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बुधवार, 26 सितंबर 2012

पदमा एकादशी, जलझूलनी एकादशी या डोलग्यारस एकादशी बुधवार 26.09.2012 को......

पदमा एकादशी, जलझूलनी एकादशी या डोलग्यारस एकादशी कल बुधवार 26.09.2012 को.......
भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की एकादशी 'पदमा एकादशी' कही जाती है l इस दिन भगवान श्री विष्णु के वामन रुप कि पूजा की जाती है l इस एकादशी के विषय में एक मान्यता है, कि इस दिन माता यशोदा ने भगवान श्री कृ्ष्ण के वस्त्र धोये थे l इसी कारण से इस एकाद्शी को "जलझूलनी एकादशी" भी कहा जाता है l वर्ष 2012 में 26 सितम्बर के दिन जलझूलनी एकादशी या पदमा एकादशी रहेगी l राजस्थान में जलझूलनी एकादशी को 'डोलग्यारस एकादशी' भी कहा जाता है l

इस व्रत को करने से व्यक्ति के सुख, सौभाग्य में बढोतरी होती है l इस एकादशी के दिन व्रत कर भगवान श्री विष्णु जी की पूजा की जाती है l मंदिरों में इस दिन भगवान श्री विष्णु को पालकी में बिठाकर शोभा यात्रा निकाली जाती है l गंगा के बाहर जाकर उनको स्नान कराया जाता है l इस अवसर पर भगवान श्री विष्णु के दर्शन करने के लिये लोग सैलाब की तरह उमड पडते है l जलझूलनी एकादशी के दिन जो व्यक्ति व्रत करता है, उसे भूमि दान करने और गौदान करने के पश्चात मिलने वाले पुन्यफलों से अधिक शुभ फलों की प्राप्ति होती है, ऐसा शास्त्रों में कहा गया है l इस व्रत में धूप, दीप,नेवैद्ध और पुष्प आदि से पूजा करने की विधि-विधान है l एक तिथि के व्रत में सात कुम्भ स्थापित किये जाते है, सातों कुम्भों में सात प्रकार के अलग- अलग धान्य भरे जाते है l भरे जाने वाले धान्यों के नाम इस प्रकार है :- गेहूं, उडद, मूंग, चना, जौं, चावल और मसूर है l एकादशी तिथि से पूर्व की तिथि अर्थात दशमी तिथि के दिन इनमें से किसी धान्य का सेवन नहीं करना चाहिए l कुम्भ के ऊपर श्री विष्णु जी की मूर्ति रख पूजा की जाती है l इस व्रत को करने के बाद रात्रि में श्री विष्णु जी के पाठ का जागरण करना चाहिए l यह व्रत दशमी तिथि से शुरु होकर द्वादशी तिथि तक जाता है, इसलिये इस व्रत की अवधि सामान्य व्रतों की तुलना में कुछ लम्बी होती है l एकादशी तिथि के पूरे दिन व्रत कर अगले दिन द्वादशी तिथि के प्रात:काल में अन्न से भरा घडा ब्राह्माण को दान में दिया जाता है l


जलझूलनी एकादशी मेला....


चारभुजा गढ़बोर का मन्दिर अपने आप में बहुत ही प्रसिद्ध मंदिर है और मेवाड के चार धाम में से एक माना जाता है । यहां की जलझुलनी एकादशी बहुत ही प्रसिद्ध है । महाराष्ट्र, गुजराज व राजस्थान के कई स्थानों से लोग इस दिन यहां दर्शनों का लाभ लेने हेतू यहां आते हैं । राजसमंद के गांवो जेसे रीछेड, सांयो का खेडा एवं चारभुजा आदि स्थानो से कई कई लोग जो रोजगार ना या कम होने के कारण बाहर बडे शहरों की ओर पलायन कर गए, उनमें से भी वे लोग साल में इस दिन परिवार सहित यहां अपने गांव में आने को लालायित रहते हैं । चारभुजा जी को मंदिर से पालकी, सवारी व गाजे बाजे के साथ, रंग गुलाल उडाते और गीत गाते हजारों की संख्या में लोग तालाब के किनारे स्थित खास स्थल पर ले कर जाते हैं जहां विधिवत स्नान व पूजा अर्चना आदि की जाती है । इस दिन चारों ओर उल्लास का माहौल होता है । औरतें गीत भजन आदि गाती हैं और नृत्य करती है और हजारो लोग भगवान चारभुजा की जय जयकार करते हुए एक विशेष तरह की सवारी निकलते हैं ।

रविवार, 23 सितंबर 2012

फेसबुक का जनक एक भारतीय है...

