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बुधवार, 3 नवंबर 2021

दिवाली के इस शुभ अवसर पर अपने इर्द-गिर्द रामराज्य स्थापित कीजिए स्वर्ग स्थापित कीजिए और परम आनंदित रहिए।

सभी को मेरा नमस्कार आपका जीवन सुखमय हो ईश्वर आपकी सारी संतुलित मनोकामनाएं पूर्ण करें आज दीपावली का शुभ अवसर आज ही के दिन भगवान श्री राम अयोध्या में रामराज्य स्थापित करने को बुराई के प्रतीक रावण राज्य को नष्ट कर पधारे। 

मित्रों इसी दिन हम भारतीयों के लिए नया साल भी शुरू होता है क्यों नहीं हम हमारे घर में हम जहां तक कर सकते हैं वहां तक राम राज्य के नियमों का पालन करें आप आश्चर्यचकित रह जाएंगे आपके अपने एरिया में आपके देखने में सुख ही सुख उत्पन्न हो जाएगा दुख के गहरे सागर में भी आप अपनी आत्मा का दर्शन कर प्रभु को अपने नजदीक पाकर परमानंद महसूस कर सकते हैं।

मेरा यह लेख काफी लंबा है और मेरी पुस्तक जीवन उत्सव का एक पार्ट है। दुख के इस गहरे सागर में भी हम कैसे सुखी रहे इस पर यह लेख हैं। कदाचित पढ़ने के बाद आपको यह लगे कि हमने समय खराब नहीं किया इसी आशा में मैं आगे लिख रहा हूं।

तो मुझे किसी ने पूछा क्या हम मरने के बाद स्वर्ग में जाएंगे या नर्क में तो मैंने जवाब दिया मेरे ख्याल से स्वर्ग और नर्क दोनों यही है वर्तमान में है और अपने अपने कार्यों से हम इनका अनुभव करते रहते हैं कोई इंसान परम आनंदित रहता है हर हाल में परम आनंदित रहता है और कोई इंसान अपने आप को हर समय बहुत दुखी महसूस करता है। शारीरिक आर्थिक मानसिक और कई तरह की तकलीफ दोनों को होती है लेकिन कोई उस में भी परम आनंदित रहता है दुख तो उसको भी होता है लेकिन प्रभु इच्छा मानकर उसमें भी दिल में और चेहरे पर मुस्कुराहट होती है संतोष होता है चित शांत होता है विश्वास होता है हर कमी के बाद भी हम मानव जीवन में सर्वोत्तम ही करेंगे। वे यह नहीं देखते कि उनके साथ क्या हो रहा है क्या बर्ताव हो रहा है बल्कि वे इस पर ध्यान देते हैं हम क्या सर्वोत्तम कर सकते हैं और सर्वोत्तम करके दुखों के गहरे सागर में भी परम आनंदित महसूस करते हैं और अपने आप को स्वर्ग में रहना ही महसूस करते हैं हमारे पर क्या बीतेगी या क्या बीत रही है इस पर हमारा कंट्रोल नहीं है लेकिन हम क्या कर सकते हैं इस पर पूरा पूरा हमारा कंट्रोल है तो क्यों नहीं हम बेस्ट करें और जो रिजल्ट आता है उसको सहजता से स्वीकार करें बस स्वर्ग में रहने के लिए यही चाहिए और नहीं तो सर्वोत्तम प्राप्त करके भी कोई न कोई कमी निकाल कर आप दुखी रह सकते हैं आपको इससे कोई नहीं रोक सकता आपको खुद को ही समझाना पड़ेगा और आत्मा से परमात्मा को मिलता हुआ तभी आप देख सकते हैं।

गंभीर रूप से आर्थिक शारीरिक मानसिक अपराध करने वाले अगर प्रायश्चित कर लेते हैं तो वे भी इस परम आनंद को पा सकते हैं डाकू रत्नाकर ने लाखों लोगों की हत्या की लेकिन जब बाल्मीकि बन गए महर्षि बाल्मीकि कहलाए। सच्चे प्रायश्चित में बहुत बड़ी शक्ति होती है हम कल्पना नहीं कर सकते उससे भी बड़ी होती है लेकिन प्रायश्चित सच्चा होना चाहिए।

देखने में तो यह बातें असंभव लगती है लेकिन जब हम यह समझना शुरू करते हैं की  मेरे जीवन का लक्ष्य क्या है, तो सब कुछ समझ आने लग जाता है परम आनंद प्राप्त होने लग जाता है बस आप सच्चे होने चाहिए एकदम कोहिनूर की तरह कोई लाग लपेट नहीं कोई धोखा नहीं कोई मन में संशय नहीं बस परम आनंद हर परिस्थिति में चित एकदम शांत प्रभु और खुद पर विश्वास। तो आगे शुरू करते हैं सुख और दुख की इस कहानी को।

हम इस भ्रम में हो जाते हैं कि अगर हम कोई लक्ष्य पा लें जैसे सीए बन जाऊं डॉक्टर बन जाऊं इंजीनियर बन जाऊं या बंगला बन जाए सुंदर बीवी मिल जाए करोड़ों रुपए का बैंक बैलेंस सभी लोग मेरी बातें माने तो मेरी जीवन का लक्ष्य पूरा हो जाए। जिनके यह लक्ष्य पूरे हो जाते हैं तो उनको तुरंत महसूस होता है की दुख तो मेरे को मेरे सारे लक्ष्य पूर्ण करने के बाद भी हो रहा है। आदमी ठगा सा रह जाता है कि यह तो मेरा लक्ष्य ही नहीं था मैं तो यूं ही अपने जीवन के अनमोल वर्ष खत्म कर दिए मायाजाल में ही फंसा रहा सब कुछ है लेकिन अगर शरीर मैं कुछ कमी हो गई या बुढ़ापा आ गया तो कुछ भी नहीं है जिनको हम अपना मानते हैं महसूस होता है वे किसी और को अपना मानते हैं और अपने-अपने दायरे में एक दूसरे को अपना मानते हैं और जिन्होंने अपने जीवन का लक्ष्य पूरा नहीं किया उनको तो यह बात समझ नहीं आती।

