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बुधवार, 29 दिसंबर 2021

राजनीति में बहुत कम लोग बचे हैं जो .....इत्र नहीं लगाते। वर्ना आज के दौर में महकने का शौक किसे नहीं हैं..

एक ज़माना था जब Oyo rooms नहीं हुआ करते थे। 
उन दिनों हमारे एक परिचित को इश्क हुआ। इश्क परवान चढ़ा तो प्रेमिका से हर रोज़ मिलने की इच्छा भी हिलोरें मारने लगी। 
बन्धु कभी प्रेमिका से पार्क में मिलता। कभी किसी फ़ास्ट फूड रेस्तरां में मुलाकात होती। 

परंतु पार्क हो या रेस्तरां.....एक चीज़ की कमी खलती थी। 

निजता नहीं थी। 

Privacy नहीं थी। 

बन्धु ने दिमाग के घोड़े दौड़ाये। 
बहुत सोच विचार के पश्चात उसका ध्यान हमारे एक सहपाठी पर गया जो अपने माँ बाप की इकलौती सन्तान था और जिसके माता पिता गवर्मेंट जॉब में थे। 

यानि ठीक 8:30 बजे माता पिता घर से ऑफिस की ओर प्रस्थान कर जाते थे। 

बन्धु ने सहपाठी से आग्रह किया के माता पिता के जाने के पश्चात वह कुछ क्षणों के लिये उसे और प्रेमिका को घर में मिलने की इजाज़त दे दे। 

सहपाठी भोला भाला बालक था। वह बन्धु की चिकनी चुपड़ी बातों में आ गया। 

थोड़ी सी ना - नुकुर के पश्चात सहपाठी ने बन्धु का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। 

प्रेमी प्रेमिका सहपाठी के घर मिलने लगे। 
एकांत यानि privacy के क्षण भी मिले। 

इन्ही क्षणों में बैकग्राउंड में "रूप तेरा मस्ताना ....प्यार मेरा दीवाना" गीत बजता रहा और जो अपेक्षित था ...वह हो गया। 

कांड हो गया। 

अब हो गया सो हो गया। 

आदरणीय मुलायम सिंह जी ने ही कहा है के लौंडों से जवानी में गलती हो जाती है।

बात बढ़ गयी। परिवारों तक पहुंच गई। 

परिवारों के बीच पंचायत हुई जिसमें सर झुकाये प्रेमी प्रेमिका मौजूद थे। 
सहपाठी महोदय को भी समन भेजे गये क्योंकि मौका ऐ वारदात पर प्रेमी प्रेमिका के अलावा हर वक्त मौजूद रहने वाले सहपाठी महोदय ही थे। 

दोनों पक्षों में गर्मा गर्मी हुई। फिर प्रेमी के पक्ष से एक उम्र दराज़ आदमी ने सहपाठी महोदय से पूछा के जब सारा कांड हो रहा था तो वह कहां था। 

सहपाठी ने बड़े ही भोले स्वभाव से कहा के ....."अंकिल मुझे क्या पता दोनों गड़बड़ कर रहे थे। मुझे तो लगा ....बातचीत कर रहे थे" 

अंकिल उठे और उन्ने सहपाठी के कान पर पहले तो 2-3 कड़ाकेदार थप्पड़ रसीद किये। 

फिर उन्ने उसे पेट में एक ज़बरदस्त घूंसा रसीद किया। पेट पर मुक्का पड़ते ही जैसे ही वह झुका उसकी पीठ पर एक ज़बरदस्त चमाट रसीद कर दी।

बमुश्किल उसे अंकिल के कहर से छुड़वाया। गुस्से से लबरेज़ अंकिल कहते रहे के साले हमें *** समझता है। बंद कमरे में सब गड़बड़ होती रही और तू अब हैरान होकर कह रहा है के तुझे लगा के प्रेमी प्रेमिका बातचीत कर रहे थे। 

ऐसा बेहूदा हैरानी भरा चेहरा बना रहा है जैसे कुछ पता ही ना हो। 

..............................