सोशियल वेबवाइट एफबी यानी फेसबुक के यूजर्स में से एक फीसदी लोगों को यह पता नहीं होगा कि इसके फाउंडर मार्क जुकरबर्ग नहीं बल्कि अप्रवासी भारतीय दिव्य नरेंद्र है। मार्क ने तो उनके आइडिए को कॉपी करके एफबी बनाई थी।

भारतीय"बिना फेसबुक जिंदगी बेनूर"आज के युवाओं सोशियल वेबसाइट फेसबुक के पति कुछ ऎसा ही नजरिया रखते हैं। यही वजह है कि दुनिया की सबसे फेवरेट साइट्स में एफबी (फेसबुक) का नाम शुमार है। इसके फाउंडर के तौर पर मार्क जुकरबर्ग को दुनिया में ऎसी अनोखी प्रतिभा का धनी मान लिया गया है, जिन्होंने कॉलेज के दिनों में ही ऎसा कालजयी आविष्कार कर दिखाया।

उनके जीवन पर फिल्म भी बन चुकी है, जिसने सफलता के झंडे गाड़े हैं। लेकिन फेसबुक की असली सच्चाई जानकर आपको खासी हैरानी हो सकती है और खुशी भी। फेसबुक के असली निर्माता मार्क जुकरबर्ग नहीं बल्कि अप्रावासी भारतीय दिव्य नरेंद्र हैं, जिनके आइडिए को कॉपी कर मार्क ने फेसबुक बना डाली और दुनिया में शोहरत हासिल कर ली। फेसबुक के पीछे के इंडियन फेस को आइए जानें करीब से। महज 29 साल के दिव्य नरेंद्र अमरीका में रहने वाले अप्रावासी भारतीय हैं। उनके माता-पिता काफी समय पहले से अमरीका में ही आ बसे हैं। दिव्य का जन्म 18 मार्च 1982 को न्यूयार्क में हुआ था। जाहिर है कि दिव्य के पास भी अमरीकी नागरिकता है। उनके डॉक्टर पिता बेटे को भी डॉक्टर बनाना चाहते थे, लेकिन दिव्य इसके लिए तैयार नहीं थे। उनका सपना तो था उद्यमी बनने का। अपने दम पर दुनिया को कुछ कर दिखाने का। मार्क जुकरबर्ग ने फेसबुक को अपना बताकर दुनियाभर में विस्तार शुरू किया तो हंगामा हो गया। दिव्य और उनके दोस्तों ने कोर्ट में उनके खिलाफ केस ठोक दिया। दिव्य का कहना था कि यह उनका आइडिया था। जुकरबर्ग को कहीं फ्रेम में थे ही नहीं। बाद में उन्होंने दिव्य और दोस्तों के आइडिए को कॉपी कर फेसबुक शुरू कर दी। अमरीकी कोर्ट ने पूरे मामले की गहन सुनवाई की। कोर्ट ने इसके बाद दिव्य के दावे को सही पाया और जुकरबर्ग को आदेश दिया कि वे हर्जाने के तौर पर दिव्य और उनके दोस्तों को 650 लाख डालर की राशि अदा करें। जाहिर सी बात है कि दिव्य इससे संतुष्ट नहीं थे। उनका कहना था कि हर्जाने का राशि फेसबुक की मौजूदा बाजार कीमत के आधार पर तय की जानी चाहिए। हाल ही में गोल्डमैन स्नैच ने फेसबुक की बाजार कीमत 50 बिलियन डॉलर आंकी थी। उन्होंने एक बार फिर मुकदमा दायर किया, लेकिन अमरीकी कोर्ट ने पिछले फैसले को ही बरकरार रखा। अमरीकी कोर्ट के फैसले के आईने में देखा जाए तो जो प्रसिद्धि आज मार्क जुकरबर्ग को मिली है, उसके सही हकदार दिव्य नरेंद्र थे।