तो फिर जीवन का लक्ष्य क्या है तो मेरा यह कहना है

प्रभु और आत्मा का मिलन ही मेरा लक्ष्य है

इस दुनिया में सबसे बड़ा आशीर्वाद है हर हाल में सहज रहना

दोस्तों यह मत कहिए कि 
इनसे तो कंफर्टेबल हूं और उनसे तनाव हो जाता है।

खुद को सबसे सहजता से मिलाना सिखाइए 

सीखने से बड़ा मजा आएगा।

समय जरूर लगेगा लेकिन सीख जरूर जाएंगे। 

डाली पर बैठने वाली चिड़िया नहीं घबराती की डाली टूट गई तो क्या होगा 

साथ रहकर भी सदैव स्वतंत्र,उपयोगी व आशा की किरण बने रहे

दोस्तों सुखी वही है 
जिसका सामर्थ्यवान होते हुए भी काम क्रोध और मोह पर नियंत्रण है और 
जिसके सब संशय परम ज्ञान द्वारा निर्वत हो गए हैं

निश्चल भाव से संपूर्ण प्राणियों के हित में लीन होकर जिसका मन परमपिता में स्थित है वे ब्रह्मवेत्ता शांति ब्रह्म को प्राप्त होते हैं

अगर आपको सुख से जीना है
स्वावलंबी बनकर जीना है 

तो फिर याद रखिए

शक्नोति जीवितुं दक्षो नालसः सुखमेधते ।

दक्ष मानव सुख से जी सकता है आलसी नहीं । अपने आप को किसी न किसी काम में दक्ष बनाए आपके काम की  मिसाल होनी चाहिए दुनिया यह कहे कि अगर यह काम आपने किया है तो सर्वोत्तम ही होगा

दोस्तों मेरा परम विश्वास है की

कर्म आजादी पाने की पहली सीढ़ी है

बहुत प्रसिद्ध जीवन जीने की कला में संस्कृत का एक  श्लोक है

उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः ।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः

अर्थात हम केवल प्रतिज्ञा कर ले या विचार कर ले 
तो कार्य पूर्ण नहीं होगा जब तक हम लगातार कठोर परिश्रम नहीं करें केवल सिंह रूप से पैदा हो जाने से सिंह की इच्छा मात्र से हिरण  मुंह में नहीं आ जाता सिंह रूपी जन्म लेकर भी संघर्ष तो करना ही पड़ता है

याद रखिए यही स्वर्ग है यही नर्क है

कोई भी कार्य शुरु करने से पहले थोड़ा मुस्कुराए माहौल बदल जाएगा

देखने से पहले मुस्कुराए देखकर नहीं मुस्कुराए बाद में तो यह सोचे कि और क्या बेस्ट कर सकता हूं। समय पर अच्छा ओर मानवीय निर्णय ले और निरन्तर सुधार करते रहे।सभी से प्यार से जुड़े रहे।ईगो बिलकुल नही अपनी बेस्ट परफॉरमेंस पर ध्यान दे। महान,ग्रेसफुल एवं सफल बनने से आपको कोई नहीं रोक सकता

पत्नीे जीवन साथी है परिवार के अन्य सदस्यों के लिए यह नियम रखो

क्या हुआ मेरी तबीयत थोड़ी खराब है तो
क्या हुआ मेरे पास पैसे कम है तो
क्या हुआ किसी ने कुछ बोल दिया तो
क्या हुआ मेरी बात नहीं रही तो
क्या हुआ मेरे मन की नहीं हुई तो
सब कुछ होते हुए भी हम एक है ना
थोड़ा सहारा मैं दूंगा थोड़ा सहारा तू देना
उमंगों से भरा है दिल मेरा
हम जानते हैं खुशियां हमारे मन में हैं कहीं और नहीं
सारे जहां की खुशियां हमारे मन में हैं
हाथों में हाथ डालकर हम सब ठीक कर लेंगे

गमो से कह दो दूर रहो हमसे
अभी हम हंसने के मूड में है

घर में थोड़ा समय दीजिए

किसी के जीवन में कुछ अच्छा करने के लिए आपका अमीर होना या सुंदर होना या ताकतवर होना आवश्यक नहीं है
आवश्यकता है उसको समय देना
आपका उसके प्रति प्रेम व त्याग की भावना
समय समय पर समय देकर सही सलाह देना
विचार विमर्श करना
प्यार और मनुहार से समझाना या समझना

मित्रों हम में से ज्यादातर 60 बरस की उम्र के आसपास है अगर कोई कम का भी है तो सुन ले आगे उसकी भी काम आएगा

60 बरस की उम्र हो गई है आगे की 65 बरस की प्लानिंग इस प्रकार करें

मित्रों 125 वर्ष की उम्र को बहुत लोगों ने जिया है क्या आप इतने समझदार हैं कि आप भी जी सको 
मैं आपको पूछता हूं आप में से कितने लोग 125 वर्ष जीना चाहते हैं और जो नहीं जीना चाहते वह कहीं न कहीं जीने की कला नहीं जानते और जो जानते हैं उनके लिए तो कुछ कहने की जरूरत नहीं है फिर भी मैं कुछ बोलना चाहता हूं

ध्यान रखिए वैसे तो कहा जाता है कि जीवन और मृत्यु प्रभु के हाथ में है लेकिन उसी प्रभु ने आपको, आप अपना जीवन कैसे जिए के लिए, बुद्धि प्रदान की हैं  अगर आप समझदारी से काम लेते हैं तो जीवन को सरलता से एवं बिना इगो के आनंदपूर्वक जी सकते हैं कई बार लोगों को धन सत्ता और अधिकार से यह लगता है कि यही उनका जीवन है और इसी में आनंद है लेकिन सत्यता तो यह है कि दुनिया में कई राजा-महाराजा आए कई बड़े-बड़े नेता बनें  लेकिन उनमें से बहुत सीमित लोगों का नाम आज भी दुनिया में मौजूद है इसलिए आप जो कर रहे हैं समझ रहे हैं क्या दुनिया वही समझती है यह हम को समझना चाहिए और वह काम करना चाहिए जिससे आमजन का बिना कोई पक्षपात किए भला हो सके।