कानपुर के "समाजवादी इत्र व्यापारी" के घर 100-200 करोड़ पकड़े जाने पर कुछ ऐसी प्रतिक्रिया आ रही हैं जैसे कुछ अजीबोगरीब हो गया हो। 

इसमें हैरानी की क्या बात है? 

हर नेता के पास एक "इत्र व्यापारी" है।

हैरान तो लोग ऐसे हो रहे हैं जैसे पॉलिटिक्स और ब्लैक मनी के प्रेम का ज्ञान ही ना हो। 

बताओ इसमें हैरानी की क्या बात है?  

 नेता और भ्रष्टाचार ....प्रेमी और प्रेमिका हैं। दोनों कमरे में बंद हैं। 
कांड हो जाता है और फलस्वरूप 100-200 करोड़ रुपये गर्भ में ठहर जाते हैं। 

बताओ इसमें हैरानी की क्या बात है?

यह तो प्राकृतिक है....नैचुरल है। 

जाते जाते एक और बात कह दूं......इसलिये कह दूं के सक्रिय राजनीति को मैंने बहुत करीब से देखा है। 

सक्रिय राजनीति में बहुत कम लोग बचे हैं जो .....इत्र नहीं लगाते। 

वर्ना आज के दौर में महकने का शौक किसे नहीं हैं.....😊....!

 चाहें कोई कितना भी इत्र लगा ले....!!

2022 में आएंगे तो योगी ही.......😎😎

【रचित】

हमेशा परिवार के पीछे रहता है, शायद इसीलिए क्योकि वो *पिता* है ।

*तुम और मैं पति पत्नी थे, तुम माँ बन गईं मैं पिता रह गया।*
तुमने घर सम्भाला, मैंने कमाई,
लेकिन तुम "माँ के हाथ का खाना" बन गई,
मैं कमाने वाला पिता रह गया।
बच्चों को चोट लगी और तुमने गले लगाया,
मैंने समझाया,
तुम ममतामयी बन गई
मैं पिता रह गया।
बच्चों ने गलतियां कीं,
तुम पक्ष ले कर "understanding Mom" बन गईं 
और मैं "पापा नहीं समझते" वाला पिता रह गया।
"पापा नाराज होंगे" कह कर
तुम बच्चों की बेस्ट फ्रेंड बन गईं,
और मैं गुस्सा करने वाला पिता रह गया।
तुम्हारे आंसू में मां का प्यार 
और मेरे छुपे हुए आंसुओं मे, मैं निष्ठुर पिता रह गया।
तुम चंद्रमा की तरह शीतल बनतीं गईं,
और पता नहीं कब
मैं सूर्य की अग्नि सा पिता रह गया।
तुम धरती माँ, भारत मां और मदर नेचर बनतीं गईं,
और मैं जीवन को प्रारंभ करने का दायित्व लिए
सिर्फ एक पिता रह गया...

*फिर भी न जाने क्यूं पिता पीछे रह जाता है*

माँ, नौ महीने पालती है 
पिता, 25 साल् पालता है 
*फिर भी न जाने क्यूं पिता पीछे रह जाता है*

माँ, बिना तानख्वाह घर का सारा काम करती है 
पिता, पूरी कमाई घर पे लुटा देता है 
*फिर भी न जाने क्यूं पिता पीछे रह जाता है* 

माँ ! जो चाहते हो वो बनाती है 
पिता ! जो चाहते हो वो ला के देता है 
*फिर भी न जाने क्यूं पिता पीछे रह जाता है*

माँ ! को याद करते हो जब चोट लगती है 
पिता ! को याद करते हो जब ज़रुरत पड़ती है 
*फिर भी न जाने क्यूं पिता पीछे रह जाता है*

