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मंगलवार, 2 नवंबर 2021

पूर्णतया प्राकृतिक ऑर्गेनिक अन्न .

बहुत पुरानी बात नही है ये ...... 1960 तक भारत मे गेहूं का आटा जिससे पूड़ियाँ बनती थीं , साल में बमुश्किल एकाध बार जब कभी कोई शादी बियाह य्या काज प्रयोजन होता तो पूड़ियाँ बनती थीं ....... अंग्रेजों के मानसिक गुलाम ही गेहूं की रोटी खाते थे ....... शेष भारत , आम जन सब जौ , चना , मक्का , मटर , बाजरा ज्वार खाते थे ........ 

1960 से पहले हमारे पूर्वज सब यही मोटे अनाज खाते थे । वो तो 1965 में जो हरित क्रांति के नाम पर देश पर गेंहू थोपा गया ।

पुरातन काल मे हमारे पूर्वज टामुन , मड़ुआ , सांवा , कोदो , कंगनी , तिन्ना , करहनी , जैसे सात्विक अन्न खाया करते थे जो अब लगभग लुप्तप्राय हैं । 
बहुत सा ऐसा भोजन था जिसे अन्न माना ही नही जाता था । जैसे कुट्टू और सिंघाड़ा ...... इनकी गिनती अनाज में नही बल्कि फलों में होती थी और इनकी रोटी को फलाहार माना जाता था ......
आज भी व्रत त्योहारों में इनका सेवन फलाहार के रूप में होता है ........

पिछले दो वर्षों से मैं देश भर के दूरदराज के गांवों में हमारा ये जो भूला बिसरा पुराना पुरातन वैदिक अन्न है इसके उत्पादन के विषय मे जानकारी जुटा रहा हूँ ।
अपनी इस खोज में मैंने ये पाया कि जहां जहां भी पूंजीवादी एक फ़सली अवैज्ञानिक कृषि है वहां से ये अनाज पूरी तरह लुप्त हो चुके हैं । और जहां अभी भी इंटेलिजेंट इलाके हैं वहां इनकी खेती अब भी हो रही है ........ जैसे ये कोदो , मड़ुआ , रागी , कंगनी , टामुन जैसे अन्न अभी भी उत्तराखंड के ऊपरी इलाकों , झारखंड , छत्तीसगढ़ के जंगलों और बुंदेलखंड के सूखे असिंचित खेतों में अब भी मिल जाते हैं ......
एक दिन मैंने कुछ महिलाओं को नहर किनारे की दलदली जमीन में झाड़ियों में घुस के एक प्राकृतिक / जंगली अनाज तिन्ना बटोरते देखा ।
ये वनवासी औरतें दिन भर तिन्ना झाड़ती तो दो तीन किलो अन्न मिलता । 
फिर एक दिन उन्हीं में से एक महिला मुझे पाव भर तिन्ना दे गई ........ उसकी खीर बनी ....... पूर्णतया प्राकृतिक ऑर्गेनिक अन्न .......जो अपने आप वर्षा ऋतु में दलदल में उग आता है ....... क्या दिव्य स्वाद था उसका .......
फिर उसी तरह एक दिन गांव में सांवा का चावल खाया , सांवा की खीर खाई ....... वाह ...... क्या दिव्य भोजन था वो ......
जब Diabetese हो गयी तो डॉक्टर ने कहा गेहूं छोड़ दो और जौ बाजरे का आटा खाओ ...... जौ तो इतना आसान न था पर बाजरा ला के घर मे ही पीसने लगे ....... 