अपने मन को उत्साहित रखें कोई भी बात दिल पर ना लें इज्जत का सवाल नहीं बनाए

बहुत ज्यादा आसक्ति मोह माया या घृणा नहीं करें अपनी तरफ से जो बेस्ट हो सकता है प्रेम और खुशी से करें 

कोई आप पर जोर से चिल्लाए तो आप किसी हालत में तनाव में नहीं आए प्रभु ने आपको दो कान आर पार दिए हैं और बीच में दिमाग दिया है जो दोनों कानों के थोड़ा सा ऊपर होता है जो काम की बात है उसको तुरंत दिमाग में लेते रहें और जो काम की बात नहीं है और जो किसी और सभी के हित में नहीं है तो आर पार निकाल दे ध्यान रहे अगर किसी को आपसे समस्या है तो आर पार निकालना भारी पड़ सकता है उस समय दिमाग काम लेकर उस समस्या को ठीक करने का अपनी तरफ से पूरा प्रयास करें बाकी प्रभु पर छोड़ दे।

Friend कम से कम 90 मिनट्स नियम से खुद के लिए निकालें जिसमें योगा कसरत हास्य दौड़ना शामिल हो YouTube में आप देख सकते हैं 95 वर्ष के जवान भी अच्छी दौड़ लगा रहे हैं आप भी शुरुआत में धीमे धीमे और धीरे-धीरे अपनी स्पीड बढ़ा सकते हैं इसके लिए आपको अपने मसल्स अपनी हड्डियों और नसों को मजबूत करना पड़ेगा।
परिवार में टोकाटोकी बंद कर दे नियमों की पालना के लिए कहना भी हो तो प्यार से कहें जिद ना करें। 

अपनी वाकपटुता बढ़ाएं प्यार से मुस्कुराते हुए बोले मन में प्रेम हो घृणा बिल्कुल नहीं हो बदले की भावना शुन्य हो और बोलने का या समझाने का एक मात्र उद्देश्य परिवारजनों का हित हो अपनी बात को इशू नहीं बनाए

 एक बार कह दिया बहुत है एक बार से ज्यादा कहने के लिए कम से कम 100 बार सोचे और 7 दिन का कम से कम गेप दे ताकि आपको समझ आ जाए कि यह बात दूसरी बार कहना जरूरी हैं और उस अंतराल में चिंता बिल्कुल नहीं करें  विश्वास रखे परिवार का हर सदस्य अपनी समझ में बेस्ट कर रहा है और समझदार है। हर बार हम खुद सही नहीं होते कभी कभी हम भी गलत हो सकते हैं यह समझना जरूरी है।
अपने आप को नए सोसिअल कमिटमेंट में लगाएं उन लोगों के लिए काम करें जो समाज में पिछड़े हैं या वह बच्चे जिनको मूलभूत सुविधाएं नहीं मिली है या वह काम करें जो समाज को एक अच्छी नई दिशा दिखाएं। ऐसे कॉमन विचार वाले लोगों का एक ग्रुप बनाएं और उस कमिटमेंट को पूरा करने के लिए अच्छी तरह से लग जाए।
अगर आर्थिक रुप से कमजोर है और काम भी करना पड़े तो वह काम करें जिसमें सत्यता हो तनाव नहीं हो आप अपनी आंखें खुली रखेंगे तो धीरे-धीरे इस तरीके का काम मिल जाएगा मेरे एक मित्र 60 वर्ष की आयु में जब रिटायर हुए तो उनके पास कुछ भी नहीं था और 95 वर्ष की उम्र में कम से कम ₹5000 करोड रुपए के मालिक है उनका स्वास्थ्य भी बिल्कुल फिट है कारण की उन्होंने जो काम किया वह सामाजिक रुप से गलत नहीं था आंखें खुली रखी और जो बिजनेस का निर्णय लिया उसमें सदैव ग्राहक के हित का भी पूरा ध्यान रखा और सदैव सावधान रहकर अच्छे लोगों के साथ ही काम किया उनको भी इस लेवल तक आने में समय लगा
हर हाल में मस्त रहें प्रभु पर विश्वास रखें आंखें खुली रखें समय समय पर उचित निर्णय लेते रहे अच्छे नियमों का पालन करें कभी कोई ऐसा काम नहीं करें जिस को करने से आपकी आत्मा रोके
 

इसलिए सब्र से उपरोक्त नियमों का पालन करते हुए आप फिट रहते हुए अच्छा काम कर सकते हैं अपने पर पूरा विश्वास रखिए आप ही अपनी जिंदगी बदलोगे कोई और आपकी जिंदगी बदलने के लिए आने वाला नहीं है आप सुधरोगे जग सुधरेगा। मैंने 60 वर्ष के बाद आगे के 65 वर्ष की प्लानिंग बताई है लेकिन बहुत सारे लोग इस से भी आगे चले जाते हैं सब कुछ आप पर खुद पर ही निर्भर है।

सोचो साथ क्या जाएगा अभी नहीं सोचा तो भविष्य में पछतावा रहेगा की इस दुनिया में आए और कुछ नहीं किया शिवाय तेरी और मेरी के