माँ की ओर बच्चो की अलमारी नये कपड़े से भरी है 
पिता, कई सालो तक पुराने कपड़े चलाता है 
*फिर भी न जाने क्यूं पिता पीछे रह जाता है*

पिता, अपनी ज़रुरते टाल कर सबकी ज़रुरते समय से पूरी करता है
किसी को उनकी ज़रुरते टालने को नहीं कहता 
*फिर भी न जाने क्यूं पिता पीछे रह जाता है*

जीवनभर दूसरों से आगे रहने की कोशिश करता है मगर हमेशा परिवार के पीछे रहता है, शायद इसीलिए क्योकि वो *पिता* है । 
 समर्पित।

जिस सोच ने सैंकड़ों साल तक ऐसी नृशंसताएँ कीं, उसी सोच ने..

• पृथ्वीराज चौहान..... अंधा करके मारा गया
• गुरु अर्जुनदेव जी.... गर्म तवे पर बैठाने के बाद उन पर खौलती हुई रेत डालकर मारा गया !
• गुरु तेगबहादुर जी... नृशंस हत्या कैसे की गई यह बताने की जरूरत नहीं !
• भाई मतिदास जी... लकड़ी के दो पाटों में बांधकर, ऊपर से नीचे आरी से चीरा गया !
• भाई सतीदास जी... बड़े कड़ाह में खौलते तेल में डुबाकर मारा !
• भाई दयाला जी.... रुई में लपेटकर जिन्दा जलाया !
• गुरु गोविंद जी के दो मासूम साहिबजादों को.... जिंदा ही दीवार में चुनवा दिया गया !
• बाबा बंदा बहादुर.... उनकी खाल नोंचते हुए पंजाब से दिल्ली लाने के बाद मारा गया, उनके मुँह में उनके ही बच्चे का दिल ठूँस दिया गया !
• छत्रपती संभाजी महाराज.... 65 दिन हाल-हाल करके उनकी चमड़ी छीलकर, उनका वध किया गया !

            जिस सोच ने सैंकड़ों साल तक ऐसी नृशंसताएँ कीं, उसी सोच ने.... 
.....1990 में कश्मीर के सैंकड़ों हिन्दुओं के सिर में ठोककर मारा !
.....स्क्वाड्रन लीडर अजय आहूजा को 12 घंटों तक टॉर्चर करके मारा गया !
.....कैप्टन सौरभ कालिया के साथ हुई नृशंसता को लिखने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं !
...... अभी अभी हाल ही में, फरवरी 2020 में, अंकित शर्मा को 2 घंटे से ज्यादा समय तक चाकू के कई वार करके मारा गया !😭

           लेकिन... फिर भी अगर आपको ऐसा लगता है कि.... मेरे जैसे लोग नफरत फैला रहे  है तो... शायद आपको भगवान भी नहीं बचा सकेंगे ! 
हम व्यक्तिगत  तौर पर किसी भी पार्टी के खिलाफ नहीं हैं

ये मैसेज आप सही दृष्टिकोण से समझोगे तो ही जान सकोगे कि महंगाई और तेल के दाम से इतना फ़र्क़ नहीं पाने वाला है जितना कि ऐसे राजा को शासन करने का मौका गवां देने से पड़ेगा, जिसने कि धर्म की रक्षा के लिए देश में  महत्वपूर्ण कदम उठाये हैं।
  
🚩 "जय हिंद"🚩

गुजराती नागरिक सदैव दूर की सोचते हैं, और ये एक पाठ देशवासियों को, और विशेष कर हिन्दुओं को, उनसे सीखना होगा!