फिर जब इस विषय मे अध्ययन किया तो पाया कि आज life Style जनित जो भी स्वास्थ्य समस्याएं हैं उनकी जड़ में ये 3 चीज़ें हैं ........
गेहूं का आटा / मैदा यानी White आटा
White Sugar 
White Salt 
अगर हम अपने भोजन में ये 3 चीज़ छोड़ के मोटे अनाज जौ बाजरा चना कोदो सावां टामुन मड़ुआ रागी कनगी इत्यादि शामिल कर लें और White Sugar की जगह गुड़ , शक्कर , राब 
और सफेद नमक की जगह सेंधा नमक और Rock Salt काला नमक शामिल कर लें तो बहुत सी स्वास्थ्य समस्याएं तो यूँ ही हल हो जाएंगी ।🙏 

सांवा की खीर हमनें भी खाई है बचपन में , मीठा चावल बोलते है उसे , बिना चीनी के भी उसका खीर बहुत मीठा होता है 😍😍😍

रविवार, 31 अक्तूबर 2021

कल रमा एकादशी है।दिनांक: 1/11/2021 दिन: सोमवार।

🌹🙏रमा एकादशी🙏🌹
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कल रमा एकादशी है।दिनांक: 1/11/2021 दिन: सोमवार।
युधिष्ठिर ने पूछा : जनार्दन ! मुझ पर आपका स्नेह है, अत: कृपा करके बताइये कि कार्तिक के कृष्णपक्ष में कौन सी एकादशी होती है ?
 
भगवान श्रीकृष्ण बोले : राजन् ! कार्तिक (गुजरात महाराष्ट्र के अनुसार आश्विन) के कृष्णपक्ष में ‘रमा’ नाम की विख्यात और परम कल्याणमयी एकादशी होती है । यह परम उत्तम है और बड़े-बड़े पापों को हरनेवाली है ।
 
पूर्वकाल में मुचुकुन्द नाम से विख्यात एक राजा हो चुके हैं, जो भगवान श्रीविष्णु के भक्त और सत्यप्रतिज्ञ थे । अपने राज्य पर निष्कण्टक शासन करनेवाले उन राजा के यहाँ नदियों में श्रेष्ठ ‘चन्द्रभागा’ कन्या के रुप में उत्पन्न हुई । राजा ने चन्द्रसेनकुमार शोभन के साथ उसका विवाह कर दिया । एक बार शोभन दशमी के दिन अपने ससुर के घर आये और उसी दिन समूचे नगर में पूर्ववत् ढिंढ़ोरा पिटवाया गया कि: ‘एकादशी के दिन कोई भी भोजन न करे ।’ इसे सुनकर शोभन ने अपनी प्यारी पत्नी चन्द्रभागा से कहा : ‘प्रिये ! अब मुझे इस समय क्या करना चाहिए, इसकी शिक्षा दो ।’
 
चन्द्रभागा बोली : प्रभो ! मेरे पिता के घर पर एकादशी के दिन मनुष्य तो क्या कोई पालतू पशु आदि भी भोजन नहीं कर सकते । प्राणनाथ ! यदि आप भोजन करेंगे तो आपकी बड़ी निन्दा होगी । इस प्रकार मन में विचार करके अपने चित्त को दृढ़ कीजिये ।
 
शोभन ने कहा : प्रिये ! तुम्हारा कहना सत्य है । मैं भी उपवास करुँगा । दैव का जैसा विधान है, वैसा ही होगा ।
 
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं : इस प्रकार दृढ़ निश्चय करके शोभन ने व्रत के नियम का पालन किया किन्तु सूर्योदय होते होते उनका प्राणान्त हो गया । राजा मुचुकुन्द ने शोभन का राजोचित दाह संस्कार कराया । चन्द्रभागा भी पति का पारलौकिक कर्म करके पिता के ही घर पर रहने लगी ।
 
नृपश्रेष्ठ ! उधर शोभन इस व्रत के प्रभाव से मन्दराचल के शिखर पर बसे हुए परम रमणीय देवपुर को प्राप्त हुए । वहाँ शोभन द्वितीय कुबेर की भाँति शोभा पाने लगे । एक बार राजा मुचुकुन्द के नगरवासी विख्यात ब्राह्मण सोमशर्मा तीर्थयात्रा के प्रसंग से घूमते हुए मन्दराचल पर्वत पर गये, जहाँ उन्हें शोभन दिखायी दिये । राजा के दामाद को पहचानकर वे उनके समीप गये । शोभन भी उस समय द्विजश्रेष्ठ सोमशर्मा को आया हुआ देखकर शीघ्र ही आसन से उठ खड़े हुए और उन्हें प्रणाम किया । फिर क्रमश : अपने ससुर राजा मुचुकुन्द, प्रिय पत्नी चन्द्रभागा तथा समस्त नगर का कुशलक्षेम पूछा ।
 
सोमशर्मा ने कहा : राजन् ! वहाँ सब कुशल हैं । आश्चर्य है ! ऐसा सुन्दर और विचित्र नगर तो कहीं किसीने भी नहीं देखा होगा । बताओ तो सही, आपको इस नगर की प्राप्ति कैसे हुई?
 
