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रविवार, 23 सितंबर 2012

विश्व बेटी दिवस - प्रीतिलता वादेदार का आत्मबलिदान



आज विश्व बेटी दिवस है इस ख़ास मौके पर आप सब को बधाई प्रीतिलता वादेदार(5 मई 1911 – 23 सितम्बर 1932) भारतीय स्वतंत्रता संगाम की महान क्रान्तिकारिणी थीं। वे एक मेधावी छात्रा तथा निर्भीक लेखिका भी थी। वे निडर होकर लेख लिखती थी।
प्रीतिलता वादेदार का जन्म 5 मई 1911 को तत्कालीन पूर्वी भारत (और अब बंगला देश ) में स्थित चटगाँव के एक गरीब परिवार में हुआ था।उन्होने ढाका के इडेन कॉलेज में प्रवेश लिया और इण्टरमिडिएट परीक्षा में पूरे ढाका बोर्ड में पाँचवें स्थान पर आयीं । स्कूली जीवन में ही वे बालचर - संस्था की सदस्य हो गयी थी। वहा उन्होंने सेवाभाव और अनुशासन का पाठ पढ़ा। बालचर संस्था में सदस्यों को ब्रिटिश सम्राट के प्रति एकनिष्ट रहने की शपथ लेनी होती थी। संस्था का यह नियम प्रीतिलता को खटकता था। उन्हें बेचैन करता था। यही उनके मन में क्रान्ति का बीज पनपा था।
बचपन से ही वह रानी लक्ष्मी बाई के जीवन - चरित्र से खूब प्रभावित थी । बाद मे उनका सम्पर्क क्रान्तिकारियो से हुआ। इसके बाद वे सूर्यसेन के नेतृत्त्व कि इन्डियन रिपब्लिकन आर्मी में महिला सैनि
क बनी।उन्होने ने जलालाबाद जंग मे हिस्सा लिया । बाद मे पूर्वी बंगाल के घलघाट में क्रान्तिकारियो को पुलिस ने घेर लिया था घिरे हुए क्रान्तिकारियो में अपूर्व सेन , निर्मल सेन , प्रीतिलता और सूर्यसेन आदि थे।सूर्यसेन ने लड़ाई करने का आदेश दिया।अपूर्वसेन और निर्मल सेन शहीद हो गये।सूर्यसेन की गोली से कैप्टन कैमरान मारा गया। सूर्यसेन ने अपने साथियो का बदला लेने की योजना बनाई। योजना यह थी की पहाड़ी की तलहटी में यूरोपीय क्लब पर धावा बोलकर नाच - गाने में मग्न अंग्रेजो को मृत्यु का दंड देकर बदला लिया जाए।उस क्लब के बाहर लिखा था 'कुत्ते और भारतीयो का अंदर आना माना है '। प्रीतिलता के नेतृत्त्व में कुछ क्रांतिकारी वहाँ पहुचे। 24 सितम्बर 1932 की रात इस काम के लिए निश्चित की गयी।हथियारों की कमी की वजह से प्रीतिलता ने आत्म सुरक्षा के लिए पोटेशियम साइनाइड नामक विष भी रख लिया था। पूरी तैयारी के साथ वह क्लब पहुची।बाहर से खिड़की में बम लगाया। क्लब की इमारत बम के फटने और पिस्तौल की आवाज़ से कापने लगी। नाच - रंग के वातावरण में एकाएक चीखे सुनाई देने लगी।13 अंग्रेज जख्मी हो गये और बाकी भाग गये।इस घटना में एक यूरोपीय महिला मारी गयी।थोड़ी देर बाद उस क्लब से गोलीबारी होने लगी। प्रीतिलता के शरीर में एक गोली लगी।वे घायल अवस्था में भागी लेकिन फिर गिरी और पोटेशियम सायनाइड खा लिया। उस समय उनकी उम्र 21 साल थी। इतनी कम उम्र में उन्होंने झांसी की रानी का रास्ता अपनाया और उन्ही की तरह अंतिम समय तक अंग्रेजो से लड़ते हुए स्वंय ही मृत्यु का वरण कर लिया। प्रीतिलता के आत्म बलिदान के बाद अंग्रेज अधिकारियों को तलाशी लेने पर जो पत्र मिले उनमे छपा हुआ पत्र था। इस पत्र में छपा था की " चटगाँव शस्त्रागार काण्ड के बाद जो मार्ग अपनाया जाएगा , वह भावी विद्रोह का प्राथमिक रूप होगा। यह संघर्ष भारत को पूरी स्वतंत्रता मिलने तक जारी रहेगी।"
प्रीतितला आत्मबलिदान करके देश को बताना चाहती थी की जरूरत पड़ने पर एक महिला भी अपनी जान न्योछावर करके देश की रक्षा कर सकती है

ऐसी महान क्रांतिकारिणी को शत शत नमन ।

इंकलाब ज़िंदाबाद !
जय जय सिया राम
जय जय माँ भारती

1 टिप्पणी:

  1. देश में ऐसी वीरांगनाओ की कमी नहीं है , बस एक अवसर की दरकार है . मगर आज के माहौल में बेटी अपना अस्तित्व बचाने की जद्दोजहद में लगी है .खूबसूरत लेख, बधाई

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