*भाजपा सत्ता में आई, उसमें गुजरात का बहुत बड़ा योगदान है!*

*गुजरात को मीडिया के लोग "हिंदुत्व की प्रयोगशाला" कहते थे!*

*गुजरात पहला राज्य है, जहां भाजपा सत्ता में आई, और जिस जमाने में भाजपा के केवल दो संसद सदस्य थे! उसमें से एक मेहसाना से थे!*

*आपको जानकर बड़ा आश्चर्य होगा, कि गुजरात में भाजपा सत्ता में कैसी आई?*

*मित्रों, गुजरात में भाजपा को सत्ता में लाने में कुख्यात "माफिया डॉन अब्दुल लतीफ" का बहुत बड़ा योगदान है*

*अगर अब्दुल लतीफ नहीं होता, तो संभव है भाजपा सत्ता में नहीं आती!* 

*अब्दुल लतीफ इतना कुख्यात डॉन था, कि उसने सबसे पहले एके-५६ का उपयोग किया था! और १२ पुलिस कर्मियों सहित, १५० से अधिक नागरिकों का वध किया था, जिसमें "राधिका जिमखाना" वध बहुत प्रसिद्ध हुआ था!*

*जब "राधिका जिमखाना" क्लब में लतीफ ने अंधाधुंध गोलीबारी करके, एक साथ ३५ नागरिकों को मौत के घाट उतार दिया था!*

*लतीफ के ऊपर कांग्रेस और जनता दल दोनों के नेताओं का वरदहस्त था!*

*लतीफ की इतनी पहुंच थी, कि वह मुख्य मंत्री चिमन भाई पटेल के चेंबर में, बगैर अपॉइंटमेंट के, चला जाता था, और तस्करी, सोने चांदी की स्मगलिंग, ड्रग्स की स्मगलिंग, इत्यादि में अरबों रुपए कमाये, और उसमें नेताओं को हिस्सा जाता था!*

*यदि लतीफ या लतीफ के गैंग के किसी गुर्गे को कोई हिंदू लड़की पसंद आ जाती थी, तो वो रातों-रात उठा ली जाती थी!*

*लतीफ, जब चाहे तब, किसी हिंदू का बंगला, दुकान खाली करवा लेता था! उस समय भाजपा गुजरात में संघर्ष के दौर में थी*

*नरेंद्र मोदी, शंकर सिंह वाघेला, केशुभाई पटेल साइकिल स्कूटर पर, चप्पल पहन कर घूमते थे!*

*एक दिन, गोमतीपुर में भाजपा की एक सभा थी! भाषण देते देते, केशुभाई पटेल ने जोश में बोल दिया, कि जब भाजपा की सरकार आएगी, तब अब्दुल लतीफ का एनकाउंटर करवा दिया जाएगा! बोलने के बाद, वह डर गए! उनकी सुरक्षा बढ़ा दी गई! लेकिन गुजरात की जनता के अंदर एक संदेश चला गया, कि आखिर यह कौन से पार्टी के नेता हैं, जो अब्दुल लतीफ के गढ़ में, उसका इनकाउंटर करने की बात कर रहे हैं?*

*केशुभाई पटेल के इस भाषण के बाद, जब चुनाव हुए, तब गुजरात में भाजपा की ३५ सीटे आई, जो अपने आप में बहुत बड़ी विजय थी!*

*उसके बाद, भाजपा ने अब्दुल लतीफ और उसके गुर्गों के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया, और अगले चुनावों में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बन गई! और अपने वायदे के अनुसार, शंकर सिंह वाघेला ने अब्दुल लतीफ का एनकाउंटर करवा दिया!*

*अब्दुल लतीफ का एनकाउंटर भी बड़े जोरदार तरीके से हुआ था! शंकर सिंह वाघेला के सामने डीएसपी जाडेजा आए, और बोले सर लतीफ का एनकाउंटर करना चाहता हूं, क्योंकि इसने मेरे इंस्पेक्टर झाला का मर्डर किया था, जब वह अपनी गर्भवती पत्नी को देखने छुट्टी पर जा रहा था!*