शोभन बोले : द्विजेन्द्र ! कार्तिक के कृष्णपक्ष में जो ‘रमा’ नाम की एकादशी होती है, उसीका व्रत करने से मुझे ऐसे नगर की प्राप्ति हुई है । ब्रह्मन् ! मैंने श्रद्धाहीन होकर इस उत्तम व्रत का अनुष्ठान किया था, इसलिए मैं ऐसा मानता हूँ कि यह नगर स्थायी नहीं है । आप मुचुकुन्द की सुन्दरी कन्या चन्द्रभागा से यह सारा वृत्तान्त कहियेगा ।
 
शोभन की बात सुनकर ब्राह्मण मुचुकुन्दपुर में गये और वहाँ चन्द्रभागा के सामने उन्होंने सारा वृत्तान्त कह सुनाया ।
 
सोमशर्मा बोले : शुभे ! मैंने तुम्हारे पति को प्रत्यक्ष देखा । इन्द्रपुरी के समान उनके दुर्द्धर्ष नगर का भी अवलोकन किया, किन्तु वह नगर अस्थिर है । तुम उसको स्थिर बनाओ ।
 
चन्द्रभागा ने कहा : ब्रह्मर्षे ! मेरे मन में पति के दर्शन की लालसा लगी हुई है । आप मुझे वहाँ ले चलिये । मैं अपने व्रत के पुण्य से उस नगर को स्थिर बनाऊँगी ।
 
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं : राजन् ! चन्द्रभागा की बात सुनकर सोमशर्मा उसे साथ ले मन्दराचल पर्वत के निकट वामदेव मुनि के आश्रम पर गये । वहाँ ॠषि के मंत्र की शक्ति तथा एकादशी सेवन के प्रभाव से चन्द्रभागा का शरीर दिव्य हो गया तथा उसने दिव्य गति प्राप्त कर ली । इसके बाद वह पति के समीप गयी । अपनी प्रिय पत्नी को आया हुआ देखकर शोभन को बड़ी प्रसन्नता हुई । उन्होंने उसे बुलाकर अपने वाम भाग में सिंहासन पर बैठाया । तदनन्तर चन्द्रभागा ने अपने प्रियतम से यह प्रिय वचन कहा: ‘नाथ ! मैं हित की बात कहती हूँ, सुनिये । जब मैं आठ वर्ष से अधिक उम्र की हो गयी, तबसे लेकर आज तक मेरे द्वारा किये हुए एकादशी व्रत से जो पुण्य संचित हुआ है, उसके प्रभाव से यह नगर कल्प के अन्त तक स्थिर रहेगा तथा सब प्रकार के मनोवांछित वैभव से समृद्धिशाली रहेगा ।’
 
नृपश्रेष्ठ ! इस प्रकार ‘रमा’ व्रत के प्रभाव से चन्द्रभागा दिव्य भोग, दिव्य रुप और दिव्य आभरणों से विभूषित हो अपने पति के साथ मन्दराचल के शिखर पर विहार करती है । राजन् ! मैंने तुम्हारे समक्ष ‘रमा’ नामक एकादशी का वर्णन किया है । यह चिन्तामणि तथा कामधेनु के समान सब मनोरथों को पूर्ण करनेवाली है ।

🌹🙏 शुभ  रात्री 🙏🌹

🌹🙏जय जय श्री राधे🙏🌹

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दीपावली के दिन सूरन की सब्जी बनती है