अच्छी नीयत रखिए सो अच्छी तरह से पाएंगे सुख पाएंगे

मन और बुद्धि को संतुलित रखिए
न चाभावयतः शान्तिरशान्तस्य कुतः सुखम्।।

जिस में भावना,मानवता नहीं, जो इंद्रिय सुख में ही लिप्त व लालची है उसे कभी शांति नहीं होती ओजस्वी जीवन, सुखमय परिवार व खुशी के लिए मन और बुद्धि को अच्छे कामों में लगाइए दानी रहिए जीवन सुखमय रहेगा
बड़ी यूनिवर्सिटी से पढ़ाई,बड़े परिवार से होना या साधन संपन्न होना से भी बड़ी चीज है नियत। नियत अच्छी नहीं होने पर न केवल आप को दुर्भाग्यशाली होते हैं बल्कि हर समय किसी न किसी को अपना मालिक बना कर रखना पड़ता है तनाव में रहना पड़ता है गलत आदतें अपने आप लग जाती है आपका स्वभाव दीन-हीन से क्रूरता तक जितने लेवल तक आपकी नियत खराब है वहां तक पहुंचा देती है मानव होने का सुख आपको नहीं मिल सकता पाशविक सुख मिल भी जाए तो थोड़ी देर का ही होता है।
जिसकी नियत अच्छी नहीं है वह जब चाहे बदल सकता है शर्त यही है कि सच्चा पश्चाताप हो आपकी आंखों में पश्चाताप के आंसू हो आपके चेहरे पर एवं मन में आत्मा में अच्छी नियत अपनाने की दृढ़ता अपने आप दुनिया को दिखने लग जाती है और वह सारे सुख मिलने लग जाते हैं।
सुख भी कई प्रकार के होते हैं इज्जत का सुख धन का सुख शारीरिक सुख स्वस्थता का सुख पारिवारिक सुख आदि आदि और इन सभी सुखों को प्राप्त करने के लिए इन सभी पर आपको मेहनत करनी होती है।
अच्छी नियत साधनहीन को साधन संपन्न बना देती है बस आप में धैर्य लगन, कड़ी मेहनत, विजन,ग्रुप में काम करना आना व समय पर उचित निर्णय लेना आना चाहिए जितने लेवल के यह सब आप में हैं उतने लेवल की सफलता सुनिश्चित है।
ग्रुप में काम करना आना बहुत जरूरी है इसके लिए सबसे पहले न्यायिक सोच ग्रुप में सभी की भावनाओं को उचित स्थान प्रदान करना ट्रांसपरंट रहना मिठास के साथ बोलना भय रहित ओपन कम्युनिकेशन रहना एक दूसरे की सुनना समझना किसी की भी उचित बात को तुरंत समर्थन देना एवं कम से कम एक अच्छे मानवीय कमिटमेंट पर काम करना आना चाहिए।
हम में से ही किसी की बहुत इज्जत होती है और किसी को कोई नहीं या बहुत लिमिटेड लोग पसंद करते हैं इसका मुख्य कारण उपरोक्त में से ही है आइए हम सब अच्छी नियत की तरफ अग्रसर करें और अपने माइंड सेट को समझाएं

जब जब कोई समस्याएं तो क्या करें

भगवान राम के 14 वर्ष के वनवास एवं रामराज्य तक में आप क्या सीखते हो?
हमारी महान कथा रामायण हमें सिखाती है
जब कोई रास्ता नजर नहीं आए,
अंधेरों में घिर जाएं
कोई साथ नहीं दे
तो प्रार्थना करें
अपने मन वचन एवं कर्म को एक रखें
दिल और आत्मा की आवाज सुने
धैर्य से प्रभु पर विश्वास रखें
मान अपमान की परवाह नहीं करें
सदैव याद रखें
घोर अंधेरी रात के बाद भी
सुबह की किरण जरूर आती है
उत्तम रास्ता निकलेगा
बस तु आंखें खुली रखकर
निर्णय सच्चा लेना
उस समय एक ही बात याद रखना
प्रभु मेरी परीक्षा ले रहे हैं
मैं नंबर वन ही रहूंगा
उच्चतम स्तर का आदर्श स्थापित रखूंगा

रोज सुबह उठते स्वयं खुद से वादा करें मैं सरल रहूंगा हर बात प्यार से एवं मुस्कुराते हुए करूंगा आटे में नमक से ज्यादा क्रोध नहीं करूंगा

आंखें मन का दर्पण है उनको पढ़ना सीखिए अंतरात्मा प्रभु से जुडी होती है उसको सुनना एवं मानना सीखिए

आंखें इंसान के मन का दर्पण है आंखें पढ़ने वाले को समझ आ जाता है की सामने वाला क्रोधित है,मुस्कुरा रहा है,ईर्ष्या हो रही है,घृणा हो रही है,तारीफ हो रही है,जलन हो रही है,मन में अच्छी या बुरी भावना है,कपट का खेल खेला जा रहा है या स्नेह है कई बार हम को समझ आ जाता है और कई बार हमको समझ नहीं आता लेकिन हमारी अंतरात्मा हमें अलर्ट कर देती है की सब कुछ  ठीक नहीं है जब तक आपको आंखें पढ़ना नहीं आए तब तक और उसके बाद भी आप अपनी अंतरात्मा से जरूर पूछें अंतरात्मा का डायरेक्ट कनेक्शन ईश्वर से होता है वह कभी भी गलत नहीं होती आंखें पढ़ना सीखिए और अंतरात्मा से बात करना भी जरूर  सीखें आपको कभी भी धोखा नहीं होगा।

आत्म संतुष्टि परम आनंद जीने का अर्थ पाने के लिए मन वचन व कर्म एक जैसे रखिए
यथा चित्तं तथा वाचो यथा वाचस्तथा क्रियाः !चित्ते वाचि क्रियायांच साधुनामेक्रूपता !! साधुत्व स्वभाव या महान पुरुष केमन वचन व कर्म में कोई अंतर नहीं होता।इस के लिये अपनत्व सजगता समझदारी, उच्च स्तरीय चरित्र और धैर्य रखें। क्रोध,घृणा,ईगो,ईर्ष्या या बदले की भावना का पूर्णतया त्याग करेंसभी के हितों का भी पूरा ध्यान रखें फिर वह जो बोलते हैं वही बात महान बात बन जाती है। आत्म संतुष्टि परम आनंद जीने का अर्थ वही पा सकते हैं।

दुख का कारण बनते हैं एवं भविष्य बनाते हैं दूसरों के द्वारा किए हुए कर्म के प्रत्युत्तर मे भी आप बहुत अच्छा ही करें

ना किसी के अभाव में जियो ना किसी के प्रभाव में

बंद मुट्ठी आए हैं खाली हाथ जाएंगे
जब तक जीवित है दान और अंत में देह दान दीजिए
हम सब यात्री हैं यात्रा का आनंद लीजिए।

दिवाली के इस शुभ अवसर पर अपने इर्द-गिर्द रामराज्य स्थापित कीजिए स्वर्ग स्थापित कीजिए और परम आनंदित रहिए।

मैं हैप्पीनेस थिंकर बीपी मूंदड़ा आपके सुखद: जीवन की कामना करता हूं। आपको यह लेख अच्छा लगे तो जरूर इस पर अपनी टिप्पणी कीजिए मुझे बहुत अच्छा लगेगा और मैं भी पढ़ने को उत्सुक रहूंगा। Happiness thinker bpmundra

मंगलवार, 2 नवंबर 2021

पूर्णतया प्राकृतिक ऑर्गेनिक अन्न .