*अब्दुल लतीफ को गिरफ्तार किया गया! और नवरंगपुरा स्थित पुराने उच्च न्यायालय में उसकी पेशी होनी थी! पेशी के पहले, डीएसपी जडेजा ने कहा, "दाबेली खाओगे?" लतीफ ने हां बोला, तो उसकी हथकड़ी खोल दी गई! और फिर उसे ८ गोलियां मार दी गई! और मीडिया में कह दिया गया, लतीफ ने नाश्ता करने के लिए हथकड़ी खुलवाई, और भागने का प्रयास किया! जिसके फलस्वरूप वह मारा गया!*

*उसके बाद, शंकरसिंह वाघेला ने एक और बहुत अच्छा काम किया, कि उन्होंने "अशांत धारा एक्ट" लागू कर दिया, यानी गुजरात के विभिन्न शहरों में बहुत से विस्तार चिन्हित कर दिए गए! और इन विसतारों में किसी हिंदू की संपत्ति, कोई मुस्लिम नहीं खरीद सकता!*

*और उसके बाद भाजपा गुजरात से होती हुई मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, बंगाल, इत्यादि अन्य कई जगह बढ़ती चली गई! और आज केंद्र में ३०३ बैठकों के साथ सत्ता में है!* 

*जब एक हिन्दू जागता है, और दूसरे सोये हुए हिन्दुओं को जगाता है, तब ये गुजरात वाला वातावरण बनता है!*

*जब केशूभाई ने लतीफ का एनकाउंटर करने की घोषणा की थी, गुजरातियों ने बिना किसी प्रश्न-उत्तर के भाजपा को अपना भरपूर समर्थन किया था!*

*अगर पूरे देश में गुजरात वाला परिणाम हिन्दुओं को चाहिए, तो सभी को वही करना होगा, जो तब गुजरातियों ने किया था!*

*इसीलिए भाजपा और मोदी को, बिना प्रश्न किये, साथ दें! तभी पूरे देश में से लतीफों का सफाया मोदीजी और भाजपा कर पाएंगे!*

*गुजराती नागरिक सदैव दूर की सोचते हैं, और ये एक पाठ देशवासियों को, और विशेष कर हिन्दुओं को, उनसे सीखना होगा!*

*छोटी-छोटी बातों में मोदीजी और भाजपा का विरोध न करें! बल्कि उन्हें अपना पूरा समर्थन दें! ताकि वे अपना काम पूरी प्रामाणिकता से कर सकें!* 
🤔 🤔 🤔
*केवल २५ हिन्दू मित्रों को भेजिए!*

*ll जय श्री राम ll*

मनुष्य योनि का भोग

*मनुष्य योनि का भोग*

एक दरिद्र ब्राह्मण यात्रा करते-करते किसी नगर से गुजर रहा था, बड़े-बड़े महल एवं अट्टालिकाओं को देखकर ब्राह्मण भिक्षा माँगने गया, किन्तु उस नगर मे किसी ने भी उसे दो मुट्ठी अन्न नहीं दिया।
आखिर दोपहर हो गयी ,तो ब्राह्मण दुःखी होकर अपने भाग्य को कोसता हुआ जा रहा था, सोच रहा था “कैसा मेरा दुर्भाग्य है इतने बड़े नगर में मुझे खाने के लिए दो मुट्ठी अन्न तक नहीं मिला ? रोटी बना कर खाने के लिए दो मुट्ठी आटा तक नहीं मिला ?
इतने में एक सिद्ध संत की निगाह उस ब्राहम्ण पर पड़ी ,उन्होंने ब्राह्मण की बड़बड़ाहट सुन ली, वे बड़े पहुँचे हुए संत थे ,उन्होंने कहाः “हे दरिद्र ब्राह्मण तुम मनुष्य से भिक्षा माँगो, पशु क्या जानें भिक्षा देना ?”