फेसबुक का जन्म असल में हार्वर्ड कनेक्शन नाम की सोशल साइट के डिजाइन के दौरान हुआ था। दिव्य इस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे और काफी आगे बढ़ चुके थे। लंबे समय बाद जुकरबर्ग एक मौखिक समझौते के आधार पर इस प्रोजेक्ट का हिस्सा बने थे। यहां काम करने के दौरान उन्होंने पूरी प्रक्रिया देखी और आखिर उस प्रोजेक्ट को फेसबुक नाम देकर रजिस्टर्ड करा लिया। जब उन्होंने इसे अमली जामा पहनाना शुरू किया तो दिव्य और उनके दोस्तों ने तीखा विरोध किया। इसे लेकर उनकी जुकरबर्ग से खासी तकरार भी हुई।
आखिर मामला हद से आगे बढ़ता लगा तो यूनिवर्सिटी प्रशासन ने हस्तक्षेप कर दिव्य को अदालत जाने की सलाह दी। अदालत ने फैसला जरूर दिया, लेकिन इंसाफ नहीं कर पाई। जुकरबर्ग के साथ मुकदमेबाजी से दिव्य निराश जरूर हुए, लेकिन उन्होंने खुद को हताश नहीं होने दिया। उन्होंने साथ ही दूसरे प्रोजेक्ट सम जीरो पर काम शुरू कर दिया। उनका यह प्रोजेक्ट आज खासा कामयाब है। अपने को दिव्य किस रूप में देखते हैं, फेसबुक के संस्थापक या समजीरो के सीईओ, पूछे जाने पर उनका सीधा जवाब होता है, मैं बस एक कामयाब उद्यमी के रूप में पहचाना जानना चाहता हूं। जिसने अपने और समाज के लिए कुछ किया हो। फेसबुक के अनुभव से मिली सीख के बारे में पूछने पर दिव्य मजाक करते हैं,"मुझे हाईस्कूल में ही वेबप्रोग्रामिंग सीख लेनी चाहिए थी।" ऎसा नहीं कि दिव्य के फेसबुक की खोज करने की बात लोगों को मालूम नहीं है। हाल ही में जुकरबर्ग पर बनी फिल्म"द सोशल नेटवर्क"में उनका किरदार भी रखा गया था। आखिर उनके जिक्र के बिना फेसबुक की कहानी भला पूरी कैसे हो सकती थी। इस बारे में पूछने पर दिव्य बताते हैं,"पहले मुझे डर था कि फिल्म में मुझे खलनायक के तौर पर प्रस्तुत किया जा सकता है, लेकिन फिल्म देखने के बाद मेरा डर दूर हो गया।"दिव्य अपनी जिंदगी के फंडे के बारे में पूछने पर बताते हैं,"आपको अपनी नाकामयाबियों से सीखना आना चाहिए। एक बार नाकामी से सीख लेने के बाद आपको तत्काल अगला प्रयास शुरू कर देना चाहिए।"