दीपावली के दिन सूरन की सब्जी बनती है,,,सूरन को जिमीकन्द (कहीं कहीं ओल) भी बोलते हैं,, आजकल तो मार्केट में हाईब्रीड सूरन आ गया है,, कभी-२ देशी वाला सूरन भी मिल जाता है,,,
बचपन में ये सब्जी फूटी आँख भी नही सुहाती थी,, लेकिन चूँकि बनती ही यही थी तो झख मारकर खाना पड़ता ही था,,तब मै सोचता था कि पापा लोग कितने कंजूस हैं जो आज त्यौहार के दिन भी ये खुजली वाली सब्जी खिला रहे हैं,,, दादी बोलती थी आज के दिन जो सूरन न खायेगा
अगले जन्म में छछुंदर जन्म लेगा,,
यही सोच कर अनवरत खाये जा रहे है कि छछुंदर न बन जाये😂😂 बड़े हुए तब सूरन की उपयोगिता समझ में आई,,

सब्जियो में सूरन ही एक ऐसी सब्जी है जिसमें फास्फोरस अत्यधिक मात्रा में पाया जाता है,, ऐसी मान्यता है और अब तो मेडिकल साइंस ने भी मान लिया है कि इस एक दिन यदि हम देशी सूरन की सब्जी खा ले तो स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में पूरे साल फास्फोरस की कमी नही होगी,,

मुझे नही पता कि ये परंपरा कब से चल रही है लेकिन सोचीए तो सही कि हमारे लोक मान्यताओं में भी वैज्ञानिकता छुपी हुई होती थी ,,,
धन्य पूर्वज हमारे जिन्होंने विज्ञान को परम्पराओं, रीतियों, रिवाजों, संस्कारों में पिरो दिया🙏🏻🙏

शनिवार, 30 अक्तूबर 2021

ब्राह्मणों... पंडित... पुजारियों को गाली देने का एक नया फैशन क्यों चल रहा है ?

ब्राह्मणों... पंडित... पुजारियों को गाली देने का एक नया फैशन क्यों चल रहा है ?

- अभी-अभी मैंने एक वीडियो देखा... उस वीडियो में कोट पैंट टाई और सूट बूट से लैस कोई युवक था जिसके हाथ में एक छड़ी थी.... वो किसी निशुल्क अंबेडकर शिक्षण संस्थान का सदस्य था... और वो लगभग 5 से 10 साल की उम्र के लड़के लड़कियों को ये सिखा रहा था कि अगर तुमसे कोई पूछे कि तुम कौन हो ? तो तुम ये कहना कि तुम मूल निवासी हो... और अगर तुमसे कोई ये पूछे कि हिंदू क्या होता है ? तो तुम बताना कि हिंदू मतलब ब्राह्मणों का कुत्ता और तुम कुत्ते नहीं हो.... मानव हो ! 

-ये सारा प्रोपागेंडा चलाकर हिंदू धर्म के लोगों के मन में हिंदू धर्म के खिलाफ एक जहर भरने की कोशिश लगातार की जा रही है । हर समाज में एक ऐसा वर्ग होता है जो धर्म और संस्कृति के नियम अपने समूह या राष्ट्र की सुरक्षा के हिसाब से तय करता है ! मुसलमानों में मौलवी होते हैं.... क्रिश्चियन में पादरी होते हैं.... सिखों में ग्रंथी होते हैं.... बौद्धों में बौद्ध भिक्षु होते हैं... जैनों में तीर्थंकर होते हैं... तो क्या इसका मतलब ये है कि सारे के सारे मुसलमान... मौलवी के कुत्ते हैं... सारे क्रिश्चियन पादरी के कुत्ते हैं और इसी तरह अन्य अन्य बातें । 