यह सुनकर ब्राह्मण दंग रह गया और कहने लगाः “हे महात्मन् आप क्या कह रहे हैं ? बड़ी-बड़ी अट्टालिकाओं में रहने वाले मनुष्यों से ही मैंने भिक्षा माँगी है”

महात्मा बोले, “नहीं ब्राह्मण मनुष्य शरीर में दिखने वाले वे लोग भीतर से मनुष्य नहीं हैं ,अभी भी वे पिछले जन्म के हिसाब से ही जी रहे हैं। कोई शेर की योनी से आया है तो कोई कुत्ते की योनी से आया है, कोई हिरण की योनी से आया है तो कोई गाय या भैंस की योनी से आया है ,उन की आकृति मानव-शरीर की जरूर है, किन्तु अभी तक उन में मनुष्यत्व निखरा नहीं है ,और जब तक मनुष्यत्व नहीं निखरता, तब तक दूसरे मनुष्य की पीड़ा का पता नहीं चलता। "दूसरे में भी मेरा प्रभु ही है" यह ज्ञान नहीं होता। तुम ने मनुष्यों से नहीं, पशुओं से भिक्षा माँगी है”।

ब्राह्मण का चेहरा दुःख व निराशा से भरा था। सिद्धपुरुष तो दूरदृष्टि के धनी होते हैं उन्होंने कहाः “देख ब्राह्मण, मैं तुझे यह चश्मा देता हूँ इस चश्मे को पहन कर जा और कोई भी मनुष्य दिखे, उस से भिक्षा माँग फिर देख, क्या होता है”

वह दरिद्र ब्राह्मण जहाँ पहले गया था, वहीं पुनः गया और योगसिद्ध कला वाला चश्मा पहनकर गौर से देखाः

‘ओहोऽऽऽऽ….वाकई कोई कुत्ता है कोई बिल्ली है तो कोई बघेरा है। आकृति तो मनुष्य की है ,लेकिन संस्कार पशुओं के हैं, मनुष्य होने पर भी मनुष्यत्व के संस्कार नहीं हैं’। घूमते-घूमते वह ब्राह्मण थोड़ा सा आगे गया तो देखा कि एक मोची जूते सिल रहा है, ब्राह्मण ने उसे गौर से देखा तो उस में मनुष्यत्व का निखार पाया।

ब्राह्मण ने उस के पास जाकर कहाः “भाई तेरा धंधा तो बहुत हल्का है ,औऱ मैं हूँ ब्राह्मण रीति रिवाज एवं कर्मकाण्ड को बड़ी चुस्ती से पालता हूँ ,मुझे बड़ी भूख लगी है ,इसीलिए मैं तुझसे माँगता हूँ ,क्योंकि मुझे तुझमें मनुष्यत्व दिखा है”

उस मोची की आँखों से टप-टप आँसू बरसने लगे वह बोलाः “हे प्रभु, आप भूखे हैं ? हे मेरे भग्वन आप भूखे हैं ? इतनी देर आप कहाँ थे ?”

यह कहकर मोची उठा एवं जूते सिलकर टका, आना-दो आना वगैरह जो इकट्ठे किये थे, उस चिल्लर (रेज़गारी) को लेकर हलवाई की दुकान पर पहुँचा और बोलाः “हलवाई भाई, मेरे इन भूखे भगवान की सेवा कर लो ये चिल्लर यहाँ रखता हूँ जो कुछ भी सब्जी-पराँठे-पूरी आदि दे सकते हो, वह इन्हें दे दो मैं अभी जाता हूँ”

यह कहकर मोची भागा,और घर जाकर अपने हाथ से बनाई हुई एक जोड़ी जूती ले आया, एवं चौराहे पर उसे बेचने के लिए खड़ा हो गया।


उस राज्य का राजा जूतियों का बड़ा शौकीन था, उस दिन भी उस ने कई तरह की जूतियाँ पहनीं, किंतु किसी की बनावट उसे पसंद नहीं आयी तो किसी का नाप नहीं आया, दो-पाँच बार प्रयत्न करने पर भी राजा को कोई पसंद नहीं आयी तो राजा मंत्री से क्रुद्ध होकर बोलाः