बहुत पुरानी बात नही है ये ...... 1960 तक भारत मे गेहूं का आटा जिससे पूड़ियाँ बनती थीं , साल में बमुश्किल एकाध बार जब कभी कोई शादी बियाह य्या काज प्रयोजन होता तो पूड़ियाँ बनती थीं ....... अंग्रेजों के मानसिक गुलाम ही गेहूं की रोटी खाते थे ....... शेष भारत , आम जन सब जौ , चना , मक्का , मटर , बाजरा ज्वार खाते थे ........ 

1960 से पहले हमारे पूर्वज सब यही मोटे अनाज खाते थे । वो तो 1965 में जो हरित क्रांति के नाम पर देश पर गेंहू थोपा गया ।

पुरातन काल मे हमारे पूर्वज टामुन , मड़ुआ , सांवा , कोदो , कंगनी , तिन्ना , करहनी , जैसे सात्विक अन्न खाया करते थे जो अब लगभग लुप्तप्राय हैं । 
बहुत सा ऐसा भोजन था जिसे अन्न माना ही नही जाता था । जैसे कुट्टू और सिंघाड़ा ...... इनकी गिनती अनाज में नही बल्कि फलों में होती थी और इनकी रोटी को फलाहार माना जाता था ......
आज भी व्रत त्योहारों में इनका सेवन फलाहार के रूप में होता है ........

पिछले दो वर्षों से मैं देश भर के दूरदराज के गांवों में हमारा ये जो भूला बिसरा पुराना पुरातन वैदिक अन्न है इसके उत्पादन के विषय मे जानकारी जुटा रहा हूँ ।
अपनी इस खोज में मैंने ये पाया कि जहां जहां भी पूंजीवादी एक फ़सली अवैज्ञानिक कृषि है वहां से ये अनाज पूरी तरह लुप्त हो चुके हैं । और जहां अभी भी इंटेलिजेंट इलाके हैं वहां इनकी खेती अब भी हो रही है ........ जैसे ये कोदो , मड़ुआ , रागी , कंगनी , टामुन जैसे अन्न अभी भी उत्तराखंड के ऊपरी इलाकों , झारखंड , छत्तीसगढ़ के जंगलों और बुंदेलखंड के सूखे असिंचित खेतों में अब भी मिल जाते हैं ......
एक दिन मैंने कुछ महिलाओं को नहर किनारे की दलदली जमीन में झाड़ियों में घुस के एक प्राकृतिक / जंगली अनाज तिन्ना बटोरते देखा ।
ये वनवासी औरतें दिन भर तिन्ना झाड़ती तो दो तीन किलो अन्न मिलता । 
फिर एक दिन उन्हीं में से एक महिला मुझे पाव भर तिन्ना दे गई ........ उसकी खीर बनी ....... पूर्णतया प्राकृतिक ऑर्गेनिक अन्न .......जो अपने आप वर्षा ऋतु में दलदल में उग आता है ....... क्या दिव्य स्वाद था उसका .......
फिर उसी तरह एक दिन गांव में सांवा का चावल खाया , सांवा की खीर खाई ....... वाह ...... क्या दिव्य भोजन था वो ......
जब Diabetese हो गयी तो डॉक्टर ने कहा गेहूं छोड़ दो और जौ बाजरे का आटा खाओ ...... जौ तो इतना आसान न था पर बाजरा ला के घर मे ही पीसने लगे ....... 

फिर जब इस विषय मे अध्ययन किया तो पाया कि आज life Style जनित जो भी स्वास्थ्य समस्याएं हैं उनकी जड़ में ये 3 चीज़ें हैं ........
गेहूं का आटा / मैदा यानी White आटा
White Sugar 
White Salt 
अगर हम अपने भोजन में ये 3 चीज़ छोड़ के मोटे अनाज जौ बाजरा चना कोदो सावां टामुन मड़ुआ रागी कनगी इत्यादि शामिल कर लें और White Sugar की जगह गुड़ , शक्कर , राब 
और सफेद नमक की जगह सेंधा नमक और Rock Salt काला नमक शामिल कर लें तो बहुत सी स्वास्थ्य समस्याएं तो यूँ ही हल हो जाएंगी ।🙏 

सांवा की खीर हमनें भी खाई है बचपन में , मीठा चावल बोलते है उसे , बिना चीनी के भी उसका खीर बहुत मीठा होता है 😍😍😍

रविवार, 31 अक्तूबर 2021

कल रमा एकादशी है।दिनांक: 1/11/2021 दिन: सोमवार।

🌹🙏रमा एकादशी🙏🌹
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कल रमा एकादशी है।दिनांक: 1/11/2021 दिन: सोमवार।
युधिष्ठिर ने पूछा : जनार्दन ! मुझ पर आपका स्नेह है, अत: कृपा करके बताइये कि कार्तिक के कृष्णपक्ष में कौन सी एकादशी होती है ?
 