विश्व बेटी दिवस - प्रीतिलता वादेदार का आत्मबलिदान



आज विश्व बेटी दिवस है इस ख़ास मौके पर आप सब को बधाई प्रीतिलता वादेदार(5 मई 1911 – 23 सितम्बर 1932) भारतीय स्वतंत्रता संगाम की महान क्रान्तिकारिणी थीं। वे एक मेधावी छात्रा तथा निर्भीक लेखिका भी थी। वे निडर होकर लेख लिखती थी।
प्रीतिलता वादेदार का जन्म 5 मई 1911 को तत्कालीन पूर्वी भारत (और अब बंगला देश ) में स्थित चटगाँव के एक गरीब परिवार में हुआ था।उन्होने ढाका के इडेन कॉलेज में प्रवेश लिया और इण्टरमिडिएट परीक्षा में पूरे ढाका बोर्ड में पाँचवें स्थान पर आयीं । स्कूली जीवन में ही वे बालचर - संस्था की सदस्य हो गयी थी। वहा उन्होंने सेवाभाव और अनुशासन का पाठ पढ़ा। बालचर संस्था में सदस्यों को ब्रिटिश सम्राट के प्रति एकनिष्ट रहने की शपथ लेनी होती थी। संस्था का यह नियम प्रीतिलता को खटकता था। उन्हें बेचैन करता था। यही उनके मन में क्रान्ति का बीज पनपा था।
बचपन से ही वह रानी लक्ष्मी बाई के जीवन - चरित्र से खूब प्रभावित थी । बाद मे उनका सम्पर्क क्रान्तिकारियो से हुआ। इसके बाद वे सूर्यसेन के नेतृत्त्व कि इन्डियन रिपब्लिकन आर्मी में महिला सैनि
क बनी।उन्होने ने जलालाबाद जंग मे हिस्सा लिया । बाद मे पूर्वी बंगाल के घलघाट में क्रान्तिकारियो को पुलिस ने घेर लिया था घिरे हुए क्रान्तिकारियो में अपूर्व सेन , निर्मल सेन , प्रीतिलता और सूर्यसेन आदि थे।सूर्यसेन ने लड़ाई करने का आदेश दिया।अपूर्वसेन और निर्मल सेन शहीद हो गये।सूर्यसेन की गोली से कैप्टन कैमरान मारा गया। सूर्यसेन ने अपने साथियो का बदला लेने की योजना बनाई। योजना यह थी की पहाड़ी की तलहटी में यूरोपीय क्लब पर धावा बोलकर नाच - गाने में मग्न अंग्रेजो को मृत्यु का दंड देकर बदला लिया जाए।उस क्लब के बाहर लिखा था 'कुत्ते और भारतीयो का अंदर आना माना है '। प्रीतिलता के नेतृत्त्व में कुछ क्रांतिकारी वहाँ पहुचे। 24 सितम्बर 1932 की रात इस काम के लिए निश्चित की गयी।हथियारों की कमी की वजह से प्रीतिलता ने आत्म सुरक्षा के लिए पोटेशियम साइनाइड नामक विष भी रख लिया था। पूरी तैयारी के साथ वह क्लब पहुची।बाहर से खिड़की में बम लगाया। क्लब की इमारत बम के फटने और पिस्तौल की आवाज़ से कापने लगी। नाच - रंग के वातावरण में एकाएक चीखे सुनाई देने लगी।13 अंग्रेज जख्मी हो गये और बाकी भाग गये।इस घटना में एक यूरोपीय महिला मारी गयी।थोड़ी देर बाद उस क्लब से गोलीबारी होने लगी। प्रीतिलता के शरीर में एक गोली लगी।वे घायल अवस्था में भागी लेकिन फिर गिरी और पोटेशियम सायनाइड खा लिया। उस समय उनकी उम्र 21 साल थी। इतनी कम उम्र में उन्होंने झांसी की रानी का रास्ता अपनाया और उन्ही की तरह अंतिम समय तक अंग्रेजो से लड़ते हुए स्वंय ही मृत्यु का वरण कर लिया। प्रीतिलता के आत्म बलिदान के बाद अंग्रेज अधिकारियों को तलाशी लेने पर जो पत्र मिले उनमे छपा हुआ पत्र था। इस पत्र में छपा था की " चटगाँव शस्त्रागार काण्ड के बाद जो मार्ग अपनाया जाएगा , वह भावी विद्रोह का प्राथमिक रूप होगा। यह संघर्ष भारत को पूरी स्वतंत्रता मिलने तक जारी रहेगी।"
प्रीतितला आत्मबलिदान करके देश को बताना चाहती थी की जरूरत पड़ने पर एक महिला भी अपनी जान न्योछावर करके देश की रक्षा कर सकती है

ऐसी महान क्रांतिकारिणी को शत शत नमन ।

इंकलाब ज़िंदाबाद !
जय जय सिया राम
जय जय माँ भारती

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