“अगर इस बार ढंग की जूती लाया तो जूती वाले को इनाम दूँगा ,और ठीक नहीं लाया तो मंत्री के बच्चे तेरी खबर ले लूँगा।”

दैव योग से मंत्री की नज़र इस मोची के रूप में खड़े असली मानव पर पड़ गयी जिस में मानवता खिली थी, जिस की आँखों में कुछ प्रेम के भाव थे, चित्त में दया-करूणा थी, ब्राह्मण के संग का थोड़ा रंग लगा था। मंत्री ने मोची से जूती ले ली एवं राजा के पास ले गया। राजा को वह जूती एकदम ‘फिट’ आ गयी, मानो वह जूती राजा के नाप की ही बनी थी। राजा ने कहाः “ऐसी जूती तो मैंने पहली बार ही पहन रहा हूँ ,किस मोची ने बनाई है यह जूती ?”

मंत्री बोला “हुजूर यह मोची बाहर ही खड़ा है”

मोची को बुलाया गया। उस को देखकर राजा की भी मानवता थोड़ी खिली। राजा ने कहाः

“जूती के तो पाँच रूपये होते हैं किन्तु यह पाँच रूपयों वाली नहीं है,पाँच सौ रूपयों वाली जूती है। जूती बनाने वाले को पाँच सौ और जूती के पाँच सौ, कुल एक हजार रूपये इसको दे दो!”

मोची बोलाः “राजा जी, तनिक ठहरिये, यह जूती मेरी नहीं है, जिसकी है उसे मैं अभी ले आताहूँ”मोची जाकर विनयपूर्वक उस ब्राह्मण को राजा के पास ले आया एवं राजा से बोलाः “राजा जी, यह जूती इन्हीं की है।

”राजा को आश्चर्य हुआ वह बोलाः “यह तो ब्राह्मण है इस की जूती कैसे ?”राजा ने ब्राह्मण से पूछा तो ब्राह्मण ने कहा मैं तो ब्राह्मण हूँ, यात्रा करने निकला हूँ”

राजाः “मोची जूती तो तुम बेच रहे थे इस ब्राह्मण ने जूती कब खरीदी और बेची ?”

मोची ने कहाः “राजन् मैंने मन में ही संकल्प कर लिया था कि जूती की जो रकम आयेगी वह इन ब्राह्मण देव की होगी। जब रकम इन की है तो मैं इन रूपयों को कैसे ले सकता हूँ ? इसीलिए मैं इन्हें ले आया हूँ। न जाने किसी जन्म में मैंने दान करने का संकल्प किया होगा और मुकर गया होऊँगा तभी तो यह मोची का चोला मिला है अब भी यदि मुकर जाऊँ तो तो न जाने मेरी कैसी दुर्गति हो ?

इसीलिए राजन् ये रूपये मेरे नहीं हुए। मेरे मन में आ गया था कि इस जूती की रकम इनके लिए होगी फिर पाँच रूपये मिलते तो भी इनके होते और एक हजार मिल रहे हैं तो भी इनके ही हैं। हो सकता है मेरा मन बेईमान हो जाता इसीलिए मैंने रूपयों को नहीं छुआ और असली अधिकारी को ले आया!”

राजा ने आश्चर्य चकित होकर ब्राह्मण से पूछाः “ब्राह्मण मोची से तुम्हारा परिचय कैसे हुआ ?