भगवान श्रीकृष्ण बोले : राजन् ! कार्तिक (गुजरात महाराष्ट्र के अनुसार आश्विन) के कृष्णपक्ष में ‘रमा’ नाम की विख्यात और परम कल्याणमयी एकादशी होती है । यह परम उत्तम है और बड़े-बड़े पापों को हरनेवाली है ।
 
पूर्वकाल में मुचुकुन्द नाम से विख्यात एक राजा हो चुके हैं, जो भगवान श्रीविष्णु के भक्त और सत्यप्रतिज्ञ थे । अपने राज्य पर निष्कण्टक शासन करनेवाले उन राजा के यहाँ नदियों में श्रेष्ठ ‘चन्द्रभागा’ कन्या के रुप में उत्पन्न हुई । राजा ने चन्द्रसेनकुमार शोभन के साथ उसका विवाह कर दिया । एक बार शोभन दशमी के दिन अपने ससुर के घर आये और उसी दिन समूचे नगर में पूर्ववत् ढिंढ़ोरा पिटवाया गया कि: ‘एकादशी के दिन कोई भी भोजन न करे ।’ इसे सुनकर शोभन ने अपनी प्यारी पत्नी चन्द्रभागा से कहा : ‘प्रिये ! अब मुझे इस समय क्या करना चाहिए, इसकी शिक्षा दो ।’
 
चन्द्रभागा बोली : प्रभो ! मेरे पिता के घर पर एकादशी के दिन मनुष्य तो क्या कोई पालतू पशु आदि भी भोजन नहीं कर सकते । प्राणनाथ ! यदि आप भोजन करेंगे तो आपकी बड़ी निन्दा होगी । इस प्रकार मन में विचार करके अपने चित्त को दृढ़ कीजिये ।
 
शोभन ने कहा : प्रिये ! तुम्हारा कहना सत्य है । मैं भी उपवास करुँगा । दैव का जैसा विधान है, वैसा ही होगा ।
 
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं : इस प्रकार दृढ़ निश्चय करके शोभन ने व्रत के नियम का पालन किया किन्तु सूर्योदय होते होते उनका प्राणान्त हो गया । राजा मुचुकुन्द ने शोभन का राजोचित दाह संस्कार कराया । चन्द्रभागा भी पति का पारलौकिक कर्म करके पिता के ही घर पर रहने लगी ।
 
नृपश्रेष्ठ ! उधर शोभन इस व्रत के प्रभाव से मन्दराचल के शिखर पर बसे हुए परम रमणीय देवपुर को प्राप्त हुए । वहाँ शोभन द्वितीय कुबेर की भाँति शोभा पाने लगे । एक बार राजा मुचुकुन्द के नगरवासी विख्यात ब्राह्मण सोमशर्मा तीर्थयात्रा के प्रसंग से घूमते हुए मन्दराचल पर्वत पर गये, जहाँ उन्हें शोभन दिखायी दिये । राजा के दामाद को पहचानकर वे उनके समीप गये । शोभन भी उस समय द्विजश्रेष्ठ सोमशर्मा को आया हुआ देखकर शीघ्र ही आसन से उठ खड़े हुए और उन्हें प्रणाम किया । फिर क्रमश : अपने ससुर राजा मुचुकुन्द, प्रिय पत्नी चन्द्रभागा तथा समस्त नगर का कुशलक्षेम पूछा ।
 
सोमशर्मा ने कहा : राजन् ! वहाँ सब कुशल हैं । आश्चर्य है ! ऐसा सुन्दर और विचित्र नगर तो कहीं किसीने भी नहीं देखा होगा । बताओ तो सही, आपको इस नगर की प्राप्ति कैसे हुई?
 
शोभन बोले : द्विजेन्द्र ! कार्तिक के कृष्णपक्ष में जो ‘रमा’ नाम की एकादशी होती है, उसीका व्रत करने से मुझे ऐसे नगर की प्राप्ति हुई है । ब्रह्मन् ! मैंने श्रद्धाहीन होकर इस उत्तम व्रत का अनुष्ठान किया था, इसलिए मैं ऐसा मानता हूँ कि यह नगर स्थायी नहीं है । आप मुचुकुन्द की सुन्दरी कन्या चन्द्रभागा से यह सारा वृत्तान्त कहियेगा ।
 
शोभन की बात सुनकर ब्राह्मण मुचुकुन्दपुर में गये और वहाँ चन्द्रभागा के सामने उन्होंने सारा वृत्तान्त कह सुनाया ।
 
सोमशर्मा बोले : शुभे ! मैंने तुम्हारे पति को प्रत्यक्ष देखा । इन्द्रपुरी के समान उनके दुर्द्धर्ष नगर का भी अवलोकन किया, किन्तु वह नगर अस्थिर है । तुम उसको स्थिर बनाओ ।
 
चन्द्रभागा ने कहा : ब्रह्मर्षे ! मेरे मन में पति के दर्शन की लालसा लगी हुई है । आप मुझे वहाँ ले चलिये । मैं अपने व्रत के पुण्य से उस नगर को स्थिर बनाऊँगी ।
 
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं : राजन् ! चन्द्रभागा की बात सुनकर सोमशर्मा उसे साथ ले मन्दराचल पर्वत के निकट वामदेव मुनि के आश्रम पर गये । वहाँ ॠषि के मंत्र की शक्ति तथा एकादशी सेवन के प्रभाव से चन्द्रभागा का शरीर दिव्य हो गया तथा उसने दिव्य गति प्राप्त कर ली । इसके बाद वह पति के समीप गयी । अपनी प्रिय पत्नी को आया हुआ देखकर शोभन को बड़ी प्रसन्नता हुई । उन्होंने उसे बुलाकर अपने वाम भाग में सिंहासन पर बैठाया । तदनन्तर चन्द्रभागा ने अपने प्रियतम से यह प्रिय वचन कहा: ‘नाथ ! मैं हित की बात कहती हूँ, सुनिये । जब मैं आठ वर्ष से अधिक उम्र की हो गयी, तबसे लेकर आज तक मेरे द्वारा किये हुए एकादशी व्रत से जो पुण्य संचित हुआ है, उसके प्रभाव से यह नगर कल्प के अन्त तक स्थिर रहेगा तथा सब प्रकार के मनोवांछित वैभव से समृद्धिशाली रहेगा ।’
 
