीड़ा है सबसे क्रूर


यह हैमरहेड कीड़ा है, एक पतला, साँप के आकार का कीड़ा।

देखिये यह कीड़ा कैसे चलता है:

ये कीड़े एक आक्रामक प्रजाति हैं। वे केंचुआ खाते हैं। केंचुआ खाने के लिए वे अपने शरीर को केंचुए के ऊपर लपेट देते हैं। अंत में वे केंचुए के बेजान शरीर से सब कुछ चूस लेते हैं। अब यह कीड़े अमेरिका और यूरोप में बढ़ते जा रहे हैं।

हैमरहेड कीड़ा खुद को दो हिस्सों में काटकर प्रजनन करता है। कभी-कभी वे खुद के शरीर को भी खाते हैं। वैसे तो एशिया में यह नहीं है, फिर भी अगर आपको कभी यह कीड़ा दिखाई दे तो उसे मारने के लिए उस पर नमक डालें। ध्यान रहे, इसे काटें नहीं! क्योंकि इसे काटने का अर्थ है एक कीड़े से दो कीड़े बनाना!

भगवान शिव के गण नंदी का रहस्य


शिव की घोर तपस्या के बाद शिलाद ऋषि ने नंदी को पुत्र रूप में पाया था। शिलाद ऋषि ने अपने पुत्र नंदी को संपूर्ण वेदों का ज्ञान प्रदान किया। एक दिन शिलाद ऋषि के आश्रम में मित्र और वरुण नाम के दो दिव्य ऋषि पधारे। नंदी ने अपने पिता की आज्ञा से उन ऋषियों की उन्होंने अच्छे से सेवा की। जब ऋषि जाने लगे तो उन्होंने शिलाद ऋषि को तो लंबी उम्र और खुशहाल जीवन का आशीर्वाद दिया लेकिन नंदी को नहीं।

तब शिलाद ऋषि ने उनसे पूछा कि उन्होंने नंदी को आशीर्वाद क्यों नहीं दिया? इस पर ऋषियों ने कहा कि नंदी अल्पायु है। यह सुनकर शिलाद ऋषि चिंतित हो गए। पिता की चिंता को नंदी ने जानकर पूछा क्या बात है पिताजी। तब पिता ने कहा कि तुम्हारी अल्पायु के बारे में ऋषि कह गए हैं इसीलिए मैं चिंतित हूं। यह सुनकर नंदी हंसने लगा और कहने लगा कि आपने मुझे भगवान शिव की कृपा से पाया है तो मेरी उम्र की रक्षा भी वहीं करेंगे आप क्यों नाहक चिंता करते हैं।

इतना कहते ही नंदी भुवन नदी के किनारे शिव की तपस्या करने के लिए चले गए। कठोर तप के बाद शिवजी प्रकट हुए और कहा वरदान मांगों वत्स। तब नंदी के कहा कि मैं उम्रभर आपके सानिध्य में रहना चाहता हूं। नंदी के समर्पण से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने नंदी को पहले अपने गले लगाया और उन्हें बैल का चेहरा देकर उन्हें अपने वाहन, अपना दोस्त, अपने गणों में सर्वोत्तम के रूप में स्वीकार कर लिया।

सुमेरियन, बेबीलोनिया, असीरिया और सिंधु घाटी की खुदाई में भी बैल की मूर्ति पाई गई है। इससे प्राचीनकल से ही बैल को महत्व दिया जाता रहा है। भारत में बैल खेती के लिए हल में जोते जाने वाला एक महत्वपूर्ण पशु रहा है। बैल को महिष भी कहते हैं जिसके चलते भगवान शंकर का नाम महेष भी है ।

जिस तरह गायों में कामधेनु श्रेष्ठ है उसी तरह बैलों में नंदी श्रेष्ठ है। आमतौर पर खामोश रहने वाले बैल का चरित्र उत्तम और समर्पण भाव वाला बताया गया है। इसके अलावा वह बल और शक्ति का भी प्रतीक है। बैल को मोह-माया और भौतिक इच्छाओं से परे रहने वाला प्राणी भी माना जाता है। यह सीधा-साधा प्राणी जब क्रोधित होता है तो सिंह से भी भिड़ लेता है। यही सभी कारण रहे हैं जिसके कारण भगवान शिव ने बैल को अपना वाहन बनाया। शिवजी का चरित्र भी बैल समान ही माना गया है।

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