-ब्राह्मणों को गाली देना आजकल एक फैशन बन गया है... हर हिंदू द्रोही... जिहादी.... कम्युनिस्ट.... और तमाम देशद्रोही लोग सबसे ज्यादा गाली अगर किसी को देते हैं तो वो ब्राह्मण वर्ग होता है ! पहली बात तो ब्राह्मणों में भी सारे ब्राह्मण पुजारी वर्ग से नहीं आती हैं... कुछ ही ब्राह्मण परिवार होते हैं जिनका पेशा पुजारी या धर्माचार्य का होता है ! और ये पुजारी और धर्माचार्य भी बिना बुलाए कभी किसी के यहां नहीं जाते हैं... अगर कोई कथा के लिए बुलाता भी है तो कभी ये जिद नहीं करते हैं कि हमे इतनी दक्षिणा चाहिए जो मिलता है वो लेकर चले आते हैं... कभी किसी से शिकायत नहीं करते हैं... अपनी श्रद्धा के अनुसार जो आप दें दें जो ईश्वर को चढ़ा दें उससे ज्यादा नहीं मांगते.... संतोष कर लेते हैं ! किसी पर अपने रूल रेगुलेशन नहीं थोपते हैं... देश का कोई नियम कानून नहीं तोड़ते हैं... मुसलमानों में तो मौलवी हलाला करता है... लेकिन पुजारी के चरित्र पर कोई कभी प्रश्नचिह्न लगा ही नहीं सकता है ! मैंने कई मामले देखे हैं जिनमें इन अंबेडकरवादियों ने ही पुजारियों को झूठे मामलों में फंसाने की कोशिश की... ज्यादातर मामले झूठे साबित हुए... लेकिन इसके बावजूद भी ब्राह्मणों से इतनी नफरत आखिर क्यों है ? ये समझना मुश्किल नहीं है... बहुत आसान है ! 

-पुजारी कभी शस्त्र नहीं उठाता... कभी किसी का बुरा नहीं करता है... कभी किसी पर ताने नहीं कसता है... जिस भगवा वस्त्र को धारण करता है उस का मान भी रखता है... लेकिन क्योंकि वो अहिंसक है इसलिए उसको नाना प्रकार के अपशब्द बोलना एक आधुनिक फैशन बन गया है ! 

-मैं इस बात का समर्थक हूं कि पुजारी का पेशा किसी एक जाति के पास नहीं होना चाहिए... हर किसी जाति के व्यक्ति को मंदिर में पुजारी बनने का अधिकार होना चाहिए और सब को उस पुजारी की सेवा भी करनी चाहिए...  क्या हम जब किसी पुजारी के पास जाते हैं तो उसकी जाति पूछते हैं क्या ? कभी नहीं पूछते हैं... हम उसके कर्म को प्रणाम करते हैं... उसकी जाति को नहीं ! 

-लेकिन ये बहुत दुख का विषय है कि पुजारियों को और ब्राह्मणों को बदनाम करने की कोशिश बहुत लंबे अर्से से की जा रही है ! ये सब इसलिए किया जा रहा है ताकी हिंदू धर्म का उपदेशक वर्ग का सम्मान खत्म हो जाए और कोई उसकी बात ना माने... जब धर्म का पालन करवाने के लिए प्रेरित करने वाला वर्ग ही नहीं बचेगा तो हिंदू धर्म स्वयं ही खत्म हो जाएगा.... इसी लक्ष्य के साथ जिहादी और कम्युनिस्टों का प्रोपागेंडा पूरे भारत में जाती है.... और इसके लिए फिल्मों को भी माध्यम बनाया गया... पुरानी फिल्मों में ये देखा गया कि ब्राह्मण कुंडली बदलकर नोट लेता है और आज की वेबसीरीज में मिर्जापुर जैसी वेबसीरीज में ब्राह्मणों को गुंडा.... बदमाश और बलात्कारी दिखाया जाता है.... ब्राह्मण ससुर के चरित्र को गलत दिखाया जाता है... ये सब फरहान अख्तर के डायरेक्टर शिप में होता है ! 



-ब्राह्मण जाति से आने वाले और जिहाद को भारत से उखाड़ फेंकने वाले श्रीमंत पेशवा बाला जी बाजीराव को बदनाम करने के लिए साजिद खान अपनी फिल्म में एक गाना डालता है... बाला ओ बाला शैतान का साला... और ये गाना खूब हिट होता है कोई इस गाने पर आपत्ति नहीं जताता है ! कोई ब्राह्मणों की महासभा संगठन वगैरह इस पर कोई आंदोलन नहीं छेड़ते हैं... ये बड़े दुख का विषय है कि अब पुजारियों को काफी हद तक बदनाम कर दिया जा चुका है कि पुजारी तो लालची होता है ! ये सब फिल्मों का दिखाया हुआ कूड़ा करकट आम आदमी के दिमाग में भर चुका है !