नृपश्रेष्ठ ! इस प्रकार ‘रमा’ व्रत के प्रभाव से चन्द्रभागा दिव्य भोग, दिव्य रुप और दिव्य आभरणों से विभूषित हो अपने पति के साथ मन्दराचल के शिखर पर विहार करती है । राजन् ! मैंने तुम्हारे समक्ष ‘रमा’ नामक एकादशी का वर्णन किया है । यह चिन्तामणि तथा कामधेनु के समान सब मनोरथों को पूर्ण करनेवाली है ।

🌹🙏 शुभ  रात्री 🙏🌹

🌹🙏जय जय श्री राधे🙏🌹

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दीपावली के दिन सूरन की सब्जी बनती है


दीपावली के दिन सूरन की सब्जी बनती है,,,सूरन को जिमीकन्द (कहीं कहीं ओल) भी बोलते हैं,, आजकल तो मार्केट में हाईब्रीड सूरन आ गया है,, कभी-२ देशी वाला सूरन भी मिल जाता है,,,
बचपन में ये सब्जी फूटी आँख भी नही सुहाती थी,, लेकिन चूँकि बनती ही यही थी तो झख मारकर खाना पड़ता ही था,,तब मै सोचता था कि पापा लोग कितने कंजूस हैं जो आज त्यौहार के दिन भी ये खुजली वाली सब्जी खिला रहे हैं,,, दादी बोलती थी आज के दिन जो सूरन न खायेगा
अगले जन्म में छछुंदर जन्म लेगा,,
यही सोच कर अनवरत खाये जा रहे है कि छछुंदर न बन जाये😂😂 बड़े हुए तब सूरन की उपयोगिता समझ में आई,,

सब्जियो में सूरन ही एक ऐसी सब्जी है जिसमें फास्फोरस अत्यधिक मात्रा में पाया जाता है,, ऐसी मान्यता है और अब तो मेडिकल साइंस ने भी मान लिया है कि इस एक दिन यदि हम देशी सूरन की सब्जी खा ले तो स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में पूरे साल फास्फोरस की कमी नही होगी,,

मुझे नही पता कि ये परंपरा कब से चल रही है लेकिन सोचीए तो सही कि हमारे लोक मान्यताओं में भी वैज्ञानिकता छुपी हुई होती थी ,,,
धन्य पूर्वज हमारे जिन्होंने विज्ञान को परम्पराओं, रीतियों, रिवाजों, संस्कारों में पिरो दिया🙏🏻🙏

शनिवार, 30 अक्तूबर 2021

ब्राह्मणों... पंडित... पुजारियों को गाली देने का एक नया फैशन क्यों चल रहा है ?

ब्राह्मणों... पंडित... पुजारियों को गाली देने का एक नया फैशन क्यों चल रहा है ?

- अभी-अभी मैंने एक वीडियो देखा... उस वीडियो में कोट पैंट टाई और सूट बूट से लैस कोई युवक था जिसके हाथ में एक छड़ी थी.... वो किसी निशुल्क अंबेडकर शिक्षण संस्थान का सदस्य था... और वो लगभग 5 से 10 साल की उम्र के लड़के लड़कियों को ये सिखा रहा था कि अगर तुमसे कोई पूछे कि तुम कौन हो ? तो तुम ये कहना कि तुम मूल निवासी हो... और अगर तुमसे कोई ये पूछे कि हिंदू क्या होता है ? तो तुम बताना कि हिंदू मतलब ब्राह्मणों का कुत्ता और तुम कुत्ते नहीं हो.... मानव हो ! 

-ये सारा प्रोपागेंडा चलाकर हिंदू धर्म के लोगों के मन में हिंदू धर्म के खिलाफ एक जहर भरने की कोशिश लगातार की जा रही है । हर समाज में एक ऐसा वर्ग होता है जो धर्म और संस्कृति के नियम अपने समूह या राष्ट्र की सुरक्षा के हिसाब से तय करता है ! मुसलमानों में मौलवी होते हैं.... क्रिश्चियन में पादरी होते हैं.... सिखों में ग्रंथी होते हैं.... बौद्धों में बौद्ध भिक्षु होते हैं... जैनों में तीर्थंकर होते हैं... तो क्या इसका मतलब ये है कि सारे के सारे मुसलमान... मौलवी के कुत्ते हैं... सारे क्रिश्चियन पादरी के कुत्ते हैं और इसी तरह अन्य अन्य बातें । 

-ब्राह्मणों को गाली देना आजकल एक फैशन बन गया है... हर हिंदू द्रोही... जिहादी.... कम्युनिस्ट.... और तमाम देशद्रोही लोग सबसे ज्यादा गाली अगर किसी को देते हैं तो वो ब्राह्मण वर्ग होता है ! पहली बात तो ब्राह्मणों में भी सारे ब्राह्मण पुजारी वर्ग से नहीं आती हैं... कुछ ही ब्राह्मण परिवार होते हैं जिनका पेशा पुजारी या धर्माचार्य का होता है ! और ये पुजारी और धर्माचार्य भी बिना बुलाए कभी किसी के यहां नहीं जाते हैं... अगर कोई कथा के लिए बुलाता भी है तो कभी ये जिद नहीं करते हैं कि हमे इतनी दक्षिणा चाहिए जो मिलता है वो लेकर चले आते हैं... कभी किसी से शिकायत नहीं करते हैं... अपनी श्रद्धा के अनुसार जो आप दें दें जो ईश्वर को चढ़ा दें उससे ज्यादा नहीं मांगते.... संतोष कर लेते हैं ! किसी पर अपने रूल रेगुलेशन नहीं थोपते हैं... देश का कोई नियम कानून नहीं तोड़ते हैं... मुसलमानों में तो मौलवी हलाला करता है... लेकिन पुजारी के चरित्र पर कोई कभी प्रश्नचिह्न लगा ही नहीं सकता है ! मैंने कई मामले देखे हैं जिनमें इन अंबेडकरवादियों ने ही पुजारियों को झूठे मामलों में फंसाने की कोशिश की... ज्यादातर मामले झूठे साबित हुए... लेकिन इसके बावजूद भी ब्राह्मणों से इतनी नफरत आखिर क्यों है ? ये समझना मुश्किल नहीं है... बहुत आसान है ! 