”ब्राह्मण ने सारी आप बीती सुनाते हुए सिद्ध पुरुष के चश्मे वाली बात बताई, और कहा कि राजन्, आप के राज्य में पशुओं के दर्शन तो बहुत हुए लेकिन मनुष्यत्व का अंश इन मोची भाई में ही नज़र आया।

”राजा ने कौतूहलवश कहाः “लाओ, वह चश्मा जरा हम भी देखें।”राजा ने चश्मा लगाकर देखा तो दरबारियों में उसे भी कोई सियार दिखा तो कोई हिरण, कोई बंदर दिखा तो कोई रीछ। राजा दंग रह गया कि यह तो पशुओं का दरबार भरा पड़ा है उसे हुआ कि ये सब पशु हैं तो मैं कौन हूँ ? उस ने आईना मँगवाया एवं उसमें अपना चेहरा देखा तो शेर! उस के आश्चर्य की सीमा न रही, ‘ये सारे जंगल के प्राणी और मैं जंगल का राजा शेर यहाँ भी इनका राजा बना बैठा हूँ।’ राजा ने कहाः “ब्राह्मणदेव योगी महाराज का यह चश्मा तो बड़ा गज़ब का है, वे योगी महाराज कहाँ होंगे ?”

ब्राह्मणः “वे तो कहीं चले गये ऐसे महापुरुष कभी-कभी ही और बड़ी कठिनाई से मिलते हैं।”श्रद्धावान ही ऐसे महापुरुषों से लाभ उठा पाते हैं, बाकी तो जो मनुष्य के चोले में पशु के समान हैं वे महापुरुष के निकट रहकर भी अपनी पशुता नहीं छोड़ पाते।

ब्राह्मण ने आगे कहाः "राजन् अब तो बिना चश्मे के भी मनुष्यत्व को परखा जा सकता है। व्यक्ति के व्यवहार को देखकर ही पता चल सकता है कि वह किस योनि से आया है।

एक मेहनत करे और दूसरा उस पर हक जताये तो समझ लो कि वह सर्प योनि से आया है क्योंकि बिल खोदने की मेहनत तो चूहा करता है ,लेकिन सर्प उस को मारकर बल पर अपना अधिकार जमा बैठता है।”अब इस चश्मे के बिना भी विवेक का चश्मा काम कर सकता है ,और दूसरे को देखें उसकी अपेक्षा स्वयं को ही देखें कि हम सर्पयोनि से आये हैं कि शेर की योनि से आये हैं या सचमुच में हममें मनुष्यता खिली है ? यदि पशुता बाकी है तो वह भी मनुष्यता में बदल सकती है कैसे ?

गोस्वामी तुलसीदाज जी ने कहा हैः

बिगड़ी जनम अनेक की, सुधरे अब और आजु।
तुलसी होई राम को, रामभजि तजि कुसमाजु।।

कुसंस्कारों को छोड़ दें… बस अपने कुसंस्कार आप निकालेंगे तो ही निकलेंगे। अपने भीतर छिपे हुए पशुत्व को आप निकालेंगे तो ही निकलेगा। यह भी तब संभव होगा जब आप अपने समय की कीमत समझेंगे मनुष्यत्व आये तो एक-एक पल को सार्थक किये बिना आप चुप नहीं बैठेंगे। पशु अपना समय ऐसे ही गँवाता है। पशुत्व के संस्कार पड़े रहेंगे तो आपका समय बिगड़ेगा अतः पशुत्व के संस्कारों को आप बाहर निकालिये एवं मनुष्यत्व के संस्कारों को उभारिये फिर सिद्धपुरुष का चश्मा नहीं, वरन् अपने विवेक का चश्मा ही कार्य करेगा और इस विवेक के चश्मे को पाने की युक्ति मिलती है हरि नाम संकीर्तन यानी (सत्य का संग)व सत्संग से! तो हे आत्म जनों, मानवता से जो पूर्ण हो, वही मनुष्य कहलाता है। बिन मानवता के मानव भी, पशुतुल्य रह जाता है..!! इसलिए आप जो भी कमा रहे उसमे से कम से कम 2% दान करते रहे जो सेवा आपको सही लगे उस में..!!
   *🙏🏼🙏🏽🙏🏾जय जय श्री राधे*🙏🏿🙏🏻🙏

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