-जरा हम लोग अपनी शब्दावली पर ध्यान दें... जब घरों के अंदर भी पूजा पाठ के लिए पंडित जी को बुलाया जाता है तो कई लोग ऐसे होते हैं जो इस तरह से बात करते हैं.... अरे पंडित आया कि नहीं ? भाई तुम्हें कथा का लाभ क्या मिलेगा जब तुम पंडित जी भी नहीं बुला सकते हो... सम्मान करोगे तो ही तो सम्मान प्राप्त करोगे ! 

-शुरुआत में जो बात लिखी थी... मूल निवासी... फलाना... ढिकाना... ये लोग जो खुद को अंबेडकरवादी कहते हैं दरअसल अंबेडकर वादी भी नहीं हैं क्योंकि अंबेडकर ने मूल निवासी वाली थ्योरी खारिज कर दी थी और ये कहा था कि आर्य सिर्फ एक संबोधन है ना कोई जाति और ना कोई नस्ल । और अंबेडकर के अंदर भी ब्राह्मणों के प्रति ऐसी घृणा नहीं थी जैसी आज फैलाई जा रही है... अंबेडकर .... अपने आम में एक ब्राह्मण सरनेम है... वो जाति से महार थे लेकिन अपने नाम के आगे महार नहीं बल्कि ब्राह्मण सरनेम ही लगाते थे जो उनके ब्राह्मण टीचर ने ही उनको दिया था ! और ये लोग जो हमेशा ब्राह्मणों को गरियाते हैं ये जान लें कि अंबेडकर ने अपने साहित्य में ये लिखा है कि चंद्रगुप्त मौर्य का बनाया हुआ सिस्टम हिंदुस्तान का सबसे अच्छा पॉलिटिकल सिस्टम था तो ये सिस्टम बनाया तो चंद्रगुप्त मौर्य के गुरु चाणक्य ने ही था तो अप्रत्यक्ष रूप से अंबेडकर ने चाणक्य की भी प्रशंसा की है । अब कोई मुझसे प्रूफ मत मांगना... यूपीए के राज में अंबेडकर का साहित्य एक दर्जन वॉल्यूम में प्रकाशित किया गया था जो कि हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में है मैंने वहीं से ये सारे फैक्ट्स लिए हैं जिसको चेक करना है वहां चेक कर ले । ये सारे वॉल्यूम इंटरनेट पर मौजूद हैं... फ्री हैं  ।

-अंत में इतना ही कहूंगा कि हिंदू धर्म से अलग होने के जिस ध्येय को लेकर कुछ दलित वर्ग चल रहे हैं वो खुद ही समंदर में कूदने जा रहे हैं और उनका जिहादियों के द्वारा बहुत बुरा अंत होगा ! 

-अच्छे बुरे लोग हर जाति में होते हैं... चाहे पुजारी हों चाहे ब्राह्मण यहां भी अच्छे बुरे हर तरह के लोग होंगे.... लेकिन जनरलाइज करके आप पूरे वर्ग को टारगेट नहीं कर सकते हैं.... अगर ऐसा कर रहे हैं तो इसका मतलब आपका अपना एक प्रोपागेंडा और एजेंडा है !

शुक्रवार, 29 अक्तूबर 2021

People Who Were Utterly Betrayed by Shopping Ads

People Who Were Utterly Betrayed by Shopping Ads

 “Another warning of thinking it’s gonna look as cool as the advertisement. Go ahead, roast me.”

“I mean...it looks equally as bad as the picture on the box.”


 “What I ordered vs what I got”


 “I bought an electric hobby drill for my plastic models, which turned out to be a plastic model itself.”


“Not ordering from them again.”


 “Are you kidding me?”


 “Warned my friend about buying online. Hope he learned his lesson.”


 Not quite the same..


“The laptop stand I ordered vs the laptop ‘stand’ I got”


 “Creamy butterscotch drops...not so creamy.”


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