-पुजारी कभी शस्त्र नहीं उठाता... कभी किसी का बुरा नहीं करता है... कभी किसी पर ताने नहीं कसता है... जिस भगवा वस्त्र को धारण करता है उस का मान भी रखता है... लेकिन क्योंकि वो अहिंसक है इसलिए उसको नाना प्रकार के अपशब्द बोलना एक आधुनिक फैशन बन गया है ! 

-मैं इस बात का समर्थक हूं कि पुजारी का पेशा किसी एक जाति के पास नहीं होना चाहिए... हर किसी जाति के व्यक्ति को मंदिर में पुजारी बनने का अधिकार होना चाहिए और सब को उस पुजारी की सेवा भी करनी चाहिए...  क्या हम जब किसी पुजारी के पास जाते हैं तो उसकी जाति पूछते हैं क्या ? कभी नहीं पूछते हैं... हम उसके कर्म को प्रणाम करते हैं... उसकी जाति को नहीं ! 

-लेकिन ये बहुत दुख का विषय है कि पुजारियों को और ब्राह्मणों को बदनाम करने की कोशिश बहुत लंबे अर्से से की जा रही है ! ये सब इसलिए किया जा रहा है ताकी हिंदू धर्म का उपदेशक वर्ग का सम्मान खत्म हो जाए और कोई उसकी बात ना माने... जब धर्म का पालन करवाने के लिए प्रेरित करने वाला वर्ग ही नहीं बचेगा तो हिंदू धर्म स्वयं ही खत्म हो जाएगा.... इसी लक्ष्य के साथ जिहादी और कम्युनिस्टों का प्रोपागेंडा पूरे भारत में जाती है.... और इसके लिए फिल्मों को भी माध्यम बनाया गया... पुरानी फिल्मों में ये देखा गया कि ब्राह्मण कुंडली बदलकर नोट लेता है और आज की वेबसीरीज में मिर्जापुर जैसी वेबसीरीज में ब्राह्मणों को गुंडा.... बदमाश और बलात्कारी दिखाया जाता है.... ब्राह्मण ससुर के चरित्र को गलत दिखाया जाता है... ये सब फरहान अख्तर के डायरेक्टर शिप में होता है ! 



-ब्राह्मण जाति से आने वाले और जिहाद को भारत से उखाड़ फेंकने वाले श्रीमंत पेशवा बाला जी बाजीराव को बदनाम करने के लिए साजिद खान अपनी फिल्म में एक गाना डालता है... बाला ओ बाला शैतान का साला... और ये गाना खूब हिट होता है कोई इस गाने पर आपत्ति नहीं जताता है ! कोई ब्राह्मणों की महासभा संगठन वगैरह इस पर कोई आंदोलन नहीं छेड़ते हैं... ये बड़े दुख का विषय है कि अब पुजारियों को काफी हद तक बदनाम कर दिया जा चुका है कि पुजारी तो लालची होता है ! ये सब फिल्मों का दिखाया हुआ कूड़ा करकट आम आदमी के दिमाग में भर चुका है !

-जरा हम लोग अपनी शब्दावली पर ध्यान दें... जब घरों के अंदर भी पूजा पाठ के लिए पंडित जी को बुलाया जाता है तो कई लोग ऐसे होते हैं जो इस तरह से बात करते हैं.... अरे पंडित आया कि नहीं ? भाई तुम्हें कथा का लाभ क्या मिलेगा जब तुम पंडित जी भी नहीं बुला सकते हो... सम्मान करोगे तो ही तो सम्मान प्राप्त करोगे ! 

-शुरुआत में जो बात लिखी थी... मूल निवासी... फलाना... ढिकाना... ये लोग जो खुद को अंबेडकरवादी कहते हैं दरअसल अंबेडकर वादी भी नहीं हैं क्योंकि अंबेडकर ने मूल निवासी वाली थ्योरी खारिज कर दी थी और ये कहा था कि आर्य सिर्फ एक संबोधन है ना कोई जाति और ना कोई नस्ल । और अंबेडकर के अंदर भी ब्राह्मणों के प्रति ऐसी घृणा नहीं थी जैसी आज फैलाई जा रही है... अंबेडकर .... अपने आम में एक ब्राह्मण सरनेम है... वो जाति से महार थे लेकिन अपने नाम के आगे महार नहीं बल्कि ब्राह्मण सरनेम ही लगाते थे जो उनके ब्राह्मण टीचर ने ही उनको दिया था ! और ये लोग जो हमेशा ब्राह्मणों को गरियाते हैं ये जान लें कि अंबेडकर ने अपने साहित्य में ये लिखा है कि चंद्रगुप्त मौर्य का बनाया हुआ सिस्टम हिंदुस्तान का सबसे अच्छा पॉलिटिकल सिस्टम था तो ये सिस्टम बनाया तो चंद्रगुप्त मौर्य के गुरु चाणक्य ने ही था तो अप्रत्यक्ष रूप से अंबेडकर ने चाणक्य की भी प्रशंसा की है । अब कोई मुझसे प्रूफ मत मांगना... यूपीए के राज में अंबेडकर का साहित्य एक दर्जन वॉल्यूम में प्रकाशित किया गया था जो कि हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में है मैंने वहीं से ये सारे फैक्ट्स लिए हैं जिसको चेक करना है वहां चेक कर ले । ये सारे वॉल्यूम इंटरनेट पर मौजूद हैं... फ्री हैं  ।

-अंत में इतना ही कहूंगा कि हिंदू धर्म से अलग होने के जिस ध्येय को लेकर कुछ दलित वर्ग चल रहे हैं वो खुद ही समंदर में कूदने जा रहे हैं और उनका जिहादियों के द्वारा बहुत बुरा अंत होगा ! 

-अच्छे बुरे लोग हर जाति में होते हैं... चाहे पुजारी हों चाहे ब्राह्मण यहां भी अच्छे बुरे हर तरह के लोग होंगे.... लेकिन जनरलाइज करके आप पूरे वर्ग को टारगेट नहीं कर सकते हैं.... अगर ऐसा कर रहे हैं तो इसका मतलब आपका अपना एक प्रोपागेंडा और एजेंडा है !

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